शनिवार, 31 दिसंबर 2011

एक संकल्प सेहत के नाम :बदलेंगे ये बे -मुरव्वत जीवन शैली .

एक संकल्प सेहत के नाम :बदलेंगे ये बे -मुरव्वत जीवन शैली .
(नव वर्ष के लिए विशेष )
Healthy resolutions tend to create a virtuous circle of good habits ,says a study/Good things in life go together/TIMES VIEW/THE TIMES OF TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC31,2011.
लहरों की भी अपनी जाति होतीं है .समान धर्मा लहरें जीवन में अनुनाद पैदा करतीं हैं .सृष्टि के साथ आप कभी भी जुड़ सकतें हैं ,संवाद कर सकतें हैं .वह सदैव ही तत्पर है .सवाल आपके संकल्प का है .एक अच्छा संकल्प एक अच्छी लहर जीवन में सब कुछ बदल देने की क्षमता रखती है .जीवन शैली को एक सकारात्मक मोड़ देके देखिये .
लीजिए इस नए साल में एक संकल्प हम सकारात्मक जीवन शैली ,खान पान आजमायेंगें.यकीन मानिए एक अच्छी चीज़ में से और भी अच्छी चीज़ें पैदा होतीं हैं .
ब्रिटेन के राष्ट्रीय सामाजिक शोध केंद्र ने पता लगाया है जो लोग अपनी जीवन शैली में एक सेहत के अनुरूप ,स्वास्थ्य वर्धक ,सकारात्मक बदलाव की पहल का संकल्प लेतें हैं उन्हें एक बाद एक फायदे होते चले जातें हैं .यह एक डोमिनो प्रभाव की सृष्टि करता है .
स्वस्थ आदतें स्वस्थ आदतों की जननी बन जाती हैं .एक अच्छी आदत दूसरीअच्छी आदत को न्योंता देती है उसका पोषण करती चलती है .जैसे एक बुरी आदत दूसरी बुरी आदत की ओर ले जाती है .
जैसे एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र (पारी तंत्र ,एको सिस्टम ) अलग अलग इकाइयां सहजीवन और सह -संवर्धन प्राप्त करती हैं परस्पर आश्रित रहते विकसती हैं .कायम रहतीं हैं वैसे ही एक अच्छा संकल्प अन्यों का संवर्धन करता है .
एक बहुत पुरानी कहावत है -जो इस मंतव्य को सुस्पष्ट करती है -"Early to bed and early to rise makes a man healthy ,wealthy and wise "
उठ जाग मुसाफिर भोर भई ,अब रैन कहाँ जो सोवत है ,
जो सोवत है सो खोवत है ,जो जागत है सो पावत है .
जो हमने बरसों के अनुभव से जाना है बुजुर्गों से सीखा है वही सब दोहराती है यह रिसर्च -अच्छी तरंगों के साथ अच्छी और बुरी के साथ बुरी तरंगें जातीं हैं .गुण और अवगुणों का परस्पर पल्लवन सह जीवन और सह संवर्धन नहीं हो सकता ,अनुनाद तो कभी पैदा ही नहीं हो सकता भले जीवन में सुख दुःख का डेरा है .
लेकिन गुण और अवगुण अलग अलग दिशाओं और जीवन दशाओं से आतें हैं .जीवन के प्रति अलग नज़रियों से आतें हैं .
सकारात्मक सोच वाले सेहत सचेत लोग एक बड़े ध्येय की प्राप्ति के लिए धैर्य से काम लेतें हैं कीमत चुकाने को तैयार रहतें हैं .मेहनत करतें हैं प्रतीक्षा करतें हैं लेकिन जो बुरी आदतों को गले लगातें हैं उन्हें फौरी सुख बोध चाहिए चाहे आगे चलके उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़े .
अपना तौल कम करने के लिए आपको संयम बरतना होगा खान पान का ,एक ख़ास खुराक पे चलना होगा .फास्ट फ़ूड खाने में कोई मेहनत नहीं है सस्ता भी है जंक फ़ूड बनाने का झंझट भी नहीं है .
जो लोग सेहत मंद होने रहने की और चल पड़ते हैं वह फिर सैर को भी निकलने लगतें हैं .नशे पत्ते की चीज़ों के दुरोपयोग से भी छिटकने लगतें हैं .सिगरेट और शराब पर कम फल और तरकारी पर ज्यादा खर्च करेंगे खुद के प्रति संकल्पित संकल्प बद्ध लोग .
दूसरे इसकी परवाह नहीं करेंगे .केज्युअल रहेंगे .आसानी से ट्रांस फेट्स (फास्ट फ़ूड ,पैकेज्ड फ़ूड )की और चल देंगे .उनके सामने हेल्दी चोइस कोई मुद्दा ही नहीं हैं .एक बार आप स्वास्थ्य सचेत हो गए तो सब जगह रहेंगे शादी ब्याह समारोहों नए साल के जश्न में सब जगह .स्वास्थ्यकर फ़ूड का ही चयन करने की कोशिश करेंगे .चोइस तो सब जगह होती है लेकिन आप अपनी प्रकृति से अपनी ही तरंग से जुड़तें हैं रौ में रहतें हैं .
सिगरेट हो या शराब आप हिसाब नहीं रखेंगे पीने पिलाने का .बैठे ठाले टून्गेगे टी वी के सामने .
यही लब्बोलुआब इस बरस के आपके संकल्प का इस अध्ययन और शोध का . फैसला आप पर है आप इधर जाएं या उधर .या यथा स्थिति बनाए रहें भारत सरकार की तरह .
RAM RAM BHAI ! RAM RAM BHAI !
HAPPY YEAR 2012 EVERYBODY
काम को सलाम :सर रामाकृष्णन वेंकटरमण .
ARISE!SIR VENKI: INDIAN SCIENTIST GETS KNIGHTHOOD
काम की तस्दीक भारत में हो न हो विदेशों में ज़रूर होती है .काम को सलाम करतें हैं विदेशी .और इसीलिए इस बरस नए साल पर जिन लोगों को नाईट की उपाधि से सम्मानित किया गया है उनमे इंग्लेंड की महारानी क्वीन एलिज़ाबेथ ने भारतीय मूल के आणविक जैविकी के माहिर साइंसदान श्रीरामाकृष्णन वेंकटरमण को भी शामिल किया है .
आणविक जीवविज्ञान के क्षेत्र में विशेष कार्य के लिए आपको २००९ के रसायन शाश्त्र के लिए नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित किया जा आ चुका है .
आपको यह सम्मान बकिंघम पेलेस में दिया जाएगा आणविक जीव विज्ञान के क्षेत्र में आपकी विशेष सेवाओं के लिए .आइन्दा आपको सर रामाकृष्णन वेंकटरमण पुकारा जाएगा .
बधाई ब्लॉग जगत की ओर से "सर "जी !
चेन्नै।। नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. वेकटरमन रामाकृष्णन ने ऐसा बयान दिया है, जिस पर बवाल मच गया है। उन्होंने ज्योतिष शास्त्र और अल्केमी को फर्जी बताया है और कहा है कि ये सलाहों की शक्ति पर आधारित हैं। उन्होंने होम्योपथी को भी निशाने पर लिया और कहा कि यह लोगों के विश्वास पर आधारित है। उन्होनें कहा कि पॉजिटिव और नेगेटिव एनर्जी जैसे शब्द जो अधिकतर नीम-हकीम जैसे लोग बोलते हैं, असल में इन शब्दों का कोई मतलब नहीं होता है। उन्होंने कहा कि यह सब सिर्फ बकवास है। डॉ. रामाकृष्णन ने कहा कि विज्ञान में एनर्जी की एक विशिष्ट परिभाषा है।

चेन्नै में भारतीय विद्या भवन के बैनर तले आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान डॉ. रामाकृष्णन ने कहा कि जैसे सरकार का अच्छा सिस्टम लोगों को बुरी चीजों से बचाता है, ठीक वैसे ही विज्ञान हम लोगों को हमारे पूर्वाग्रहों और मूर्खताओं से बचाता है। वैज्ञानिक तरीके हमें झूठे अंधविश्वासों से बचाते हैं। उन्होंने अपनी बातों के समर्थन में कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी पेश किए।

डॉ. रामाकृष्णन ने कहा है कि भारत में लोगों के फैसलों को प्रभावित करने के लिए ज्योतिष शास्त्र का गलत उपयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि ज्योतिष शास्त्र लोगों को तर्क और चिंतन पर आधारित प्रभावी ऐक्शन लेने से रोकता है। उन्होंने कहा कि विज्ञान पर आधारित संस्कृति अंधविश्वास पर टिकी संस्कृति से हर मायने में बेहतर होती है।

गौरतलब है कि ज्योतिष शास्त्र को लेकर इससे पहले भी कई बार विवाद पैदा हो चुका है। इसके विरोधियों का कहना है कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और यह कोरी कल्पना है, जबकि इसके समर्थकों का कहना है कि सौरमंडल में स्थित ग्रह-नक्षत्रों का हमारे जीवन पर असर पड़ता है और ज्योतिष विद्या पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है।
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !

Q: How bad is it really to stick a cotton swab in my ear?
कुछ लोग गाहे बगाहे माचिस की तीली से ही कान कुरेद लेते हैं तो कुछ बालों की क्लिप से ही यह काम कर लेते हैं .कोटन स्वाब स्टिक तो बाकायदा लोग खरीदतें हैं .ईयर बड्स का ज़वाब नहीं ?लेकिन कितनी निरापद हैं यह ईयर बड्स ?और क्या अंदरूनी कान इनसे कुरेदना वाजिब है .आइए देखें क्या कहतें हैं माहिर -
बेशक सुखद लगता है कान कुरेदना और कुरदवाना.बचपन में माँ अपनी गोद में हमारा सर रखके बालों की क्लिप से ही यह नेक काम कर डालतीं थीं .कई मर्तबा तेज़ दर्द भी होता था लेकिन सुनता कौन था .डाट और पड़ती थी कान हिला दिया .
माहिरों के अनुसार कोटन स्वाब से बाहरी कान कुरेदना साफ़ करना तो ठीक लेकिन अन्दर के कान तक स्टिक डालना मुनासिब नहीं है .ऐसा करने से ईयर वेक्स (कान का कथित मैल ) और अन्दर खिसक जाता है .ईयर केनाल तक पहुँच कर ईयर ड्रम को भी क्षतिग्रस्त कर सकता है .इसे ही आम भाषा में कान का पर्दा फट जाना कहतें हैं .
दर हकीकत कान में थोड़ा सा मैल बने रहना ईयर केनाल की हिफाज़त करता है .
हाँ कान बंद हो गया है तब कान नाक गला विशेषज्ञ के पास पहुँचिये .वह बंद कान खोल भी सकता है हिफाज़त से और कान में डालने वाली दवा (ईयर ड्रोप्स ) भी घर में डालने के लिए दे सकता है .स्वीमिंग पूल (तरण ताल )में नहाते समय ईयर प्लग्स का स्तेमाल करें .कान में बहुत जल्दी संक्रमण लगता है गंदे स्वीमिंग पूल्स से .सावधान रहें ,कान बंद होने पर माहिर के पास पहुंचे .

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

अब दवा रोधी तपेदिक की भी खैर नहीं .

अब दवा रोधी तपेदिक की भी खैर नहीं .
Chemistry trick renews fight against tuberculosis /SCI-TECH/MUMBAI MIRROR /DEC 30,2011/P26
दवा रोधी तपेदिक एंटीबायटिक दवाओं को बे -असर करती माहिरों का मुंह चिढाती रही है .कई पीढ़ी के एंटीबायटिक इस संक्रमण ने बे -असर घोषित करवा दिए .अब डेनमार्क के रसायन शाश्त्र के एक माहिर ने एक नायाब तरीका ईजाद किया है दवा रोधी तपेदिक के खिलाफ जंग तेज़ करने का .
सल्फा और पेंसिलिन समूह की एंटीबायटिक दवाओं को धार दार बनाने के लिए आपने एक साइकोएक्टिव ड्रग में थोड़ा सा बदलाव करके इसे तपेदिक की काट के लिए तैयार किया है .
आपने इसका पेटेंट भी प्राप्त कर लिया है .बतलादें यह साइकोटिक दवा अब तक शिजोफ्रेनिया के प्रबंधन में आजमाई जाती रही है .दवा का नाम है :THIIORIDAZINE(थियोरिदाजीन ).यह दवा एंटीबायटिक दवाओं को उनकी धार लौटाएगी जिन्हें तपेदिक का जीवाणु अब तक धता बताता रहा है .
तपेदिक का जीवाणु एंटीबायटिक दवाओं से अपना पल्ला छुडाना सीख चुका है .इसकी इसी कारीगरी (क्षमता )को थियोरिदाजीन कुंद करेगी .
रोग की आखिरी अवस्था में पहुँच चुके तपेदिक के रोगियों को इस दवा के दिमाग पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों से बचाने की जुगत कर ली गई है .ताकि इस साइकोएक्टिव ड्रग का बुरा असर Mortally ill tuberculosis के मरीजों के दिमाग पर न पड़ सके .ऐसा करना ज़रूरी भी था .
University of Copenhagen के रसायनग्य Chemist Jorn Christensen इस शोध के अगुवा साइंसदान हैं .

