सोमवार, 31 अगस्त 2009

गोरे इस धरती पर खेती -किसानी के बाद आयें है .

गोरे सफ़ेद चमड़ी वाले योरोप वासी इस धरती पर अबसे ५५०० साल पहले ही तब आयें हैं जब आदिम जात (आदि मानव )शिकार छोड़ खेती किसानी की और मुडा,इस अवधि से पहले ब्रिटेन औ स्केंडिनेवियाई मुल्कों के लोग काले कलूटे थे ,हालिया शोध ऐसा इशारा कर रही है ।
वजह रही अनाजों में विटमिन डीकी कमी ।
सूरज की रोशनी जब हमारे शरीर पर पड़ती है ,तब गोरी चमड़ी काली के बरक्स विटामिन डी का संशाधन अपेक्षया ज्यादा कर लेती है ।भले ही रौशनी बेदम हो .
उत्तरी योरोप में सूरज की नामालूम सी रोशनी , के चलते विटामिन डी चमड़ी द्वारा तैयार करलेना ज़िंदा रहने के लिए बहुत ज़रूरी है .,रहा होगा ।
ओस्लो विश्व -विद्दायलय के विज्ञानी जोन मोआं कहतें हैं ,५५०० -५२०० के दरमियान लोग मच्छीछोड़ कर अन्य खाद्दय-पदार्थों की और मुड़े.और इस प्रकार दिनानु -दिन चमड़ी का रंग लाईट होता गया (काले से श्याम ,सांवला ,गेहूना ,फ़िर गोरा ).मोआं इंस्टिट्यूट आपःफीजिक्स

(भौतिकी संस्थान ,ओस्लो विश्व -विडदायालय )में शोध रत हैं ।
घातक हो सकती हैं विटामिन डी की कमीबेशी -न्यू यार्क स्तिथ ब्रुक हेवन लेब के जैव विज्ञानी रिचर्ड सेत्ला भी ऐसा ही कहतें हैं ,जो इस शोध को सांझा कर रहें हैं ।
यह कमीबेशी -मधुमेह (दाया -बितीज़ ),ह्रदय रोग ,जोडों का दर्द (आर्थ -रा इतिस )की वजह तो बनती ही है ,रोग प्रतरोधी तंत्र को भी मुरदार (निर्जीव )बनाती है ।
ठंडे उच्च अक्षांशीय इलाकों में त्वचा का रंग हल्का होता चला जाएगा ,यह ज़रूरी भी हो जाता है ..अनाज विटामिन डी की कमीबेशी को पूरी नहीं कर पातें हैं ,५५००--५२०० साल पहले भी यही कहानी थी .और काली चमड़ी में सूरज की मरी मरी रौशनी विटामिन डी का संसाधन ठीक से नहीं कर पाती थी ।
सन्दर्भ सामिग्री :वाईट स्किन इवोल्व्द आफ्टर हूमेंस टूक टी फार्मिंग -टाइम्स आफ इंडिया ,अगस्त ३१ ,२००९ पेज १५ ,कालम २-३ ।
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).9350986685

दुरभि संधि :एच १ एन १ और एच आई वी-एड्स की .

उन लोगों के लिए तपेदिक का ख़तरा और भी बढ़ जाता है ,जो एच आई वी -एड्स संक्रिमित होतें हैं .एच आई वी -एड्स संलक्षणों से ग्रस्त होने पर ठीक इसी तरह तपेदिक का ख़तरा और ज्यादा हो जाता है ।
अब ऐसी ही आशंका एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा _ऐ और एच आई वी एड्स दुरभि संधि को लेकर व्यक्त की गई है .पहले से ही एच आई वी -एड्स संक्रिमित व्यक्ति के लिए स्वां फ्लू का पेचीला पन तब और भी ज्यादा हो जाता है जब एंटी -रेट्रो -वायरल थिरेपी भी उसे नहीं मिल रही हो ।
अलबत्ता नेको (नेशनल एड्स कण ट्रोल ऑर्गेनाइजेशन )अपने २१७ एंटी -रेट्रो -वायरल केन्द्रों को इस खतरे के प्रति आगाह कर चुका है ।
दुनिया भर में विश्व्स्वास्थय संगठन के मुताबिक कुल ३ करोड़ ३ लाख लोग एच आई वी -एड्स संक्रिमित हैं ,इनमे से सिर्फ़ ४० लाख को २००८ के अंत तक एंटी -रेट्रो -वायरल थिरेपी मुहैया करवाई जा सकी थी ।
२३ लाख अनुमानित मामलों में से सिर्फ़ २.४ लाख को ही भारत में यह चिकित्सा उपलब्ध है ।
महाराष्ट्र में एच आई वी -एड्स -स्वां -फ्लू सह संक्रमण से अब तक २ लोग मर चुके हैं ।
ऐसे ही लोगों के लिए स्वां -इन फ्लू और उससे पैदा पचीला पन का ख़तरा ज्यादा है ,क्योंकि उनका रोग प्रति -रोधी तंत्र पहले से ही कमज़ोर है ,इम्मुनो -डिफिसिएंसी -दिजीजिज़ से ग्रस्त तमाम लोगों के लिए दोनों संक्रमणों की दुभिसंधी बहुत खतर -नाक है ।
स्वां फ्लू अन्य संक्रमणों से ४ गुना ज्यादा तेज़ी से फ़ैल रहा है ,६ हफ्तों में इसने उतनी दूरी तय कर ली है जितनी अन्य संक्रमण ६ माह में करतें हैं ।
दुनिया भर में अब तक २१८० से ज्यादा लोग इस संक्रमण से (एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ )मर चुकें हैं .घनी आबादी वाले देशों में आइन्दा ३० फीसद तक लोग इसकी चपेट में आ सकतें हैं ।
दुर्भाग्य यह भी हैं -अच्छे खासे तंदरुस्त जवान लोगों को लील रहा है यह जो ५-६ दिन ज्वर ग्रस्त रहने के बाद ही स्वां फ्लू से चल बसें हैं ।
ख़तरा एच आई वी -एड्स और एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ के दुर्योग से तैयार एक नै आफत ,वाइरस के नए रूप विधान ,नै किस्म से है ।
सन्दर्भ सामिग्री :एच आई वी -एच १ एन १ को -इन्फेक्शन हेज़ गमेंट वरीद .-टाइम्स आफ इंडिया ,अगस्त ३१ ,२००९ ,पेज -१० ।
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
नाक

रविवार, 30 अगस्त 2009

स्वां -इन फ्लू से बचाव के लिए अपनी रोग -प्रतिरोधक क्षमता बढाइये .

खान पान से जुड़ी है हमारी सेहत की नवज .क्या कर लेगा स्वां इन फ्लू जब दुरुस्त होगा -खान पानी ,रहनी -सहनी ।
आइये स्वास्थ्य -कर भोजन में क्या क्या ज़रूरी है ,विशेषज्ञों के कहे बताये का ले लें -जायजा ।
(१)खूराख में प्रोटीन युक्त खाद्य शरीक कीजिये .शाकाहारियों के लिए ज़रूरी है खुराख में दूध दही ,पनीर ,चीज़ ,सोयाबीन का दूध या आटा।
शामिश भोजी -एग वाईट (अंडे की जर्दी) ,मच्छी,चिकिन टर्की आदि (लीन -mएअत )आदि शामिल कर सकतें हैं (हफ्तें में तीन मर्तबा )।
(२ ) ड्राई -फ्रुइट्स को जगह दीजिये खूराख में -अखरोट ,बादाम ,फ्लेक्स-सीड्स ,तिल आदि को जगह दीजिये .हरयाणा के गांवोंमें आज भी फ्लेक्स सीड्स की चटनी बनती है ,कुछ लोग तवे पे भून कर खाने के बाद सौंफ -इलायची की तरह इसका सेवन करतें हैं तो कई पाउडर बाज़ार से ले आतें हैं ,फ्लेक्स सीड्स का .कोलेस्ट्राल कम करता है फ्लेक्स सीड्स ,अखरोट औ बादाम ।
(३ )40 फीसद स्थान ताजे फल औ गहरे रंग की तरकारियों को दीजिये -नवरतन कूर्मा का चक्कर छोड़ ठीक ठाक पकी सब्जी खाइए ,सूखी ।
पूरे हिन्दुस्तान में मिलता है बारहमासी केला -एक केला रोज़ खाइए ,अलावा इसके सेब ,अनार ,अमरुद ,नाशपाती (पैर ),नीम्बू वंशीय (संतरा ,मौसमी ,किन्नू आदि )में से स्थानीय उपलब्धता के हिसाब से कोई दो चुन लें .(अलबत्ता दायाबेतिक्स पर यह लागू नहीं होगा )मधुमेह से ग्रस्त लोग सिर्फ़ आधा केला या फ़िर एक संतरा /एपिल ,या फ़िर १००ग्रेम तरबूज (वाटर मेलन )/खरबूज ही ले सकतें हैं ।
(४ )मोटे अनाजों को नज़र -अंदाज़ नहीं कर सकते .बाजरा ज्वार ,रागी या फ़िर गेहूं -सोया मिस्र /गेहूं -चना मिस्र ,ओ़त युक्त नाश्ता ,वीत फ्लेक्स ,कोर्न फ्लेक्स आदि को खूराख का हिस्सा बनाइये ।
(५ )ज़रूरी हैं -ओमेगा ३ फेटी एसिड्स जो फ्लेक्स सीड्स ,अखरोट ,सोयाबीन ,काला चना ,साबुत उर्द ,पत्तेदार सब्जीयों में मेथी ,अनाजों में बाजरा तथा तैलीय मच्छी में भरपूर मात्रा में मौजूद है ।
(६)एंटी -ओक्सिडेंटस भी ज़रूरी -विटमिन सी ,बीता केरोटिन (गाज़र में मौजूद है ),खनिजों में जिंक औ सेलिनिं -ऍम एंटी ओक्सी -देंट्स मुहैया करायेंगे ।
aअक्सी -देतिव स्ट्रेस के अलावा एंटी -ओक्सिडेंट ऐ -आर -वे के तिसु (svasni मार्ग के उतकों )को सुरक्षा मुहैया करातें हैं (७ )बहुत आसान है एंटी -ओक्सिडेंट की मात्रा को खूराख में बढाना -बस सतरंगी हो आपकी सलाद -ओरेंज गाजर meh -roon चुकंदर (बीत -रूट ),लाल पीली ,नारंगी बेल पेप्पर (शिमला मिर्च हरे के अलावा इन रंगों में भी उपलब्ध है ),हरी ककडी ,खीरा (कुकुम्बर ),हरी मिर्च ,लाल मूली ,लाल लाल टमाटर ,काले अंगूर जामुन ,फालसा (ब्लू एंड ब्लेक बेरी )बेहतरीन स्रोत हैं -एंटी -ओक्सी -देंट्स के .पपीता ,अनार भी इसी वर्ग में आयेंगे ।ब्रोक्क्ली को कैसे छोड़ देंगे ?
(८ )विटमिन सी की मात्रा बढाइये (आपको आर्थ -राय -तिस ना हो ,केवल तभी )-आंवला ,टमाटर ,शिमला मिर्च ,लेटुस (सलाद पत्ता ),लाइम ,ओरेंज जूस आदि ),बंद गोभी ,गाँठ गोभी भी इसके स्रोत हैं ॥
(९ )लाइ -को -पीन का अलग जादू है -टमाटर से प्राप्त एंटी ओक्सी दंत है -लाइ -को -पीन .अलबत्ता लाल लाल टमाटरों का थिक सूप तैयार करना पडेगा .इसमें डा -इतरी फेट का छोंक (तडका )लगा सकतें हैं ,सुपाच्य बनाने के लियें ।
(१०)मेग्निसिं -यम् खनिज का अपना महत्व है -शाव्ष्ण सम्बन्धी (रेस -पाई -रेत -री प्रोब्लम्स )समस्याओं से खासकर स्वां फ्लू के ख़िलाफ़ असर कारी है -मेगनीसियम -यह साँस मार्ग के अस्तर (लाइनिंग )की लोच बनाए रहता है .अलावा इसके यह एक मसल रेलेक्सेंट औ शोजिश -रोधी ,संक्रमण रोधी (एंटी -इन -फ्लामेत्री )एजेंट है .बहुत आसान है खूराख में मेग्नीशीयम जोड़ना -ज्वार -बाजरा -मक्का -रागी ,वीत -क्रेक्स ,साबुत उरद ,चना ,राजमा ,चावली ,साबुत मूंग ,सोया बीन इसके स्रोत हैं .आम -आडू ,आलू बुखारा ,ड्राई फ्रुइट्स भी यही काम करतें हैं ,खासकर -अखरोट ,काजू बादाम ।
(११ )नमक कम किजीये ,नमकीन हथाइये -रिस पाई रेत्री समस्याओं से बचे रहेंगे हम औ आप .अचार ,पापड ,बेकरी आइटम्स ,संशाधित डिब्बा बंद फ़ूड .नमक की वजह से भी बढ़ता है आपका हमारा वजन -यकीन मानिए -चीनी सब कम करतें हैं ,नमक कोई कोई ,जबकी वजन कम बनाए रहने में नमक का अपना रोल है ।
(१२ )कुकिंग मीदिं -यम् ,तेलों का चयन देख भाल के -मोनो -अन -सेचूरेतिद -फेटी एसिड्स के लिए राईस -ब्रेन औ मूंगफली औ पोली के लिए सोयाबीन औ सरसों का तेल अच्छा है ।
बाद के दोनों तेलों में ओमेगा ३ फेटी एसिड्स भी हैं .दिन भर में १५ ग्रेम्स से ज्यादा तेल खूराख में ना आने पाये ।
(१३ )बच्चों के लिए विशेष तवज्जो देनी चाहिए खूराख पर -मसलन भरमा -रोटी सादई से अच्छी .मिल्क शेक्स बेहतर ,वेजिटेबिल कटलेट ,/पीजा बेबी कोर्न ,पैनेपिल युक्त हो .छाछ (बतर मिल्क ),लस्सी ,फलों का जूस के अलावा उपर्युक्त सभी खूराखी आइटम्स ।
इस दरमियान जब तक स्वां फ्लू का हौवा है -बाहर खाना मुल्तवी रखिये -फ्रिज से निकालने के बाद खाने की चीजें देर तक बाहर मत रखिये -कमरे के ताप मान पर आते आते सामिग्री बरसात में ख़राब हो sakti hai है .

क्या है कल्प वृक्ष ?

मौखिक परम्परा औ प्राचीन भारतीय मिथकों में ,वेद-पुरानों में खासकर ऋग्वेद में समुन्द्र मंथन के सन्दर्भ में कामधेनु के संग ,कल्पवृक्ष का भी ज़िक्र आया है .हर मन्नत पूरी होती है ,इस वृक्ष के अर्चन -पूजन से एक मिथक ,जन विश्वाश यह भी चला आया है ।
अलबत्ता एक पतझड़ी ,लम्बी टहनी ,औ फलदाई बेहद के मोटे तने(आधार )वाला वृक्ष है कल्पवृक्ष जो दक्षिणी -अफ्रिका ,उत्तर पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है ।
कल्पवृक्ष का वानस्पतिक नाम -बाओबाबभी है ,आदन-सानिया-डिजिट -अटा भी है .इसीलिए शायद इसे दैवीय कहा जाता है क्योंकि यह एक परोपकारी मेडीस्नल-प्लांट है ,औषध विज्ञानिक पादप है ,दवा देने वाला वृक्ष है -जिसकी पत्ती रूखी भी खाई जाती हैं ,पानी में उबाल कर भी ।
विटमिन -सी का खजाना है कल्पवृक्ष जिसमें संतरे से ६ गुना ज्यादा विटमिन -सी मौजूद है ।
रामबाण समझा जाने वाला गाय का दूध जितना केल्सिं -यम् मुहैया कराता है ,कल्पवृक्ष उससे दोगुना ज्यादा ।
शरबत औ केंदीज़ ,मिठाइयां तैयार की जातीं है दुनिया भर में इस वृक्ष से ।
इस वृक्ष की औसत जीवन अवधि २५००-३,००० साल है .कार्बन डेटिंग के ज़रिये सबसे पुराने फस्ट टाइमर की उम्र ६,००० साल आंकी गई है ।
सूखे का ,रोगकारकों का डट कर मुकाबला करता है ,कल्पवृक्ष ।कमखर्च बालानशीन -कम पानी में फलता फूलता हैं -कल्प वृक्ष .
नारियल के आकार का फल दादी के बटुए (थैली )सा लटका रहता है .पुष्टिकर तत्त्वों से भरपूर हैं इसकी पट्टियां (लीव्स )औ शरबत (जूस )।
कीट पतंग औ पशु दूर छिटक तें हैं इस वृक्ष से ।
कहतें हैं कई सौ साल पहले मुस्लिम सौदागर दक्षिण अफ्रिका से भारत लाये थे इस वृक्ष को ।
दिल्ली में ले देकर तीन कल्प वृक्ष बचें हैं ,सड़कों को फेला लो ,फ्लाई ओवर बना लो या फ़िर वृक्षों को सींच लो ,अब जाकर चेती है पर्यावरण विभाग ।
कल्प वृक्ष के रोपण का फैसला कर लिया गया है .आकाश कुसुम तोडेगा कल्प वृक्ष ,यह ७० फीट ऊंची मीनारों को बौना साबित कर सकता है ,तने का व्यास ३५ फीट तक हो सकता है ।
१५० फीट तक इसके तने का घेरा नापा गया है ।
दक्षिणी अफ्रिका में एक ऐसा कल्पवृक्ष हैंजिसके अन्दर बाकायदा एक शराब घर (पब )चलता हैंकहतें हैं कल तक एक कारावास भी कल्प वृक्ष के तलघर में (बेसमेंट )में चलता था ।
पानी के भण्डारण के लिए इसे काम में लिया जा सकता हैं ,क्योंकि यह अन्दर से (वयस्क पेड़ )खोखला हो जाता हैं .पतझड़ में इसके सारे पत्ते झड़ जातें हैं ।
पेड़ एक फायदे अनेक -फाइबर ही नहीं (रेशे ),रंगरेज की रंजक (डाई )भी बनता हैं कल्पवृक्ष .इसका तेल भी निकाला जाता हैं ,चीज़ों को सान्द्र (थिक्केनिंग एजेंट )बनाने के लियें भी इसका स्तेमाल होता हैं .दक्षिण अफ्रीकी आज भी इसके लम्बोदर (ट्रंक )का स्तेमाल वर्षा जल के संरक्षण भण्डारण के लिए ,एक्वीफाय्यार्स की रीचार्जिंग के लिए कर रहें हैं .
कर लो दुनिया मुठ्ठी में लगालो कल्पवृक्ष -महा काल के हाथ पर गुल होतें हैं पेड़ ,सुषमा तीनों लोक की कुल होतें हैं पेड़ .

शनिवार, 29 अगस्त 2009

अब जुबाँ को दिखाई देता है ,निगाहों से भी बात होती है .

ज़िक्र होता है जब क़यामत का ,तेरे जलवों की बात होती है
,तू जो चाहें तो दिन निकलता है .,तू जो चाहे तो रात होती है ।
तुझको देखा है मेरी नज़रों ने ,तेरी तारीफ़ तो करुँ कैसे
ना जुबाँ को दिखाई देता है ,न निगाहों से बात होती है ।
तो ज़नाब शायर झूठां पड़ गया है -अब नेत्र हीन ब्रेन पोर्ट की मदद से जुबां से भी देख सकेंगे ।
जुबाँ के माध्यम से दृश्य संकेत ब्रेन पोर्ट ग्रहण करेगा ।
इसमें एक छोटा सा डिजीटल केमरा फिट होगा जो इन संकेतों को एक इलेक्ट्रोड नेटवर्क को देगा .यह संजाल एक लालीपाप के बतौर बस जुबां पर रख दिया जाएगा ।
एक जोड़ी ग्लासिज़ में समायोजित डिजीटल केमरा दृश्य संकेतों को ,देखी गई चीज़ों को एक आधारीय सेल फोन को देगा .बस काम ख़त्म -यही सेल फोन दृश्य संकेतों को छोटी छोटी विद्दयुत स्पंदों में (इलेक्ट्रिकल -इम्पल्सिस )में तब्दील कर देगा ।
ज़नाब आप की आँख भी तो यही काम अंजाम देती है .ये तो दिमाग की अपनी व्याख्या होती है -जिसे हम दृश्य कहते हैं ।

जानतें हैं आप इस छोटे से सेल फोन का कमाल -आधारीय ईकाई (बेस यूनिट )इस सूचना को तकरीबन ४०० अति सूक्ष्म इलेक्ट्रोडों को जो लालीपाप में बिठाए होतें हैं ,दे देती है .जुबाँ इस लालीपाप का मज़ा भी लेती है ,आस पास की छोटी -छोटी चीज़ें यथा दरवाज़े मेज़ पर राखी केतली ,कप ,एलीवेटर का बटन ,लिफ्ट कौन से फ्लोर पर है यह भी देख समझ लेती है ।
एक ब्रेन -पोर्ट की लागत फिलवक्त १०,००० ,डॉलर आंकी गई है ,इसके २००९ के अंत तक बाज़ार में दस्तक देने की उमीद है .बतलादे आपको -माइक्रो -इलेक्ट्रोड्स ही जुबाँ की नवस को उद्दीपन प्रदान करतीं हैं .जुबाँ की नोंक ही आँख बन जाती है .

ओजोन कवच के लिए एक और ख़तरा -लाफिंग गैस .

