कोई हफ्ता भर पहले प्रोफेस्सर हेनरी लुईस गेट्स (हारवर्ड प्रोफेस्सर )जिनकी चमड़ी काली है लेकिन वैसे सुविख्यात हैं .लोगबाग उनेह उनके काम की वजह से पूजतेहैं गैरमुनासिब बर्ताव करते हुए धर लिए गए गोरे सार्जेंट जेम्स क्रोव्ली द्वारा .तुरत फुरत बराक ओबामा साहिब ने दोनों को बिअर पार्टी पर आमने साम ने बिठालिया.आप जानतें हैं अमरीकी नीति निर्धारण में रंग भेद काले गोरे का सवाल विशेष स्थान रखता है .दोनों परस्पर असहमत दिखे लेकिन बातचीत की .आइन्दा भी बातचीत के लिए राजी हुए .दीगर है परस्पर असहमत ही रहे दिखे अपना एतराज़ दर्ज कराया .लेकिन संवाद का रास्ता खुला रख्खा .क्या हमारे रहनुमा सिर्फ़ इफ्त्यार पार्टियों में ही परस्पर मेल मिलाप रखतें हैं .अपनी कंस्तितुएंसी से मुखातिब होतें हैं ,या फ़िर उनमें आपसी मनमुटाव को बातचीत के ज़रिये निपटाने का माद्दा भी है ?नीयतभी है ?क्या प्रदेश कांग्रेस मुखिया (उत्तर प्रदेश )और बहिन मायावती मौजूदा कलह चाय का प्याला या फ़िर निम्बू पानी लस्सी आदि साथ साथ पी -बैठकर सुलझा सकतीं हैं .?मामला दलित महिला के साथ हुए बलात्कार तथा उसकी एवज में प्रदेश सरकार द्वारा मुआवजा देने से ताल्लुक रखता था .जिस पर रीता जी ने गैरवाजिब टिपण्णी की ,कांग्रेस युवराज ने उनकी टिपण्णी को तो खारिज किया ,लेकिन भावना से सहमत दिखे .ये कैसी भावना है "पीड़ित के ज़ख्म पर नमक छिड़कते आप कहें -ये पैसा मायावती के मुह पर मारो और कहो आप अपना बलात्कार करवाओं हम एक करोड़ रुपया देंगें ।"मायावती जी की प्रतिकिर्या उग्रतररही ,रीताजी का घर फुंकवा दिया ,जेल में ठूंस दिया .इसलिये हमने कहा -सबके मुह पर सिटकनी क्या करते संवाद .रीता बहुगुणा और माया
बात करें तो कैसे ?राजनीती में एहसास का अभाव है .निर्भाव है राजनीती .यहाँ तो कानून भी शपथ नहीं वोट के हवाले है .रहनुमाहमारे फंस जाने पर जनता की अदालत में जाने की बात करतें हैं .उसे ही सर्वोपरि अदालत बतलातें हैं .नक्सली -माओवादी अदालतें अपनी ढाल चलतीं हैं .प्रादेशिक सेनायें अलग हैं .राजठाकरे ख़ुद ही एक सेना हैं .पंचायतें जात बिरादरी के नाम पर नौज़वान जोडों को ठिकाने लगा रहीं हैं .दलित और बामन ठाकुरों के कुँए बा -व्दियाँ अलग अलग हैं ,स्कूल में दलित बच्चों की अलग पांत हैं ,नास्ता है ,मिड डे मील है .ऐसा है मेरा हिन्दुस्तान आज़ादी मिले कोई ६२ बरस बीते सामाजिक राजनितिक विक्रित्यान ज्यों की त्यों हैं ,उनमें इजाफा ही हुआ है .उग्रतर हुए हैं रिताओं के तेवर और अंदाजे बयान .बातचीत की मेज़ पर रीता माया कब साथ आएँगी ?हम इंतज़ार करेंगे .
है
सोमवार, 3 अगस्त 2009
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1 टिप्पणी:
maya ho ya rita ,
hamare gantantra ka balatkar sbne kar ditta.
rates of kursi walon ke blatkars are too high ........
hum sirf yehi kahenge .......HEY RAM........
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