सोमवार, 31 अगस्त 2015

अब तो हरिहर ही लाज रखे ---डॉ वागीश मेहता

आज पढ़िए जाति परस्त और राष्ट्रविरोधी राजनीति को बे -नकाब करती डॉ. वागीश मेहता की रचना जिसका ज़िक्र हम पिछले कई दिनों से कर रहे थे और जिसकी कुछ शीर्ष पंक्तियों का हम ने दीगर रिपोर्टों में  इस्तेमाल भी किया था :

                      अब तो हरिहर ही लाज रखे 

                                            -------------------डॉ वागीश मेहता 

जय सोनी मोनी मूढ़ मते ,

जो केजरवाल से गए छले ,

अब तो हरिहर ही लाज रखे। 
                    
                 (१  )
उस मधुबाला ने फंद  रचे ,

सुर असुर लबों  पर जाम रखे  ,

फिर नव-हेलन सी आ विरजी ,

रजधानी दिल्ली के दिल में ,

वो रोम  रोम से हर्षित है ,

अब तो हरिहर ही लाज रखे। 

              (२ )

वह आयकर का उत्पाती था ,

खुद को समझे सम्पाती था ,

प्रखर सूर्य जब तपता था ,

वह ऊँची उड़ानें  भरता था ,

अब एनजीओ के धंधे थे ,

कुछ पास कि बिजली खम्भे थे ,

वह दांत निपोरे आता था ,

फट खम्बों पर चढ़ जाता था ,

तब हैरां   होते चमचे थे ,

अब तो हरिहर ही लाज रखे। 

विशेष :सम्पाती  जटायु  का बड़ा भाई था ,जो सूर्य के पास जाना चाह रहा था पर इस प्रयास में उसके पंख जल गए थे। 

मधुबाला का अर्थ है बार टेंडर।

'वह रोम रोम से हर्षित है 'पंक्ति में यमक अलंकार है पहले रोम अर्थ देश विशेष से है दूसरे का (रोम रोम को मिलाकर )रोमकूप।

 इस रचना के पात्र जाने पहचाने हैं न इनके नाम छिपे हैं न काम (कारनामें ) न नीयत आप सब जानते हैं। रचना के शेष छंद अगले अंक में पढ़िए।

वीरुभाई 

यादव और मुसलमान यानी जाति और धर्म को मिलाकर ये एक नया एमल्गम एक नै वर्णसंकरता पैदा करना चाहते हैं

हाल ही में लालूप्रसाद ने ये मनमाना आरोप केंद्र सरकार पर लगाया है कि ये सरकार उनकी जमानत रद्द कर दिए जाने का भय उन्हें सीबीआई की मार्फ़त दिखा रही है। देश के बुद्धिजीवियों का इस बाबत कहना है कि भले इन्होनें चारा खा लिया वह कोई बात नहीं लेकिन अब ये यादवों और मुसलमानों को एक होने का अावाहन करके बाकी जातियों को डरा रहें हैं संविधान के विरुद्ध जाकर वोट मांग  रहे हैं। देश की मेधा को अपमानित कर रहें हैं इसलिए इन्हें जेल में ही रखा जाए। यादव और मुसलमान यानी जाति  और धर्म को मिलाकर ये एक नया एमल्गम एक नै वर्णसंकरता पैदा करना   चाहते हैं।

क्योंकि ये अपनी ही सोच के लोग पैदा करेंगें इसलिए इनके डीएनए की भी जांच होनी चाहिए।

लालू हो या सोनिया या फिर नीतीश ये सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। लोगों को डराने धमकाने और बदजुबानी करने के अलावा राष्ट्रीय इतिहास को कलंकित करने के लिए भी इन्हें जेल होनी चाहिए। एक मर्तबा लालू ने  कहा था -१९२७ में पैदा आडवाणी पाकिस्तानी हैं। लालू की इतिहास की समझ कितनी लचर हैं संयुक्त अखंड भारत को ये पाकिस्तान बतला रहें हैं पाकिस्तान का तो तब अस्तित्व ही नहीं था। भारत के गर्भ में भी नहीं आया था तब तक पाकिस्तान। ये तो अंग्रेज़ों ने इम्प्लांट किया था नेहरू ने उसे तरजीह दी थी जिन्ना के इशारे पर।

अपमान रैली को ये महाशय स्वाभिमान रैली बतला रहे हैं।

जय सोनी मोनी मूढ़मते ,जय लालू नीतीश मंद मते

अब तो हरिहर ही लाज रखे।



अपमान या स्वाभिमान रैली


Congress Chief Sonia Gandhi Insulted at Swabhiman Rally, Claims LJP

रविवार, 30 अगस्त 2015

अपमान या स्वाभिमान रैली

हाल ही में लालूप्रसाद ने ये मनमाना आरोप केंद्र सरकार पर लगाया है कि ये सरकार उनकी जमानत रद्द कर दिए जाने का भय उन्हें सीबीआई की मार्फ़त दिखा रही है। देश के बुद्धिजीवियों का इस बाबत कहना है कि भले इन्होनें चारा खा लिया वह कोई बात नहीं लेकिन अब ये यादवों और मुसलमानों को एक होने का अावाहन करके बाकी जातियों को डरा रहें हैं संविधान के विरुद्ध जाकर वोट मांग  रहे हैं। देश की मेधा को अपमानित कर रहें हैं इसलिए इन्हें जेल में ही रखा जाए। यादव और मुसलमान यानी जाति  और धर्म को मिलाकर ये एक नया एमल्गम एक नै वर्णसंकरता पैदा करना   चाहते हैं।

