बुधवार, 31 मार्च 2010

बढ़ रहा है दवा -रोधी सूजाक (गोनोरिया )का ख़तरा ...

यौन संबंधों से फैलने वाला रोग है "गोनोरिया यानी सूजाक ".यह एक जीवाणु से पैदा होने वाला रोग है जिसमे जेनिटल म्यूकस मेम्ब्रेन संक्रमित हो जाती है .पेशाब करते वक्त जलन तथा मूत्रमार्ग नली और योनी से म्यूकस का स्राव इसके लक्ष्ण हैं ।
यौन समबन्धों खासकर उन्मुक्त यौन से फैलता है यह संक्रमण .इलाज़ ना करवाने पर पेल्विक इन्फ्लेमेत्री दीजीज़ का ख़तरा मुह्बाये खड़ा रहता है .एक्टोपिक प्रेगनेंसी यहाँ तक बाँझ पन भी औरतों में इसकी वजह बन जाती है ।
विश्व -स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक़ दुनिया भर में सिफलिस ,गोनोरिया च्लाम्य्डिया तथा त्रिचोमोनिअसिस के कुल ३४ करोड़ मामले १५ -४९ वर्षीय औरत मर्दों में हर साल नए मामलों के बतौर दर्ज हो रहें हैं ।
दक्षिण और दक्षिण पूर्व एसिया तथा उप -सहाराअफ्रिका ।

में गोनोरिया के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं .मल्तिपिल ड्रग रेज़िस्तेंत गोनोरिया जापान में दर्ज हुआ है .नाकारा बना रहा है इसका बेक्टीरिया दवाओं को .सुपर्ब्ग (सुपर बग ) परिभाषित हो रहा है .

प्रति -बद्ध दाम्पत्य के फायदे ....

एक अध्धययन से पता चला है प्रति -बद्ध दाम्पत्य परस्पर पति -पत्नी दोनों की सेहत के लिए अच्छा रहता है .सरे -विश्व -विद्यालय के प्रांगन में रोयल इकोनोमिक सोसायटी की वार्षिक बैठक में इस महत्व -पूर्ण अध्धययन के नतीजे प्रस्तुत किये जायेंगे ।
पता चला है शादी शुदा लोग बेचुलार्स (छड़े छंटाक गैर शादी शुदा )लोगों के बरक्स ६ फीसद ज्यादा अपनी स्वास्थ्य देखभाल के सिलसिले में डॉक्टरों के पास पहुंचतें हैं .कारण होता है ,पत्नी का कंसर्न (चिंता पति के स्वास्थ्य की बाबत पत्नी की ,खासकर प्रतिबद्ध पत्नी की ).प्रतिबद्ध पति -पत्नी नियमित व्यायाम अपेक्षाकृत ज्यादा करतें हैं ,छड़े मुस्टंडों की तुलना में ।
महिलायें ऐसे संबंधों में ३४ फीसद ज्यादा सेहत मंद पाई गईं हैं .नियमित कसरत करते रहना इसके मूल में रहा है .जबकि परस्पर समर्पित ,प्रतिबद्ध संबंधों में मर्द सप्ताह में कमसे कम एक बार रन पर जातें हैं .यह बेचूलार्स के बरक्स २० फीसद ज्यादा है .बात साफ़ है पति -पत्नी की परस्पर सेहत के मुद्दों पर टोका- टाकीदोनों के ही लिए मुफीद (लाभप्रद )रहती है ।
सन्दर्भ सामिग्री :वाइफ्स नेगिंग हेल्प्स मेरिड मेंन लिव लोंगर (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च ३१ ,२०१० )

मंगलवार, 30 मार्च 2010

रोग निदान की दिशा में एक अभिनव कदम जो ....

ब्रितानी रिसर्चरों ने रोड निदान ,रोग कैसे बढ़ता है ,बूझने के लिए एक गोल्ड की परत चढ़ा सेंसर तैयार करने की दिशा में एक महत्व -पूर्ण कदम आगे बढाया है .इसे मानवीय कोशाओं (कोशिकाओं )में प्रत्यारोपित किया जा सकेगा .रोग का पता लगाएगा एक लेज़र जो इस डिवाइस में ही शामिल होगा .इतना ही नहीं रोग को ट्रेक भी किया जा सकेगा ।

इस प्राविधि में से लेज़र पुंज निकलकर कोशिकाओं के अणुओं पर गिरेगा .अनु पहले इसे ज़ज्ब करेंगे बाद में उत्सर्जित (एमिट )भी कर देंगे .प्रकाश की इस आवाजाही से कोशिका प्रोटीन में कम्पन पैदा होंगे .कम्पन की आवृत्ति प्रोटीन की आकृति तय करेगी ।
ऐसे किसी भी सेंसर को ऊतकों में भी रोपा जा सकेगा बस इसका तालमेल (संयोजन )एक संवेदी लाईट मेज़रमेंट टेक्नीक से करना होगा .और रोग निदान और उसके बढ़ने को बूझा जा सकेगा ।
सन्दर्भ सामिग्री :टाईनी सेन्सर्स अन्दर- स्टेंड डिजीज डिवलपमेंट (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च ३० ,२०१० )

इस प्रकार विकसित सेंसर (तोहक )को ऊतकों में भी रोपा जा सकेगा .बस इसका संयोजन एक संवेदी प्रकाश मापी टेक्नीक के संग करना पड़ेगा .और इस प्रकार साइंसदानों के हाथ में आजायेगी एक बेशकीमती तकनीक जो ना सिर्फ बीमारी का पता लगाएगी उसके बढने पर भी नजर रखेगी ।

सन्दर्भ सामिग्री -तिनी

बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए .....

एक औस्त्रेलिआइ अध्धय्यनसे जिसमे ४५०० प्री -स्कूलर्स की दिनचर्या पर नजर टिकाये रखी गई एक अति एहम और समाजोपयोगी निष्कर्ष निकला है .जिन नौनिहालों की मम्मियां आंशिक तौर पर ही नौकरी -पेशा से जुडी हैं उनके बच्चे अपेक्षा कृत कम निष्क्री य रहतें हैं बरक्स उन माताओं के जो या तो सिर्फ घरेलू काम काज देखती करतीं हैं या फिर पूरे दिन की पूरी नौकरी (फुल टाइम जॉब )।
यह भी पता चला ,पार्ट टाइम घर से बाहर काम करने वाली माओं के बालगोपाल एक घंटा कम टीवी देखतें हैं .इन्हें ना तो कोच पोटेटो कहा जाएगा और नाही" ट्यूबर" क्योंकि यह "बूब ट्यूब "यानी "बुद्धू बक्से "के सामने उतना वक्त नहीं बिताते .काऊच पोटेटो तो चिपके रहतें हैं ,खाते पीते ,हर वक्त गाहे बगाहे ।
ज़ाहिरहै यह बच्चे अपेक्षाकृत कुशला बुद्धि (तीक्ष्ण बुद्धि )वाले रहतें हैं ।
अलावा इसके इन्हें हर दम हाई -केलोरी फ़ूड (जंक फ़ूड )भी नहीं परोसा जाता जिसकी लत पड़जाती है .बाकी को आप चाहे तो जंक बेबीज़ कह समझ सकतें हैं .(कथित काम क़ाज़ी महिलाओं से क्षमा याचना सहित ,हमें तो इस लव्ज़ "कामकाजी "पर ही आपत्ति है .बाकी क्या भाड़ झोंकती हैं ?)।

ओबेसिटी (मोटापे) की जद और ओवरवेट होने से भी यह अपेक्षाकृत बचे रह सकतें हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :पार्ट टाइम वर्किंग मोम्स बेस्ट फॉर किड्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च ३० ,२०१० )

सिक्स -पेक एब्स ,भरमाऊ व्यावसायिक विज्ञापनों का माया जाल .

आजकल आप व्यावसायिक विज्ञापनों को एक सम्पूर्ण भेंट -वार्ता या फिर दोक्युमेंतरी के रूप में देखतें हैं .ज़रूरी नहीं है इसमें जो कुछ भी परोसा जा रहा है वह सही हो यह एक विशुद्ध विज्ञापन गिमिक ,विज्ञापन स्टंट भी हो सकता है .सिक्स -पेक एब्स बेक -ने वाले व्यावसायिक विज्ञापन इसी केटेगरी (वर्ग )के होतें हैं ।

भला सिर्फ सिर्फ शरीर के एक हिस्से के व्यायाम से जैसे सिर्फ "मिड -रीफ "शरीर का सीने और कटि-प्रदेश (वेस्ट )वाले हिस्से की कसरत से क्या चर्बी छंट -तीहै ?

आइये देखें क्या कहतें हैं स्पोर्ट्स मेडिसन के माहिर इस बाबत .बकौल अमरीकन कोलिज ऑफ़ स्पोर्ट्स मेडिसन के माहिर हेनरी विल्फोर्ड ,यह तमाम दावे ना तो प्रामाणिक होतें हैं ना रिसर्च का नतीज़ा ,किसी एक ख़ास व्यक्ति ने कह दिया और आपने मान लिया ।नॉन प्रोफिट अमरीकन कोंसिल ऑफ़ एक्स्सर -साइज़ के जेसिका मेथ्यु कहतें हैं शरीर के किसी एक हिस्से को लक्षित (टार्गेट )करने का कोई अर्थनहीं होता है ।

एक वेळ -राउंन -दीदप्रोग्रेम में कार्डियो -वेस्क्युलर वर्क (हृद -वाहिकीय कसरत ) के अलावा सभी मुख्य (मेजर मसिल्स )पेशियों की कसरत ज़रूरी है .सिर्फ अब्दोमिनल मसिल्स की कसरतों से कुछ होना जाना नहीं है .जितना ज्यादा हमारा "मसिल मॉस "होगा उतना ही हमारा शरीर सुचारू रूप से काम करेगा .इससे पहले चर्बी उतरती नहीं है .(यह भी तो देखिये आपके कुल "बॉडी -मॉस "में मसिल मॉस कितना है ,बॉडी मॉस इंडेक्स देखना ना काफी है ।

अक्सर मायावी विज्ञापन और दर्शित चेहरे दस मिनिट ,बस दस मिनिट कसरत की बात करतें हैं और एक गेजेट्स आपको चेप देतें हैं ,करिश्माई गेजेट ?

ये लोग सिर्फ दस मिनिट व्यायाम नहीं करतें हैं ।व्यायाम की अवधि कहीं ज्यादा होती है .

एब्डोमिनल मसिल बनाने के लिए (काल डेम एब्स )"एक्स्सर -साइज़ गेजेट खरीदना ज़रूरी नहीं है ,क्रंच ही काफी है .एब्डोमिनल रोलर्स और रोकर्स आज माइशों में खरे नहीं उतरे हैं ।

क्रंच के मानी है कमर के बल लेट कर अपने कन्धों और सिर ज़मीं से बेदखल करने के लिए धीरे धीरे उठाना ताकि आप की उदर -पेशियाँ (एब्डोमिनल मसिल्स )मज़बूत बनें .आगे आपकी मर्ज़ी ।

सन्दर्भ सामिग्री :"टीवी गेजेट्स फॉर सिक्स -पेक एब्स आर जस्ट गिमिक्स "(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च ३० ,२०१० )

निकोटिन ,कोकीन की तरह ही लत पड़ सकती है जंक फ़ूड की .

एक ताज़ा अध्धय्यन से स्पष्ट हुआ है ,हाई -केलोरीफ़ूड (जंक फ़ूड ) की कोकीन और निकोटिन जैसे लती पदार्थों की तरह ही लत पड़ जाती है .नतीज़ा होता है पहले कम्पल्सिव ईटिंग फिर मोटापा (ओबेसिटी )।
नेचर न्यूरोसाइंस विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित इस अध्धय्यन में यद्यपि यह साफ़ तौर पर बतलाया गया है ,उक्त तथ्य अभी एनीमल स्टडीज़ से ही सामने आया है जिसे सीधे सीधे मनुष्यों पर लागू नहीं किया जा सकता तथापि इससे मोटापे के बेहतर प्रबंधन और इलाज़ में मदद ज़रूर मिल सकती है ।
अध्धययन में चूहों को हाई -केलोरी फ़ूड देने पर पताचला ,दिमागमें एडिक्शन जैसी ही अनुक्रिया पैदा होने लगती है और देखते ही देखते चूहे ओब्सेसिव ईटिंग करने लगतें हैं .उन्हें यह पता ही नहीं रहता कितना खाना है और कब तक खाना है ,इसे ही ओब्सेसिव ईटिंग कहतें हैं ।
इतना ही नहीं इन चूहों में एक ख़ास डोपामिन रिसेप्टर का स्तर घट गया .यही न्युरोत्रेंस्मितर रिसेप्टर ओवरवेट चूहों में इनाम पाने की इच्छा (ए फीलिंग ऑफ़ रिवार्ड ) पैदा कर देता है .ऐसी ही इच्छा उन लोगों में दिखलाई देने लगती है जिन्हें किसी दवा की लत पड़ जाती है ,हूकिंग हो जाती है जिनकी किसी ड्रग से ।
वास्तव में मोटापा एक तरह की कम्पल्सिव ईटिंग ही है (जब तक आप ओवर ईट नहीं करते आप को चैन ही नहीं आता ).ड्रग एडिक्शन भी एक प्रकार है "कम्पल्सन" का.स्क्रिप्स रिसर्च इन्स्तित्युत फ्लोरिडा के साइंस दान इसे एक नए तरह के इलाज़ की खोज में सहायक मान रहें हैं .यानी इलाज़ कम्पल्सन का करो ,मोटापा छट जाएगा ।
जंक फ़ूड रेट्स को कंट्रोल ग्रुप के बरक्स दोगुना केलोरीज़ हजम करते देखा गया .जबकि कंट्रोल ग्रुप के चूहों को संतुलित खुराख ही दी गई थी ।
अब जब जंक फ़ूड के स्थान पर जंक फ़ूड रेट्स को पौष्टिक खुराख दी गई (जिसे साइंसदान सलाद बार ऑप्शन कहतें हैं )तब इन्होने इसे खाने से साफ़ इनकार कर दिया .जंक फ़ूड की लत जो पड़ चुकी थी ।
सन्दर्भ सामिग्री :हूक्द :जंक फ़ूड इज एज एडिक्टिव एज कोकीन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च ३०,२०१० )

सोमवार, 29 मार्च 2010

पानी मिली शराब और बीअर की जांच के लिए "एल्कोहल टेस्टर "

जर्मनी के साइंस दानों ने ब्रीफ केस के आकार का एक ऐसा एल्कोहल टेस्टर बनाया है जो आधे सेकिंड से लेकर एक मिनिट में ही यह बतला देगा -शराब में कहीं पानी की मिलावट तो नहीं की गई है .यह युक्ति एक स्पेक्ट्रम -मापी (स्पेक्ट्रोमीटर )से लैस होगी ।
जांच के लिए बस शराब के नमूने पर अवरक्त विकिरण (इन्फ्रा -रेड रेडियेशन )डालने की देर है ,बस नमूने में से गुजरने वाली (त्रेंस्मितिद फ़्रीक्युएन्सीज़ ) का पता लगा कर इसका मिलान एक रेफरेंस साम्पिल से इसी प्रकार प्राप्त आवृत्तियों से किया जाता है .इस प्रक्रिया को केलिब्रेशन कहा जाता है .केलिब्रेशन का अर्थ होता है ,एक अज्ञात राशि की तुलना एक ज्ञात मानक (नॉन -स्टेंडर्डसे करना )देत इज कम्पेरिज़न ऑफ़ एन अन- नॉन क्वान -टीटी विद ए नॉन- स्टेंडर्ड ।
साइंसदानों ने कोई २६० साम्पिल्स की जांच के बाद बतलाया है ,यह युक्ति पावरफुल लेब उपकरणों से कारगरता में किसी भी तरह कम नहीं है ।
इस सम्वाहीय (उठाऊ युक्ति )को तैयार किया है ,"उनिसेंसोर्स्यस्तेमे" ने जिसकी कीमत ३००० यूरो है .प्रचलित उपकरणों से इसे अव्वल बतलाया जा रहा है ।
बार और पब मालिकों की धोखा धड़ी अब पकड़ी जायेगी ।
सन्दर्भ सामिग्री :बूज टेस्टिंग वाटरी ?न्यू डिवाइस तू नेल दिअलुतिद (दाया -ल्युतिद )ड्रिंक (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २९ ,२०३० )

शैवाल से बनाई गई बिजली .

केलिफोर्निया और कोरिया के साइंसदानों ने एक ख़ास किस्म की शैवाल से बिजली तैयार करने का करिश्मा कर दिखाया है .इस काई का नाम है "च्लाम्य्दोमोनसरेंहर्द्ती ".यह एक व्यापक रूप से उपलब्ध और ठीक से अध्धय्यन की गई आलगे(एल्गी ) है .इसी में से साइंसदानों ने इलेक्त्रोंन चोरी किये हैं ।
जब से यह जंगम संसार अस्तित्व में आया है तभी से तमाम तरह के प्राणी पादप जगत और वनस्पति से ,काई या शैवाल से शक्कर के रूप में इनमे सन्निहित रासायनिक ऊर्जा लेते रहें हैं ।सूर्य ऊर्जा का खज़ाना लुटाता रहा है .अब
साइंसदानों ने इस बूझ ली गई शैवाल से इलेक्त्रोंको लेकर एक स्वच्छ स्रोत (ग्रीन एनर्जी ) बिजली पैदा करने का ढूंढ निकाला है .बेशक इसे "ग्रीन इलेक्त्रिसिती "कहा समझा जा सकता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :नाव इलेक्त्रिसिती फ्रॉम एल्गी (आलगे ):(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २९ ,२०३० )

नौ साल तक ले उडती है गंदी आबोहवा हमारी ज़िन्दगी के ...