बतला दें आपको तपेदिक पैदा करने वाले जीवाणु staphylococcus तथा enterococcus एक ऐसी युक्ति एक अंतरजात efflux -pump से लैस रहतें हैं जो तपेदिक रोधी एंटीबायटिक दवाओं को इससे पहले वह जीवाणु कोशिका को नुकसान पहुंचाएं खदेड़ बाहर कर देती है . ज़रुरत एक ऐसे पदार्थ की थी जो इस पम्प के ठीक इसी असर को बे -असर कर दे .ताकि एंटीबायटिक जीवाणु काया (कोशिका )में ठहर कर उसे नष्ट कर सके .लेकिन मरीज़ को कोई नुकसानी न पहुंचाए .
इस कसौटी पर THIORIDAZINE खरी उतरी है .यह दवा बरसों से चलन में है तथा इसके कोई गंभीर अवांछित प्रभाव नहीं होंगें . यह सुनिश्चित कर लिया गया है .
DEC 31,2011.
सेहत के नुश्खे :
HEALTH TIPS:
टमाटर का सेवन सिगरेट के धुंए से फेफेड़ों को होने वाले नुक्सान को निष्प्रभावी कर देता है .
Eating tomatoes counters the effects of cigarette smoke and heals your lungs.
बालों में अंडे की ज़र्दी लगाके आधा घंटा के लिए ऐसे ही छोड़ दें .बाद इसके बालों को कुनकुने पानी से धौ डाले .नर्म मुलायम बालों की चमक के लिए ही नहीं प्रदूषण और परा -बैंगनी विकिरण की मार से भी बचाव करता है यह उपाय .
Applying egg yolk to your hair for half an hour improves sheen and texture and protects it from pollution and UV rays.

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

फिरंगी संस्कृति का रोग सिफलिस अपने साथ लेकर लौटा था कूल्म्बस अमरीका से ?

क्रिस्टोफर कोलंबस ने १४९२ में अंध -महासागर के पार जाकर अमरीका की खोज की थी .लेकिन इस लम्बी समुद्री यात्रा को संपन्न कर जब वह योरोप लौटा तो अपने साथ यौन संसर्ग से उत्पन्न एक रोग सिफिलिस (गरमी ,उपदंश या आतशक )की सौगात लेकर लौटा .यही लब्बोलुआब है एक ताज़ा तरीन अध्ययन का है जिसमे कंकाल जैविकी के माहिर शरीक रहें हैं .
Columbus brought sex disease to Europe from US ,Says new study/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,MUMBAI ,DEC29,2011.
नवीनतर कंकालों के अन्वेषण से यह पुख्ता हुआ कि कूलम्बस और उसके अन्वेषी दल ने पुरानी दुनिया को नै दुनिया की सौगात ही नहीं दी सिफलिस भी तोहफे में दिया .
जीवाणु जन्य रोग है सिफलिस जो एक जीवाणु Treponema pallidum से पैदा होती है .बेशक आजकल इसका समाधान और पुख्ता इलाज़ एंटीबायटिक दवाएं प्रस्तुत कर देतीं हैं लेकिन इलाज़ न हो पाने पर ,या फिर रोग निदान ही न हो पाने पर रोग उग्र रूप लेकर दिल दिमाग से लेकर हमारी आँखों यहाँ तक की अश्थियों तक को भी असर ग्रस्त कर देता है .घातक सिद्ध हो सकता है यह रोग लापरवाही बरतने पर .
सिफलिस का पहला बड़ा हमला (प्रकोप )बड़े पैमाने पर संक्रमण प्रसार पुनर -जागरण काल की बेला १४९५ में हुआ था .
पहले इसने चार्लज़ अष्टम की फौज को संक्रमण से ग्रस्त किया .संक्रमित किया .यह फ्रांसीसी राजा के नेपल्ज़ पर हमले के बाद का काल (दौर )था .इसके बाद यह संक्रमण योरोप की और बढ़ चला .कंकाल जीव -विज्ञान के माहिर रिसर्चर जोर्ज अर्मेलागोस (Emory University ,Atlanta )के अनुसार आज यही कहना मानना है .
गौर तलब है आपने ही पहले इस कूल्म्बियंन सिद्धांत का विरोध किया था .
कुछ और माहिरों और आलोचकों का यह भी मत है सिफलिस योरोप को नै दुनिया (अमरीका )की कूल्म्बस द्वारा खोज से पहले भी सताता रहा आया है लेकिन तब इसे दूसरी छूत की गंभीर बीमारियों से अलग करके नहीं देखा जा सकता था .कुष्ठ एक ऐसा ही रोग बना हुआ था उन दिनों जिसमे त्वचा के कुछ अंग गल कर गिर जाते थे .सन १५०० तक योरोप की यही स्थिति थी .
आज कुष्ठ रोग का पुख्ता इलाज़ है इसे छूतहा भी नहीं माना जाता .
फिरंगी संस्कृति का रोग सिफलिस अपने साथ लेकर लौटा था कूल्म्बस अमरीका से ?
RAM RAM BHAI ! RAM RAM BHAI !
सेहत के नुश्खे :
HEALTH TIPS:
केल्शियम का भण्डार है पनीर .अश्थियों की मजबूती के लिए अच्छा है .(अलबत्ता कई मेडिकल कंडीशन में प्रोटीन बहुल खुराक की मनाही रहती है वहां अगर आपका माहिर इसकी परहेजी की बात करता है तो उसे मानिए ,र्ह्युमेतिक आर्था -राइटिस में कई माहिर दालों के संग संग पनीर ,दही टमाटर आदि की भी मनाही करतें हैं .).
Paneer is the storehouse of calcium and makes your bones stronger.
सिर दर्द से राहत :लॉन्ग का तेल लेकर उसमे एक चुटकी नमक मिलाकर माथे पर लगाइए .सिर दर्द में राहत मिलेगी .
Clove oil when mixed with salt ,and applied on the forehead ,gives relief from headaches .
ram ram bhai ! ram ram bhai ! ram ram bhai !
रजोनिवृत्ती के दौरान होट फल्शिज़ से राहत के लिए अवसाद रोधी दवाएं :
कुछ महिलाएं रजोनिवृत्ती के दौरान एक दम से अशक्त बनाने वाले होट फल्शिज़ की चपेट में आजातीं हैं .कभी एक दम से बेहद की गरमी और कभी बे -तहाशा पसीने से सराबोर होना पश्त कर देता है इनका दम ख़म .हौसला .चेहरा सुर्ख लाल हो उठता है .इस सबकी वजह शरीर में हारमोन संतुलन का बिखराव (एन्डोक्राइन इम्बेलेंस )बनता है कुछेक महिलाओं में .
Hot flash से राहत में एंटीडिप्रेसेंट दवाएं असरकारी सिद्ध हो सकतीं हैं .ये दवाएं सेरोटोनिन के हमारे शरीर द्वारा स्तेमाल का विनियमन करती हैं .यही वह कथित फील गुड हारमोन है जो अलावा इसके रक्त वाहिकाओं का फैलाव और सिकुडाव को भी प्रभावित करता है .कुलमिलाकर होट फ़ल्शिज़ के लक्षणों का शमन करतीं हैं अवसाद रोधी दवाएं .
Women suffering from debilitating hot flushes during menopause may benefit from antidepressants ,which affect how the body uses serotonin -the so-called feel good hormone-also influence how the blood vessels contract and expand in menopausal women.

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

मल्टीविटामिन सम्पूरण की प्रासंगिकता ?

मल्टीविटामिन सम्पूरण की प्रासंगिकता ?
Multi-vitamin pills a waste of money ,says study/TIMES TRENDS /TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC 28,2011,P17.
कहीं आप अपने अनजाने ही मल्टीविटामिनों की गोलियों का स्तेमाल भले चंगे रहते हुए भी बचावी चिकित्सा के बतौर तो नहीं कर रहे ?यदि हाँ तब आपको यह रिपोर्ट ज़रूर पढनी चाहिए .कहीं आप नाहक ही अपनी जेब से हाथ तो नहीं धौ रहे ?
फ्रांस की नेंसी यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च टीम ने अपने एक छ :साला अध्ययन से निष्कर्ष निकाला है कि जो लोग इन गोलियों का स्तेमाल करते आरहें हैं उनके लिए दिल की बीमारियों और कैंसर की गिरिफ्त में आने का ख़तरा उतना ही है जितना छद्म गोली (प्लेसिबो )लेने वालों के लिए रहता है .
जब उनसे उनकी सेहत के मिजाज़ के बारे में पूछा गया तब दोनों किस्म के प्रतिभागियों (सब्जेक्ट्स ) की सेहत में किसी भी किस्म का फर्क नहीं पता चला .जानपदिक रोग विज्ञान की एक आलमी पत्रिका ' International Journal of Epidemiology'में इस अध्ययन के नतीजे प्रकाशित हुए हैं .
इसे अब तक का सबसे मंहगा ऐसा अध्ययन माना जा रहा है जो इन गोलियों की प्रासंगिकता से ताल्लुक रखता है .पता चला ऐसे लाखों लोग हैं जो इन गोलियों पर बिला वजह पैसा लुटा रहें हैं .
इनमे से कितनों को ही एक तमगा मिला है 'worried well 'का .ये वो तंदरुस्त लोग हैं जो मानतें हैं कि इन गोलियों का सेवन करते रहने से वह आज के दौर की कई मारक बीमारियों से बचे रह सकेंगें .
यही कहना है सैंट जार्ज अस्पताल की केथेरीन कोलिन्स (Catherine Collins ) का .

यह गोलियां न तो अल्ज़ाइमर्स से न ही दिल के दौरों से और न ही दिमाग के दौरों (ब्रेन अटेक ) से इन Worried well को बचाए रह सकती हैं .अलबता मुगालते में जीने से किसी कौन रोक सकता है .रोक सका है .एक ढूँढोगे दस रोग भ्रमी मिल जायेंगें .
ram ram bhai !ram ram bhai !
Diet patterns may keep brain from shrinking /SCI-TECH/MUMBAI MIRROR ,DEC28,2011P22
जिन लोगों की खुराक में कुछ ख़ास विटामिनों के अलावा ओमेगा -३ फेटि एसिडों (ओमेगा -३ वसीय अम्लों )का बाहुल्य होता है वह अल्ज़ाइमर्स रोग में होने वाले दिमागी सिकुडाव (shrinkage)से अपेक्षाकृत बचे रह सकतें हैं .ब्रेन श्रीन्केज की संभावना इनमे कमतर रहती है बरक्स उनके जिनकी खुराक में यह पुष्टिकर तत्व शामिल नहीं रहतें हैं .
अध्ययनों से पता चला है जिनकी खुराक में ओमेगा -३ वसीय अम्लों के अलावा विटामिन सी ,डी ,ई और विटामिन बी भरपूर रहता है उनका दिमागी सोच विचार की क्षमता बोध सम्बन्धी परीक्षणों में स्कोर बेहतर रहता है बरक्स उनके जिनकी खुराक से ये तत्व नदारद रहतें हैं .
जहां ओमेगा -३ वसीय अम्ल मुख्य तौर पर मछलियों से मिल जाता हैं वहीँ विटामिन बी समूह और एंटीओक्सिदेंट्स C विटामिन और E का प्राथमिक स्रोत ताज़ा फल और तरकारियाँ हैं .
एक और अध्ययन में एक और भी बात सामने आई है :
जो लोग ट्रांसफेट्स (ट्रांसफेटि एइड्स )से सनी खुराक लेतें हैं या जिनकी खुराक में इनका उच्चतर समावेश रहता है उनमे न सिर्फ ब्रेन श्रीन्केज की संभावना बढ़ी हुई रहती है बोध सम्बन्धी परीक्षणों में भी ये पिछाड़ी रहतें हैं .मेमोरी टेस्ट्स में भी इनका स्कोर कमतर रह जाता है बरक्स उनके जिनकी खुराक में ट्रांस फेट्स नामालूम से ही रहतें हैं .
जंक फ़ूड इनका प्राथमिक स्रोत हैं .PACKAGED ,FAST ,FRIED और FROZEN FOODS ,BAKED GOODS और MARGARINE इन्हीं से युक्त हैं .
बेशक इन नतीजों की आइन्दा भी पुष्टि होनी चाहिए लेकिन यह अन्वेषण क्या कम हैकि खुराक बदली करके दिमाग के सिक्डाव सिकुड़ने को थामा जा सकता है .
ram ram bhai ! ram ram bhai !
सेहत के नुश्खे :
HEALTH TIPS:
Carrots contain a lot of beta -carotene which helps slow down the aging of cells .
कोशिकाओं के उम्र दराज़ होने बुढ़ाने को रोकती है गाज़र .यह कमाल होता है इसमें मौजूद तत्व बीटा -केरोटीन का .
दिमाग की तंदरुस्ती के लिए गरीब का मेवा मूंगफली :विटामिन बी समूह से भरपूर मूंगफली दिमाग की सेहत के लिए अच्छी है .कच्ची मूंगफली कूट कर हरी सब्जियों और दालों में भी स्तेमाल की जाती है उबाल कर भी कच्ची पक्की खाई जाती है मूंगफली .मध्यप्रदेश में छिलके समेत रेत में अध -सिंकी मूंगफली हरी मिर्च और नमक के मिश्र के साथ खाई जाती है . अलबत्ता तली हुई मूंगफली ट्रांस फेट्स में सेहत के फायदों को चौपट कर देती है बेहतर है घर में ही माइक्रो -वेव करके खाएं एक दो बूँद सरसों का टेल टपकाकर नमक छिड़क सेंक कर.
Peanuts are packed with the B-Complex group of vitamins that contribute to brain health.