अभी तक यही समझा जाता था -क्लोरोफ्लोरो कार्बन ही ओजोन कवच की छीज़न की वजह बनते रहें हैं .हेलंस भी कुसूरवार हैं .लेकिन अब एक और मुजरिम -नाइट्रस -ऑक्साइड हाथ आ गया है .,जिसे सामन्य भाषा में लाफिंग गैस भी कह दिया जाता है .बत्लादें ,विज्ञानी ओजोन कवच की लगातार निगहबानी ,मोनिटरिंग करतें हैं .अब पता चला है ,नाइट्रस ऑक्साइड ओजोन कवच के छीजने की वजह २१०० तक बनते रहेंगे ।
दीगर है ,मान्त्रिअल संधि में नाइट्रस ऑक्साइड का ज़िक्र नहीं था .एमिशन रिडक्शन टारगेट्स में भी इसका जिकरा नहीं है .जबकि नेशनल ओशनिक एंड एत्मोस्फिरिक एडमिनिस्ट्रेशन (राष्ट्रीय सागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशाशन )के शोध -विज्ञानी ऐ .रवि -शंकरा के मुताबिक अब क्लोरोफ्लोरो -कार्बंस (सी .ऍफ़ .सीज )का स्थान नाइट्रस ऑक्साइड ले चुका है ।
आप जानते हैं ओजोन कवच का छीजना हमारे जैवमंडल की सेहत के लिए अच्छा नहीं रहा है .अशुभ समझा गया है .

अब धीरे -धीरे यहाँ का मौसम बदलने लगा है ......?

१९०१-२००३ के दरमियान औसतन भारत भर मेंतापमानों में 0 .५ सेल्सिअस की वृद्धि दर्ज की गई है .उत्तरी औ केन्द्रीय भारत गरमा रहें हैं ।
उत्तर भारत में सर्दी के दरमियान तापमान ०.७ सेल्सिअस तथा दक्षिण में ०.३सेल्सिअस ज्यादा रहे हैं ,यानी सर्दियां अपेक्षा कृत गुनगुनी रहीं हैं ।
हिमालयीय हिमनद सालाना ०.३९ सेंटीमीटर पस्च्गति (पीछे की और खिसक रहें हैं ,रीसीड)कर रहें हैं ।
२००५ -०७ के दौरान हिमरेखा (स्नोलाइन )१६७ मीटर ऊपर की और खिसक गई है .इसकी वजह इस तमाम क्षेत्र में गत २० सालों में ०.५ सेल्सिअस तापमानों में बढोतरी रही है ।
भारत के गिर्द समुन्द्रों में सागर जल सतह सालाना १.०७ मिलीमीटर की दर से ऊपर उठ रही है ।
इसके चलते आइन्दा ४० सालों में मालदीव्स जल समाधि ले लेगा (इंडियन नेशनल सेंटर फार ओशन इन्फार्मेशन सर्विसिस का एक आकलन ऐसी प्रागुक्ति कर रहा है )
जलवायु में बदलाव का प्रभाव भारत के कुल ६२६ जिलों में से तकरीबन आधे जिलों पर ड्राई -स्पेल्स औ सूखे जैसे हालतके रूप में देखा जा सकता है ।
मानसून के १५० साला रिकार्ड को खंगालने के बाद पता चला है ,जलवायु परिवर्तन ही एक साथ बेतहाशा पटापट मुसलाधार बारिश और सूखे के आवधिक आवर्तन की वजह बनता रहा है ।
दीर्घावधि रिमझिम बरसात के दिन अब लद गए ,केन्द्रीय भारत अब लांग दुरेशन रेन्स से महरूम रहता है ।
(इंडियन इंस्टिट्यूट आफ ट्रोपिकल मीतिरियो -लाजी का जलवायु परिवर्त पर एक आकलन )।
गत ७ सालोंमें केन्द्रीय भारत के सत्तर जिले दक्षिणी उत्तर प्रदेश से केन्द्रीय मध्य प्रदेश औ राजस्थान समेत सूखी बरसात ,बरसात में निहोरते रहें हैं .इसीलिए मानसून को एक जुआ कहा समझा जाता है ।
उष्ण कटिबंधीय भारतीय मौसम संस्थान (आई .आई .टी .एम् .)के अनुसार यद्दय्पी औसत बरसात में घटबढ़ नहीं हुई ,तथापि कम्समय में अधिक औ मुसलाधार बारिश एक छोर पर बाढ़ की आवधिक वजह बनी तो दीर्घावधि बरसात के बरसात के दिनों में कटोती भू जल स्रोतों (एक्वीफायार्स )को रीचार्ज ,पुनारावेशित नहीं कर सकी .भूजल स्रोतों से लगातार पानी निकाला जा रहा है ,खेती किसानी के लियें ।

विकल्प :केन्द्रीय भारत के किसानों को मानसून के भरोसे चलने वाली अधिक पानी -खाऊ फसलों को छोड़ उन फसलों की औ लोटना चाहिए जो बरसात के भरोसे ज्यादा न रहें .ड्राई -फार्मिंग ,ड्रिप -एग्रीकल्चर एक और विकल्प है ।
जलवायु में आने वाले सूक्ष्म बदलावों ने -मानसून की प्रागुक्ति को औ दुष्कर बना दिया है ,इस साल मौसम विभाग को दो बार अपने कहे से हट -ना पडा ।
अब केवल १.५ दिन के मौसम का पूर्व जायजा सही -सही लिया जा सकता है ,दस साल पहले तक हम ३ दिन के मौसम की सही भविष्य वाणी कर पाते थे .ज़ाहिर है इस क्षेत्र में कटिंग एज टेक्नालोजी ,प्रशिक्षित ,अति दीक्ष मौसम कर्मी औ सुपर -काम्पुतार्स चाहिए ,एक से काम नहीं चलेगा ।
समुन्द्रों के जल सतह में १.०७ मिलीमीटर की सालाना वृद्धि तटीय क्षेत्रों में कुफ्र बरपा कर सकती है ।
सुंदरवन के द्वीपों के लिए ख़तरा मुह बाए खडा है ।
मुंबई का हाल हम सब बारहा देख चुके हैं .

शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

कम हो रहा है जेंडर गेप -धूम्र -पान के हाथों .

समाज का संरचनात्मक ढांचा कुछ ऐसा रहा ,जिसमें सिर्फ़ मर्दों को छूट थी -सुट्टा लगाने की ,बीडी -सिगरेट -हुक्का पीने . की .वक्त ने करवट ली ,सिगरेट बीडी ,गुटखा पान पर -आग औरत के भी हाथ में आ गई -आजाद ख़याल औरतें सरे आम सुट्टा लगाने लगीं -गरीब तबके में इस की वजह जुदा रही -एक हुक्का सब का सांझा ।
डब्लिन में जारी टोबेको एटलस के तीसरे संस्करण ,जिसे अमेरिकन केंसर सोसायटी के संग वर्ल्ड लंग फौन्डेशनने जारी किया ,के मुताबिक अब १ करोड़ १९ लाख हिन्दुस्तानी औरतें किसी न किसी विध तम्बाकू का सेवन कर रहीं हैं -इनमें से बीडी सिगरेट हुक्का पीने वाली ५४ लाख हैं ,शेष खेनी गुटखा आदि चबातीं हैं .सिर्फ़ अमरीकी औ चीनी महिलायें हिन्दुस्तान की मौतार्माओं से धूम्रपान के मामले में आगे हैं ।
एटलस के अनुसार २०१० तक आलमी स्तरपर ६० लाख धूम्र्पानी मौत के मुह में चले जायेंगे ,इनमें से २० लाख की मौत धूम्रपान से पैदा केंसर से हो जायेगी ।
दुर्भाग्य यह भी है ,२५ फीसद धूम्र पानी भरी जवानी या तो इस दुनिया से ही कूच कर जायेंगे या गंभीर रूप से बीमार हो जायेंगे ।
अभी तक मर्दों में यह शौक यह गंभीर लत ज्यादा थी ,मौत की निवाला भी वही ज्यादा बन रहे थे .अब औरतें भी इस मृत्यु -पर्व में ज्यादा से ज्यादा शरीक हो रहीं हैं ,बेशक फिलवक्त कुल जमा २० फीसद से भी कम भारतीय महिलायें तम्बाकू की गिरिफ्त में हैं ,लेकिन परिदृश्य तेज़ी से बदल रहा है -इस मामले में जेंडर -गेप कम हो रहा है ।
जवान औरतें इस लत की गिरिफ्त में लगातार आ रहीं हैं -इस बात से बेखबर -औरतों में धूम्र पान की लत ओवम (एग्ग ) की गुणवत्ता पर ही नहीं -गर्भ में पल रहे नन्ने जीव को भी जन्म पूर्व विकृतियों ,जन्म के समय कमतर वजन ,३६ हफ्ता या और भी समय से पूर्व प्रसव आदि गड़बडियों से असर ग्रस्त बनाती है ।
मर्द का स्पर्म काउंट तो कम होता ही था ,स्पर्म की मोतिलिटी (वेलोसिटी इन ऐ यूनिट फील्ड )हूमें -एन एग्ग से मिलने की तेज़ी औ उतावली भी असर ग्रस्त होती थी धूम्रपान से .अब औरत भी मर्द -बाँझ की राह पर चल पड़ी है ।
केंसर को सरे आम निमंत्रण -डा -इटिंग प्लान में भी स्मोकिंग ,ऊपर से खुसबू दार पान पर -आग .सावधान पेस्सिव स्मोकिंग भी उतनी ही खतरनाक है -परिवार से हट के धुआं उगलिए ,साइड स्ट्रीम औ सेकंडरी स्मोक भी उतना ही खतरनाक है -कमसे कम अपने नौनिहालों का तो ख़याल रखिये -बेड रूम से बाहर छत पर या खुले में जाकर धूम्र पान कीजिये -आपका एक पारिवारिक औ सामाजिक दायित्व भी तो है .क्या हक़ हासिल है आपको -आप किसी औ का माहौल ,हवा पानी ख़राब करें ।
दुर्भाग्य इस देश का एक तम्बाकू लाबी संसद में भी है .लाख बुरे थे रामो -दासा सिगरेट -शराब के हिमायती नहीं थे ।
पश्चिम की नक़ल करनी है ,इस मामले में करो -ज्यादा तर लोग ,युवा -भीड़ वहाँ धूम्र पान से छिटक रही है ,हम विज्ञापन का ग्रास बन रहें हैं -पश्चिम के तम्बाकू निगम हमारी युवा भीड़ से मुखातिब हैं ,भरमा रहें हैं ,हमें मुगालते में रहने की उतरन पहनने की हमारी लाइलाज आदत है ?

गुरुवार, 27 अगस्त 2009

याददाश्त कम कर सकता है -उच्च -रक्त -चाप .

कौन खोना चाहेगा कमउम्र में याददाश्त ?अलबता जीवन शैली रोग -हाई पर -टेंशन से बचना होगा .बेहतर है -प्री -हाई -पर तेंशिव होने को ही मुल्तवी रखा जाए .उपरी रक्त दाब (सिस्टोलिक )१३० से नीचे ही रखा जाए .विश्व -स्वाश्थ्यसंघठन अब ११० /७० (सिस्टोलिक /डाय-सिस्टोलिक )को बेहतर मानता है .अलबत्ता १४० /९० या और भी ज्यादा रक्त चाप हाई पर टेंशन की ज़द में आ जाता है .इसमें भी नीचे के अंकों में १० का इजाफा ज्यादा खतरनाक है .इस अवस्था में दिल के कमरे फैलतें हैं ,खून से भर जातें हैं .जबकि सिस्टोलिक में दिल सुकड़ता है -धमनियां रक्त से लबालब हो जातीं हैं ..अलबता दिल लुब डूब लुब्दुब करता रहता है ।

अमरीकी विज्ञानियों ने चेताया है -उच्च रक्त चाप से ग्रस्त ४५ साला लोगों को स्मृति -ह्रास का ख़तरा ज्यादा है .दाया सिस्टोलिक दाब का बढ़ना कोगनिटिव प्रोब्लम्स (संज्ञानात्मक समस्याएँ ०)को हवा दे सकता है .विज्ञान पत्रिका नयूरोलोजी ने उक्त अध्धय्यन के नतीजे प्रकाशित किए हैं .यदि हाई पर टेंशन को लगाम नहीं दी गई तो आगे चलकर यह डिमेंशिया (उन्माद )की वजह बन सकता है .अलबामा विश्विद्दय्लाया ,बर्मिंघम के विज्ञानियों ने यह अध्धय्यन आगे बढाया है .जिसमें ऐसे २०,०००,लोगों को शरीक किया गया जिन्हें कभी भी स्ट्रोक या मिनी स्ट्रोक नहीं हुआ ,इनकी उम्र ४५ और उससे ऊपर थी .इनमें से ७ फीसद को स्मृति सम्बन्धी शिकायतें करते देखा गया जबकि इनमे से आधे लोग बाकायदा ब्लड प्रेशर की दवा भी ले रहे थे ।

देखा गया दाई सिस्टोलिक दाब में १० अंकों की उछाल कोगनिटिव प्रोब्लम को ७ फीसद तक बढ़ा देती है .कार्य -कारन सम्बन्ध (कॉज -इफेक्ट रिलेशन शिप ) की पुष्टि और भी पुख्ता करने के लिए औ र अध्धय्यन करने की पेशकश "नेशनल इंस्टिट्यूट आफ नयूरोलोजिकल दिसार्दर्स एंड स्ट्रोक के उपनिदेशक महोदय ने की है .

उम्र से दस साल पहले मारिएगा-मौतरमा ?

भारत किसी न किसी बीमारी के मामले में बढ़त ही बनाए रहता है -पहले सर्विक्स केंसर और अब मौतार्माओं का उम्र से दस साल पहले सुपुर्दे ख़ाक हो जाना -धूम्रपान के हाथों .ख़त्म हो जायेंगे हम भी उनको ख़बर होने तक ।
तुबेको एटलस में भारतीय मौतार्मायें पहले बीस में तीसरा स्थान आलमी इस्तर पर बनाए हुए हैं .अलबत्ता पहले और दूसरे स्थान पर अमरीका और चीन काबिज़ हैं जहाँ भारत के एक करोड़ उन्नीस लाख के बरक्स २.३ और १.३ करोड़ महिलायें धूम्रपान की ज़द में हैं .दीगर हैं भारत में २० फीसद से कम ही औरतें बीडी -सिगरेट पीतीं हैं ।
अमेरिकन केंसर सोसायटी और विश्व फेफडा संघ ने यह टोबेको -एटलस प्रकाशित की है -बतलाया गया है ,गैर धूम्र -पानी के बरक्स धूम्रपान करने वाली महिलायें भारत में कुपोषण और गरीबी कमउम्र में ज्यादा बच्चे पैदा करने के चलते उम्र से ८साल पहले ही इस दुनिया से चल बसतीं हैं ।
आलमी स्तर पर तक़रीबन २५ करोड़ औरतें नियमित धूम्रपान करतीं हैं .इनका २२ फीसद अमीरऔर ९ फीसद अपेक्षा कृत गरीब मुल्कों से ताल्लुक रखता है ।
विज्ञापन का मायावी संसार औरतों को भरमा रहा है -आपको बतला देंबेजायका होती है सिगरेट -सेक्सी औ स्लिम नहीं बीमार बनाती है -आजाद ख़याल होना औ गर्भस्त को भी अपने शौक औ कमजोरी के चलते मुसीबत में डालना अकलमंदी नहीं है .प्रीमीज़ पैदा होतें हैं -धूम्र -पान करने वाली माताओं को -गर्भावस्था की पूरी अवधि ४० सप्ताह से४-५ हफ्ता या और भी पहले आ जातें है ये गर्भस्त इस दुनिया में -जन्म के समय इनका वजन भी कम पाया जाता है स्वस्थ और सामान्य बच्चे के मुकाबले .कितने बच्चे निर्जीव (स्टिल०) पैदा होतें हैं इसका जायजा लिया जानाबाकीहै ।
कोई ताज्जुब नहीं ,६० लाख इस शौक के हाथों मर जातें हैं ,इनमे से एक तिहाई केंसर ग्रस्त हो मारतें हैं ,आलमी स्तर पर अर्थ व्यवस्था को ५०० अरब डालर का चोना लगता है ।
२५ फीसद धूम्र पानी अपनी घर परिवार को विपन्न अवस्था में छोड़ जातें हैं ।
एक अनुमान के अनुसार २०१० में गरीब मुल्क ही ७२ फीसद काम करने वाले हाथों को खो गवां देंगे ,२०३० में यह आंकडा बढ़कर ८३ फीसद हो जाएगा .जन -शिक्षण ,जन जागरण रोक सकता है गरीबों की इस विश्व -महामारी को ,पेंदेमिक को .एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा तो नाहक ही बदनाम है -असली विश्व -मारी यह धूम्र पान ही है ,जो हमारे सौन्दरिय बोध को भी काटता है ,खूब सूरती के पर काटता है ,कोई माने तब ना .किस आशिक को अच्छे लगेंगे -स्मोकिंग स्टेन्स माशूक के ?कौन कहेगा -छू लेने दो नाज़ुक होठों को कुछ और नहीं हैं जाम हैं ये ,कुदरत ने जो हमको बख्शा है ,वो सबसे हसीं इनाम हैं ये .?

तू ड़ाल-ड़ाल मैं पांत पांत -मधुमेह और उच्च रक्त चाप .

तमाम बीमारियों की माँ कहा जाता है -डाया-बिटीज़ को ,पहले यह दर्जा कोरोनरी -आर्टरी -दिज़ीजिज़ को प्राप्त था .फिलवक्त हम चर्चा करेंगे -डाया -बिटीज़ औ हाई -पर -टेंशन दुरभिसंधि की -स्ट्रेंज बेड फेल्लोज़ दे आर .यानी एक की मौजूदगी दूसरे के प्रबंधन को और भी मुश्किल बना देती है .ज़ाहिर है दोनों के अंतर्संबंध का एक कोमन भौतिक शरीर -किर्या विज्ञानिक विशिष्ठ गुन धर्म है -इन्क्रीज्द फ्लूइड वोलूम(अतिरिक्त रूप से बढ़ा हुआ तरल आयतन ।
ज़ाहिर है मधुमेह के मरीजों में शरीर में मौजूद तरल (फ्लूइड )की कुल मात्रा ज्यादा बनी रहती है .जो रक्तचाप को बढ़ा देती है ।
दूसरा कोमन डिनोमिनेटर है -इन्क्रीज्द -आर्तीरीयल-स्टिफनेस-यानी धमनियों का लोच खोकर कठोर हो जाना -अन्दर से संकरा हो जाना ,रक्त चाप में वृद्धि की दूसरी वजह यही काठिन्नाया(कठोरता ,स्टिफनेस )बनती है ।
अलावा इसके हमारा शरीर जिस प्रकार इंसुलिन हारमोन पैदा और खर्च करता है ,उसमें निरंतर होने वाले बदलाव भी रक्त चाप को बढातेंहैं .इसे ही कहा जाता है -इम्पैयार्ड -इंसुलिन हेंडलिंग ।
दोनों के रिस्क फेक्टर्स (जोखिम पैदा करने वाले कारक ) में से भी कुछ यकसां हैं ।
(१ )ओवरवेट (आदर्श कद काठी के अनुरूप वजन से १२० फीसद या और भी ज्यादा वेट का होना )होना .(२ )चिकनाई -बहुल ,ज्यादा नमकीन ,परिष्कृत शक्कर युक्त भोजन .सफ़ेद औ परिष्कृत चीज़ें (कच्ची बासमती बेहतरीन किस्म का चावल ,चीनी ,मैदा आदि एक ही थाली के चट्टे - बत्तें हैं ..)बिना पालिश किया हुआ चावल ,ब्राउन -राईस ,गुड (जेग्री ) ,गुड की बहिना लाल -शक्कर बेहतर है .मोटे अनाज ,दांतों में फसने वाली हरी सब्जीयाँ और फल बेहतर हैं .गहरे रंग के फल औ तरकारियाँ (ब्लू एंड ब्लेक बेरीज ,बेल पेप्पर्स यानी लाल -पीली -नारंगी रंग की शिमला मिर्च ,ब्रोक्क्ली ,आलिव ,सीताफल ,बेगन ,चुकंदर ,हरा धनिया ,हरी मिर्च ,खीरा ककडी ,सरदा (गहरा पीला रंग लिए ),फालसा ,आडू,जामुन अन्य मौसमी फल औ तरकारियाँ )सस्ते भी हैं ,स्वास्थाय्कर भी ।बचावी उपाय भी यकसां हैं ।
(१ )लापरवाही बरतने पर एक अध्धय्यन के मुताबिक 5 fisad log das saal men ,33 fisad 20 saal aue 70 फीसद ४० साल में उच्च रक्त चाप का शीकर हो जातें है .फैसला आप पर है -आपइन जीवन शैली रोगों को अपनी रहनी सहनी से बेदखल करना चाहतें हैं या इनके संग संग जीना मरना चाहतें हैं ?
यूँ दवाओं के संग कितने ही दायाबेतिक्स खुश फ़हम है -डाया -बिटीज़ के लिए ऐ .सी .इ .इन्हिबीतार्स चलन में हैं ।(२ .)एन्जिओतेन्सिन रिसेप्टर ब्लोकर्स (ऐ .आर .बीज )हैं .(३ .)डाया -युरेतिक्स हैं (मूत्रल दवाएं ,थाई ज़ैड्स )।
प्रबंधन के लिए डॉक्टरी देख रेख नियमित मोनिटरिंग ज़रूरी है .पूरी काया का रोग है डाया -बिटीज़ ,लापरवाही किसी भी प्रमुख अंग को ले डूबेगी ,पूरे परिवार को दिक्कत में ड़ाल सकती है हमारी उदासीनता ।
सन्दर्भ सामिग्री -टाइम्स वेळ
नेस .कॉम .अध्धय्यनों से पता चला है -हाई -पर टेंशन को लगाम देना उतना ही ज़रूरी है जितना ब्लड सुगर्स का विनियमन
सन्दर्भ सामिग्री -टाइम्स वेलनेस .कॉम

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

जीवन का संशोधित प्रतिरूप पेट्री डिस् में ?