प्रदूषित हवा ना सिर्फ श्वसन सम्बन्धी परेशानियों का सबब बनती है ,इसमें मौजूद प्रदूषक तत्व हमारी ज़िन्दगी के बेशकीमती नौ साल ले उडती है .एक ब्रितानी रिपोर्ट के मुताबिक़ तकरीबन ५०,००० लोग वहां समय से पहले ही इस दुनिया से कूच कर जातें हैं ।
हाउस ऑफ़ कोमंस की एनवाय -रंमेंतल ओदित कमिटी के मुताबिक़ यह वह लोग है जहां और जिनके परिवेश में हवा या तो बहुत गंदी है या फिर वे जिन्हें श्वसन सम्बन्धी दिक्कतें घेरे रहतीं हैं ।
हवा में पसरे कनीय प्रदूषक सल्फेट और कार्बन कणों के अलावा धूल (डस्ट )तो स्वास्थ्य्के लिए खतरनाक है ही ,नाइट्रोजन के ओक्स्सैड्स तथा ओजोन भी सेहत पर दुष्प्रभाव डालतें हैं .इस बाबत युनैतिद किंडम सरासर यूरोपीय मानदंडों और रेग्युलेसंस की अवहेलना कर रहा है .इस एवज इस पर ३०० मिलियन पोंड का जुर्माना ठोका जा सकता है .यह एमिसंस को कम करने का दौर है .एक तरफ यहाँ सड़क परिवहन नियम कायदों की अनदेखी कर रहा है वहीँ पावर प्लांट्स भी हमारी हवा में खतरनाक विष (सल्फर्दाय ओक्स्सैद )घोल रहें हैं .बेशक यह उत्सर्जन शहरी सीमा के बाहर हो रहा है लेकिन पर्यावरण तो सबकी सांझी धरोहर है .हज़ारों हज़ार मील दूर इसी सल्फर डाय-ओक्स्सैद से तेजाबी बारिश हो सकती है । सवाल सिर्फ ब्रितानी शरों का नहीं है ,साफ़ सुथरी हवा ,आबोहवा से ताल्लुक रखता है .
न्यू साइंटिस्ट ने इस रपट को प्रकाशित किया है ।
ज़ाहिर एक बड़ा रद्दो बदल ब्रितानी परिवहन नीतियों में ही इस ट्रेंड से मुक्ति दिलवा सकता है .लिप सर्विस करने से कुछ होने जाना नहीं है ।
दुर्भाग्य यही है आइन्दा कमसे कम दस सालों तक ऐसा कुछ भी नहीं होना है .सरकारों का दायित्व है कुछ कायम रह सकने लायक परिवहन के बारे में भी सोचें .ब्रिटेन भी इससे बच नहीं सकता .लीड्स विश्व -विद्यालय के इन्स्तित्युत फॉर ट्रांसपोर्ट स्टडीज़ में कार्य रत पुल फार्मिंन बारहा सरकार को चेता रहें हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :पोल्युतिद एयर शोर्त्निंग लाइव्स बाई अपतु९ ईयर्स :स्टडी (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २९ ,२०३० )

क्यों वर्धमान हैं "पयोधर "?

इस दौर में "पयोधर "अतिरिक्त रूप से विकसित हो रहें हैं ,पीन -स्तनी हो रहीं हैं युवतियां ,वक्ष प्रदेश फ़ैल रहा है तो इसका कारण महज़ उनका मुटियाना भर नहीं है .३०० ब्रितानी युवतियों का ४ बरस तक निरिक्षण करने के बाद पता चला है वक्ष स्थल सृष्टि की तरह बढ़ -फ़ैल रहा है और यह बात सिर्फ उन पर ही लागू नहीं होती जो महिलायें अतिरिक्त रूप से चर्बी चढ़ाए बैठी हैं ,पतली दुबली ,कामिनी ,छरहरी युवतियोंतन्वंगियों में भी स्तनों का आकार लगातार बढ़ रहा है .यह कहना है ,जोंना स्कुर्र का .आप पोरत्स्माउथ विश्व -विद्यालय में जैव्यान्त्रिकी विभाग (बायो -मिकेनिक्स डिपार्टमेंट )में व्याख्याता हैं ।
साइंसदान इस बात का पता लगा रहें हैं ,क्यों एकाएक बड़े आकार वाली चोलियों (ब्रेज़ियार्स /बिक्नीज़ )की मांग में उछाल आ रहा है ।
बेशक कुछ की राय में ऐसा वेस्ट लाइन (कटी प्रदेश के विस्तार )के विस्तार के अनुरूप ही हो रहा है .कुछ और साइंस दान इसके पीछे खाद्य -श्रृंखला में कृषि कर्म खेती किसानी में स्तेमाल होने वाले नाशी जीव -नाशियों (पेस्ट -इसैड्स )का प्रछन्न हाथ देख रहें हैं .तरह तरह के प्लास्टिक्स भी फ़ूड चैन में जगह बना रहें हैं ।
कुछ और विज्ञानी इसके पीछे किसी अज्ञात कारण को देख समझ रहें हैं ।
जो हो ब्रिटेन में सुपर साइज़ ब्राज़ का बाज़ार फ़ैल पनप रहा है ।
कुछ विज्ञानी पयोधरों के बड़े होते रूपाकार के पीछे मानव निर्मित रसायनों को ही कुसूरवार मान रहें हैं .यही रसायन स्त्री -योचित हारमोन "ईस्त्रोज़ंन "के साथ छेड़ छाड़ कर रहें हैं ?
एग्रीकल्चर पेस्तीसैड्स और प्लास्टिक्स हमारी फ़ूड चैन में निर्विवाद तौर पर पैठ गए हैं .हारमोन सम्बन्धी विकाश के साथ यह छेड़छाड़ करतें हैं इस बात से इनकार करना मुश्किल होगा ।
यौवन की देहलीज़ पर पाँव रखते ही ईस्त्रोज़ंन की भूमिका आरम्भ हो जाती है .स्तन ऊतकों को यही हारमोन एडलगाता है .ऐसे में इसकी अतिरिक्त मात्रा कुछ ना कुछ गुल तो खिलाएगी ही .पयोधर (स्तन )विकास भी इसकी जद में आने से नहीं बच सकते .खतरा यही है ,अगर स्तन कोशिकाएं म्युतेत होने लगें (उत्परिवर्तित होने लगें )तब क्या होगा ?यह कहना है ,पोषण -विज्ञानी मरिलिन ग्लेंविल्ले का .कुछ ना कुछ इस दिशा में किया जाना चाहिए ।
सन्दर्भ सामिग्री :वोमेन गेटिंग बस्तिअर ,पेस्तीसैड्स रोल अंदर लेंस (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ).

रविवार, 28 मार्च 2010

खगोल विज्ञान के लिए क्या है "चंद्रशेखर -लिमिट "?

तारा -भौतिकी के लिए चंद्रशेखर -सीमा एक एहम मुल्यांक है. वाईट ड्वार्फ स्टार्स के द्रव्यमान की ऊपरी सीमा है यह क्रांतिक द्रव्यमान. यह वह द्रव्यमान सीमा है जो एक नॉन -रोटेटिंग एस्ट्रल - बोडी(अ -नर्तन - शील तारकीय पिंड )धारण नहीं कर सकता .इसके ऊपर वह अस्तित्व शेष हो जाएगा .क्योंकि इसके इलेक्त्रोंन कोशों (इलेक्त्रों शेल्स )में प्रेशर बहुत बढ़ जाएगा जिसे यह संभाल नहीं सकेगा .,और अपने ही ऊपर ढेर हो जाएगा (ग्रेविटेशनल कोलेप्स कहतें हैं इस स्थिति को )।
चंद्रशेखर लिमिट मात्रात्मक रूप में २.८५ टाइम्स तेंन तू थर्टी है यानी तकरीबन १.४ सौर द्रव्यमान के तुल्य(१.४
टाइम्स सोलर मॉस ).तारों के उद्भव और विकाश जन्म और मृत्यु को जान लेने के लिए इसका (चंद्रशेखर लिमिट )का ज्ञान आवश्यक है ।मृत्यु के बाद कौन किस योनी में जाएगा कौन लाल दानव बनेगा कौन दैत्य (ब्लेक होल )इसका फैसला चंद्रशेखर द्रव्यमान ही करता है .एक ना एक दिन सितारा अपनी एटमी भट्टी में सारा ईंधन खपा देता है और उसकी जीवन लीला समाप्त हो जाती है .
इसका(चन्द्र शेखर सीमा ) रोल तब शुरू होता है जब तारा अपनी एटमी भट्टी में सारा ईंधन खपा चुका होता है .अपने जीवन काल में तारा एक संतुलन (एक साम्यावस्था )बनाए रहता है .न्युक्लीअर फ्यूज़न से पैदा बाहरी दवाब और गुरूत्वीय संकुचन में एक रस्सा कसी चलती है लेकिन जीत किसी की भी नहीं होती .ईंधन चुक जाने पर सारा मंज़र बदल जाता है .अब तारा मैंन सिक्युएंस (मुख्य क्रम )को छोड़ देता है .ईट टेक्स ए डाउन टर्न हेंस फोर्थ .डाउन हिल यात्रा यहीं से आरम्भ होती है .सितारा उत्तरोत्तर भारी से भारी तत्व बनाता चला जाता है .लेकिन यह प्रक्रिया आयरन के निर्माण के साथ ही थम जाती है .अब सितारे की कोर में ना तो वह आंच रहती है ना घनत्व (तेम्प्रेचर्स एंड डेंसिटी आर इन्सफिशियेंत फॉर फर्दर फ्यूज़न ऑफ़ एलिमेंट्स बियोंड आयरन )।
अब सितारा खुद ऊर्जा हजम करने लगता है जबकि अभी तक फ्यूज़न एनर्जी रिलीज़ हो रही थी .अपनी जीवनअवधि के इन अंतिमदसियों लाख बरसों में ज्यादर तर सितारे सौर पवनों के रूप में अपनी सब राशि चुका देता हैं .शेष रह जाती है एक अपेक्षाकृत लघुतर कोर .अब यदि इस कोर का द्रव्यमान चन्द्र शेखर क्रांतिक द्रव्यमान से कम रह जाता है तब यह एक बौने सितारे के रूप में अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है .यही इसके विकाश की अंतिम अवस्था होती है .एक पृथ्वी के आकार लेकिन सूरज जितना भारी (द्रव्यमान राशि )पिंड शेष रह जाता है जो अपेक्षा कृत कम गर्म होता है इसीलिए वाईट ड्वार्फ कहलाता है ।
लेकिन द्रव्यमान राशि चंद्रशेखर सीमा से ज्यादा होने पर तारा अपने ऊपर दबता हुआ लट्टू की तरह नर्तन करता हुआ एक न्युत्रोंन स्टार बन जाता है .इसके इलेक्त्रों और प्रोटोन आपस में जुड़ जातें हैं तभी तो न्युत्रोंन सितारा बनता है .जिसकी गवेषणा आइन्स्टाइन ने सापेक्ष वाद के गुरुत्व सम्बन्धी सिद्धांत के तहत की थी .कहा था जब कोई यात्री इस पिंड के पास पहुंचेगा तो सुईं की टिक टिक थम जायेगी .काल का प्रवाह रुक जाएगा इसके गुरू -गुरुत्व से ।
द्र्व्यराशी और भी अधिक होने पर अंतिम प्रावस्था में एक ब्लेक होल (शून्य आयतन वत बिन्दु अनंत घनत्व लिए )भी बन सकता है .जिसमे सुपरनोवा बन कर विस्फोटित होने की कूवत बनी रहती है ।ब्लेक होल के प्रांगन में भौतिकी के सभी ज्ञात सिद्धांत चुक जातें हैं .अन्तरिक्ष और काल खंडित हो जातें हैं .पदार्थ का अस्तित्व समाप्त हो जाता है .एक रेडियेशन सूप रह जाता है .

क्या है थम्बो (थम्ब +टाइपो )?

एक संकर वर्ण (हाईब्रीड मिश्र )है "थम्बो "थम्ब और टाइपो कामिश्र .यहाँ "टाइपो का अर्थ टाइपिंग एरर (मामूली सी टंकण त्रुटि और थम्ब का अर्थ अंगुष्ठ (अंगूंठा )है ही .दोनों से मिलकर बना थम्बो जिसका अर्थ मोबाइल फोन टेक्स्ट एरर से है यानी मोबाइल फोन पर वाक्य -विषय /मूल पाठ सम्बन्धी गलती ,त्रुटि ।
ऐसा ही एक और संकर वर्ण है "स्पीको "जिसका अर्थ हुआ इमला बोलते (डिक्टेशन देने के दौरान होने वाली गलती )वक्त होने वाली त्रुटि ।
इन्फार्मेशन टेक्नोलोजी के दौर में ऐसे ही शब्दों का भंडार भरता जा रहा है .ऐसा ही एक और शब्द है "साईं -बोर्ग "यानी सैबर्नेतिक्स और ओर्गेनिस्म का जामा जोड़ ,आधा मनुष्य आधा पुर्जा,ऐसा व्यक्ति जिसके शरीर में गेजेट्स की भरमार है ,मशीन युक्त इंसान .आप याद कीजिये कई शब्द आपको भी याद आयेंगें .

मीज़ल्स और जर्मन मीज़ल्स में क्या फर्क है ?

दोनों ही विषाणु से पैदा होने वाले संक्रमण शील (इन्फेक्ष्श )रोग हैं जो आम तौर पर बच्चों को हो जातें हैं .जहां मीज़ल्स यानी खसरा में लाल चिकत्ते (रेड रेशिश)सारे शरीर पर हो जातें हैं वहीँ जर्मन मीज़ल्स में चमड़ी पर बदरंग (वर्णहीन )चिक्त्ते छा जा जातें हैं .यानी चमड़ी का रंग ही ले उड़तें हैं ।
जर्मन मीज़ल्स में चिक्त्ते उभरने से पहले मरीज़ को ठंड लग सकती है (जूड़ी चढ़ सकती है )गर्भ वती माताओं के लिए जर्मन मीज़ल्स खतरनाक हो सकती है खासकर उनके लिए जिनमे इस विषाणु के प्रति इम्युनिटी (रोग प्रति -रक्षण नहीं है )नहीं है ।
एक जर्मन काया -चिकित्सक ने इसका पता लगाया था इसीलियें इसे जर्मन मीज़ल्स कहा जाता है ।
मीज़ल्स के लक्षणों में माइल्ड अपर रिस्पाय्रेत्री अफेक्ट (ऊपरी श्वसन क्षेत्र असरग्रस्त होता है ),उच्च ज्वर (हाई -टेम्प्रेचर ),कन्जक्तिवाइतिस् शामिल है .ज्वर ४-५ दिनों में उतर जाता है .

क्या पृथ्वी का तापीय -बजट (हीट बजट )

पृथ्वी पर पड़ने वाले कुल सौर विकिरणका कुछ अंश पृथ्वी रोक लेती है औरशेष पृथ्वी से अंतरीक्ष को विकिरण के रूप में लौटा दिया जाता है .दोनों का जो अंतर है वह हीट बजट है ।
हम जानतें हैं पृथ्वी ने एक कार्बन डायओक्स्साइड का ओढना ओढ़ा हुआ है जो हीट वेव्स (अपेक्षाकृत अधिक लम्बाई की तरंगों )को अन्तरिक्ष में वापस जाने से रोके रहता है और पृथ्वी पर एक जीवन के अनुकूल तापमान बना रहता है .यानी हमारी पृथ्वी और उसका कार्बन डाय -ओक्स्साइड से युक्त वायुमंडल एक ग्रीन हाउस की तरह व्यवहार करता है ।पृथ्वी के तापमान में बस ४ सेल्सिअस की घट बढ़ -
एक छोर पर आइस एज ,दुसरे पर जलप्लावन (दिल्युज )की वजह बन सकती है .इसी लियें इन दिनों ग्लोबल वार्मिंग और तद -जनित (उस से पैदा )जलवायु परिवर्तन की चर्चा है .अभी कल ही "अर्थ -आवर्स "प्रतीक स्वरूप मनाया गया है २७ मार्च (औताम्नल एक्युइनोक्स )को दुनिया भर के कितने ही देशों ने रात्रि ८.३० -९.३० तक गैर ज़रूरी बत्तियों (लाइट्स )को गुल रखा .भारत ने भी इसमे शिरकत की .इस दरमियान १००० मेगावाट तक बिजली की खपत कम की जा सकी .

क्या है प्लास्तिनेशन (आंगिक परिरक्षण )?

मानवीय अंगों (ह्यूमेन ओर्गेंस )ऊतकों ,यहाँ तक ,पूरी काया को परिरक्षित करके संजोये रखने वाले विज्ञान को "प्लास्तिनेशन "कहा जाता है .यूँ इस एवज परम्परागत तौर पर शव परिरक्षण के लिए मेडिकल कोलिजिज़ में फोर्मेलिन का स्तेमाल किया जाता रहा है लेकिन प्लास्तिनेशन एक अलग तकनीक है जिसके तहत ओर्गेंस और ऊतकों में फ़्ल्युइद्स की जगह सिलिकोन रबर ,एपोक्सी रेसिंन और पोलिएस्टर रेसिंन जैसे रिएक्टिव प्लास्टिक्स का स्तेमाल किया जाता है .इसके लिए एक ख़ास वेक्यूम प्रक्रिया अपनाई जाती है जो कई चरणों में संपन्न होती है बेशक इस प्रक्रिया में भी फोर्मेलिन की तरह अंगों का क्षय रोका जाता है ,तथा स्पेसिमेन के प्राकृत रंगों को जस का तस बनाए रखा जाता है ।
अनातोमिकल स्पेसिमेंस के परिरक्षण की यह विधि आकस्मिक तौर पर १९७८ में हेइदेल्बेर्ग यूनिवर्सिटी के अनातोमी एंड सेल्युलर बायलोजी इन्स्तित्युत में कार्यरत एक रिसर्च असिस्टेंट गुन्ठेर वोंन हगेंस के हाथ लगी थी .वह व्यक्ति जो प्लास्तिनेशन की इस टेक्नीक का माहिर होता है उसे "प्लास्तिनेतर "कहा जाता है .

शनिवार, 27 मार्च 2010

मुख मैथुन (ओरल सेक्स )के खामियाजे ...

