अब मैं सुरक्षित हूँ ,आभासी दुनिया से पुन : जुड़ गया हूँ .डेट्रॉइट से मुंबई तक का सफर मुझे इस आभासीलोक
से काटे रहा .वास्तव में जब व्यक्ति की मानसिक सक्रीयता बहुत बढ़ जाती है ,वह केवल शरीर नहीं रहता .तब
उसके मन को महसूस किया जा सकता है .शरीर से परे इन्द्रियाँ हैं ,इन्द्रियों से परे मन ,मन से परे बुद्धि, और
बुद्धि से परे आत्मा .
जब आदमी शरीर और उससे जुड़ी अनुभूतियों से ऊपर उठ जाता है ,उसका शरीर तो पीछे छूट जाता है
,ज्ञानेन्द्रियाँ मुखर हो जातीं हैं .इस आत्मिक आलोक से आलोकित होने पर लगता है अब सब कुछ सुरक्षित है
,मैं फिर से आभासी दुनिया में आ गया हूँ .
इस मानसिक और बौद्धिक संतोष की सुरक्षा अन्दर से बड़ा बल देती है .बेशक जो कर्म योगी है उसे भी आनंद हो सकता है लेकिन ध्यान की अवस्था में कार्य नहीं होता है .इसीलिए सूक्ष्म कर्म करने वाले मेरे तमाम ब्लोगर बंधू -बांधवी ज्यादा रचनात्मक योगदान देते हैं .
इस यात्रा में खुलकर महसूस हुआ अब तक जो कुछ पढ़ा लिखा गुना वह तो बहुत थोड़ा सा अंश है ,दिक् और
काल का नियामक तो सूर्य है .
पशु बुद्धि को लेकर जो जीने वाले हैं उनके लिए तो आकाश भी कुर्सी है धरती भी ,राजनीति गिर ही वहां तक गई
है जहां मंद्ध बुद्धियों को कारगिल में भी कुर्सी नजर आती है .
वह बड़े फख्र से कहतें हैं जब कारगिल हुआ हम विपक्ष में थे लेकिन हमने सत्ता पक्ष का साथ दिया .पूछे इनसे कोई क्या कारगिल बाजपेई जी का निजी मामला था .संकट में देश सदैव ही एक जूट हुआ है .इन बदनसीबों के लिए आकाश की भाषा का उसके स्पन्दन का कोई मतलब नहीं है .
नेता जी सुभाष ने कहा था -तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा .सारा देश उनके पीछे खड़ा हो गया था .उनके पास आत्मा का आलोक था वह आकाश की भाषा उसका उसका स्पंदन समझते थे .ये निर्बुद्ध हर चीज़ को सिर्फ कुर्सी समझतें हैं .
ये आम आदमी को धक्का देकर चलाना चाहतें हैं .
से काटे रहा .वास्तव में जब व्यक्ति की मानसिक सक्रीयता बहुत बढ़ जाती है ,वह केवल शरीर नहीं रहता .तब
उसके मन को महसूस किया जा सकता है .शरीर से परे इन्द्रियाँ हैं ,इन्द्रियों से परे मन ,मन से परे बुद्धि, और
बुद्धि से परे आत्मा .
जब आदमी शरीर और उससे जुड़ी अनुभूतियों से ऊपर उठ जाता है ,उसका शरीर तो पीछे छूट जाता है
,ज्ञानेन्द्रियाँ मुखर हो जातीं हैं .इस आत्मिक आलोक से आलोकित होने पर लगता है अब सब कुछ सुरक्षित है
,मैं फिर से आभासी दुनिया में आ गया हूँ .
इस मानसिक और बौद्धिक संतोष की सुरक्षा अन्दर से बड़ा बल देती है .बेशक जो कर्म योगी है उसे भी आनंद हो सकता है लेकिन ध्यान की अवस्था में कार्य नहीं होता है .इसीलिए सूक्ष्म कर्म करने वाले मेरे तमाम ब्लोगर बंधू -बांधवी ज्यादा रचनात्मक योगदान देते हैं .
इस यात्रा में खुलकर महसूस हुआ अब तक जो कुछ पढ़ा लिखा गुना वह तो बहुत थोड़ा सा अंश है ,दिक् और
काल का नियामक तो सूर्य है .
पशु बुद्धि को लेकर जो जीने वाले हैं उनके लिए तो आकाश भी कुर्सी है धरती भी ,राजनीति गिर ही वहां तक गई
है जहां मंद्ध बुद्धियों को कारगिल में भी कुर्सी नजर आती है .
वह बड़े फख्र से कहतें हैं जब कारगिल हुआ हम विपक्ष में थे लेकिन हमने सत्ता पक्ष का साथ दिया .पूछे इनसे कोई क्या कारगिल बाजपेई जी का निजी मामला था .संकट में देश सदैव ही एक जूट हुआ है .इन बदनसीबों के लिए आकाश की भाषा का उसके स्पन्दन का कोई मतलब नहीं है .
नेता जी सुभाष ने कहा था -तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा .सारा देश उनके पीछे खड़ा हो गया था .उनके पास आत्मा का आलोक था वह आकाश की भाषा उसका उसका स्पंदन समझते थे .ये निर्बुद्ध हर चीज़ को सिर्फ कुर्सी समझतें हैं .
ये आम आदमी को धक्का देकर चलाना चाहतें हैं .
12 टिप्पणियां:
मानसिक सक्रियता की बात बहुत सही कही आपने :)
सक्रियता से ही ज्ञानेन्द्रियाँ मुखर होती हैं,और आत्मा आलोकित होती है,,,,,
RECENT POST: सागर,,,
स्वदेश वापसी पर स्वागत है.
स्वागत है श्रीमान जी, धन्य हमारे भाग ।
तन मन दोनों ही सक्रिय रहे।
sakriyta hi jivan ko jivant karti, bahut sundar prastuti, bharat bhumi vapsi pr swgat hai,वह बड़े फख्र से कहतें हैं जब कारगिल हुआ हम विपक्ष में थे लेकिन हमने सत्ता पक्ष का साथ दिया .पूछे इनसे कोई क्या कारगिल बाजपेई जी का निजी मामला था .संकट में देश सदैव ही एक जूट हुआ है .इन बदनसीबों के लिए आकाश की भाषा का उसके स्पन्दन का कोई मतलब नहीं है .
घर वापसी पर हार्दिक स्वागत ....
शुभकामनाएँ!
खुशामदीद वीरेंद्र जी, आशा है भरत में आपका आगमन सुखद रहेगा....
सत्ताधारियों को तो देश की चिंता है ही नही ...ये देश को बेच रहे है... कोई भी विपदा आईगी तो ये तो देश बेचकर इटली भाग जायेगे उन्हेँ क्या फर्क पड़ता है...पर हमें फ़र्क पड़ता है साहब हम इस देश के आम नागरिक हैं .... :( आपका बहुत बहुत स्वागत
my recent post-
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
जी हाँ .मनोमय कोश ,अन्नमय(शरीर) और प्राणमय(इन्द्रियों)कोशों से अधिक सूक्ष्म और समर्थ है !
सरल ढंग से गहरी बात समझाई..... आभार
यानी आप मुम्बई पधार गए हैं -स्वागतम!
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