एक बार फ़िर क्रैग वेंटर चर्चा में हैं .२४ अगस्त के सम्पादकीय (टाईम्स ऑफ़ इंडिया )ने कहा -कृत्रिम जीवन की और एक और कदम प्रयोग शाला में .तो व्यू-बरक्स -काउंटर व्यू में एक बहस ही छिड़ गई ।(टाइम्स आफ इंडिया ,२५ अगस्त ).
ये वही क्रैग वेंटर है ,जिन्होंने अमरीकी सरकारी योजना से छिटक कर तेजी से मानव -जींस (जीवन खंडों )का नक्शा बनालेने में जुट गए थे .बाद में इनके व्यक्तिगत जीनोम -समूह ने सरकारी समूह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर और भी ज्यादा तेज़ी से काम को आगे बढाया था ।
अब ख़बर है -संशोधित -माइक्रो -आर्गेनिज्म (जीवाणु -रूप )आप पेट्री डिस् में तैयार करलेने की दिशा में एक डग भर लियें हैं .जैव रूप भी ऐसे जो एक छोर पर ऐसे जैव -सफाई -कर्मचारी सिद्ध हो जो महा -सागरों के वक्ष पर फैले -पसरे तैल को साफ़ कर जल जीवों की हिफाज़त करें ,जीवाश्म -इंधनों में से विषाक्त तत्व निकाल बाहर कर साफ़ सुथरा इंधन तैयार करवायें ,फेक्टरियों से निकले अपशिष्टों को ठिकाने लगाएं ,वायुमंडल से विषाक्त तत्व निकाल बाहर कर हमारी हवा को साँस लेने काबिल बनाएं ,अगली पीढी का जैव इंधन मुहैया करवायें ।
मुर्दा चाल को दमदार द्रुत गामी बनाने का माद्दा रखतें हैं -क्रैग वेंटर ।
इस मर्तबा भी वेंटर कुछ कर जाने की उतावली में हैं ,किया इतना भर है -आपने -शोध किया है -माइक्रो -आर्गेनिज्म की इंजीनियरिंग पर ,संशोधित रूप ही रचें हैं ,पहले से मौजूद जैव रूपों के .ज़ाहिर है -खुदा के काम में दखल नहीं दिया है ।
तिल का ताड़ बनाने की हमारी पुरानी आदत है -इसीलियें कुछ समालोचक ,कुछ नाम वर यहाँ भी गालिब हैं -कह रहें हैं एक ऐसा दानव पैदा हो जाएगा जिसका अभी तक विज्ञान गल्पों में भी ज़िक्र नहीं हैं .सारी कयानात ,खुदा की खुदाई को ख़तरा बतला रहें हैं ये तमाम लोग ।
अतीत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है -शोध का पहिया काल गति सा आगे और आगे ही बढ़ता रहा है ,बढ़ता रहेगा ।
भाई -साहिब अभिनव किस्में ही गढ़ी जायेंगी ,जो आज की मानव जन्नय समस्याओं का ज़वाब हो सकता है ,हो सकता है कल को रेडियो -धर्मी कचरे को चट करने वाले ठिकाने लगाने वाले जैव -सफाई -कर्मी हाथ आ जाएँ ?
सात साला शोध का नतीजा है -ये हासिल -जिसमें नए बेक्तिरिं -यम् के दी .एन .ऐ .ने कम अड़ंगा नहीं डाला है -दी .एन .ऐ .के पास एक जन्म जात प्रति -रक्षात्मक तंत्र (इम्मुनिटी फेक्टर )सैदेव ही मौजूद रहा है ।
अलबत्ता इस मुश्किल से जो परिवर्तन -रोधी रही है पार पा ली गई है .अब मुश्किल हमारे दिमागों में है -जो हर परिवर्तन का पुरजोर विरोध करती आई है ।
खामिरे की( ईस्ट )कोशिकाएं इस एवज ली गईं हैं .ईस्ट सेल्स और जैव्प्रोद्द्योगिकी के नए -नए नुस्खें आजमाए गएँ हैं ।
हज़ार साल नरगीश अपनी बेनूरी पे रूती है ,तब जाके पैदा होता है ,चमन में एक दीदावर .

तपेदिक का ख़तरा दोगुना हो सकता है धूम्र पानियों को .

ताइवान में संपन्न एक अध्धय्यन में पता चला है ,धूम्र्पानियों के लिए एक्टिव -टुबेर्कुलोसिस(सक्रीय तपेदिक )का ख़तरा बढ़कर दोगुना हो जाता है .दरअसल तपेदिक का जीवाणु सालों साल हमारे शरीर में सुप्तावस्था में (निष्किरय )पडा रहता है .धूम्रपान इसे जगा देता है ,एक्टिवेट कर देता है ।
ताइवान में १८,००० लोगों पर यह अध्धय्यन किया गया ,जिसमें आम लोगों को शरीक किया गया .पूरे तीन साल चला यह अध्धय्यन ।
गैर धूम्र पानियों के बरक्स धूम्र्पानियों में एक्टिव -टुबेर्कुलोसिस का ख़तरा दोगुना पाया गया ,ब्रिघम एंड विमेंस हॉस्पिटल ,बोस्टन ने यह नतीजे प्रकाशित कियें हैं ।
धूम्र पानियों का रोगरोधी कुदरती तंत्र घुसपैठिया विषाणु और जीवाणुओं का ठीकसे मुकाबला नहीं कर पाताहै .ऐसे में फेफडे अरक्षित रह जातें हैं .अब आप सोच लीजिये -कितना प्यार करतें हैं ,आप ख़ुद से ,"उन से जो आप के अपने हैं ."?

दिमाग को दीवालिया बनाता है -बूढापें में मोटापा

"ओबेसिटी अमंग दा एल्दर्लि केन श्रिंक ब्रेन "जिसे हम सठीयाना कहकर पिंड छुडा लेतें हैं वह बुढापे का रोग है -अल्झाई -मर्ज़ जिसमें दिमाग सिकुड़कर छोटा रह जाता है ,नजदीकी याददाश्त (शोर्ट टर्म मेमोरी ज़वाब देने लगती है ।).
अब विज्ञानियों ने बतलाया है बुढापे में मुट्यानाभी दिमाग के सिक्डाव की वजह बन सकता है .इससे संज्ञान सम्बन्धी (कोग्नीतिव )समस्यायें पैदा हो सकतीं हैं ।
मोटापे से ग्रस्त बुजुर्गों का दिमाग और तेज़ी से बुढ़ाता है ,१६ साल ज्यादा बूढा हो जाता है उम्र के बरक्स दिमाग उनके बरक्स जो छरहरे हैं ,पतले दुबले हैं .केलिफोर्निया विश्वविद्द्यालय के पाल टोम्सन ने अपने एक अध्धय्यन में उन ९४ लोगों के दिमाग का जायजा लिया जिनका बोडीमॉस इंडेक्स अपेक्षतया ज्यादा था ,इनके दिमाग का वह हिस्सा जो नियोजन औ याददाश्त से ताल्लुक रखता है (फ्रंटल एंड टेम्पोरल लोब )आकार में कमतर पाया गया .(आप के किलोग्रेम में वज़न को आप की मीटर में व्यक्त लम्बाई के वर्ग से भाग देने पर आप का बोडी मॉस इंडेक्स आ जाएगा ).वयस्क के लिए इसका आदर्श मान २३.९-२४.९ है ।
स्मालर ब्रेन दिमागी अप्विकास (डी-जेनरेशन ) की और इशारा है ,आपको डिमेंशिया हो न हो ,आसार अच्छे नहीं हैं .औसतन ५१ मोटापे से ग्रस्त लोगों के दिमाग ६फ़ीसद छोटे पाये गए ,बरक्स सामान्य वजन वाले लोगों के .जबकि १४ लोगों के मामले में यह कमी बेशि८फ़ीसद पाई गई ।
अलावा इसके मोटे(ओवर वेट )लोगों के दिमाग उम्र से ८ साल ज्यादा बूढे पाये गए बरक्स सामान्य लोगों के .जबकि ओबेसी(जिनका वजन आदर्श से १२० फीसद या और भी ज्यादा था ) के मामले में दिमाग की उम्र इनकी वास्तविक उम्र से १६ साल ज्यादा दर्ज की गई .न्यू -साइंटिस्ट विज्ञान पत्रिका ने टोम्सन के शोध नतीजे प्रकाशित कियें हैं ।
दरअसल शरीर में चर्बी का ज्यादा जमा होना दिमागी कोशिकाओं को पूरा रक्त और आक्सी जन नहीं पहुँचने देता ,फल्ताया मेटाबोलिज्म (रेट आफ बर्निंग केलोरीज़ )घट जाती है जो न्यू -रोंस (दिमागी कोशिकाओं )की मौत की वजह बनती जाती है ।
अलबत्ता कसरत (हाड तोड़ )इसकी क्षति पूर्ति कर सकती है ,उतना हिस्सा जो सिकुड़ गया है ,उसे रोक भी सकती है .

गंगा मेरी माँ का नाम ,बाप का नाम हिमालय कब तक ....?

जल वायु परिवर्तन की आहट आप सुनें न सुने आहट धमाके दार है .पाँच सालों में कंप्यूटर की जैसे कई पीढी आ जातीं हैं ,वैसे ही उपग्रह से लिए चित्र बतला रहें हैं -पृथ्वी का परिमंडल पहाडों की धवल सफेदी औ समुन्दरों की नीलिमा तेज़ी से अपनी काया बदल रही है .सफेदी कम औ नीलिमा बढ़ रही है ।
सफ़ेद कपडा जैसे गर्मी को बहुलांश में लौटा देता है ,सातों आपात तरंगों को वापस भेज देता है सतरंगी प्रकाश की ,वैस ही पहाडों की धवलता जहाँ गर्मी को लौटा देती हैं वहीं समुन्द्रों का नीला जल अधिकाधिक गर्मी को रोक लेता है .पूरी एक केलोरी ऊर्जा चाहिए एक ग्रेम जल को १ सेल्सिअस गरमाने के लिए .समुन्दरों में तो अथाह जल राशि है ,कितनी गर्मी रोकते होवेंगे समुन्दर ?
एक अनुमान के अनुसार रिफ्लेक्तिविती घट रही है ,एब्जोर्तिविती बढ़ रही है .जहाँ ८० फीसद गर्मी लौतनी चाहिए थी (हिम -चादरें सही सलामत होतीं तो ऐसा ही होता )वहाँ अब नीले समुन्दर ८० फीसद तक गर्मी रोक आलमी गर्मी की वजह बन रहें हैं ।
बड़ा नाज़ुक है पृथ्वी का ताप -बजट ,एक सेल्सिअस की घट बढ़ रंग लाती है ,४फ़िसद की घट बढ़ एक छोर पर हिमयुग तो दूसरे पर जलप्लावन की वजह बनती आई है ।
बड़ा ही तुनक मिजाज़ है जलवायु का मिजाज़ .२००७ की गर्मी ने हमें आगाह किया था -इस दरमियान उत्तरी ध्रुव क्षेत्र से बड़े पैमाने पर हिम चादरों का सफाया हुआ था ,जलवायु परिवर्तन रोग -डेंगू के रूप में बरपा था ,कहर बनके टूटा था .सूखे की अपनी विभीषिका कम ना थी ।
उच्च अक्षांशिय हिमनद बह गए थे ,गल खप गए थे .इंडीज़ औ हिमालय भी इसकी चपेट में आए .इत्तेफाक है -पृथ्वी पर जीवन है ,सूरज से सही दूरी ,वायुमंडल को रोके रखने के लिए पर्याप्त गुरूत्व ,तापमान औ आद्रता जीवन को सम्भव बनाए रही है .लेकिन कब तक .हमारी छेड़ छाड़ प्रिकिरती के साथ खिलवाड़ रुक नहीं रहा है .पञ्च तत्त्वों की तत्त्विकता हम नष्ट करने पर उतारू हैं ।
यहाँ न कोई ग्रीन पार्टी है औ ना पर्यावरण -पारिस्तिथि ,जलवायु परिवर्तन राजनितिक अजेंडे पर है ."पालुतार्स मस्त पे " की धुन लगाई हुई है हमने .कोपेन हेगन जाने के लिए हम कितने तैयार हैं ?क्लीन डिवलपमेंट मेकेनिज्म हमारी फौरी ज़रूरत है .संसाधन औ अभिनव जलवायु मित्र प्रोद्द्योगिकी एक दूसरे से चस्पां हैं ,जुदा नहीं है .भूल जाइए हमारा कार्बन फुटप्रिंट कम है ,ज्यादा की गुंजाइश भी कहाँ है ?
वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड अपनी उपरी सीमा ३५० पी .पी .एम् .से बढ़कर कबकी ३९० हो चुकी है ,इसमें साल के बाद हर साल २ पी .पी .एम् .का इजाफा हो रहा है .(१० लाख भागों में ३५० भाग कार्बन -डाइऑक्साइड का होना खतरे की घंटी है ,जो कबकी बाज़ चुकी है )
फिजिक्स (भौतिकी )और केमिस्ट्री (रसायन विज्ञान )के नियमों को सिर्फ़ ब्लेक होल ही तोड़ सकता है .अपनी नादानी में हम इन नियमों का अतिक्रमण अपनी जान की कीमत पर कर रहें हैं ।
सोचियेगा एक दिन हिमालय से सब हिम नद गायब हो जायेंगे ,गंगा का सरस्वती जैसा हश्र हो जाएगा .तब आप नैनो का क्या करेंगे ?नैनो जो कथित विकाश का प्रतीक है ,आम आदमी की सवारी है .आम औ ख़ास ब्लेक होल बनेगें?
प्राकृति से मुकाबला है ,ऊर्जा सुरक्षा भी ज़रूर चाहिए औ उसके लिए चाहिए कटिंग एज टेक्नोलाजी .७० अरब डालर न सही थोडा कम लेकर लौटो -कोपेनहेगन इम्तिहान है -विकाश शील देश झोली फैलाए हैं .faislaa pronnat deshon ko karnaa hai .गेंद अमीर देशों के पाले में हैं .

सोमवार, 24 अगस्त 2009

नकार की मुद्रा में है सरकार .

भूजल का दोहन हम बेहिसाब कर रहें हैं -आख़िर एक्विफायार्स के री -चार्ज होने की भी एक सीमा होती है ,हम उसका अतिक्रमण कर चुके है ,४५ फीसद ज्यादा जल उस सीमा से हम कृषि कर्म और पेय जल में बरतरहें है फलस्वरूप उत्तर भारत के तीन राज्यों पंजाब ,हरयाणा और राजस्थान में भूजल एक फुट सालाना की रफ़्तार से हमारी पहुँच से बाहर जा रहा है ,हम दोहन कर रहें हैं इस जलराशि का .वाटर सेव्ड इज वाटर कन्ज़र्व्द
उत्तर प्रदेश की मायावी सरकार के मुताबिक ८० फीसद ज़मीन पर खेती किसानी हो रही है ,जबकि किसान कृषि रकबा २५ फीसद ही बतला रहें हैं ।।
जल प्रबंधन के प्रति कितनी लापरवाह रहीं हैं सरकारें उक्त आंकडे साक्षी हैं ।
ड्रिप -इर्रिगेशन ,ड्राई -फार्मिंग कई इलाकों में वांछित है ,इजराइल ने यह कामयाबी से कर दिखाया है .उनके सहयोग -सहकार से ,टेक्नालाजी ट्रांसफर मिशन के तहत यह काम हम भी कर सकतें हैं ।
गन्ना और चावल की खेती सघन सिंचाई मांग ती है ,जहाँ पानी का तोडा नहीं है ,परम्परा गत ढांचा है सिंचाई का वहाँ यह उगाए जाएँ ।
किसान को बिजली पानी मुफ्त क्यों ?कीमत से ही कीमत है ,किफायत है ,किफायत सारी है .
वर्षा जल की खेती सिर्फ़ खाना पूर्ति के लिए हुई है ,जबकि इसका व्यापक प्रचार -प्रसार ज़रूरी है .नगर नियोजन में इसका समावेश वक्त की मांग है ,और वक्त किसी का इंतज़ार नहीं करता ।
चेक डेम्स की बात करते सुनते एक ज़माना बीत गया -विज्ञान लेखन में इसका गत दशकों में बारहा ज़िक्र हुआ ,लेकिन हुआ क्या -वही धाख के तीन पांत .बड़े बाँध कब का ज़वाब दे चुके हैं .सिल्ट से लबालब हैं ।
पहले समस्या का रेखांकन तो हो -सरकार नकार की मुद्रा में हैं .ऊपर वाला आकर कुछ ठीक वीक नहीं करेगा ,एक जन आन्दोलन ज़रूरी है .

आराम बाई चीज़ है ,मुह ढक के सोइए .....

"किस किस को याद रखिये ,किस किस को रोइए ,आराम बड़ी चीज़ है मुह ढक के सोइए "-सेक्स से ज्यादा मुफीद है नींद .एक ताजातरीन सर्वेक्षण से पता चला है -सेक्स से भी बेहतर है एक भरी पूरी नींद ।
एक आलमी (ग्लोबल )अध्धय्यन में १२५०० ऐसे लोगों का जायजा लिया गया जो घुमंतू किस्म के थे .हमेशा सफर में रहते थे ।
वेस्तीं होटल्स ने संपन्न किया यह अध्धय्यन जिसमें ५२ फीसद एशियाइयों ने एक अच्छी नींद को ग्रेट सेक्स से ऊपर बतलाया .न्यू -स्ट्रेट्स टाइम्स आन लाइन ने नतीजे प्रकाशित किए हैं ।
पता चला -५३ फीसद सिरहाने नींद की गोली रखकर सोते हैं ,सर्व व्यापी चोकलेट पीछे छुट गई इस मुकाबले में ,जबकि ५६ फीसद ने किसी रिलेक्सेंट ,स्लीप या स्ट्रेस मेडिकेशन का सहारा लिया .लेकिन ज़नाब घोडे बेच कर सोना भी एक कला है ,जीवन शैली है .इसीलिए कहा गया -अर्ली तू बेड ,अर्ली तो रइस ,देत इज दा वे तू बी हेप्पी एंड वाइज़ .

क्या है लोटस इफेक्ट ?

कमल पुष्प मल और विक्षेप क्या जल का भी स्पर्श नहीं करता ,विकर्षित कर देता है जल को ,इसी हाई -वाटर रिपेलेंसी (सुपर -हाई डरो-फोबिसिती ) को कमल प्रभाव (लोटस इफेक्ट )कहा जाता है .यूँ बेशर्म आदमी को चिकना घड़ाकह दिया जाता है .गंजे की चाँद और चिकना घड़ा यकसां हैं .कमल से ही बनता है कमला यानी लक्ष्मी .नीरज ,जलज ,पंकज कई पर्यायवाची शब्द हैं कमल के लिए -यानी जो जल में ,कीचड में जन्मा लेकिन कीचड का स्पर्श नहीं -कुछ व्यक्तित्व ऐसे ही हैं ,गंदगी में रहकर भी मन साफ़ ,गंदगी का स्पर्श नहीं और ऐसे भी महारथी हैं ,गंदगी क्या ,मल भी पकड़े रहतें हैं .मन चंगा तो कठोती में गंगा ।
इधर गंगा जल में खासुसिअत थी ख़ुद -बा -ख़ुद साफ हो जाने की ,अब तो इ -कोलाई बेक्टीरिया का डेरा है -पेय नहीं रह गया है -गंगा जल ।
लेकिन कमल में आज भी स्वयं शोधन की यह क्षमता विद्दय्मान है तो क्यों ?क्यो नहीं पकड़ता कमल पुष्प और उसकी पांखडी(पीटल,लीव्स )पंक ,मल और विक्षेप ?
एशियाइयों को गत २०००सालो से ये राज मालूम था .१९७० के दशक में वनस्पति विज्ञानी विल्हेल्म बार्थ्लात ने एक सूक्ष्म दर्शी का स्तेमाल करते हुए बतलाया -कमल पांखडी की एक विशेष सरंचना है .इसकी सतह पर पादप कोशिकाओं के गुच्छ से एक उभार नीपिल नुमा मौजूद है जिसमें है बाहरी कोशिकाओं द्वारा तैयार एक हाई -डरो -फोबिक वेक्स (जल -विकर्शी-मोम )मौजूद है ..इस अति सूक्ष्म प्रोजेक्शन की ऊंचाई और चोडाई१० -२० मिक्रोमीटर और १० -१५ माइक्रो -मीटर तक है .इसी मोम से टकरा कर पंक कण छितरा जातें हैं ,जबकि जल की बूंदियाँ पंक को पकड रखतीं हैं .परस्पर आकर्षण (कोहेज़ं )की वजह से .पंखडी की सतह जल और पंक के बीच तो आकर्षण लेकिन पंखुडी और पंक के बीच इस आकर्षण को घटा देती है .विकर्षण पैदा कर देती है ,सारा खेल इसी आकर्षण और विकर्षण का नतीजा है ।
यही मोम की छोटी सी नीपिल रोगकारकों को कमल पुष्प से दूर रखती है ,फफूंद और एल्गी से बचाए रहती है ।
नैनो -प्रोद्द्योगिकी के माहिर कमल पुष्प के इस गुन से सीख लेते हुए नए -नए इलाज़ ,कोटिंग्स ,रूफ टाइल्स ,फेब्रिक्स और पेंट्स बना रहें हैं जो वाटर प्रूफ़ हैं ,जल -रोधी हैं ,गीले नही होतें हैं .कमल इसीलियें तो हमारा राष्ट्रीय पुष्प भी है .लेकिन कोई राजनीती में आया मानस इस से कुछ सीखने को तैयार नहीं हैं .गर्दन तक पंक में सने हैं सब .

