शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

ट्रांस्जेनेतिक ब्रिंजल के फायदे नुक्सान ?

एक अध्धय्यन में बी टी हाई ब्रीद ब्रिंजल में जहाँ फ्रूट नुकसानी २.५ -२० फीसद तक पाई गई वहीं इसकी नॉन बी टी किस्म में यह २४ -५८ फीसद तक दर्ज की गई ।
सेहत को खतरे कितने वाजिब ?
पाया गया है वेजिटेबिल कोशिकाओं में बी टी ब्रिंजल एक प्रोटीन बना डालता है जो एंटी बायोटिक रेजिस्टेंस खडा कर देती है .यानी इस तरकारी का सेवन करना सेहत के लिए निरापद नहीं है क्योंकि यह प्रति जैविकीय पदार्थों के प्रति एक प्रति रोध खडा कर लेती है ऐसे में एंटी बायोटिक बेअसर हो जा सकतें हैं ।
बी टी ब्रिंजल में नॉन बी टी के बरक्स १५ फीसद केलोरीज़ कम हैं .इसमे पाये जाने वाले एल्केलोइड्स भी जुदा हैं ।
इसमे १६ -१७ मिलिग्रेम /किलोग्रेम बी टी इन्सेक्तिसैद तोक्सिन हैं .यानी एक किलोग्रेम वेट बेंगन में १५ -१६ मिलिग्रेम कीट विष मौजूद है ।
यही विष मवेशियों की ब्लड केमिस्ट्री को असर ग्रस्त बना देता है .नर और मादा पशुओं में इसका असर जुदा देखा गया है ।
ब्लड क्लोतिंग टाइम (प्रो -थ्रोम्बिं न ),बिलीरूबिन की कुल मात्रा (यानी यकृत स्वाश्थ्य )तथा बकरियों और खरगोशों में अल्केलाइनफोस्फेत aसर ग्रस्त देखे गए ।
जिन चूहों को प्रयोग के तौर पर बी टी ब्रिंजल खिलाया गया उन्हें डायरिया हो गया ,पानी का इंटेक बढ़ गया लीवर वेट घट गया .लीवर तू बोदी वेट भी असर ग्रस्त हुआ ।
लेदेकर सुरक्षा मानक जांच ९० दिनों तक चलाई गई जबकि दीर्धावधि जांच से ही संभावित कैंसर्स और त्युमर्स होने का ख़तरा भांपा जा सकता है ।
दुधारू मवेशियों (गाय ,काओज़ )को जब बी टी ब्रिंजल खिलाया गया तब अलबत्ता उन्होंने दूध तो पहले से१० -१४ फीसद ज्यादा दिया लेकिन उनका वजन भी बढ़ गया ,सूखा चारा (ड्राई रफेज़ )भी उन्होंने पहले से ज्यादा खाया .ऐसा लगा जैसे उन्हें कोई हारमोन ट्रीटमेंट दिया गया हो ।
उधर ब्रोइलर चिकिंस (ज्यादा मांस देने वाली प्रजाति मुर्गियों की )के फीड इंटेक (खाई गई चारे की मात्रा )में भी फर्क दर्ज हुआ ।
१९९० आदि दशकों के बाद से ही जेनेटिकली मोडिफाइड ओर्गेनिस्म के ख़िलाफ़ इन्हीं सब बातों के मद्दे नज़र एतराज़ उठता रहा है ,अब तक ७०,००० लोग विरोध में आ चुकें हैं -आनुवंशिक तौर पर संशोधित फसलों के ,फूड्स के ।
मजेदार बात यह है -चोर से ही जांच करवाई गई है .मोंसंतो तो ख़ुद बीज निर्माता निगम है ,जिनका मकसद अधिकतम लाभार्जन ही होता है जन हित बाद में आतें हैं ।
मध्य प्रदेश में संपन्न एक अध्धय्यन में खेत और खेत मजदूर फेक्ट्री वर्कर्स को भी जी एम् फूड्स से असरग्रस्त पाया गया है ।
पर्यावरण के पहरुवे कीट पतंगों तितलियों माथ आदि पर बी टी ब्रिंजल की खेती क्या असर डालेगी इसकी किसे परवाह है ?ऐसे में पर्यावरण विदों का आवाज़ उठाना प्रासंगिक नहीं तो और क्या है ?प्री -एम्प्तिव एक्शन ज़रूरी है .

1 टिप्पणी:

BIPIN JHA ने कहा…

धन्यवाद महोदय,
मै नियमित रूप से आप का आलेख पढता हूं| बीटी के विषय में जानकारी हेतु धन्यवाद।
बिपिन झा, आई आई टी बाम्बे
http://www.jahnavisanskritejournal.com/