शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

जसवंत जी की किताब क्या आई ,हमें अपने देश में चलने वाली राजनितिक धाँधली की ,दोगले पन की तस्वीर थोडी और साफ़ हुई .मसलन अपने रक्त -रंगीयों (लेफ्टियों )की इस मुद्दे पर प्रति -किर्या देखिये -किताब के मुद्दे पर ,अभिव्यक्ति की आज़ादी पर आज जो लोग (मार्क्स -के गुलाम )जसवंत -जी के साथ खड़े दिखलाई दे रहे थे ,कल तसलीमा नसरीन को ,उनकी किताब को पश्चिमी बंगाल के लिए खतरा बतला रहे थे .ये वहीलोग हैं जो बीजिंग में वर्षा होने पर हिन्दुस्तान में छाता खोल लेते हैं ।
और ये इस्साला प्रजातंत्र कैसा है ,जहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी को आज़ादी का सबसे बड़ा प्रतीक बतलाया जाता -लेकिन व्यवहार में यही अभिव्यक्ति की आज़ादी हमारी रैखेल है .,प्रजातंत्र को ,पार्टी तंत्र को इससे बड़ा खतरा है ।
एक किताब लिखो औ शहीद हो जाओ -किताब पढ़ना -लिखना मना है .दाल रोटी खाओ ..............के गुन गाओ .