बुधवार, 14 नवंबर 2012

दूल्हे का घोड़ा

दूल्हे   का घोड़ा 


कांग्रेस का यह दुर्भाग्य है उसे यह ही इल्म नहीं है कौन उसका हितेषी है ,कहाँ बैठा है .पता होता 

तो विपक्षी  पार्टी में बैठे राहुल जी के 

प्रशंसक माननीय यशवंत सिन्हा के बयान पे कांग्रेसी यूं न बिदकते .

.अब यशवंत जी ने तो राहुल बाबा की तुलना घोड़े से ही की है .घोड़े का तो सम्मान है .(गधे से 

तो की नहीं है) और घोड़ा भी ऐसा वैसा नहीं 

बारात  का घोड़ा जो दूल्हे  से कम सज धज लिए नहीं होता है .बल्कि दूल्हे  से ज्यादा ही सजा 

रहता 

है .कुछ लोग तो दूल्हे  की  बजाय 

दूल्हे  के घोड़े को देखतें हैं .यह क्या कम सम्मान की बात है .

.बारात  के घोड़े को हर कोई अपनी सामर्थ्य के अनुसार बढ़िया से बढ़िया चना भी  खिलाता है 

घास नहीं खिलाता है .भले कोंग्रेस जितनी 

मर्ज़ी 

महंगाई बढ़ा ले बारात के घोड़े के चनों में कटौती नहीं की जाती है .



एक तरह से यशवंत जी ने राहुल बाबा को ,उनकी समर्थक कांग्रेस को यह इशारा भी कर दिया है 

-भैया अब तुम भी घोड़ी पे बैठो .यही 

वक्त है .अगर पहले से ही बैठ चुके हो तो इस राज को खोलने में कोई हर्ज़ ही नहीं   है .बहर हाल 

हम उनके किसी व्यक्ति गत राज को 

नहीं 

जानना चाहते ,जानना भी नहीं चाहिए पर अगर उनके छिटकने को दूल्हे  के घोड़े की छिटकन 

से 

उपमा दी गई है तो कांग्रेसी मंत्रियों और 

प्रवक्ताओं को तैश में आने की क्या ज़रुरत है .और फिर अगर उदाहरण भी दिया है तो घोड़े का 

दिया हैं न .यशवंत सिन्हा जी  तो समझदार हैं और कोंग्रेस 

के हितेषी हैं जिस तरह के घटिया राजनीतिक वक्तव्य आ रहे हैं उसमें घोड़े से उपमा देना तो 

गौरव की बात है अगर उनकी जगह कोई 

और होता तो शायद दूल्हे  के घोड़े से भी उपमा न देता और 


राजनीति में तो एक से एक खिलाड़ी हैं वहां  राहुल बाबा लडखडाने  लगतें हैं वह नए खिलाड़ी हैं  

उस बारात  की घोड़ी की तरह जो सधी हुई 

नहीं होती कभी बैंड की 

आवाज़ से बिदक जाती है कभी बारात  में छोड़ी जाने वाली आतिशबाजी पटाखों की आवाज़ से .

चलिए दिग्विजय जी  का तो छौडिए वह तो मंत्री नहीं हैं कब कहाँ क्या कहना है वह भ्रम में ही 

रहतें हैं .घडी की सुइयों के विपरीत घूमता 

है उनका चेहरा और 

मुद्राएँ .हाँ अगर कोई मंत्री होकर बार बार कांग्रेस पार्टी का प्रवक्ता बनकर आ जाए तो उसके बारे

 में क्या कहा जाए .कहीं ऐसा तो नहीं है 

की वह मंत्री होकर भी यह इशारा कर रहें हैं की मैं तो प्रवक्ता ही ठीक था .बिना टिपण्णी किये 

मुझसे रहा ही नहीं जाता .

 कौन से मंत्री हैं यह तो हमें नहीं पता लेकिन वह आज भी कांग्रेस 

प्रवक्ता के रूप  में ही  ज्यादा मुखर दिखलाई देते हैं .सोनिया जी और मनमोहन जी कृपया नोट 

करें यह मंत्री पद की अवमानना कर रहें 

हैं 

हमें अभी - अभी किसी ने बतलाया है आप हैं भी सूचना प्रसारण मंत्री  .यह कैसे  सूचना मंत्री हैं 

जो मंत्री पद को प्रवक्ता पद में तब्दील 

किए हुए हैं .सूचना तो इनके पास कोई है ही नहीं यह तो कोंग्रेस का फटा हुआ ढोल ही पीट रहें हैं 


                          (2)



संघर्ष में बने रहने के लिए रोना ज़रूरी है 

.

