आदमी के शौक भी एक से एक आला दर्जे के होतें हैं -कुछ लोगों को कोई रोग हो ना हो रोग होने का भ्रम ,कई मर्तबा दृढ़ विश्वाश भी होता है .वह डॉक्टरों के चक्कर लगातें रहतें हैं ,सी .टी .स्केन( होल बोडी ) का करवाते रहतें हैं .अतिरिक्त रूप से स्वास्थ्य सचेत (?)ऐसे ही लोगों को रोग भ्रमी कहा जाता है .वैसे यह रेसेसन के टेंशन से पहले के अमरीका वासियों का शगल था .आज भी वहाँ हाई -पो -कोंद्रीआक लोगों का टोटा नहीं है .,एक ढूंढोगे पाँच मिलेंगें .अवसाद ग्रस्त (डिप्रेस्ड )लोगों में इनकी तादाद ज्यादा होती है .अलबत्ता उम्र -दराज़ लोगों में बुढापे की अन्य बीमारियोंके पेचीलापन के चलते हाई -पो -कोन-द्रीआक व्यक्तित्व की शिनाख्त में दिक्कत पेश आ सकती है .क्योंकि सोसल स्ट्रेस फेक्टर के अलावा बुढापा ख़ुद एक रोग है ,ऐसा भ्रम बहुत से लोग पहले से ही पाले हुए हैं .इसलिये भारत में आल -झी -मर्ज़ के रोगी को कह दिया जाता है :सठिया गया है .जब की शोर्ट टर्म मेमोरी लास इस रोग का एक लक्षण है .रोग की उग्र अवस्था में रोगी नाते रिश्तेदारों ,पोते -पोतियों ,पति पत्नी को भी नहीं पहचान पाताहै ।
अमरीका के प्रेजिडेंट रीगन इस रोग की चपेट में आ गए थे ,रोग की उग्र अवस्था (अन्तिम औ टर्मिनल स्टेज में )आप नेंसी रीगन को भी नहीं पहचान पातेथे ।
इधर एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा के मामले में भी -हाई -पो -कोंड-रीया खूब फला फूला .
मंगलवार, 18 अगस्त 2009
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