कमल पुष्प मल और विक्षेप क्या जल का भी स्पर्श नहीं करता ,विकर्षित कर देता है जल को ,इसी हाई -वाटर रिपेलेंसी (सुपर -हाई डरो-फोबिसिती ) को कमल प्रभाव (लोटस इफेक्ट )कहा जाता है .यूँ बेशर्म आदमी को चिकना घड़ाकह दिया जाता है .गंजे की चाँद और चिकना घड़ा यकसां हैं .कमल से ही बनता है कमला यानी लक्ष्मी .नीरज ,जलज ,पंकज कई पर्यायवाची शब्द हैं कमल के लिए -यानी जो जल में ,कीचड में जन्मा लेकिन कीचड का स्पर्श नहीं -कुछ व्यक्तित्व ऐसे ही हैं ,गंदगी में रहकर भी मन साफ़ ,गंदगी का स्पर्श नहीं और ऐसे भी महारथी हैं ,गंदगी क्या ,मल भी पकड़े रहतें हैं .मन चंगा तो कठोती में गंगा ।
इधर गंगा जल में खासुसिअत थी ख़ुद -बा -ख़ुद साफ हो जाने की ,अब तो इ -कोलाई बेक्टीरिया का डेरा है -पेय नहीं रह गया है -गंगा जल ।
लेकिन कमल में आज भी स्वयं शोधन की यह क्षमता विद्दय्मान है तो क्यों ?क्यो नहीं पकड़ता कमल पुष्प और उसकी पांखडी(पीटल,लीव्स )पंक ,मल और विक्षेप ?
एशियाइयों को गत २०००सालो से ये राज मालूम था .१९७० के दशक में वनस्पति विज्ञानी विल्हेल्म बार्थ्लात ने एक सूक्ष्म दर्शी का स्तेमाल करते हुए बतलाया -कमल पांखडी की एक विशेष सरंचना है .इसकी सतह पर पादप कोशिकाओं के गुच्छ से एक उभार नीपिल नुमा मौजूद है जिसमें है बाहरी कोशिकाओं द्वारा तैयार एक हाई -डरो -फोबिक वेक्स (जल -विकर्शी-मोम )मौजूद है ..इस अति सूक्ष्म प्रोजेक्शन की ऊंचाई और चोडाई१० -२० मिक्रोमीटर और १० -१५ माइक्रो -मीटर तक है .इसी मोम से टकरा कर पंक कण छितरा जातें हैं ,जबकि जल की बूंदियाँ पंक को पकड रखतीं हैं .परस्पर आकर्षण (कोहेज़ं )की वजह से .पंखडी की सतह जल और पंक के बीच तो आकर्षण लेकिन पंखुडी और पंक के बीच इस आकर्षण को घटा देती है .विकर्षण पैदा कर देती है ,सारा खेल इसी आकर्षण और विकर्षण का नतीजा है ।
यही मोम की छोटी सी नीपिल रोगकारकों को कमल पुष्प से दूर रखती है ,फफूंद और एल्गी से बचाए रहती है ।
नैनो -प्रोद्द्योगिकी के माहिर कमल पुष्प के इस गुन से सीख लेते हुए नए -नए इलाज़ ,कोटिंग्स ,रूफ टाइल्स ,फेब्रिक्स और पेंट्स बना रहें हैं जो वाटर प्रूफ़ हैं ,जल -रोधी हैं ,गीले नही होतें हैं .कमल इसीलियें तो हमारा राष्ट्रीय पुष्प भी है .लेकिन कोई राजनीती में आया मानस इस से कुछ सीखने को तैयार नहीं हैं .गर्दन तक पंक में सने हैं सब .
सोमवार, 24 अगस्त 2009
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