मुहब्बत में नहीं है फर्क ,जीने और मरने का ,
उसी को देख कर जीतें हैं ,जिस काफिर पे दम निकले .दुनिया भर में एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस को सबसे खतरनाक और अरक्षित उन लोगोंके लियें और उन लोगों को ही बतलाया जा रहा है ,जो मरीजों की देख भाल कर रहें है ,दिन औ रात ,उनके नाक औ गले से svaab ले रहें हैं ,विषाणु की जांच के लिए .बचावी -चिकित्सा को लेकर चिकित्सा जगत में एका नहीं है ,गफलत है .एक तरफ़ दिल्ली ने रोग के फैलाव को रोकने में मील का पत्थर तय किया है ,दूसरी तरफ़ उन डॉक्टरों को ही रोग का कैरियर समझा बताया जा रहा है .कीमो -थिरेपी को लेकर अलग -अलग नज़रिया है .कहीं पर जो मरीजों के जांच नमूने ले रहें हैं ,उन्हें ५ दिन तक बचावी चिकित्सा के बतौर तेमिफ्लू (ओसेल -टा -मिविर )दो खुराकें सुबह शाम दी जा रहीं हैं ,तो कहीं स्वां -इन फ्लू वार्ड में एक महीने की पोस्टिंग के दौरान रोज़ सुबह शाम दवा की खुराकें दी जा रहीं हैं .एक महीने के बाद दूसरा स्टाफ आ रहा है .तो कहीं ३-४ माह तक दवा की हलकी (आधी -अधूरी दवा )देते रहना भी निरापद बतलाया जा रहा है . अलबता विश्व स्वास्थ्य संगठन इस विषय पर मौन है .उसकी तरफ़ से कोई सिफारिश नहीं है ,बचावी चिकित्सा के बतौर दवा दिए या ना दिए जाने की .कुछ चिकत्सा -माहिर हलकी खुराक देना मुनासिब नहीं समझते ,दवा के प्रति विषाणु प्रति -रोध खडा कर ड्रग -रेसिस्टेंस किस्म रोग की पैदा कर सकता है .अच्छी नहीं है ये बात ,आसार ठीक नहीं दिखतें .शुभ -शुभ बोलो ,खुदा खैर करे -आई .ट्रीट ,ही क्योर्स ,लीस्ट आई फाल इल .
मंगलवार, 11 अगस्त 2009
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