हेड और नेक कैंसर का सम्बन्ध इन दिनों एक ऐसे विषाणु (वायरस )से जोड़ा जा रहा है जो मुख मैथुन(ओरल सेक्स ) के ज़रिये फैलता है .एक अध्धययन से पता चला है ,ओरोफेरिन्ज़ियल कार्सिनोमा का जोखिम उन लोगों में बढ़ जाता है ,जो ता उम्र ६ या और भी ज्यादा लोगों से यौन सम्बन्ध बनाए रहतें हैं ,और चार से लेकर ६ लोगों से मुख मैथुन (ओरल इंटरकोर्स )भी करते रहतें हैं .मर्दों में इस की वजह फस्ट सेक्स्युअल सम्बन्ध बनाते वक्त कम उम्र का होना भी बतलाया जा रहा है ।

ओरोफेरिन्क्स ग्रसनी (उदर में भोजन जल आदि ले जाने वाली नली ) के केन्द्रीय भाग को कहा जाता है जो सोफ्ट पालित ( कोमल तालू )और एपिग्लोतिस के मध्य आता है ।

गत दिनों एक और हेड और नेक कैंसर के मामले कम ज़रूर हुए हैं लेकिन एक ख़ास कैंसर "ओरो फेरिन्ज़ियल स्कुएमस सेल कार्सिनोमा" के मामले लगातार बढ़ रहें हैं .विकसित देशों का हाल ज्यदा खराब है ।

कारण बन रहा है "ह्यूमेन पेपिलोमा वायरस" से पनपने वाला कैंसर .साइंस दानों ने यह तमाम जानकारी "ब्रिटिश मेडिकल जर्नल को मुहैया करवाई है ।

सर्वाइकल कैंसर के लिए यही विषाणु जिम्मेवार है जो दुनिया भर के लिए सिर दर्द बना हुआ है .हालाकि इसकी काट के लिए टीके हैं -सर्वेरिक्स और गार्दासिल .कई देशों ने सेक्स्युअली एक्टिव किशोरियों को इस सेक्स्युअली प्रसार पाने वाले ह्यूमेन पेपिलोमा वायरस से बचाए रखने के लिए ये टीके लगवाने शुरू किये है टीकाकरण अभियान के तहत लेकिन गरीब देशों के लिए तो अभी यह दिवा स्वप्न ही है .यहाँ तो कोई समस्या को तस्दीक करने को ही राज़ी नहीं है ।

यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल कोवेंट्री के हेड एंड नेक संस्थान के साइंसदान कहतें हैं यही वक्त है किशोरों को भी इस टीकाकरण अभियान में शरीक किया जाए भले यह फिलवक्त महंगा साबित होगा ,लेकिन्वक्त हाथ से निकल रहा है .अनदेखी करने पर नासूर बन जाएगा यह रोग ,जो मुख मैथुनी (डोज़ हूक्द तू ओरल सेक्स ) लोगों में तेज़ी से पाँव पसार रहा है ।

सन्दर्भ सामिग्री :सेक्स वायरस तैदतू राइज़ इन नेक ,हेड कैंसर्स ,काल फॉर वेक्सिनेशन ग्रोज़ (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २७ ,२०१० )

शरीर से चर्बी की छंटाई के लिए "गट बेक्टीरिया ".

पाचन में अंतड़ियों में पाए जाने वाले "गट बेक्टीरिया "का बड़ा हाथ होता है .ज़ाहिर है यदि आप बिना कुछ किये धरे (डाइटिंग या कसरत ना करते हुए भी )शरीर से चर्बी उतारना कम करना चाहतें हैं तब गट बेक्टीरिया की एक सर्विंग आप की मदद कर सकती है ।
जापानियों ने अपने एक अध्धयन में माउस के गट बेक्टीरिया को ह्यूमेन गट फ्लोरा से रिप्लेस करने के बाद क्या देखा ?अंतड़ियों से वसा का अवशोषण (ज़ज्बी )कम हो गया ।
निष्कर्ष निकाला गया यदि ओवर वेट लोगों की खुराख में एक प्रकार का "गट माइक्रोब "शामिल किया जाए तब इसके अच्छे नतीजे मिल सकतें हैं .ऐसा हुआ भी .इन सभी लोगों का वजन कम हो गया ।
कारण बेक्टीरिया अंतड़ियों द्वारा चर्बी की ज़ज्बी को कम करदेता है ..रोक लगाता है वसा के अवशोषण पर ।
बाधित करता है चिकनाई की ज़ज्बी को ।
अध्धययन के दौरान साइंसदानों ने ८७ ओवरवेट स्वयं -सेवियों को १००ग्रेम किन्वित दूध (फर्मेंतिद मिल्क )मुहैया करवाया रोजाना .,दिन में दो बार .दही बनाने में इसी किन्वित दूध का स्तेमाल किया जाता है ।
इनमे से आधे वोलान्तीयार्स के दूध में लेक्तोबेसा -इल्स गस्सेरी की बहुलता रखी गई .१२ हफ़्तों के बाद इनका वजन एक किलोगेर्म कम हो गया .बाकी आधे का वजन जस का तस रहा ।
स्केन्स से यह भी पता चला इनका "बेद विसरल फेट "भी ४.६ फीसद कम हो गया .मेटाबोलिक सिंड्रोम में इस विसरल फेट का बड़ा हाथ होता है .अलावा इसके इनके सब -क्यूट एनिअस फेट में भी ३.३ फीसद की कमी दर्ज की गई .यानी चमड़ी के नीचे छिपा फेट भी कम हुआ ।
हिप (नितम्ब )और वेस्ट (कटी )का घेरा (सरकंम फारेंस )१.७ और १.५ सेंटीमीटर घटा ।
२००९ में जेरेमी निकोल्सन ने अपने साथी रिसर्चरों के साथ मिलकर (इम्पीरियल कोलिज लन्दन )प्रोबायोटिक्स "लेक्टो बेसैलास" की स्ट्रेंन मैस को परोसी .इनके गट माइक्रोब्स को ह्यूमेन गट फ्लोरा से पहले ही रिप्लेस कर दिया गया था .पता चला इनमे एक अलग प्रकार का बा -इल एसिड बना जिसने ऐसे एंजाइम्स का साथ दिया जो अंतड़ियों से फेट को उडातें हैं .वसा के पाचित अंश को कमतर करतें हैं .इस प्रकार एक और माइक्रोब्स ज्यादा वसा ले उड़ते हैं दूसरी और मल के साथ बाहर चले जातें हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :तू कट फ्लेब ,एड अ हेल्पिंग ऑफ़ गट बग्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २७ ,२०१० )

क्या है :बी स्टिंग थिरेपी ?

साइंसदानों के मुताबिक़ "बी तोक्सिन "काटने पर मधु मख्खी जो विषाक्त पदार्थ छोडती है वह चीनी चिकित्सा का एक तीन हज़ार साल पुराना किस्सा रहा आया है .बी स्टिंग थिरेपी के तहत कुछ ख़ास प्रेशर पॉइंट्स पर मधु मख्खियों से कटवाया जाता है .बी स्टिंगर यहाँ एक इंजेक्शन का काम करता है .चीनी चिकित्सा के तहत २००७ में बी स्ट्रिंग ट्रीटमेंट को वैधानिक दर्ज़ा दे दिया गया है .चीनी अस्पतालोंमे अच्छे स्वास्थ्य के लिए लोग बी -प्रिक के लिए उतावले रहतें हैं ।
दीगर है मधु मख्खी से घिर जाने पर काटे जाने पर कुछ लोगों को खतरनाक एलर्जिक रिएक्शन से बचाव के लिए "एंटी -हिस्तामिंस ' ' के टीके लगवाने पडतें हैं .भले आदमी आप मधु मख्खी से मत कटवा लेना .चिकित्सा के तहत बी -प्रिक एक पद्धति ज़रूर है लेकिन यह काम माहिरों का है ।
सन्दर्भ सामिग्री :चाइनीज़ स्वार्म तू क्लिनिक फॉर बी -स्टिंग ट्रीटमेंट (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २३ ,२०१० )

शांत चित्त वालों की याद -दाश्त रहती है तेज़ ....

उत्तेजना से दूर शांत -चित्त रहकर आप जो कुछ सीखते करते है उसकी दिमाग पर गहरी छाप पडती है .जब हम प्रशांत होतें हैं तब याद दाश्त से ताल्लुक रखने वाले न्यूरोन एक ख़ास दिमागी तरंग के साथ मिलकर रिदम के साथ एक ताल हो काम करने लगतें हैं ,सन्देश भेजने लगतें हैं ।
केलिफोर्निया इन्स्तित्युत ऑफ़ टेक्नोलोजी के साइंसदानों ने इस अध्धय्यन को आगे बढाया है .दिमागी सर्किट के स्तर पर जो घटनाएं घटतीं हैं उनका हमारे व्यवहार से सीधा सम्बन्ध है यही निचोड़ है इस अध्धययन का ।
एक साथ काम को आगे बढाने में तुल्यकालिक होने को थीटा वेव्स प्रभावित करतीं हैं .जब हमारा चित्त शांत होता है जब हम दिवा स्वप्न देख रहे होतें हैं ,उनींदे बने से तब सीखने की प्रक्रिया को भी यही थीटा वेव्स असरकारी बनातीं हैं .दिमाग की थीटा वेव्सप्रावस्था (फेज़ ) में जो कुछ हम सीखतें हैं उसकी अमिट छाप पडती है ।
जब हम शांत चित्त होतें हैं ,हमारा दिमाग नै ग्रहण की गई सूचना का संसाधन बेहतर तरीके से करता है ।
यह अध्धयन उस प्रकिर्या का खुलासा करता है जिसके ज़रिये रिलेक्स्शेशन न्युरोंस मेमोरी को पुख्ता बनाते हैं ,मेमोरी में इजाफा करतें हैं ।
जब यही मेमोरी सम्बन्धी न्युरोंस थीटा वेव्स के साथ सही तौर पर समन्वित हो जातें हैं .दोनों के बीच परस्पर बेहतर संयोजन होता है ,तब सीखने की प्रकिर्या और याद -दाश्त भी तेज़ी से बनती है .,आगे बढती है ।
न्यूरोसर्जन अदमममेलक (सेदर्स -सिने मेडिकल सेंटर ,लोस एन्ज़िलीज़ )भी यही निष्कर्ष निकाल्तें हैं ।
अध्धयन के मुताबिक़ यदि किसी तरह दिमागी स्टेट को एक आदर्श स्टेबनाया जा सके,चित्त को शांत बनाए रखने के इंतजामात किये जा सकेतब इस अवस्था में जो भी कुछ सीखा समझा जाएगा वह मुकम्मिल छाप छोड़ेगा ।
लर्निंग दिसेबिलितीज़ से ग्रस्त लोगों (डिस्लेक्सिया ),डिमेंशिया के मरीजों के लिए एक बेहतर थिरेपी का यही आधार बन सकता है किसी दिन ।
सन्दर्भ सामिग्री :वाई रिलेक्स्ड माइंड्स फॉर्म बेतर मेमोरीज़ (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २६ ,२०१० )

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

गमो का दौर भी आये तो मुस्करा के जियो ....

हूज़ुमे गम मेरी फितरत बदल नहीं सकते /मैं क्या करूँ मुझे आदत है मुकराने की ।
विज्ञान भी शायर की कही से सहमत प्रतीत होता है ."ब्रोदर दी स्माइल ,लोंगर यु लिव :स्टडी ।
आपकी मुस्कान जितनी चौड़ी होगी ,जितनी ज्यादा लकीर बनेगी आपकी आँखों के गिर्द (डीपर क्रीज़िज़ अराउंड यूओर आइज़ ) उतनी ही ज्यादा लम्बी आपकी उम्र होगी ,ऐसी संभावना व्यक्त की गई एक अध्धययन के नतीजों में । अध्धय्यन के तहत अमरीकी मेजर लीग बेस बाल प्लेयर्स के २३० छाया चित्रों का अध्धययन किया गया .ये तमाम खिलाड़ी १९५० के पहले से खेल रहे थे .इनमे से कुछ के चेहरे सपाट थे ,देअद्पन
विद नो स्माइल ,बस ये केमरे की तरफ देखभर रहे थे . कुछ के चेहरे पर लेदेकर आंशिक मुस्कान थी .मुख के आस -पास की पेशियों तक ही सीमित थी यह मुस्कान जबकि कुछ के चेहरे पर बला की स्मित थी ,फुल स्माइल ,ना सिर्फ चेहरा इनकी आँखों में भी मुस्कराहट थी .कपोलों पर उभार था ,जैसे ख़ुशी से फूल कर गोल गप्पा हो रहें हों ।
यह तमाम तस्वीरें १९५२ के बेस बाल रजिस्टर से ली गईं थीं ।
जिनके चेहरे से मुस्कान गायब थी उनकी उम्र ७२.९ वर्ष ,आंशिक मुस्कान वाले ७५ साल तक ज़िंदा रहे जबकि एक भरी पूरी मुस्कान वाले ७९.९ बरसों तक जिए ।
आखिर हंसना मुस्कराना आदमी का ही विशेष गुण है .लाफ्टर ना सिर्फ एक टोनिक है ,थिरेपी भी है .इसीलिए शायर ने कहा होगा -ग़मों का दौर भी आये तो मुस्करा के जियो ,ना मुह छिपा के जियो और ना सिर झुका के जियो .

नेत्र रोगों के बेहतर प्रबंधन के लिए विटमिन -ई युक्त कोंटेक्ट लेंस .

भारतीय मूल के विज्ञानी अनुज चौहान ने एक ऐसा विटामिन संसिक्त कोंटेक्ट लेंस तैयार किया है जिसके इस्तेमाल से नेत्र रोगों का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा .यह कोंटेक्ट लेंस दवा को देर तक आँखों में संजोये रहता है जबकि आई द्रोप्स मात्र २ -२.५ मिनिट (दो ढाई मिनिट )तक ही हमारी आँखों में बनी रह सकतीं हैं .विटामिन -ई की मौजूदगी में दवा आई द्रोप्स की तुलना में सौ गुना ज्यादा अवधि तक बनी रह सकती है ।
ग्लूकोमा जैसे नेत्र रोगों में यह बेहद असरकारी सिद्ध हो सकता है जिसके तहत नेत्र दाब का प्रबंधन किया जाता है .डॉक्टर अनुज फ्लोरिडा विश्व -विद्यालय में शोध रत हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :लेंसिज़ विद विटामिन -ई तू ट्रीट आई एल्मेंट्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २६ ,२०१० )

मंगलवार, 23 मार्च 2010

नानियाँ जिन मर्दों को पालती हैं .......

नानियाँ जिन मर्दों की शिशुकाल से ही परवरिश करतीं हैं ,उनके लौंडिया -बाज़ (वोमेनाइज़र)बन ने की संभावना बलवती हो जाती है ?हम नहीं ऐसा एक अमरीकी मनो -रोग विद कह रहें हैं ।
डेनिस फ़्रिएद्मन अपनी किताब "दी अन -सोली -साईं -तिद गिफ्ट "में उन माताओं को आगाह करते हुए कहते हैं जिनके पास अपने पुत्र की परवरिश के लिए वक्त नहीं है ,जो अपनी जिम्मेवारी अपनी माँ को सुपुर्द कर निश्चिन्त हो जातीं हैं ,आपका बेटा ता उम्र दोहरे -मान दंड जीता रहता है .लाइफ लॉन्ग डबल स्तेन्दर्ड्स उसे घेरे रहतें हैं ।
शादी शुदा जिन्दगी में उसका एक औरत से पेट नहीं भरता ."हलवा सूजी का चस्का दूजी का "उसे तंग करता रहता है .यह जो दूसरी औरत है "दी अदर-वोमेन "यह जो बचपन से उसके साथ चली आई है यह उसकी हर ख्वाइश पूरी कर सकती है यही फलसफा उसे भरमाये रहता है .यही जानती समझती है ,उसे कब क्या चाहिए .बीबी तो अपनी धुन में रहती है .कंप्यूटर वायरस बन परेशानियां बुनती रहती है ।
सन्दर्भ सामिग्री :"बोइज विद नानीज टर्न वोमेनाइज़र्स(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २२ ,२०१० )

सिलिकोन -ब्रेस्ट -इम्प्लांट की छुट्टी .....

वक्ष -स्थल (असेट्स ऑफ़ ए वोमेन ) औरत की अनातोमी का केन्द्रीय आकर्षण रहा है .इसी लिए ब्रेस्ट इम्प्लांट चलन में आये .लेकिन एक दिक्कत इन्हें तकरीबन हर दस साल बाद बदलवाने की रही .अब उम्र भर के लिए "फुलर ब्रेस्ट "तैयार किये जा रहें हैं और वह भी महिला के खुद के स्तनों से ऊतक लेकर .शल्य कर्म के बाद ना कोई स्कार.इम्यून सिस्टम द्वारा सहज स्वीकृति इस प्रत्यारोप की खसूसियत है ।
बस एक तीनघंटे की शल्य -चिकित्सा के ज़रिये एक स्वाभाविक और भरी -पूरी "बूब जॉब "मुकम्मिल वक्ष स्थल ,वक्ष प्रदेश का निर्माण .खिलखिलाते वक्ष -कुसुम .
पीनास्त्नी बनने सवरने का खर्च आ रहा है ८००० पोंड ।
लौरेंस किरवान अब तक ऐसे १५० कामयाब बूब जॉब कर चुके हैं .स्तन -ऊतकों से विकसित इम्प्लांट लगा चुके हैं .इसे ब्रेस्ट -एनलार्जमेंट में एक ब्रेक थ्रू कहा जा रहा है .सिलिकोन -इम्प्लान्ट्स के अपने जोखिम और घुमाव और पेचीदगियां रहीं हैं .सुरक्षित नहीं रहें हैं सिलिकोन -ब्रेस्ट -इम्प्लान्ट्स .

गर्भ निरोधी गोली से हेयर -लोंस.....

बालों के गिरने की यूं अनेक वजहें होतीं हैं ,मसलन पोषण का अभाव (पोषण से जुडी है केश -राशि की सेहत ),किसी दवा का पार्श्व प्रभाव (कीमोथिरेपी से अक्सर गंज तक पैदा हो जाती है )भी केश -पात की वजह बन सकता है ।
इधर गर्भ -निरोधी गोली भी बालों के झड़ने के लिए कुसूरवार पाई गई है .और इसके पीछे उन हारमोनों का हाथ होता है जिनकी इस कोंत्र्सेप्तिव पिल में बहुलता (लोडिंग )होती है ।
दविड़ सलिंजर (केश -विज्ञानियों के अंतर -राष्ट्रीय संघ के निदेशक )कहतें हैं ,कितनी ही युवतियों में जिनमे किशोरियां भी शामिल हैं (टीनएजर्स इन देयर मिड टीन्सभी इनमे शरीक हैं )गर्भ निरोधी टिकिया बालों के छीजने (थिनिंग ऑफ़ हेयर्स )की वजह बन रही है .सलिंजर कहतें हैं मेरे पास इलाज़ के लिए रोजाना एक नवयौवना ज़रूर आती है ,एक से ज्यादा भी ।
दिलचस्प यह भी देखना है ,जहां "यस्मिन "और "दिअने ३५ "गर्भ निरोधी गोलियां बालों की बढ़ -वार में सहायक भी सिद्ध हुईं हैं वहीँ वहीँ इनकी पुरानी हमजोली रहीं "लोएत्ते ",लेव्लें आदि गोलियां उन महिलाओं में खासकर मिड टीन एजर्स में केश पात की वजह बनती रहीं हैं जिनमे केश्पात खानदानी प्रवृत्ति के रूप में चला आया है ।
सन्दर्भ सामिग्री :कोंत्र्सेप तिव पिल केंन ट्रिगर हेयर -लोस(टाइम्स ऑफ़ इंडिया मार्च २२ ,२०१० )

रविवार, 21 मार्च 2010

न्युरोथिओलोजि अर्थात ........

न्यूरोलोजी (तंत्रिका विज्ञान और थिओलोजी के मेल से बनेगा "न्युरोथिओलोजि "यानी दोनों का मिश्र अंतर -अनुशाशन के तहत आने वाला एक विज्ञान "तंत्रिका -अध्यात्म -विज्ञान ".मन और शरीर को जोड़ने वाला एक पुल है यह नया अनुशाशन .मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत .यह भी तो कहा ही गया है :यु बिकम वाट यु थिंक .यही माइंड बोडी कनेक्ट है ।
तंत्रिका -अध्यात्म -विज्ञान के तहत धर्म और अध्यात्म के तंत्रिका जीव-विज्ञान का आधार तलाशा जाता है .हमारे संवेग और अशरीरी -विचार सरणी हमारे शरीर किर्या विज्ञान ,फायरिंग ऑफ़ न्युरोंस ,तथा सांस की धोकनी ,रिदम ऑफ़ आवर हार्ट का विनियमन करते रहते हैं और हमें खबर भी नहीं होती .हमारे चित्त का रोग के लक्षणों की तीव्रता पर असर पड़ता है ।
४५ फीसद चिकित्सक ऐसा बाकायदा मानते समझतें हैं ,हमारे धार्मिक विशवास हमारे चिकित्सा दायरे हमारी प्रेक्टिस को प्रभावित करतें हैं ।
डॉक्टर्स हर पल दर्द कराहट और मौत से घिरे रहतें हैं ,ऐसे में अध्यात्म ही उनको इस भंवर से बाहर लाता है .शिकागो विश्व -विद्यालय में किये गए एक सर्वेक्षण से यह नतीजे निकाले गए हैं ।
आर्टेमिस हेल्थ इन्स्तित्युत की मुख्य एनास्थिज़ियोलोजिस्त (चेतना हारी -विद )डॉक्टर जस कटारिया कहतीं हैं ,हमारे तमाम अस्पतालों में करीब करीब सभी में एक प्रार्थना कक्ष होता है .यहाँ सुबहो शाम मन्त्र और प्रार्थना ध्वनी विस्तार के बाद गूँजतीं हैं .एक स्प्रिचुअल चार्जिंग होती है इससे ।
कितने ही सर्जन अपने मरीज़ के लिए प्रार्थना और सिजदे में झुक जाते हैं .इसका मरीज़ के साथ आये लोगों पर जादुई प्रभाव पड़ता है .आप बीती सुनाते हुए कितने ही मरीज़ भावुक हो जातें हैं .श्रृद्धा से झुक जातें हैं वह अपने सर्जन के प्रति .मैंने खुद इस स्थिति को भोगा जिया है .कोरोनरी बाई पास ग्रेफ्टिंग (ओपीन हार्ट सर्जरी )के बाद जिस दिन मुझे एस्कोर्ट्स अस्पताल से छुट्टी दी गई उससे ठीक पहले हमारे सर्जन डॉक्टर त्रेहन ने हमारे सीने की हड्डी स्टर्नम का अपनी जादुई ऊंगलियों से स्पर्श करते हुए पूछा -सब ठीक है ,और हम सभी मेरे साथ अनन्यमरीज़ जिन्हें डिस्चार्ज किया गया था अभिभूत थे .डॉक्टर त्रेहन सीधे मेडिटेशन रूम से उठ कर आये थे ।
वैद्यो नारायानो हरी :मरीज़ के लिए डॉक्टर परमात्मा का ही मनुष्य रूप होता है .ओपरेशन थियेटर जाते वक्त मैं शिव बाबा के ध्यान में था ,कूल एंड कंपोज्ड ।
मैक्स अस्पताल दिल्ली के प्रदीप चौबे कहतें हैं :शल्य कर्म से पूर्व मैं प्रार्थना में होता हूँ .ओपरेशन थियेटर में मेरे साथ एक और शक्ति होती है .(तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होता )।
ओपरेशन थियेटर में कोई तीसरी शक्ति भी हमारे साथ काम करती है यह कहना है डॉक्टर अशोक वालिया का .आप सीनियर एन्स्थिज़ियोलोजिस्त हैं .डॉक्टर अशोक वालिया कहतें हैं हमें मरीज़ को बेहोश करना उसे निश्चेतक देना सिखाया जाता है .वह चेतना में कैसे लौटता है हमें नहीं मालूम .सब उसका करिश्मा है ।
डॉक्टर अशोक रैना याद करते हुए कहतें हैं :उस बच्चे की आँख में कांच की कनी (स्प्लिंतर ऑफ़ ग्लास )गिर गया था .मेरे वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक ने कहा था ,केस बहुत बिगड़ चुका है .बीनाई (आँख की रोशनी )बचने की कोई उम्मीद नहीं है .मेने चिकित्सा करने की इजाज़त मांगी .यकीन नहीं होता कोई अदृश्य शक्ति मेरे साथ थी उस बालक की बीनाई ८० फीसद तक बचाई जा सकी ।
आदमी (खासकर चिकित्सक आस का साथ नहीं छोड़ता भले ही आस पल्लू छुडा जाए )।
मेडिटेशन के दरमियान दिमाग अल्फा फेज़ से थीटा वेव्स वाली फेज़ में चला आता है .उत्तेजना का स्थान दीप रिलेक्शेशन ले लेता है .एक पोजिटिव पेरासिम्पे -ठेतिक रेस्पोंस के तहत स्ट्रेस का स्तर कम हो जाता है .दुश्चिंता (एन्ग्जाय्ती ),टेंशन ,हार्ट रेट सब घट जातीं हैं .ओक्सिजन की खपत कम होने के साथ ही ब्लड प्रेशर भी कम हो जाता है .यह कहना है किताब "फोर्टी मिनिट्स विद गाद :ए साइंटिफिक अप्रोच तू हीलिंग थ्रू फेथ एंड प्रेयर "के लेखक मशहूर डॉक्टर निगम का .आपके अनुसार सर्जरी से पहले जो मरीज़ प्राथना करतें हैं .पोस्ट सर्जरी उनमे कमतर पेचीलापन देखा गया है कमतर एंटी बाय्तिक्स की उन्हें ज़रुरत पड़ती है .यह सब कर्शिमा प्राथना का है जो मेडिटेशन या ध्यान -योग का ही एक रूप है .चिकित्सा का आनुषंगिक है अध्यात्म .एक प्रकार की औक्सिलारी मेडिसन है सहायक चिकित्सा है, प्रार्थना ।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइंसदान प्रोफ़ेसर हर्बर्ट बेंसन (चिकित्सा विभाग )कहतें हैं ,ध्यान ओक्सिजन की खपत को १७ फीसद तक कम करदेता है ,हार्ट रेट को एक मिनिट में तीन बीट्स तक घटा देता है ।
अखिल भारतीय आयुर्वेद विज्ञान संस्थान के साइंसदान ,कैंसर और विकिरण चिकित्सा के माहिर डॉक्टर पी के जुल्का भी अक्सर कैंसर के मरीजों को टोक्सिक स्तर कम करने के लिए प्रार्थना करने के लिए प्रेरित करतें हैं .डॉक्टर रमा कान्त पंडा (कार्डियोलोजी के माहिर )के अनुसार प्रार्थना एक पोजिटिव अतित्युद का सृजन करती है ,इम्यून सिस्टम को मजबूती प्रदान करती है .मरीज़ के प्रति करुना और प्रेम का अपना विज्ञान है .इमोशनल सपोर्ट भी चिकित्सा का अंग है ,प्रार्थना भी .आखिर यूं ही नहीं कहा गया है :मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत ।
सन्दर्भ सामिग्री :हेल्प अस गेट वेळ (दी स्पीकिंग त्री ,ए टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप पब्लिकेशन ,न्यू डेल्ही ,सन्डे ,मार्च २१ ,२०१० )

जूक बोक्स कैसे काम करता है ?

सिक्का डालकर संगीत सुनवाने वाली मशीन को जूक बोक्स कहा जाता है .यह एक सेमी -ऑटोमेटिक (अर्द्ध -स्वयम -चालित )विद्युत् -यांत्रिकीय प्राविधि है जो सिका डालने पर चुनिन्दा गीतों में से आपका पसंदीदा संगीत सुनवाती है .इसमें आप अपना पसंदीदा संगीत छांट कर सुन सकतें हैं .इस में एक रिकोर्ड या कॉम्पेक्ट डिस्क का स्तेमाल किया जाता है .जूक बोक्स में पुश बटन्स पसंदीदा संगीत के चयन के लिए समावेशित किये जातें हैं .अब इस संगीत को नम्बर्स कहने का चलन है ।
जूक बोक्स के आरंभिक डिजाइन में एक रेक शामिल की गई थी .इसमें ऊर्ध्वाधर स्लिट्स लगे रहते थे जिनमे नम्बर्स को अरेंज किया जाता था .यानी हरेक रिकोर्ड को एक नंबर दिया गया था ।
अफ़्रीकी शब्द "जूक "का अर्थ होता है -डांस यानी नांच /नृत्य .दक्षिण के प्रान्तों में जूक जोइंट्स (रोड साइड बार्स )शराब घर होते थे जहां अफ़्रीकी अमरीकी मनोरंजन के लिए जाते थे .यहाँ जूक बोक्स का चलन था .जूक बोक्स नाम कारन का भी यही कारण रहा ।
अलबत्ता इन्हें "निकेलोदेओंस "भी संक्षेप में कहा गया ।
१८७७ में थोमस एडिशन ने फोनोग्रेफ़ बनाया .इसमें एक साधारण सा मोमिया सिलिंडर होता था ,सिक्का डालने पर यही वेक्स सिलिंडर नुमा फोनोग्रेफ़ संगीत सुनवाता था ।
नवम्बर २३ ,१८८९ :लौईस ग्लास ने अपने "पलिस सेलून "में जो फ्रांसिस्को में स्थित था सिक्का डालने पर चलने वाला फोनोग्रेफ़ लगवाया ।
१९०६ :जॉन गबेल ने एक स्वयंचालित एंट्र-ट्रेनर प्रस्तुत किया जिसमे वेक्स सिलिंडर के स्थान पर एक ७८ रेवोल्यूशन पर मिनिट डिस्क लगाईं गई .इसमें आप एक से ज्यादा रिकोर्ड सुन सकते थे यानी चयन की थोड़ी सी आज़ादी मिलने लगी ।
१९२७ :ओतोमेतिद म्यूजिकल इन्स्त्रयुमेंट्स इंक (ए एम् आई )ने ध्वनी -आवर्धक एम्प्लीफायर का पहले पहल स्तेमाल किया .अब एक बड़ी औदियेंस को संगीत सुनवाया जाने लगा .एक बार में १०० तक सीडीज़ (कोम्पेक्त डिस्क )की मदद से १००० रिकोर्ड्स में से चयन की आजादी मिलने लगी ।
आधुनिक मशीनों में कैद -किम सोफ्ट -वेयर का स्तेमाल दिज़ैनिंग में किया जा रहा है .७०० -८०० तक कम्पोनेंट्स लिए होता है एक जूक बोक्स जिसमे तरह तरह की दिज़ैनिंग का समावेश किया गया है .

शनिवार, 20 मार्च 2010

मलेरिया के जैविक खात्मे (उन्मूलन )के लिए पार -जातीय मच्छर ....

क्या आप एक लिविंग वेक्स्सिनेतर की कल्पना कर सकतें हैं वह भी मच्छर के रूप में जो आपको काटे और उसका काटना टीके (वेक्सीन )की तरह मुफीद साबित हो .ऐसे ही फ़्लाइंग वेक्सीनेटर को तैयार किया है पार्जातीय नस्ल के रूप में अनोफलीज़ की (त्रेंस्जेनिक स्ट्रेंन ऑफ़ अनोफेलेस स्तेफेंसी मोस्कीतोज़ के रूप में )रिसर्चों की एक टीम ने जिसका नेत्रिर्त्व कर रहें हैं "जिची मेडिकल यूनिवर्सिटी, जापान" के साइंसदान ।
जादू इस त्रेंजेनिक वैरायटी की लार यानी सेलाइवा में है जिसमे एंटीजन मौजूद है .लेइश्मनिअ वेक्स्सीन मौजूद है .इस मच्छर के द्वारा काटे जाने का मतलब है "टीकाकरण /इम्युनाइज़ेशन ।
साइंसदान योशिदा की टीम ने इस पार जातीय मच्छर की लार में लेइस्मनिअ वेक्स्सीन का पता लगाया है ।
इसके बार बार काटने के बाद शरीर में एन्तिबोदीज़ का स्तर बढ़ जाता है .जिसका मतलब हुआ कामयाब टीकाकरण और वह भी लेइस्मनिअ वेक्स्सीन से ।
इस अध्धय्यन के नतीजे "बायलोजी एंड नेचर" जर्नल में प्रकाशित हुए हैं .अलबत्ता अभी इसकी उड़ान के रास्तें में नीतिगत (मेडिकल एथिक्स )और रेग्युलेटरी (विनियमन सम्बन्धी )समस्याएं हैं .योशिदा कहतें हैं ,बेशक एक आदमी के बरक्स दुसरे को उससे कम या फिर ज्यादा बार मच्छर बाईट से दो -चार होना पड़ता है .ज़ाहिर है जिन लोगों को यह पार्जातीय मच्छर काटेगा उनके लिए टीके की डोज़ अलग होगी औरों की बनिस्पत .जो हो एक फ़्लाइंग वेक्सीनेटर की कल्पना बरसों से की जा रही थी .जादू इसकी लार में से ही निकलना था .

बेकार है मोर्निंग आफ्टर -पिल ?

मोर्निंग आफ्टर पिल का कुल मतलब अवांछित प्रेगनेंसी (गर्भावस्था )एवं यौन -संचारित रोगों से बचाव है .इन्ही दोनों मकसद के हासिल में नाकामयाब रही है -मोर्निंग -आफ्टर -पिल .भारत और अन्यत्र संपन्न अध्धय्यनों से अब तक यही नतीजे निकले हैं ,भले ही युवतियों को अग्रिम तौर पर मोर्निंग -आफ्टर -पिल मुहैया करवाई जाए .नतीज़ा वाही ढाक के तीन पात ।
११ ट्रायल्स का रिव्यू अभी हाल ही में प्रकाशित हुआ है जिसमे भारत के अलावा चीन स्वेडन और अमरीका से कुल ७६९५ महिलाओं ने शिरकत की थी .भले ही मोर्निंग आफ्टर पिल इन तमाम महिलाओं को अडवांस में ही दे दी गई ताकि दूर या पास की फार्मेसी का चक्कर ना लगाना पड़े .लेकिन अवांछित गर्भावस्था टाले ना टली।
यह भी पता चला जिन युवतियों के गर्भ धारण करने का जोखिम ज्यादा था उनके ही गोली खाना भूलने की संभावना ज्यादा बनी रही बरक्स उनके जिन्हें ऐसा जोखिम कमतर था ।
सन्दर्भ सामिग्री :"मोर्निंग आफ्टर पिल्स फेल तू कट प्रेगनेंसी रेट (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १९ ,२०१० )

स्तन कैंसर से बचाव के लिए -क्रायों-थिरेपी

बारबरा अन्न कर्मनोस कैंसर इन्स्तित्युत ,देत्रोइत (मिशिगन )के विज्ञानी पीटर लित्त्रूप के नेत्रित्व में साइंसदानों की एक टीम ने स्तन कैंसर से बचाव के लिए "क्रायों -थिरेपी "को आजमाया है जिसके तहत बिना चीड फाड़ किये स्तन कैंसरगाँठ (ब्रेस्ट ट्यूमर ) के गिर्द कोशिकाओं तक अति प्रशीतित गैस (सुपर कोल्ड गैस )फाइन नीडिल के ज़रिये पहुंचाई जाती है .यह एक बे तकलीफ ज़रिया है ब्रेस्ट कैंसर को फ्रीज़ करने और इसकी पुनरावृत्ति (वापसी )कारगर तरीके से रोकने का ।
अति -प्रशीतित गैस कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं का सफाया करने में कामयाब है .यह एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका समझा बतलाया जा रहा है ।
इसकी आजमाइशें उन १३ मरीजाओं पर की गईं जिन्होनें सर्जरी से इनकार करदिया था .साइंसदानों की टीम ने इन पर पूरे पांच सालों तक नजर रखी .रोग वापसी इसी अवधि में होती है .रोग की वापसी ना होने का मतलब इलाज़ का असरकारी ,प्रभावकारी होना है ।
कहना ना होगा इस मिनिमली इन्वेज़िव क्रायों -थिरेपी ने ब्रेस्ट कैंसर के असरकारी इलाज़ का मार्ग प्रशस्त कर दिया है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :फ्रीजिंग ट्यूमर्स इज लेटेस्ट वे तू कम्बैट कैंसर (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १९, २०१० )

स्टेंट्स तैयार करने के लिए इलास्टिक आयरन .....

जापानी रिसर्चरों ने एक सुपर -इलास्टिक आयरन -अलॉय (आयरन से युक्त धातुओं का मिश्र )तैयार कर लिया है .इसका स्तेमाल एक तरफ भूकंप रोधी इमारतों में किया जासकेगा दूसरी तरफ शानदार स्टेंट्स परि-हृदय -रोगों से छुटकारा दिलवाने के लिए इस मिश्र धातु से बनाए जा सकेंगें .बला की प्रत्या -स्थित -ता है इस मिश्र में .यह भू कंप के झटके झेलने के बाद अपनी पूर्व स्थिति में लौट आता है .इसमें इकाई स्ट्रेंन पैदा करने के लिए अपेक्षा कृत ज्यादा स्ट्रेस (फ़ोर्स पर यूनिट एरिया )लगाना पड़ता है इसीलिए यह सुपर इलास्टिक है ।
अति -विकसित /परिष्कृत हृद एवं दिमागी शल्य चिकित्सा में इसका स्तेमाल किया जा सकेगा .इसे ब्लड वेसिल्स सेज्यादा महीन ट्यूब्स में ढाला जा सकेगा .आप जानतें हैं एक ग्रेम गोल्ड (स्वर्ण धातु )से २ किलोमीटर लंबा तार तैयार किया जा सकता है क्योंकि गोल्ड सबसे ज्यादा दक्ताइल धातु है यानी इसके महीन तर तार खींचे जा सकतें हैं .यही हाल इस सुपर -एलॉय का है .इसका मेग्नेताइज़ेशन भी बदल जाता है .परिवर्तन शील है इसका चुम्बकीय करण।बला की तन्यता (दक्तिलिती )है इस मिश्र धातु में .
इसका स्ट्रेस लेविल निकिल -टिटेनियम मिश्र से दोगुना है ।
आप जानतें हैं ,स्टेंट्स एक बाल पेन के रिफिल सी अति महीन ट्यूब का नाम है जो धमनी को कोलेप्स होने से बचाए रहता है .यह मिश्र धातु इसके लिए सर्वोत्तम साबित हो सकता है .इस से तैयार स्टेंट्स का स्तेमाल ब्रेन के लिए भी हो सकेगा .यही कहना है टी .ओमोरी का .आप तोहोकू यूनिवर्सिटीज़ ग्रेज्युएत स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग से सम्बद्ध हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :इलास्टिक आयरन देत कें दिफाई कुएक्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च २० ,२०१० )

एक्यु -प्रेशर फैला रहा है हेपेतैतिस-बी ,सी और एड्स ?

