मंगलवार, 25 अगस्त 2009

गंगा मेरी माँ का नाम ,बाप का नाम हिमालय कब तक ....?

जल वायु परिवर्तन की आहट आप सुनें न सुने आहट धमाके दार है .पाँच सालों में कंप्यूटर की जैसे कई पीढी आ जातीं हैं ,वैसे ही उपग्रह से लिए चित्र बतला रहें हैं -पृथ्वी का परिमंडल पहाडों की धवल सफेदी औ समुन्दरों की नीलिमा तेज़ी से अपनी काया बदल रही है .सफेदी कम औ नीलिमा बढ़ रही है ।
सफ़ेद कपडा जैसे गर्मी को बहुलांश में लौटा देता है ,सातों आपात तरंगों को वापस भेज देता है सतरंगी प्रकाश की ,वैस ही पहाडों की धवलता जहाँ गर्मी को लौटा देती हैं वहीं समुन्द्रों का नीला जल अधिकाधिक गर्मी को रोक लेता है .पूरी एक केलोरी ऊर्जा चाहिए एक ग्रेम जल को १ सेल्सिअस गरमाने के लिए .समुन्दरों में तो अथाह जल राशि है ,कितनी गर्मी रोकते होवेंगे समुन्दर ?
एक अनुमान के अनुसार रिफ्लेक्तिविती घट रही है ,एब्जोर्तिविती बढ़ रही है .जहाँ ८० फीसद गर्मी लौतनी चाहिए थी (हिम -चादरें सही सलामत होतीं तो ऐसा ही होता )वहाँ अब नीले समुन्दर ८० फीसद तक गर्मी रोक आलमी गर्मी की वजह बन रहें हैं ।
बड़ा नाज़ुक है पृथ्वी का ताप -बजट ,एक सेल्सिअस की घट बढ़ रंग लाती है ,४फ़िसद की घट बढ़ एक छोर पर हिमयुग तो दूसरे पर जलप्लावन की वजह बनती आई है ।
बड़ा ही तुनक मिजाज़ है जलवायु का मिजाज़ .२००७ की गर्मी ने हमें आगाह किया था -इस दरमियान उत्तरी ध्रुव क्षेत्र से बड़े पैमाने पर हिम चादरों का सफाया हुआ था ,जलवायु परिवर्तन रोग -डेंगू के रूप में बरपा था ,कहर बनके टूटा था .सूखे की अपनी विभीषिका कम ना थी ।
उच्च अक्षांशिय हिमनद बह गए थे ,गल खप गए थे .इंडीज़ औ हिमालय भी इसकी चपेट में आए .इत्तेफाक है -पृथ्वी पर जीवन है ,सूरज से सही दूरी ,वायुमंडल को रोके रखने के लिए पर्याप्त गुरूत्व ,तापमान औ आद्रता जीवन को सम्भव बनाए रही है .लेकिन कब तक .हमारी छेड़ छाड़ प्रिकिरती के साथ खिलवाड़ रुक नहीं रहा है .पञ्च तत्त्वों की तत्त्विकता हम नष्ट करने पर उतारू हैं ।
यहाँ न कोई ग्रीन पार्टी है औ ना पर्यावरण -पारिस्तिथि ,जलवायु परिवर्तन राजनितिक अजेंडे पर है ."पालुतार्स मस्त पे " की धुन लगाई हुई है हमने .कोपेन हेगन जाने के लिए हम कितने तैयार हैं ?क्लीन डिवलपमेंट मेकेनिज्म हमारी फौरी ज़रूरत है .संसाधन औ अभिनव जलवायु मित्र प्रोद्द्योगिकी एक दूसरे से चस्पां हैं ,जुदा नहीं है .भूल जाइए हमारा कार्बन फुटप्रिंट कम है ,ज्यादा की गुंजाइश भी कहाँ है ?
वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड अपनी उपरी सीमा ३५० पी .पी .एम् .से बढ़कर कबकी ३९० हो चुकी है ,इसमें साल के बाद हर साल २ पी .पी .एम् .का इजाफा हो रहा है .(१० लाख भागों में ३५० भाग कार्बन -डाइऑक्साइड का होना खतरे की घंटी है ,जो कबकी बाज़ चुकी है )
फिजिक्स (भौतिकी )और केमिस्ट्री (रसायन विज्ञान )के नियमों को सिर्फ़ ब्लेक होल ही तोड़ सकता है .अपनी नादानी में हम इन नियमों का अतिक्रमण अपनी जान की कीमत पर कर रहें हैं ।
सोचियेगा एक दिन हिमालय से सब हिम नद गायब हो जायेंगे ,गंगा का सरस्वती जैसा हश्र हो जाएगा .तब आप नैनो का क्या करेंगे ?नैनो जो कथित विकाश का प्रतीक है ,आम आदमी की सवारी है .आम औ ख़ास ब्लेक होल बनेगें?
प्राकृति से मुकाबला है ,ऊर्जा सुरक्षा भी ज़रूर चाहिए औ उसके लिए चाहिए कटिंग एज टेक्नोलाजी .७० अरब डालर न सही थोडा कम लेकर लौटो -कोपेनहेगन इम्तिहान है -विकाश शील देश झोली फैलाए हैं .faislaa pronnat deshon ko karnaa hai .गेंद अमीर देशों के पाले में हैं .

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