अमरीका में रचे बसे अनिवासी भारतियों में से कई आपसी बातचीत में कल्ले (कल्ली )चपटे ,गोरे और देसी शब्दों का इस्तेमाल करतें हैं .कल्ले यानी एफ्रो -अमरीकन ,चपटे यानी जापानी -चीनी -कोरियाई आदि चपटी नाक वाले गोरे और गोरी का मतलब अमरीकी और देसी यानी पाकी-भारतीय -बांगला देसी .देत्राईट सिटी के कई नगरों में (फार्मिंगटन हिल्स ,केंटन आदि ) रहने के दरमियान मैंने देखा अक्सर लो फ्लोर की लोकल बस नगर नगर खाली दौड़ती है ,मेने अपने दामाद साहिब से पूछा "बस खाली क्यों फेरे मारती है "-सरकार ने सुविधा दी हुई है ,कोई स्तेमाल करे ,ना करे ,उसकी मर्जी .डाउन टाऊन देत्रोइत में कल्ले बस में सफर तै करतें हैं .यहाँ क्राइम रेटभी बहुत ज्यादा है .कभी ना कभी हम सभी इनके हत्थे चढें ,किसी का पर्स किसी का मोबाइल छीना गया है .ज़ाहिर है ,यहाँ गरीबी का डेरा है .अलबत्ता पुलिस तुरत -फुरत आकर आपको आश्वस्त करती है . पोलिस को कोई डरा-धौंसा नहीं सकता ,नाम चीन ख्यात हारवर्ड प्रोफेसर हेनरी लुईस "स्किप "गेट्स जैसी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हस्ती भी नहीं ,जो स्वयं "अमरीकी समाज में मौजूद नस्ल औ रंग भेद के माहिर ही नहीं है ,लेखक ,और अनेक टीवी चेनलों की रौनक भी हैं .आप राष्ट्रपति बराक ओबामा के मित्र भी हैं .केम्ब्रिज ,मेस्सा -चु-सेट्स के एक धनीमानी पाश इलाके में इन्हें अपने ही घर में शोफर की मदद से जेम पड़े दरवाजे को तोड़ कर घुसते हुए गिरिफ्तार कर लिया गया .आस पड़ोस के किसी व्यक्ति ने शक के आधार पर पोलिस को फोन कर दिया .तुरत फुरत केम्ब्रिज पोलिस के बेहद तजुर्बेकार ,रंग भेद विशेष प्रशिक्षण प्राप्त सार्जेंट जेम्स क्रऊली इनको चुनौती देते कह रहे थे -अपनी शिनाख्त दीजिये .आहत प्रफेसर गेट्स ने आईडी कार्ड बढाते हुए कहा -मुझसे पंगा बाद में लेना ,पहले अपनी शिनाख्त तो करवाओ । उलटवार सुनते ही अमरीकी पोलिस बौखला जाती है ,फ़िर किसी की नहीं सुनती ,सार्जेंट दल बल से आए थे .स्किप को गिरिफ्त में ले लिया गया ,उनकी एक ना सुनी .सोचता हूँ -क्या ये हमारे मुल्क में भी सम्भव है .अलबत्ता फ़िल्म पेज -थ्री में एक जाबांज पोलिस इंसपेक्टर एक अमीरज्यादे को धर लेतें हैं जो कह रहा था -मेरे बाप को जानतें हो ?कौन है ?"क्यों ,तुझे नहीं मालूम ,मैं तो तेरी माँ को भी जानता हूँ और ये भी की कल रात वो किसके साथ थीं "-ज़वाब मिला .आमतौर पर यहाँ पर एक प्रभु -वर्ग है ,जो पोलिस वाले को धौंसा लेता है .किरण बेदी एक ही थीं ,जिन्होंने ट्रेफिक नियमों का उल्लंघन होने पर इंदिराजी की गाड़ी भी उठवा दी थी .लेकिनउन्हें दिल्ली का पोलिस कमिश्नर बनाने का ख़तरा राजनितिक तंत्र नहीं उठा सका .बेशक रंग भेद -नस्ल और वर्ग भेद अमरीका में एक बेहद संवेदन शील और नाज़ुक औ पेचीला मसला है ।कल्ले गरीब बस्तियों में रहतें हैं .केटरीना(समुंदरी तूफ़ान ) का खौफ झेलने के लियें इन्हें घंटों इन्ही के हाल पे छोड़ दिया गया था .हारवर्ड प्रोफेसर साहिब (श्याम वर्णी हैं ) के साथ गलती से औ गफलत में हुई बदसुलूकी बा कायदा प्रकाश में आई ,लेकिन आए दिन जो इतर कल्लों के साथ होता है ,वो भारत में दलितों के साथ होने वाली बदसुलूकी
से कमतर नहीं हैं .एक मर्तबा अमरीकी कोर्ट में जाने का मौका भी मिला ,बेटी कोसब -लें से मैं रोड पर आने के लिए निर्धारित २५ मील-प्रति -घंटा चाल का अतिक्रमण करने पर टिकट मील गया था .पेशी थी -मेने देखा हथकडी लगे ज्यादातर कैदी अफ्रो -अमरीकी काले थे ,जिनके पास जमानत के लिए पैसे नहीं थे .शिक्षा से भी वंचित यही तबका है ,स्वास्थ्य से भी महरूम है .तो भाई साहिब :रंग औ नस्लों भेद यहाँ भी है ,वहाँ भी है ,उसका स्वरूप औ परिमाण जुदा है ,अंदाज़ जुदा है .
शुक्रवार, 7 अगस्त 2009
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