१९७० में पैदा १७ ,००० बच्चों पर लगातार ४० सालों तक नज़र रखते हुए ब्रितानी विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला है ,जो बच्चे बचपन में १० साल की उम्र से ही रोजाना केंदीज़ या फ़िर चोकलेट्स उडाते आ रहें हैं उनमे से ६९ फीसद को किसी ना किसी आक्रामक व्यवहार के लिए पोलिस द्वारा धर दबोचा गया .इनमे से ४२ फीसद को किसी भी लड़ाई झगडे में मशगूल नहीं पाया गाया .ये वो बच्चे थे जो सिर्फ़ रोज़ मिठाई खाते थे .चोकलेट्स केंडी नहीं ।
ज़ाहिर "केरतस्टिक एप्रोच "सैदेव ही अच्छी साबित हो यह ज़रूरी नहीं .माँ -बाप गलती करने पर बच्चों के साथ डाट डपट और कोई अच्छाकाम करनें पर पुरूस्कार स्वरूप केंदीज़ या फ़िर चोकलेट्स देतें हैं ,जो बच्चों की पहली पसंद रहें हैं ।
ब्रितानी आर्थिक औ सामाजिक शोध परिषद् के सौजंन्य से ब्रिटिश जर्नल आफ साईं -किएत्री के अक्टूबर अंक में उक्त नतीजे प्रकाशित हुए है ।
बेशक अभी औ अध्धय्यन इस अन्तर सम्बन्ध की पुष्टि के लिए होने चाहिए .लेकिन नतीजे बहुत दिलचस्प रहें हैं .
saaman moor kahten hain -It is not that the sweets themselves are bad ,it is more about iterpreting how kids make decisions ."yaani meethaai apne aap me buri nahin hai ,lekin bachchon ke nirnay karne ki prakriyaa ko "carrot and stick approach "prabhaavit karti hai .simon moore univarsity of cardiff me kaaray rat hai ,is adhdhayyan ke ek co -author bhi hain .
kendeez aur choklet se puruskrit karnaa bachchon ko risvat dene ,bribe dene ke samaan hai ,isse nuksaan hi nuksaan hain ,aisaa karne se (bachchon ko puruskrit karte rahne se )bachche kisi kaa upkaar maan naa kahnaa maan naa ,kisi se anugrahit honaa bhool kar udand ho jaate hain .aakraamak ho jaataa hai inkaa aaindaa ke liye vyavhaar .
poorv adhdhayyanon me behtar poshan ko achche vyavhaar se jod kar dekhaa gaya hai ."Better nutrition leads to better behavior ".
Reference Material :times of India ,october 2 ,2009 ("Candy-gobbling kids grow into violent adults ".page 23 )
शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें