हमारे दिमाग में कौन सी क्लोक सेल है जो हमारी जैव -घड़ी का संचालन करती है इसकी शिनाख्त हो चुकी है .उम्मीद की जा सकती है ,अब जेट लेग से निजात के लिए देर सवेर एक दवा भी तैयार की जा सकेगी .लेकिन आइये पहले यह जाने यह जेट लेग होता क्या है ?
हमारे पास एक जन्म जात जैव घड़ी होती है जो हमें दिन रात उठने बैठने सोने खाने और ख़ुद दिन रात के किसी भी पहर की ख़बर देती है ।
जब हम देशांतर रेखा के पार(ट्रांस -मेरिडियन त्रेविल ) पूरब से पश्चिम या फ़िर पश्चिम से पूरब की पाँच घंटा या फ़िर और भी ज्यादा अवधि की हवाई -यात्रा करतें हैं तब हमारी यह जैव घड़ी गडबडा जाती है .इसे ही कहतें हैं जेट लेग ।
दुनिया भर के भौगोलिक क्षेत्रफल को (इलाकों को )२४ टाइम जोंस में विभाजित किया गया है .हर इलाके का अपना अलग टाइम है ।
जब हम इन टाइम्स जोंस के पार जातें हैं एक लम्बी यात्रा पर (हवाई सफर पर )-पूरब से पश्चिम या फ़िर पश्चिम से पूरब की दिशा में तब हमारी जैव घड़ी इस बात से बिल्कुल बे -ख़बर होती है ,हम कहाँ जा रहे हैं .वह हमारे स्थानीय समय के हिसाब से टिक टिक कर रही होती है ,यानी डेस्टिनेशन के स्थानीय समय से उसका कोई ताल मेल नहीं होता ,उसके समय के साथ इसका ताल मेल बिगड़ जाता है .कारण होता है -यात्रा के दौरान आँख कुछ और देखती है -जैव घड़ी कुछ और कहती है .जब की दिन और रात का हमारी जैव घड़ी का एहसास स्थानीय समय (जहाँ से हमने हवाई यात्रा शुरू की है )से चस्पां है ,उसी के अनुरूप वह चल रही है ।
इसीलियें जेट लेग को एक ऐसी शरीरक्रिया विज्ञानिक क्रिया कहा जाता है जिसका सम्बन्ध हमारी जैव घड़ी में होने वाले उलट फेर से है .जिसे अभ्यास है अपने हिसाब से चलने का -स्थानीय समय के अनुरूप ।
इसे इसी वजह से सर -कादियन -रिदम -स्लीप दिस -आर्डर भी कहा जाता है ।जो ट्रांस -मेरिडियन हवाई सफर से ही पैदा होता है -नार्थ -सा उठ त्रेविल से नहीं .
इसीलियें हमारा शरीर जो जैव घड़ी के अनुरूप प्रति -क्रिया करता है -दिन रात ,सोने उठने ,खाने ,शरीर के तापमान आदि का नियमन करना भूल जाता है ,दिशा भ्रमित हो जाता है ।
इस दिशा भ्रम से बाहर आने का समय सब का जुदा है -ऋ -शेड्यूलिंग करने में वक्त लगता है ,जैव घड़ी को जो अब डेस्टिनेशन के स्थानीय समय के मुताबिक हमारे शरीर को दिशा निर्देश देगी ।
इस दिशा भ्रम (दिस -ओरिएंटेशन )से बाहर आने की उम्मीद हालिया शोध ने बंधाई है ।
अब उस दिमागी कोशिका का पता चल चुका है जो इस जैव घड़ी का संचालन करती है ।
हमें जागने सोने खाने उठने -बैठने की इत्तला देती है ।
मानचेस्टर विश्व -विद्यालय के शोध कर्मियों ने माँ -इस(चुहिया ) पर संपन्न प्रयोगों से पता लगाया है -दिमाग में एक बोदी -क्लोक रीजन है जहाँ दो प्रकार की दिमागी कोशिकाये (न्युरोंस )होतीं हैं ।
लेकिन इनमे से एक तरह की कोशिकाएं ही हमारी जैव घड़ी को चलाये रखतीं हैं ।
स्तन -पाई जीवों में इस घड़ी का संचालन जो कोशिकाएं करतीं हैं वह हमारे हलक से (रूफ आफ दी माँ -उठसे ताल्लुक रखतीं हैं ।
लेकिन चुहिया पर किए गए प्रयोगों से यह पता चला है -सुपरा -कियास्मेतिक न्युक्लीयास (एस सी एन )में दो प्रकार की कोशिकाएं होतीं हैं -जिनमे से एक प्रकार की कोशिकाएं ही जैव घड़ी का संचालन करतीं हैं .इनमे से जैव घड़ी को चलाने वाली कोशिकाओं को "क्लोक सेल्स "और दूसरी को नॉन -क्लोक सेल्स कहा जाता है ।
केवल क्लोक सेल्स ही अपने आप को अभिव्यक्त कर पातीं है -"पर -जीन "के रूप में .(दी क्लोक सेल्स एक्सप्रेस ऐ पत्तिक्युलर जीन कॉल्ड "पर -१ ".,व्हाइल दी नॉन -क्लोक सेल्स डोंट )।
यही वह सूत्र है जिसे ह्यूज हीगिंस (मानचेस्टर विश्व -विद्यालय ) और उनके साथी शोध करता -जैव घड़ी की दुरुस्ती का आधार बतलातें हैं ,और उम्मीद करतें हैं -जैव घड़ी की ऋ -शेड्यूलिंग के लिए देर सवेर एक दवा खोज ली जायेगी ।
इतना ही नहीं -अल -झैमर्स (बुढापे का एक रोग जिसमे स्मृति ह्रास के अलावा मरीज़ को यह भी पता नहीं रहता -इस पहर दिन है या रात -उसने खाना खाया या नहीं ) तथा स्मृति लोप से ताल्लुक रखने वाले इतर रोगों से भी यह दवा निजात दिलवा सकेगी -ऐसे ही रोगों में मरीज़ जैव घड़ी से सही संकेत ग्रहण नहीं कर पाटा ।
सन्दर्भ सामिग्री ;-शा -इंग फ्रॉम फ्लाइंग ?सून ,ऐ पिल फार जेट लेग .(टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर १० ,२००९ ,पृष्ठ २१ /गूगल सर्च -जेट लेग ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
रविवार, 11 अक्तूबर 2009
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