ब्लॉग जगत में केकड़ा वृत्ति भली नहीं है
डार्विन का सिद्धांत "सर्वशक्तिमान का प्रभुत्व ,दीर्घ एवं उत्तर जीविता ब्लॉग जगत में लागू नहीं
हो सकेगी .
केकड़े का स्वभाव होता है जब एक केकड़ा ऊपर चढ़ने की कोशिश करता है तो नीचे वाला उसकी
टांग खींचता है और यह सिलसिला शुरू हो जाता है टांग
खींचने का .लिहाजा कोई चढ़ ही नहीं पाता .यही केकड़ा वृत्ति है ,जो ब्लॉग जगत के लिए भली
नहीं है .
ब्लॉग जगत में तो सब अपने हैं .अपनों का चिठ्ठा है ब्लॉग .समूह गान है ब्लॉग दोगाना या एकल गान नहीं .माहिरी का क्षेत्र सबका अलग अलग हो
सकता
है ,लेकिन ब्लॉग परस्पर सीखने आगे बढ़ने ,एक दूसरे को उत्साहित करने का खुला चर्चा मंच है विमर्श केंद्र है .
बेशक यहाँ रचनात्मक ,सहानुभूति पूर्ण समीक्षा भी ज़रूरी है मकसद किसी को चोट पहुंचाना न हो .संसदीय कूप की तरह यहाँ किसी को ब्लोगीय अंध
कूप में कूदना न पड़े .ऐसी नौबत न आने पाए .ध्यान रखा जाए .
इस सन्दर्भ में एक किस्सा याद आ रहा है .हमारे सेवा काल (अध्यापकी )का एक बड़ा हिस्सा
रोहतक (हरियाणा )नगर में बीता।आकाशवाणी रोहतक के
प्रसव काल से ही हमें इस मंच से बोलने का मौक़ा मिला .विज्ञान वार्ताओं से लेकर गांधी चर्चा
तक में हमें बुलाया जाने लगा . उन दिनों हम बी बी .सी .
(हिंदी सेवा )के उद्घोषकों के दीवाने थे .धड़ल्ले से उनकी नकल करते वैसा ही बोलने की कोशिश
करते .प्रोड्यूसर पद पर तैनात आकाशवाणी रोहतक में
एक विदूषी भी थीं उन्होंने हमें बड़े प्यार से समझाया -बन्धु !आप अपनी आवाज़ में अपने
स्वाभाविक लहजे में ही बोलें .थ्रो आफ वर्ड्स से लेकर वाक्य को
कैसे छोड़ना है ,यह सब सिखलाया .हमने शिष्य भाव से सब सीखा .उपकृत महसूस किया
.हमेशा सीखने की नीयत से ही वहां का रुख किया व्याख्याता
बन के कभी न गए वहां .पारिश्रमिक की भी कभी परवाह नहीं की .यह बीसवीं शती का आठवां दशक था एक वार्ता का पारिश्रमिक मात्र 25 रुपया मिलता
था .पूरी तैयारी के साथ जाना पड़ता था .हर बार लगता था कुछ कसर रह गई छूट गया बताया जाने से श्रोताओं को बहुत कुछ .
19990 के दशक के आते आते फीस बढ़के 250 रुपया प्रति वार्ता हो गई .
उदारीकरण का दौर था यह वेतनमान भी आकर्षक हो गए थे .
अधिकतर लोगों को यह मेहनताना बहुत कम लगने लगा वह इस मंच को छोड़ कर चले गए
.इन भगौड़ों में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रेंक
के लोग भी थे मेडिकल कोलिज के माहिर भी ,मनो -रोग विद भी .कई अखबारी लाल भी थे .
हम डटे रहे सीखते रहे सेवा निवृत्ति काल मई 2005 तक .
ब्लॉग के प्रति भी यही नजरिया होना चाहिए .समालोचना को उसके सन्दर्भ से काट के न देखा
जाए .चाहे मामला छंद /दोहा /कुंडली आदि काव्य विधाओं
में मात्रा आदि के जमा जोड़ से ताल्लुक रखता हो ,या गजल में काफिया और रदीफ़ के होने न
होने से ,अगजल या हाइकु से ,माहिया या किसी गीत
,नवगीत ,अगीत से ,आलेख में वर्तनी की अशुद्धि से।
बतला दें आपको हमें सिर्फ भाषा आती है .अर्जित किया है यह हुनर लिखने का .व्याकरण के
हम जानकार नहीं हैं .टाइप /कंप्यूटर शब्द कोष की भी
सीमाएं मुखरित होतीं हैं .कई ध्वनियाँ ही नहीं हैं यहाँ .सबको मालूम है .
ऐसे में नजरिया परस्पर सहभाव का हो ऐंठने का नहीं .अड़ने का तो बिलकुल भी नहीं .व्यक्ति
गत टिप्पणियाँ बिलकुल भी न की जाएं .यहाँ आकर विमर्श
का यह मंच ढहने लगता है .
हमसे जो गलतियां हुईं हैं आखिर इंसान से तो गलतियां होती ही हैं ,हमें जब भी ऐसा महसूस
हुआ बिना किसी औपचारिक खेद प्रकाशन के भी स्वयं को
सुधारने का पूरा प्रयास किया .आगे भी ऐसा प्रयास ज़ारी रहेगा .
फिलवक्त इतना ही .