क्यों बढ़ रहें हैं एसिड रिफ्लेक्स (Acid reflux)के मामले ?

क्यों बढ़ रहें हैं एसिड रिफ्लेक्स (Acid reflux)के मामले ?
Increase in cases of acid reflux/HEALTH FLASH /BODY AND SOUL/BOMBAY TIMES ,THE TIMES OF INDIA,DEC27,2011,P7
गत दस सालों में ऐसे लोगों की संख्या में पचास फीसद इजाफा हुआ है जो हफ्ते में कमसे कम एक बार एसिड रिफ्लक्स का सामना करतें हैं .
ACID REFLUX :Acid reflux (or gastro-oesophageal reflux ),is where stomach contents like food and acidic digestive juices ,escape upwards into the gullet or oesophagus.Acid reflux is a burning sensation caused by the stomach contents being repeatedly returned to the oesophagus ,a result of the inadequate functioning of ,e.g. the lower oesophagus sphincter.
इस स्थिति में खाया पीया खासकर अधपचा भोजन तथा तेजाबी पाचक रस मुख से आमाशय तक भोजन ले जाने वाली नली में बार बार वापस आने लगता है .इसकी एक वजह भोजन नली की निचली अवरोधिनी का ठीक से काम न कर पाना बनता है .भोजन नली को चारों ओर से एक गोलाकार मांसपेशी घेरे रहती है जिसके कस जाने पर छेद बंद हो जाता है .
माहिरों को आशंका है इन मामलों के बढ़ने के साथ ही भोजन नली के कैंसर की आशंका भी इन तमाम मामलों में बढ़ सकती है .इस कैंसर समूह का इलाज़ भी खासा मुश्किल सिद्ध होता है .
भोजन और अम्लीय पाचक रसों के बारहा आमाशय से मुख की ओर वापास आने से ही भोजन नली में जलन सूजन और संक्रमण होने लगता है .अम्ल शूल(Heart burn) इसी वजह से होता है .
माहिरों के अनुसार इन मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि की एक संभावित वजह लोगों का अकसर ओवर वेट होना ,ओबेसी होना भी बन रहा है .कोमन मेलेडी है मोटापा आज . एसिड रिफ्लक्स के लिए यह एक ज्ञात रिस्क फेक्टर है .
राम राम भाई !राम राम भाई !राम राम भाई !
अब पूर्व मासिक संलक्षण (PMS) के मामलों में होने वाले मूड स्विंग्स से निपटा जा सकेगा .
PMS mood swings wiil be treatable/HEALTH FLASH /BODY AND SOUL /BOMBAY TIMES /THE TIMES OF INDIA,DEC27,2011,P7
साइंसदानों ने माहवारी से पहले कुछ महिलाओं में होने वाले आकस्मिक मिजाज़ में होने वाले धुर परिवर्तनों ,मूड स्विंग्स एकदम से आनंदातिरेक या विषाद के बीच झूलने से निजात दिलवाने के प्रति आश्वस्त किया है इस आश्वस्ति की वजह यह है कि साइंसदानों ने .पूर्व मासिक संलक्षण में कुछ महिलाओं को होने वाली खीझ ,अनिद्रा की शिकायत तथा मूड में आने वाले आकस्मिक और अतिरेक से युक्त बदलावों का इलाज़ ढूंढ लिया है .
समझा जाता है मिजाज़ में होने वाले इन आकस्मिक लेकिन कष्टदाईदोलन और झोंकों की वजह एक हारमोन बनता है .यह हारमोन हमारा शरीर का स्रावी तंत्र कुदरती तौर पर ही तैयार करता है .
किस महिला में इसके प्रति कितनी संवेदनीयता है इसी से तय होता है उनके कष्ट का हिसाब किताब .
यह हारमोन है ALLOPREGNANONE जिसका स्राव महिलाओं में एंड क्षरण (OVULATION ) के बाद होता है ,गर्भावस्था में होता है तथा मासिक स्राव के दरमियान होने वाले बदलावों के साथ होता है .ज्यादातर महिलाएं इस हारमोन के प्रति माहवारी के बाद ही संवेदी होतीं हैं .मासिक धर्म (मासिक चक्र ,मासिक स्राव )से पूर्व अमूमन कम ही महिलाएं इस हारमोन के प्रति संवेदन शील होतीं हैं और इसी लिए ये मूड स्विंग्स से बची रहतीं हैं .
लेकिन जिनमे PMS के लक्षण उग्र रहतें हैं कष्टकर सिद्ध होता है जिन्हें यह वक्फा उनमे इस हामोन के प्रति मासिक से पहले ज्यादा संवेदन शीलता देखी जाती है .ज़ाहिर है वह इस हारमोन के स्तर में आने वाले बदलावों के साथ तालमेल नहीं बिठा पातीं हैं .अनुकूलन नहीं हो पाता है इनके स्वभाव का इस हारमोन के स्राव के साथ .संवेगों का उतार चढाव भी इन्हें तंग करता है .इमोशनल हो जातीं हैं यह इस दौरान .बात करते करते रो पड़तीं हैं .
इस रहस्य से पर्दा उठने के बाद अब उम्मीद की जाती है बेहतर समाधान भी ढूंढ लिया जाएगा PMS के कष्टकारी लक्षणों से खासकर मूड स्विंग्स से .
ram ram bhai !ram ram bhai !
DEC28,2011
सेहत के नुश्खे :
HEALTH TIPS:
ताज़ा निकाला गया खीरे का रस अम्ल शूल (हार्ट बर्न ),आमाशय की सूजन और दर्द की बीमारी गैसत्रैतिस (GASTRITIS),तथा अम्लता (एसिडिटी)से फ़ौरन राहत दिलवाता है .
Fresh cucumber juice provides relief from heartburn ,acidity and gaitritis.
ठीक से धुए पौंछे गए साफ़ सुथरे मीठे गन्ने का रस गले की दुखन सोर थ्रोट को दूर भगाता है .कोल्ड और फ्ल्यू से भी बचाव करता है (लेकिन रोड साइड के गंदे वेंडर से बचे ,साफ़ सफाई रख रखाव का स्तर देखना ज़रूरी है ).
Sugarcane juice can cure sore throat .It is also a good preventive for cold and flu.
राम राम भाई ! राम राम भाई !
नुश्खे सेहत के :
HEALTH TIPS: दिमाग की तंदरुस्ती के लिए मच्छी का सेवन अच्छा है इसमें मौजूद ओमेगा -३ वसीय अम्ल दिमाग की सेहत के लिए मुफीद रहतें हैं .
Omega-3 fatty acids present in fish facilitate healthy brain function.
खून में हिमोग्लोबीन के स्तर को मान्य बनाए रखने के लिए विटामिन बी से भरपूर संतरे खाइए .
0ranges ,rich in Vitamins B6 ,help support the production of haemoglobin in the body.

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

स्व :जनित या फिर स्व :रक्ताधान /स्वत :रक्ताधान क्या है ?

स्व :जनित या फिर स्व :रक्ताधान /स्वत :रक्ताधान क्या है ?
WHAT IS AUTOLOGOUS BLOOD TRANSFUSION?
जैसे - जैसे रक्ताधान जन्य बीमारियाँ प्रकाश में आरहीं हैं वैसे ही वैसे लोगों में अपना ही रक्त या रक्त से तैयार किए गए उत्पाद जिसे नियोजित तरीके से शल्य से पहले मरीज़ सेही ले लिया जाता है तथा निथारकर भंडारित कर लिया जाता है और शल्य के वक्त या बाद शल्य पुन :मरीज़ को ही चढ़ा दिया जाता है लोकप्रिय हो रहा है .
चिकित्सा शब्दावली में यही स्व :रक्ताधान या ऑटोलोगस ब्लड ट्रेन्सफ्यूज़न कहलाता है .
Autologous blood transfusion is the medical term for collecting ,filtering and injecting back patients own blood .Autologous blood transfusion is the process in which a patient donates his/her blood or blood componets ,which is then re -infused into him /her during or after surgery .
यह प्रक्रिया Allogenic blood transfusion से भिन्न है जहां मरीज़ को किसी और परिजन या मित्र का खून चढ़ाया जाता है .जो समान ग्रुप का होते हुए भी आनुवंशिक तौर पर भिन्न होता है .इसका आनुवंशिक रचाव भिन्न होता है .ऊतक भिन्न होतें हैं और इसी लिए कई मर्तबा ऊतक मिलान की समस्या आड़े आती है .
इसीलिए किसी और से प्राप्त अंग को डोनर ओरगन कोप्राप्त करता मरीज़ द्वारास्वीकृति दिलवाने के लिए उसकी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली से स्वीकृति दिलवाने के लिए रोग रोधी तंत्र का शमन करने वाली इम्यून सप्रेसर ड्रग्स का स्तेमाल किया जाता है .जिसके पार्श्व प्रभाव होतें हैं .
एलोजेनिक ब्लड ट्रेन्सफ्यूज़न के मामले भी कई मर्तबा बिगड़ जातें हैं खराब हो जातें हैं .
स्व :रक्ताधान के फायदे :यह पर -रक्ताधान(Allogenic blood transfusion ) से अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा सुरक्षित है .यहाँ यौन संचारी रोगों यथा syphilis(गरमी,उपदंश या आतशक )Hepatitis B or C Viruses ,HIV आदि से रक्ताधान के बाद संक्रमित होने का ख़तरा नहीं रहता है .
प्रत्युर्जातक प्रतिक्रियाओं एलर्जिक रियेक्शंस के पनपने के अलावा febrile reactions ज्वर आदि का जोखिम भी नहीं रहता है .
शल्य से पहले खून देने अपने स्तेमाल के लिए ही रक्त दान करने का फायदा एक और भी है :यह अस्थि मज्जा (Bone marrow ) को उद्दीपन प्रदान करता है .नतीज़न शरीर में कोशिकाओं का उत्पादन बढ़ जाता है .
कुछ लोग धार्मिक वजहों से किसी और का खून अपने स्तेमाल के लिए लेने से परहेज़ करते हैं .स्व :रक्ताधान इस समस्या का समाधान है .
मजेदार बात यह है उम्र दराज़ लोग भी स्व :जनित रक्ताधान कर सकतें हैं महज़ मनोवैज्ञानिक कारण उन्हें ऐसा करने से रोकतें हैं .
नुकसानात भी है स्व :रक्ताधान के :
मसलन सभी नियोजित शल्य कर्मों में खून जाया नहीं होता है .इसीलिए रक्ताधान की ज़रुरत ही नहीं पड़ती है .
Not all planned surgical procedures are associated with massive blood loss to require transfusion.
दफ्तरी गलती होने की संभावना यहाँ भी रहती है गलत यूनिट्स ब्लड की चढ़ा दी जातीं हैं .जिसके खामियाजे मरीज़ को भुगतने पड़ते हैं .
जो लोग पहले ही से किसी मेडिकल कंडीशन के साथ रह रहें हैं वह स्व :रक्ताधान कर सकतें हैं या नहीं यह अभी स्पष्ट नहीं है .इस पर एक राय नहीं है माहिरों में .
ऑटोलोगस ब्लड यूनिट्स /ब्लड कम्पोनेंट्स की संभाल रख रखाव ,संशाधन अपेक्षाकृत ज्यादा सावधानी और कौशल की मांग करती है .
दो टूक निर्देश और rate cards इस बाबत अभी तैयार नहीं की गई हैं .
यदि सर्जरी आगे खिसका दी जाती है या फिर रक्ताधान की ज़रुरत ही नहीं पड़ती है तब दिया गया खून जाया हो जाता है .
आखिर क्यों परवान चढ़ा है चढ़ रहा है स्व :रक्ताधान :
मुंबई शहर में गत दो माह में दो कैंसर समूह रोगों के मरीजों की मौत की वजह गलत रक्ताधान बना है .इन्हें अवांछित समूह का रक्त गलती से चढ़ा दिया गया .(मामले जसलोक और सियोंन अस्पताल से ताल्लुक रखतें हैं ).
गुजरात में थैलेसिमिया से ग्रस्त २३ बच्चे रक्ताधान के बाद एच आई वी से संक्रमित पाए गए .
जब स्व :रक्ताधान जीवन रक्षक साबित होता है :
AB- ब्लड ग्रुप एक विरल रक्त समूह है जिसका रक्तदाता आसानी से नहीं मिलता है ऐसे मामलों में स्व :रक्ताधान जीवन रक्षक साबित होता है .
बकौल डॉ .बिजोय कुट्टी (चिकित्सा निदेशक Dombivali's Icon Heart hospital) उनके यहाँ ४४ वर्षीय महेश भाई ओपन हार्ट सर्जरी के लिए इसी ब्लड ग्रुप को लिए आए .स्व :रक्ताधान करके इनकी कामयाब सर्जरी की गई .सर्जरी से एक दिन पहले इनका एक यूनिट खून संजो के परिरक्षित कर लिया गया .एक यूनिट खून ओपरेशन के दिन ही इनसे जुटाया गया .
ज़रुरत पड़ने पर ऐसे मरीजों को plasma expander दे दिया जाता है ताकि ब्लड लोस शरीर के संतुलन को असर ग्रस्त न करे .डॉ .कुट्टी गत एक साल में ४० मामले कामयाबी से निपटा चुके हैं स्व :रक्ताधान के साथ शल्य के लिए प्रस्तुत मरीजों के .
जैसे जैसे स्व ;रक्ताधान के प्रति -जागरूकता बढ़ रही है elective surgeries ही नहीं cardiac ,orthopaedic or tumour removal surgeries के मामलों में लोग स्व :रक्ताधान के साथ आगे आरहें हैं .
सन्दर्भ -सामिग्री :
Harvesting own blood :THE NEW LIFE SAVER /TIMES CITY /TIMES OF INDIA ,MUMBAI,DEC 26,2011/P2

रविवार, 25 दिसंबर 2011

स्तनपान एक फायदे अनेक .

