शनिवार, 27 मार्च 2010

शांत चित्त वालों की याद -दाश्त रहती है तेज़ ....

उत्तेजना से दूर शांत -चित्त रहकर आप जो कुछ सीखते करते है उसकी दिमाग पर गहरी छाप पडती है .जब हम प्रशांत होतें हैं तब याद दाश्त से ताल्लुक रखने वाले न्यूरोन एक ख़ास दिमागी तरंग के साथ मिलकर रिदम के साथ एक ताल हो काम करने लगतें हैं ,सन्देश भेजने लगतें हैं ।
केलिफोर्निया इन्स्तित्युत ऑफ़ टेक्नोलोजी के साइंसदानों ने इस अध्धय्यन को आगे बढाया है .दिमागी सर्किट के स्तर पर जो घटनाएं घटतीं हैं उनका हमारे व्यवहार से सीधा सम्बन्ध है यही निचोड़ है इस अध्धययन का ।
एक साथ काम को आगे बढाने में तुल्यकालिक होने को थीटा वेव्स प्रभावित करतीं हैं .जब हमारा चित्त शांत होता है जब हम दिवा स्वप्न देख रहे होतें हैं ,उनींदे बने से तब सीखने की प्रक्रिया को भी यही थीटा वेव्स असरकारी बनातीं हैं .दिमाग की थीटा वेव्सप्रावस्था (फेज़ ) में जो कुछ हम सीखतें हैं उसकी अमिट छाप पडती है ।
जब हम शांत चित्त होतें हैं ,हमारा दिमाग नै ग्रहण की गई सूचना का संसाधन बेहतर तरीके से करता है ।
यह अध्धयन उस प्रकिर्या का खुलासा करता है जिसके ज़रिये रिलेक्स्शेशन न्युरोंस मेमोरी को पुख्ता बनाते हैं ,मेमोरी में इजाफा करतें हैं ।
जब यही मेमोरी सम्बन्धी न्युरोंस थीटा वेव्स के साथ सही तौर पर समन्वित हो जातें हैं .दोनों के बीच परस्पर बेहतर संयोजन होता है ,तब सीखने की प्रकिर्या और याद -दाश्त भी तेज़ी से बनती है .,आगे बढती है ।
न्यूरोसर्जन अदमममेलक (सेदर्स -सिने मेडिकल सेंटर ,लोस एन्ज़िलीज़ )भी यही निष्कर्ष निकाल्तें हैं ।
अध्धयन के मुताबिक़ यदि किसी तरह दिमागी स्टेट को एक आदर्श स्टेबनाया जा सके,चित्त को शांत बनाए रखने के इंतजामात किये जा सकेतब इस अवस्था में जो भी कुछ सीखा समझा जाएगा वह मुकम्मिल छाप छोड़ेगा ।
लर्निंग दिसेबिलितीज़ से ग्रस्त लोगों (डिस्लेक्सिया ),डिमेंशिया के मरीजों के लिए एक बेहतर थिरेपी का यही आधार बन सकता है किसी दिन ।
सन्दर्भ सामिग्री :वाई रिलेक्स्ड माइंड्स फॉर्म बेतर मेमोरीज़ (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २६ ,२०१० )

कोई टिप्पणी नहीं: