"ओबेसिटी अमंग दा एल्दर्लि केन श्रिंक ब्रेन "जिसे हम सठीयाना कहकर पिंड छुडा लेतें हैं वह बुढापे का रोग है -अल्झाई -मर्ज़ जिसमें दिमाग सिकुड़कर छोटा रह जाता है ,नजदीकी याददाश्त (शोर्ट टर्म मेमोरी ज़वाब देने लगती है ।).
अब विज्ञानियों ने बतलाया है बुढापे में मुट्यानाभी दिमाग के सिक्डाव की वजह बन सकता है .इससे संज्ञान सम्बन्धी (कोग्नीतिव )समस्यायें पैदा हो सकतीं हैं ।
मोटापे से ग्रस्त बुजुर्गों का दिमाग और तेज़ी से बुढ़ाता है ,१६ साल ज्यादा बूढा हो जाता है उम्र के बरक्स दिमाग उनके बरक्स जो छरहरे हैं ,पतले दुबले हैं .केलिफोर्निया विश्वविद्द्यालय के पाल टोम्सन ने अपने एक अध्धय्यन में उन ९४ लोगों के दिमाग का जायजा लिया जिनका बोडीमॉस इंडेक्स अपेक्षतया ज्यादा था ,इनके दिमाग का वह हिस्सा जो नियोजन औ याददाश्त से ताल्लुक रखता है (फ्रंटल एंड टेम्पोरल लोब )आकार में कमतर पाया गया .(आप के किलोग्रेम में वज़न को आप की मीटर में व्यक्त लम्बाई के वर्ग से भाग देने पर आप का बोडी मॉस इंडेक्स आ जाएगा ).वयस्क के लिए इसका आदर्श मान २३.९-२४.९ है ।
स्मालर ब्रेन दिमागी अप्विकास (डी-जेनरेशन ) की और इशारा है ,आपको डिमेंशिया हो न हो ,आसार अच्छे नहीं हैं .औसतन ५१ मोटापे से ग्रस्त लोगों के दिमाग ६फ़ीसद छोटे पाये गए ,बरक्स सामान्य वजन वाले लोगों के .जबकि १४ लोगों के मामले में यह कमी बेशि८फ़ीसद पाई गई ।
अलावा इसके मोटे(ओवर वेट )लोगों के दिमाग उम्र से ८ साल ज्यादा बूढे पाये गए बरक्स सामान्य लोगों के .जबकि ओबेसी(जिनका वजन आदर्श से १२० फीसद या और भी ज्यादा था ) के मामले में दिमाग की उम्र इनकी वास्तविक उम्र से १६ साल ज्यादा दर्ज की गई .न्यू -साइंटिस्ट विज्ञान पत्रिका ने टोम्सन के शोध नतीजे प्रकाशित कियें हैं ।
दरअसल शरीर में चर्बी का ज्यादा जमा होना दिमागी कोशिकाओं को पूरा रक्त और आक्सी जन नहीं पहुँचने देता ,फल्ताया मेटाबोलिज्म (रेट आफ बर्निंग केलोरीज़ )घट जाती है जो न्यू -रोंस (दिमागी कोशिकाओं )की मौत की वजह बनती जाती है ।
अलबत्ता कसरत (हाड तोड़ )इसकी क्षति पूर्ति कर सकती है ,उतना हिस्सा जो सिकुड़ गया है ,उसे रोक भी सकती है .
मंगलवार, 25 अगस्त 2009
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