शनिवार, 3 नवंबर 2012

खुला खेल फर्रुखाबादी (लम्बी कविता :डॉ .वागीश मेहता )

खुला खेल फर्रुखाबादी (लम्बी कविता :डॉ .वागीश मेहता )


पिछले दिनों मंत्री मंडल की बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने कहा ,आरोपों  से बिल्कुंल न डरो ,बस

अपना

काम करते रहो .अब इस काम करने से क्या अभिप्राय  है यह तो लोग समझतें हैं .बस इसी व्यंग्य विडंबन के

साथ डॉ .वागीश जी ने यह कविता लिखी है .


                                                 वीरुभाई .

आरोपों से क्या डरना है ,अपना अपना काम करो .

खुला खेल फर्रुखाबादी ,इसका भी सम्मान करो .

                         
अपना दल और अपना बल है ,पैंसठ सालों का अनुभव है ,

हमने तो बस सीखा इतना ,भोजन भूखे का संबल है .

इत्मीनान से भोजन करके ,खूब मौज आराम करो ,

खुला खेल  फर्रुखाबादी ,इसका भी सम्मान करो .

                             (2)

पेड़ों पर तो फल लगता है ,बन्दर का भी मन करता है ,

उछल कूदकर नीचे ऊपर ,कितना उसका दम लगता है ,

कलम दस्तखत ,धरती पैसा ,सब कुछ अपने नाम करो ,

खुला खेल फर्रुखाबादी ,इसका भी सम्मान करो .


                              (3)

बुरे दिनों का है यह शोशा ,कुछ लोगों ने मिलकर कोसा ,

कागज़ तो सब ठीक ठाक हैं ,पर वैरी का नहीं भरोसा ,

स्याही छोड़कर खून से लिखो ,ऐसा रोशन नाम करो ,

खुला खेल फर्रुखाबादी ,इसका भी सम्मान करो .

                             (4)

सरकारें तो सरक रहीं हैं ,भीतर से पर दरक रहीं हैं ,

कोयला 'टूजी ',खेल -एशिया ,घोटालों से धड़क  रहीं ,

रिश्ते नाते जीजू -स्साले ,दूर से इन्हें प्रणाम करो ,

खुला खेल फर्रुखाबादी ,इसका भी सम्मान करो .


                           (5)

मौन रखूँ मैं कितना आखिर ,कौवा आ बैठा है सिर पर ,

अच्छे तो ये शकुन नहीं हैं ,बुद्धू -बक्सा कितना शातिर ,

बाबे -बूबे 'स्वामी' मिलकर कहतें हैं ,प्रस्थान करो ,

खुला खेल फर्रुखाबादी ,कुछ इसका सम्मान करो .

प्रस्तुती :वीरुभाई (कैंटन ,मिशिगन )


3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

bahut khoob,utkrsth vyngyatmk prastut 1.आरोपों से क्या डरना है ,अपना अपना काम करो .

खुला खेल फर्रुखाबादी ,इसका भी सम्मान करो . 2.कलम दस्तखत ,धरती पैसा ,सब कुछ अपने नाम करो , 3.कलम दस्तखत ,धरती पैसा ,सब कुछ अपने नाम करो , 4.सरकारें तो सरक रहीं हैं ,भीतर से पर दरक रहीं हैं ,

कोयला 'टूजी ',खेल -एशिया ,घोटालों से धड़क रहीं 5.मौन रखूँ मैं कितना आखिर ,कौवा आ बैठा है सिर पर ,

अच्छे तो ये शकुन नहीं हैं ,बुद्धू -बक्सा कितना शातिर

Shalini kaushik ने कहा…

आरोपों से क्या डरना है ,अपना अपना काम करो .

खुला खेल फर्रुखाबादी ,इसका भी सम्मान करो .
very nice presentation.

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

पेड़ों पर तो फल लगता है ,बन्दर का भी मन करता है ,

उछल कूदकर नीचे ऊपर ,कितना उसका दम लगता है ,

bahut sundar....