रविवार, 23 अगस्त 2009

क्या है ,हे -फीवर ?

स्लेश्मल झिल्ली (मूकस-मेम्ब्रेन ) की एलर्जी है ,बीमारी है हे- फीवर ,टाईप-१ ,हाई पर सेंसिटिविटी रिएक्शन है ,हे -फीवर .एस्मा (दमा रोग ,और हैव्स ,चर्म रोगों की तरह )की तरह प्रोटीन सेंसिताई -जेशन हैं ,इसकी वजह .जिसमें नासिका (नाक )और उपरी वायु मार्गों (एअर पेसेजिज़ )की स्लेश्मल झिल्लियों में सोजिश ,आंखों से पानी आना ,सिरदर्द और दमा रोग जैसे लक्षण पैदा हो जातें हैं .इसे ही एलर्जिक राय -नाइ --तिस ,पोली नोसिस ,पिरिओदिक राय -नाइ -तिस भी कह दिया जाता है ।
फूली फूली सरसों किसी की जान पे बन आती है ,तो कोई प्रकिरती के रंगों में खो जाता है ।
हवा में तैरते इतराते पराग कण ,पोलें ग्रेन्स ,फफूंद के स्पोर्स (बीजाणु ) हे फीवर की वजह बन तें हैं ,चंद लोगों में ।
(१ )स्प्रिंग टाईप आफ हे फीवरमें बांज वृक्ष के ,एश (उत्तरी अमरीका में पाये जाने वाला वाल नत का वृक्ष ),इल्महिकोरी आदि वृक्षों के पोलेंस इस एलर्जी डिजीज की वजह बनतें हैं ।
(२ )समर टाईप हे फीवर कई तरह की ग्रासिज़ (घासें )प्लान्तें ,सोरेल ,गाजर ग्रास ,कोंग्रेस ग्रास इस एलर्जी को भड़का देतीं हैं ।
(३)पतझड़ यानी फाल -राग्वीड्स के पोलेंस इसकी वजह बन जातें हैं ।
(४ )नॉन सीजनल हे फीवर में इस प्रतिकिर्या को एनीमल दंदर ,धूल पालतू (पेट्स एनिमल्स )के बाल ,बिष्टा आदि ,हे और स्ट्रा ,हाउस दस्त आदि ,कई दवाएं और खाने की चीज़ें हवा देतीं हैं .रोग एक एलर्जन्स अनेक ।
दूर रहिये इन एलर्जी कारक चीज़ों से ,पहचानिये इनको यही इलाज़ है .अलबत्ता मास्क और नेज़ल फिल्टर्स मदद गार हो सकतें हैं .एपिनेफ्राइन ,एंटी -हिस्तामिंस (एलर्जी -रोधी दवाएं )नेज़ल द्रोप्स या नेज़ल स्प्रे ,खाने की गोलियों के बतौर दिए जातें हैं ।
अस्तेमिजोल ,तर्फीनादाइन आदि ऐसे एंटी हिस्तामिंस हैं जो एन्तिकोलिनार्जिक दुष्प्रभावों से मुक्त हैं .फैसला अपने पारिवारिक चिकित्सक को करने दीजिये .आप सिर्फ़ एलर्जन्स (एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थों को पहचानिये .इधर दी -सेन्सिताइज़ेशन भी बचावी चिकित्सा के बतौर होने लगा है -इस एव ज एलर्जन्स का सत्व (पोलें एक्सट्रेक्ट आफ एलार्ज़ंस )टीके के बतौर दिया जाता है .अलबत्ता खाने की चीज़ों की शिनाख्त आप ख़ुद कीजिये ,बचिए एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थों से .

ग्लेशिअर्स का पिघलना रंग लाएगा धुरी का झुकाव बदलने लगा है .

एक हालिया अध्धय्यन ने इस और साफ़ इशारा किया है ,विश्वव्यापी तपन से गरमाए समुन्दर वर्टिकल (ऊध्वाधर )के साथ पृथ्वी के वर्तमान झुकाव में (२३.५)में बदलाव की वजह बन रहें हैं ।
जैसे जैसे पृथ्वी के गिर्द द्रवय्मान वितरण (दिस्त्रिबूशन आफ मॉस )में बदलाव आ रहा है ,पृथ्वी का नर्तन भी बल खा रहा है .पृथ्वी की धुरी ,नर्तन के साथ साथ वोबिल भी कर रही है ,अस्थिर है ,धुरी का झुकाव .अलबता अब तक यह धुरी लट्टू की तरह घूमती हुई एक कोण (शंखु )बनाती रही है .वैसे ही जैसे कई मर्तबा आप ने छत -पंखे को डावांडोल हो नर्तन करते देखा होगा .लेकिनाब इसका झुकाव कम ज्यादा होने लगा है
आइस शीट्स के विश्वव्यापी तापन से गलने -पिघलने से ,समुन्दरों के गरमाने से पृथ्वी की उथली समुंदरी ताखों (अर्थ्स शेलोवर ओशन शेल्व्स में) ज्यादा पानी जमा होने लगा है ।
इंटर -गवर्मेंटल पेनल आन क्लाइमेट चेंज ने प्रगुक्ति की थी ,२१०० इसवी तक ग्रीन हाउस गेसों का वायुमंडल में पस्राव दोगुना हो जाएगा ।
फलस्वरूप नर्तन अक्स का उत्तरी ध्रुव (सिरा )अल्स्कऔ हवाई की तरफ़ एक साल में १.५ सेंटीमीटर की रफ़्तार से खिसकने लगेगा ।
न्यू -साइंटिस्ट में प्रकाशित एक रपट के मुताबिक विश्वव्यापी तापन को अभी तक नगन्न्य ही माना जाता था ,लेकिन अक्स के वोबिल में दर्ज बदलाव अब इसकी अनदेखी की इजाज़त नहीं देतें ।
हम जानतें हैं ,पृथ्वी अपनी अक्स पर एक लट्टू की मानिंद घूम रही है .स्वयं अक्स भी जो ऊर्ध्वाधर के साथ २३.५ अंश पर झुकी हुई है ,एक कों बना रही है ,वोबिल कर रही है नर्तन अक्स .इसलिए झुकाव स्थिर नहीं है ,बदलता रहा है .जिसकी वजह इतर कारणों से पृथ्वी के गिर्द द्रव्यमान वितरण में आ रहा बदलाव है ।
नासा की जेट प्रोपल्ज़ं लेब ,.पासादीना के फेलिक्स लेन्द्रार कहतें हैं ,लट्टू की मानिंद घूमती पृथ्वी के एक और यदि आप ज्यादा द्रव्यमान रख देंगें ,पृथ्वी का अक्सीय झुकाव बदल जाएगा .जलवायु परिवर्तन इसकी ज्यात वजह बन -ता रहा है .
खिसकते ,पश्चगामी ग्लेशियर ,गलती पिघलती हिम -चादरें भी इस लड़ख्दाहत ,पिच ओवर की वजह बन रहीं हैं .लेन्द्रार और उनके साथियों ने पता लगाया है ,ग्रीन्लेंद की हिम पिघलने से पृथ्वी की अक्स २.६ सेंटीमीटर सालाना की डर से टिल्ट होने लगी है .आइन्दा सालों में इस झुकाव में इजाफा हो सकता है ।
पता यह भी चला है ,ग्रीन हाउस गैस से पैदा समुंदरी तापन भी इस झुकाव में बदलाव की वजह बन रहा है .पहले समझा जाता था ,सागरों का फैलाव द्रव्यमान वितरण की वजह नहीं है .हम जानतें हैं पानी ४ सेल्सिअस तापमान से ऊपर गर्म करने पर लगातार फैलता है .यही पानी शेलो शेल्व्स में जमा हो जाता .,है

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

जसवंत जी की किताब क्या आई ,हमें अपने देश में चलने वाली राजनितिक धाँधली की ,दोगले पन की तस्वीर थोडी और साफ़ हुई .मसलन अपने रक्त -रंगीयों (लेफ्टियों )की इस मुद्दे पर प्रति -किर्या देखिये -किताब के मुद्दे पर ,अभिव्यक्ति की आज़ादी पर आज जो लोग (मार्क्स -के गुलाम )जसवंत -जी के साथ खड़े दिखलाई दे रहे थे ,कल तसलीमा नसरीन को ,उनकी किताब को पश्चिमी बंगाल के लिए खतरा बतला रहे थे .ये वहीलोग हैं जो बीजिंग में वर्षा होने पर हिन्दुस्तान में छाता खोल लेते हैं ।
और ये इस्साला प्रजातंत्र कैसा है ,जहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी को आज़ादी का सबसे बड़ा प्रतीक बतलाया जाता -लेकिन व्यवहार में यही अभिव्यक्ति की आज़ादी हमारी रैखेल है .,प्रजातंत्र को ,पार्टी तंत्र को इससे बड़ा खतरा है ।
एक किताब लिखो औ शहीद हो जाओ -किताब पढ़ना -लिखना मना है .दाल रोटी खाओ ..............के गुन गाओ .

स्वां-इन फ्लू के झामेलेमें अन्य छुतहा रोगों की अनदेखी .

बे शक भारत में खबरिया चेनलों के सर पे चढ़े स्वां -इन फ्लू के लिए पूरे इंतजामात नहीं हैं ,लेकिन अन्य रोगों की मुत्ताल्लिक ही भारत सरकार ने जिसने सेहत के मामलों को हाशिये पर रख्खा है कौन से तीर चलाये हैं .बामुश्किल ३० लोग अब तक स्वां -इन फ्लू का ग्रास बने हैं ,अधिकृत -अनधिकृत तौर पर ।जबकि बेतहाशा शोर है ,मीडिया -हाइप है -स्वां इन फ्लू का .
लेकिन २००८ में १५ लाख मलेरिया औ ८ लाख तपेदिक के मरीज़ थे .इस साल हर रोज़ १०००लोग तपेदिक से मरे ,जबकि तपेदिक एक आम फहम रोग है .लेकिन उन लोगों का कोई क्या करे जो इलाज़ बीच में छोड़ खड़े होतें हैं ,औ एक मर्तबा फ़िर बीमारीकी दवा-प्रतिरोधी किस्म का शिकार हो जातें हैं ।
इतने बड़े मुल्क में कोई ५ करोड़ लोग किसी भी समय पर इस या उस संक्रमण की चपेट में देखे जातें हैं .लेकिन चिकित्सा विशेषज्ञों की तंगी है ,संचारी रोग संस्थान आप उँगलियों पर गिन लीजिये ।
हम तो समझते थे यहाँ सिर्फ़ मनो रोग विदों का टोटाहै ,लेकिन ये तंगी तो सर्व -व्यापी है .मनोरोग विद तो एक लाख आबादी के लियें एक से भी कम हैं ।
तंगियों कमी बेशी का देश है ये -सिर्फ़ वी .आई .पी .सुरक्षा में तंगी नहीं है .पुलिस से लेकर कचेहरी तक रिक्तियां ही रिक्तियां देख लीजिये।
सब के लिए सेहत ,नरेगा फरेगा एक फरेब से कम कुछ भी नहीं है ।सुनतें हैं एक ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन भी है ।
यहाँ पर छुतहारोगों यथा -इन्फ़्लुएन्ज़ ,एच .आई .वी .एड्स .,उदर-आंत्र-sहोथ यानि गेस्ट्रो -एन्तेरितिस ,गेस्ट्रो -इन्तेस्तिनल गडबडियां ,हैजा (कोलरा ),हीपे -taaee -तिस ,हुक -वार्म -इन्फेक्शन ,मलेरिया काला अज़र ,दिमागी मलेरिया ,दिमागी तंतु शोथ के अलावा सीविअर -एक्वायर्ड -रेस -पि -रेत्री -सिंड्रोम (एस .ऐ .आर .एस .),एवियन फ्लू ,स्वां इन फ्लू आते जाते रहतें हैं .नए से नए इन्फेक्शन लो ।स्वां इन फ्लू तो अभी रूकेगा .
एच १ एन १ तो पब्लिसिटी खींच गया ,काबू में है ,बेशक विश्वमारी (पेंदेमिक )घोषित है .लेकिन दूसरी सर्व -कालिक बीमारियों की किसे परवाह है ,कौन पूछता है -उलटी -दस्त से (गंदे पानी से पैदा पीलिया को )मरने वाले नौनिहालों को ।
जबकि छुतहा रोगों से बचा सकता है -ज़रूरत सही प्रशिक्षण ,एक भरे पूरे स्वास्थ्य कर्मी तंत्र की है .हेल्थ और हाई -जीन (सेहत औ सेहत से ताल्लुक रखने वाला विज्ञान )सचेत समाज बनाने की है .राजनितिक वारिस कब तक पैदा करते रहियेगा .

सेहत के लिए पाप -कोर्न .

विदेशों में नौ -दस अनाजों से तैयार की जाती है -डबल रोटी ,होल ग्रेन ब्रेड ,कोर्न का डेरा खूब रहता है -नास्ते में ,ब्रेक फास्ट सीरिअल में .ड्राई -फ्र्रुट्स की लोडिंग भी ।
अब पता चला है ,एक एंटी -ओक्सिडेंट पोली -फीनोल का डेरा रहता है ,इनमें .,जो केंसर ,हिरदय रोग ,अन्य कई मर्जों में बचावी भूमिका निभाता है ।
पोली -फीनोल्स उन फ्री -रेडिकल्स को निकाल बाहर करतें हैं ,जो सेहत के लिए नुक्सान दाई हैं ।
अन -पैर्द एलेक्त्रों लिए होता है परमाणुओं का एक समूह .यही फ्री रेडिकल्स हैं ।
आप जानते हैं -पोली फीनोल्स ताजे फल ,तरकारियों ,चोकलेट वां -इन (अंगूरी शराब रेड एंड वाईट वां-इन ),काफ़ी चाय आदि में मौजूद हैं .कोर्न में ज़रा ज्यादा ही .

धूम्र पान और जायका ,स्वाद -कलिकाओं का खेल .

६२ ग्रीस सेनानियों की ज़बान (टंग,जीभ ) का अध्धय्यन विश्लेषण कर विज्ञानियों ने निष्कर्ष निकाला है ,स्वाद -कलिकाएँ (टेस्ट -बड्स )धूम्र -पानियों की ना सिर्फ़ कम हो जातीं हैं ,कुंद भी ,यानी बेजायका ।
थेस -सालो -नाय -की स्तिथ अरस्तुविश्व्विद्दायला शोध टीम के मुखिया पाव्लीदिस पाव्लोज़ ने टेस्ट -थ्रेश -होल्ड (स्वाद की सीमा )का पता लगाने के लिए विद्दयुत प्रेरण (इएलेक्त्रिकल स्तिमूलेषण ) तथा इंडो -स्कोप का स्तेमाल किया .इस प्रकार सेनानियों की ज़बान में मायजूद एक खास टेस्ट बड(स्वाद कलिका -फंजिफार्मपेपिले ) की बनावट और संख्या का जायजा लिया गया ।
जबान में बिजली भेजकर एक विशिष्ठ धात्वीय स्वाद (मितेलिक टेस्ट ) पैदा किया गया ।
आज़माइशों के दौरान २८ धूम्र्पानियों का स्कोर सबसे ख़राब रहा बरक्स ३४ गैर धूम्र -पानियों के .यानि धूम्र पानियों में स्वाद कलिकाएँ कमतर भी थीं ,नाकारा भी ।
बे स्वाद लगती है ,बे जायका हर चीज़ धूम्र पानी को -इसीलियें शायद कहा जाता है -फलां ब्रांड की सिगरेट पीने वालों की बात ही कुछ और है .इन टेस्ट बड्स तक कमतर रक्त आपूर्ति हो पाती है .इनकी टेस्ट बड्स बेकार हो जातीं हैं ,इसलिये सिगरेट के अलावा हर चीज़ बेजायका लगती है ।
एक एक्स -स्मोकर के नाते मैं ख़ुद इस बात को मानता हूँ ,उस दौर मैं खाना खाते वक्त भी ध्यान विल्स रेगुलर साइज़ पर रहता था ,और अब कोई एक सिगरेट हमारे आगे पीछे सड़क पर भी पी रहा हो ,तो माथा ठनक जाता है ।
एक धूपबत्ती ,अगरबत्ती माहौल को खुशनुमा और एक सिगरेट ,नागँवार बना देती है .परिवेश को काटता है ,प्राइ-मरी ,सेकंडरी ,साइड स्ट्रीम स्मोक .उतनी पेसिव नहीं है -पेस्सिव स्मोकिंग .

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

टोन-डेफ्नेस (अमुसिया )क्या है ?

कुछ लोग सांगीतिक ध्वनियों में अन्तर नहीं कर पातें है ,इसी स्तिथि को टोन -डेफ्नेस या अमुजिया कहतें हैं ।
आपने देखा होगा जब आपकिसी पसंदीदा गाने की -तालमें मस्त होकर रेडिओके संग संग गाने लागतें हैं ,तब कई लोग अपने कानों को हाथों का कप बनाकर धक् लेतें हैं ।
क्या आपने किसी वृन्द -गान के निदेशक को गायकों की मण्डली में से किसी एक को यह हिदायत देते सुना देखा है -होठों की गति ,लिप -मोवमेंट के साथ संगीत की ले तालके साथ गाते दिखिये ।
कुछ्लोगों के दिमागी सर्किट में वायरिंग की गड़बड़ हो सकती है ।
ये लोग सुनते तो सामान्य है ,श्रवण शक्ति ठीकठाक होतीहै ,सम्भासन भी ठीक कर लेतें हैं ,लेकिन स्वर के आरोह -अवरोह ,पिच (फ्रीकूएंसी )का अनुकरण नहीं कर सकते ।
परिवारों में चलनेवाला श्रवण रोग है ,टोन -डेफ्नेस ।
एक अनुमान के अनुसार ४-१७ फीसद लोग इस श्रवण नुख्श की चपेट में हैं .बोस्टन में एक सीमित अध्धय्यन के तहत सामान्य औ टोन-डेफ्नेस से ग्रस्त लोगों के ब्रेन -स्केन में फर्क देखा गया ।
अमुजिया से ग्रस्त लोगों के दिमाग के उस , हिस्से में जिसका सम्बन्ध आवाज़ सुनने ग्रहण करने और बोलने ध्वनी पैदाकरने से है ,कमतर कनेक्शन हैं (सर्किट हैं ).यह वैसे ही है जैसे दो द्वीपों के बीचहाई - वे का होना ।
हो सकता है इस असामान्यता की वजह एक ऐसा नूरोलोजिकल -सिन्द्रोम्र ,रहा हो ,जिसका पहले पता न चला हो .शिनाख्त न होसकी हो .इस सिन्द्रोम्में जो एक प्रकार का स्पीच और लेंग्वेज दिस -ऑर्डर ही है ,परसेप्शन (श्रवण ,आवाज़ का सुनाई देना )से सम्बन्धी (पर्सेप्चुअल )और अंग -संचालन से सम्बन्धी मोटर रीजन ख़राब रहता है ,इम्पैर्द रहता है .दोनों के बीच साफ़ सुंदर वायरिंग नहीं होती है ।
मेडिकल सेंटर और हारवर्ड मेडिकल स्कूल के विज्ञानी इसकी पुष्टि करतें हैं ।
इस निष्कर्ष पर पहुँचने केलिए "दिफ्युसन टेन्सर (मेग्नेटिक रेजोनेंस आधारित इमेजिंग तकनीक )का स्तेमाल्किया गया ।
राईट टेम्पोरल एंड फ्रन्टल लोबस के बीच कनेक्शंस की जांच पड़ताल की गई .(यानि सीधा कण -पाती का शंख औ आगे वाले शंखों के बीच ताल मेल की शिनाख्त की गई ।)
यह एक प्रकार का नूरल -हाई -वे है (नूरानों ,दिमाग की एक्कोशिका को नूरां कहतें हैं .)जिसे आर्कुएत फेस्सिकुलास कहतें हैं .इसका सम्बन्ध संगीत औ संभाषण सुनने से है .,बोलने आवाज़ पैदाकरने से स्वर लहरी के संग संग चलने से है ।
श्रवण जांच के दौरान ब्रेन -इमेजिज़ देखने पर २० में से आधे लोग टोन डेफ पाये गए .इनमे आर्कुएत फेस्सिकुलास का वोलुऊम (आयतन )भीकम पाया गया .इसमें तंतु भी कमतर थे .

बुधवार, 19 अगस्त 2009

मीग्रें -एन (आधा शीशी का पूरा सर दर्द )के लिए स्किन पेच .

निकोटिन पेच के बारे में आपने ज़रूर सुना -पढा होगा ,कमसे कम बराक ओबामा साहिब के मामले में ,कैसे आपने इसका स्तेमाल सिगरेट -छुडाई में किया -आजमाया .इंसुलिन पेच भी ख़बरों में रहा है ,जो सूइयों से मुक्ति का ज़रिअबना है ।
और अब मीग्रें -एन से मुक्ति के लिए "स्किन पेच ,मीग्रें -एन पेच की चर्चा है ।
नु -पथे इंक्स दवा कम्पनीने एक ताज़ा अध्धयन में स्किन पेच को खाने की गोलियों से ज्यादा कारगर पाया है .स्पेशल्ति दवा निर्माताओं में शुमार है यह दवा कम्पनी ।
ज़ल्रिक्स नाम है इस फाये का जिसे बेंड-एड की तरह चमड़ी से चस्पां कर दिया जाता है.फलतय दवा -सुमा -ट्रिप -तान चमड़ी के निचे धीरे धीरे रिस कर खून के दौरे में शरीक हो जाती है ।
उन लोगों के लिए यह दवा विशेष तौर पर तैयार की गई है -petch के रूप में जिन्हें मितली (नौजिया ) की शिकायत रहती है -आधा शीशी के इस पूरे सर दर्द में .५५ feesad लोग नौजिया की शिकायत karten हैं .aavaaz और roshniyaan भी इन्हें नहीं suhaati ,अंधेरे band kamre रास aaten हैं .avaanchhit paarshv प्रभाव (दवा के dusprabhav ) भी halke fulke dhikhlaai diyen हैं ,gambhir paarshv prabhav नहीं देखने को मिलें हैं .

मीग्रें -एन (आधा शीशी का पूरा सर दर्द )के लिए स्किन पेच .

निकोटिन पेच के बारे में आपने ज़रूर सुना -पढा होगा ,कमसे कम बराक ओबामा साहिब के मामले में ,कैसे आपने इसका स्तेमाल सिगरेट -छुडाई में किया -आजमाया .इंसुलिन पेच भी ख़बरों में रहा है ,जो सूइयों से मुक्ति का ज़रिअबना है ।
और अब मीग्रें -एन से मुक्ति के लिए "स्किन पेच ,मीग्रें -एन पेच की चर्चा है ।
नु -पथे इंक्स दवा कम्पनीने एक ताज़ा अध्धयन में स्किन पेच को खाने की गोलियों से ज्यादा कारगर पाया है .स्पेशल्ति दवा निर्माताओं में शुमार है यह दवा कम्पनी ।
ज़ल्रिक्स नाम है इस फाये का जिसे बेंड-एड की तरह चमड़ी से चस्पां कर दिया जाता है.फलतय दवा -सुमा -ट्रिप -तान चमड़ी के निचे धीरे धीरे रिस कर खून के दौरे में शरीक हो जाती है ।
उन लोगों के लिए यह दवा विशेष तौर पर तैयार की गई है -petch के रूप में जिन्हें मितली (नौजिया ) की शिकायत रहती है -आधा शीशी के इस पूरे सर दर्द में .५५ feesad लोग नौजिया की शिकायत karten हैं .aavaaz और roshniyaan भी इन्हें नहीं suhaati ,अंधेरे band kamre रास aaten हैं .avaanchhit paarshv प्रभाव (दवा के dusprabhav ) भी halke fulke dhikhlaai diyen हैं ,gambhir paarshv prabhav नहीं देखने को मिलें हैं .

प्रास्टेत केंसर के इलाज़ में केनाबिस (भांग ,चरस )हो सकती है कारगर .

लैब आज़माइशों से इस बात का इल्म हुआ है ,भांग औ चरस में मौजूद रसायन केंसर सेल्स की बढवार को रोक सकतें हैं .इससे यह भरोसा पैदा हुआ है ,केनाबिस से तैयार दवाएं एक दिन केंसर के ख़िलाफ़ जंग में कारगर भी साबित हो सकतीं हैं ।
आल -काला विश्व्विद्दयालय ,मेड्रिड के साइंस दानों ने आइनेज़दीआज़ - लैविआदादेखरेख में हूमेन केंसर सेल्स लाइंस पर काम करने के बाद ऐसे ही एक रसायन की आज़माइशे माउस पर करने के बाद टुऊमर(केंसर गाँठ ) की बढवार रोकने में कामयाबी हासिल की है ।
ब्रितानी जर्नल में इस मुताल्लिक नतीजे प्रकाशित हुए है .,चरस ,गांजा में एक सक्रीय रसायन केनाबिनोइड मौजूद है ,जो केंसर -गांठों को बढ़नेसे रोकता है ।
अलबत्ता इस अन्वेषण को आगे ले जाने के लियें अभी और आज़माइशों की दरकार है ,तब जाकर मानव -मात्र को इसका लाभ मिल सकता .यानि केंसर का इससे कारगर इलाज़ अभी और वक्त लेगा ।
अलबत्ता सुल्फा और चरस -गांजा आदि सिगरेट में भरकर सुट्टा लगाने वाले ,साव धान रहें .ऐसा करनेसे पौरूष-ग्रंथि के केंसर में कोई फायदा नहीं पहुंचेगा ।
स्पेन की एक शोध टोली ने पता लगाया है ,केनाबीनोइड्स केंसर गाँठ पर मौजूद एक रिसेप्टर (अणुओं के लिए खुले दरवाज़े )को बंद कर देतें हैं.ये अभिग्राही टुऊमर -सर्फेस (केंसर -अर्बुद या गाँठ की सतह पर मौजूद होतें हैं ।
ऐसे में अनियंत्रित केंसर कोशिका विभाजन ,कुनबा परस्ती रुक जाती है ।
केनाबिस में पाये जाने वाले रसायनों से केंसर सेल्स रिसेप्टर सीधे मुखातिब हो सकतें हैं ।
यही रसायन (केनाबीनोइड्स ) प्रोस्टेट केंसर -कोशिकाओं की अनियंत्री बढवार को अवरुद्ध कर दवा के लिए जो अभी खोजी जानी हैं ,एक लक्ष्य (टार्गेट ) का काम कर सकतें हैं .यानी तीर निशाने पर लग सकता है .

ब्लू -बेबी को ज़िंदा रखा वियाग्रा ने .

एक ऐसा नौनिहाल वियाग्रा पर अभी तक ज़िंदा है जो जन्म से ही चिकित्सा जगत के लिए चुनौती रहा ,एक के बाद एक पेचीला पन जिसे घेरे रहा .शायद इसी -लिए कहा गया है -जा को राखे saain -या मार सके ना कोय ,होनी तो हो के रहे लाख करे किन कोय ।
साढ़े -तीन हफ्ते का है ,फिलवक्त ओवेन ब्लूम -फील्ड (बेबी -बाय ) .जन्म के वक्त इसका उदर(स्तामक ) यानी पेट सीने में धसा हुआ था ,दिल में सूराख था (ब्लू -बेबी ),फेफडे (लंग्स )में संक्रमण था ,बहुत ही बिरला ,लेकिन विआग्रा दवा (नपुंसकता के लिए दवा ,जिसका खूब दुरपयोग होता रहा है ,फलस्वरूप मृत्यु भी ,कईयों की हुई है ).इसे ज़िंदा रखे है ।
न उमीदी में से ही आस की किरण तब फूटी जब डॉक्टर नर्वस होकर उसका लाइफ सपोर्ट सिस्टम हठाने का सोच रहे थे .एक बड़ी शल्य -चिकित्सा काम आई ,शरीर अंगों को यथा स्थान लाया गया ,पेट की जगह पेट ,सीने की जगह सीना .हो सकता है ,टा उम्र उसे वियाग्रा लेनी पड़े .सब कुछ फेफडों के संक्रमण के बने रहने या ठीक होने पर निर्भर करता है .खुदा खैर करे .

स्लीप दिस-ऑर्डर एप्निया औ मौत का रिश्ता कितना ?

कुछ लोग सोते वक्त बेहद खर्राटे लेतें है ,जो ना सिर्फ़ विदेशों में तलाक की वजह बनता है ,और अब मौत से भी रिश्ता जोड़ता दिखता है .गंभीर किस्म का नींद के दौरान साँस -अवरोध ४६ फीसद मामलों में अकाली मृत्यु की वजह बन रहा है .अलबता इस मौत की जुदा जुदा वजहें हो सकतीं हैं .४० -७० साला लोगों के लियें यह गंभीर किस्म एप्निया की मौत की वजह ज्यादा बन सकती है .जोन हाप -किंसविश्व्विद्द्य्लय (बाल्टीमोर )के नरेश पंजाबी ऐसा मानतें हैं ।
नींद -स्वांस -रोध (स्लीप एप्निया ) उपरी श्वष्ण मार्ग का नींद के दौरान ठप्प पड़ जाना है .कोलेप्स हो जाना है .ज़ोर -ज़ोर से खर्राटे आना इसका एक लक्षण मात्र हो सकता है ,लेकिन नींद के दरमियान श्वांस -रोध सात घंटा नींद के दौरान ३० या ज्यादा बार हो सकता है .यह आपकी उम्र पर निर्भर करेगा ।
नींद अवरोध का सम्बन्ध मोटापे से भी है ,उच्च -रक्त चाप ,हार्ट फेलियोर और स्ट्रोक भी इसकी वजह बनता है ।
लेकिन मौत की संभावना किसकी कितनी है ,इसका कोई निश्चय नहीं ।
अलबता नींद के दौरान श्वांस का रुकना ही स्लीप एप्निया कहलाता है .यह साँस -रोध कमसे कम १० सेकिंड बना रहता है .और जैसा ऊपर बतला चुकें हैं ३० या उससे और भी ज्यादा दफा ७ घंटा की नींद के दौरान दर्ज किया गया है .बुढापे में यह और भी ज्यादा हो जाता है ।
आब्स -ट्रक तिव -एप्निया में उपरी श्वशन मार्ग में अवरोध की वजह से व्यक्ति साँस लेने की कोशिश तो कर रहा होता है ,लेकिन कामयाब नहीं रहता .
सेंट्रल एप्निया में श्वसनी पेशी काम करना बंद कर देती है .एब्सेंस आफ रेस्पाई -रेत्रीmuscle एक्टिविटी इसकी वजह बनती है ।
मिस्र नींद -रोध में दोनों की आगे पीछे मिली भगत होती है ,पहले एब्सेंस आफ रेस्पाई -रेत्री muscle -एक्टिविटी और फ़िर उपरी श्व्ष्ण मार्ग का रुद्ध होना .कई लोग दिन में भी बैठे बैठे खर्राटे भरतें हैं,हाइपो -थाई -रोइड के मरीज़ ऐसा करते देखेजा सकतें हैं ,उम्र का अपना हिसाब है .वैसे एक नाम वर शायर कह गएँ हैं :मौत का एक दिन मु -ईयन है ,नींद क्यों रात भर नहीं आती .इसलिए घोडे क्या घुड़ शाला बेच कर सोइए .राम -राम .

जीवन का सूत्र मिला जटाधारी तारों में (धूम केतु में .)

फ्राड होइल की ये भविष्य वाणी परवान चढ़ती दिखती है ,जीवन किसी पूछल तारे (पुच्छल तारे ,कोमेट )से पृथ्वी पर आया .फ्राड होइल खगोल विज्ञान के लिए एक जाना पहचाना नाम है जो लन्दन की गली कूचों में वैसे ही लोक -lubhaavan है jiase भारत में amitabh bachchan .आपने सृष्टि के जन्म sambandhi siddhaant stedi stet kaa pratipaadan kiyaa .जिसके अनुसार brahmand बार बार bantaa bigadtaa है ,तारों की बारात आती जाती रहती है ,aakash gangaayen paidaa hotin हैं ,vinast हो जाती हैं ,लेकिन उनकी यह बात jyadaa krantikaari मानी समझी गई ,जीवन का sutrpaat पृथ्वी पर किसी दूर daraaz के pu chchhal तारे (suraj के aavdhik mehmaan )के हाथों संपन्न हुआ ।
अब कोमेट vild- २ की poonchh से सच much जीवन के लिए aavashyak amino aml -glaaiseen kaa alpaansh milaa है .जिसे january २००४ में नासा के antriksh यान staar dast ने पृथ्वी से ३९ करोड़ kilomeetar की doori से sahejaa है ।
सौर -daab (solar pressure ) से पुच्छल तारे की poonchh kaa nirmaan hotaa है .यह gais और धूल की बनी होती है .इस धूल के namune ऐसी tastree में jutaaye गए जिसमे aerojel kaa astar bichha thaa ,जो बहुत halkaa और royedaar padaarth है .इसे एक kanistar में zamaa कर utah के registaan में antriksh विमान से अलग कर parashoot की मदद से utaaraa gayaa ।
पाल vild के नाम से विख्यात यह धूम केतु prakirti के उस aadim padaarth को chhipaaye हुए है जिससे सौर mandal bana .suraj au उसके dasiyon पुत्र paidaa हुए ।
nasaa के खगोल jaiv vid (astrobiologist )jemi elsila kahten हैं ,ulkaaon में (metioroits )में इससे pahle भी कई martbaa amino aml kaa alpaansh milaa है ,लेकिन dhoomketuon से amino -aml pahli martbaa jutaaye गए हैं ।
amino amlon की ladiyaan ही parspar gunth कर आदमी के बाल से लेकर enzaaim तक तैयार kartin हैं .यही jivit pranaaliyon में ,living organism में rasaayanik kiryaaon kaa aadhar भूत dhaanchaa buntin हैं ।
tab kyaa aisaa मान liyaa जाए ,पृथ्वी पर ,anyatr ,bhaumetar grahon पर जहाँ भी jivaan के लिए zaruri kachchaa maal है ,वह inhin jataadhaari तारों की देन है ?

सर्व -जन हिताय ..

"फार ऐ .कामन कॉज "शीर्षक से पूर्व -केन्द्रीय मंत्री ,आधुनिक समाज के मुखर पैरोकार ज़नाब आरिफ मोहम्मद खान साहिब का अग्रलेख टाइम्स आफ इंडिया (अगस्त १९,२००९ )में छपा है .आलेख की समीक्षा तमाम ब्लोगार्थियों की टिप्पणियों के लियें यहाँ प्रस्तुत है ,क्योंकि विषय वृहत्तर भारत धर्मी समाज से तालुक्क रखता है ।

नागर -कानूनों में पारिवारिक कानून (फेमिली -ला ) सर्वोपरि रहा है ,औ इस्लाम ने इसके तक़रीबन सभी पहलुओं के मद्दे नज़र इसे आम औ ख़ास के लिए tazveez किया thaa ,कथित "मुस्लिम पर्सनल ला "ने इसकी मनमानी व्याख्या कर इसे वीरुप्ताओं -विकृतियों से संसिक्त कर दिया -आरिफ मोहम्मद खान ।

शरीअत के नाम पर ,शरीअत की आड़ में ,इसे लागू करना ना समाज के हित में है औ ना ही यह जीवन के तमाम पहलुओं को छूता समेटता है ,अपने कलेवर में ।

यह टिपण्णी किसी और ने नहीं स्वय्यम आगे बढ़कर जमात इस्लामी के उदार मना तरक्की पसंद विचारक मौलाना मदूदी साहिब ने की है ।

ला कमीशन की २७७वी रिपोर्ट से भला किसे ना -इत्तेफाक हो सकता है ,कौन एहतराज़ कर सकता इस प्रेक्षण आब्ज़र्वेशन पर -बैगेमी (दूसरी पत्नी के मुताल्लिक मुस्लिम पर्सनल ला की राय पर ) पर कीयह सही arthon में इस्लाम का nazariaa नहीं है . मुस्लिम पर्सनल ला की अपनी khapat है ,मनमानी है ।

हिन्दुओं को aagaah किया है ,chetaayaa है ,ला kamishan ने :इसकी आड़ लेकर वह चाँद मोहम्मद औ feezaa banne की aaindaa कोशिश ना करें ,लेकिन मुस्लिम bhaaiyon के लिए medaan khulaa छोड़ दिया gayaa है .क्यों ?

kyaa tushtikaran aade aataa है ,yaa समाज में balvaa होने का डर है ,यह कैसे हो सकता है ,एक ही मसला समाज के एक tabke के लिए samvedi batlaayaa जाए औ दूसरे के लिए naheen ,यदि pahli byaahtaa के पत्नी के होते दूसरी को लाना hindoo समाज को तोड़ने वाली सह है to यही मसला मुस्लिम समाज के लिए todak औ समाज को pichhe ले जाने वाला क्यों नहीं है .-आरिफ साहिब ।

kyaa यह doglaimansiktaa , doglaa pan हमें शोभा detaa है .?इसी कथित samvedan -sheeltaa की आड़ लेकर एक मुस्लिम lekhikaa को bharteey vizaa देने से भारत sarkaar ,leftiyon की (रक्त -rangiyon की sarkaar ) katraati रही है .shahbano के साथ भी naainsaafi हो चुकी है ।

आपको batlaaden -यही आरिफ मोहम्मद khan साहिब थे jinhone शाह bano को उसका hak dilvaane के mudde पर केन्द्रीय मंत्री mandal से stifaa दे दिया thaa .लेकिन तरक्की पसंद लोग सरकारों को रास नहीं aaten ,sarkaaren mooltay ,बे -imaan होती है ,कथित लोक kalyaan का odhnaa odhe रहती हैं .हाथी के दांत खाने के और dikhaane के और ।

मौलाना maudoodi साहिब दो took kahten हैं :बड़ा ahit किया है इस मुस्लिम पर्सनल ला ने ,कोई घर परिवार ही musalmaanon में aisaa hogaa जो इसकी मार से bachaa हो ।

zaahir है -वृहत्तर मुस्लिम समाज को roshni में आने की jyadaa ज़रूरत है .kuraan की mansaa को ठीक से samjhaa नहीं gayaa है -दूसरी पत्नी क्यों और कब ?saaf saaf batlaayaa gyaa है ।

oohud की लड़ाई के वक्त kuraan की दो aayten (varsiz ४.२-३ )बहु पत्नी prathaa का ख़ास sandarbhon में zikr kartin हैं .इस लड़ाई में madinaa में बड़े paimaane पर tabaahi हुई थी -anaath और bevaaon(widows ) की tadaad उस badkismat दौर में समाज का dasvaan hissa बन chukaa thaa .इसी mansaa से इन्हें gharondaa muhaiyaa करवाने के लियें -paali -gemi का praavdhaan रखा gyaa ।

यह एक apvaad thaa samajik niyam नहीं .bilkulsaaf है यह बात .यह कदम war widows के kalyaan punarvaas के लिए thaa न की aiyaashi के लिए ,।

kaaynaat के srishthi के aarambh से kuraan -मर्द और उसकी beebi (janaani )की बात करती है .मन and his wife की बात करती है ,आदमी और उसकी औरत का zikr करती है ,आदमी और उसकी beeviyon ,rakhelon का kahin zikr नहीं है .इन fact अ positive command it says "marry those among you who are single "(२४.३२ ).गोद has not made फॉर any मन two hearts इन his one body (३३.४ ) ।

kuran सच की andekhi करने के ख़िलाफ़ है .आम राय की आड़ लेकर आप अपने vote बैंक से कब तक mukhaatib रह sakten हैं ।?

were you to follow दा common run ऑफ़ those on earth ,they will lead you away from दा path ऑफ़ गोद (६.११६)masihaai अंदाज़ में ibne maazaa इसकी tasdeek karten हैं ."लेट no one humiliate himself .when asked how does one humiliate himself ?दा Prophet said:"when someone sees an occasion to speak फॉर दा sek ऑफ़ गोद ,but does not " faislaa आप पर है -kuran औ मुस्लिम पर्सनल ला के barax अपनी राय likhiye ज़नाब .

सर्व -जन हिताय ..

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

क्या है ओरथो-रेक्सिया नर्वोसा ?

एना -रेक्सिया नर्वोसा यानी मोटे हो जाने का वहम किशोरा -वस्था की बीमारी है जिसमे किसी ऐश्वर्य राय की वेस्ट लाइन (पतली -कमरिया ,कटी -प्रदेश )आदर्श बन जाती है .एक होता है -बुलेमिया -सूमो -पहलवानों का शगल खाओ और उलटी करदो ,फ़िर खाओ औ उलट दो ,लेकिन ये "ओर्थोरेक्सिया -नर्वोसा क्या है ?
ब्रिटेन (ब्रितानिया )का मध्य -वर्गीय ,अति -शिक्षित तीस साला वर्ग -हेल्दी फ़ूड आब्सेशन से ग्रस्त है ,रिजिड इटिंग इस वर्ग की मजबूरी बन रहा है ,एक ऐसा भोजन जिसमे से चीनी -नमक दोनों नदारद हों ,जिसमें केफीन युक्त पेय न हों ,सोया ,कोर्न (मक्की ),यीस्ट,ग्लुतेम यहाँ तक की गेहूं जैसा अनाज भी ना हो ,उससे बनी डबल रोटी भी नहीं .दूध औ दुग्ध उत्पाद ना हों .दाइन करते वक्त मेज़ पर वां-इन का ग्लास ना हो .किस्सा सिर्फ़ लो -केलोरी फ़ूड तक सीमित नहीं है ।
उर्सुला फिलपाट (चेअर आफ दी ब्रिटिश डाई-तेटिक असोसिएशन का मेंटल हैल्थ ग्रुप ) के मुताबिक ओरथो -रेक्सिक्स गत सालों में तेज़ी से बढ़ें हैं .स्टीवन ब्रेट -मनने १९९७ (केलिफोर्नियाई डॉक्टर ) में पहली मर्तबा ओर्थोरेक्सिक -नर्वोसा नाम दिया -खान -पान की इस रिजिड आदत को ,मजबूरी को ,इटिंग ओबसेशन को .

