रविवार, 16 अगस्त 2009

क्या बरखा जब कृषि सुखाने ?

कमर कसना तो दूर की बात ,सरकार यह मानने समझने को तैयार नहीं है ,देश में सूखे के हालत हैं .मानसून ने उन तमाम प्रगुक्तियों को झुठला दिया है ,जो मौसम विज्ञान महकमे का मुकम्मिल शगल रहा है ।
आम तौर पर बरसात के मौसम में (१५ जून -१५ सितम्बर )देश में औसतन ८९० मिलीं -मीटर बरसात गिरती है .अब तक इसमे तक़रीबन २९ फीसद की कमी दर्ज की जा चुकी है ।
अब शेष बची ४५ दिन की अवधि (१६ अगस्त -१५ सितम्बर )में
औसत इस दरमियान होने वाली ३२४ से ३० फीसद बढ़कर ४२४ मिलीमीटर बरसात गिरे तो बात बने .जिसके फिलवक्त दूर तक कोई आसार नहीं हैं ।
अलबत्ता देश में सूखे की बारहा घोषणा तब होती है जबदेश के कुल भौगोलिक हिस्से के २० - ४० फीसद हिस्से में बहुत कम बरसात गिरे .,तथा जून -सितम्बर की निर्धारित अवधि में यह कमी बेशी १० या उससे ज्यादा फीसद दर्ज हो ।
सरकार अभी अपनी १०० दिनी उपलब्धियां ही गिनवाने में मशगूल फील -गुड के भ्रम में है ।
वैसे भी आदमी आस का पल्लू कभी नहीं छोड़ता ,आस ही पल्लू छुडा जाती है .ज़ाहिर है सरकार फील बेड के लिए तैयार नहीं है .डिनायल मोड़ (नकार )में हैं ,अस्वीकृति की मुद्रा बनाए हुए है ।
कृषि मंत्री अभी सिर्फ़ भूमिका बाँध रहें है :ज़रूरी हुआ तो विदेशों से चीनी के संग -संग खाद्द्यान भी आयात करेंगे ।
देश का दुर्भाग्य है ,आज़ादी के ६२ बरस बाद भी लोग भूख से मरते हैं ,किसान आंध्र के फ़िर आत्म ह्त्या करने लगें हैं ,बदनाम होती है "लू " ,सूखा और ठण्ड ।
अरब पति औ पत्नियों के मामले में भारत शीर्ष पर लगातार बना हुआ है ,कुपोषण -अल्प पोषण में भी किसी से कम नहीं है ।
"आज खा ,कल खुदा "-मुगालते में ख़ुद रहना औरो को भी रखने में हमारी भारत सरकार को महारथ हासिल है ।
"न जाने किस तरह तो रात भर छप्पड़ बनातें हैं ,सवेरे ही सवेरे आंधियां फ़िर लौट आतीं हैं ."




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