जमीन के ३,३२,००० किलोमीटर ऊपर पृथ्वीकी कक्षा में तकरीबन२०० ऐसे उपग्रह तैर रहें हैं जो अपनी जीवन अवधि (कार्य -अवधि )भुगता चुकें हैं .यह उपग्रह अन्तरिक्ष अन्वेषण के लिए जाने वाले अस्त्रोनोट्स अन्तरिक्ष यात्रियों के लिए लगातार एक ख़तरा बने हुए हैं .यूँ पृथ्वी की लो -अर्थ आर्बिट में अन्तरिक्ष कबाड़ का डेरा है ।
यहाँ हम चर्चा उन रोबोट्स की करेंगे जिन्हें फेल्ड सेटेलाइट्स के रेस्क्यू तथा मृत प्राय उपग्रहों को सुदूर अन्तरिक्ष में ठेलने के लिए स्तेमाल किया जा सकेगा ।
आईंदा चार सालों में ऐसे जर्मन सेटेलाइट्स तैयार हो जायेंगे जो इन कबाडी उपग्रहों को "पृथ्वी की ग्रेवयार्ड कक्षा "में ठेल सकेंगे ।
और इस प्रकार एक मल्तिबिलियन -डालर -सॅटॅलाइट कम्युनिकेशंस इंडस्ट्री को बचाया जा सकेगा जिसकी शाख को अन्तरिक्ष कबाड़ ने दाव पर लगा दिया है ।
आइन्दा १० सालों में मृत उपग्रहों की संख्या बढ़कर २००० हो सकती है ।
जर्मन एरोस्पेस सेंटर (दी .एल .आर )के क्लाउस लंद्ज़त्टेल (स्पेस रोबोटिक्स के मुखिया )के अनुसार अब ऐसी मशीने तैयार की जा रहीं हैं जो शून्य से १७० सेल्सिअस(-१७० सेल्सिअस ) नीचे से लेकर २०० सेल्सिअसऊपर तक के ताप पर काम कर सकेंगी (ताप सहने की क्षमता से लैस ).इनका स्तेमाल ऐसे रोबोट्स के बतौर किया जा सकेगा जिन्हें अन्तरिक्ष की उक्त कक्षा में परी -भ्रमण करते उपग्रहों से अन्तरिक्ष में आवश्यक कार्य -वाही के लिए जोड़ा (डोक )जा सकेगा .भले ही इन उपग्रहों की डिजाइन दोकिंग के अनुरूप हो या ना हो ।
२००७ में अमरीकी ओर्बितल एक्सप्रेस प्रोजेक्ट को एक ऐसे उपग्रह को ईंधन मुहैया कराने में कामयाबी मिली थी जिसका ईंधन चुक चुका था .लेकिन यह उपग्रह दोकिंग मेकेनिज्म से लैस था .नै व्यवस्था तमाम तरह के उपग्रहों की ऋ -फ्युएलिंग कर सकेगी .फेल्ड उपग्रहों को रेस्क्यू और डेड उपग्रहों को शमशानी कक्षा में भेज सकेगी ।
सन्दर्भ सामिग्री :-रोबोट्स तू पुश डेड सेटेलाइट्स ऑफ़ अर्थ्स ओर्बित (टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर १२ ,२००९ ,पृष्ठ १७ ।).
प्रस्तुति ;वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
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