क्योंकि ये अपनी ही सोच के लोग पैदा करेंगें इसलिए इनके डीएनए की भी जांच होनी चाहिए।

लालू हो या सोनिया या फिर नीतीश ये सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। लोगों को डराने धमकाने और बदजुबानी करने के अलावा राष्ट्रीय इतिहास को कलंकित करने के लिए भी इन्हें जेल होनी चाहिए। एक मर्तबा लालू ने  कहा था -१९२७ में पैदा आडवाणी पाकिस्तानी हैं। लालू की इतिहास की समझ कितनी लचर हैं संयुक्त अखंड भारत को ये पाकिस्तान बतला रहें हैं पाकिस्तान का तो तब अस्तित्व ही नहीं था। भारत के गर्भ में भी नहीं आया था तब तक पाकिस्तान। ये तो अंग्रेज़ों ने इम्प्लांट किया था नेहरू ने उसे तरजीह दी थी जिन्ना के इशारे पर।

अपमान रैली को ये महाशय स्वाभिमान रैली बतला रहे हैं।

जय सोनी मोनी मूढ़मते ,जय लालू नीतीश मंद मते

अब तो हरिहर ही लाज रखे।



अपमान या स्वाभिमान रैली


Congress Chief Sonia Gandhi Insulted at Swabhiman Rally, Claims LJP

धनी ब्रजधाम ,धन्य ब्रज धरणी ,उड़ि लागै जो धूल , रास विलास करते नंदनंदन ,सो हमसे अति दूर

सतसंग के फूल

रासपंचाध्यायी के अनुसार रास लीला के लिए ही कृष्ण ने पूर्णावतार  लिया। कृष्ण कथा सुनने सुनाने से मन संसार से उपराम हो जाता है.वितृष्ण हो जाता है मन। तृष्णा नष्ट होने से मन शुद्ध हो जाता है। फिर भक्तिमहारानी आपसे आप ही आ जातीं हैं हमारे हृदयप्रदेश में मन के घरद्वारे।

इस स्थिति  में भगवद्कथा और भक्त दोनों से ही प्रेम हो जाता है। हृदय का सबसे बड़ा रोग काम हैं ,लोभ मोह क्रोध ,मत्सर्य ,रागद्वेष मन के अन्य रोग हैं लेकिन इनमें काम ही प्रधान है महारोग है। रासलीला वास्तव में कामविजया लीला है। वेदव्यास ने पंचाध्यायी के शुरू में ही कहा है लीला पुरुष स्वयं भगवान हैं इसलिए किसी भी प्रकार की शंका मन में न लाएं।

कृष्ण ने पर स्त्रियों का स्पर्श किया है। गोपियों ने वैदिक सती धर्म का निर्वाह नहीं किया है आदि आदि।

यहां रास की देवी स्वयं 'श्री' जी (राधारानी )हैं। राधारानी ही श्यामसुन्दर को रस देतीं हैं।रसशेखर बनातीं हैं।

श्रीमद्भागवद पुराण की पंचाध्यायी में कृष्ण ने योगमाया उपास्य 'श्री' जी का ही आश्रय लिया है। सच्चा प्रेम मर्यादा के सब तटों को तोड़ देता है। इसीलिए कृष्ण अवतार को सर्वश्रेष्ठ सोलहकला संपन्न पूर्ण अवतार कहा गया है।

रास लीला के तहत भगवान जिसका जैसा भाव है उसे वैसा ही रस प्राप्त कराते हैं। यशोदा के हृदय में वात्सल्य है तो यशोदा के लाल बन जाते हैं गोपों के हृदय में सख्यभाव हैं तो उनके सखा बन जाते हैं और गोपियों के हृदय में कंथ भाव है तो उनके पति (कंथ )बन जाते हैं।

अब ज़रा सोचिये १६१०८ गोपियाँ हैं और कृष्ण एक हैं और एक ही समय पर सबके साथ अलग अलग वास भी करते हैं रास भी रचातें हैं और सबके लिए अनन्य हैं (कोई अन्य नहीं हैं कृष्ण ही उनके हैं सिर्फ उनके ,गोपियों को ये मद (मान )भी हो जाता है। रासलीला के बीच से अदृश्य होकर कृष्ण ये मान भी तोड़ते हैं।उनकी उम्र सिर्फ ग्यारह बरस थी जब ये लीला संपन्न हुईं थीं। 

अक्सर लोग पूछते हैं कृष्ण ने पर स्त्रियों का स्पर्श किया है। दरसल कृष्ण भाव गोपियों को एक दिव्य शरीर प्रदान कर देता है पांच तत्वों का बना गोपियों का शरीर तो उनके घर पर ही रहता है कृष्ण की वंशी के टेर (तान )सुनके उनका दिव्य शरीर ही कृष्ण की ओर दौड़ता है और रास में भाग लेता है।

पूछा जाता है जब गोपियों के अभी कर्मबंध ही नहीं कटे हैं तो उन्हें दिव्य शरीर की प्राप्ति कैसे हुई ?

इसे सरल भाषा में इस प्रकार समझिए कि जो कर्म हम कर चुकें हैं वह जमा हो जाता है.संचित कर्म बन जाता है।
जो कर्म हम वर्तमान में कर रहें हैं वह क्रियमाण कर्म कहलाता है जिसका फल आगे मिलता है इसीलिए इसे आगामी कर्म भी कहा गया है। संचित कर्म का एक भाग हम लेकर पैदा होतें हैं इसे ही प्रारब्ध कहा जाता है जो सुख दुःख के रूप में हमें भोगना ही पड़ता है।

अब क्योंकि गोपियाँ रास भावित  होकर भगवान से मिलने के लिए दौड़तीं हैं तो उनका क्रियमाण  कर्म श्रेष्कर्म हो जाता है जो उन्हें कर्म बंधन  से नहीं बांधता है। (अकर्म बन जाता है ये कर्म जिसका आगे फल नहीं भोगना पड़ा गोपियों को) .
जो गोपियाँ कृष्ण से मिलने में कामयाब हो जातीं हैं उन्हें इतना सुख मिलता है कि उनके सारे शुभ कर्म ,सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं क्योंकि सुख भोगने से पुण्य चुकता है तथा जिन्हें कृष्ण से मिलने से उनके पति या माँ बाप रोक देते हैं उन्हें इतना दुःख मिलता  कि  उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पाप और पुण्य दोनों नष्ट हो जाने पर गोपियों को दिव्य शरीर मिल जाता है। इसलिए शंका मत लाइए। यहां लीला पुरुष स्वयं भगवान हैं। जो स्वयं छोटे बन जाते हैं। छोटे बनके गोपियों के चरण दबातें हैं जब वे नाँचते नाँचते थक जातीं हैं। यही कृष्ण राधा रानी के बाल संवारते हैं। यशोदा के डंडे से डरते हैं।

राधा के ऐश्वर्य से तो कंस भी दहशद खाता था इसलिए बरसाने में कभी किसी राक्षस ने प्रवेश नहीं किया। गोकुल में खूब कुहराम मचाया  क्योंकि  बरसाने वृषभानु कन्या की जन्मस्थली है। राधारानी  कृष्ण की आनंद सिंधु हैं। कृष्ण के हृदय में राधा से मिलन के बाद ही आनंद सिंधु  हिलोरें लेता हैं।

ब्रज रास पाने के लिए ब्रजभावित होना पड़ता है। ब्रजरस ज्ञानियों और कर्मकांडियों को नहीं मिला है। उनमें अहंता है। इनके बारे में ब्रजवासी कहते हैं :

ग्यानी योगी विषयी बावरे ,ग्यानी पूत निकठ्ठू ,



कर्मकांडी ऐसे डोलें ,ज्यों भाड़े के टट्टू  .

ब्रजरस की प्राप्ति के लिए ब्रजभाव की आवश्यकता है। ब्रजभाव से भावित प्राणियों को ही ब्रजरस मिला है। दिव्य देह से दिव्य लीला हुई है।अपने एक पद में महाकवि सूरदास जी   कहतें है :

धनी  ब्रजधाम ,धन्य ब्रज धरणी ,उड़ि लागै जो धूल ,

रास विलास करते नंदनंदन ,सो हमसे अति दूर। 

शनिवार, 29 अगस्त 2015

जय सोनी मोनी मूढ़मते , जो केजरवाल के संग रचे , अब तो हरिहर ही लाज रखे




इनके मुंह से कभी भारत माँ की जय नहीं सूना। क्या 

आपने सुना है ?



जय सोनी मोनी मूढ़मते ,

जो केजरवाल के संग रचे ,


अब तो हरिहर ही लाज रखे।

कल पढ़ियेगा  ये पूरी रचना। अभी रचनाधीन है। 


शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

एक और करिश्मा देखिये व्यापम या कोई और आरोप मढ़ने के लिए ये जमालो अपने तोतों को आगे कर देती है

जाति के आधार पर देश की समरसता को तोड़ने का कुचक्र

दो सूत्रधार हैं इस षड्यंत्र के एक श्री अराजक केजरीवाल तथा दूसरा दिल्ली में उनसे पिटने के बाद भी उनसे कंधा मिलाने वाला एक दुर्मति बालक और उसकी कुमति माँ जमालो। .एक कोई अहमद -या पटेल भी हैं जिन्हें मुस्लिम पटेल भी आप कह सकते हैं इन्हें मोहरा बनाके एक अनाम सी शख्शियत आनंद पटेल को गुजरात को जलाने के लिए इन दुर्मुखों ने आगे कर दिया है।

एक और करिश्मा देखिये व्यापम या कोई और आरोप मढ़ने के लिए ये जमालो अपने तोतों को आगे कर देती है इन गुलामों को प्रवक्ता कहा जाता है और आग लगवाने के बाद अपने मंद बुद्धि बालक को संग लेके ये पूतना शान्ति की अपील करने गुजरात की ओर निकल पड़ती है। इसे ही कहते हैं हथनी के दांत खाने के और दिखाने के और।

वजह आप जानते हैं घोटालों की चर्चा क्यों नहीं करते ये बकरी मैमना -करेंगे तो मुंह की खाएंगे। जमीन हड़पु जवाईं राजा फोकस में आ जाएंगे बूमरैंग करेगा ये वार। बड़े शातिर हैं दोनों।

तब ये लोग कहाँ थे जब गोधरा जल रहा था अयोध्या से लौटे तीर्थयात्रियों को चंद लोगों ने रेल के डिब्बे समेत आग के हवाले कर दिया था। बाहर से मिट्टी का तेल छिड़कके। तब इन्होने ने गुजरात को मज़हब के नाम पर जलाया था अब ये उसे जाति  के नाम पर जलाने के लिए निकल आएं हैं अपने बिलों से। तब ये जमालो कहाँ थी ?

और वो अराजकमल केजरीवाल जिसे प्रधानमन्त्री मोदी ने हाल ही में दिल्ली में बाकायदा मिलने का समय दिया है गैर -संविधानिक भाषा बिहार के सारनाथ में जाके  मोदी जी के बारे में बोलता है -'दिल्ली को तो हम चमका दें यदि हमें मोदी का सहयोग मिले तो '-यानी ये व्यक्ति जो मुख्यम्नत्री है प्रकारांतर से ये कह रहा है कि दिल्ली में जो कुछ हो रहा है वह मोदी जी कर करा रहे हैं। धूर्तता की ऊपरी सीमा का नाम ही अराजक केजरीवाल है जो व्यक्ति एक गैर सरकारी संगठन में घोटाला करने की वजह से नौकरी से बे -दखल किया गया वह आज देश को जलाने निकला है गनीमत है जब गोधरा -वन हुआ तब ये राजनीति में नहीं था वरना अब तक देश का क्या होता। देश बचता भी या नहीं ?

राजनीति के इन विषधरों का मुंह कुचलने की सख्त ज़रूरत है इनकी साफ़ साफ़ निशानदेही कर ली जाए। ये वही लोग हैं जिन्होनें पहले तो जातिगत जनगणना करने की मांग रखी और उसके नतीजे आते ही देश को जलाने निकल पड़े आरक्षण की बैशाखी लगाके।

बोध गया में तर्पण करता हूँ मैं इन तमाम धूर्तों का। 

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

जाति के आधार पर देश की समरसता को तोड़ने का कुचक्र

जाति के आधार पर देश की समरसता को तोड़ने का कुचक्र

दो सूत्रधार हैं इस षड्यंत्र के एक श्री अराजक केजरीवाल तथा दूसरा दिल्ली में उनसे पिटने के बाद भी उनसे कंधा मिलाने वाला एक दुर्मति बालक और उसकी माँ जमालो। .एक कोई अहमद -या पटेल भी हैं जिन्हें मुस्लिम पटेल भी आप कह सकते हैं इन्हें मोहरा बनाके एक अनाम सी शख्शियत आनंद पटेल को गुजरात को जलाने के लिए इन दुर्मुखों ने आगे कर दिया है।

तब ये लोग कहाँ थे जब गोधरा जल रहा था अयोध्या से लौटे तीर्थयात्रियों को चंद लोगों ने रेल के डिब्बे समेत आग के हवाले कर दिया था। बाहर से मिट्टी का तेल छिड़कके। तब इन्होने ने गुजरात को मज़हब के नाम पर जलाया था अब ये उसे जाति  के नाम पर जलाने के लिए निकल आएं हैं अपने बिलों से। तब ये जमालो कहाँ थी ?

और वो अराजकमल केजरीवाल जिसे प्रधानमन्त्री मोदी ने हाल ही में दिल्ली में बाकायदा मिलने का समय दिया है गैर -संविधानिक भाषा बिहार के सारनाथ में जाके  मोदी जी के बारे में बोलता है -'दिल्ली को तो हम चमका दें यदि हमें मोदी का सहयोग मिले तो '-यानी ये व्यक्ति जो मुख्यम्नत्री है प्रकारांतर से ये कह रहा है कि दिल्ली में जो कुछ हो रहा है वह मोदी जी कर करा रहे हैं। धूर्तता की ऊपरी सीमा का नाम ही अराजक केजरीवाल है जो व्यक्ति एक गैर सरकारी संगठन में घोटाला करने की वजह से नौकरी से बे -दखल किया गया वह आज देश को जलाने निकला है गनीमत है जब गोधरा -वन हुआ तब ये राजनीति में नहीं था वरना अब तक देश का क्या होता। देश बचता भी या नहीं ?