होन्ग कोंग विश्व -विद्यालय के सूक्ष्म -जैव -विदों (माइक्रो -बाय्लोजिस्त ) की माने तो इस दौर में एक्यु -पंचर चुपके चुपके हिपे -ताई -तिस -बी ,सी के अलावा एच आई वी -एड्स संक्रमण की भी वजह बन रहा है .कारण है ,अध्धय्यन के मुखिया प्रोफ़ेसर पत्रिक वू कहतें हैं ,लम्बी लम्बी सुइंयाँ जो चमड़ी के नीचे कई सेंटीमीटर तक प्रवेश पा जातीं हैं .नतीज़ा है -एक्यु -पंचर -माइको -बेक्तीरियोसिस सिंड्रोम ।आप सूक्ष्म जीव -विज्ञान विभाग से सम्बद्ध है .
अब तक आलमी स्तर पर (ग्लोबली ) ५० से भी ज्यादा मामले प्रकाश में आये हैं .कितने और ऐसे मामले होंगें सहज अनुमेय है क्योंकि ज्यादार मामले प्रकाश में आते ही कहाँ हैं ।
जीवाणु कई तरीकों से संक्रमण की वजह बन रहें हैं .एक बड़ी वजह मरीज़ का खुद का "स्किन -फ्लोरा /इनवायरनमेंट "बन रहा है क्योंकि पर्याप्त नहीं रहता है त्वचा को वि -संक्रमित करना .विसंक्रमण पूरी तरह हो ही नहीं पाता है इसी के चलते जीवाणु नीडिल से चस्पां (चिपके )रह जातें हैं .अलावा इसके (कन्तामिनेतिद नीदिल्स के अलावा )कोटन स्वाब्स और हॉट पेक्स भी संक्रमण को एक मरीज़ से दुसरे तक पहुंचाने में मदद गार साबित होतें हैं ।
तो ज़नाब एक्यु -पंचर के अपने खतरें हैं .दुनिया भर के सूक्ष्म -जीव-विज्ञानी यही चेतावनी प्रसारित कर रहें हैं .

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

एच आई वी एड्स से बचाव में सहायक हो सकता है केला ...

एच आई वी-एड्स के खिलाफ स्तेमाल होने वाली दवाओं में एक खोट यह निकल आती है ,एच आई वी विषाणु इन दवाओं के प्रति एक प्रतिरोध खडा कर लेता है .अपना बाहरी रूप प्रोटीन कोट बदलता रहता है एच आई वी ,म्युतेट भी होता है .लेकिन बनाना ,केला या कदली में एक ऐसा लेक्तींन मिला है जिसकी मौजूदगी में एच आई वी से उत्परिवर्तन के मौके छीनलिए जातें हैं यानी इस लेक्तींन की मौजूदगी में आसान नहीं रह जाता है इस विषाणु का उत्परिवर्तन ,रूप परिवर्तन या म्युतेट हो पाना ।
एक अध्धययन के मुताबिक़ यही लेक्तींन एक कुंजी बन सकता है ,एच आई वी का अभिनव इलाज़ इस लेक्तींन की मदद से हासिल हो सकता है .अध्धय्यन के अनुसार टी -२० और मराविरोक एंटी एड्स (एड्स -रोधी )दवाओं की मानिंदही कदली या केले में पाया जाने वाला एक लेक्तींन असरकारी सिद्ध हो सकता है .बेन्लेक (एक लेक्तींन जो केले में कुदरती तौर पर पाया जाता है )एड्स के खिलाफ इलाज़ में प्रभावशाली सिद्ध हो सकता है .एच आई वी इन्फेक्शन से बचाए रह सकता है यह लेक्तींन लेबोरेट्री आजमाइशों में अमरीकी रिसर्चों से यही पता चला है .दरअसल यह लेक्तींन एच आई वी के शरीर में प्रवेश को बाधित करता है .यह रसायन (लेक्तींन )उस प्रोटीन खोल पर अपना असर डालता है जिसमे एच आई वी का आनुवंशिक पदार्थ मौजूद रहता है ।
मिशीगन विश्व -विद्यालय के मिचेल स्वांसों कहतें हैं ,अब तक रेट्रो - वायरल दवाओं के साथ यही दिक्कत रही है एच आई वी विषाणु इन दवाओं के असर को भौथ्रा बनाकर एक प्रति -रोध इन दवाओं के ही खिलाफ खडा कर लेता है .लेक्तिंस की मौज़ोदगी में यह मुश्किल ज़रूर हो जाएगा ।
सन्दर्भ सामिग्री :बनानाज़ में हेल्प प्रोटेक्ट अगेंस्ट एड्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १९ ,२०१० )

दवा सना स्टेन्ट शक के दायरे में ....

"सेफ्टी ऑफ़ ड्रग कोटिड स्टंट्स अंडर लेंस :टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १८ ,२०१० ।
एक नै शोध के मुताबिक़ हार्ट अटेक के बाद जिन लोगों ने शल्य चिकित्सा के ज़रिये दवा सना (दवा से भीगा )स्टेन्ट फिट करवाया ताकि धमनियां खुली रहें उन में से बहुत से लोग दिल की बीमारियों से ही काल कवलित हो गए बरक्स उनके जिनको परम्परा गत पुराना बिना दवा सना स्टेन्ट फिट किया गया ।
एक मामूली सा पतला किसी बाल पेन के रिफिल सा एक स्प्रिंग होता है स्टेन्ट जिसे बेहतरीन मिश्र धातु से तैयार किया जाता है .परिह्रिद्य धमनी रोग(कोरोनरी आर्टरी दीजीज़ ) में अवरुद्ध धमनियों को खोलकर ठीक कर इसे वहीँ छोड़ दिया जाता है ताकि आइन्दा रक्त आपूर्ति निर्बाधित होती रहे ।
डेनमार्क में संपन्न इस अध्धययन के मुताबिक़ स्टंट्स लगवाने के तीन साल बाद उनके कालकवलित होने की संभावना ज्यादा पाई गई जिन्होनें दवा -संसिक्त (ड्रग कोतिद स्टेन्ट )फिट करवाया था बनिस्बत उनके जिन्होंने इसका पुराना वर्षंन (चीपर बेअरमेटल मोडिल )लगवाया ..

क्या है "बेडो-मीटर "?

आई -पोड और आई -फोन का नया करिश्मा कह सकतें हैं आप "बेडो -मीटर "को जो सेक्स्युअल एक्ट के दौरान आपकी परफोर्मेंस और एक एपिसोड में खर्च की गई ऊर्जा (केलोरी )का जायजा लेगा .इस काम को अंजाम देगा वह "सेंसर "/तोहक या संवेदक आई -पोड या आई -फोन का त्च्स -मोशन सेंसर (स्पर्श गति संवेदक )जिसे बेड पर समायोजित किया जा सकता है .मैथुन के दरमियान यह खर्च हुई केलोरी का पूरा हिसाब किताब रखेगा ।
आई -फोन का यह स्तेमाल एक महिला २५ वर्षीय लिव्व्य तोम्सन ने कर दिखाया है .बकौल तोम्सन नतीजे आश्चर्य जनक रहें हैं .एक बारके एक सम्पूर्ण मैथुन में प्रत्येक पार्टनर (सम्भोग रत जोड़ा का हरेक जोड़ीदार )१५ मिनिट के सेसन में तकरीबन २०० केलोरीज़ तक खर्च कर डालता है ।
बेडो -मीटर का काम सेक्स की इन्तेंसिती और मैथुन के समय का जायजा लेना है .आप सेक्स के दौरान कितनी केलोरीज़ तक उड़ा देतें हैं यह मिलन मनाने की आतुरता और आर्ट पर निर्भर करेगा ."दी सन "ने इस अध्धययन के नतीजे प्रकाशित किये हैं ।
अब तक सुनते आये थे -ए हेल्दी सेक्स्युअल एपिसोड इज एक्युवालेंत तू ए वाल्क ऑफ़ ए किलोमीटर .और अब आप खुद पैमाइश कर सकतें हैं मैथुन के दौरान खर्च की गई केलोरीज़ की ।
सन्दर्भ सामिग्री :फोन एप देत मेज़र्स केलोरीज़ ब्रांत ड्यूरिंग सेक्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १८ ,२०१० )

मानो या ना मानो स्वास्थ्य वर्धक मृदा (मिटटी )का जलपान कर रहें हैं एक गाँव के लोग ..

मिथ है या यथार्थ ,विज्ञान है या सहज विश्वाश या जन विश्वाश रोपित परम्परा इंडोनेशिया में एक गाँव ऐसा भी है जहां लोग मृदा से तैयार जलपान करतें हैं .पूर्वी जावा का एक अंचल है "तुबन ".यहाँ बरसों से "एम्पो "मृदा से तैयार नाश्ता बिकता है ,लोग चाव से खातें हैं .धान के खेत की मिटटी को छानने निथारने के बाद एम्पो तैयार किया जाता है ।
कहतें हैं यह एक अच्छा एनाल्जेसिक है ,बेहतरीन दर्द -निवारक है .गर्भ वती माताएं इसका सेवन इस लोक आस्था के तहत करतीं हैं ,गर्भस्थ शिशु की त्वचा को यह टोनप्रदान करता है .निखार लाता है त्वचा में .काली मिटटी धान के खेतों की यहाँ खूब बिक रही है एम्पो के रूप में ।
इसे लकड़ी की एक छड़ी से कूट पीट कर हार्ड सोलिड मॉस में तब्दील किया जाता है .एम्पो का स्वाद मिटटी की गुणवता पर निर्भर करता है ।
५३ वर्षीय रशिमा कहतीं हैं हम कदीमी एम्पो बनातें हैं .हमें यह धंधा विरासत में मिला है ।
सन्दर्भ सामिग्री :ए विलेज देत स्नेक्स ओं सोइल फॉर बेटर हेल्थ (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १८ ,२०१० )

उग्र रूप से मरदाना (माचो -मैंन )पुरूष पे मरतीं हैं ......

साइंसदानों ने अपने एक अध्धययन में बतलाया है ,उग्र रूप से मरदाना (माचो -मैंन ),पौरुष से भरपूर दुस्साहसी मर्द को पसंद करतीं हैं उन देशों और इलाकों की औरतें जहां साफ़ सफाई -और सेहत का बुरा हाल है ,बीमारियों का जहां डेरा है ।
चिकने चुपड़े औरताना अस्व पुरुष की बनिस्पत इन मुल्कों की औरतें बुल को (वृषभ -पुरुष )चुनतीं हैं .अबरदीन की स्कोत्लेंद यूनिवर्सिटी के मनो -विज्ञानी उस सिद्धांत को आजमाइशों की कसौटी पर कसने के बाद इस नतीजे पर पहुँच रहें हैं ,जिसके तहत ऐसा समझा जाता है ,मेस्क्युलिनिती ,मेस्क्युलाइन ट्रेट्स जेनेटिक हेल्थ का सूचक है,प्रतीक है ?
साइंसदानों ने इंटरनेट के ज़रिये बीस -बाईससाला तकरीबन ४५०० से भी ज्यादातीस मुल्कों की औरतों को रिक्रूट करके यह परीक्षण किये हैं ।
साइंस दानों ने एक ही मर्द की मरदाना और औरताना छवियाँ इन औरतों को दिखलाई .पता चला जिन मुल्कों में नेशनल हेल्थ इंडेक्स रसातल को छू रहा था ठीक उसी अनुपात में वहां की महिलायें हंक्स (पौरुष और दम - खमवाले मर्दों )का चयन कर रहीं थी .यद्यपि वह उन्हें ना तो अच्छा वफादार साथी मानतीं समझतीं हैं और ना ही एक जिम्मेदार पिता उनके अन्दर उन्हें दिखलाई देता है .लेकिन ये पुरूष सेक्स्युअली अत्रेक्तिव सिद्ध हुए हैं ।
इतना ही नहीं यही औरतें इन मर्दों को एंटी -सोसल एलिमेंट्स (लफंगा )भी मानतीं समझतीं हैं .लेकिन "दिल है के मानता नहीं ॥"।आखिर सेक्स्युअल हेल्थ के भी कोई मानी हैं ?भले ही -
बे-ईमान ,और सहयोग ना करने वाला भी मानतीं हैं इन मर्दों को लेकिन ना ना करते प्यार तुम्ही से कर बैठे वाला किस्सा हैं यहाँ .
वोमेन ला -इक हंक्स ,बत हेव लिटिल फेथ इन डैम :स्टडी (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १८ २०१० )

मंगलवार, 16 मार्च 2010

काम की बात सुन लेता है हमारा दिमाग .....

सलेक्टिव हीयारींग ?इट्स इन दी ब्रेन ,नॉट इन ईअर्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १६ ,२०१० )
क्या हमारा दिमाग एक रेडियो की तरह काम करते हुए आवाजों के जमघट में से गैर ज़रूरी बातों की छटनी करके अपने काम की बात सुन लेता है और इस एवज दिमाग में अलग रास्तें हैं न्यूरल पाथ वेज़ हैं ,ब्रेन पाथ वेज़ हैं ?
एक ताज़ा शोध के नतीजे इसी और इंगित कर रहें हैं ।
जिन लोगों की श्रवण शक्ति छीजने लगती है वह आवाजों की ऐसी छटनी करने की क्षमता खो देतें हैं .गैर ज़रूरी पृष्ठ भूमि- शोर- शराबा ,गैर ज़रूरी बात चीत इनका पीछा करती रहती है ।
साइंस दान पूरी विनम्रता से कहतें हैं ,दिमाग कीऐसी भूमिका को बूझ समझकर बेहतर श्रवण -सहायक उपकरणोंको (हीयरिंग एड्स ,इम्प्लान्ट्स )तैयार करने में मदद मिल सकती है ।
इस शोध का नेत्रित्व विविएन्ने मिचेल (देफ्नेस रिसर्च ,यु के ) कर रहें हैं .अलावा इसके इन दिनों यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन के साइंसदान "यूनिवर्सिटी के ईयर इन्स्तित्युत "के तत्वावधान में कई प्रकार की प्राविधि और तकनीकें आजमा रहें हैं जिनके तहत साइको -फिजिक्स (सम्वेदनाओं के अध्धय्यन से तालुक रखने वाला विज्ञान )से लेकर न्यूरो -फिजियोलोजी (स्नायुविक शरीर क्रिया विज्ञान )तक कई अनुशाश्नों की मदद ली जा रही है .यानी स्नायुतंत्र तथा दिमाग के अध्धययन से ताल्लुक रखने वाले विज्ञानों का सहारा लिया जा रहा है ।
बेशक यदि ऐसे ब्रेन पाथ्वेज़ को बूझा जा सका जो शोर शराबे और बेकार की बातों में से अपने काम की बात छांट लेतें हैं तब श्रवण हीन लोगों को भी एक दिन राहत दिलवाने की दिशा में आगे बढा जा सकेगा .उम्मीद पे दुनिया कायम है .

सर्प (सांप )रात को भी अपने शिकार को कैसे ताड़ लेता है ?

साइंस- दानों ने पता लगाया है ,सर्प अँधेरे में कैसे एक मीटर दूर से माउस (चूहे -चुहियों ) के बदन से निकलते अति कमज़ोर किस्म की गर्मी (इन्फ्रा रेड -रेडियेशन )को भांप कर सटीक तौर पर उस पर झपट कर उसे अपना शिकार बना लेतें हैं .(हम जानतें हैं हमारे शरीर से भी २७३ केल्विन तापमान के ऊपर अवरक्त विकिरण निकलता रहता है ,माउस भी एक कमज़ोर विकिरण उत्सर्जित करता है )।
बरसों से ऐसा माना समझा जाता था रेतिल्स्नेक्स,बोअस ,और पाई -थन्स(विषैले सर्प ,साउथ अमरीका में पाया जाने वाला एकख़ास किस्म का बड़े आकार का सर्प ,अजगर आदि )अपनी आँख और नथुने के मध्य भाग में एक तथा कथित "पिट ओर्गेंन" से युक्त होतें हैं .यही अंग अवरक्त विकिरण के अल्पांश (बहुत कम इन्तेंसिती वाले अवरक्त विकिरण ,बदन से निकली गर्मी )का पता लगा लेता है .फल्ताया अपने गिर्द के शिकार को भांप कर उसपर टूट पडतें हैं ।
केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय के डेविड जुलियस कहतें हैं साँपों में एक जुदा किस्म का "न्युरोलोजिकल -पाथ- वे "स्नायुविक मार्ग ,एक छ्टे-समवेदन अंग (सिक्स्थ सेंस,छटी-इन्द्री )की मानिंद काम करता रहता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :हाव स्नेक्स "सी "प्रे इन दी डार्क (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १६ ,२०१० )

सोमवार, 15 मार्च 2010

लीकी हार्ट वाल्व से सस्ते में निजात :टाइनी -क्लिप -इम्प्लांट .

अब लीकी हार्ट वाल्व की दुरुस्ती के लिए "कोरोनरी आर्टरी बाई -पास ग्रेफ्टिंग "की ज़रुरत नहीं पड़ेगी .यानी ओपन हार्ट सर्जरी के बिना ही एक नन्नी सी क्लिप इम्प्लांट कर दी जायेगी .और यह नन्ना प्रत्यारोप लीकी हार्ट वाल्व को चुस्त दुरुस्त बना देगा ।
यूरोप में यह टाइनी -इम्प्लांट खूब बिक रहा है .इसकी निर्माता कम्पनी है -"अब्बोत्ट लेबोरेट्रीज़ ".यह अमरीकी खाद्य और दवा संस्था "ऍफ़ डी ए "से मंज़ूरी की आस लगाए है ।
एलिजाबेथ टेलर (७७ वर्षीय )गत वर्ष यह प्रत्यारोप लगवा चुकी हैं .आप एक दम से दुरुस्त हैं .कितने ही अमरीकी "लीकी हार्ट वाल्व "की समस्या से ग्रस्त हैं .यह टाइनी क्लिप एक धमनी से होकर वाल्व तक पहुंचाई जायेगी .यह ना सिर्फ निरापद है ,सेफ है ,तथा सर्जरी से कम असर कारी नहीं है .

