भारत सरकार हमेशा की तरह डिनायल (नकार )की मुद्रा में है .बकौल पर्यावरण मंत्री जैराम रमेश -अभी जलवायु परिवर्तन और हिमनदों के पिघलाव के बीच किसी भी नतीजे पर पहुँचने से पहले और अध्धय्यनों की ज़रूरत है ।
बेशक (बकौल मंत्री ,पर्यावरण )कुछ हिमनद (हिमालय क्षेत्र से )पश्चगमन कर रहें हैं (रिसीद )कर रहें हैं ,लेकिन कुछ और जैसे सियाचिन ग्लेसिअर आगे की और बढ़ रहें हैं ,यानी विस्तार पा रहें हैं सिकुड़ नहीं रहें हैं ,जबकि कुछ और जैसे की गंगोत्री ग्लेसियर का पश्चगमन (रिसीद करना ) अब कमतर हुआ है गत दो दशकों की तुलना में ।
लेकिन हिमनद विज्ञानी (कश्मीर विश्व -विद्द्यालय ,भूगर्भ विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर शकील रामसू )अलग ही कहानी कह रहें हैं ,कश्मीर राज्य का सबसे विशाल हिमनद झेलम और और उसकी अनेक धाराओं ,झीलों की जीवन रेखा रहा आया हिमनद "कोलाहोई ग्लेशिअर "अलार्मिंग स्पीड ०.०८ वर्ग किलोमीटर प्रति साल "(क्षमा करें यह स्पीड की ईकाई नहीं है )से पश्च -गमन कर रहा है ,इतना ही नहीं कश्मीर के अन्य अनेक लघु ,लघुतर ग्लेशिर भी सिकुड़ रहे हैं .वजह है -शीत -रितू के तापमानों का लगातार बढ़ते जारी रहना .यह जलवायु परिवर्तन के शुरू होने की घंटीतो नहीं है -जय -राम -रमेशजी ?
सन्दर्भ सामिग्री :-ग्लेसिअर फीडिंग झेलममेल्टिंग अत एलार्मिंग स्पीड ,फांड्स स्टडी(टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर १३ ,२००९ ,पृष्ठ १५ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
रविवार, 18 अक्तूबर 2009
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