झूम खेती ने किया बंटाढार.

आलमी तापन (ग्लोबल वार्मिंग )की शुरूआत खेती किसानी के आरम्भ में उन किसानों ने कर डाली अपने अनजाने ही जिनके पास कृषि कर्म के आदिम साधन ही थे ,जो कृषि कर्म की बारीकियों से नावाकिफ थे . किसानों के ये पूर्वज जंगलों कासफाया कर फसल उगाते थे .कल तक भारत के उत्तर -पूरबी राज्यों में झूम खेती का यही चलन जारी था .इसे स्लेश एंड बर्न मेथड कहा जाता था .विज्ञानियों का अनुमान है ,इससे पर्याप्त ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाई-आक्साइड वायु मंडल में दाखिल हो गई होगी ।
अनाज के चंद दाने पैदा करने के लिए ये आदिम लोग एक बड़े क्षेत्र से जंगलों का सफाया कर देते थे .आज से १० गुना ज्यादा प्रति व्यक्ति जोत इनके पास होती थी .बेहिसाब जंगल औ बहुत थोड़े लोग ,ना कोई रोक ना टोक ।
कथित उन्नत खेती ,सघन साधन सिंचाई के मांग रही है ,आधुनिक ताम झाम ने भी जलवायु -परिवर्तन को कम एड नहीं लगाई है ,गिरते हुए पर्यावरण -पारिस्तिथि को एक लात और मारी है .

क्यों गायब हो सकता है गेहूं से पुष्टिकर तत्व ?

कोई सात साल पहले नेब्रास्का -लिंकन विश्वविद्दालय के विज्ञानियोंने यह प्रागुक्ति की थी -वायुमंडल में बढ़ता कार्बन -डाई-आक्साइड का ज़माव गेहूं जैसी मुख्य फसल में से पुष्टिकर तत्व ले उड़ सकता है .आज उनकी यह आशंका सही साबित हो रही है .हमारे खाद्दय की गुणवत्ता सवालों के घेरे में आने लगी है ।
तीन साला अध्धयन में विज्ञानियों ने गेहूं की बढवार के दरमियान उतनी ही अतिरिक्त मात्रा ग्रीन -हाउस गैस कार्बन आक्साइड की फसली क्षेत्र पर प्रवाहित की जितनी २०५० तक बढ़कर हो जाने की भविष्य वाणी कंप्यूटर -सिमुलेशन कर चुका है .पता चला -गेहूं के दानों से ८फ़ीसद लोह तत्व (आयरन )कम हो गया है जबकि लैड की मात्रा १२ फीसद बढ़ गई है ।
अलावा इसके ज़रूरी अमीनो -अम्ल ,प्रोटीनों के संग कमतर हो गए हैं .दुनिया की आधी आबादी लोह तत्व की कमी से जूझ रही है ,जिसमें और भी इजाफा हो सकता है .और तो और बच्चों की बढवार के लिए आवश्यक अमीनो -एसिड्स भी गेहूं के दानों में कम पाये गए हैं .दाने भी प्रति एकड़ कम निकले हैं ।
न्यू -साइंटिस्ट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ़ नाइट्रोजन -खाद की मात्रा बढ़ाने से कुछ नहीं होने वाला ।
प्रोटीन की कमी बनी रहेगी ।
बढ़ी हुई ग्रीन हाउस गैस के दुष्प्रभाव गेहूं की फसल तक ही सीमित नहीं रहें हैं -पशु खाद्दय ,यहाँ तक ,कार्बन -प्रेरित बदलाव यूकेलिप्टस भी दर्शा रहा है -ज्यादा -प्रतिरक्षी (डिफेंसिव -केमिकल्स बनाकर ) रसायन बना कर .

और अब शीतला रोग (खसरा -मीज़ल्स )का टीका हाज़िर है .

टीके के रूप में एक इन्हेलर (सूँघनी)देर सवेरबाज़ार में आ सकती है .फिलवक्त खसरे का टीका (सुइंया)ही नौनिहालों को लगाई जाती हैं .इस टीके को तैयार करने के लिए -खसरे का बोदा (कमज़ोर वायरस रू -बी -ओला ) सुपर क्रिटिकल कार्बन -डाई-आक्साइड के साथ मिला दिया जाता है .इस गेस औ वाय-रस के मेल से नन्ने अति सूक्ष्म बुलबुले औ बुंदिया बनतीं हैं ,जिन्हें सूखाकर एक सूँघनी(इन्हेलर )तैयार कर ली जाती है ।
छोटी छोटी सिलिंडर -नुमा प्लास्टिक थेलियोंमें इसे ज़मा कर लिया जाता है .बस सूँघनी तैयार .थेलीको नथूनों से सटाकर बच्चे को सूंघा दीजिये ।
यह टीका अस्पताल -से लगने वाले संक्रमण से एच .आई वी.एड्स .,हिपेताइतिस-बी .,संक्रिमित अस्पताली सूइंयों से लगने वाले अन्य संक्रमणों से भी बचाव का कारगर ज़रिया है ।
पैरा -माइक्सो -परिवार का छूत-हां वायरस है -रू -बी -ओला जो शीतला रोग यानि मीज़ल्स (खसरा )की वजह बनता है .निर्धारित समय पर नौनिहालों को इसके टीके लगाए जातें हैं .कई माँ बाप सूइंयों से बच्चों को बचाने की नादानी के चक्कर में टीके ही नहीं लगवाते .रोजाना १२०० बच्चे इस संक्रमण से मौत के मुह में चले जाते हैं .२००६ में ६८.१ फीसद बच्चोंको इसका टीका लगा था . कुपोषित बच्चों के लिए यहरोग एक बड़ा ख़तरा है ।
सीरम इन्स -टी -टूट आफ इंडिया भारतीय बच्चों पर इसका (सूँघनी )का परिक्षण (क्लीनिकल ट्रा-याल्स )करेगा .लेकिन इससे पहले एनीमल स्टडीज़ के नतीजे देखने परखने होंगे ।
पहले चरण में टीके की निरापदता जांचने के लिये ३० वयस्कों पर आजमा -इशे की जायेंगी ।
भारत के लिये वरदान सिद्ध होगी यह ड्राई -पाउडर वेक्सिन (सूँघनी )जहाँ ना साफ़ पानी है ,ना २४ घंटा बिजली ,अक्सर वेक्सिन को ४सेल्सिअस पर बनाए रखने वाली कोल्ड चेन टूट जाती है ।
इसे कोलाराडो व्श्व्विद्द्यालय के राबट-सीव ने तैयार किया है .सूइंयों के बरक्स यह ज्यादा कारगर सिद्ध होगी ,।
खसरा यानी मीज़ल्स एक विषाणु रू -बी -ओला से पैदा होने वाला छूत -हां रोग है ,तेज़ बुखार ,छींक आना ,नाक बंद होना (नेज़ल कंजेसन ),ब्रासी कफ kअन जक्ती -वाई -तिस (रोहे ,आंखों का मौसमी रोग ),चमड़ी पर रोज़ी चिकत्ते (मेकूलो -पेपूलर-इरप्शन्स) होना इसका आम लक्षण है लातिनी भाषा के -रू -बी -ओलुस का मतलब होता है -रेड यानी लाल .ये लाल चकत्ते रू -बी -ओला वायरस की ही देन हैं .जो गले औ चेहरे से शुरू होकर तमाम बदन पर फूल जातें हैं .इनका डिस्पोज़ल जला कर या दफना कर किया जाता है .अलबता ६ माह से कम उम्र के शिशुओं में ये रोग बिरले ही देखा जाता है ,बा शर्ते उन्हें माँ का दूध नसीब हुआ हुआ हो ,जो कुदरती टीका है ,खासकर -माँ का पहला स्तन -पान ,अमृत पान है ,राम बाण औषध है ,बच्चे के लिये .

रोग भ्रम औ रोग्भ्र्मी लोग .

आदमी के शौक भी एक से एक आला दर्जे के होतें हैं -कुछ लोगों को कोई रोग हो ना हो रोग होने का भ्रम ,कई मर्तबा दृढ़ विश्वाश भी होता है .वह डॉक्टरों के चक्कर लगातें रहतें हैं ,सी .टी .स्केन( होल बोडी ) का करवाते रहतें हैं .अतिरिक्त रूप से स्वास्थ्य सचेत (?)ऐसे ही लोगों को रोग भ्रमी कहा जाता है .वैसे यह रेसेसन के टेंशन से पहले के अमरीका वासियों का शगल था .आज भी वहाँ हाई -पो -कोंद्रीआक लोगों का टोटा नहीं है .,एक ढूंढोगे पाँच मिलेंगें .अवसाद ग्रस्त (डिप्रेस्ड )लोगों में इनकी तादाद ज्यादा होती है .अलबत्ता उम्र -दराज़ लोगों में बुढापे की अन्य बीमारियोंके पेचीलापन के चलते हाई -पो -कोन-द्रीआक व्यक्तित्व की शिनाख्त में दिक्कत पेश आ सकती है .क्योंकि सोसल स्ट्रेस फेक्टर के अलावा बुढापा ख़ुद एक रोग है ,ऐसा भ्रम बहुत से लोग पहले से ही पाले हुए हैं .इसलिये भारत में आल -झी -मर्ज़ के रोगी को कह दिया जाता है :सठिया गया है .जब की शोर्ट टर्म मेमोरी लास इस रोग का एक लक्षण है .रोग की उग्र अवस्था में रोगी नाते रिश्तेदारों ,पोते -पोतियों ,पति पत्नी को भी नहीं पहचान पाताहै ।
अमरीका के प्रेजिडेंट रीगन इस रोग की चपेट में आ गए थे ,रोग की उग्र अवस्था (अन्तिम औ टर्मिनल स्टेज में )आप नेंसी रीगन को भी नहीं पहचान पातेथे ।
इधर एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा के मामले में भी -हाई -पो -कोंड-रीया खूब फला फूला .

सोमवार, 17 अगस्त 2009

बरोनी बिना मस्कारा .

पलकों की डोर से बंधे चले आइये ,बिना मस्कारा खासी लम्बाती बरोनी (आई -लेशिस )बनाइये ।
सौन्दरिय का रुपहला संसार बिना मस्कारा आधा अधूरा रह आता है ,खूबसूरती को चार चाँद लगाने ,युवतियां लम्बी आई -लेशिश का माया-संसार ,मस्कारा से ही रचतीं हैं ।
पेरिस के जैव -विज्ञानी आपको मस्कारा का विकल्पदेने की ताकमें हैं .जी हाँ आँख की बरोनियाँ ,पलकों के बाल भी तीन महीने बाद झरतें हैं ,बारहा इसीलियें बरोनी बनाई -संवारी जातीं हैं -मस्कारे से .अलबता सर के बाल तीन साल तक बढ़ने के बाद गिरतें हैं .विज्ञानी आई -लेशिश की जीवन अवधि एक जेल की मदद से तीन माह के पार ले जाना चाहतें हैं .बस थोडा इंतज़ार और .पैस की ओरील लेब इसी जेल को बाज़ार में उतारने वाली है .क्लीनिकल ट्रा-याल्स अग्रिम चरण में हैं .

जल के बाद हवा की तत्त्विकता भी नस्टहो मारक बन गई है .

पञ्च भूतों में से हवा (वायु ,जल ,आकाश ,पृथ्वी ,अग्नि )की तात्त्विक्ताभी हम कब की नस्ट कर चुके हैं .गंगा -जमुना बहनों का गन्धाना सब को मालूम है .अन्तरिक्ष में इ -कचरा तैर रहा है ,पृथ्वी की उर्वरा शक्ति मृदा प्रदूषण,मृदा अपक्षय (साइल -एरोज़ं -अन )किसी से छिपा नहीं है ।
इधर ताजातरीन शोध की खिड़की से भी मारक खबरें आ रहीं है .हालिया अध्य-यन बतलातें हैं ,सात समुन्दर पार हवा में ठहरे मंडराते कण ,महा -द्वीपों के पार कुल ज़मा तीन लाख अस्सी हज़ार मौतों की वजह बन रहें हैं ।
पता चला है ,अति -सूक्ष्म (२.५ माइक्रो न )कण श्वष्ण (साँस के संग )फेफडों के अस्तर को छीलने,इन्फ्लेमेत (शोजिश औ संक्रमण )कर खून के दौरे (सर्कुलेशन ,रक्त प्रवाह )में शरीक हो धमनियों को सीधा नुकसानपहुँचातें है .सी .एन .जी .से चालित वाहन इसी तरह के अति सूक्ष्म कण हमारी हवा में छोड़ रहें हैं .माई -क्रोन या माई -करो मीटर एक मीटर का दस लाखवां भाग है .यानि वो कण जो इन दस लाख भागों में से २.५ भाग आकार वाले हैं ,ज्यादा मारक हैं ।
प्रिंसटन विश्वविद्द्यालय की एक पूरी टीम जून फेंग लू के नेत्रित्व में उक्त नतीजों पर पहुँच रही है .पता लगाया गया है ,डीज़ल चालित इन्ज़नों से निसृत बिना जला अंश (इग्जास्त )कोयला बिजली घरों से हवा में बिखरा आस पास ठहरा रेगिस्तानों से उठता बवंडर कुल मिला कर एक मारक मिश्र तैयार कर रहा है .यह मिश्र रेडियो -धर्मी विकिरण सा हफ्तों हवा में ठहरा रहता है .हवा वाहित यही मिश्र महाद्वीपों की सीमा का अतिक्रमण कर रहा है .समुन्दरों के ऊपर भंवर बना मंडरा रहा है ।
अति सूक्ष्म कणों की मार गरीब देश ज्यादा झेल रहें है .यही कणीय-प्रदूषण जनस्वास्थ्य के लिए बड़ा ख़तरा बना हुआ है ।
यह हवा का बेहिसाब गन्धाना चीन ,दक्षिण -पूरबीएशिया ,उत्तरी अमरीका जैसे सात समुन्दर पार इलाकों पर कैसा कहर बरपा रहा है ,इसका जायजा अभी लिया जाना बाकी है ।
अलबत्ता शोध नतीजे बतलातें हैं ,समुन्द्रों के पार मंडराता कणीय प्रदूषण हवाओं के रथ पे सवार हो ना सिर्फ़ कनाडा ,मेक्सिको ,यू.एस .तक पहुंचा है ,हर बरस ६६०० प्री -मेच्योर मौतों की भी वजह बना है ।
लू कहतें हैं -आलमी तौर पर ३,८० ,००० लोग असमय ही मौत के मुख में जा रहें है .,उन कणीय प्रदूषकों की मार से जो पैदा कहीं और हुआ है .यानी करे मुला पिटे जुम्मा .

ग़ज़ल .

ग़ज़ल ।
कोई पता न ठौर उसका आज तक मिला ,
ता उम्र है ढूंढा किया वह पहला प्यार था ।
उसके मिरे दरमियान था सागर का फासला ,
हम शक्ल तो मिलते रहे ,वैसा कोई न था ।
आँचल में जिसके आंच और ममता का था उफान ,
यूँ जिस्म मिल गए बहुत ,पर वह कहीं न था ।
मनुहार औ दुलार थे ,नेनों से बाज़ुबाँ,
नेनों से मिले नयन कई ,वह न उनमें था ।
उसको न ढूंढ़ सका कोई नैट ऑरकुट ,
din raat odhaa thaa jise ,vah pahla pyaar thaa
sah -bhaav :Dr .Nand Lal Mehta Vaageesh .




रविवार, 16 अगस्त 2009

क्या है पैनिक अटेक औ पैनिक रिएक्शन ?

इन दिनों स्वां इन फ्लुकी आशंका सेदिल औ दिमाग कईयों का दहशत में हैं .जब कोई ओतुसुक्य ,एन्जाइति मन को यका यक आ घेरे औ आदमी किसी काम को भीना कर पाये तब यह पैनिक अटेक की स्तिथि है .कई मर्तबा हर किसी के साथ ऐसा होता है ,यद्यपि इसका कोई तार्किक आधार नहीं होता .चिकित्सा शब्दावली में जब कोई अतिरिक्त अंग्क्साइती मानव मन को आ घेरे ,दुचिन्ताओं में आदमी घिर जाए ,घबराहट के संग साथ पसीना छूटने की नौबत आ जाए हाथ कांपने लगें -तब इसे ही दहशत प्रतिकिर्याकहा जाएगा ।
कल तक महा -राष्ट्र राज्य का पुणे इसी दहशत -प्रतिकिर्या (पेनिक्रिएक्षण )की चपेट में था . यहाँ रिदाशेख की मौत के बाद खौफ कामंज़र था .लोग एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा किजांच केलिए अस्पतालों का रुख किए थे .दहशत ने एक श्रृखला बद्ध पेनिक प्रतिकिर्या को जन्म दिया .इसी दरमियान एक मज़ाक भी चल निकला -भारतियों ने एकदमसे नया तरीकाखोज लिया है -एच १ एन१ फ्लुकोफैलाने का ।लाइन में लगो अस्पताल की फ्लू लो .
मीडिया कर्मियोंने लोगोंके गिरते होसले को निरंतर मौत की खबरें प्रसारित कर और बढाया .आशंका के पैर नहीं होते .कहा गया पुणे को मेक्सिको पेट -रन पर शत -डाउन किया जा सकता है .स्कूल मदरसे बंद ,माल बंद सिनेमा हाल बंद ,आदमी का दिमाग बंद .लोग मुखोटे लगाए दिखलाई दिए -जब्किमास्क सिर्फ़ असर ग्रस्त लोगों के लिए थे .मुंबई माया नगरी एक कदम और आगे निकल गई ,शूटिंग भी बंद ।
अब जाकर दहशत का दौर थमा है ,एक तरफ जनशिक्षण अभियान चला दूसरी तरफ़ जांच केन्द्रों की संख्या में इजाफा किया गया .लोगों को आश्वस्त किया गया -सरकार के पास तेमिफ्लुका पर्याप्त भण्डार है .लोगों को मास्क के मानी संझाये गए .किस्केलिये हैं औ क्यों है मास्क समझाया बतलाया गया ।
दो बरस पहले दुनिया भर में ऐसा ही तमाशा एवियन फ्लू को लेकर हुआ था .लाखों मुर्गियाँ जिभय कर दी गई ,गर्दन तोड़ दी गई चूजों की .एस ऐ आर एस संक्रमण के वक्त भी ऐसा ही हुआ था .अक्सर तार्किकता का अभाव होता है -दहशत जदा हो प्रतिकिर्या करने के मूल में .इसलिए वर्तमान स्वां -इन फ्लू के दौर में जिसके संग अब हम रहना सीख -गए हैं --तर्क को ताख पर उठा कर रखने की दरकार नहीं है .हिम्मत औ होसले से काम लीजिये -हिम्मते मरदान मदद दे खुदा .

क्या है थर्मल इस्केनर ?

थर्मल इमेजिंग एक ऐसी युक्ति है ,डिवाइस है जो अवरक्त विकिरण के पूरेस्पेक्ट्रम ,ऊर्जा स्तरों,एनर्जी लेडरकी शिनाख्त करती चलती है .इतना ही नहीं इन्हें एक परदे पर दिखला ती रहती है .आप को बतला दे -
हर वो वस्तू ,चीज़ जो -२७३ सेल्सिअस तापमान से ऊपर है ,लगातार विकिरण छोड़ भी रही है ,अपने आसपास की चीज़ों से ले भी रही है .हमारे शरीर के विभिन्न हिस्से अलग अलग ताप मान लिए होतें हैं .बगल का अलग ,मुख औ गुदा का अलग ,चेहरे का अलग .जब थर्मल स्केनर हमारे चेहरे के नजदीक लाया जाता है ,यह हमारे चेहरे का तापमान दर्ज करने लगता है .अलबता तन पर कपडा है ,इसलिये चेहरे पर ही भरोसा करना पड़ता है .इन्फ्रा -रेड विकिरण (ताप यानि अवरक्त विकिरण ऊर्जा )हमारे शरीर का हर हिस्सा बाहर छोड़ रहा है ,लगातार ,स्केनर इसी की शिनाख्त के आधार पर शरीर के औसत ताप मान का जायजा लेता है .ऊर्जा लेवल बहुत पास पास होतें हैं ,अलग अलग ताप लिए .थार्म शब्द का अर्थ ही ताप होता है ।
इन दिनों एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा के संगसाथ थर्मल स्केनर की भी चर्चा है .बेहतर है इसे जाना जाए .इसका चलन एवियन फ्लू के दौर में बड़े पैमाने पर आलमी हवाई -अड्डों पर देखने को मिला .एक बार फ़िर स्वां इन फ्लू की आलमी दस्तक के साथ ताप का सूक्ष्म जायजा लेने रखने ,दर्शाने वाला यह उपकरण -युक्ति चर्चा में है .सिंगापुर में पहले पहल हवाई -अड्डे पर इसका इस्तेमाल सा -अर्श (एस .ऐ .आर .एस .)से ग्रस्त लोगों की शिनाख्त के लिए किया गया ,था शरीर का ताप मान दर्ज करने के लिए ।
टाइम पत्रिका ने इसे वर्ष भर का सबसे कूल आविष्कार बतलाया था .तब से इसका चलन गाहे बगाहे दक्षिण -पूरबी एशिया में आम है ।
कई किस्मे है थर्मल स्केनर की ,लेकिन काम करने की युक्ति यकसां है ।
दूर नियंत्रण ,बिना शरीर से छूआये -तापमान का जायजा लेना -नो कोंटेक्ट टेम्प्रेचर मेज़रमेंट .फिलवक्त स्केनर्स इंदिरागांधी आलमी हवाई -अड्डे पर भी तैनात हैं .स्क्रीनिंग हो रही है -संभावित स्वांइन फ्लू के मरीजों की .बतला चुके हैं आपको -यह युक्ति मानव शरीर से निसृत अवरक्त विकिरण (इन्फ्रा रेड रेडिएशन )के पूरे स्पेक्ट्रम की जांच कर शरीर के ताप मान दर्ज कर लेती है .यह एक प्रकार का कैमरा ही है .इसमें लगे संसूचक (देतेक्टोर्स ) हमारे शरीर से आने वाले अवरक्त विकिरणों को पकड़ कर इन्हें विद्दुत संकेतों (इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स )में तब्दील कर मोनिटर पर दर्शाते हैं .ये छवियाँ (इमेजिज़ )विविध रंगी होती हैं .क्योंकि शरीर के विभिन्न अंग विभिन्न तापमान लिए होतें हैं ,यहाँ रंग का मतलब तापमान ही है .यह एक तापमान कोड हैं .स्पेक्ट्रम ऑफ़ कोलोर्स मीन्स स्पेक्ट्रम ऑफ़ तेम -परे चारयहकैमरा एक सेकिंड में ७.५ इमेजिज़ उतार लेता है .मुख्य फोकस होता है -हमारा चेहरा -क्योंकि शरीर तो कपड़ो से ढका रहता है .समान्य ताप मान ३६.८ सेल्सिअस है .इसमे एक सेल्सिअस की वृद्धि (३७.८ )भी इसमे लगे सन सूचकों की नज़र से बच नहीं पाती .लेकिन इसकी कारगरता भरोसे मंद नहीं मानी समझी जाती -मसलन एस ऐ आर एस संक्रमण के वक्त इससे १२ करोड़ लोगों के ताप मान की शिनाख्त की गई ,केवल २६ संदिग्ध मामले सामने आए .इनमें से भी कुछेक को ही यह खौनाक संक्रमण निकला .


















