शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

मेंथ्रो -पोलाजी और आधुनिक मानव (होमिओसेपियन ).

मानव विज्ञान (न्रि-विज्ञान यानी अन्थ्रा-पालाजी ) से हम और आप कला संकाय (आर्ट्स फेकल्टी )के एक विषय के रूप में परिचित हैं .लेकिन इधर चर्चा "मेंथ्रा-पोलोजी "की चल पड़ी है -यह सिलसिला तब से जारी है जबसे क्रोमोजोम्स -वाई (गुणसूत्र -वाई )के छीजते चले जाने के बारे में आनुवंशिक - विदों ने इत्तला दी है ।
गत सप्ताह डेनमार्क में संपन्न एक अध्धय्यन में बतलाया गया है -ह्यूमेन स्पर्म काउंट (एक बार के संख्लन यानी इजेक्युलेषण से निसृत (प्राप्त )स्पर्मेताज़ोआन की तादाद ,शुक्राणुओं की संख्या )भी तेज़ी से घट रही है ।
एक औत्रेलियन मानव -शास्त्री (एन्थ्रोपोलोजिस्त )पीटर म्काल्लिस्टर ने तो बाकायदा एक किताब ही लिख दी है -"मेंथ्रोपोलोजी "जिसमे आधुनिक मानव के एक कमज़ोर ,आत्म विश्वाश हीन इंसान "विम्प "बनते चले जाने का किस्सा है ।
"मेंथ्रोपोलोजी कैन बी दिफा -इंद एज दी साइंस आफ इन -एडिक्युएत माड्रन मेल .-पीटर म्काल्लिस्टर "
बकौल पीटर प्रागैतिहासिक इंसान (मेल )ने आधुनिक ओलम्पिक खेलों के तमाम रिकार्डों को बौना साबित कर दिया होता ।
आज के योरपीय मर्द से निएन्दर्थाल औरत कहीं ज्यादा स्थूल काय (१० फीसद ज्यादा मसल पावर लिए थी )थी वह मर्दों के साथ शिकार पर निकलती थी ।
सौ साल पहले मर्द ने भी आज के हाई -जम्पर्स (रूसी आंद्रे सिल्नोव ,तुत्सी में इन रवांडा का २.४५ मीटर्स हाई -जम्प का विश्व -कीर्तिमान तोड़ दिया होता ।
जो हो किस्सा एक्स -वाई शख्शियत (आधुनिक मर्द )के कमज़ोर पड़ने का बयान किया गया है ।
जो हो आदमी की हर तकलीफ के लिए कुसूरवार औरत नहीं रही है -मर्द का ही व्यवहार मुर्खता - पूर्ण सनक भरा रहा होगा ।
शुक्राणुओं का तादाद घटने की और भी वजह रहीं होंगीं ।
मसलन टाइट पेंट्स (क्षमा करें जींस ),हाट तुब्स ,मोबाइल फोन्स ,लेप -टोप्स ,मोटापा ,विनाशक -जीव -नाशी यानी पेस्तिसैड्स भी इसकी वजह रहे होंगे ।
धूम्र -पान को कैसे छोड़ सकतें हैं जो पीनाइल -आर्त्रीज़ में ब्लड आपूर्ति को असर ग्रस्त करसकता है ,इरेक्टाइल -डिसफंक्शन की भी वजह बन सकता है -धूम्र -पान ।
फास्ट फूड्स की अपनी यशो गाथा है -इनमे मौजूद सोय फिमेल हारमोन इस्ट्रोजन को मिमिक करता है ।
जीवन शैली से जुड़ी और भी खुराफातें (यथा एल्काहलिज्म ,तम्बाखू का बहुविध सेवन आदि ) इसके लियें उत्तरदाई होंगी ।
रही सही कसर मर्द को खिजाने की विज्ञानियों ने पूरी करदी है ।
ब्रितानी स्टेम सेल रिसर्च के माहिरों ने जुलाई २००९ में स्टेम सेल लेब में "ह्यूमेन स्पर्म "तैयार कर लेने की सगर्व घोषणा की थी ।
कुछ फेमिनिस्ट खुश फ़हमी पाल सकतीं हैं इस इत्तला से .क्लोनिग की ख़बर आने पर भी कहा गया था -सिर्फ़ दो औरतें भी अब प्रजनन (संतान उत्पत्ति )कर सकतीं हैं ।
मर्द अपेंडिक्स की तरह वेस्तिजिअल ओर्गेंन हो गया है ।
पडा रहेगा एक कोने में "सेक्स तोय ",एक मर्दानी -बिम्बों (यानी हिम्बो )की तरह ,एक खूबसूरत लेकिन बेवकूफ पुरूष रंडी (व्होर )की तरह ।
प्रजनन के अलावा दिल बहलाव ,एफ्रो -दीजियाक ,यौन उद्दीपक का काम करेगा मर्द ।
हमारा मानना है -दिल के बहलाने को गालिब ख़याल अच्छा है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २२ ,२००९ ,पृष्ठ १६ ,कालम "एर्रतिका "-हेल्लेलुजः ,इट्स स्त्रेनिंग में -बची करकरिया ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

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