एक ऐसा नौनिहाल वियाग्रा पर अभी तक ज़िंदा है जो जन्म से ही चिकित्सा जगत के लिए चुनौती रहा ,एक के बाद एक पेचीला पन जिसे घेरे रहा .शायद इसी -लिए कहा गया है -जा को राखे saain -या मार सके ना कोय ,होनी तो हो के रहे लाख करे किन कोय ।
साढ़े -तीन हफ्ते का है ,फिलवक्त ओवेन ब्लूम -फील्ड (बेबी -बाय ) .जन्म के वक्त इसका उदर(स्तामक ) यानी पेट सीने में धसा हुआ था ,दिल में सूराख था (ब्लू -बेबी ),फेफडे (लंग्स )में संक्रमण था ,बहुत ही बिरला ,लेकिन विआग्रा दवा (नपुंसकता के लिए दवा ,जिसका खूब दुरपयोग होता रहा है ,फलस्वरूप मृत्यु भी ,कईयों की हुई है ).इसे ज़िंदा रखे है ।
न उमीदी में से ही आस की किरण तब फूटी जब डॉक्टर नर्वस होकर उसका लाइफ सपोर्ट सिस्टम हठाने का सोच रहे थे .एक बड़ी शल्य -चिकित्सा काम आई ,शरीर अंगों को यथा स्थान लाया गया ,पेट की जगह पेट ,सीने की जगह सीना .हो सकता है ,टा उम्र उसे वियाग्रा लेनी पड़े .सब कुछ फेफडों के संक्रमण के बने रहने या ठीक होने पर निर्भर करता है .खुदा खैर करे .
बुधवार, 19 अगस्त 2009
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1 टिप्पणी:
हैरत अंगेज !
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