एच १ एन १ संक्रमण रोकने के वास्ते ...

एक बार फ़िर हम अपने ब्लॉग पर उन्ही अनुदेशों के साथ लौट रहें हैं जिन्हें भारत सरकार दोहरा रही है ।
(१)मामूली बुखार (सौ फारेन हाईट )गले में दर्द ,काफ नाक का बहना ,बदन दर्द ,उलटी दस्त की शिकायत होने पर न सिर्फ़ अपने निकट के डॉक्टर से जांच करवायें २ दिन बाद दोबारा अपनी सेहत का जायजा आकर लें ।
(२)आम तौर पर इस स्तिथि में जिसे सामान्य ही कहा जाएगा -डॉक्टर आपको अपने घर में ही रहकर आराम करने की सलाह देगा .आम -ज्वर नाशी ,दर्द नाशी ज़रूरी होने पर ही लें .तेमिफ्लू आप को नहीं दी जायेगी अलबत्ता ७दिनि अलहदगी बरतने की सलाह आप मानिये .एहतियात ज़रूरी जो दी गईं है उनका पालन करें .आप को अस्पताल जाने की ना तो ज़रूरत है औ न ही आप की जांच के लियें नमूने लिए जायेंगे .क्योंकि यह एक सामान्य स्तिथि है ।
दूसरी श्रेणी उन लोगों की है जिन्हें हाई -रिस्क ग्रुप में रखा गया है .यथा बच्चे ६५ साला बुजुर्ग पहले से ही मधुमेह ,हाई पर टेंशन ,रिस्पैरेत्री डिजीज केंसर आदि अन्य जीवन शैली रोगों के लिए दवाई ले रहे लोग .इन्हें उच्च ज्वर (१००-१०२ )बना रहने गले में दुखन जारी रहने आदि लक्षण होने पर तेमिफ्लू देकर घर भेज दिया जाएगा .ज़रूरी नहीं हैं इनके नाक गले से जांच के लिए सवाब का लिया जाना .इन्हें भी अस्पताल में दाखिल नहीं किया जाएगा ।
(३)सिर्फ़ तीसरी केटेगरी के उन लोगों को अस्पताल में दाखिल किया जाएगा -जिन्हें स्वां फ्लू के संग नामूनिया यानी फेफडों के संक्रमण की भी गंभीर शिकायत हो सकती है ,आगे चलकर .लक्षणों के आधार पर जिसका संदेह होने लगा है .लापरवाही बरतने पर इनके लक्षण उग्र हो सकतें हैं.नाखून नीले पड़ सकते हैं .काफ में खून का धब्बा आ सकता है ,बार बार .रक्त दाब गिर सकता है ,सीने में दर्द हो सकता है ,बेहद बेचेनी हो सकती है .ये तमाम लक्षण एक्यूट रेस्पाई -रेत्री डिस्ट्रेस के हैं ,जो एक खतरनाक स्तिथि होती है .बच्चों में इसकी शुरूआत अनमना पणkहानापीना छोड़ देने साँस में तकलीफ के संग हो सकती है .इन मरीजों के तीमार दारों को हलकी दावा दी जायेगी -प्रो फाई लेक्सिक्स पर रखा जाएगा .जब तक ज़रूरी समझा जाएगा सिर्फ़ तभी तक तेमिफ्लू की हलकी खुराख दी जायेगी .बशर्ते इनमें भी मेडिकल कन्डीशन वाले लोग है .इसलिए चिंता छोडिये -चिंता चिता समान .ओमशांति .आदाब .





नीले पड़ सकतें हैं

बिन पानी सब सून .......

"रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून ,पानी गए ना उबरे ,मोती ,मानुस चून."अर्थात मोती की आब (सच्चा पानी उतरा )गई तो मोती बे -आब आदमी की आँख का पानी उतरा ,आंखों की शर्म औ हया गई ,चिकित्सा शब्दावली में शरीर में पानी की कमी हुई -डी -hआई -डरेशन हुआ ,निर्जलीकरण हुआ तो आदमी बेहाल -निष्प्राण .इसी लिए कहा गया बिन पानी सब सून .चून सानने ,आटा-मान्धने ,डो -तैयार करने के लिए पानी न हो तो भूकों मरो -रोटी नहीं ।
आज यही जल एक तरफ तो अपनी तात्त्विकता खोकर गंधाने लगा है ,नदियों नालों तालाबों पोखरों में साफ़ पानी नहीं है .,दूसरी तरफ़ इसकी उपलब्धता का अब कोई निश्चय नहीं रहा है ।
पेय जल तेजी से सिमट रहा है .पृथ्वी से झील तालाब कुँए -बावडी ही गायब नहीं हुए है ,भू जल (ग्राउंड -वाटर )भी हमारी पहुँच से बाहर जा रहा है ।
ग्राउंड वाटर यानी -पृथ्वी के नीचे ,मिटटी औ चट्टानों की दरारों में ,चट्टानी परतों में ,चट्टानी खंडों में कल तक लुका छिपा पानी जो सोतों झरनों कुओं को जीवनी प्रदान कर आवेशित करता आया है ,मात्रात्मक रूप में भी घटने लगा है ।
जल -विद्द्या ,जल विज्ञान (हाई -दरो -लोजी )के तहत जल विज्ञानी पृथ्वी की प्राकिर्तिक संपदा जल के गुन स्वरूप ,वितरण ,उपयोग ,चक्रं अन (साइकिलिंग )जैव -मंडल वायु -मंडल में जल -उपलब्धता एवं मौजूदगी का अध्धयन -विश्लेषण करतें हैं ।
नासा की जेट प्रपुल्ज़ं -अन लैब के शीर्ष जल -विज्ञानियों की एक विज्ञप्ति के मुताबिक -उत्तर भारत के एक्विफायार्स (भूजल -स्रोत )तेज़ी से रीत रहें हैं .२००२ -२००८ .के दरमियान इनमें से जितना जल रीत गया है ,उससे अमरीका की सबसे बड़ी मानव -निर्मित झील को तीन मर्तबा पानी से लबा -लब भरा जा सकता है ।
गोडार्ड स्पेस फ्लाईट सेंटर ,ग्रीन बेल्ट के जलवायु -विज्ञानी मित रादेल के नेत्रित्व में उपग्रहों की मदद से हरयाणा -पंजाब -राजस्थान -दिल्ली के एक्विफायार्स से १०८ घन -किलोमीटर पानी कम हो जाने की इत्तला दे चुकें हैं .यह पानी खेती -किसानी के काम आया है .इस रफ़्तार से प्रकिरती इन्हें फ़िर से री -चार्ज नहींकर सकती .प्रकिरती को जीत लेने की कोशिश में हम पिट रहें हैं ,औ हमें ख़बर नहीं है॥
ब्रितानी हफ्ता -वार प्रकाशित विज्ञान पत्रिका "नेचर "के ताज़ा अंक में उक्त नतीजे प्रकाशित हुए हैं .नासा के "ग्रेविटी -री -कवरी -एंड kilaaimet एक्सपेरिमेंट से प्राप्त hue हैं .इस प्रयोग में २ उपग्रह लगातार पृथ्वी के गुरुत्व में आ रहे परिवर्तनों का जायजा ले रहें हैं .इस बदलाव की वजह भू जल में आए बदलाव ही हैं ।
इस गंभीर चेतावनी की अनदेखी करते हुए -वर्तमान सूखे जैसी स्तिथि से निपटने के लिए भारत सरकार १००० करोड़ रूपये राज्य सहायता के बतौर नये नलकूप लगाने ,इन्हें चालू रखने के लिए नए पम्प सेटों तथा सस्ती दरों पर बिजली सप्लाई पर खर्चने जा रही है .जब की नलकूपों द्वारा भूजल का अतिरिक्त दोहन -शोषण ही भू जल तालिका के लगातार नीचे औ नीचे खिसकते जाने की वजह रहा है ।ये तो vahee बात हो गई -"मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दावा की ।





















क्या बरखा जब कृषि सुखाने ?

कमर कसना तो दूर की बात ,सरकार यह मानने समझने को तैयार नहीं है ,देश में सूखे के हालत हैं .मानसून ने उन तमाम प्रगुक्तियों को झुठला दिया है ,जो मौसम विज्ञान महकमे का मुकम्मिल शगल रहा है ।
आम तौर पर बरसात के मौसम में (१५ जून -१५ सितम्बर )देश में औसतन ८९० मिलीं -मीटर बरसात गिरती है .अब तक इसमे तक़रीबन २९ फीसद की कमी दर्ज की जा चुकी है ।
अब शेष बची ४५ दिन की अवधि (१६ अगस्त -१५ सितम्बर )में
औसत इस दरमियान होने वाली ३२४ से ३० फीसद बढ़कर ४२४ मिलीमीटर बरसात गिरे तो बात बने .जिसके फिलवक्त दूर तक कोई आसार नहीं हैं ।
अलबत्ता देश में सूखे की बारहा घोषणा तब होती है जबदेश के कुल भौगोलिक हिस्से के २० - ४० फीसद हिस्से में बहुत कम बरसात गिरे .,तथा जून -सितम्बर की निर्धारित अवधि में यह कमी बेशी १० या उससे ज्यादा फीसद दर्ज हो ।
सरकार अभी अपनी १०० दिनी उपलब्धियां ही गिनवाने में मशगूल फील -गुड के भ्रम में है ।
वैसे भी आदमी आस का पल्लू कभी नहीं छोड़ता ,आस ही पल्लू छुडा जाती है .ज़ाहिर है सरकार फील बेड के लिए तैयार नहीं है .डिनायल मोड़ (नकार )में हैं ,अस्वीकृति की मुद्रा बनाए हुए है ।
कृषि मंत्री अभी सिर्फ़ भूमिका बाँध रहें है :ज़रूरी हुआ तो विदेशों से चीनी के संग -संग खाद्द्यान भी आयात करेंगे ।
देश का दुर्भाग्य है ,आज़ादी के ६२ बरस बाद भी लोग भूख से मरते हैं ,किसान आंध्र के फ़िर आत्म ह्त्या करने लगें हैं ,बदनाम होती है "लू " ,सूखा और ठण्ड ।
अरब पति औ पत्नियों के मामले में भारत शीर्ष पर लगातार बना हुआ है ,कुपोषण -अल्प पोषण में भी किसी से कम नहीं है ।
"आज खा ,कल खुदा "-मुगालते में ख़ुद रहना औरो को भी रखने में हमारी भारत सरकार को महारथ हासिल है ।
"न जाने किस तरह तो रात भर छप्पड़ बनातें हैं ,सवेरे ही सवेरे आंधियां फ़िर लौट आतीं हैं ."




शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

बेंगलोर की रूपा -आनंद क्यों चल बसी -स्वां फ्लू से ?

क्या बेंगलोर की स्वास्थ्य सचेत शिक्षिका रूपा आनंद साइटों -कां -इन

स्टोर्म का ग्रास बनी ,जो एक विरल प्रकिर्या है तथा अच्छे खासे रोग्प्रतिरोधी तंत्र को नकारा बना मल्टिपल ओरगन फेलियोर की वजह बन रूपा जैसी होनहारशिक्षिकाओं के प्राण पखेरू ले उड़ती है .आप को बतलादें-साइटों -कां -इन उन सौ से भी ज्यादा प्रोटीनों में से एक है ,जिसे रुधिर कणिकाएं तथा लिम्फ तैयार करतीं हैं .यही प्रोटीन टिसू डेमेज की वजह बनती है ,एक विरल चेन रिएक्शन के तहत ,जिसके चलते चलते इसकी लोडिंग और टिसू डेमेज की वजह बनती है .एक एव्लांश के तहत ये साइटों कां इन स्टोर्म संपन्न होती है .इसे तेमिफ्लू का विरल पार्श्व प्रभाव कह लो या कुछ और रूपा की एच १ एन १ मरीजों के संपर्क में आने या फ़िर एन १ एच १ प्रभावित क्षेत्र से लौटने की कोई हिस्ट्री नहीं थीं .उन्हें नामूनिया की शिकायत होने पर बेंगलोर के संत -फिलोमेना अस्पताल में दाखिल किया गया था .७ अगस्त को दाखिले के बाद ९ अगस्त को बेहद बेचेनी और साँस लेने में दिक्कत होने पर उनकेनाक और गले से सवाब लेकर नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हैल्थ एंड एलाइड साइंसिज़ जांच के लियें भेजने के साथ ही उन्हें तेमिफ्लू की आवश्यक खुराख दे दी गई .रात को ही वे कोमा में चली गईं ,ऐसा उनके परिवार -जन बतलातें हैं ,अलबत्ता अस्पताल ने एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस होने पर उन्हें वेंटिलेटर पर भी रखा ,लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका .रूपा की मौत कई अन -सुलझे सवाल छोड़ गई है ,चिकित्सा जगत को जिन्हें सुलझाना है .

क्या है एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा जांच ?

रिअल टाइम -पोली -मरेज़चेन रिएक्शन (आर .टी .-पी.सी .आर ।) नाम दिया गया है -एच १ एन १ -नोवेल इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ ,जांच को .इसी जांच की बायो -सेफ्टी लेवल -३ प्रयोगशाला ,में जांच की सिफारिश बारहा की जा रही है .ऐसी प्रयोग शाला में जांच कर्ताओं की अधिकाधिक सुरक्षा के इंतजामात (इंजीनियरिंग एंड डिजाईन -इंग फीचर्स )मुस्तैद होतें हैं ,ताकि खतरनाक पेथोजंस (रोग कारकबेक्टीरिया ,विषाणु ,परजीवी ,इतर माइक्रो -ओर्गानिस्म )जांच कर्ताओं तक साँस के ज़रियेन पहुंचें ,किसी और तरीके से संक्रमित ना कर सकें .पूरा प्रोटेक्टिव गिअर उनकी हिफाज़त के लिए विज्ञानियों की देखरेख में तैयार किया जाता है ।
वायरस की मौजूदा किस्म (स्ट्रेन )एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ के लिए पाजिटिव नतीजे दिखलाएगी ,एच १ और एच ३ के लिए निगेटिव ।
इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ ,के लिएस्ट्रोंग रिएक्तिविती (प्रति -किर्यात्मक्ता की अधिक मौजूदगी )का मतलब होता है -एच १ एन १ संक्रमण की अधिकाधिक संभावना ।
जैसा आप जानतें हैं ,हमने बारहा बतलाया है ,जांच के लिए नाक और गले से स्वाबलिया जाता है यदि इसमें एच १ एन १ एन १ डी.एन .ऐ .मौजूद है ,पोली -मरेज़ -चेन -रिअक्शन उसे आवर्धित (एम्प्ली -फाई )कर देता है ।
इस रिएक्शन में थर-मल-साईं -किलिंग )का स्तेमाल किया जाता है ,यानी साम्पिल को बारहागर्म और ठंडा किया जाता है ,एक चक्र के तहत ।
जांच के तहतएच १ एन १ डी .एन .ऐ .के नॉन (ज्ञात )टुकडों ,तथा डी .एन .ऐ .पालिमरेज़ को संदिध साम्पिल के साथ रखा जाता है .इसीलिए इसे पालिमरेज़ चेन रिएक्शन कहा जाता है ।
एच १ एन १ डी .एन .ऐ .को जांच के दौरान मौजूद होने पर बारहा आवर्धित किया जाता है ।
जैसे जैसे पी .सी .आर .प्रतिकिर्या आगे बढती है ,पैदा डी .एन .ऐ टेम्पलेट का काम करता है .इसी का बारहा प्रतिरूप तैयार किया जाता है ,इसे रेप्लिकेशन कहतें हैं .यह आवर्धन जल्दी ही शिखर को छूकर अधिकतम हो जाता है .चार घंटों तक यह प्रकिर्या चलती है ,संपन्न होती है ,चार घंटों में .



होती है

क्यों बन गया पुणे एच १ एन १ फ्लू का अड्डा ?

क्यों बन गया पुणे फोकल -पॉइंट ,स्वां-इन फ्लू की मारक लीलाओं का केन्द्र बिन्दु ?स्वां-इन फ्लू से मौत के मुह में जा चुके ६२ -६५ फीसद लोग पुणे के ही रहें हैं .यह तांडव अभी रुकने का नाम भी नहीं ले रहा है .क्या अब यहाँ क्लस्टर यानी व्यक्ति समूह ,समुदाय के समुदाय इसकी चपेट में आने लगें हैं ?या धीरे धीरे यहाँ भी यह शांतिपूर्ण सह -अस्तित्व कायम कर लेगा दिल्ली की तरह ?जहाँ १० फीसद मामले चौकस शिनाख्त (स्क्रीनिंग )की वजह से ,२० फीसद कांटेक्ट ट्रेसिंग (यानि असरग्रस्त व्यक्ति के संपर्क में आए लोगो का पता लगाने )की वजह से पकड में समय रहते आ गए जबकि ७० फीसद मामलों में जागरूक लोग ख़ुद आगे बढ़कर संदिग्ध अवस्था होनेपर जांच के लिएख़ुद आगे आए .दिल्ली को इस बिना पर शाबाशी दी जा सकती है ।
पुणे के मामले में पहला मामला प्रकाश में आने से पहले ही प्रशासनिक बेदिली के चलते आग फ़ैल चुकी थी .कुछ मियाँ बावले कुछ ऊपर से खाली भंग .रही सही कसर बरसात के फ्लू के munaasib मौसम ने पूरी कर दी .राज -ठाक -ron को अब अपना घर संभालना thaa ..कहाँ हैं सामाजिक mudde उनकी praathmiktaaon में .kauri lafandri से क्या hogaa ?
sanchaari rog sansthaan पुणे (institute of communicable disease ,पुणे )के vijyaani maanten हैं -बहुत देर kardi huzoor आते -आते .क्या barkhaa जब krishi sukhaane .june २२,२००९ को पुणे में pahla मामला prakash में aayaa एच १ एन १ paazitiv .यह vykti U .S .से lautaa thaa .bhartiy chikitsaa anusandhaan परिषद् के doktar V .M . .katoch saaf lavzon में kahten हैं -पुणे ने stithi की gambheertaa को नहीं samjhaa .natizaa हम sabke सामने है .

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

एच १ एन १ हाई -रिस्क ग्रुप क्या करे ?