16 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूब! हम शत् प्रतिशत् सहमत हैं आपसे
बहुत सटीक व सही फरमाया हैं आपने, ब्लॉग पर केकड़ा वृत्ति अच्छी नही होती ...
एक जगह आपने ये लिखा हैं
"19990 के दशक के आते आते फीस बढ़के 250 रुपया प्रति वार्ता हो गई ."
इसमे कृप्या कर के सुधार कर लेवें।
आप मेरे ब्लॉग पर आये ... आपका बहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी.
aap jaisi soch ke agar sbhi log hojay to blog ki khooshboo nlkhar jaygi ब्लॉग जगत में तो सब अपने हैं .अपनों का चिठ्ठा है ब्लॉग .समूह गान है ब्लॉग दोगाना या एकल गान नहीं .माहिरी का क्षेत्र सबका अलग अलग हो
सकता
है ,लेकिन ब्लॉग परस्पर सीखने आगे बढ़ने ,एक दूसरे को उत्साहित करने का खुला चर्चा मंच है विमर्श केंद्र है .
बेशक यहाँ रचनात्मक ,सहानुभूति पूर्ण समीक्षा भी ज़रूरी है मकसद किसी को चोट पहुंचाना न हो .संसदीय कूप की तरह यहाँ किसी को ब्लोगीय अंध
कूप में कूदना न पड़े .ऐसी नौबत न आने पाए .ध्यान रखा जाए .
चलिये, कम से कम केकड़े इसी बहाने आत्मीयता तो दिखाते हैं।
भरे पड़े हैं केकड़े, रविकर भी है एक |
टांग खिंचाई को गया, दिया नाक पर टेक |
दिया नाक पर टेक, नाक बचाता घूमूँ |
मिलता गया प्रसाद, गदोरी में ले चूमूँ |
रहिये पर निश्चिन्त, ब्लॉग के हे उस्तादों |
इंगित करिए खोट, टिप्पणी भर भर लादो ||
तर्क-संगत टिप्पणी की पाठशाला--
"क्षमा -याचना सहित"
हर लेख को सुन्दर कहा, श्रम को सराहा हृदय से,
अब तर्क-संगत टिप्पणी की पाठशाला ले चलो ||
Traditional Roses Mala
खूबसूरत शब्द चुन लो, भावना को कूट-कर के
माखन-मलाई में मिलाकर, मधु-मसाला ले चलो |
http://static.panoramio.com/photos/original/5316683.jpg
विज्ञात-विज्ञ विदोष-विदुषी के विशिख-विक्षेप मे |
इस वारणीय विजल्प पर, इक विजय-माला ले चलो |
वारणीय=निषेध करने योग्य विजल्प=व्यर्थ बात विशिख=वाण
विदोष-विदुषी= निर्दोष विदुषी विज्ञात-विज्ञ= प्रसिध्द विद्वान
क्यूँ दूर से निरपेक्ष होकर, हाथ करते हो खड़े -
ना आस्तीनों में छुपाओ, तीर - भाला ले चलो ||
टिप्पणी के गुण सिखाये, आपका अनुभव सखे,
चार-छ: लिख कर के चुन लो, मस्त वाला ले चलो ||
लेखनी-जिभ्या जहर से जेब में रख लो, बुझा कर -
हल्की सफेदी तुम चढ़ाकर, हृदय-काला ले चलो |
टिप्पणी जय-जय करे, इक लेख पर दो बार हरदम-
कविता अगर 'रविकर' रचे तो, संग-ताला ले चलो |
बात हमेशा आपकी खरी होती है, खरी खोटी भी नहीं
जो माने उसका भला और जो न माने उसका भी
जो अपनी मौलिकता को बचाए रखते हैं वही मिसाल बनते हैं..
सब साथ चलें तो बेहतर ही होगा ....
हम तो यहां सीखने आए हैं, जी, सिखाने नहीं। इसलिए आपका यह लेख भी बहुत कुछ सीख दे गया।
वीरू भाई, आपकी बात किसी को बुरी लगे य भली पर बहुत सही बात एकदम सटीक तरीके से कहते हैं... आपका मार्गदर्शन नए ब्लोगर्स के लिए बहुत उपयोगी है.
यह भी एक दुनिया है वीरुभाई जी.
असल दुनिया से ज्यादा भिन्न नहीं है.
केकड़े का स्वभाव होता है जब एक केकड़ा ऊपर चढ़ने की कोशिश करता है तो नीचे वाला उसकी
टांग खींचता है और यह सिलसिला शुरू हो जाता है टांग
खींचने का .लिहाजा कोई चढ़ ही नहीं पाता .यही केकड़ा वृत्ति है ,जो ब्लॉग जगत के लिए भली
नहीं है .
ब्लॉग जगत में तो सब अपने हैं .अपनों का चिठ्ठा है .....puri tarah se sahmat hoon...
वीरू भाई राम-राम !
बहुत बढिया लेख ...बहुत कुछ सीखने को मिलेगा मुझ जैसों को !
आभार आपका !
शुभकामनाएँ!
केकड़ा वृति हर जगह मौजूद है ॥कोई किसी को आगे बढ़ाने नहीं देना चाहता ....
लेकिन आपने सच कहा कि ब्लॉग जगत में यह नहीं होना चाहिए ... क्यों कि यहाँ सब अपने मनोभाव लिखते हैं ॥कोई होड नहीं है ... सार्थक लेख
ब्लॉग जगत में सब अपने हैं, अपनत्व की भावना मन में रहे बस ।
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