Rather than rely on music and pills ,the trick lies in thinking differently about sleep
भगवान ने हमें सोने की जन्मजात क्षमता बख्शी है .सोने के लिए सायास प्रयत्न नहीं करना पड़ता है .फिर
भी हम में से कितने ही ठीक से सो नहीं पाते .हरेक बीस में से एक भारतीय किसी न किसी किस्म की नींद
खलल से ग्रस्त है .औरतें न सो पाने के मामले में मर्दों से बाज़ी मार रहीं हैं कुलमिलाकर 4.3%मर्दों के बरक्स
6.5%औरतें ठीक से सो नहीं पाती हैं .ये निष्कर्ष हाल ही में वारविक मेडिकल स्कूल ने निकाले हैं .
जो लोग दीर्घावधि तक नींद में होने वाली खलल से ग्रस्त रहतें हैं उनके लिए न सिर्फ दिल की बीमारियों के
खतरे का वजन बढ़ जाता है ,दोगुना ज्यादा इनके परस्पर संबंधों में भी खलल रहती आती है .
क्या कहतें हैं निद्रा शरीर क्रिया विज्ञानी (Sleep physiologists)?
एक मर्तबा यदि आपने यह चर्वण करना शुरू कर दिया -"मैं ठीक से सो
नहीं पाता /पाती हूँ आप समस्या के प्रति और भी ज्यादा सचेत होकर
सोचने लगते हैं ऊपर से नींद में खलल से पैदा दुष्प्रभाव आपको एक
दुश्चक्र में फंसाते चले जाते हैं .न सो पाना भी एक ओबसेशन ,बन जाता है
.आप समस्या की जुगाली करने लगे .उग्र रूप दे दिया उसे आपकी इसी
सोच ने .दिमाग भी इसका अभ्यस्त हो चला .मर्ज़ बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों
दवा की और होता भी यही है सारी चोचले बाज़ी ,सारे रिचुअल्स ये करो
सोने से पहले वह न करो .आपकी बे -कलि बे -चैनी को कम नहीं कर पाते
और बढाते ही हैं .
समस्या का हल नींद की गोलियां नहीं हैं न ही हलकी रोशनियों में सोने से
पहले संगीत सुनना है हल आपके दिमाग में है सोच में है .
कुछ नया सोचिये Out Of Box ,लीक से हटिये
निस्पृह भाव से नींद के न आने को भी देखिये , जूझिये मत तटस्थ हो देखिये हाँ नींद नहीं आरही है
.बिस्तर छोडके कुछ और मत करने लग जाइए .ऊर्जा की रिसन को ,क्षय को बचाइये लेटे रहिये . देखते
रहिये विचारों के रेले को साक्षी भाव से .
पूछ देखिये किसी घोड़े बचके सो जाने वाले से भाई क्या करते हो बड़े खुशनसीब हो बे -फिकरी की नींद सोते
हो आखिर करते क्या हो इसे हासिल करने के लिए ."कुछ नहीं बस सो जाता हूँ "-ज़वाब मिलेगा .
दूसरी तरफ किसी अनिद्रा के मारे इन -सोम -नियेक से पूछ देखिये क्या करते हो ?
"क्या नहीं करता हूँ "-ज़वाब मिलेगा .नींद है की फिर भी दामन बचाके निकल जाती है .रात को सोने से
पहले भूल के भी केफीन युक्त पेय नहीं लेता हूँ .गुनगुने पानी में lavender की बूंदे टपकाके नहाता हूँ सोने
से पहले .अरे साहब ख़ास relaxation CDs भी सुनता हूँ वगैरा वगैरा .
कुलमिलाकर यही सब क्रियाकर्म ,चिलत्तर आपको गहरा एहसास क्या यकीन दिलाते चले जातें हैं -"मैं सो
नहीं पाता हूँ "दिमाग तो अनुकरण का अभ्यस्त है ही .हमारी अपनी ही सोच का गुलाम भी .कुलमिलाके
स्थिति बद से बदतर हो जाती है .
फिर दोहरा दें मर्ज़ बढ़ता गया ,ज्यों ज्यों दवा की .
मियाँ ग़ालिब कहते थे -मौत का एक दिन मुऐयन है ,नींद क्यों रात भर नहीं आती .
कैसे जड़ जमाता है अनिद्रा रोग (Insomnia)?
