"रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून ,पानी गए ना उबरे ,मोती ,मानुस चून."अर्थात मोती की आब (सच्चा पानी उतरा )गई तो मोती बे -आब आदमी की आँख का पानी उतरा ,आंखों की शर्म औ हया गई ,चिकित्सा शब्दावली में शरीर में पानी की कमी हुई -डी -hआई -डरेशन हुआ ,निर्जलीकरण हुआ तो आदमी बेहाल -निष्प्राण .इसी लिए कहा गया बिन पानी सब सून .चून सानने ,आटा-मान्धने ,डो -तैयार करने के लिए पानी न हो तो भूकों मरो -रोटी नहीं ।
आज यही जल एक तरफ तो अपनी तात्त्विकता खोकर गंधाने लगा है ,नदियों नालों तालाबों पोखरों में साफ़ पानी नहीं है .,दूसरी तरफ़ इसकी उपलब्धता का अब कोई निश्चय नहीं रहा है ।
पेय जल तेजी से सिमट रहा है .पृथ्वी से झील तालाब कुँए -बावडी ही गायब नहीं हुए है ,भू जल (ग्राउंड -वाटर )भी हमारी पहुँच से बाहर जा रहा है ।
ग्राउंड वाटर यानी -पृथ्वी के नीचे ,मिटटी औ चट्टानों की दरारों में ,चट्टानी परतों में ,चट्टानी खंडों में कल तक लुका छिपा पानी जो सोतों झरनों कुओं को जीवनी प्रदान कर आवेशित करता आया है ,मात्रात्मक रूप में भी घटने लगा है ।
जल -विद्द्या ,जल विज्ञान (हाई -दरो -लोजी )के तहत जल विज्ञानी पृथ्वी की प्राकिर्तिक संपदा जल के गुन स्वरूप ,वितरण ,उपयोग ,चक्रं अन (साइकिलिंग )जैव -मंडल वायु -मंडल में जल -उपलब्धता एवं मौजूदगी का अध्धयन -विश्लेषण करतें हैं ।
नासा की जेट प्रपुल्ज़ं -अन लैब के शीर्ष जल -विज्ञानियों की एक विज्ञप्ति के मुताबिक -उत्तर भारत के एक्विफायार्स (भूजल -स्रोत )तेज़ी से रीत रहें हैं .२००२ -२००८ .के दरमियान इनमें से जितना जल रीत गया है ,उससे अमरीका की सबसे बड़ी मानव -निर्मित झील को तीन मर्तबा पानी से लबा -लब भरा जा सकता है ।
गोडार्ड स्पेस फ्लाईट सेंटर ,ग्रीन बेल्ट के जलवायु -विज्ञानी मित रादेल के नेत्रित्व में उपग्रहों की मदद से हरयाणा -पंजाब -राजस्थान -दिल्ली के एक्विफायार्स से १०८ घन -किलोमीटर पानी कम हो जाने की इत्तला दे चुकें हैं .यह पानी खेती -किसानी के काम आया है .इस रफ़्तार से प्रकिरती इन्हें फ़िर से री -चार्ज नहींकर सकती .प्रकिरती को जीत लेने की कोशिश में हम पिट रहें हैं ,औ हमें ख़बर नहीं है॥
ब्रितानी हफ्ता -वार प्रकाशित विज्ञान पत्रिका "नेचर "के ताज़ा अंक में उक्त नतीजे प्रकाशित हुए हैं .नासा के "ग्रेविटी -री -कवरी -एंड kilaaimet एक्सपेरिमेंट से प्राप्त hue हैं .इस प्रयोग में २ उपग्रह लगातार पृथ्वी के गुरुत्व में आ रहे परिवर्तनों का जायजा ले रहें हैं .इस बदलाव की वजह भू जल में आए बदलाव ही हैं ।
इस गंभीर चेतावनी की अनदेखी करते हुए -वर्तमान सूखे जैसी स्तिथि से निपटने के लिए भारत सरकार १००० करोड़ रूपये राज्य सहायता के बतौर नये नलकूप लगाने ,इन्हें चालू रखने के लिए नए पम्प सेटों तथा सस्ती दरों पर बिजली सप्लाई पर खर्चने जा रही है .जब की नलकूपों द्वारा भूजल का अतिरिक्त दोहन -शोषण ही भू जल तालिका के लगातार नीचे औ नीचे खिसकते जाने की वजह रहा है ।ये तो vahee बात हो गई -"मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दावा की ।
रविवार, 16 अगस्त 2009
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1 टिप्पणी:
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