राजनीति के इन विषधरों का मुंह कुचलने की सख्त ज़रूरत है इनकी साफ़ साफ़ निशानदेही कर ली जाए। ये वही लोग हैं जिन्होनें पहले तो जातिगत जनगणना करने की मांग रखी और उसके नतीजे आते ही देश को जलाने निकल पड़े आरक्षण की बैशाखी लगाके।

बोध गया में तर्पण करता हूँ मैं इन तमाम धूर्तों का। 

कर्म प्रधान विश्व रचि राखा , जो जस करइ सो तस फल चाखा

अंग्रेजी भाषा का एक शब्द है :एग् -नास्ट -इक (Agnostic) मोटे अर्थों में ईश्वर की सत्ता में संशय रखने वाला व्यक्ति संशयवादी या फिर अज्ञेयवादी कहा जाता है।व्यापक अर्थों में ये एक ऐसा शख्श होता है जो यह मानता है ईश्वर के अस्तित्व के विषय में -या फिर ईश्वर के विषय में ही कि वह है भी या नहीं है इस बारे में किसी को कुछ भी न तो मालूम है और न ही निश्चित तौर पर मालूम ही किया जा सकता है।इस शख्शियत के अनुसार पदार्थ के अलावा अपदार्थ का किसी भी नान -मैटीरीयल  फनामिना का जान लेना मुमकिन नहीं है।प्रकृति या समाज में कोई ऐसी घटना या सच्चाई जो पूरी तरह समझ में न आये फिनॉमिना कही जाती है।

अंग्रेजी ज़बान में ऐसे समझ लीजिये :

Agnostic is a person who believes that nothing is known or can be known   of the existence or nature of God or of anything beyond material phenomena .An agnostic is a person who is  uncertain or noncommittal about a certain thing .

Somebody who believes that it is impossible to know whether or not God exists can be called an agnostic .An agnostic person doubts that a question has has one correct answer or that something can be completely understood .

बहरसूरत हमारा मकसद इस शब्द की मार्फ़त कुछ व्यक्तियों की शिनाख्त करना है। आप भी इस निशानदेही में शामिल हो सकते हैं। आपको कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो अपने भाग्य का रोना रोते रहते हैं। एक ही सवाल आप से बार बार पूछेंगे और संतुष्ट नहीं होंगें अपनी खुद की बनाई धारणा पर ही कायम रहेंगे। मेरे एक बाल सखा है अक्सर पूछते हैं -मैं ब्रह्मपूरी में दुर्गाप्रसाद शर्मा के घर ही क्यों पैदा हुआ अजय और सरोज ,भूषन आदिक ही मेरे भाई क्यों हुए ,जिस कोख से मैं पैदा हुआ उसी से मेरी माँ ने इनको भी जन्म क्यों दिया मैं स्वर्ग में जाकर अम्मा से ये सवाल पूछुंगा।

साथ ही ये व्यक्ति यह भी कहते हैं की इन पर शनि की ग्रह चल रही है शनि बहुत टेढ़ा हुआ पड़ा है। यानी इन्हें शनि पे भरोसा है ईश्वर के अस्तित्व पर नहीं हैं।

 कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ,

जो जस करइ सो तस फल चाखा।

You can write your destiny by your actions .

कई मर्तबा उन्होंने ऊपरलिखित  सवाल पूछा कई मर्तबा हमने यही कहा -

हमारा आज हमारे कल का ही संशोधित रूप है और हमारा आने वाला कल हमारे आज का ही संशोधित संस्करण होगा। हमारे ही अनंत कोटि जन्मों के कर्मों का परिणाम है हमारा वर्तमान ।

कर्म भी तीन प्रकार के हैं :प्रारब्ध कर्म ,क्रियमाण या फिर आगामी कर्म और संचित कर्म।

वह जो महालेखाकार हमारे हृदय में जन्म जन्मान्तरों से बैठा है और हरेक जन्म में हमारे साथ अनंतकाल से रहा आया है। वह सब हिसाब रखे है। उसके यहां रिश्वत नहीं चलती। निर्मम तटस्थ फलदाता है वह। कर्म ही हमारे हाथ में है। फलदाता वही है। हमारे जन्मजमान्तरों के अनंत कोटि जन्मों के  कर्मों का कुलजमा जोड़ संचित कर्म कहलाता है। हमें इस संचित कर्म का एक हिस्सा देकर परमात्मा हमारी माँ के गर्भ में जहां माँ -बाप का दिया हमारा केवल शरीर पनप   रहा होता है भेजता है। यही कर्म प्रारब्ध कर्म हैं जिनका परिणाम तो हमें भुगतना ही भुगतना पड़ेगा। इसे ही लोग प्रारब्ध कह देते हैं भाग्य का लेखा कह देते हैं।

कर्मगति टारे न टरि  ,मुनि वशिष्ठ से पंडित ग्यानी ,

सोध  के लगन  धरि ,सीता हरण मरण दसरथ को ,

बन में बिपति परि ,सीता को हर ले गया रावण ,

सोने की लंका जरि ,कहे कबीर सुनो भाई साधौ ,

होनी होकै  रही।

तो ज़नाब प्रारब्ध के बारे में ही यह कहा  गया है होनी बड़ी बलवान ,होनी को कौन टाल सका है।

तुलसी भरोसे राम के रह्यो खाट पे सोय,

अनहोनी होनी नहीं होनी होय सो होय।



और यह भी जाको राखे साइयां मार सके न कोय।

तो कह दो भैया झूठ है ये सब।

कई लोग हैं जो सबूत मांगते हैं हर चीज़ के होने का। उनके अनुसार जिस चीज़ को प्रेक्षण में नहीं लिया जा सकता ,प्रयोगशाला में नहीं लाया परखा जा सकता इनके अनुसार उस चीज़ का कोई अस्तित्व  ही नहीं है।