.WEEP AND WIN 

The next time you are called weeping willow ,remember that crying can bust 

stress and improves your immunity 

OBAMA DOES TOO 

The trauma of Hurricane Sandy and an exhuasting presidential campaign left 

American president Barack Obama and New Jersey governor Chris  Christie 

holding back their tears this week .He was addressing a crowd of 20 ,000 at final 

campaign rally in Des Moines ,Iowa on Monday ,when his voice cracked .Then

last week ,an emotional Obama broke down again while thanking his team of 

volunteers and staff for their work that won him the second term.

बचपन से सुनते पढ़ते आयें हैं "Laughter is the best medicine".खुल कर हंसना ,न सिर्फ

 हमारे दिल ओ दिमाग के लिए अच्छा है 

हमारे रोग प्रतिरक्षण तंत्र की मजबूती के लिए भी उतना ही मुफीद है .घाव अपेक्षाकृत जल्दी 

भरते हैं हंसोड़ के .तनाव काफूर हो जाता है 

.अब हालिया अध्ययनों से पता चला है जो दवाब ग्रस्त होने पे थोड़ा रो लेते हैं वह तंदरुस्त रहते 

हैं बरक्स उनके जो अपने ज़ज्बातों को पी

 जाते हैं दबा जाते हैं .कम खाना तो ठीक लेकिन गम खाना ठीक नहीं है .रो लीजिए मरों  को 

.वरना गम आपको मार जाएगा .

University of Minnesota ,US,में हाल ही में संपन्न एक अध्ययन में बतलाया गया है ,रोना 

88.8 फीसद लोगों का मूड (दिलो दिमाग 

और मन )दुरुस्त कर देता है .स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने की प्रक्रिया को प्रेरित करता है ,रोग रोधी 

तंत्र और रोगप्रतिरक्षण को पुख्ता करता 

है .क्रोध और दवाब के स्तर में कमीबेशी लाता है .रो लीजिए किसी ने सताया है तो .आपको कोई 

कमज़ोर समझे तो समझे .आप खुद से 

प्रेम कीजिए ,जी करे तो जी भरके रोइए ,फूट फूट के रोइए .

पहले तो रुदाली रखीं जाती थीं इस एवज .स्यापा इसीलिए अच्छा समझा जाता है तेरह दिन की 

गमी  भी .

रूदन अन्दर न रुके .

प्रोफ़ेसर विलियम फरे कहतें हैं जो इस अध्ययन के सूत्रधार भी हैं हम सब कुछ रो देते हैं 

अभिव्यक्त  हो जातें हैं रो कर इसीलिए बेहतर 

भी 

महसूस करने लगते हैं .सब कुछ तो रो दिया जो अंदर था .बचा क्या अब परेशान होने को .

दवाब के समय पैदा सब  रसायन रुदन में बह गए आंसू बनके .ये आंसू मेरे दिल की जुबां हैं ,मैं 

रो दूं तो रो दें आंसू ,मैं हँस  दूं तो हँस  दें 

आंसू .

अन्दर रह गए आंसू तो घुटन होगी अन्दर का दवाब बढ़ जाएगा .दिल के दौरे के खतरे का वजन 

भी बढ़ जाता है दिमाग का कुछ हिस्सा 

क्षति ग्रस्त भी हो सकता है नुक्सान उठा सकता है .पुरुष होने की हेंकड़ी में मत रहिये दबाइए 

मत रुदन को .कमजोर नहीं समझे जायेंगे 

आप .आज के सन्दर्भ में संवेदन शील ही समझे जायेंगे .

"The human ability to cry has a survival value ."

जब हम दुखी होतें हैं अन्दर से संवेगों आवेगों से भरे होतें हैं ,हमारे आंसू तब ज्यादा मेंग्नीज़  

और पोटेशियम साथ लिए आतें हैं 

.इमोशनल टीयर्स हैं ये .इनकी केमिस्ट्री अलग है . 