"हीटर" बीज यानी लिविंग रेदीयेतार्स

हीटर बी देट वार्म्स हाइव फ़ाउंड(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १५ ,२०१० )
आखिर मधुमख्खियों की कामयाब सामाजिक जिंदगी का राज़ साइंसदानों के हाथ लग ही गया .विज्ञानी अब इस बात पर बेहतर तरीके से रौशनी डाल सकतें हैं ,कैसे मधु मख्खियों की सामाजिक जिंदगी बहुत ही व्यवस्थित और नियंत्रित तरीके से चलती रहती है .विज्ञानियों ने एक "हीटर बी "का पता लगाया है जो मधु मख्खी के छत्ते को ज़रूरी गर्माहट प्रदान किये रहती है .इसे एक "लिविंग रेडियेटर "कहा जा रहा है .सेंट्रल हीटिंग की मानिंद यह छत्ते को गरमाए रहती है .ये हीटर बी ही नन्ने -मुन्नों को एक सोफ्ट वेयर देती है .बतलाती है आगे जाकर किसको क्या करना है .(अलोटमेंट ऑफ़ वर्क ).और इस प्रकार यह कालोनी संप्रभुता संपन्न बनी रहती है .स्वायत्त और नियमित और एक दम से सुव्यवस्थित .

सेहत :बस दो बच्चे ,रहते सबसे अच्छे ...

हेविंग तू किड्स इज बेस्ट फॉर हेल्थ (टाइम्स ऑफ़ इंडिया मार्च १५ ,२०१० )
"पेरेंट हुड कीप्स डिसीज़ अत बे "
एक ताज़ा अध्धय्यन के मुताबिक़ जिनके पास दो बच्चे हैं वह केवल एक बच्चे और बिन -बच्चे वाले माँ -बाप (चाइल्ड लेस कपल )के बनिस्पत तंदरुस्त रहतें हैं .इस अंतर -राष्ट्रीय शोध ने १५ लाख लोगों की सेहत का जायजा लेने के बाद उक्त निष्कर्ष निकाला है ।
रिसर्च के मुताबिक़ माँ या फिर पिता बनना कई बीमारियों से बचाए रहता है ,कैंसर ,हृदरोगोंऔर पियक्कड़ होने के जोखिम को कमतर करता है ।
लेकिन यह फायदा सिर्फ दो बच्चों वाले माँ -बाप को होता दिखलाई दिया .एकल संतान या फिर निस्संतान दम्पतियों को ऐसा कोई फायदा नहीं मिल पाता है .इन्हें तमाम तरह के रोगों के होने का जोखिम बना रहता है क्योंकि ये लोग अपने स्वास्थ्य की ओर से लापरवाह बने रहतें हैं ,पूरा ध्यान नहीं दे पातें हैं ।
अध्धय्यन से यह भी पुष्ट हुआ दो बच्चे होना माँ -बाप के स्वास्थ्य की दृष्टि से भी एक आदर्श स्थिति है .दो से अधिक बच्चे वाले माँ बाप तरह तरह की समस्याओं से घिरे कई तरह के दवाबो से जूझते रहतें हैं .बच्चों को परवरिश ,अच्छी परवरिश ,शिक्षा ओर सेहत मुहैया करवाना उतना आसान नहीं है .एमिली ग्रुन्द्य (लन्दन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रोपिकल मेडिसन )के नेत्रित्व में इस अध्धययन को आगे बढाया गया था .बकौल आपके माँ -बाप बन ने का उन लोगों को ज़रा भीलाभ नहीं मिल पाता जिनके चार से भी ज्यादा बच्चे होतें हैं .तमाम तरह के आर्थिक राजनितिक दवाबों की चक्की इन्हें पीसे रहती है .जीवन शैली भी बिगड़ जाती है इन लोगों की ।
लालूजी अपवाद हो सकतें हैं .वह नियम ही क्या जिसका अपवाद ना हो ?

रविवार, 14 मार्च 2010

अदिश (स्केलर एनर्जी ) ऊर्जा और अदिश झुमके क्या हैं ?

विद्युत् चुम्बकीय तरंगें परिवर्तन शील विद्युत् और चुम्बकीय क्षेत्रों की सियामीज़ (जुडवा बहिने है ) हैं .
निर्पदार्थ और खुले अंतरीक्ष (एम्प्टी स्पेस ) के असीम विस्तार में विद्युत् चुम्बकीय तरंगों का ही डेरा है .वैसे जिसे हम निर्वात या वेक्यूम कहते समझते हैं वहां भी अंतरीक्ष के एक घनमीटर भाग में कमसे कम एक हाइड्रोजन परमाणु मौजूद है .असीम ऊर्जा का यही समुन्दर "स्केलर एनर्जी "/"अदिश ऊर्जा कहलाता है .यह तरंगें लान्जित्युदिनल हैं (अनु -दैर्घ्य तरंगें हैं ,तरंग का कम्पायमान भाग और तरंग की गति एक ही दिशा लिए रहती है .जबकि त्रेंस्वर्ज़ इलेक्त्रोमेग्नेतिक वेव्स में तरंग गति की दिशा के लम्ब वत कम्पन करती है .यानी विद्युत् क्षेत्र का दोलन ,चुम्बकीय क्षेत्र का दोलन और तरंग की गति दिशाएँ परस्पर लम्बवत बनी रहतीं हैं ।
स्केलर एनर्जी की घोषणा पहले पहल ई .बेअर्दें ने की थी .विज्ञान जगत में इस अवधारणा का कोई ख़ास स्वागत नहीं हुआ ।
स्केलर पेंदंत (दिश झुमका )एक चिकित्सा उपकरण एक चिकित्सा प्रविधि हैचिकित्सा झुमका है .इसे "ची -थेरिपी -पेंदंत ",हीत थेरिपी पेंदंत भी कहा जाता है ।
यह अवरक्त ऊर्जा का उत्सर्जन करता है (फार इन्फ्रा रेड रीज़न में )साथ में ऊच्तर मात्रा में निगेटिव आयंस भी छोड़ता है .यही निगेटिव आयंस इस चिकित्सा झुमके की कुंजी हैं जिनका मानवीय स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है .यूँ निगेटिव आयंस ओपन एयर में हवा के अनन्यअणुओं से चस्पां होकर खो जातें हैं अपना निगेटिव चार्ज खो देतें हैं लेकिन इनका कुछ ना कुछ अंश झुमके को स्पर्श करने वाले शरीर अंग में चला ही जाता है .यह सेल फोन्ससे और इतर इलेक्त्रोमेग्नेतिक फील्डसे जो हमारे परिवेश में इलेक्ट्रिक गेजेट्स से पसरा हुआ है के दुष्प्रभावों को उदासीन कर देता है .इस प्रकार खतरनाक विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र से हिफाज़त करता है स्केलर पेंदंत .

बेरियोंन -जिनेसिस (बेरियोंन उद्गम )क्या है ?

बेरियोंन का मतलब होता है भारी (बेरियोज़ से बना है यह शब्द ).अब सवाल पैदा होता है किससे ,कौन भारी ?अव्पर्मानुविक कणों (सब -अतोमिक पार्तिकिल्स )में प्रोटोन ,न्युत्रोंन एवं इनसे भारी उन कणों को जो स्ट्रोंग -इन्त्रेक्सन (प्रबलतम बल से अन्यकणों के साथ पेश आतें हैं )बेरियोंस कहा जाता है .खुद प्रोटोन और न्युत्रोंन तीन क्वार्कों का ज़माजोड़ हैं .द्रव्य के बुनियादी कणनहीं है ।
बेरियों -जिनेसिस (जिनेसिस माने उद्गम ,ओरिजिन ,पैदा होना ):यह भौतिकी (फिजिक्स )की वह शाखा है जिसके तहत इस बात की पड़ताल की जाती है पहले पहल बेरियोंस कैसे पैदा हुए .क्या हुआ था उस विधाई क्षण में ?
द्रव्य के कथित बुनियादी कणों को परिवारों में बांटा गया है जिनमे से एक परिवार बेरियोंस (न्युत्रोंन ,प्रोतोंस और उनसे भारी कणों का है ).हमने इन्हें कथित बुनियादी कण इस लिए कहा है क्योंकि वर्तमान जानकारी के मुताबिक़ ना तो इन्हें कण ही कहा जा सकता है और ना ही यह बुनियादी हैं .इनमे से कितने ही अपने से ज्यादा बुनियादी कणों से बने हैं जैसे क्वार्क से प्रोटोन ,न्युत्रों और मीजोंस का एक परिवार ।
प्रकृति में प्रत्येक कण के पीछे एक प्रति कण का अस्तित्व है .इलेक्त्रों के पीछे एंटी -इलेक्त्रोंन (पोज़ित्रोंन )है ,प्रोटोन के पीछे अन्तिप्रोतोंन .न्युत्रों के पीछे एंटी -न्युत्रों ,फोटों के लिए एंटी -फोटोंन ,न्यूट्रिनो (लिटिल न्यूट्रल )के लिए एंटी -न्यूट्रिनो आदि ।
अजब इत्तेफाक है सृष्ठी में (गोचर जगत में )बेरियोंस की संख्या प्रति कण एंटी -बेरियोंस से ज्यादा है .और इस प्रकार सृष्ठी में बहुत सारा अवशिष्ट पदार्थ मौजूद है .(लोटस ऑफ़ रेज़िद्युअल मैटर इन दा यूनिवर्स ।)
संभव तौर पर सृष्ठी के निर्माण के शूरूआती चरण में ही एक असिमित्री एक सीध और अनुपाती सम्बन्ध बेरियोंस और एंटी -बेरियोंस के बीच गायब हो गया .कौन सी फिनोमिना इसके पीछे काम कर रही थी यह आदिनांक अनुमेय है .कयास लगाना मुमकिन नहीं हुआ है .

घोर -शाकाहारी किसे कहिएगा ?

एक ऐसा वैष्णव ,घोर शाकाहारी व्यक्ति वह है जो यह मानता समझता है ,केवल शाकाहार ही श्रेष्ठ है शेष अनर्थकारी है "वेगन -जेलिकल "कहलाता है .ऐसे व्यक्ति के लिए वेगन -निस्म ही सही जीवन शैली का प्रतीक है ।
वेगन -जेलिकल दो शब्दों का ज़मा जोड़ है ,एक वेगन जो वेजिटेरियन का संक्षिप्त रूप है और दूसरा इवेंजेलिकल जिसका अर्थ है ईसाइयों का ऐसा समूह (इवेंजेलिकल चर्च ,इवेंजेलिकल मिस्नारीज़ )जो अधिक से अधिक लोगों को ईसाई मत में दीक्षित कर लेना चाहतें हैं .साम दाम दंड भेद सभी का सहारा लेकर ।
इस्लाम की भी यही कहानी है जो इस्लाम को नहीं मानता वह "काफिर "कहा जाता है .कुरआन की तमाम आयतें काफिरों से ही रु -बा -रु हैं ।
ठीक इसी तरह वह कट्टर ,पक्का हठी शाकाहारी है जिसे वेगन -जेलिकल कहा जाता है .सन २००३ में यह शब्द पहली बार चलन में आया .पश्चिम में यह आम फ़हम है आम भाषिक शब्द है .

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

खौफ पैदा करेंगी चेतावनी परक तस्वीरें ....

निश्चय ही एक तस्वीर हज़ारों हज़ार शब्दों से गहरा असर छोडती है .दृश्य बिम्ब हमारी चेतना को झ्क्झोरतें हैं .आगामी एक जून से अब सिगरेट के पेकितों पर ऐसी ही भयाप्रद तस्वीर्नुमा चेतावनियाँ दिखलाई देंगी .भारत जैसे अपढ़ देश में इसका व्यापक असर पड़ सकता है बीडी सिगरेट पीने वाले के दिलोदिमाग पर जहां तकरीबन २२०० लोग रोजाना तम्बाखू से होने वाली बीमारियों का निवाला बन जातें हैं असमय ही इनकी जीवन लीला समाप्त हो जाती है .तकरीबन २५ करोड़ लोग मेरे भारत में सिगरेट बीडी गुटखा ,पान मासाला (तमाबाकू युक्त )का स्तेमाल करतें हैं .इनमे से तकरीबन १६ फीसद लोग सिगरेट ,४४ फीसद बीडी पीतें हैं स्वास्थ्य सम्बन्धी ४० फीसद समस्याओं की जड़ तम्बाखू बना हुआ है ।
वंस ए स्मोकर आलवेज़ ए स्मोकर ?नहीं साहिब तकरीबन २ फीसद लोग बीडी सिगरेट पीना छोड़ भी देतें हैं .अपन भी उनमे से एक हैं अलबत्ता भारी कीमत चुकाई है हमने इस आदत की .हमने बीडी सिगरेट पी .निकोटिन हमारे गम और मुक्तावली (दन्तावली )ले उडी .जी हाँ ."यु स्मोक दा निकोटिन ,निकोटिन स्मोक अवे यूओर गम्स ."यु केंन स्मोक एज लॉन्ग एज यु डोंट एक्सहेल ।हमारी तो ज़नाब ओपन हार्ट सर्जरी भी हो चुकी है .बीडी सिगरेट पीने वालों की बात ही कुछ और है ,छोडिये हमें हमारे हाल .हम तो पढ़े लिखे हैं .गुने नहीं बन सके .फादर साहिब कहते थे -"पढ़े लिखे से गुनी ज्यादा अच्छा है '.हम सिर्फ पढ़े लिखे हैं .
भारत में सिगरेटबीडी के हाथों शहीद होने वालों में ५०फ़ीसद हमारे अपढ़ भाई हैं .इनका ८० फीसद हिस्सा ग्रामीण है .(सिगरेट माता ग्राम वासिनी )हो सकता है तस्वीरें इन्हें डराए ,खोफ पैदा करें इनके दिलो -दिमाग पर .

दर्दे जीन :देख तो दिल केजाँ से उठता है ....

देख तो दिल के जाँ से उठता है ,ये धुंआ सा कहाँ से उठता है ?आखिर क्या बात है सब का दर्द और पीड़ा सहने का माद्दा अलग अलग होता है .थ्रेश होल्ड ऑफ़ पेन का सम्बन्ध लगता है हमारी खानदानी दाय,हमारे जीवन खण्डों ,हमारी जींस में छिपा है .एक ताज़ा अध्धय्यन इन दिनों इसी ओर इंगित कर रहा है .आइये जानतें हैं दर्दे -जीन को ।
विज्ञानियों ने पता लगाया है कुछ लोगों में एक जीवन -इकाई "एस सी एन ९ए "जीन की मौजूदगी उन्हें दर्द के प्रति ज्यादा संवेदी बना देती है .ज़रा सी पीड़ा से ये लोग कराह उठते हैं ।
केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के साइंसदान इसे दर्दे -जीन कह रहें हैं .इस जीवन इकाई की मदद से देर सवेर दर्द का बेहतर प्रबंधन करने में मदद मिल सकती है ।
डॉक्टर गेओफ्फ्रे वूड के नेत्रित्व में साइंस दानों की एक टीम ने इस जीन का पता "सियाटिका ",फेंटम पेन ",तथा "पेन्क्रिएताइतिस "से ग्रस्त मरीजों में लगाया है ।
सियाटिका :सियाटिक नर्व ,आइदर ऑफ़ दी तू नर्व देत रन फ्रॉम दी बेक ऑफ़ दी हिप डाउन दी थाई तू दा काल्फ़ ।
सियाटिका इज बोर्न आउट ऑफ़ ए प्रोत्रुज़ं ऑफ़ वर्त्रिबल डिस्क सब्सटेंस प्रेसिंग ओं दी रूट्स ऑफ़ सियाटिक नर्व ।
इन ईट पेन एंड तेंदार्नेस एक्स्तेंड्स फ्रॉम दी बेक ऑफ़ दा हिप और दी सियाटिक नर्व ।
सीवीयर पेन इन दी लेग अलोंग दी कोर्स ऑफ़ दा सियाटिक नर्व फेल्ट अत दी बेक ऑफ़ दा थाई एंड रनिंग डाउन दी इनसाइड ऑफ़ दी लेग इज ए प्रोमिनेंट सिम्तम ऑफ़ सियाटिका ।
फेंटम पेन :दर्द नहीं दर्द का एहसास मात्र है "भुतहा या छद्म दर्द "है ।फेंटम प्रेगनेंसी की तरह .
पेन्क्रिएताइतिस इज इन्फ्लेमेशन ऑफ़ दा पेंक्रीयाज़ (यानी अग्नाशय की सोजिश और किसी भी प्रकार का संक्रमण अग्नाशय -शोथ कहा जाता है ।)
एहसासे दर्द पर लौट तें हैं ।
एक और अध्धययन जो तकरीबन १८६ तंदरुस्त महिलाओं पर संपन्न हुआ है बतलाता है जिनमे यह जीन पाया गया वह दर्द के प्रति अतरिक्त रूप से संवेदी रहीं .साइंस दानों ने पता यह भी लगाया है इस जीवन इकाई का उत्परिवर्तित रूप "म्युतेतिद वर्षं "एक ऐसा प्रोटीन बना लेता है जो देर तक बना रहता है (ईट स्टेज ओपन लोंगर दें दी नोर्मल वन .यही नर्व को अतरिक्त उत्तेज़ं प्रदान कर देता है अतिरिक्त रूप से सक्रीय कर देता है .नतीज़ा होता है -ए सेंसेशन ऑफ़ ए दल एकिंग पेन ।
इन दिनों दुनिया भर में अनगिन लोग आर्थ -रैतिस(र्युमेतिक तथा आम जोड़ों के दर्द ) से ग्रस्त हैं जो लोगों को अवसाद की ज़द तक ले आता है .लाखों लोग रोज़ चोटिल होते रहतें हैं ।
एक ऐसी दवा जो इस प्रोटीन की सक्रियता पर काबू कर ले एक बेहतरीन दर्द नाशक साबित हो सकती है .आखिर सभी दर्द नाशी अलग अलग लोगों में एक सा असर क्यों नहीं छोड़ पाते ?राजे जीन ?

मोटापा छांटने के लिए खुराख में रोज़ एक अंडा ?