गर्भ -वती महिलायें ,ब्लू -बेबीज़ (जिनके दिल में जन्म से सुराख है ),पुलिस एवं अन्यप्रतिरक्षा सेवाओं में तैनात लोग ,दमाके मरीज़ खासकर ,बच्चे और ६५ से ऊपर के बुजुर्ग ,स्तिरोइड्स दवा किसी भी वजह (मेडिकल कन्डीशन )से लेते रहने वाले लोगों को एच १ एन १ संक्रमण के प्रति ज्यादा खबरदारी रखनी है .यदि कामन कोल्ड ,आम फ्लू के भी क्लासिकल सिम्पटम्स मौजूद है और ३ -४ दिन बने रहतें हैं ,बावजूद आराम और ज्वर -दर्द नाशी दवाओं के सेवन के ,मसलन ,बुखार (ज्वर ,टेम्प्रेचर १०१-१०२ या और भी ज्यादा बना रहता है ),बदन गले में दर्द ,उलटी-दस्त ,नाक बहना ,छींकों का सिलसिला या फ़िर इनमे से कोई भी २-३ लक्षण -




जारी रहता है ,साँस लेने में तकलीफ बढ़ रही है ,तो फ़ौरन अपने चिकित्सक के परामर्श पर ही चलना है ,और समय घर पर जाया नहीं करना है ,भले ही एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा भी सेल्फ लिमिटिंग बीमारी कही समझी जा रही हो ।इसकी जांच से पहले ,रिपोर्ट आने से पहले इलाज़ शुरू कर देना है ,चिकित्सक को ,यकीं मानिए .
गर्भवती महिलाओं के मामले में इस संक्रमण के होने और लापरवाही बरतने पर बच्चा समय से पहले पैदा हो सकता है ,ऐसा स्त्री रोगों एवं प्रसूति विज्ञान के माहिर बतला रहें हैं .अलबता संक्रमण होने पर बच्चा (०-२ )छोटा है ,तो उसे मास्क तीन परतों वाला लगाकर फीड करा सकती है माँ .बाकी समय परिवार के अन्य सदस्य बच्चे की देखभाल कर सकें तो और भी बेहतर .स्वां -इन फ्लू तो अभी रहने वाला है और इस दरमियान बच्चे भी पैदा होंगे ही ज़रूरत ,सिर्फ़ एहतियात बरतने की है ,खौफ खाने की नहीं ।
मधुमेह के मरीजों में एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा _ऐ का वायरस ब्लड सुगर लेवल को गिरा सकता है ,ज़रूरत ब्लड -शूगर लेवल के विनियमन करते रहने की है ।
दमा के मरीजों खासकर नौनिहालों के प्रति हमारी खबरदारी और भी बढ़ जाती है .इनमें भी कई मर्तबा (0-२ )शिशुओं को कोर्तिको -स्तेरोइड्स पे रखना ज़रूरी हो जाता है .इनका रोग प्रतिरक्षा तंत्र हिरदय ,केंसर ,परिहिर्दय धमनी रोगों के मरीजों की तरह उतना सक्षम नही रहता है ,इसलिए ज़रा सा भी रिस -पाई -रेत्री डिस्ट्रेस तवज्जो मांगता है .चौकसी रखें ,घर में कोई एच १ एन १ संक्रिमित व्यक्ति है तो उससे इस हाई -रिस्क ग्रुप को हर चंद बचाए रहें .२४ घंटा आपात कालीन काम पर तैनात हमारे पुलिस वाले ,अन्य प्रति रक्षा से जुड़े लोग भीड़ वाले स्थानों पर इस दरमियान मास्क लगा कर रखें ,जब तक फ्लू का पीक जारी है ,बचावी एहतियात बरतें .खूब पानी पीयें ,स्वास्थ्यकर खुराख भी उतनी ही ज़रूरी है ,बचावी चिकित्सा का हिस्सा है .फ़र्ज़ में तो कोताही कर नहीं सकते ,अपनी सेहत का भी ख्याल रखें .ॐ शान्ति .इस समय फ्लू हमारा राष्ट्रीय मसला है .

bhagvaan भी bimaar हैं ?

हर शक्श हो हैरान अब है puchhtaa -
क्या आप भी bimaar हो ?
हैं कृष्ण भी niklen mukhotaa pahnkar -
temi फ्लू का भोग लगा parsaad में -
pandaa jape -relenzaa ,relenzaa ,तेमिफ्लू ,तेमिफ्लू ,relenzaa -
ॐ स्वां -इन फ्लू .स्वां -इन फ्लू ,स्वां -इन फ्लू .
विशेष tippani :अब इंसान bhagvaan से ताकत नहीं लेता ,उसे अपनी kamzori थमा detaa है .

स्वां -इन फ्लू के ख़िलाफ़ नया मोर्चा .

तू डाल -डाल मैं पांत -पांत वाली कहावत चरितार्थ हो रही है एच १ एन १ वाय -रस -इन्फ़्लुएन्ज़ा के ख़िलाफ़ .गत दो दिनों में रोग का व्यापक फैलाव देखते हुए ख़तरा यह है ,ये रोग कहीं व्यक्ति समूहों (क्लस्टर ,कोम्मुनिटी -इज )में प्रसार ना पा जाए .अब महाराष्ट्र सरकार और कई अन्य राज्यों ने फैसला किया है ,जिसकिसी शक्श -समूह में लक्षणों से रोग होने की गुंजाइश दिखती हों ,उसे जांच से पहले ही २ दिन की दवा चार गोली सुबह -शाम के हिसाब से थमा दी जाए ,जांच का नतीजा जो भी आए (पाजिटिव या फ़िर निगेटिव )पाँच दिन १० गोली दवा के रूप में तेमिफ्लू की ज़रूर खाली जाएँ .ताकि आइन्दा रोग का सर्दियों में दूसरा पीक आने पर रोग की ड्रग -रेजिस्तेंत स्ट्रेन से रु- ब-रु न होना पड़े .यह बेहद ज़रूरी है ,क्योंकि हमारे पास तेमिफ्लू की फस्ट -लाइन ट्रीटमेंट के बतौर सिर्फ़ और सिर्फ़ दवा तेमिफ्लू ही है .सेकिंड लाइन ट्रीटमेंट के बतौर दवा -रोधी फ्लू का मुकाबला करने के लिए फिलवक्त इंतजामात दूर -दूर तक नहीं है .ये ठीक वैसे ही है जैसा हमारे यहाँ तपेदिक के मामले में दिखलाई दिया है -लोग दवा पूरी नहीं खाते ,नियम -निष्ठ हो दवा का पूरा कोर्स (६-९माह ) नहींकरते ,नतीजा होता है -दवा -रोधी तपेदिक ,जिसका इलाज़ एक तरफ़ बहुत महंगा है दूसरी तरफ़ कोर्स भी लंबा खिचता है ,४-५वी पीढी के एंटी -बायोटिक दवा के अन्य पार्श्व (दुष्प्रभाव )कई मर्तबा बर्दाश्त के बाहर होतें है ,ऊपर से एच -आई .-वी .-एड्स -तपेदिक दुरभि -संधि .रोग प्रति-रोधी तंत्र का ओजोन कवच सा छीजना .फैसला आप पर है ,आप अपने को ,अपने से सम्बद्ध अन्यों को कितना प्यार करतें हैं -यदि सच -मुच इत्ता सारा प्यार करतें है -तो एंटी- फ्लू दवा के नक्कालों से भी बचिए ,किसी चिकित्सा दलाल ,केमिस्ट के कहने से फेक और चोरी छिपे देश में आ रहीं एंटी -फ्लू दवा अपने आप ना लें ,बेअसर ही नहीं ,जान लेवा भी हो सकतीं हैं -नकली फ्लू -रोधी दवाएं .

बुधवार, 12 अगस्त 2009

स्वां फ्लू का डंक निकाला भारतीय कंप्यूटर -विज्ञानी भटकर ने .

पुणे से ये ब्लॉग लिखे जाने के वक्त तक स्वां -इन फ्लू से १० मौतें हो चुकी हैं ,अब वहीं से एक अच्छी ख़बर आई है .भारत का पहला सुपर -कंप्यूटर तैयार करने वाले कंप्यूटर विज्ञानी ने काओ-कोलेस्त्र्म (काऊ कोलेस्त्रम ) से एच १ एन १ का मुकाबला करने में सक्षम ,फ्लू -प्रतिरोधी केप्सूल तैयार कर लिया है ,जिसे विश्व -स्वास्थ्य संगठन ने भी बचावी चिकित्सा के बतौर प्रभावी बतलाया है .अलबत्ता जो स्वां फ्लू की चपेट में आ ही चुकें हैं ,उनेह तजवीज़ की गई दवा -तेमिफ्लू के संग -संग १० दिन तक तीन केप्सूलरोजाना खाने होंगे जिन्हें गाय के बच्चा जनने के बाद के पहले दूध को सुखाकर दुग्ध -चूर्ण से तैयार किया गया है ।इससे रोग की मारक शक्ति कम होगी .
ये वही डॉक्टर भटकर हैं जिन्होंने देश का पहला सुपर -कंप्यूटर "परम "तैयार किया था .काऊ -कोलेस्त्र्म माँ के पहले दूध ,बच्चा जन -ने के बाद के पहले दूध की तरह रोग -रोधी टीके की तरह असरकारी है .अब माँ के दूध में वो ताकत क्या कई मर्तबा दूध ही नहीं उतरता है ,जीवन शैली रोगों के चलते ,गाय भी पोलिथीन का ग्रास बन रहीं हैं .जबकि माँ का दूध आज भी पहला -इममू -नाइ -जेशन है ,टीका-करन है .फैसला आप पर है ,आप कैसी जीवन शैली अपनातें हैं ,प्रकृति के कितने नजदीक रहतें हैं .

जुकाम की रेसिस्टेंट किस्म है ये ,स्वां -इन फ्लू .

दो पीक आतें है मौसमी सर्दी -जुकाम के ,कामन कोल्ड ,आम फ्लू (इन्फ़्लुएन्ज़ा )के ,एक बरसात में और एक सर्दियों में ,ज्यादा से ज्यादा आप वर्तमान एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा के वर्तमान दौर को रेसिस्टेंट जुकाम कह सक सकतें हैं .सारा खेल पाँच दिनों का है .यदि २ दिन तक सर्दी -जुकाम ,कामन कोल्ड के आम लक्षण यथा तेज बुखार -खांसी -सर -दर्द ,बदन दर्द ,गले में दुखन खराशें छींक का दौर ,नाक बहना ,और किसी किसी मामले में उलटी -दस्त बने रहतें हैं ,घर में आराम करने पर्याप्त पानी और अन्य पेय लेते रहने ज्वरनाशी -दर्द नाशी लेते रहने के बाद ,तो अपने करीब के डॉक्टर के पास पहुचिये -जिसे एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ की पुरी जानकारी है .वो जांच केन्द्र पर भेजना ज़रूरी समझें तो आप अविलम्ब पहुँचिये -जांच के लिए ज़रूरी सवाब नाक और गले से लेने से पूर्व ही आप को २ दिन की davaa तेमिफ्लू ज़रूरी होने पर दे पाजिटिव आने ,परpaazitiv aane par ३ दिन की दवा और देकर आपको घर भी भेजा जा सकता है ,यदि आपको मर्ज़ का उग्र रूप घेरे हुए नहीं है ,लोवर -रिस -पाई -रैत्री ट्रेक का संक्रमण या फ़िर कोई और पेचीला पन होने पर ही अस्पताल में दाखिल किया जाता है ,अन्यथा आवश्यक दिशा -निर्देश ,सलाह -मशविरा दे आपको घर में ही अन्य सदस्यों से दूरी बनाके रहने ,मास्क लगा कर रहने ,जो दवा के साथ ही आपको दे दिए गए थे ,जांच के वक्त सही तरह से पहन ने ,बदलने की हिदायतों के संग ,भेज दिया जाएगा ..हवा दार कमरे की साफ़ सफाई ,आम तौर पर छू जाने वाली चीजों को भी विसंक्रमित करवाके रोज़ रखना सबके हित में है ,क्योंकि ये वाय-रस ८-१० ,घंटा फर्शों ,दरवाजे की हेदिल फ्रिज की नाब वगैरा पर सक्रीय रह औरों को संक्रमित कर सकता है .सारा खेल ५-७ दिन का है .सातवें दिन आप दिन चर्या में लौट सकतें हैं .

बच्चों के लियें तेमिफ्लू कितनी ज़रूरी ?

कितनी निरापद है १ -१२ ,साला बच्चों के लिए ,तेमिफ्लू ?ओसेल्तेमाविर या फ़िर रेलेंज़ा ?ऑक्सफोर्ड विश्वविद्द्यालय के शोध कर ताओं की माने तो पाँच फीसद बच्चों में इस के सेवन से उलटी ,निर-जलिकरण (डी-हाई डरेशन ) जैसी शिकायतें अन्य दुस्प्रभाव के साथ सामने आ सकतीं हैं ।

एक ब्रितानी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक भले ही इसके इस्तेमाल से मौसमी इन्फ़्लुएन्ज़ा की गिरिफ्त में बने रहने की अवधि थोडी कम हो जाती है ,घर के दूसरे लोग भी इसके संक्रमण से बच जातें हैं ,लेकिन दमा के हमले इससे कम तर नहीं होतें ,एस्मा फ्लैर जारी रहतें हैं .घटते नहीं हैं ।

रेलेंज़ा के भी फायदे से ज्यादा नुक्सानात (दुष्प्रभाव )बच्चों के मामलें में सामने आयें हैं .दुस्स्वप्न और मितली की शिकायतें भी कुछ बच्चों ने बतलाई हैं .अलबत्ता ६५ साला बुजुर्गों और पाच साल से छोटे बच्चों के लियें डॉक्टर गुलेरिया इस दवा को ज़रूरी बतलातें हैं .ख़ास कर उनके लियें जिन्हें गुर्दा ,श्वसन सम्बन्धी या फ़िर दिल की बीमारियों की पुरानी चली आई शिकायतें हैं .जो हो बच्चों के मामलें में सावधानी बरतिए ,आप अपनी ना चलायें .

कामन कोल्ड ,आम फ्लू और स्वां फ्लू में भेद कैसे करें ?

लक्षण तो तीनों के यकसां हैं ,लेकिन स्वां फ्लू में बुखार का बना रहना ,नाक का बहना ,कई मर्तबा उलटी -दस्त का होना भी जारी रहता है .बदन दर्द और सर दर्द की तीव्रता भी ज्यादा होती .यानी लक्षण तमाम वाही लेकिन उग्र ,बेचैनी ज्यादा ।
स्वां -इन फ्लू का संक्रमण तेज़ होने पर (लापरवाही के चलते ,बिना इलाज़ के )ऊपरी श्वसनी क्षेत्र से निचले श्वसनी क्षेत्र तक पहुँच जाता है .यानी फेफडों तक ,गहरे .यही रोग की खतरनाक स्तिथि है ,रेस -पाई -रेत्री डिस्ट्रेस है ,जब साँस की दिक्कत बढ़ने पर वेंटिलेटर पर मरीज़ को रखना पड़ सकता है ।
अलबत्ता तीनो में से किसी की भी चपेट में आने पर खूब पानी और अन्य पेय पदार्थ लें ,गर्म पेय मुफीद रहतें हैं ,हाटसूप (खट्टा ना हो ) कई तरह का उपलब्ध है .अलबत्ता ठंडे का मोह छोड़ दें .पूरी नींद लें ,दो दिन मुकम्मिल आराम करें .यदि आराम करने दो दिन पैरा -सीता -मोल लेने के बाद भी उक्त लक्षण उग्र बने रहें तो आगे बढ़के अपने पारिवारिक डॉक्टर की बात मानें .जहाँ वे जांच के लिए भेजना मुनासिब समझें आप निस -संकोच जाएँ ।साँस लेने में दिक्कत है ,तो उसकी ज़रा भी अनदेखी ना करें .यह राईस -पाई रेत्री डिस्ट्रेस हो सकती है ,जो उन लोगों के लिए जान लेवा सिद्ध हो सकती है जो ,पहले से ही जीवन शैली -रोग की चपेट में हैं .

पैनिक डेमिक, नहीं ..

हो सकता है पाँच सौ के नोटों की तरह एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा की जो स्ट्रेन भारत पहुँची है ,वह नकली हो .और असली भी है तो दुनिया भर की जानकारी ,दवाएं रेलेंज़ा और तेमिफ्लू हमारी झोली में हैं ।
(१ )आलमी स्तर(ग्लोबल लेवल )पर एच १ एन १ के दो लाख मामलों के पीछे सिर्फ़ १९०० मौतें होती हैं ,यानि एक लाख के पीछे ९५० और १०० के पीछे १ से भी कम क्योंकि कितने ही मामले तो दर्ज ही नहीं होतें .कई मर्तबा मौत की वजह पहले से ही चली आ रही कोई बीमारी,जीवन शैली रोग (मधुमेह ,हाई -पर -टेंशन ,दिल की बीमारियाँ ,श्वसन सम्बन्धी तकलीफें )बन जातें हैं .नाम बदनाम होता है ,एच १ एन १ फ्लू का .बेशक इस नए किस्म के फ्लू को एक विश्व मारी (पेंदेमिक )घोषित किया जा चुका है ,लेकिन भारत में यह उतना मारक नहीं रह गया है ,हल्का है .पेनिक -देमिक (दहशत -ज़दा)ज्यादा है ,विश्वमारी कम .क्योंकि यहाँ तो तपेदिक से ३.५ फीसद ,श्वसन सम्बन्धी दिक्कतों से और भी ज्यादा ११ फीसद लोग मौत के मुह में चले जातें हैं ।
(२ )बेशक स्वां फ्लू होने पर आप को लगातार बुखार बना रहता है ,नाक बहती रहती है ,बदन दर्द ज्यादा रहता है ,आम कोल्ड और मौसमी फ्लू की बनिस्पत ,कुछेक को उलटी -दस्त जकड लेतें हैं ,गले में दर्द बना रहता है ,लेकिन ज्यादा तर मामलों में डाक्टरी मदद से आप हफ्ता भर में दवा -दारु के बाद रोग मुक्त हो जातें हैं .कुछ ही मामले लोवर -रेस -पैरेत्री -इन्फेक्शन (निचले -श्वशन क्षेत्र के संक्रमण )के सामने आतें हैं ,जो ज्यादा तवज्जो मांगते हैं ,लेकिन तवज्जों मिलने पर ठीक भी हो जातें हैं .मलेरिया और जीवन शैली रोग केंसर से तो आप की जान पे ही बन आती है ,पार्श्व प्रभाव केमो -थिरेपी के कष्ट -दाई होतें हैं .यूँ बीमारी तो बीमारी है ,अच्छी कोई भी नहीं होती ।(३ )जौंदिस ,पीलिया या हिपे -ताई -तिस ऐ ,बी .सी .या फ़िर मियादी बुखार की तरह लंबा नहीं खिचता है ,स्वां फ्लू का इलाज़ .ज्यादातर मामलों में ५ -७ दिनों में रोग से छुटकारा मिल जाता है .टेमी फ्लू रोग से १ -२ दिन पूर्व ही छुट्टी दिलवा सकती है .अलबत्ता आप को अकेले रहकर (सेल्फ -क्वारेंताइन में )आराम करने ,वर्तमान को खंगालने ,जीवन की गुणवता पर विचार करने ,कैसा जीवन आप जी रहें सोचने विचारने का मौका मुहैया करवाता है ये एकांत .पीने को खूब पानी और अन्य पेय आपके लियें हाज़िर रहतें हैं .कोई चिंता नहीं रोज़मर्रा की चिल्ल -पौन की .
(४)एक बार फ्लू हो जाने पर आप का रोग रोधी तंत्र आइन्दा रोग का मुकाबला करने ,रोग को मार भगाने के काबिल हो जाता है .ठीक २४ घंटे बाद रोग -मुक्ति के ,यानी संक्रमण लगने के ८वे रोज़ आप अपनी दिनचर्या में शामिल हो जातें हैं .रोग सिरे से गायब होता है .(५)पैनिक -डेमिक यानी दहशत -ज़दा होने पर आप अस्पताल का रुख करतें है -गाहे बगाहे ,बिला वज़ह और सच -मुच के एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा की लपेट -चपेट में तो आ ही जातें हैं ,पहले ही से तंग हाल चिकित्सा तंत्र को और तंग -हाल बनाने लागतें हैं .इसीलिए खौफ छोड़ सिर्फ़ साव धानी बरतिए .

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

हकीमों में एका नहीं .

मुहब्बत में नहीं है फर्क ,जीने और मरने का ,
उसी को देख कर जीतें हैं ,जिस काफिर पे दम निकले .दुनिया भर में एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस को सबसे खतरनाक और अरक्षित उन लोगोंके लियें और उन लोगों को ही बतलाया जा रहा है ,जो मरीजों की देख भाल कर रहें है ,दिन औ रात ,उनके नाक औ गले से svaab ले रहें हैं ,विषाणु की जांच के लिए .बचावी -चिकित्सा को लेकर चिकित्सा जगत में एका नहीं है ,गफलत है .एक तरफ़ दिल्ली ने रोग के फैलाव को रोकने में मील का पत्थर तय किया है ,दूसरी तरफ़ उन डॉक्टरों को ही रोग का कैरियर समझा बताया जा रहा है .कीमो -थिरेपी को लेकर अलग -अलग नज़रिया है .कहीं पर जो मरीजों के जांच नमूने ले रहें हैं ,उन्हें ५ दिन तक बचावी चिकित्सा के बतौर तेमिफ्लू (ओसेल -टा -मिविर )दो खुराकें सुबह शाम दी जा रहीं हैं ,तो कहीं स्वां -इन फ्लू वार्ड में एक महीने की पोस्टिंग के दौरान रोज़ सुबह शाम दवा की खुराकें दी जा रहीं हैं .एक महीने के बाद दूसरा स्टाफ आ रहा है .तो कहीं ३-४ माह तक दवा की हलकी (आधी -अधूरी दवा )देते रहना भी निरापद बतलाया जा रहा है . अलबता विश्व स्वास्थ्य संगठन इस विषय पर मौन है .उसकी तरफ़ से कोई सिफारिश नहीं है ,बचावी चिकित्सा के बतौर दवा दिए या ना दिए जाने की .कुछ चिकत्सा -माहिर हलकी खुराक देना मुनासिब नहीं समझते ,दवा के प्रति विषाणु प्रति -रोध खडा कर ड्रग -रेसिस्टेंस किस्म रोग की पैदा कर सकता है .अच्छी नहीं है ये बात ,आसार ठीक नहीं दिखतें .शुभ -शुभ बोलो ,खुदा खैर करे -आई .ट्रीट ,ही क्योर्स ,लीस्ट आई फाल इल .