स्तनपान एक फायदे अनेक .
'Breastfeeding cuts baby's risk of obesity ,diabetes'/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,MUMBAI ,DEC23,2011.P17
भावी माताओं के लिए यह भी जानना समझना ज़रूरी है स्तनपान करवाना न सिर्फ शिशु के स्वास्थ्यवर्धक विकास को पुख्ता करता है भविष्य में मधुमेह एवं मोटापा रोग के खतरे को भी कम करता है . डेनमार्क कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी की फेकल्टी ऑफ़ लाइफ साइंसिज़ के रिसर्चरों ने एक अध्ययन संपन्न किया है जिसके अनुसार जिन शिशुओं को पर्याप्त समय तक स्तन पान मयस्सर होता है उनकी बढ़वार और विकास का ढांचा growth pattern उन शिशुओं से बेहतर रहता है जिन्हें फोर्म्युला मिल्क ही नसीब होता है स्तन पान नहीं .स्तन पान वाले शिशु आगे चलके के भी सेहत के मामले में फायदे में रहतें हैं .बेहतर स्वास्थ्य प्राप्त करते हैं .
राम राम भाई !राम राम भाई !राम राम भाई !
अब बेली फेट का पता लगाने के लिए ख़ास एक्स रे -स्केन (Core Scan).
Now X-ray scan spots fat ,Warns you of obesity risk/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC23,2011,P17
ईसवी सन २००८ में जुटाए आंकड़ों के मुताबिक़ अस्सी लाख भारतीय औरतें और तकरीबन चौवालिस लाख मर्द मोटापे (ओबेसिटी )की गिरिफ्त में पाए गए थे .इनका बॉडी मॉस इंडेक्स ३० किलोग्राम /वर्गमीटर से ऊपर पाया गया था .अपना तौल किलोग्राम में लिख लें और इसे अपनी हाईट को मीटर में तबदील करके उसका वर्ग लेकर तकसीम कर दें .इस प्रकार प्राप्त अंक आपका बी एम् आई कहलायेगा .इसे किलोग्राम मीटर स्क्वायार्ड में व्यक्त किया जाता है .मान लीजिए किसी का वजन (तौल )६४ किलोग्राम है और हाईट १.६० मीटर है .तब ६४/(१.६०)x(१.६०)=२५ किलोग्राम /(मीटर )(मीटर ) उसका बी एम् आई हो जाएगा .
नै प्रोद्योगिकी को नाम दिया गया है 'core scan'.यह उदर गुहा में स्थित अंगों में ज़मा फेट (visceral adipose tissue) या VAT का ,बेली फेट का पता देखते ही देखते लगा लेगी .भारत में यह प्रोद्योगिकी जिसका प्रदर्शन अभी हाल ही में रेडिओलोजिकल सोसायटी ऑफ़ नार्थ अमेरिका की सालाना बैठक में किया गया था जनवरी २०१२ से उपलब्ध हो जायेगी .
इसमें एक्स रे की non -invasive low dose ही मरीज़ को एक्स रे टेबिल पर आराम से लिटाने के बाद उसके शरीर पर डाली जायेगी .यह पूरे शरीर में कहाँ कितना फेट ज़मा है इसका जायजा लेगी .कहाँ कितना फेट टिश्यु है कितना lean tissue है ,अश्थियों में खनिज कितना है (bone mineral content )सबका पता देगी .
कौन कितना पतला छरहरा या मोटापा लिए है इसका सही कयास लगाकर मोटापे से पैदा होने वाले रोगों के खतरे का वजन मालूम किया जाएगा .इन रोगों के मूल में विसरल फेट ही है जिसे बेली फेट भी कह दिया जाता है एब्डोमिनल ओबेसिटी भी .इन रोगों में मधुमेह ,उच्च रक्त चाप (Hypertension ),मधुमेह तथा dyslipidemia और metabolic syndrome शामिल हैं .कमर का माप वेस्ट मेज़रमेंट बेली फेट का सही आकलन प्रस्तुत नहीं कर सकता है .उदर गुहा में कहाँ क्या है कितना है असल सवाल यह है .
सामान्य तौल वाले लोग भी जिनका वजन नोर्मल है विसरल फेट का ख़तरा लिए हो सकतें हैं .चमड़ी के ठीक नीचे की चर्बी सब-क्यूटएनियास फेट से निजात मिलना आसान है लेकिन बेली फेट आसानी से पिंड नहीं छोड़ता .माहिरों का यही कहना मानना है .विसरल फेट उदर के अंदरूनी हिस्सों में ज्यादा घुसा रहता है .
इसीलिए अपेक्षाकृत ज्यादा बेली फेट वालों के लिए दिल ,दिमाग की बीमारियों (सेरिब्रल स्ट्रोक ) ,डायबितीज़ और उच्च रक्त चाप का ख़तरा ज्यादा रहता है .
हमारा यकृत (Liver )बेली फेट का अपचयन करके बेली फेट को मेताबोलाईज़ करके इसे खून में घुलित चर्बी कोलेस्ट्रोल के रूप में भेज देता है .आप जानते हैं इसका दिल की सेहत के लिए खतरनाक रहने वाला हिस्सा bad cholestrol या LDL Cholestrol ही धमनियों की अंदरूनी दीवारों पर प्लाक (कचरे )के रूप में ज़मा होकर उन्हें अवरुद्ध कर देता है .

Metabolic syndrome:Its a common combination of insulin resistance and type 2diabetes with central obesity (i.e with fat distribution mainly around the waist ),high blood pressure and hyperlipidaemia.
ram ram bhai !ram ram bhai !
DEC26,2011
सेहत के नुश्खे :
HEALTH TIPS:
Pineapples have bromelain which brings relief from gout ,sinusitis,sore throat and arthritis .
अनानास है गुणों की खान इसमें मौजूद है एक ऐसा तत्व ब्रोम्लैन जो गठिया (जोड़ों का दर्द ,जो खासकर उन जगहों पर उभरता है सोजिश या सूजन के साथ जहां दो अस्थियाँ परस्पर फिट होतीं हैं .)आर्थाराइटिस (संधि वात)जहां जहां हमारी अस्थियाँ एक दूसरे से जुडी हुईं हैं जहां जहां से हम अपनी ऊंगलियों बाजुओं को मोड़ तोड़ सकतें हैं वहां वहां मय सोजिश यह दर्द लहर बनके उठता है .),साइनुसाइतिस(साइनस का संक्रमण ,दी पेनफुल स्वेलिंग ऑफ़ दी साइनस इन्फ्लेमेशन ऑफ़ ए साइनस खासकर पैरानेज़ल साइनस का संक्रमण )के अलावा गले की दुखन Sore throat(pain at the back of the mouth commonly due to bacterial or viral infection of the tonsils (tonsilitis)or the pharynx(pharyngitis) में भी राहत दिलवाता है .,अनानास .
अनार एंटी -ओक्सिदेंटों से भरपूर है .इसमें मौजूद हैं tannins ,anthocyanins,तथा polyphenols.आपको जवान बनाए रहतें हैं यह तीनों तत्व .
टेनिंन पीले कथ्थई रंग का एक यौगिक है जो कुछ पेड़ों की छालों ,कुछ पादप और पादप उत्पादों nutgall,चाय कोफी आदि में भी पाया जाता है .
anthocyanins रंजक होतें हैं .लालबैज्नी पन अनार का अनारी रंग इन्हीं पिगमेंट्स की वजह से है .

अब बेली फेट का पता लगाने के लिए ख़ास एक्स रे -स्केन (Core Scan).

अब बेली फेट का पता लगाने के लिए ख़ास एक्स रे -स्केन (Core Scan).
Now X-ray scan spots fat ,Warns you of obesity risk/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC23,2011,P17
ईसवी सन २००८ में जुटाए आंकड़ों के मुताबिक़ अस्सी लाख भारतीय औरतें और तकरीबन चौवालिस लाख मर्द मोटापे (ओबेसिटी )की गिरिफ्त में पाए गए थे .इनका बॉडी मॉस इंडेक्स ३० किलोग्राम /वर्गमीटर से ऊपर पाया गया था .अपना तौल किलोग्राम में लिख लें और इसे अपनी हाईट को मीटर में तबदील करके उसका वर्ग लेकर तकसीम कर दें .इस प्रकार प्राप्त अंक आपका बी एम् आई कहलायेगा .इसे किलोग्राम मीटर स्क्वायार्ड में व्यक्त किया जाता है .मान लीजिए किसी का वजन (तौल )६४ किलोग्राम है और हाईट १.६० मीटर है .तब ६४/(१.६०)x(१.६०)=२५ किलोग्राम /(मीटर )(मीटर ) उसका बी एम् आई हो जाएगा .
नै प्रोद्योगिकी को नाम दिया गया है 'core scan'.यह उदर गुहा में स्थित अंगों में ज़मा फेट (visceral adipose tissue) या VAT का ,बेली फेट का पता देखते ही देखते लगा लेगी .भारत में यह प्रोद्योगिकी जिसका प्रदर्शन अभी हाल ही में रेडिओलोजिकल सोसायटी ऑफ़ नार्थ अमेरिका की सालाना बैठक में किया गया था जनवरी २०१२ से उपलब्ध हो जायेगी .
इसमें एक्स रे की non -invasive low dose ही मरीज़ को एक्स रे टेबिल पर आराम से लिटाने के बाद उसके शरीर पर डाली जायेगी .यह पूरे शरीर में कहाँ कितना फेट ज़मा है इसका जायजा लेगी .कहाँ कितना फेट टिश्यु है कितना lean tissue है ,अश्थियों में खनिज कितना है (bone mineral content )सबका पता देगी .
कौन कितना पतला छरहरा या मोटापा लिए है इसका सही कयास लगाकर मोटापे से पैदा होने वाले रोगों के खतरे का वजन मालूम किया जाएगा .इन रोगों के मूल में विसरल फेट ही है जिसे बेली फेट भी कह दिया जाता है एब्डोमिनल ओबेसिटी भी .इन रोगों में मधुमेह ,उच्च रक्त चाप (Hypertension ),मधुमेह तथा dyslipidemia और metabolic syndrome शामिल हैं .कमर का माप वेस्ट मेज़रमेंट बेली फेट का सही आकलन प्रस्तुत नहीं कर सकता है .उदर गुहा में कहाँ क्या है कितना है असल सवाल यह है .
सामान्य तौल वाले लोग भी जिनका वजन नोर्मल है विसरल फेट का ख़तरा लिए हो सकतें हैं .चमड़ी के ठीक नीचे की चर्बी सब-क्यूटएनियास फेट से निजात मिलना आसान है लेकिन बेली फेट आसानी से पिंड नहीं छोड़ता .माहिरों का यही कहना मानना है .विसरल फेट उदर के अंदरूनी हिस्सों में ज्यादा घुसा रहता है .
इसीलिए अपेक्षाकृत ज्यादा बेली फेट वालों के लिए दिल ,दिमाग की बीमारियों (सेरिब्रल स्ट्रोक ) ,डायबितीज़ और उच्च रक्त चाप का ख़तरा ज्यादा रहता है .
हमारा यकृत (Liver )बेली फेट का अपचयन करके बेली फेट को मेताबोलाईज़ करके इसे खून में घुलित चर्बी कोलेस्ट्रोल के रूप में भेज देता है .आप जानते हैं इसका दिल की सेहत के लिए खतरनाक रहने वाला हिस्सा bad cholestrol या LDL Cholestrol ही धमनियों की अंदरूनी दीवारों पर प्लाक (कचरे )के रूप में ज़मा होकर उन्हें अवरुद्ध कर देता है .

Metabolic syndrome:Its a common combination of insulin resistance and type 2diabetes with central obesity (i.e with fat distribution mainly around the waist ),high blood pressure and hyperlipidaemia.

