महिलाओं के लिए रूटीन मेमोग्रेम्स (स्तन कैंसर पता लगाने के लिए )तथा पेप स्मियर टेस्ट (सर्विक्स कैंसर यानी गर्भाशय गर्दन कैंसर की शिनाख्त के लिए ) की मानिंद अब मर्दों के लिए एक उम्र के बाद रूटीन प्रोस्टेट कैंसर टेस्ट (प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन टेस्ट )अब संदेह के घेरे में आ गया है .कुछ साइंसदान जिनका सम्बन्ध अमरीकी कैंसर सोसायटी से है एक कट ऑफ़ उम्र के बाद ऐसी जांच को ज़रूरी नहीं मानते क्योंकि यह निरापद नहीं है .गैर ज़रूरी शल्य चिकित्सा के दायरे में ला सकती है जांच कारवाने वाले व्यक्ति को जिनके परिणाम स्वरूप व्यक्ति इन्फेक्शन (अनेक तरह के संक्रमण ),रक्त स्राव (ब्लीडिंग )यहाँ तक की उम्र भर के लिए नपुंसकता (इम्पोतेंसी )की चपेट में भी आ सकता है .बेशक "प्रोस्टेट स्पेसिफिक कैंसर के लिए रक्त जांच ")डिजिटल रेक्टल इग्जामिनेशन की तरह आरंभिक अवस्था में ही कैंसर का पता लगा सकती है लेकिन यह सर्वथा निरापद नहीं है ।
अलबत्ता "अमरीकी मूत्र विज्ञानी का संघ /अमरीकन युरोलोजिकल असोशियेशन ") एक उम्र के बाद ऐसी जांच पर सवाल नहीं उठा रही है ।
दोनों एक बात से सहमत प्रतीत होतें हैं ,जांच से पूर्व इसके गुण -दोषों की ,संभावित जोखिम की चर्चा मरीज़ के साथ ज़रूर की जानी चाहिए .कहीं ऐसा ना हो "मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की /चौबे जी चले थे छब्बे जी बन्ने ,लौटे दुबेजी बनके "।
सच यह भी है
शुक्रवार, 5 मार्च 2010
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