प्रोफेसर केविन वारविक दुनिया के पहले "साईबोर्ग "बन चुके हैं और अब दुनिया का पहला "साईं बग "भी तैयार है .दरअसल साईं -बर्नेतिक ओर्गेनिस्म कोई भी ऐसी प्रणाली (जीवित व्यक्ति या कीट -पतंग ,भृंग ,गोब्रेला )को कहा जा सकता है जिसमे जीवऔर मशीन दोनों के गुन हो ,यानी आंशिक तौर पर मशीन और जीव वह दोनों एक साथ हो ।
आदमी के नाक कान आँख इतर एन्द्रिक प्रणाली की अपनी सीमायें हैं -आदमी सिर्फ़ वाणी से अपने अभिव्यक्त कर सकता है ,केवल थ्री -डाय मेंस्न्स (थ्री -दी )में देख सकता है .मशीन का संग साथ उसे बहु -आयामी बना देता है ।
इसीप्रकार कीटों और मशीनों का परस्पर संयुक्त होना कीटों को वहाँ तक पहुँचने की क्षमता दे सकता है ,जहाँ तक ना तो सामान्य कीट पहुँच सकता है और ना आदमी (होमो -सेपियन ).मसलन भूकंप के बाद की विनाश लीला का सीधे सीधे जायजा लेना एक टेड़ीखीर है ,लेकिन साईं बग यह काम कर सकता है ।
विज्ञान कथाओं ,विज्ञान कथा फिल्मों यथा "सिक्स मिलियन डालरमें ","टर्मिनेटर "आदि के दायरे से बाहर निकल अब साईं -बोर्ग्स और साईं -बग्स इस दौर की हकीकत बन रहें हैं ।
साईं -बग :wired beetle reaches areas where no man can go (times of india ,october 12 ,2009 ) ab maatr akhbaari surkhi ,akhbaari khabar maatr nahin hai ,eh hakikat hai .साईं बग्स हमारे दौर की अब हकीकत हैं -जहाँ ना पहुँच सके कोई ,वहाँ पहुंचे साईं बग .विज्ञानियों ने एक ऐसा गोबरैला तैयार कर लिया है जो एक साथ मशीन भी है और कीट भी .
vijyaaniyon ne gobrelaa (bhring ,keet ,beetle )ko masheenikrit karke ek aisa beetal taiyaar kar liyaa hai -jo keet bhi hai massheen bhi .
jahaan naa pahunch sake koi vahaan pahunche "saai bag "
A cybug can access those areas where people can,t go ,e.g . in the aftermath of a quake .अब दूर नियंत्रण प्रणाली (रिमोट कंट्रोल )से मशीनीकृत कीटों को वांछित जगहों पर भेजा जा सकेगा ।
केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय की शोध का नतीजा है -साईं बग जिसे पेंटागन से अनुदान प्राप्त हुआ है ।
विज्ञानियों ने अपेक्षाकृत आकार में थोडा बड़े गोबरैला (भृंग )लेकर इनके दिमाग में "रेडियो -रिसीवर "तारों की मदद से फिट कर दियें हैं .अलावा इसके पेशियों में भी रेडियो -अभिग्राही फिट किए गए हैं ।
दुर्जेय दुर्गम स्थलों तक इन्हें पहुंचाया जा सकता है -ऐसा कहना है शोध कर्ताओं का ।
रोबोटिक्स और आर्तिफिशिअल इंटेलिजेंस के प्रोफेसर नोएल शार्की (शेफील्ड विश्व -विद्यालय )ऐसा ही मानतें हैं .हालाकि अभी इन कीटों को कैमरों तथा ग्लोबल पोजिशनिंग सॅटॅलाइट रिसीवर से से नहीं जोड़ा जा सकता इनके नन्ने शरीर में फिलवक्त ये युक्तियाँ फिट नहीं की जा सकतीं .ऐसा होने पर यह कहाँ है इसकी भी खोज ख़बर ली जा सकेगी ।
नोएल आशंकित भी हैं नीति विषयक सवाल उठातें हैं -आख़िर में यह शोध हमें कहाँ ले जाकर छोडेगी ?(एक दम से बोना और असहाय कीट और मशीन मिश्र ,इंटेलिजेंट रोबोट्स के सहारे छोड़ देगी ?)
सोमवार, 12 अक्तूबर 2009
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