सेहत के नुश्खे :

सेहत के नुश्खे :
HEALTH TIPS:
A cherry -enriched diet lowers total weight and body fat ,especially around the belly area.
चेरी संवर्धित खुराक न सिर्फ वजन कम करती है .तथा पेट के गिर्द ज़मा चर्बी भी कम करने में सहायक रहती है .
जोड़ों के दर्द आर्थराइटिस से राहत के लिए अनार का सत (रस ,शरबत अनार )लीजिए .यह प्रजनन क्षमता में भी इजाफा करता है .
Pomegranate juice helps significantly in reducing the symptoms of arthritis and boosts fertility.
नुश्खे सेहत के .
HEALTH TIPS:
करेले में पालक से दो गुना ज्यादा केल्शियम तथा पके हुए केले से भी दो गुना ज्यादा पोटेशियम पाया जाता है .ब्लड प्रेशर के विनियमन के लिए अच्छा है पोटेशियम .
परवल (देशी परवल या कुंदरू ) मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा रहता है .यह उन किन्वकों (एंजाइम्स )की सक्रीयता का शमन करता है जो ग्लूकोज़ के उत्पादन में हाथ बटातें हैं मसलन G-6 phosphatase ऐसा एक एंजाइम (enzyme)है .करेला इसकी सक्रीयता के पंख कुतरता है .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
DEC 25,2011

दर्द से ध्यान हटा सकता है पसंदीदा संगीत .
दर्द से ध्यान हटा सकता है पसंदीदा संगीत .
(म्यूजिक कैन टेक अवे पैन /MUSIC CAN TAKE AWAY PAIN /YOU /MUMBAI MIRROR /DEC 24,2011P29).
जिन लोगों की बे -चैनी दिन रात बनी रहती है एन्ग्जायती लेविल उच्चतर बना रहता है तथा जिनका ध्यान बोध सम्बन्धी (संज्ञानात्मक कामों )में ज्यादा रमता है संगीत उनके लिए एक बेहतरीन दर्द -हारी (ANALGESIC ) )का काम कर सकता है .
कृत्रिम दर्द उद्दीपनों के प्रति होने वाली अनुक्रिया को रेस्पोंस को भटका सकता है पसंदीदा संगीत .दर्द के केन्द्रों की तरफ बढ़ने से भटका सकता है .यही कहना है University of Utah Pain Research centre के साइंसदानों का .
अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने बतलाया है ,संगीत व्यक्ति का ध्यान दर्द से विमुख कर सकता है .संज्ञानात्मक केंद्र से बाहर खदेड़ सकता है दर्द के केंद्र बिंदु को एहसास को .
इस अध्ययन का केन्द्रीय बिंदु है मरीज़ का ध्यान दर्द से हटाना .यही दर्द के विनियमन का कामयाब ज़रिया बन सकता है एक दिन .
अध्ययन में १४३ प्रतिभागियों का जायजा लिया गया है .
उन्हें संगीत के ट्रेक्स सुनवाए गए ,उनके माधुर्य पर ध्यान लगाने को तथा संभावित विचलन वेरिएशन का पता लगाने के लिए कहा गया .
इसी दरमियान उन्हें फिंगर टिप्स इलेक्ट्रोडों के ज़रिये सह सकने लायक सुरक्षित experimental pain shocks भी दिए गए .पता चला दर्द की लहर खासी कम हो गई थी संगीत की स्वर लहरी माधुरी के असर से . दर्द का उद्दीपन माधुर्य और सुने गए संगीत की मात्रा के अनुरूप ही कमतर होता गया .
Central arousal from the pain stimuli reliably decreased with the increasing music task demand .
संगीत दर्द के एहसास को कमतर कर देता है .यह इन्द्रिय बोध सम्बन्धी रास्तों को सक्रीय करके एक तरफ संवेगात्मक अनुक्रियाओं को बढा देता है जो दर्द के रास्तों से मुकाबला करके दर्द की लहर को दर्द का एहसास करने वाले हिस्सों तक पहुँचने से रोक देती है .दूसरी तरफ मन को संगीत लहरी में ही रमा देता है .संगीत इस तरह एक प्रकार का बोध और संवेगात्मक सम्बन्धी मानसिक अनुबंध है . जो दर्द के एहसास को घटाता है .यह अध्ययन जर्नल ऑफ़ पैन में प्रकाशित हुआ है .
सभी ब्लॉग कर्मियों को बड़ा दिन मुबारक .ईशामसीह का जन्म दिन मुबारक .नव वर्ष की पूर्व वेला मुबारक .
वीरुभाई ,सी -४ ,अनुराधा ,नेवल ऑफिसर्स फेमिली रेज़िदेंशियल एरिया ,(नोफ्रा ),कोलाबा ,मुंबई -४००-००५ ./०९३५०९८६६८५ /०९६१९०२२९१४

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

दर्द से ध्यान हटा सकता है पसंदीदा संगीत .

दर्द से ध्यान हटा सकता है पसंदीदा संगीत .
(म्यूजिक कैन टेक अवे पैन /MUSIC CAN TAKE AWAY PAIN /YOU /MUMBAI MIRROR /DEC 24,2011P29).
जिन लोगों की बे -चैनी दिन रात बनी रहती है एन्ग्जायती लेविल उच्चतर बना रहता है तथा जिनका ध्यान बोध सम्बन्धी (संज्ञानात्मक कामों )में ज्यादा रमता है संगीत उनके लिए एक बेहतरीन दर्द -हारी (ANALGESIC ) )का काम कर सकता है .
कृत्रिम दर्द उद्दीपनों के प्रति होने वाली अनुक्रिया को रेस्पोंस को भटका सकता है पसंदीदा संगीत .दर्द के केन्द्रों की तरफ बढ़ने से भटका सकता है .यही कहना है University of Utah Pain Research centre के साइंसदानों का .
अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने बतलाया है ,संगीत व्यक्ति का ध्यान दर्द से विमुख कर सकता है .संज्ञानात्मक केंद्र से बाहर खदेड़ सकता है दर्द के केंद्र बिंदु को एहसास को .
इस अध्ययन का केन्द्रीय बिंदु है मरीज़ का ध्यान दर्द से हटाना .यही दर्द के विनियमन का कामयाब ज़रिया बन सकता है एक दिन .
अध्ययन में १४३ प्रतिभागियों का जायजा लिया गया है .
उन्हें संगीत के ट्रेक्स सुनवाए गए ,उनके माधुर्य पर ध्यान लगाने को तथा संभावित विचलन वेरिएशन का पता लगाने के लिए कहा गया .
इसी दरमियान उन्हें फिंगर टिप्स इलेक्ट्रोडों के ज़रिये सह सकने लायक सुरक्षित experimental pain shocks भी दिए गए .पता चला दर्द की लहर खासी कम हो गई थी संगीत की स्वर लहरी माधुरी के असर से . दर्द का उद्दीपन माधुर्य और सुने गए संगीत की मात्रा के अनुरूप ही कमतर होता गया .
Central arousal from the pain stimuli reliably decreased with the increasing music task demand .
संगीत दर्द के एहसास को कमतर कर देता है .यह इन्द्रिय बोध सम्बन्धी रास्तों को सक्रीय करके एक तरफ संवेगात्मक अनुक्रियाओं को बढा देता है जो दर्द के रास्तों से मुकाबला करके दर्द की लहर को दर्द का एहसास करने वाले हिस्सों तक पहुँचने से रोक देती है .दूसरी तरफ मन को संगीत लहरी में ही रमा देता है .संगीत इस तरह एक प्रकार का बोध और संवेगात्मक सम्बन्धी मानसिक अनुबंध है . जो दर्द के एहसास को घटाता है .यह अध्ययन जर्नल ऑफ़ पैन में प्रकाशित हुआ है .

एक मुंबई बच्चों की .

एक मुंबई बच्चों की .
यहाँ स्कूल के बस्ते का औसत वजन ९किलोग्राम है .जबकि प्राथमिक शाला प्राइमरी के बच्चों के लिए यह ५ किलोग्राम से भी कम होना चाहिए .बस्ते के इस वजन का बच्चों की गर्दन धड तथा lower limb angles पर गलत असर पड़ सकता है .बच्चों का स्वाभाविक ठवन पोश्चर बदल सकता है बस्ता .
६२ फीसद बच्चों के पास यहाँ पर्सनल कंप्यूटर हैं .
७९%बच्चे मोबाइल का स्तेमाल करते हैं .
ज्यादातर माँ बाप इस बात से खुद अपने से ही खफा है वह अपने बच्चों के साथ उतना समय नहीं बिता पाते .५०%पेरेंट्स ही इस मामले में खुद से संतुष्ट हैं मानते हैं वह अपने बच्चों को पर्याप्त समय दे पा रहें हैं .
यहाँ ६-१७साला बच्चे सप्ताह में औसतन ३५ घंटे टी वी देखतें हैं .
८२%किशोर किशोरियां १४-१६ घंटे वीडियो गेम्स खेलतें हैं हर सप्ताह .इनमे से ७%'pathological 'gamers हैं ये हर हफ्ता २० घंटा वीडियो गेम्स खेल रहें हैं .
६३%बच्चे रोजाना कमसे कम घंटा भर 'on line'रहतें हैं .
इनमे से ४०%'ऑन लाइन अडल्ट स्टफ से वाकिफ हैं .यह किसी और शहर से ज्यादा है .
बेतहाशा 'cyber -bullying'भी ये बच्चे झेल रहें हैं .३३%का कमसे कम एक बार 'cyber bullying 'से पाला पड़ चुका है .
४०%बच्चे महीने में कमसे कम एक बार माल्स या फिर सुपर -बाज़ारों में जातें हैं .
मुंबई के ९५%बच्चे डिनर से पहले जंक जलपान करते हैं .इसमें वडा पाव,पीज़ा,बर्जर ,फ्रेंच फ्राईज़ ,समोसा या फिर नुडुल्स होतें हैं .
७८%माँ बाप ने कभी भी अपने यंग चिल्ड्रन (बाली उम्र के बच्चों )के साथ सेक्स पर चर्चा नहीं की है .
३६००-१२,००० रुपया हर महीने इन्हें पॉकिट मनी जेब खर्च मिलता है जिसे ये ट्रेंडी वस्त्र ,लुक्स ,गेजेट्स ,लाइफ स्टाइल प्रोडक्ट्स पर खर्च कर रहें हैं .
६०%बच्चे नै चाल और फेशन के कपडे पहनना एहममुद्दा मानतें हैं .
१७%बच्चे किसी न किसी किस्म का दवाब (स्ट्रेस )झेल रहें हैं .
२८%बच्चे प्रयाप्त नींद (आठ घंटा की नींद )नहीं ले पा रहें हैं .
निजी स्कूल कालिजों में पढने वाले ३०%बच्चे या तो तौल में ज्यादा हैं ओवर वेट हैं या फिर ओबेसी .
८८%लड़के तथा ८५ %लडकियाँ दिन भर में १५,००० और १२,००० कदम नहीं चल रहें हैं .माहिरों द्वारा सभी के लिए (आबाल्वृद्धों )के लिए दिन भर में १०,००० कदम चलना ज़रूरी बतलाया है सेहत के लिए .बच्चों के लिए तो यह और भी ज़रूरी है .
४%बच्चे दमा (एस्मा )तथा ६%सांस सम्बन्धी दूसरी समस्याओं से ग्रस्त हैं .
शिक्षा पर किए गए कुल खर्च में का १६%इन बच्चों की निजी कोचिंग /निजी ट्यूशनों पर हो रहा है .
खेलने के लिए लेदेकर १००० बच्चों को ०.०३ एकड़ खुली जगह मिल रही है जबकि आदर्श रूप में यह ४ एकड़ का हरा भरा मैदान होना चाहिए था .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
ram ram bhai

