ग़ज़ल ।
कोई पता न ठौर उसका आज तक मिला ,
ता उम्र है ढूंढा किया वह पहला प्यार था ।
उसके मिरे दरमियान था सागर का फासला ,
हम शक्ल तो मिलते रहे ,वैसा कोई न था ।
आँचल में जिसके आंच और ममता का था उफान ,
यूँ जिस्म मिल गए बहुत ,पर वह कहीं न था ।
मनुहार औ दुलार थे ,नेनों से बाज़ुबाँ,
नेनों से मिले नयन कई ,वह न उनमें था ।
उसको न ढूंढ़ सका कोई नैट ऑरकुट ,
din raat odhaa thaa jise ,vah pahla pyaar thaa
sah -bhaav :Dr .Nand Lal Mehta Vaageesh .
सोमवार, 17 अगस्त 2009
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2 टिप्पणियां:
सादर वन्दे!
आपके गजल को पढ़कर कुछ पुरानी बातें ताजा हो गयीं, लेकिन इसमे नेट व ऑरकुट का तड़का लाजबाब रहा, इस आधुनिकता के लिए जय हो,
रत्नेश त्रिपाठी
नैट ऑरकुट ...वाह...ग़ज़ल में कमाल किया है आपने...
नीरज
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