नेशनल फुटबाल लीग के सौजंन्य से संपन्न एक अध्धय्यन से पता चला है -लीग के पूर्व खिलाड़ियों में अल्झाइमर्स और याददास्त के छीजने से ताल्लुक रखने वाले अन्य रोगों का जोखिम बढ़ जाता है ,जबकि लीग के ३० -४९ साला भूत -पूर्व खिलाड़ियों में यह ख़तरा राष्ट्रीय औसत (सामान्य आबादी के बरक्स )से १९ गुना ज्यादा बढ़ा पाया गया है ।
पहली मर्तबा डिनायल के मोड़ से नेशनल फुट बाल लीग बाहर आकर डिमेंशिया के खतरे से रु -ब-रु दिखलाई दी है ,वरना अभी तक इस मुत्तालिक (कोगनिटिव डिक्लाइन ,यानी संज्ञानात्मक ह्रास ) भरोसे मंद आंकडों के ना होने का रोना था ।
इन आंकडों की अनुगूंज यूथ और कोलिज लेवल पर अब देर तक सुनाई देगी क्योंकि युवा भीड़ खेल के दरमियान लगने वाली चोटों से सुरक्षा के मामले में नेशनल फुटबाल लीग का ही अनुसरण और इशारा ग्रहण करती थी ।
अक्सर मैदान में इस हाई -एनेर्जी गेम के दौरान खिलाड़ियों को दिमागी क्षति सप्ताह में अभ्यास के दरमियान भी कई कई बार उठानी पड़ जाती है ,कई बार तो ब्रेन डेमेज करने वाली इन चोटों की शिनाख्त ही नहीं हो पाती ।
मिशिगन विश्व -विद्यालय के शोध छात्रों ने अब पता लगाया है ,पचास साला और पचास के ऊपर के ६.१ फीसद खिलाड़ियों को डिमेंशिया राष्ट्रीय औसत से पाँच गुना ज्यादा मामलोंमे दाय -ग्नोज़ हुआ है ।
अलावा इसके ३० -४९ साला १.२ फीसद पूर्व फुट बाल खिलाड़ियों में डिमेंशिया के मामले राष्ट्रीय औसत से १९ गुना ज्यादा (१.९ फीसद ,राष्ट्रीय औसत ०.१ फीसद के मुकाबले )।
पूर्व में नार्थ केरोलिना विश्व -विद्यालय ने नेशनल फुटबाल लीग फुटबाल और दिमेशिया के बीच सम्बन्ध बतलाया था -लेकिन लीग ने इसे सही नहीं माना .हालाकि लीग की एक कन्कशन कमिटी बनी हुई है ,जो दिमाग को लगी चोटों से होने वाली दिमागी क्षति की पड़ताल करती है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-इट्स ओफ्फिसिअल :फुट्बालार्स अत हायर रिस्क ऑफ़ डिमेंशिया (टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर १ ,२००९ .पृष्ठ १९ )
सन्दर्भ सामिग्री :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009
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