DEC24,2011
मुंबई की बाहों में पनपते बच्चे.
बच्चों की सेहत के लिए कैसी है मुंबई ?कैसी है मुंबई के बच्चों की सेहत? मुंबई की बाहों में पनपते बच्चे !कैसी है यह महानगरी बच्चों की सेहत के लिए ?हालाकि इस आशय के अध्ययन बहुत कम हुए हैं फिर भी निरंतर सिकुड़ते स्पेसऔर सीमित खुले आकाश तले खेलते पलते ये तमाम बच्चे अरक्षित क्या रोग प्रवण बने रहतें हैं यहाँ की गंधाती अपनी तात्विकता खोती हवा में तंग जगहों में सांस लेते बच्चे .यही राय एक मत से व्यक्त की है माहिरों ने .
यहाँ की हवा में सांस लेते बच्चों के लिए एस्मा(दमे ) के खतरे का वजन बढा हुआ रहता है . किस्म किस्म की प्रत्युर्जातमक प्रतिक्रियाओं ,एलार्जीज़ का जोखिम तमाम तरह के ऑटो -इम्यून -डिस -ऑर्डर्स का ख़तरा छाया रहता है .बालकों को लगने वाले रोग संक्रमणों के माहिर कोकिला बैन धीरुभाई अम्बानी अस्पताल के डॉ .तनु सिंघल कहतें हैं यहाँ की हवा में रचे बसे तमाम तरह के प्रदूषक तत्व तंग माहौल बढती हुई भीड़ बच्चों को रोगों के प्रति एक दम से अरक्षित एवं रोग प्रवण बना देती है .
श्वसन सम्बन्धी शिकायतों ,दमा ,मलेरिया ,वायरल फीवर (विषाणु जन्य बुखार )तथा उदर सम्बन्धी शिकायतें इन बच्चों को कभी भी घेर सकतीं हैं .मौसमी रोगों की मार के प्रति भी ये सबसे अरक्षित रहतें हैं .
वाडिया अस्पताल के एक बाल रोगों के माहिर के अनुसार इन रोगों की कुल हिस्सेदारी ४५% के पार चली जाती है जिनकी चपेट में मुंबई की बाहों में पलते बच्चे जब तब आते रहतें हैं .जितना तंग दायरा घर का है उतना ही यहाँ स्कूल के गलियारों का है .हर जगह ,जगह की तंगी .खुले मैदान कहाँ हैं मुंबई में ?
१००० बच्चों के लिए आदर्श रूप में चार एकड़ का खुला हरा भरा मैदान चाहिए और यहाँ उपलब्ध है मात्र ०.०३ एकड़ .यानी एक एकड़ को सौ भागों में तकसीम कर दो उसमे से कुल तीन भाग खुला हरा गलियारा चुन लो १००० नौनिहालों के लिए .
माहिरों के अनुसार अध्ययन इस बात का खुलासा करतें हैं इन हालातों में दमा जल्दी ही बच्चों को घेर सकता है .जो आगे चलके ५-१०%के लिए गंभीर रुख इख्तियार कर लेता है .माहिरों की माँ बाप को यही सलाह है बचावी उपाय के बतौर बच्चों की जीवन शैली में बदलाव लाया जाए .खान पान की स्वास्थ्य प्रद आदतें डाली जाएं .माँ -बाप खुद एक आदर्श मोडल बनें .
हालिया सुर्खी में आये रोगों की चपेट में जिनमे स्वाइन फ्ल्युसे लेकर HAND FOOT AND MOUTH DISEASE के अलावा किस्म किस्म की दवाओं ( बहु -दवाओं )से बेअसर बनी रहने वाली तपेदिक भी शरीक है मलेरिया और डेंगू भी अध्ययनों के अनुसार मुंबई के बच्चे ही ज्यादा आयें हैं .
जसलोक अस्पताल एवं शोध केंद्र में रोग संक्रमणों के माहिरडॉ .ॐ श्रीवास्तव बाली उम्र में बच्चों के इन रोगों की चपेट में निरंतर आते रहने को उनके विकास के लिए बेहद खराब मानते हैं .बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है इन रोग संक्रमणों का .
लेकिन पी डी हिंदुजा अस्पताल ,माहिम में बालरोगों के माहिर इस स्थिति के लिए सारा दोष पर्यावरण का नहीं मानते .आखिर क्यों बच्चे और किशोर किशोरियां पुष्टिकर तत्वों की कमी से लगातार ग्रस्त देखे जा रहें हैं ?रिकेट्स की चपेट में आरहें हैं ?
बच्चों को सूर्य स्नान नसीब ही नहीं होता है .धूप खाने को नहीं मिलती है .बच्चे एक और छोर पर वातानुकूलित घरों से बाहर निकलते हैं वातुकूलित कारों में सवार हो जातें हैं .वातुनुकूलित स्कूल कालिजों में पढतें हैं .इसीलिए ४-५ साल के बच्चे भी गंभीर रूप से विटामिन -डी की कमी की चपेट में आरहें हैं .अब से एक दशक पहले ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता था .न ऐसा किसी ने देखा सुना था .
बालकों के मूत्र सम्बन्धी रोगों के माहिर डॉ .ए के सिंघल कहतें हैं एक छोर पर कसरत की कमी दूसरे पर पुष्टिकर भोजन की अनदेखी बच्चों में भी गुर्दे की पथरी को पनपा रहा है .जीवन शैली में बदलावों की फौरी ज़रुरत है .
ram ram bhai !ram ram bhai !
bhai

SUNDAY ,DEC24,2011,4C,ANURADHA,COLABA,MUMBAI-400-005
खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा ,मगर ...
खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा अट्रेक्तिव ,बोनी आपके शब्दों में .आप सोचतें हैं बस थोड़ा सा तौल कम करले अपनी स्लिम डाउन हो जाए लेकिन आपका ओवर वेट बच्चा पुष्टिकार तत्वों का अभाव झेल रहा हो सकता है .माइक्रोन्युत्रियेंट्स की कमी की वजह से उसकी केलोरीज़ खर्ची क्षमता दोषपूर्ण हो सकती है .ऐसे में चर्बी को ठिकाने लगाना नामुमकिन हो जाता है .
With a flawed metabolism burning of fat becomes impossible .
गोलू होना गोल मटोल होना प्लंप फेस होना पोषण की निशानी हो यह कतई ज़रूरी नहीं है .
ये हाल है मुंबई के बच्चों का :
भारत के नौनिहालों में ओबेसिटी घर बना रही है .मोटापे का यह रोग तेज़ी से फ़ैल रहा है .एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट के माहिरों द्वारा संपन्न तथा ब्रितानी विज्ञान पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार मुंबई के मदरसों में पढने वाले बच्चों में से १४%तौल में ज्यादा वजनी हैं या फिर ओबेसी हैं .
दोष पूर्ण खान पान और घर घुस्सू बने रहना बैठे ठाले रहना इसकी बड़ी वजह बन रहा है .
दोषपूर्ण खान पान रहनी सहनी जीवन शैली के चलते मुंबई के ६०%बच्चे आज एक दम से ज़रूरी पोषक तत्वों (माइक्रोन्युत्रियेंट्स )की कमीबेशी झेल रहें हैं .इसी बरस १९८ पोषण विज्ञान के माहिरों और खुराक विज्ञानियों ने १२०० रोगियों के आंकड़े जुटाए थे जिनमे नौनिहाल भी थे .पता चला इनमे से ८१%लौह तत्वों की कमी से ग्रस्त थे .१५%में विटामिन कमी बेशी तथा ३%में जिंक तत्व की कमी पाई गई .
माहिरों के अनुसार इस सबकी वजह जिंक ,मैंगनीज़ तथा कॉपर जैसे सूक्ष्म पुष्टिकर तत्वों की खुराक में कमी बन रही है .शरीर की हारमोन प्रणाली तथा पाचन तंत्र को ठीक ठीक तरीके से कायम रखने में इन माइक्रोन्युत्रियेंट्स का बड़ा हाथ रहता है .
विटामिन -डी ,विटामिन -बी १२ की कमी कैंसर समूह से लेकर अवसाद तक तमाम तरह के रोगों की वजह बनती है .कामकाजी महिलाओं को बराबर देखना चाहिए बच्चों के टिफिन में ये तत्व हैं या नहीं .
मुंबई में इसकी एक बड़ी वजह जंक फ़ूड बन रहा है .एक तरफ खुराक में मेक्रोन्युत्रियेंट्स वसा कार्बोहाइड्रेट्स ज्यादा से ज्यादा जगह बना रहें हैं साल्ट बढ़ रहा है दूसरी तरफ विटामिन और खनिज तथा खाद्य रेशे (सूक्ष्म पुष्टिकर तत्व )कमतर क्या नदारद ही हो रहें हैं .
Indian Dietician Association की डॉ शिल्पा जोशी के अनुसार मुंबई के बच्चों के साथ यही हो रहा है .
जानिएगा :
ताज़े फलों और तरकारियों में माइक्रोन्युत्रियेंट्स (विटामिन ,खनिज और रेशों )का डेरा रहता है .लेकिन क्योंकि इनकी भंडारण अवधि कम होती है इसलिए शहरी जलपान (अर्बन स्नैक्स )में ये जगह नहीं बना पा रहीं हैं .बच्चों के टिफिन में पैक्ड फूड्स जगह बना रहें हैं .कामकाजी महिलाएं इसकी तस्दीक कर रहीं हैं .मान समझ रहीं हैं यह सब वक्त की तंगी से हो रहा है .
माहिरों की सबसे बड़ी चिंता इस दौर में यही है शहरी बच्चे विटामिन बी -१२ और बी -३ से दूर जा रहें हैं .बालों का उम्र से पहले झड़ना सफ़ेद होना चमड़ी की बढती शिकायतों के पीछे तमाम तरह के दर्दों से रु -बा -रु होते रहने के पीछे कुलमिलाकर इन्हीं पुष्टिकर तत्वों की कमी का हाथ रहा है .
जानिएगा :
जंक फ़ूड लदा हुआ है साल्ट ,सुगर और ट्रांस -फेट्स (ट्रांस -फेटि -एसिड्स से कथित हाइड्रोजनीकृत वानस्पतिक तेलों से).डिनर से पहले मुंबई के बच्चे ये लेने से नहीं चूक रहें हैं .इसीलिए मधुमेह से लेकर दिल की बीमारियों से भी जल्दी ही घिर रहें हैं . सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी उन्हें अन्दर से कमज़ोर बना रही है .बाहर से थुल थुल .न इनकी हड्डियां मजबूत हैं न पेशियाँ .रोग रोधी तंत्र कमज़ोर पड़ रहा है और इसीलिए मौसमी बीमारियों की चपेट में आते जा रहें हैं .
माहिरों के अनुसार खाने की गोलियों से नहीं बचपन से ही खुराक की तबदीली के साथ ही यह कमी बेशी दूर होगी .
खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा ,मगर ...
सन्दर्भ -सामिग्री :मुंबई फॉर किड्स /टाइम्स सिटी /हेल्थ एंड न्यूट्रीशन /दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया मुंबई ,दिसंबर २२,२०११,पेज २ .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
सेहत के नुश्खे
सेहत के नुश्खे
HEALTH TIPS
The fibre in french beans decreases the colon's re -absorption of cholesterol binding bile acids ,lowering cholesterol.
देखिए और जानिये सूक्ष्म पोषक पुष्टिकर तत्वों खाद्य रेशों ,विटामिनों और खनिजों का कमाल जो फराश बीन्स की फलियों में मौजूद रहतें हैं .ये तत्व खासकर रेशे हमारी आँतों द्वारा पित्त अम्लों के पुनर -अवशोषण (दोबारा ज़ज्बी ) को कम करतें हैं .यह बाइल एसिड्सही कोलेस्ट्रोल (खून में घुली चर्बी )से बंधकर कोलेस्ट्रोल के मौजूदा स्तर को कम करते हैं .
Strawberries are high in phenolic flavonoid phyto -chemicals which fight against cancer,aging ,inflammation and neurological diseases.
पादप रसायन (फाइटोकेमिस्ट्री )हमें बतलाती है पादपों से प्राप्त फिनोलिक फ्लावानोल (फ्लाव्नोइड )जैसे पादप रसायन जो स्त्राब्रीज़ में भरपूर होतें हैं एक तरफ कैंसर से मुकाबला करतें हैं दूसरी तरफ बुढापे को मुल्तवी रखतें हैं ,तरह तरह के रोग संक्रमणों तथा स्नायुविक रोगों से हमारी हिफाज़त करतें हैं .एंटी -ओक्सिदेंटों के तहत आतें हैं ये पादप रसायन .
Aubergine has potassium ,phosphorus ,folic acid ,calcium as well as beta-carotene.
देखिए बेंगन जी का कमाल :aubergine (BrE),Eggplant ,brinjal कहो या थाली का बेंगन गहरे रंग की यह तरकारी है बड़ी गुणी(बहुगुणा ).है .पता नहीं लोग क्यों मजाकिया लहजे में इसे बे -गुण भी कह देते हैं ,नाक भौं चढ़ा लेते हैं इसके नाम से ,ताना भी दते हैं बेंगन लेले .
ध्यान रहे गुणों की खान बैगन micro -nutrient पुष्टिकर तत्व पोटाशियम ,फोस्फोरस ,फोलिक एसिड तथा केल्शियम के अलावा बीटाकेरोटिन का भी खज़ाना है .गहरे रंग के फल और तरकारियाँ सूक्ष्म पुष्टिकर तत्वों से भरपूर हैं माने विटामिन ,खनिज ,और रेशे प्रचुर मात्रा में मुहैया करवातें हैं .
Turkey contains selenium which is essential for the healthy functioning of the thyroid gland and the immune system.(Turkey is a large bird that is often kept for its meat ,eaten specially at Christmas in Britain and at thanksgiving in the US
जी हाँ पीरु या टकि पुष्टिकर तत्व सेलिनियम की खान है .थायरोइड ग्रंथि के सुचारू आदर्श रूप काम करते रहने के लिए यह रामबाण है .अलावा इसके यह हमारे रोग रोधी तंत्र को भी मजबूती प्रदान करता है .

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

मुंबई की बाहों में पनपते बच्चे.