एक मनोविज्ञानी है हिन्दुस्तान के पहले सौ मनोविज्ञानियों में ये शुमार हैं मेरे पूज्य मुंह बोले गुरु समान मित्र हैं आत्मा के नाम से छिटकते हैं कहतें हैं यार मैं एक्स्पेरीमेंटल साइकोलॉजिस्ट हूँ मुझे इस चक्कर में मत फँसाओ। और किन्हीं मुक्त क्षणों में इन्हीं पूज्य श्री ने मुझे एक रोज़ बतलाया था वीरू मनोविज्ञान की  पहली परिभाषा आत्मन विषयक ही थी -

Psychology is the science of Souls .Now he says if  there is a Soul bring it to the laboratory .

प्रसंगवश बतलाते चलें -मेरे ये प्रश्नकर्ता मित्र रसायनशास्त्र में एमएससी ,एमफिल हैं। मैं स्वयं एमएससी फिजिक्स हूँ। कागज़ पर कलम घिस्सी किसी भी जनप्रिय विज्ञान लेखक से कम नहीं की है मैं ने भी।ब्रह्माण्डमंडल मेरा प्रिय विषय रहा है।

क्वांटम भौतिकी के अनुसार पदार्थ का अंतिम  सत्य यह है :पदार्थ का अस्तित्व ही नहीं है।

Matter  is just an appearance at the quantum level .

Minimum quantity of anything is called a quantum .E.g .the quantum of US currency is a pence .

सबसे बड़ा प्रमाण है शब्द प्रमाण। कृत (किसी मनुष्य द्वारा लिखित ,रचित ग्रन्थ ),स्मृत (श्रोत्रीय ब्रह्मविद् संतों द्वारा स्मृति संजोकर लिखे गए ग्रन्थ )और न्याय (वेद यानी शब्द प्रमाण ,स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा सबसे पहले ब्रह्मा के हृदय में रोपित अनन्तर एक श्रुति परम्परा के तहत आगे आये वेद इसीलिए वेदों को श्रुति तथा इनके मर्मज्ञ को श्रोत्रिय कहा जाता है ),भगवदगीता स्मृति ग्रन्थ भी है वेद भी है क्योंकि श्रीकृष्ण के मुख से कुरुक्षेत्र में कही गई सार रूप सब उपनिषदों की माँ है।

वेदों में कुल एक लाख मन्त्र हैं जिनमें अस्सी हज़ार कर्मकांड संबंधी सोलह हज़ार उपासना संबंधी तथा कुल चार हज़ार वेदों की ज्ञान काण्ड के तहत आये हैं। यही ज्ञानकाण्ड वेदों का ,वेदान्त या उपनिषद भी कहा  गया है।

विज्ञान की सीमा है क्योंकि उसके सारे प्रॉब्स (अन्वेषी )भौतिक है पदार्थ के बने हैं। पदार्थ के बने यंत्रों प्राविधियों से ,रेडिओ दूरबीनों से आप दिव्य का अन्वेषण अनुसंधान नहीं कर सकते। आप तो एक इलेक्ट्रोन को भो लॉकेट नहीं कर सकते। विक्षोभ पैदा हो जाएगा उसकी अवस्थिति में आवेग में ,होने के समयांतराल में।

आत्मा और परमात्मा दोनों की सत्ता दिव्य है दोनों चेतन हैं भौतिक उपकरण जड़ हैं। जड़ से आप चेतन की टोह भी कैसे ले सकते हैं जानना तो बहुत बड़ी बात है।

यही हाल पदार्थ के अंतिम बुनियादी कणों (Fundamental particles )का है।

The so called fundamental particles are neither fundamental nor are they particles .They are like a newly assembled car which crashes at the factory gate during a trial .

you can only draw inference that there might be a particle which left its trail in a particle counter or detector .At times its life time is much less than a  millinoth of a millionth of a millionth of millionth of a millionth of a second .  Can you call it a particle .They say it is a wave of probability and yet you are so puffed up and with a fund of poor knowledge you often say if their is a God bring him into the laboratory .You don't say so about a particle ,the God paarticle boson ,you derive only inferences there too .


मन के मंदिर में प्रभु को बिठाना ,

बात हर किस के बसकी नहीं है।  

ऐसा व्यक्ति संशयवादी क्या यकीन करेगा कि -जैसे हमारी आत्मा का एक शरीर है जिस नवद्वारपुर में आत्मन रहता है। कह सकते हो हमारी आत्मा का शरीर एक शहर है जिसका नाम नवद्वारपुर है क्योंकि इसके नौ दरवाज़े हैं। वैसे ही ये आत्मन (मेरी आत्मा )उस परमात्मा का शरीर है जिस में परमात्मा निवास करता है इसीलिए उसे वासुदेव कहा गया है। यानी मेरी आपकी हम सबकी आत्मा उस सर्वेश्वर परमात्मा का शरीर है।