"एन एग ए डे हेल्प्स कट फ्लेब 'एक खबर बनी है टाइम्स ऑफ़ इंडिया मार्च १० ,२०१० अंक की .बेशक अंडा पुष्टिकर तत्वों से भर पूर है .एक न्युत्रिएन्त्स डेंस फ़ूड है .एक अध्धय्यन से विदित हुआ है ,रोजाना एक अंडे का सेवन करते रहने से चर्बी छांटने में मदद मिलती है ,मोटापा कम होता है .,कम हो सकता है ।
इस ब्रितानी अध्धय्यन को डॉक्टर कैर्री ने आगे बढाया है .आप एक स्वतंत्र पोषण विज्ञानी है .आप कहतें हैं ,अंडे विटामिन डी से भर पूर हैं .(इम्यून सिस्टम को मज़बूत कर रोगों से लड़ने की क्षमता में इजाफा करता है विटामिन डी )अलावा इसके अण्डों में विटामिन बी -१२ ,सेलिनियम और कोलीन हैं .इन तत्वों का डाइटिंग और और वजन घटाने में एक एहम रोल है ।
एक औसत आकार के अंडे में ८० से थोड़ा सा कम केलोरीज़ होतीं हैं .यह सिफारिश की गई नियमित पुष्टिकर तत्वों का बीस फीसद बैठता है .अंडे में सभी ज़रूरी अमीनो अम्लों का भी डेरा है .

बेटा पैदा होगा हाई केलोरी डाइट से ?

क्या दादी माँ की सीख में कुछ सार है ?-"सुबह उठकर कृष्ण के बाल रूप को निहारो केलेंडर में कच्चे नारियल का बीज खाओ तो शर्तिया लडका पैदा होगा "
ऐसा ही कुछ इन दिनों कुछ आजमाइशों के नतीजे कह रहें हैं -"ईट बेकन फॉर बोइज "यानी भून कर नमक डाला हुआ खाने योग्य सूअर (शूकर ,बेकन )की पीठ या पुठ्ठों का मांस खाने से लडका पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है .गर्भाधान के आस पास हाई केलोरी युक्त खाद्य लेने से २० में से १० से बढ़कर ११ मामलों में लडका पैदा होता है ।
मिस्सौरी यूनिवर्सिटी के साइंस दानों का कहना है जो महिलायें गर्भाधान के गिर्द ,जेस्तेशन पीरियड में भी (गर्भावस्था के चालीस हफ़्तों के दरमियान )नियमित और भर पूर नाश्ता करतीं हैं तथा उच्च वसा युक्त भोजन करतीं हैं उनके लडका पैदा करने की संभावना उन महिलाओं के बरक्स बढ़ जाती है जो कम वसा युक्त ,कमतर चिकनाई सना भोजन लेतीं हैं ,अक्सर व्रत उपवास रखतीं हैं देर तक भूखों रहतीं हैं ।
चेरिल रोसेंफील्ड की माने तो जो महिलायें कमतर केलोरी वाला भोजन लेतीं हैं उनको लडकी पैदा होने की संभावना लडकों की तुलना में बढ़ जाती है ।
रिसर्चरों ने उक्त नतीजे प्रेग्नेंट माँइस के प्लेसेंटा में मौजूद जींस का विश्लेषण कर निकाले हैं .प्लासेन्टा यानी गर्भ नाल खेडी जिसके ज़रिये बच्चा माँ से पोषण प्राप्त करता है .कुछमाँउस को उच्च वसा कुछ को उच्च शर्करा बहुल खुराख तो कुछ और को सोया आधारित सामन्य खुराख पर रखा गया .१२ दिनों के बाद (गर्भावधि की लगभग आधी होती है यह अवधि माँइस में )कमसे कम २००० जीवन इकाइयों में परिवर्तन दर्ज किया गया .इनमे से कितनी ही जीवन इकाइयां गुर्दे के काम को अंजाम तक ले जाती थी ,किडनी फंक्शन को पूरा करवातीं थी तो कुछ का सम्बन्ध घ्राण शक्ति (ओल्फेक्त्री फेकल्टी से था )।सूंघने की क्षमता से था .
फिमेल फीतासिस पर माँ की खुराख का ज्यादा प्रभाव दिखलाई दिया .इनके जींस में तबदीली की संभावना ज्यादा दर्ज की गई .माउस प्लेसेंटा में जींस की अभिव्यक्ति (जींस एक्सप्रेशन )का बड़ा हाथ दिखलाई दिया .फीमेल्स के मामले में यह अभिव्यक्ति ज्यादा मुखर रही .माँ की खुराख का फिमेल प्लेसेंटा पर ज्यादा असर पड़ा .

गुरुवार, 11 मार्च 2010

पादप -प्लास्टिक .......

"महा काल के हाथ पर "गुल "होतें हैं ,पेड़ ,
सुषमा तीनों लोक की कुल होतें हैं ,पेड़ "
पादपों का एक और उपकार अर्थात "पर्यावरण मित्र प्लास्टिक "अब ओरगेनिक केतेलिस्टकी मदद से तैयार किया जा सकता है .कायम रह सकने लायक सतत विकाश की अवधारणा को ज़मीं मुहैया करवाएगा यह प्लास्टिक जिसे पादपों से प्राप्त किया जा सकेगा .ज़ाहिर है पूरी तरह बायो -दिग्रेडिबिल(जैव -निम्निकर्निय)होगा यह प्लास्टिक .यही कहना है अल्मदें रिसर्च सेंटर के साइंसदानों का .बकौल चन्द्र शेखर "स्पाइक"नारायण (मैनेज़र ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलोजी (आई बी एम्स अल्मदें रिसर्च सेंटर ,नोर्द्रण केलिफोर्निया )का ।
यानी पर्यावरण के लिए बरसों से खतरा बने आये प्लास्टिक्स से अब निजात पाई जा सकेगी .ना अब लेंडफिल्स रुकेंगे और ना तीसरी दुनिया के मवेशियों की अंतड़ियां जो सब जगह जगह पसरी प्लास्टिक थैलियाँ खाद्य सामिग्री के साथ निगल जातें हैं ।
यानी अब पेट्रोलियम पदार्थों के स्थान पर पादपों से ऐसी प्लास्टिक हासिल की जा सकेगी जिसे बारहा रिसाइकिल (पुनर -चक्रिकृत ,पुनर नवीन )किया जा सकेगा .पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त प्लास्टिक सिर्फ एक मर्तबा ही रिसाकिल की सकती है ।
ज़ाहिर है इस विधि से पैदा की गई प्लास्टिक से ऊर्जा की भारी बचत होगी .यानी एक पर्यावरण से यारी रखने वाला प्लास्टिक उद्योग खड़ा किया जासकेगा .अब ओरगेनिक उत्प्रेरकों (केतेलिस्तों )के स्तेमाल से ऐसे मोलिक्युल्स पैदा
किये जा सकेंगें जो ना सिर्फ बायोदिग्रेदिबिल होंगें ,इन्हें पुनर -नवीकरणीय स्रोतों से भी हासिल किया जा सकेगा यानी एक ग्रीन केमिस्ट्री इस प्लास्टिक की रीढ़ बनेगी ।
यह प्लास्टिक बायो -कम्पेतिबिल (हामारी जैव प्राणाली के माफिक होगी )होगी जिसका स्तेमाल कैंसर कोशिकाओं तक चुनिन्दा तौर पर दवा पहुंचाने के लिए किया जा सकेगा .और दवा के पार्श्व प्रभावों से बचा जा सकेगा .स्वस्थ कोशिकाओं को कैंसर रोधी दवा के अतिरिक्त और गैर वांछित प्रभावों से बचाके रखा जा सकेगा ।
फिल वक्त आई बी एम् के साइंस दान किंग अब्दुल अज़ीज़ सिटी फॉर साइंस एंड टेक्नोलोजी ,सौदी अरबिया के साथ सहयोग कर इस प्लास्टिक के बहुविध स्तेमाल के लिए आतुर हैं .एडिबिल प्लास्टिक को रिसाकिल कर ऊर्जा बचत के उपाय किये जा रहें हैं फ़ूड एंड बीव्रेज़ कंटेनर्स को अब ऋ साइकिल किया जा सकेगा ओरगेनिक केतेलिस्ट के प्रयोग से ।
पादप प्लास्टिक का स्तेमाल कार बनाने में भी किया जा सकेगा .सोडा फ्रेंडली ड्रिंक्स में भी .

मंगलवार, 9 मार्च 2010

चिकनाई सने भोजन का भी चस्का -स्वाद लग जाता है .


दुनिया भर में दो तरह के लोग हैं .फेट सेंसिटिव (चिकनाई सने भोजन के प्रति एक दम से संवेदी ,ज़रा सी लोडिंग हुई चिकनाई की और इन्हें खाना ग्रीज़ी लगने लगता है )और फेट इन-सेंसिटिव (जो चिकनाई सने भोजन का नोटिस ही नहीं लेते फट गप कर जातें है ,स्वाद और मजेदार मान समझ कर )।
मोटापे की यही कुंजी है .बोडीमॉस इंडेक्स का निर्धारण भी इसी प्रवृति से तय होता है .(आपके किलोग्रेम भार को मीटर्स में आपकी लम्बाई के वर्ग से भाग देने पर जो कुछ प्राप्त होता है ,उसी प्राप्तांक को वजन सूचक कहा जाता है .१८.५ -२४.९ इसकी सामान्य रेंजहै .१८.५ से नीचे आप अन्दर वेट तथा २५ से ऊपर ओवर वेट होते चले जातें है बाशर्ते आपका वजन आपके कद काठी के अनुरूप आदर्श वजन से १२० फीसद या फिर और भी ज्यादा हो ।/कम हो .
जिभ्या (पलेट)रस लेती है वसा का चिकनाई सने भोजन का .इसे खट्टा ,मीठा ,तीखा (कडवा ),नमकीन ,और उमामी के बाद छटा स्वाद कहा जा रहा है . जुबां जिसका मज़ा लेती है मजेदार समझती है .जिसे ।
जायके दार मसाले दार प्रोटीन बहुल स्वाद यानी उमामी को पटखनी मार देता है यह सिक्स्थ टेस्ट ।
देअकिनयूनिवर्सिटी के साइंसदान इसे बाकायदा एक स्वाद का दर्ज़ा दे चुके हैं ।
फेटि एसिड युक्त भोजन आपने आजमाइशों के दौरान ५० सब्जिक्ट्स को मुहैया करवाया .पता चला जिन लोगों का बी एम् आई सामान्य से ज्यादा था ,जो मोटापे की ज़द में थे वह फेट इंसेंसिटिव थे .कमतर बी एम् आई वाले सब्जिक्ट्स फेट सेंसिटिव थे ।
ज़ाहिर है फेट इंसेंसिटिव खुराख से ज्यादा गप कर जातें हैं स्वाद स्वाद में चिकनाई सना भोजन .यहीं से एक एनर्जी बजट में असंतुलन पैदा हो जाता है .,जो मोटापे की वजह बनता है .एक मिकेनिज्म इसी के साथ शरीर में पैदा हो जाती है .इसे रोक कर समझ बूझकर मोटापे से पार पाई जा सकती है .

विटामिन -डी से जुडी है हमारी रोग -प्रति-रोधी क्षमता ..

रोगों से जूझने बचे रहने में विटामिन -डी एक विधाई भूमिका निभाता है .यह कोशिकाओं के उन दस्तों को जो बघनखे पहने तरह तरह के कीटाणुओं (रोग कारकों ,विषाणुओं ,रोगाणुओं ,परजीवियों )से जूझने के लिए तैयार रहतें हैं और भी ज्यादा मारक बना देता है .यह किलर कोशिकाओं का दस्ता और भी धार दार हो जाता है चौकस हो जाता है विटामिन -डी की मौजूदगी में .इन्हें ही टी- सेल्स कहा जाता है .दुनिया भर में आधे से ज्यादा लोग विटामिन डी की कमी से ग्रस्त हैऐसे में रोग -प्रतिरोधी तंत्र (इम्युनिटी सिस्टम )तकरीबन नाकारा हो जाता है नतीज़ा होता है शरीर का बीमारियों का घर बन जाना ।
कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के कार्स्तें गेइस्लेर तथा अन्यसाथी रिसर्चरों ने पता लगाया है इस विटामिन की क्षति पूर्ती करके शरीर की संक्रमणों से जूझने की क्षमता और इलाज़ को और असरदार बनाया जा सकता है .विटामिन -डी का अभाव संक्रमणों से मुकाबले में हमें पछाड़ देता है .और भरपाई संक्रमण को मार भगा सकती है ।
आलमी बीमारियों (पेंदेमिक्स )से मुकाबले में विटामिन -डी एक निर्णायक रोल अदा कर सकता है ।
टी सेल्स विटामिन डी से ही ताकत और होंसला लेतीं हैं .इसकी कमी बेशी इन्हें घात लगाए बैठे पेथोजंस के प्रति ला परवाह बना के छोड़ देती है ,एक तरह से अक्रिय पड़े रहतें हैं ये सैनिक दस्ते .विटामिन -डी इनका राशन पानी ,वारदाना है .रक्त में विटामिन डी का स्तर बनाए रखिये .रोगकारक कमज़ोर पर जायेंगे .सेंध मारी नहीं कर सकेंगे इम्यून सिस्टम की .

सोमवार, 8 मार्च 2010

हाई -मेंन मिथ और यथार्थ (ज़ारी ....)

कई मर्तबा होर्स राइडिंग (घुड सवारी ),साइकिल चलाते वक्त कोई भी हाड तोड़ खेल के दौरान हाई मेंन यूँ ही रप्चर हो जाती है (दिफ्लोरेशन ऑफ़ हाई मेंन )यानी किसी भी स्त्रेनस स्पोर्ट्स के दौरान ऐसा हो सकता है .प्रथम मिलनमें योनी से रक्त का आना /ना आना कोई मायने नहीं रखता .फिर भी कई धर्म भीरु समाजों में सुहाग रात के बाद "सोइल्ड बेड शीट"दिखाने की रीत चली आई है ।
योनी के बाहर के इस आंशिक घूंघट का फटना अल्पकाली दर्द की वजह बनता है .कई मर्तबा दर्द का एहसास भी नहीं होता .हर औरत अलग होती है .उसकी बनावट अलग होती है .औरत क्या है इसे तो खुदा भी नहीं समझ पाया .ना समझ मर्द ने मनमाने रिवाज़ चला दिए .हाई -मेंन को एक औरत के पाकीज़ा होने का बेहूदा गैर वैज्ञानिक दर्ज़ा दे दिया गया .एक युवती की सेक्सुँलिती उसकी सेक्सुअल हेल्थ को आज समझने और उसे समझाने के बेहद ज़रुरत है .यह काम कोई शिक्षक ही कर सकता है .माँ -बाप कन्नी काट जातें हैं .

हाई -मेंन (योनिच्छिद )मिथ और यथार्थ .....

"दी एब्सेंस ऑफ़ ए फ्यू द्रोप्स ऑफ़ ब्लड एंड ए फिमेल इज इम्प्योर ?"
नारी की संरचना का एक अंग (शरीरांग )मात्र है "योनिच्छिद /हाई -मेंनपूरी औरत नहीं है .शरीर में इसकी ज़रुरत भी है या नहीं चिकित्सा माहिर नहीं जान सके हैं .अलबत्ता "इम्पर्फोरेट हाई -मेंन "जिसका पता तब चल पाताहै जब लडकियां यौवन की देहलीज़ पर पाँव रखतीं हैं (प्युबिसेंत /यौवनारंभ )पेट दर्द का कारन ,कमर दर्द की वजह बन जाती है क्योंकि मेन्स्त्र्युअल् ब्लड माहवारी शुरू होने पर वापस लौट जाता है योनी में .इम्पर्फोरेट हाई -मेंन पूरी योनी को ढके रहती है .हाई -मेंन के पीछे होती है योनी .योनी के अन्दर हाई -मेंन नहीं होती है .अमूमन यह अर्द्ध चन्द्राकार होती है जैसे हाथ के नाखूनों का निचला सफ़ेद भाग होता है .कभी कभार यह एक चाप की तरह (ईद के चाँद )क्रेसेंट की शक्ल लिए होती है .हाई -मेंन यानी योनी का पर्दा हो ही यह कतई ज़रूरी नहीं है .कई लडकियां जन्म से ही बिना हाई -मेंन के पैदा हो जातीं हैं .हाई -मेंन का होना या फिर गैर मौजूदगी सटी सावित्री होना या ना होना नहीं है ।
ईसा के जन्म के बाद चर्च ने नाहक घोषणा की थी "मेरी की हाई -मेंन "ईसा को जन्म देने के बाद भी सही सलामत थी .मेरी वर्जिन है .यह भी तो हो सकता है मेरी बिना हाई -मेंन के ही इस दुनिया में आ गई थी .वेस्तिजियल ओर्गेंन है हाई -मेंन जिसका कोई फंक्शन आदिनांक माहिरों को नहीं पता ।
कई मर्तबा हाई -मेंन बेहद इलास्टिक होती है ,इंटर -कोर्स के बाद भी बनी रहती है .कभी कभार इस वजह से पेन भी हो सकता है मैथुन के दौरान .एक बारीक तिस्यु एक झिल्ली है हाई -मेंन जो योनी के बाहर वलवा (योनी विवर /भग )को आम तौर पर आंशिक और कभी कभार पूरा आच्छादित किये रहती है .योनी का घूंघट है हाई -मेंन (योनिच्छिद ).औरत के पाकीज़ा होने का इस घूंघट से कोई लेना देना नहीं है ।
अलबत्ता हाई -मेनोप्लास्ती करने वाले कोस्मेटिक सर्जन भारत और जापान ,इतर पूरबी देशों में चांदी कूट रहे है ।
हाई -मेंन यूनानी देवता हाई -मीनिय्स से बना है .जिसे विवाह का देवता माना जाता है .इसे बच्चुस और वेनस की संतान कहा गया है .इस की विवाह के समय मौजूदगी शुभंकर मानी गई है .इसीलिए विवाह के समय इसका आवाहन किया जाता है .

रविवार, 7 मार्च 2010

ब्लेक सी के नामकरण की वजह क्या है ?