दिन आज अच्छा नहीं बीता तनाव में गया रात को वैसे ही नींद नहीं
आयेगी .करूँ तो क्या करूँ ?शाम तो शाम है , नियम श : रोज़ चली आती है आपका खौफ बढ़ता जाता है -
"मैं तो सो नहीं पाऊंगा "मंत्र जाप चलता रहता है .नींद आपके लिए एक मुद्दा बन जाता है .आप ज्यादा ही
इस बाबत
सोचने लगते हैं .सोचते चले जाते हैं .दिमाग भी रात के समय का सम्बन्ध जागने से जोड़ बैठता है .बस इसे
ही माहिर नींद के, कह देते हैं Hyperarousal.
अच्छा निद्रालु (नींदिया )बनिए
LEARNING TO BE A GOOD SLEEPER
सहज स्वाभाविक प्रक्रिया है निद्रा देवी की गोद में ढुलक जाना .हमारे शरीर को बचपन से इसका रियाज़ है
.आदत है .हमारी सोच ही बीच में व्यवधान पैदा करने लगती है .
संघर्ष करना ,जूझना छोड़िये नींद से .
Acceptance and Commitment Therapy is used at some sleep schools.
यह चिकित्सा व्यवस्था हमें ठीक उसका उलटा करने को कहती है जो हम तब करते हैं जब सो नहीं पातें हैं
.कभी भी बिस्तर छोडके नींद की सेज छोड़के नींद न आने पर अपने लिए ड्रिंक मत तैयार कीजिये .उठकर
संगीत मत सुनिए सोने के लिए .
क्या हुआ गर नींद नहीं आ रही है नींद न आने की असुविधा को भोगिये अनुभव कीजिये इसका भी। भागिए
मत इससे अगर आपका दिमाग इधर उधर भागता है उसे इधर ही मोड़िये ,नींद न आने की ओर .एक
सम्बन्ध रागात्मक बनाइये इस स्थिति से ताकि दिमाग को खबर हो जाए ,अब और जागते रहने की ज़रुरत
नहीं है .सम्बन्ध बन चुका है .कोई भगदड़ नहीं है .
भगवान ने हमें सोने की जन्मजात क्षमता बख्शी है .सोने के लिए सायास प्रयत्न नहीं करना पड़ता है .फिर
भी हम में से कितने ही ठीक से सो नहीं पाते .हरेक बीस में से एक भारतीय किसी न किसी किस्म की नींद
खलल से ग्रस्त है .औरतें न सो पाने के मामले में मर्दों से बाज़ी मार रहीं हैं कुलमिलाकर 4.3%मर्दों के बरक्स
6.5%औरतें ठीक से सो नहीं पाती हैं .ये निष्कर्ष हाल ही में वारविक मेडिकल स्कूल ने निकाले हैं .
जो लोग दीर्घावधि तक नींद में होने वाली खलल से ग्रस्त रहतें हैं उनके लिए न सिर्फ दिल की बीमारियों के
खतरे का वजन बढ़ जाता है ,दोगुना ज्यादा इनके परस्पर संबंधों में भी खलल रहती आती है .
क्या कहतें हैं निद्रा शरीर क्रिया विज्ञानी (Sleep physiologists)?
एक मर्तबा यदि आपने यह चर्वण करना शुरू कर दिया -"मैं ठीक से सो
नहीं पाता /पाती हूँ आप समस्या के प्रति और भी ज्यादा सचेत होकर
सोचने लगते हैं ऊपर से नींद में खलल से पैदा दुष्प्रभाव आपको एक
दुश्चक्र में फंसाते चले जाते हैं .न सो पाना भी एक ओबसेशन ,बन जाता है
.आप समस्या की जुगाली करने लगे .उग्र रूप दे दिया उसे आपकी इसी
सोच ने .दिमाग भी इसका अभ्यस्त हो चला .मर्ज़ बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों
दवा की और होता भी यही है सारी चोचले बाज़ी ,सारे रिचुअल्स ये करो
सोने से पहले वह न करो .आपकी बे -कलि बे -चैनी को कम नहीं कर पाते
और बढाते ही हैं .
समस्या का हल नींद की गोलियां नहीं हैं न ही हलकी रोशनियों में सोने से
पहले संगीत सुनना है हल आपके दिमाग में है सोच में है .
