१९०१-२००३ के दरमियान औसतन भारत भर मेंतापमानों में 0 .५ सेल्सिअस की वृद्धि दर्ज की गई है .उत्तरी औ केन्द्रीय भारत गरमा रहें हैं ।
उत्तर भारत में सर्दी के दरमियान तापमान ०.७ सेल्सिअस तथा दक्षिण में ०.३सेल्सिअस ज्यादा रहे हैं ,यानी सर्दियां अपेक्षा कृत गुनगुनी रहीं हैं ।
हिमालयीय हिमनद सालाना ०.३९ सेंटीमीटर पस्च्गति (पीछे की और खिसक रहें हैं ,रीसीड)कर रहें हैं ।
२००५ -०७ के दौरान हिमरेखा (स्नोलाइन )१६७ मीटर ऊपर की और खिसक गई है .इसकी वजह इस तमाम क्षेत्र में गत २० सालों में ०.५ सेल्सिअस तापमानों में बढोतरी रही है ।
भारत के गिर्द समुन्द्रों में सागर जल सतह सालाना १.०७ मिलीमीटर की दर से ऊपर उठ रही है ।
इसके चलते आइन्दा ४० सालों में मालदीव्स जल समाधि ले लेगा (इंडियन नेशनल सेंटर फार ओशन इन्फार्मेशन सर्विसिस का एक आकलन ऐसी प्रागुक्ति कर रहा है )
जलवायु में बदलाव का प्रभाव भारत के कुल ६२६ जिलों में से तकरीबन आधे जिलों पर ड्राई -स्पेल्स औ सूखे जैसे हालतके रूप में देखा जा सकता है ।
मानसून के १५० साला रिकार्ड को खंगालने के बाद पता चला है ,जलवायु परिवर्तन ही एक साथ बेतहाशा पटापट मुसलाधार बारिश और सूखे के आवधिक आवर्तन की वजह बनता रहा है ।
दीर्घावधि रिमझिम बरसात के दिन अब लद गए ,केन्द्रीय भारत अब लांग दुरेशन रेन्स से महरूम रहता है ।
(इंडियन इंस्टिट्यूट आफ ट्रोपिकल मीतिरियो -लाजी का जलवायु परिवर्त पर एक आकलन )।
गत ७ सालोंमें केन्द्रीय भारत के सत्तर जिले दक्षिणी उत्तर प्रदेश से केन्द्रीय मध्य प्रदेश औ राजस्थान समेत सूखी बरसात ,बरसात में निहोरते रहें हैं .इसीलिए मानसून को एक जुआ कहा समझा जाता है ।
उष्ण कटिबंधीय भारतीय मौसम संस्थान (आई .आई .टी .एम् .)के अनुसार यद्दय्पी औसत बरसात में घटबढ़ नहीं हुई ,तथापि कम्समय में अधिक औ मुसलाधार बारिश एक छोर पर बाढ़ की आवधिक वजह बनी तो दीर्घावधि बरसात के बरसात के दिनों में कटोती भू जल स्रोतों (एक्वीफायार्स )को रीचार्ज ,पुनारावेशित नहीं कर सकी .भूजल स्रोतों से लगातार पानी निकाला जा रहा है ,खेती किसानी के लियें ।
विकल्प :केन्द्रीय भारत के किसानों को मानसून के भरोसे चलने वाली अधिक पानी -खाऊ फसलों को छोड़ उन फसलों की औ लोटना चाहिए जो बरसात के भरोसे ज्यादा न रहें .ड्राई -फार्मिंग ,ड्रिप -एग्रीकल्चर एक और विकल्प है ।
जलवायु में आने वाले सूक्ष्म बदलावों ने -मानसून की प्रागुक्ति को औ दुष्कर बना दिया है ,इस साल मौसम विभाग को दो बार अपने कहे से हट -ना पडा ।
अब केवल १.५ दिन के मौसम का पूर्व जायजा सही -सही लिया जा सकता है ,दस साल पहले तक हम ३ दिन के मौसम की सही भविष्य वाणी कर पाते थे .ज़ाहिर है इस क्षेत्र में कटिंग एज टेक्नालोजी ,प्रशिक्षित ,अति दीक्ष मौसम कर्मी औ सुपर -काम्पुतार्स चाहिए ,एक से काम नहीं चलेगा ।
समुन्द्रों के जल सतह में १.०७ मिलीमीटर की सालाना वृद्धि तटीय क्षेत्रों में कुफ्र बरपा कर सकती है ।
सुंदरवन के द्वीपों के लिए ख़तरा मुह बाए खडा है ।
मुंबई का हाल हम सब बारहा देख चुके हैं .
शनिवार, 29 अगस्त 2009
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