पृथ्वी पर पड़ने वाले कुल सौर विकिरणका कुछ अंश पृथ्वी रोक लेती है औरशेष पृथ्वी से अंतरीक्ष को विकिरण के रूप में लौटा दिया जाता है .दोनों का जो अंतर है वह हीट बजट है ।
हम जानतें हैं पृथ्वी ने एक कार्बन डायओक्स्साइड का ओढना ओढ़ा हुआ है जो हीट वेव्स (अपेक्षाकृत अधिक लम्बाई की तरंगों )को अन्तरिक्ष में वापस जाने से रोके रहता है और पृथ्वी पर एक जीवन के अनुकूल तापमान बना रहता है .यानी हमारी पृथ्वी और उसका कार्बन डाय -ओक्स्साइड से युक्त वायुमंडल एक ग्रीन हाउस की तरह व्यवहार करता है ।पृथ्वी के तापमान में बस ४ सेल्सिअस की घट बढ़ -
एक छोर पर आइस एज ,दुसरे पर जलप्लावन (दिल्युज )की वजह बन सकती है .इसी लियें इन दिनों ग्लोबल वार्मिंग और तद -जनित (उस से पैदा )जलवायु परिवर्तन की चर्चा है .अभी कल ही "अर्थ -आवर्स "प्रतीक स्वरूप मनाया गया है २७ मार्च (औताम्नल एक्युइनोक्स )को दुनिया भर के कितने ही देशों ने रात्रि ८.३० -९.३० तक गैर ज़रूरी बत्तियों (लाइट्स )को गुल रखा .भारत ने भी इसमे शिरकत की .इस दरमियान १००० मेगावाट तक बिजली की खपत कम की जा सकी .
रविवार, 28 मार्च 2010
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