गीता में कहा गया है -सब आत्माओं का आत्मा मैं (परमात्मा योगेश्वर श्रीकृष्ण )हूँ।

इति !ओम तत् सत   

बुधवार, 26 अगस्त 2015

हमारी आत्मा का एक शरीर है जिस नवद्वारपुर में आत्मन रहता है

अंग्रेजी भाषा का एक शब्द है :एग् -नास्ट -इक (Agnostic) मोटे अर्थों में ईश्वर की सत्ता में संशय रखने वाला व्यक्ति संशयवादी या फिर अज्ञेयवादी कहा जाता है।व्यापक अर्थों में ये एक ऐसा शख्श होता है जो यह मानता है ईश्वर के अस्तित्व के विषय में -या फिर ईश्वर के विषय में ही कि वह है भी या नहीं है इस बारे में किसी को कुछ भी न तो मालूम है और न ही निश्चित तौर पर मालूम ही किया जा सकता है।इस शख्शियत के अनुसार पदार्थ के अलावा अपदार्थ का किसी भी नान -मैटीरीयल  फनामिना का जान लेना मुमकिन नहीं है।प्रकृति या समाज में कोई ऐसी घटना या सच्चाई जो पूरी तरह समझ में न आये फिनॉमिना कही जाती है।

अंग्रेजी ज़बान में ऐसे समझ लीजिये :

Agnostic is a person who believes that nothing is known or can be known   of the existence or nature of God or of anything beyond material phenomena .An agnostic is a person who is  uncertain or noncommittal about a certain thing .

Somebody who believes that it is impossible to know whether or not God exists can be called an agnostic .An agnostic person doubts that a question has has one correct answer or that something can be completely understood .

बहरसूरत हमारा मकसद इस शब्द की मार्फ़त कुछ व्यक्तियों की शिनाख्त करना है। आप भी इस निशानदेही में शामिल हो सकते हैं। आपको कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो अपने भाग्य का रोना रोते रहते हैं। एक ही सवाल आप से बार बार पूछेंगे और संतुष्ट नहीं होंगें अपनी खुद की बनाई धारणा पर ही कायम रहेंगे। मेरे एक बाल सखा है अक्सर पूछते हैं -मैं ब्रह्मपूरी में दुर्गाप्रसाद शर्मा के घर ही क्यों पैदा हुआ अजय और सरोज ,भूषन आदिक ही मेरे भाई क्यों हुए ,जिस कोख से मैं पैदा हुआ उसी से मेरी माँ ने इनको भी जन्म क्यों दिया मैं स्वर्ग में जाकर अम्मा से ये सवाल पूछुंगा।

साथ ही ये व्यक्ति यह भी कहते हैं की इन पर शनि की ग्रह चल रही है शनि बहुत टेढ़ा हुआ पड़ा है। यानी इन्हें शनि पे भरोसा है ईश्वर के अस्तित्व पर नहीं हैं।

 कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ,

जो जस करइ सो तस फल चाखा।

You can write your destiny by your actions .

कई मर्तबा उन्होंने ऊपरलिखित  सवाल पूछा कई मर्तबा हमने यही कहा -

हमारा आज हमारे कल का ही संशोधित रूप है और हमारा आने वाला कल हमारे आज का ही संशोधित संस्करण होगा। हमारे ही अनंत कोटि जन्मों के कर्मों का परिणाम है हमारा वर्तमान ।

कर्म भी तीन प्रकार के हैं :प्रारब्ध कर्म ,क्रियमाण या फिर आगामी कर्म और संचित कर्म।

वह जो महालेखाकार हमारे हृदय में जन्म जन्मान्तरों से बैठा है और हरेक जन्म में हमारे साथ अनंतकाल से रहा आया है। वह सब हिसाब रखे है। उसके यहां रिश्वत नहीं चलती। निर्मम तटस्थ फलदाता है वह। कर्म ही हमारे हाथ में है। फलदाता वही है। हमारे जन्मजमान्तरों के अनंत कोटि जन्मों के  कर्मों का कुलजमा जोड़ संचित कर्म कहलाता है। हमें इस संचित कर्म का एक हिस्सा देकर परमात्मा हमारी माँ के गर्भ में जहां माँ -बाप का दिया हमारा केवल शरीर पनप   रहा होता है भेजता है। यही कर्म प्रारब्ध कर्म हैं जिनका परिणाम तो हमें भुगतना ही भुगतना पड़ेगा। इसे ही लोग प्रारब्ध कह देते हैं भाग्य का लेखा कह देते हैं।

कर्मगति टारे न टरि  ,मुनि वशिष्ठ से पंडित ग्यानी ,

सोध  के लगन  धरि ,सीता हरण मरण दसरथ को ,

बन में बिपति परि ,सीता को हर ले गया रावण ,

सोने की लंका जरि ,कहे कबीर सुनो भाई साधौ ,

होनी होकै  रही।

तो ज़नाब प्रारब्ध के बारे में ही यह कहा  गया है होनी बड़ी बलवान ,होनी को कौन टाल सका है।

तुलसी भरोसे राम के रह्यो खाट पे सोय,

अनहोनी होनी नहीं होनी होय सो होय।



और यह भी जाको राखे साइयां मार सके न कोय।

तो कह दो भैया झूठ है ये सब।

कई लोग हैं जो सबूत मांगते हैं हर चीज़ के होने का। उनके अनुसार जिस चीज़ को प्रेक्षण में नहीं लिया जा सकता ,प्रयोगशाला में नहीं लाया परखा जा सकता इनके अनुसार उस चीज़ का कोई अस्तित्व  ही नहीं है।

