इन दिनों किसी राष्ट्रिय इमारत की एक ईंट खिसक जाए ,उसमे से चार प्रशंशक नोबेल लाउरेट वेंकटरमण रामा कृष्णन के निकल आयेंगे .रातों रात उनके कई पूर्व -शिक्षक भी पैदा हो गए हैं -खीझकर उन्होंने बस इतना कहा था -"लीव मी अलोन एंड सर्व साइंस ।"
बेशक उन्होंने हमारे कथित राष्ट्रीय गौरव को आइना दिखाया है .दुखी होकर उन्होंने बस इतना और कहा -इनाम (नोबेल प्राइज़ )मिलने से पहले कोई मेरे काम के बारे में नहीं जानता था -जो अब मेरे स्तुति गायन में मुब्तिला है उन्हें आज भी मेरे काम के बारे में इल्म नहीं है .तो साहिब काम को देखो नाम और बेमेल राष्ट्रीयता में क्या रख्खा है ?
राष्ट्रीयता तो बुनियादी शोध को फूटी आँख नहीं देखती -देखती तो इसरो (भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन )को समानव अन्तरिक्ष अभियान के लिए सरकार मुखापेक्षी बनके नहीं रह जाना पड़ता ,जिसे अनुदान देने में सरकार झिझक रही है तालम टोल रवैया इख्तियार किए हुए है ।
बीमार "एअर इंडिया "को तो वह सालाना ५००० करोड़ की खर्ची उठाके ओक्सिजन पर रखे है -इसरो को १५ ,०० करोड़ देने को तैयार नहीं है .किसानो का ६०,००० करोड़ खर्चा माफ़ करके बारहा वाह वाही लूटने को राजी है ।
अलावा इसके यहाँ हमने ज्ञान को भी खानों में बाँट दिया है .जबकि समस्त ज्ञान ही (विश्व ज्ञान )ही विज्ञान है .लेकिन यहाँ तो "विश्व -विद्यालयों में ज्योतिष शास्त्र का अध्धय्यन क्यों "जैसे विषयों पर वाद विवाद होता है .स्कूल स्तर से ही फेकल्टी को -कला ,वारिन्ज्य ,विज्ञान आदि में तकसीम कर दिया जाता है ।
ह्युमेनितीज़ में ही विषयों की अदला बदली सम्भव नहीं है ,अन्तर अनुशाशन क्रोस -फेकल्टी आवा जाही कैसे मुमकिन हो ?
जो जहाँ है ,वहीं ठीक है .शिक्षा आजीविका कमाने का ज़रिया भर है ,और शोध अपनी वर्तमान अकादमिक पोजीशनकी बेहतरी भर के लिए सुरक्षित है . ।
हमने एम् एस सी (फिजिक्स )सागर विश्व -विद्यालय से १९६७ में उत्तरीं न किया .साहित्य में शुरू से ही अनुराग था ,१९७२ तक यह अनुराग ओबसेशन में बदल चुका था ।
सागर पहुंचे -डॉक्टर राम रतन भटनागर साहिब(अध्यक्ष हिन्दी विभाग ) से कहा -हमारा
पी एच दी के लिए रजिस्ट्रेशन कर लो -"पहले बेसिक डिग्री लो हिन्दी एम् ऐ "-ज़वाब मिला ।
अनंतर मह्रिषी दयानंद विश्व -विद्यालय से सम्बद्ध महा -विद्यालयों में अधय्यापन के दरमियान मनोविज्ञान विषय ख़ास कर मनोरोग सम्बन्धी जानकारी ,सेहत और चिकित्सा से जुड़ी जानकारी में मन रमता गया .साइको -फिजिक्स में पी एच दी का सोचा -फ़िर वोही सवाल -मनोविज्ञान में बुनियादी डिग्री चाहिए ।
तो ज़नाब इन तमाम तकलीफों से दो चार होने के बाद ही कोई वेंकट रमन रामा कृष्णन पैदा होता है -पैदा यहाँ होता है -पल्लवित विदेशी धरती पर होता है .जब उसे पुरुष्कार मिलता है -हम राष्ट्रीय झंडा उठालेतें हैं .जब वह इस फिजूल प्रदर्शन पर नाराजगी ज़ाहिर करता है -हम कह देतें हैं (इंटेलिजेंस इस लेकिंग इमोशनल कोशेंट ),साला राष्ट्रीय ज़ज्बा नहीं है इस इंसान में (मनु अभिषेक सिंघवी -प्रवक्ता ,कोंग्रेस ,से क्षमा -प्रार्थना सहित ।)
तो साहिब शिक्षा का कम्पार्ट -मेंतालाई -जेशन बंद हो ,अन्तर -अनुशाशन दो तरफा आवा -जाही बेरोक टोक शुरू हो .तभी कुछ आगे हासिल है .वगरना हम भी किसी से कम नहीं है .यहाँ संकट रोज़ी रोटी का एहम है .
बुधवार, 28 अक्तूबर 2009
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