शनिवार, 8 अगस्त 2009

सपोर्टिव थिरेपी चाहिए ,पोलिस का डंडा नहीं .

दुमका पुलिस का डंडा (बिहार )उस मनोरोगी पर अस्पताल के ठीक अन्दर चल रहा है ,मनोरोग की उग्र अवस्था में कई मर्तबा रोगी हिंसक और उग्र भी हो जाता है ,इसी अवस्था में इस बेचारे ने अपनी माँ पर भी केंची से वार कर दिया .मनोरोगी मेनि़क फेज़ में ख़ुद को दुनिया का सबसे अमीरआदमी भी समझ बैठता है ,जितने बक्सका चेक कटवा लो उससे इस अवस्था में ,इसी अवस्था के लिए हैं -इलेक्ट्रो -कन्वल्शन थिरेपी (इ .सी .टी .यानि बिजली का झटका जो एक दम से मरीज को साफ्ट और कोपरेटिव बना देता है .बेशक इ .सी .टी .मेमोरी लोस की वजह (स्मृति लोप )की वजह भी बन -ता है और इसीलियें मनो -चिकित्सकों का एक तबका इसका बहुत सीमित स्तेमाल ही करता है -सहायक मनो -चिकत्सा के बतौर ,ताकि रोग -निदान रोगी के उग्र अवस्था से बाहर आने पर तसल्ली से किया जा सके .दुमका पुलिस को ये कौन समझाए ?इसीलिए पुलिस तंत्र का शिक्षित -दीक्षित ,जानकारी से भरपूर होना लाज़मी समझा गया है .लेकिन पुलिस सुधार की सिफारिशें ठंडे बस्तें में पड़ी धूलचाट रहीं हैं तो इसकी वजहें है .राजनीती को ऐसा ही अर्द्ध -शिक्षित पुलिस तंत्र माफिक आता है .जाके पैर ना फटी बिवाई वो क्या जाने ,पीर पराई .हमने ऐसे मरीज़ अपने बहुत करीब देखें हैं ,भोगा समझा है ,उस पीडा को इसीलिए एन .डी.टी .वी..की सुबह से ही बारहा दिखलाई जारही इस पुलिसिया बदसुलूकी ने हमें अन्दर तक हिला दिया .क्यों न हिन्दी ब्लोगिये इस सवाल को बारहा उठाएं :आख़िर अनाथ आश्रम जैसी जगहों परभी कोई अबोध बालिका गेंग रेप ,बारहा होने वाले रेप का इस कदर शिकार होती है ,माँ बन जाती है ,अपेक्स कोर्ट के हस्तक्षेप से ,जबकि उसकी ख़ुद की मानसिक आयु ७ -८ बरस है ,शरीर ज़रूर किशोरी का है .,उसे प्रसव कराने की इजाज़त ज़रूर मिल जाती है ,लेकिन ....

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