रविवार, 25 अक्तूबर 2009

क्या है इम्पैयार्ड ग्लूकोज़ टोलरेंस यानी प्री-दायाबेतिक्स ?

भारत में इस वक्त ५ करोड़ अस्सी लाख लोग मधुमेह ग्रस्त हैं ,अलावा इसके आबादी का तीस फीसद (३० इज़ -४०ईज़ एज ग्रुप )प्रिदाय्बेतिक है यानी इम्पेयार्ड glऊकोज़ टोलरेंस से ग्रस्त है ।
प्रिदायाबेतिक्स लोगों में फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज़ का खून में स्तर १०० -१२५ मिलिग्रेम पर देसिलीटर (फीसद )जबकि सेकेंडरी दायाबेतिक्स (नॉन -इंसुलिन डिपेंडेंट दायाबेतिक )में यही प्रतिशत १२५ मिलिग्रेम परसेंट से ज्यादा रहता है ।
इसे बिना लक्षणों की मधुमेह (एसिम्प्तोतिक कंडीशन )भी कहा जाता है -यूँ कभी कभार इन लोगों में भी मधुमेह के आम लक्षण यथा बेतहाशा भूख -प्यास लगना ,ज्यादा पेशाब आना ,थकान आदि देखे जा सकतें हैं ।
ग्लूकोज़ -इम्पैयार्ड -टोलरेंस एक संक्रमण कालीन स्तिथि है (०-१० साल ) -नोर्मलेसी से डायबिटीज़ की तरफ़ जाना है ।
मधुमेह ग्रस्त होने (सेकेंडरी डायबिटीज़ )से पूर्व ९३ फीसद मामलों में लोग इसी प्रावस्था में बने रहतें हैं .रोग का पता ही नहीं चल लगता ।
संतोष का विषय यही है -यह एक रिवार्सिबिल कंडीशन है खान पान में बदलाव ,सक्रीय जीवन शैली जिसमे व्यायाम के लिए भी अवकाश हो ,खुराख में ५ तरह के फल ,सलाद सतरंगी ,मोटे अनाज ,रेशे युक्त भोजन और परिष्कृत चीज़ों से परहेजी (सफ़ेद चावल ,चीनी ,सफ़ेद मैदा युक्त रोटी ,यानी तमाम सफ़ेद चीज़ें मोटे तौर पर )रख कर इस स्तिथि से बाहर आया जा सकता है ।
बस १० फीसद अपना वजन घटा लिजीये ,हफ्ते में ढाई घंटा सैर ज़रूर कर लिजीये ।
बेकरी से परहेज़ कम नमक का सेवन मुफीद रहेगा ।
साल में एक मर्तबा उन लोगों के लिए "एक्सेक्युतिव चेक एप "करवाना लाजिमी है -जो हाई -रिस्क ग्रुप में हैं -यानी चर्बी जिन पर चढी हुई है (ओबेसिटी की जो ज़द में हैं ),काम के घंटों का तनाव जिन्हें घेरे रहता है हर पल ,उलटा सीधा जो कुछ भी खा पी लेतें हैं -यानी फालती फ़ूड के सहारे चल रही है जिनकी जिंदगी झट -खोले खाकर .,व्यायाम के लिए जहाँ बिल्कुल गुंजाइश ही नहीं है ,ऊपर से मधुमेह जिनका पारिवारिक रोग बना रहा है ।
एक अध्धय्यन में ३०० ऐसे ही लोगों की जांच करने पर ४५ इम्पेयर्ड ग्लूकोज़ से ग्रस्त पाये गएँ हैं ।
९५ फीसद मामलों में ऐसे ही लोगों को रोग का पता तब चल ता है जब रोग के लक्षण अपनी पूरी उग्रता के साथ इन्हें अपनी गिरिफ्त में ले लेतें हैं ।
इसीलियें साल हर साल ऐसे लोगों की नियमित जांच होनी ज़रूरी है ।
दो साल में एक बार स्वस्थ लोगों को भी जांच के लिए आगे आना चाहिए .मोटापा और ग़लत खुराख के चलते भारत के लिए मधुमेह का ख़तरा औरों से बहुत ज्यादा है ,बचाव में ही बचाव है .रोग का इलाज़ ना सही बचाव पुख्ता किया जा सकता ।

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