कुछ नया सोचिये Out Of Box ,लीक से हटिये
निस्पृह भाव से नींद के न आने को भी देखिये , जूझिये मत तटस्थ हो देखिये हाँ नींद नहीं आरही है
.बिस्तर छोडके कुछ और मत करने लग जाइए .ऊर्जा की रिसन को ,क्षय को बचाइये लेटे रहिये . देखते
रहिये विचारों के रेले को साक्षी भाव से .
पूछ देखिये किसी घोड़े बचके सो जाने वाले से भाई क्या करते हो बड़े खुशनसीब हो बे -फिकरी की नींद सोते
हो आखिर करते क्या हो इसे हासिल करने के लिए ."कुछ नहीं बस सो जाता हूँ "-ज़वाब मिलेगा .
दूसरी तरफ किसी अनिद्रा के मारे इन -सोम -नियेक से पूछ देखिये क्या करते हो ?
"क्या नहीं करता हूँ "-ज़वाब मिलेगा .नींद है की फिर भी दामन बचाके निकल जाती है .रात को सोने से
पहले भूल के भी केफीन युक्त पेय नहीं लेता हूँ .गुनगुने पानी में lavender की बूंदे टपकाके नहाता हूँ सोने
से पहले .अरे साहब ख़ास relaxation CDs भी सुनता हूँ वगैरा वगैरा .
कुलमिलाकर यही सब क्रियाकर्म ,चिलत्तर आपको गहरा एहसास क्या यकीन दिलाते चले जातें हैं -"मैं सो
नहीं पाता हूँ "दिमाग तो अनुकरण का अभ्यस्त है ही .हमारी अपनी ही सोच का गुलाम भी .कुलमिलाके
स्थिति बद से बदतर हो जाती है .
फिर दोहरा दें मर्ज़ बढ़ता गया ,ज्यों ज्यों दवा की .
मियाँ ग़ालिब कहते थे -मौत का एक दिन मुऐयन है ,नींद क्यों रात भर नहीं आती .
कैसे जड़ जमाता है अनिद्रा रोग (Insomnia)?
दिन आज अच्छा नहीं बीता तनाव में गया रात को वैसे ही नींद नहीं
आयेगी .करूँ तो क्या करूँ ?शाम तो शाम है , नियम श : रोज़ चली आती है आपका खौफ बढ़ता जाता है -
"मैं तो सो नहीं पाऊंगा "मंत्र जाप चलता रहता है .नींद आपके लिए एक मुद्दा बन जाता है .आप ज्यादा ही
इस बाबत
सोचने लगते हैं .सोचते चले जाते हैं .दिमाग भी रात के समय का सम्बन्ध जागने से जोड़ बैठता है .बस इसे
ही माहिर नींद के, कह देते हैं Hyperarousal.
अच्छा निद्रालु (नींदिया )बनिए
LEARNING TO BE A GOOD SLEEPER
सहज स्वाभाविक प्रक्रिया है निद्रा देवी की गोद में ढुलक जाना .हमारे शरीर को बचपन से इसका रियाज़ है
.आदत है .हमारी सोच ही बीच में व्यवधान पैदा करने लगती है .
संघर्ष करना ,जूझना छोड़िये नींद से .
Acceptance and Commitment Therapy is used at some sleep schools.
यह चिकित्सा व्यवस्था हमें ठीक उसका उलटा करने को कहती है जो हम तब करते हैं जब सो नहीं पातें हैं
.कभी भी बिस्तर छोडके नींद की सेज छोड़के नींद न आने पर अपने लिए ड्रिंक मत तैयार कीजिये .उठकर
संगीत मत सुनिए सोने के लिए .
क्या हुआ गर नींद नहीं आ रही है नींद न आने की असुविधा को भोगिये अनुभव कीजिये इसका भी। भागिए
मत इससे अगर आपका दिमाग इधर उधर भागता है उसे इधर ही मोड़िये ,नींद न आने की ओर .एक
सम्बन्ध रागात्मक बनाइये इस स्थिति से ताकि दिमाग को खबर हो जाए ,अब और जागते रहने की ज़रुरत
नहीं है .सम्बन्ध बन चुका है .कोई भगदड़ नहीं है .
3 टिप्पणियां:
nice post
yes sleep and thinking both are related
need jindgi se juda ek aaham mudda hai.aur need ki samsya dini din samaj ke sabhi bargo ke madhy gambhir hoti ja rahi hai,enhi samasyayon se jhujhti jindagi ko raste par lane ki en nayab koshos karti nayab prastuti
जूझना पड़े सोने के लिये, उससे अच्छा है कि जीवन से जूझा जाये।
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