चिल्ड्रन केन बी तोत तू इमेजिन अवे पेन :स्टडी (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर १३ ,२००९ ,पृष्ठ १७ ) सुर्खी है एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक की .जिसमे एक अभिनव अध्धय्यन के हवाले से बतलाया गया -बच्चे बेहद कल्पना शील होतें हैं वे बादलों पर सवार हो तैरने की कल्पना भी कर सकतें हैं ,उनकी इसी कल्पना शीलता का फायदा उठाते हुए नार्थ केरोलिना विश्व -विद्यालय एवं ड्यूक विश्व -विद्यालय के शोध कर्ताओं ने एक "रिलेक्शेशन -सी दी "तैयार की है जो बच्चों को कल्पना के घोडे पर सवारी करा दर्द से राहत दिलवा सकती है ।
इस अध्धय्यन के तहत २० मिनिट के एक गा -इदिद इमेजरी सेशन के तहत बच्चों को यह सी दी सुनवाई गई -जिसमे उन्हें यह कल्पना करने के लिए कहा गया -"उनके हाथ पर एक एक विशेष चमकीला पदार्थ रखा रखा पिघल रहा है .उनका हाथ गर्माहट से भर गया है ,अब वह इस आंच से (स्पर्श की आंच से ) अपने पेट को सेंक रहें हैं "और बस पेट का दर्द काफूर ।
दर्द -हारी साबित हुआ यह बीस मिनिट का सेशन .तमाम बच्चों को ऐसा लगा एक सुरक्षा कवच उनकी दर्द से हिफाजत कर रहा है ।
इस प्रकार "कल्पना शील मन "दर्द की अचूक दवा बन सका ।
पता चला -जिन बच्चों ने इस सी दी के अनुरूप कल्पना को पंख लगाए उनमे से ७३.३ फीसद बच्चों की पीडा की उग्रता घट कर आधी रह गई ,कोर्स समाप्त होते होते जब की जिन बच्चों को स्तेंदर्द केयर मुहैया करवाई गई उनमे से २६.७ फीसद को ही दर्द से राहत मिल सकी .
मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009
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