दक्षिण पूरबी यूरोप और एशिया के बीच एक इन्लेंडसी है इसे ही ब्लेक -सी या काला सागर कहा जाता है .इसका क्षेत्रफल ४३६,४०० वर्ग किलोमीटर यानी १६८,५०० वर्ग मील है .सवाल इसके नाम करण का है .आखिर "काला सागर "इसका नाम क्यों पडा ?
पुराने ज़माने में मुख्य दिशाओं को रंगों से जाना जाता है (पूरब ,पश्चिम ,उत्तर ,दक्षिण दिशाओं को अलग अलग रंग दिए गए थे ).ब्लेक का मतलब होता था "नोर्थ "यानी उत्तर दिशा ।
ब्लेक सी जो एक "इन्लेंड- सी "है यूरोप ,अनातोलिया तथा काकेसस से घिरा है .यह अंत -तया अंध -महासागर यानी एटलान्टिक ओशन में मिल जाता है बा -रास्ता मेदितरेनियाँ (भूमध्यसागर )तथा एजियन सागर .कई स्ट्रेट्स भी इसके रस्ते में आतीं हैं ।
इसे इन्होस्पितेबिल समझा जाता था नेविगेशन के प्रतिकूल .यूनानी उपनिवेशीकरण से पूर्व इसे डार्क एरिया (ब्लेक )ही समझा गया था .लेकिन यहाँ ब्लेक का अर्थ प्रतीकात्मक था .जहां पहुंचा ना जा सके या जहां आकर दिशा -खो जाए ,दिशा -च्युत हो जाए नाविक .इसके किनारे खतरनाक कबीलों का डेरा था ।
ब्लेक -सी का पानी मेदितरेनियाँ के बरक्स काला दिखलाई देता है क्योंकि इसमें हाई -द्रोजन सल्फाइड की परतें हैं (लेयर्स हैं ).यह परतें सतह से २०० मीटर से नीचे जाने पर मिलतीं हैं .यहाँ एक विशिष्ठ ओर्गेनिज्म (माइक्रोबियल पापुलेशन है .यही सूक्ष्म जीव(प्रणालियाँ )काले रंग के अवसाद (सेदिमेंट्स )तैयार करतें हैं .

खगोल -जैविकी क्या है ?

एस्ट्रो -बाय -लोजी यानी खगोल -जीवविज्ञान से आप क्या समझतें हैं ?
खगोल विज्ञान की ही एक शाखा को जिसके तहत अंतरिक्षके भौमेतर भागों (एक्स्ट्रा -तेर्रिस्त्रियल पार्ट्स ) में जीवन की संभावनाओं ,रहवासों (हेबितेट्स )का पता लगाया जाता है खगोल जीवविज्ञान कहा जाता है .अलावा इसके यह एक व्यापक अनुशाशन है जिसके अंतर्गत बाहरी अन्तरिक्ष के भौमिक जीवन पर पड़ने वाले संभावित असर का भी पता लगाया जाता है .प्रोजेक्ट "सेती "यानी सर्च फॉर एक्स्ट्रा -टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस इसी के तहत आता है .खगोल ,भौतिकी ,जैव ,भू -भौतिकी के माहिरों का एक बहुत बड़ा हिस्सा इस बात का हामी हैं ,पृथ्वी के अलावा अन्य नक्षत्र मंडलों नक्षत्र परिवारों में भी जीवन मुमकिन है .आदिनांक यह हमारी बूझ ,पकड से बाहर है यह दीगर बात है ।
जीवन के सृष्टि में उद्भव और होने ,विभाजन की कथा है ,खगोल -जैविकी .अपने होने का अहसास करा देते हैं ,जब ग़ज़ल कोई ज़माने को सुना देते हैं ।
अंतर -अनुशासन अध्धय्यन की एक बेहतरीन मिसाल है -खगोल जीवविज्ञान जिसके अंतर्गत तमाम भौतिक विज्ञानों का बेरोक टोक प्रवेश और समावेश है .चाहे फिर वह भौतिकी (फिजिक्स )हो या रसायन विज्ञान (केमिस्ट्री )खगोलविज्ञान हो या जीवविज्ञान ,पारिस्थितिकी (इकोलोजी )या ग्रहों का अध्धयन (प्लेनेटरी साइंस ),भूगोल हो या भूविज्ञान (जीयोलोजी ).लक्ष्य सबका एक ही है -भौमेतर जीवन का पता लगाना .क्या सृष्टि में हम पृथ्वी वासी अकेले हैं ?या और भी अति विकसित सभ्यताओं का अस्तित्व है ?क्या जीवन का स्वरूप इतर ग्रहों पर भिन्न है ?विज्ञानियों का एक बड़ा तबका इस बात का हिमायती है पृथ्वी पर जीवन धूमकेतुओं से आया .अन्तरिक्ष में छिपे हैं जीवन के सूत्र .

शनिवार, 6 मार्च 2010

छोटे गृह ही डायना-सौर के विनाश का कारण बने .....

मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच में छोटे ग्रहों की एक पूरी पट्टी है जो सूर्य की परिक्रमा कर रहें हैं .समझा जाता है यहीं कहीं से एक एस्टेरोइड (लघु ग्रह) निकल कर पृथ्वी की और गुरूत्व की डोर से बंधा चला आया .और एक बड़े भूभाग से रीढ़ धारी जीवों का सफाया हो गया .इनमे डायना -सौर भी शामिल थे ।

गत दशकों में डायना -सौरों के विनाश को लेकर अनेक कयास लगाए गए हैं .कई सिद्धांत चर्चित रहें हैं .अब लगता है साइंसदानों की एक आलमी टोली इनके विनाश को लेकर एक मत है ।

४१ विज्ञानियों की एक टोली ने गत दो दशकों की इस दिशा में की गई शोध का जायजा लिया है .विज्ञानी अब एक राय हैं ,अब से तकरीबन ६.५ करोड़ बरस पहले पृथ्वी के आधे से ज्यादा जीवों का सफाया हो गया था (के टी एक्सटिंक्शन यानी क्रीतेशस-तर्शरी एक्सटिंक्शन ).विज्ञानी एक और इस विनाश के लिए किसी लघु ग्रह के पृथ्वी से आ टकराने और दुसरी ओरडेकन ट्रेप (इंडिया )में ज्वालामुखी विस्फोटों को जो तकरीबन १५ लाख बरसों तक फटतेफूटते रहे .सुलगते रहे ।

"(पूरबी ओर पश्चिमी घाटों के बीच का त्रीकोनीय पठार डेकन कहलाता है .क्रीतेशिअस पीरियड में खडिया नुमा (चाक जैसी )चट्टाने बनी .६.५ -१४.४ करोड़ बरस पहले का यह भूगर्भ काल है जिसका सम्बन्ध मेसोज़िक काल के अंत से शुरू हुआ माना जाता है ।)

विज्ञान पत्रिका 'साइंस "में प्रकाशित इस (चर्चित )अध्धय्यन के अनुसार अब से कोई ६.५ करोड़ साल पहले मेक्सिको के "चिच्क्सुलुब"स्थान पर कोई १५ किलोमीटर चौड़ा एल अलघु ग्रह आ गिरा था .इसी के साथ व्यापक स्तर पर आगजनी ,भूकंप ,भूस्खलन जैसी आपदाओं ने हार्बर वेव्स (सूनामीज़ ) को ट्रिग्गर प्रदान किया ।

टक्कर के फलस्वरूप पूरी पृथ्वी को अँधेरे की चादर ने ढांप लिया .नागा साकी पर गिराए गए एटमी बम से एक अरब गुना ज्यादा विस्फोटक ऊर्जा इस लघु ग्रह के पृथ्वी के आ टकराने से पैदा हो गई थी .एक एटमी जाड़े ने पृथ्वी को लील सा लिया था .फलस्वरूप कितनी ही जिव प्रजातियाँ समाप्त हो गईं .डायना -सौर भी उनमे से एक प्रजाति थी ।

साइंसदानों ने यह तमाम निष्कर्ष जीवाश्मों के विश्लेषण अध्धययन ,भू -रसायन विदों ,जलवायु का मोडिल तैयार करने वाले माहिरों ,भू -भौतिकी -विदों ,अवसाद अध्धय्यन के माहिरों (सेदिमेंतोलोजिस्ट्स )के गत बीस वर्षों के शोधों का जायजा लेने के बाद निकालें हैं ।

सन्दर्भ सामिग्री :इट्स ओफ़िशिअल :एस्तेरोइद्स किल्ड दाई -नोज़ (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन टेस्ट कितना निरापद ...

महिलाओं के लिए रूटीन मेमोग्रेम्स (स्तन कैंसर पता लगाने के लिए )तथा पेप स्मियर टेस्ट (सर्विक्स कैंसर यानी गर्भाशय गर्दन कैंसर की शिनाख्त के लिए ) की मानिंद अब मर्दों के लिए एक उम्र के बाद रूटीन प्रोस्टेट कैंसर टेस्ट (प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन टेस्ट )अब संदेह के घेरे में आ गया है .कुछ साइंसदान जिनका सम्बन्ध अमरीकी कैंसर सोसायटी से है एक कट ऑफ़ उम्र के बाद ऐसी जांच को ज़रूरी नहीं मानते क्योंकि यह निरापद नहीं है .गैर ज़रूरी शल्य चिकित्सा के दायरे में ला सकती है जांच कारवाने वाले व्यक्ति को जिनके परिणाम स्वरूप व्यक्ति इन्फेक्शन (अनेक तरह के संक्रमण ),रक्त स्राव (ब्लीडिंग )यहाँ तक की उम्र भर के लिए नपुंसकता (इम्पोतेंसी )की चपेट में भी आ सकता है .बेशक "प्रोस्टेट स्पेसिफिक कैंसर के लिए रक्त जांच ")डिजिटल रेक्टल इग्जामिनेशन की तरह आरंभिक अवस्था में ही कैंसर का पता लगा सकती है लेकिन यह सर्वथा निरापद नहीं है ।
अलबत्ता "अमरीकी मूत्र विज्ञानी का संघ /अमरीकन युरोलोजिकल असोशियेशन ") एक उम्र के बाद ऐसी जांच पर सवाल नहीं उठा रही है ।
दोनों एक बात से सहमत प्रतीत होतें हैं ,जांच से पूर्व इसके गुण -दोषों की ,संभावित जोखिम की चर्चा मरीज़ के साथ ज़रूर की जानी चाहिए .कहीं ऐसा ना हो "मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की /चौबे जी चले थे छब्बे जी बन्ने ,लौटे दुबेजी बनके "।
सच यह भी है

वजन घटाने के लिए आदर्श खुराख का राज़ छुपा है हमारी आनुवंशिक बुनावट में ...

क्या है "जीनोताइप"?एक व्यक्ति की एक विशिष्ठ आनुवंशिक प्रकृति (जेनेटिक नेचर )होती है .अलबत्ता ऐसे बहुत से लोग होतें हैं जिनकी भौतिक प्रकृति जुदा लेकिन आनुवंशिक बुनावट यकसां हो .जेनेटिक मेक अप को ही जीनो टाईप कहा जाता है ।

इसका मतलब यह हुआएक जेनेटिक परिक्षण करके व्यक्ति विशेष के लियें ,समूह विशेष के लिए जिनकी आनुवंशिक प्रकृति एक जैसी है वजन को प्रभावित करने वाली वेट का विनियमन करने वाली सही तरीके से घटाने वाली आदर्श खुराख का राज़ हमारी आनुवंशिक रचाव में छिपा है ।

ज़रूरी नहीं है सब के लिए कम चिकनाई सना ,कम कार्बोहाद्रेती (कम खुराखी शक्कर )वाला भोजन असर कारी हो .हो सकता है आनुवंशिक बनावट एक संतुलित खुराख मांग रही हो .यही कहना है "इंटर ल्युकिन जेनेटिक्स इंक "का ।

मोटापे से ग्रस्त १४० महिलाओं पर संपन्न एक अध्धययन ने बतलाया है जिन्हें उनकी आनुवंशिक बनावट के अनुरूप भोजन दिया गया उनका वजन असरदार तरीके से ज्यादा कम हुआ बनिस्पत उनके जिनकी खुराख उनके जेनेटिक मेक के अनुरूप नहीं रहती है ।
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी केलिफोर्निया के अनुसार दवाओं के बनिस्पत यह नुस्खा (आनुवंशिक बनावट के अनुसार खुराख )दवाओं के बरक्स ज्यादा कारगर सिद्ध हुआ है .आपने मेसाच्युसेट्स आधारित "इंटर -ल्युकिन टेस्ट "अध्धय्यन में भाग लिया था .यह अध्धय्यन तीन जीवन इकाइयों(जींस ) में होने वाले संभावित "म्यूटेशन "यानी उत्परिवर्तन पर आधारित है जिनके नाम हैं -ऍफ़ ए बी पी २ ,पी पी ए आर जी तथा ए डी आर बी २ ।
बकौल" इंटर ल्युकिन जेनेटिक्स इंक "तकरीबन ३९ फीसद गोरे अमरीकियों को लो फेट जीनो ता -इप खुराख माफिक आती है जबकि ४५ फीसद की आनुवंशिक संरचना लो प्रोसेस्ड कार्बो हाई -द्रेट्स खुराख के ज्यादा अनुरूप है .जबकि १६ फीसद ऐसे लोगों का है जिन्हें वजन घटाने के लिए एक संतुलित खुराख ज्यादा माफिक आयेगी .
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अंतड़ियों में छिपा है बीमारियों का राज़ .

तमाम तरह के रोगकारक पैथोजंस (रोग पैदा करने वाले जीवाणु ,विषाणु ,परजीवी आदि )हमारी अंतड़ियों में डेरा डाले पड़े रहतें हैं .साइंस दानों ने इनके जीवन खण्डों का पूरा खाका (जीन मेप ,जीन सीक्युएंस )तैयार कर लिया है .माहिरों का मानना है .यदि रोग पैदा करने वाले जीवाणु की शिनाख्त गट में कर ली जाए और फिर वहीँ उसका खात्मा भी कर दिया जाए तो रोग से भी पुख्ता तौर पर छुटकारा मिल सकता है ।
मानवीय पाचन तंत्र मुख गुहा से लेकर गुदा तक विस्तारित है इसी पाचन तंत्र (डाई-जेस्तिव सिस्टम )में हज़ारों हज़ार जीवाणुओं का प्राकृत आवास है .इनका संबंद्ध कुछ ख़ास बीमारियों से सीधे सीधे जोड़ा जा सकता है .यहाँ तक ,कैंसर पैदा करने वाले विषाणु की निशाँ देही कर कैंसर का भी पुख्ता इलाज़ किया जा सकता है ।
मधुमेह और मोटापे से निजात दिलवाई जा सकती है ।
यह तमाम तथ्य अंतर्राष्ट्रीय साइंसदानों की एक टोली ने हाल ही में प्रकाशित एक पर्चे में प्रस्तुत कियें हैं .विज्ञान पत्रिका "नेचर "के ताज़ा अंक में चीनी रिसर्चरों की एक टोली के अगुआ वांग जून ने बतलाया है ,अब तलक जीवाणुओं की एक हज़ार से भी ज्यादा प्रजातियों का हमारी अंतड़ियों में पता लगा या जा चुका है .इनमे से हरेक का जीन खाका भी तैयार कर लिया गया है .यह अपने प्रकार का पहला आनुवंशिक कैलेण्डर (जेनेटिक केतालोग है )।
इस एवज १२४ डेनमार्क वासियों तथा स्पेन निवासियों के स्टूल साम्पिल्स की विस्तृत जांच की गई थी .इस दरमियान ऐसी कई जीवन इकाइयों (जींस )की निशाँ देही की गई जिनका संबंद्ध मोटापे और क्रोहन्स दीजीज़ से जोड़ा जा सकता है .कैंसर ,ओबेसिटी जैसी सर्वव्यापी समस्या के लिए भी यही जींस कुसूर वार हैं .बेशक पाचन में इनकी विधाई भूमिका है यही कहना है वांग का .आप बेजिंग जीनोमिक्स के कार्य कारी निदेशक है ।
इन बेक्टीरिया पर काबू करने का मतलब है रोग की जड़ पर प्रहार .

मंगलवार, 2 मार्च 2010

चाहता हूँ मैं भी मानव बम बन फट जाऊं ........

चाहता हूँ मैं भी -
मानव बम बन फट जाऊं ,
उड़ा दूं जामा -
या एक बार फिर तुम्हारे सपनों की बाबरी मस्जिद ।
लेकिन मैं ऐसा करूंगा नहीं -
मैं एक "हिन्दू "हूँ ।
दीगर है -
मेरे खून में हीमोग्लोबिन के साथ आर डी एक्स वैसे ही है -
जैसे माँ के दूध में डी डी टी -
रामू के खेत में बी टी बैंगन ।
मेरी सरकार कहती है -
"मैं सेक्युलर हूँ "

सोमवार, 1 मार्च 2010

एक बिजली घर आपके पिछवाड़े (ब्लूम बॉक्स )...

पावर हाउस इन अ बॉक्स .अ वायर लेस पावर प्लांट ,ब्लूम एनर्जी आदि नामों से नवाज़ा जा रहा है "ब्लूम बॉक्स "को जिसे एक भारतीय मूल के अमरीकी साइंसदान के आर श्रीधर ने प्रस्तुत किया है .फिलवक्त ऐसे एक प्लांट पर आने वाला कुल खर्च ५-७लाख डॉलर बतलाया जारहा है जो १०० घरों की बिजली की ज़रूरीयात पूरी कर सकता है .आइन्दा पांच दस सालों में इसकी कीमत घटकर ३००० डॉलर रह जायेगी यही दावा है श्रीधर साहिब का .आप ब्लूम एनर्जी के चीफ एग्ज़िक्यूटर ऑफिसर हैं ।
" ब्लूम -बॉक्स" रेफ्रिजरेटर के आकार का एक बक्सा है जिसमे पाइल्स रखी हैं ढेरों जिन्हें रेत से तैयार किया गया है .पारंपरिक या फिर वैकल्पिक कोई भी एक ऊर्जा स्रोत और दाबित ओक्सिजन चाहिए इस बिजली घर के संचालन के लिए .जिसमे समायोजित सेल्फ कन्तेंद सेल्स एक सिरे से ओक्सिजन लेतीं हैं दुसरे से कोई भी उपलब्ध ईंधन .और बस बिजली तैयार .एक विद्युत् रासायनिक किर्या होती है ओक्सिजन और ईंधन के संयोग से .कोई दहन (कम्बश्चन )नहीं ,कोई कम्पन (वाइब्रेशन )नहीं ,कोई ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं .यानी एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत आपका अपना जिसे उठाकर कहीं भी ले जाया जा सकता है .एक उठाऊ बिजली घर ।
लेकिन इसके आलोचक इसे "जीरो एनर्जी एमिशन सोर्स "मानने को राज़ी नहीं है .अधिक से अधिक यह एक ग्रीन एनर्जी स्रोतों के लिए एक बूस्टर ,एक फ़िल्टर का काम कर सकता है, डरती स्रोतों के लिए .कुछ ना कुछ मात्रा में इससे भी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन विसर्जन होगा हमारे पर्यावरण में .