यह हफ्ता स्तन केंसर के प्रति जागरूकता और खबरदारी को समर्पित है .हमारे देश (भारत )में हर बरस चालीस हज़ार महिलायें इस घातक रोग से समय पर शिनाख्त या फ़िर इलाजं ना हो पाने की वजह से मर जातीं हैं ।
लेकिन समय पर इलाज़ उचित देखरेख और तवज्जो दी जाए तो यह जीवन शैली रोग भी ला इलाज़ नहीं है ।
यही चेतना संदेश लेकर ६० सजी -धजी कारों में अपने नाम और ब्लड -ग्रुप उम्र आदि का परचम फहराते हुए ७० महिलाओं का एक काफिला जिनमे वह महिलायें भी शरीक है जो इलाज़ मिलने पर अब केंसर मुक्त है -दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हुआ है ।
इस अभूत पूर्व रेली को "हार्ड रॉक केफे "का समर्थन भी प्राप्त हुआ है जिनकी आलमी पहल "पिन्क्तुबर "दस सालों से केंसर के ख़िलाफ़ अभियान ज़ारी रखे है ।
आगरा पहुँचने पर इस दल में शामिल चिकित्सकों ने स्थानीय एन जी ओज के साथ मिलकर नए मरीजों के रोगनिदान और इलाज़ की पहल की है ।
बात निकलेगी तो फ़िर दूर तलक जायेगी -माउथ तू माउथ कम्युनिकेशन आज भी प्रचार अभियान और लोगों में जागरूकता फैलाने का बेहतरीन ज़रिया समझा जाता है ।
कल तक यह पश्चिम की बीमारी समझी जाती थी ,अब तस्वीर का रुख तेज़ी से बदल रहा है जन -अभियान की खबरदारी अब शुरू हुई है -अब जाकर लोगों को पता चला है -इसकी शिनाख्त घर में भी आईने के सामने खड़े होकर भी की जाती है -संदेह होने पर मेमोग्रेफी और अन्य रोड निदान तकनीकें आजमाई जातीं हैं ।
रेली के संयोजक (फा -उंदर चेअर पर्सन ऑफ़ दी फॉरम फॉर ब्रेस्ट कैंसर प्रोटेक्शन )के डॉक्टर रमेश सरीन के मुताबिक भारतमें हर साल कुल तकरीबन एक लाख महिलायें इस बीमारी (ब्रेस्ट कैंसर )की ज़द में आ जातीं हैं ,इनमे से ४० फीसद जागरूकता और रोग निदान के अभाव या फ़िर टर्मिनल स्टेज में रोग का पता चलने पर इलाज़ के बावजूद चल बसतीं हैं ।
यही हाल सर्वाइकल कैंसर का है जिसकी ज़द में हर साल १,३० ,००० महिलायें आ जातीं हैं ,इनमे से एक अध्धय्यन के मुताबिक ७४ ,११८ महिलायें चल बसतीं हैं .(स्रोत :विश्व -स्वाश्थ्य संगठन )कारण होता है ,कम उम्र में विवाह शादी फ़िर कम अन्तर से बच्चे स्वाश्थ्य चेतना का (औरत और मर्दों दोनों )में अभाव ,वरना गर्भाशय की गर्दन का कैंसर भी जल्दी रोग निदान हो जाने पर फैलने से रोका जा सकता है ,जड़ मूल से ठीक भी किया जा सकता है ।
डॉक्टर गौरवी मिश्रा (कंसल्टेंट प्रिवेंटिव ओंकालाजी ,टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई )के अनुसार भारत की महिलाओं को होने वाले यह दोनों ही कैंसर अब आम बीमारी बन चले है ,जल्दी रोग निदान होनेपर अब १०० फीसद इलाज़ (जिसे आप शर्तिया इलाज़ कहते समझते हैं )मुमकिन है ।
ज़रूरत वर्जना से बाहर निकल एक ताबू (वर्जना )को तोड़ने समझने की है ,झिझक छोड़ इलाज़ के लिए आगे आने की है .यौन रूप से सक्रीय (सेक्स्युअली एक्टिव )सभी महिलाओं को इसका जोखिम तो रहता ही है .और आज तो दौर भी लिविंग तोगेदार का है ,यौन सक्रियता किशोर अवस्था से शुरू हो जाती है -"कंडोम एक फायदे अनेक "और आई -पिल (इमरजेंसी पिल ) का दौर है ये -शर्म कैसी ?बीमारी तो फ़िर बीमारी ही है ।
जिसने की शर्म उसके फूटे कर्म -जागरूकता का अभाव ,रोग के प्रति लापरवाही ही जान लेवा साबित होती है -रोग नहीं ।
अब रोग निदान समय से हो जाने पर दोनों प्रकार के कैंसर्स से मुक्ति भी सम्भवहै (ना स्तन तराशी की नौबत आती है ,ना गर्भाशय गर्दन के कैंसर के इलाज़ का मतलब गर्भ धारण की क्षमता ही खोना है )।
बेशक कैंसर सारे शरीर का रोग है ,अपना स्थान बदलता है ,एक अंग से दूसरे तक जाता है ,लेकिन अब ज़रूरी नहीं है ,एक स्तन काट कर फेंक देने के बाद दूसरे को भी एहतियात के तौर पर काट के फेंक दिया जाए ,सर्जरी बहुत आगे बढ़ चुकी है .ईश्वर पर अपने चिकितस्क पर और सबसे ज्यादा ख़ुद पर भरोसा रखिये ,पाजिटिव रहिये ,रोगनिदान के लिए आगे आइये -अपने से प्यार करना सीखिए .अब ब्रेस्ट इम्प्लांट के लिए सिलिकान के स्थान पर स्वजातीय अपने ही अंग में जमा चर्बी भी काम में ली जा रही है .गर्भाधान (फर्टिलिटी )के अभिनव तरीके (इन -वीट्रो ,इन वाइवो दोनों )इजाद किए गएँ हैं .आप अपना नज़रिया बदलिए ।
सन्दर्भ सामिग्री :-वोमेन रेली अगेंस्ट दी बिग "सी "(टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर ४ ,२००९ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).
रविवार, 4 अक्तूबर 2009
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