मेंगेनीज़ एक ऐसा पुष्टिकर तत्व है जो बेड कोलेसट्रोल के स्तर को कम करने में सहायक रहता 

है .पोटेशियम हाई ब्लड प्रेशर को कम 

करता है .रोने पर (आवेगपूर्ण भावुक रुदन )ये दोनों खनिज तत्व ज्यादा बनते हैं .

अलावा इसके सम्वेगपूर्ण अश्रुओं में (इमोशनल टीयर्स )में एक हारमोन प्रोलेकटिन होता है 

(prolactin ).यही हारमोन हमारे दवाब को 

कम करता है .दवाब युक्त सोच को दिशा देता है रास्ता देता है बाहर आने का .

रोते वक्त हम सांस भी गहरी खींचते हैं .इस Deep breathing से भी अन्दर का दवाब कम होता 

है .स्ट्रेस लेवल कम होता है .रोग 

प्रतिरक्षण तंत्र मज़बूत होता है .

दवाब के क्षणों में हम सांस भी उथली ही खींचते हैं ऐसे में स्ट्रेस हारमोन की बन आती है दबा के 

इसका स्राव होने लगता है ;स्ट्रेस हारमोन 

कोर्टीसोल का स्तर बढ़ने लगता है ,और इसी के साथ बे -चैनी भी बढ़ जाती है ,एन्ग्जायटी बहुत 

बढ़ जाती है .

दूसरी तरफ लम्बी गहरी सांस इसी होरमोन के स्तर को कम करती है इसके उत्पादन को स्राव 

को कम करती है ,दवाब को कम करती है 

अन्दर के .

रोना हमें पीछे मुड़के  देखने ,चिंतन करने कहाँ क्या गलत घट रहा है हमारे साथ किस तल पर 

बूझने का मौक़ा देता है .रुदन हमें इत्तला 

देता है कहीं कुछ गड़बड़ है हमारे संबंधों में या वर्क प्लेस पर .हमें हमारा जॉब माफिक नहीं  आ 

रहा है .कामकाजी माहौल भी चिढ़ा  रहा 

है .

अगर रुदन को दबा लिया तो दबेगा नहीं कटुता में और भी वृद्धि हो जायेगी अन्दर अन्दर .क्रोध 

भी बढेगा आपके अन्दर जो किसी समय 

फूटेगा ज्वालामुखी बनके .हालात बद से बदतर हो जायेंगे .

मर्दों को बचपन से सिखाया जाता है मर्द रोते नहीं हैं रोना झींखना औरतों का काम है ,यह सीख 

ही उलटी है .रोना एक स्वाभाविक प्रक्रिया 

है .एक अभिव्यक्ति है .

Crying is seen as weak and feminine .

औरतों के लिए यह कमोबेश मान्य रहा है स्वीकार्य भी हालाकि प्रोफेशनल नहीं है रोना आपको 

गलत और अदक्ष समझा जा सकता है वर्क

 प्लेस पर .चिंता न करें अपने विश्वास पात्र को लेकर दफ्तर से बाहर आ जाएँ रो लें कह दें सारी  

दास्ताँ .और फिर मस्त रहें .घुटे न अन्दर 

अन्दर .

4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अच्छा व्यंग्यात्मक लेख .....

और रोना तो सभी को आता है कुछ लोग आँसू छुपा लेते हैं तो कोई सामने बहा देते हैं ।

रविकर ने कहा…

दूल्हे का घोड़ा कहा, हो साइस नाराज |
भैया क्यूँ थोड़ा कहा, अब तो आओ बाज |
अब तो आओ बाज, खाज शादी की होती |
नहीं गिराओ गाज, चमक चेहरे की खोती ||
होता नहिं एतराज, गधा घोड़ा बैठाओ |
करिए तनिक इलाज, मुझे दुल्हा बनवाओ ||

babanpandey ने कहा…

बहुत सुंदर ... वर्तमान .. परिप्रेश्य में

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

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धन वैभव दें लक्ष्मी , सरस्वती दें ज्ञान ।
गणपति जी संकट हरें,मिले नेह सम्मान ।।
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दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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अरुण कुमार निगम एवं निगम परिवार
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