एक मनोविज्ञानी है हिन्दुस्तान के पहले सौ मनोविज्ञानियों में ये शुमार हैं मेरे पूज्य मुंह बोले गुरु समान मित्र हैं आत्मा के नाम से छिटकते हैं कहतें हैं यार मैं एक्स्पेरीमेंटल साइकोलॉजिस्ट हूँ मुझे इस चक्कर में मत फँसाओ। और किन्हीं मुक्त क्षणों में इन्हीं पूज्य श्री ने मुझे एक रोज़ बतलाया था वीरू मनोविज्ञान की  पहली परिभाषा आत्मन विषयक ही थी -

Psychology is the science of Souls .Now he says if  there is a Soul bring it to the laboratory .

प्रसंगवश बतलाते चलें -मेरे ये प्रश्नकर्ता मित्र रसायनशास्त्र में एमएससी ,एमफिल हैं। मैं स्वयं एमएससी फिजिक्स हूँ। कागज़ पर कलम घिस्सी किसी भी जनप्रिय विज्ञान लेखक से कम नहीं की है मैं ने भी।ब्रह्माण्डमंडल मेरा प्रिय विषय रहा है।

क्वांटम भौतिकी के अनुसार पदार्थ का अंतिम  सत्य यह है :पदार्थ का अस्तित्व ही नहीं है।

Matter  is just an appearance at the quantum level .

Minimum quantity of anything is called a quantum .E.g .the quantum of US currency is a pence .

सबसे बड़ा प्रमाण है शब्द प्रमाण। कृत (किसी मनुष्य द्वारा लिखित ,रचित ग्रन्थ ),स्मृत (श्रोत्रीय ब्रह्मविद् संतों द्वारा स्मृति संजोकर लिखे गए ग्रन्थ )और न्याय (वेद यानी शब्द प्रमाण ,स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा सबसे पहले ब्रह्मा के हृदय में रोपित अनन्तर एक श्रुति परम्परा के तहत आगे आये वेद इसीलिए वेदों को श्रुति तथा इनके मर्मज्ञ को श्रोत्रिय कहा जाता है ),भगवदगीता स्मृति ग्रन्थ भी है वेद भी है क्योंकि श्रीकृष्ण के मुख से कुरुक्षेत्र में कही गई सार रूप सब उपनिषदों की माँ है।

वेदों में कुल एक लाख मन्त्र हैं जिनमें अस्सी हज़ार कर्मकांड संबंधी सोलह हज़ार उपासना संबंधी तथा कुल चार हज़ार वेदों की ज्ञान काण्ड के तहत आये हैं। यही ज्ञानकाण्ड वेदों का ,वेदान्त या उपनिषद भी कहा  गया है।

विज्ञान की सीमा है क्योंकि उसके सारे प्रॉब्स (अन्वेषी )भौतिक है पदार्थ के बने हैं। पदार्थ के बने यंत्रों प्राविधियों से ,रेडिओ दूरबीनों से आप दिव्य का अन्वेषण अनुसंधान नहीं कर सकते। आप तो एक इलेक्ट्रोन को भो लॉकेट नहीं कर सकते। विक्षोभ पैदा हो जाएगा उसकी अवस्थिति में आवेग में ,होने के समयांतराल में।

आत्मा और परमात्मा दोनों की सत्ता दिव्य है दोनों चेतन हैं भौतिक उपकरण जड़ हैं। जड़ से आप चेतन की टोह भी कैसे ले सकते हैं जानना तो बहुत बड़ी बात है।

यही हाल पदार्थ के अंतिम बुनियादी कणों (Fundamental particles )का है।

The so called fundamental particles are neither fundamental nor are they particles .They are like a newly assembled car which crashes at the factory gate during a trial .

you can only draw inference that there might be a particle which left its trail in a particle counter or detector .At times its life time is much less than a  millinoth of a millionth of a millionth of millionth of a millionth of a second .  Can you call it a particle .They say it is a wave of probability and yet you are so puffed up and with a fund of poor knowledge you often say if their is a God bring him into the laboratory .You don't say so about a particle ,the God paarticle boson ,you derive only inferences there too .


मन के मंदिर में प्रभु को बिठाना ,

बात हर किस के बसकी नहीं है।  

ऐसा व्यक्ति संशयवादी क्या यकीन करेगा कि -जैसे हमारी आत्मा का एक शरीर है जिस नवद्वारपुर में आत्मन रहता है। कह सकते हो हमारी आत्मा का शरीर एक शहर है जिसका नाम नवद्वारपुर है क्योंकि इसके नौ दरवाज़े हैं। वैसे ही ये आत्मन (मेरी आत्मा )उस परमात्मा का शरीर है जिस में परमात्मा निवास करता है इसीलिए उसे वासुदेव कहा गया है। यानी मेरी आपकी हम सबकी आत्मा उस सर्वेश्वर परमात्मा का शरीर है।

गीता में कहा गया है -सब आत्माओं का आत्मा मैं (परमात्मा योगेश्वर श्रीकृष्ण )हूँ।

इति !ओम तत् सत