बच्चों की सेहत के लिए कैसी है मुंबई ?कैसी है मुंबई के बच्चों की सेहत? मुंबई की बाहों में पनपते बच्चे !कैसी है यह महानगरी बच्चों की सेहत के लिए ?हालाकि इस आशय के अध्ययन बहुत कम हुए हैं फिर भी निरंतर सिकुड़ते स्पेसऔर सीमित खुले आकाश तले खेलते पलते ये तमाम बच्चे अरक्षित क्या रोग प्रवण बने रहतें हैं यहाँ की गंधाती अपनी तात्विकता खोती हवा में तंग जगहों में सांस लेते बच्चे .यही राय एक मत से व्यक्त की है माहिरों ने .
यहाँ की हवा में सांस लेते बच्चों के लिए एस्मा(दमे ) के खतरे का वजन बढा हुआ रहता है . किस्म किस्म की प्रत्युर्जातमक प्रतिक्रियाओं ,एलार्जीज़ का जोखिम तमाम तरह के ऑटो -इम्यून -डिस -ऑर्डर्स का ख़तरा छाया रहता है .बालकों को लगने वाले रोग संक्रमणों के माहिर कोकिला बैन धीरुभाई अम्बानी अस्पताल के डॉ .तनु सिंघल कहतें हैं यहाँ की हवा में रचे बसे तमाम तरह के प्रदूषक तत्व तंग माहौल बढती हुई भीड़ बच्चों को रोगों के प्रति एक दम से अरक्षित एवं रोग प्रवण बना देती है .
श्वसन सम्बन्धी शिकायतों ,दमा ,मलेरिया ,वायरल फीवर (विषाणु जन्य बुखार )तथा उदर सम्बन्धी शिकायतें इन बच्चों को कभी भी घेर सकतीं हैं .मौसमी रोगों की मार के प्रति भी ये सबसे अरक्षित रहतें हैं .
वाडिया अस्पताल के एक बाल रोगों के माहिर के अनुसार इन रोगों की कुल हिस्सेदारी ४५% के पार चली जाती है जिनकी चपेट में मुंबई की बाहों में पलते बच्चे जब तब आते रहतें हैं .जितना तंग दायरा घर का है उतना ही यहाँ स्कूल के गलियारों का है .हर जगह ,जगह की तंगी .खुले मैदान कहाँ हैं मुंबई में ?
१००० बच्चों के लिए आदर्श रूप में चार एकड़ का खुला हरा भरा मैदान चाहिए और यहाँ उपलब्ध है मात्र ०.०३ एकड़ .यानी एक एकड़ को सौ भागों में तकसीम कर दो उसमे से कुल तीन भाग खुला हरा गलियारा चुन लो १००० नौनिहालों के लिए .
माहिरों के अनुसार अध्ययन इस बात का खुलासा करतें हैं इन हालातों में दमा जल्दी ही बच्चों को घेर सकता है .जो आगे चलके ५-१०%के लिए गंभीर रुख इख्तियार कर लेता है .माहिरों की माँ बाप को यही सलाह है बचावी उपाय के बतौर बच्चों की जीवन शैली में बदलाव लाया जाए .खान पान की स्वास्थ्य प्रद आदतें डाली जाएं .माँ -बाप खुद एक आदर्श मोडल बनें .
हालिया सुर्खी में आये रोगों की चपेट में जिनमे स्वाइन फ्ल्युसे लेकर HAND FOOT AND MOUTH DISEASE के अलावा किस्म किस्म की दवाओं ( बहु -दवाओं )से बेअसर बनी रहने वाली तपेदिक भी शरीक है मलेरिया और डेंगू भी अध्ययनों के अनुसार मुंबई के बच्चे ही ज्यादा आयें हैं .
जसलोक अस्पताल एवं शोध केंद्र में रोग संक्रमणों के माहिरडॉ .ॐ श्रीवास्तव बाली उम्र में बच्चों के इन रोगों की चपेट में निरंतर आते रहने को उनके विकास के लिए बेहद खराब मानते हैं .बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है इन रोग संक्रमणों का .
लेकिन पी डी हिंदुजा अस्पताल ,माहिम में बालरोगों के माहिर इस स्थिति के लिए सारा दोष पर्यावरण का नहीं मानते .आखिर क्यों बच्चे और किशोर किशोरियां पुष्टिकर तत्वों की कमी से लगातार ग्रस्त देखे जा रहें हैं ?रिकेट्स की चपेट में आरहें हैं ?
बच्चों को सूर्य स्नान नसीब ही नहीं होता है .धूप खाने को नहीं मिलती है .बच्चे एक और छोर पर वातानुकूलित घरों से बाहर निकलते हैं वातुकूलित कारों में सवार हो जातें हैं .वातुनुकूलित स्कूल कालिजों में पढतें हैं .इसीलिए ४-५ साल के बच्चे भी गंभीर रूप से विटामिन -डी की कमी की चपेट में आरहें हैं .अब से एक दशक पहले ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता था .न ऐसा किसी ने देखा सुना था .
बालकों के मूत्र सम्बन्धी रोगों के माहिर डॉ .ए के सिंघल कहतें हैं एक छोर पर कसरत की कमी दूसरे पर पुष्टिकर भोजन की अनदेखी बच्चों में भी गुर्दे की पथरी को पनपा रहा है .जीवन शैली में बदलावों की फौरी ज़रुरत है .
ram ram bhai !ram ram bhai !
bhai

शुक्रवार, २३ दिसम्बर २०११
खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा ,मगर ...
खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा अट्रेक्तिव ,बोनी आपके शब्दों में .आप सोचतें हैं बस थोड़ा सा तौल कम करले अपनी स्लिम डाउन हो जाए लेकिन आपका ओवर वेट बच्चा पुष्टिकार तत्वों का अभाव झेल रहा हो सकता है .माइक्रोन्युत्रियेंट्स की कमी की वजह से उसकी केलोरीज़ खर्ची क्षमता दोषपूर्ण हो सकती है .ऐसे में चर्बी को ठिकाने लगाना नामुमकिन हो जाता है .
With a flawed metabolism burning of fat becomes impossible .
गोलू होना गोल मटोल होना प्लंप फेस होना पोषण की निशानी हो यह कतई ज़रूरी नहीं है .
ये हाल है मुंबई के बच्चों का :
भारत के नौनिहालों में ओबेसिटी घर बना रही है .मोटापे का यह रोग तेज़ी से फ़ैल रहा है .एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट के माहिरों द्वारा संपन्न तथा ब्रितानी विज्ञान पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार मुंबई के मदरसों में पढने वाले बच्चों में से १४%तौल में ज्यादा वजनी हैं या फिर ओबेसी हैं .
दोष पूर्ण खान पान और घर घुस्सू बने रहना बैठे ठाले रहना इसकी बड़ी वजह बन रहा है .
दोषपूर्ण खान पान रहनी सहनी जीवन शैली के चलते मुंबई के ६०%बच्चे आज एक दम से ज़रूरी पोषक तत्वों (माइक्रोन्युत्रियेंट्स )की कमीबेशी झेल रहें हैं .इसी बरस १९८ पोषण विज्ञान के माहिरों और खुराक विज्ञानियों ने १२०० रोगियों के आंकड़े जुटाए थे जिनमे नौनिहाल भी थे .पता चला इनमे से ८१%लौह तत्वों की कमी से ग्रस्त थे .१५%में विटामिन कमी बेशी तथा ३%में जिंक तत्व की कमी पाई गई .
माहिरों के अनुसार इस सबकी वजह जिंक ,मैंगनीज़ तथा कॉपर जैसे सूक्ष्म पुष्टिकर तत्वों की खुराक में कमी बन रही है .शरीर की हारमोन प्रणाली तथा पाचन तंत्र को ठीक ठीक तरीके से कायम रखने में इन माइक्रोन्युत्रियेंट्स का बड़ा हाथ रहता है .
विटामिन -डी ,विटामिन -बी १२ की कमी कैंसर समूह से लेकर अवसाद तक तमाम तरह के रोगों की वजह बनती है .कामकाजी महिलाओं को बराबर देखना चाहिए बच्चों के टिफिन में ये तत्व हैं या नहीं .
मुंबई में इसकी एक बड़ी वजह जंक फ़ूड बन रहा है .एक तरफ खुराक में मेक्रोन्युत्रियेंट्स वसा कार्बोहाइड्रेट्स ज्यादा से ज्यादा जगह बना रहें हैं साल्ट बढ़ रहा है दूसरी तरफ विटामिन और खनिज तथा खाद्य रेशे (सूक्ष्म पुष्टिकर तत्व )कमतर क्या नदारद ही हो रहें हैं .
Indian Dietician Association की डॉ शिल्पा जोशी के अनुसार मुंबई के बच्चों के साथ यही हो रहा है .
जानिएगा :
ताज़े फलों और तरकारियों में माइक्रोन्युत्रियेंट्स (विटामिन ,खनिज और रेशों )का डेरा रहता है .लेकिन क्योंकि इनकी भंडारण अवधि कम होती है इसलिए शहरी जलपान (अर्बन स्नैक्स )में ये जगह नहीं बना पा रहीं हैं .बच्चों के टिफिन में पैक्ड फूड्स जगह बना रहें हैं .कामकाजी महिलाएं इसकी तस्दीक कर रहीं हैं .मान समझ रहीं हैं यह सब वक्त की तंगी से हो रहा है .
माहिरों की सबसे बड़ी चिंता इस दौर में यही है शहरी बच्चे विटामिन बी -१२ और बी -३ से दूर जा रहें हैं .बालों का उम्र से पहले झड़ना सफ़ेद होना चमड़ी की बढती शिकायतों के पीछे तमाम तरह के दर्दों से रु -बा -रु होते रहने के पीछे कुलमिलाकर इन्हीं पुष्टिकर तत्वों की कमी का हाथ रहा है .
जानिएगा :
जंक फ़ूड लदा हुआ है साल्ट ,सुगर और ट्रांस -फेट्स (ट्रांस -फेटि -एसिड्स से कथित हाइड्रोजनीकृत वानस्पतिक तेलों से).डिनर से पहले मुंबई के बच्चे ये लेने से नहीं चूक रहें हैं .इसीलिए मधुमेह से लेकर दिल की बीमारियों से भी जल्दी ही घिर रहें हैं . सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी उन्हें अन्दर से कमज़ोर बना रही है .बाहर से थुल थुल .न इनकी हड्डियां मजबूत हैं न पेशियाँ .रोग रोधी तंत्र कमज़ोर पड़ रहा है और इसीलिए मौसमी बीमारियों की चपेट में आते जा रहें हैं .
माहिरों के अनुसार खाने की गोलियों से नहीं बचपन से ही खुराक की तबदीली के साथ ही यह कमी बेशी दूर होगी .
खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा ,मगर ...
सन्दर्भ -सामिग्री :मुंबई फॉर किड्स /टाइम्स सिटी /हेल्थ एंड न्यूट्रीशन /दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया मुंबई ,दिसंबर २२,२०११,पेज २ .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
सेहत के नुश्खे
सेहत के नुश्खे
HEALTH TIPS
The fibre in french beans decreases the colon's re -absorption of cholesterol binding bile acids ,lowering cholesterol.
देखिए और जानिये सूक्ष्म पोषक पुष्टिकर तत्वों खाद्य रेशों ,विटामिनों और खनिजों का कमाल जो फराश बीन्स की फलियों में मौजूद रहतें हैं .ये तत्व खासकर रेशे हमारी आँतों द्वारा पित्त अम्लों के पुनर -अवशोषण (दोबारा ज़ज्बी ) को कम करतें हैं .यह बाइल एसिड्सही कोलेस्ट्रोल (खून में घुली चर्बी )से बंधकर कोलेस्ट्रोल के मौजूदा स्तर को कम करते हैं .
Strawberries are high in phenolic flavonoid phyto -chemicals which fight against cancer,aging ,inflammation and neurological diseases.
पादप रसायन (फाइटोकेमिस्ट्री )हमें बतलाती है पादपों से प्राप्त फिनोलिक फ्लावानोल (फ्लाव्नोइड )जैसे पादप रसायन जो स्त्राब्रीज़ में भरपूर होतें हैं एक तरफ कैंसर से मुकाबला करतें हैं दूसरी तरफ बुढापे को मुल्तवी रखतें हैं ,तरह तरह के रोग संक्रमणों तथा स्नायुविक रोगों से हमारी हिफाज़त करतें हैं .एंटी -ओक्सिदेंटों के तहत आतें हैं ये पादप रसायन .
Aubergine has potassium ,phosphorus ,folic acid ,calcium as well as beta-carotene.
देखिए बेंगन जी का कमाल :aubergine (BrE),Eggplant ,brinjal कहो या थाली का बेंगन गहरे रंग की यह तरकारी है बड़ी गुणी(बहुगुणा ).है .पता नहीं लोग क्यों मजाकिया लहजे में इसे बे -गुण भी कह देते हैं ,नाक भौं चढ़ा लेते हैं इसके नाम से ,ताना भी दते हैं बेंगन लेले .
ध्यान रहे गुणों की खान बैगन micro -nutrient पुष्टिकर तत्व पोटाशियम ,फोस्फोरस ,फोलिक एसिड तथा केल्शियम के अलावा बीटाकेरोटिन का भी खज़ाना है .गहरे रंग के फल और तरकारियाँ सूक्ष्म पुष्टिकर तत्वों से भरपूर हैं माने विटामिन ,खनिज ,और रेशे प्रचुर मात्रा में मुहैया करवातें हैं .
Turkey contains selenium which is essential for the healthy functioning of the thyroid gland and the immune system.(Turkey is a large bird that is often kept for its meat ,eaten specially at Christmas in Britain and at thanksgiving in the US
जी हाँ पीरु या टकि पुष्टिकर तत्व सेलिनियम की खान है .थायरोइड ग्रंथि के सुचारू आदर्श रूप काम करते रहने के लिए यह रामबाण है .अलावा इसके यह हमारे रोग रोधी तंत्र को भी मजबूती प्रदान करता है .

खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा ,मगर ...

खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा अट्रेक्तिव ,बोनी आपके शब्दों में .आप सोचतें हैं बस थोड़ा सा तौल कम करले अपनी स्लिम डाउन हो जाए लेकिन आपका ओवर वेट बच्चा पुष्टिकार तत्वों का अभाव झेल रहा हो सकता है .माइक्रोन्युत्रियेंट्स की कमी की वजह से उसकी केलोरीज़ खर्ची क्षमता दोषपूर्ण हो सकती है .ऐसे में चर्बी को ठिकाने लगाना नामुमकिन हो जाता है .
With a flawed metabolism burning of fat becomes impossible .
गोलू होना गोल मटोल होना प्लंप फेस होना पोषण की निशानी हो यह कतई ज़रूरी नहीं है .
ये हाल है मुंबई के बच्चों का :
भारत के नौनिहालों में ओबेसिटी घर बना रही है .मोटापे का यह रोग तेज़ी से फ़ैल रहा है .एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट के माहिरों द्वारा संपन्न तथा ब्रितानी विज्ञान पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार मुंबई के मदरसों में पढने वाले बच्चों में से १४%तौल में ज्यादा वजनी हैं या फिर ओबेसी हैं .
दोष पूर्ण खान पान और घर घुस्सू बने रहना बैठे ठाले रहना इसकी बड़ी वजह बन रहा है .
दोषपूर्ण खान पान रहनी सहनी जीवन शैली के चलते मुंबई के ६०%बच्चे आज एक दम से ज़रूरी पोषक तत्वों (माइक्रोन्युत्रियेंट्स )की कमीबेशी झेल रहें हैं .इसी बरस १९८ पोषण विज्ञान के माहिरों और खुराक विज्ञानियों ने १२०० रोगियों के आंकड़े जुटाए थे जिनमे नौनिहाल भी थे .पता चला इनमे से ८१%लौह तत्वों की कमी से ग्रस्त थे .१५%में विटामिन कमी बेशी तथा ३%में जिंक तत्व की कमी पाई गई .
माहिरों के अनुसार इस सबकी वजह जिंक ,मैंगनीज़ तथा कॉपर जैसे सूक्ष्म पुष्टिकर तत्वों की खुराक में कमी बन रही है .शरीर की हारमोन प्रणाली तथा पाचन तंत्र को ठीक ठीक तरीके से कायम रखने में इन माइक्रोन्युत्रियेंट्स का बड़ा हाथ रहता है .
विटामिन -डी ,विटामिन -बी १२ की कमी कैंसर समूह से लेकर अवसाद तक तमाम तरह के रोगों की वजह बनती है .कामकाजी महिलाओं को बराबर देखना चाहिए बच्चों के टिफिन में ये तत्व हैं या नहीं .
मुंबई में इसकी एक बड़ी वजह जंक फ़ूड बन रहा है .एक तरफ खुराक में मेक्रोन्युत्रियेंट्स वसा कार्बोहाइड्रेट्स ज्यादा से ज्यादा जगह बना रहें हैं साल्ट बढ़ रहा है दूसरी तरफ विटामिन और खनिज तथा खाद्य रेशे (सूक्ष्म पुष्टिकर तत्व )कमतर क्या नदारद ही हो रहें हैं .
Indian Dietician Association की डॉ शिल्पा जोशी के अनुसार मुंबई के बच्चों के साथ यही हो रहा है .
जानिएगा :
ताज़े फलों और तरकारियों में माइक्रोन्युत्रियेंट्स (विटामिन ,खनिज और रेशों )का डेरा रहता है .लेकिन क्योंकि इनकी भंडारण अवधि कम होती है इसलिए शहरी जलपान (अर्बन स्नैक्स )में ये जगह नहीं बना पा रहीं हैं .बच्चों के टिफिन में पैक्ड फूड्स जगह बना रहें हैं .कामकाजी महिलाएं इसकी तस्दीक कर रहीं हैं .मान समझ रहीं हैं यह सब वक्त की तंगी से हो रहा है .
माहिरों की सबसे बड़ी चिंता इस दौर में यही है शहरी बच्चे विटामिन बी -१२ और बी -३ से दूर जा रहें हैं .बालों का उम्र से पहले झड़ना सफ़ेद होना चमड़ी की बढती शिकायतों के पीछे तमाम तरह के दर्दों से रु -बा -रु होते रहने के पीछे कुलमिलाकर इन्हीं पुष्टिकर तत्वों की कमी का हाथ रहा है .
जानिएगा :
जंक फ़ूड लदा हुआ है साल्ट ,सुगर और ट्रांस -फेट्स (ट्रांस -फेटि -एसिड्स से कथित हाइड्रोजनीकृत वानस्पतिक तेलों से).डिनर से पहले मुंबई के बच्चे ये लेने से नहीं चूक रहें हैं .इसीलिए मधुमेह से लेकर दिल की बीमारियों से भी जल्दी ही घिर रहें हैं . सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी उन्हें अन्दर से कमज़ोर बना रही है .बाहर से थुल थुल .न इनकी हड्डियां मजबूत हैं न पेशियाँ .रोग रोधी तंत्र कमज़ोर पड़ रहा है और इसीलिए मौसमी बीमारियों की चपेट में आते जा रहें हैं .
माहिरों के अनुसार खाने की गोलियों से नहीं बचपन से ही खुराक की तबदीली के साथ ही यह कमी बेशी दूर होगी .
खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा ,मगर ...
सन्दर्भ -सामिग्री :मुंबई फॉर किड्स /टाइम्स सिटी /हेल्थ एंड न्यूट्रीशन /दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया मुंबई ,दिसंबर २२,२०११,पेज २ .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
सेहत के नुश्खे
सेहत के नुश्खे
HEALTH TIPS
The fibre in french beans decreases the colon's re -absorption of cholesterol binding bile acids ,lowering cholesterol.
देखिए और जानिये सूक्ष्म पोषक पुष्टिकर तत्वों खाद्य रेशों ,विटामिनों और खनिजों का कमाल जो फराश बीन्स की फलियों में मौजूद रहतें हैं .ये तत्व खासकर रेशे हमारी आँतों द्वारा पित्त अम्लों के पुनर -अवशोषण (दोबारा ज़ज्बी ) को कम करतें हैं .यह बाइल एसिड्सही कोलेस्ट्रोल (खून में घुली चर्बी )से बंधकर कोलेस्ट्रोल के मौजूदा स्तर को कम करते हैं .
Strawberries are high in phenolic flavonoid phyto -chemicals which fight against cancer,aging ,inflammation and neurological diseases.
पादप रसायन (फाइटोकेमिस्ट्री )हमें बतलाती है पादपों से प्राप्त फिनोलिक फ्लावानोल (फ्लाव्नोइड )जैसे पादप रसायन जो स्त्राब्रीज़ में भरपूर होतें हैं एक तरफ कैंसर से मुकाबला करतें हैं दूसरी तरफ बुढापे को मुल्तवी रखतें हैं ,तरह तरह के रोग संक्रमणों तथा स्नायुविक रोगों से हमारी हिफाज़त करतें हैं .एंटी -ओक्सिदेंटों के तहत आतें हैं ये पादप रसायन .
Aubergine has potassium ,phosphorus ,folic acid ,calcium as well as beta-carotene.
देखिए बेंगन जी का कमाल :aubergine (BrE),Eggplant ,brinjal कहो या थाली का बेंगन गहरे रंग की यह तरकारी है बड़ी गुणी(बहुगुणा ).है .पता नहीं लोग क्यों मजाकिया लहजे में इसे बे -गुण भी कह देते हैं ,नाक भौं चढ़ा लेते हैं इसके नाम से ,ताना भी दते हैं बेंगन लेले .
ध्यान रहे गुणों की खान बैगन micro -nutrient पुष्टिकर तत्व पोटाशियम ,फोस्फोरस ,फोलिक एसिड तथा केल्शियम के अलावा बीटाकेरोटिन का भी खज़ाना है .गहरे रंग के फल और तरकारियाँ सूक्ष्म पुष्टिकर तत्वों से भरपूर हैं माने विटामिन ,खनिज ,और रेशे प्रचुर मात्रा में मुहैया करवातें हैं .
Turkey contains selenium which is essential for the healthy functioning of the thyroid gland and the immune system.(Turkey is a large bird that is often kept for its meat ,eaten specially at Christmas in Britain and at thanksgiving in the US
जी हाँ पीरु या टकि पुष्टिकर तत्व सेलिनियम की खान है .थायरोइड ग्रंथि के सुचारू आदर्श रूप काम करते रहने के लिए यह रामबाण है .अलावा इसके यह हमारे रोग रोधी तंत्र को भी मजबूती प्रदान करता है .
अभी के लिए इतना ही इंतज़ार कीजिए -बच्चों की सेहत के लिए कैसी है मुंबई ?कैसी है मुंबई के बच्चों की सेहत?

सेहत के नुश्खे

सेहत के नुश्खे
HEALTH TIPS
The fibre in french beans decreases the colon's re -absorption of cholesterol binding bile acids ,lowering cholesterol.
देखिए और जानिये सूक्ष्म पोषक पुष्टिकर तत्वों खाद्य रेशों ,विटामिनों और खनिजों का कमाल जो फराश बीन्स की फलियों में मौजूद रहतें हैं .ये तत्व खासकर रेशे हमारी आँतों द्वारा पित्त अम्लों के पुनर -अवशोषण (दोबारा ज़ज्बी ) को कम करतें हैं .यह बाइल एसिड्सही कोलेस्ट्रोल (खून में घुली चर्बी )से बंधकर कोलेस्ट्रोल के मौजूदा स्तर को कम करते हैं .
Strawberries are high in phenolic flavonoid phyto -chemicals which fight against cancer,aging ,inflammation and neurological diseases.
पादप रसायन (फाइटोकेमिस्ट्री )हमें बतलाती है पादपों से प्राप्त फिनोलिक फ्लावानोल (फ्लाव्नोइड )जैसे पादप रसायन जो स्त्राब्रीज़ में भरपूर होतें हैं एक तरफ कैंसर से मुकाबला करतें हैं दूसरी तरफ बुढापे को मुल्तवी रखतें हैं ,तरह तरह के रोग संक्रमणों तथा स्नायुविक रोगों से हमारी हिफाज़त करतें हैं .एंटी -ओक्सिदेंटों के तहत आतें हैं ये पादप रसायन .
Aubergine has potassium ,phosphorus ,folic acid ,calcium as well as beta-carotene.
देखिए बेंगन जी का कमाल :aubergine (BrE),Eggplant ,brinjal कहो या थाली का बेंगन गहरे रंग की यह तरकारी है बड़ी गुणी(बहुगुणा ).है .पता नहीं लोग क्यों मजाकिया लहजे में इसे बे -गुण भी कह देते हैं ,नाक भौं चढ़ा लेते हैं इसके नाम से ,ताना भी दते हैं बेंगन लेले .
ध्यान रहे गुणों की खान बैगन micro -nutrient पुष्टिकर तत्व पोटाशियम ,फोस्फोरस ,फोलिक एसिड तथा केल्शियम के अलावा बीटाकेरोटिन का भी खज़ाना है .गहरे रंग के फल और तरकारियाँ सूक्ष्म पुष्टिकर तत्वों से भरपूर हैं माने विटामिन ,खनिज ,और रेशे प्रचुर मात्रा में मुहैया करवातें हैं .
Turkey contains selenium which is essential for the healthy functioning of the thyroid gland and the immune system.(Turkey is a large bird that is often kept for its meat ,eaten specially at Christmas in Britain and at thanksgiving in the US
जी हाँ पीरु या टकि पुष्टिकर तत्व सेलिनियम की खान है .थायरोइड ग्रंथि के सुचारू आदर्श रूप काम करते रहने के लिए यह रामबाण है .अलावा इसके यह हमारे रोग रोधी तंत्र को भी मजबूती प्रदान करता है .
अभी के लिए इतना ही इंतज़ार कीजिए -बच्चों की सेहत के लिए कैसी है मुंबई ?कैसी है मुंबई के बच्चों की सेहत?

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

उपयोगी है वैज्ञानिक पद्धति लेकिन मानवीय व्यवहार और सरोकारों पर इसे लागू करना विचार और हमारी आस्था और विश्वासों को रोबोटीय बनाने के तुल्य है .

उपयोगी है वैज्ञानिक पद्धति लेकिन मानवीय व्यवहार और सरोकारों पर इसे लागू करना विचार और हमारी आस्था और विश्वासों को रोबोटीय बनाने के तुल्य है .
(The Greatest Mystery/The scientific method has its uses ,but it;s a mistake to apply it to human behaviour/THE TIMES OF IDEAS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC 19,2011/P16).
ऐसा प्रतीत होता है साइंसदानों ने हमारी सृष्टि के वजूद की इसके होने की बुनियादी वजह ढूंढ ली है . सृष्टि के उद्भव उद्गम और विकास के अध्ययन के माहिर एक अमरीकी Cosmologist की इस टिपण्णी को यदि कान दें यदि हिग्स बोसोंन का होना वाकई प्रमाणित हुआ है तब यह मानवीय मेधा की अब तक की सबसे बड़ी विजय कही जाएगी .
अव -परमाणुविक भौतिक शोध की सबसे बड़ी प्रयोगशाला जो एक भूमिगत रिंग के रूप में काम कर रही है लगता है अपने अन्वेषणों में सृष्टि के मूलभूत रहस्य बुनियादी स्वभाव एवं प्रकृति को बूझने के करीब पहुँच गई है .जिनेवा स्थित योरोपीय न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर CERN के तत्ववाधान में काम कर रहा है यह विश्व का सबसे गुरुतर कण त्वरक एटम स्मेशर Large Hadron Collider (LHC). जिसमे हालिया प्रयोग संपन्न हुएँ हैं .ऊर्जावान कणों की आमने सामने से टक्कर कराके .
यथा संभव सूत्रित किया है साइंसदानों ने हिग्स के होने को .यथा संभव इसकी झलक देखी है .तेजीसे भागते चोर की लंगोटी की तरह .
नतीजे भौतिकी विदों की दो एक दूसरे से सर्वथा स्वतंत्र रूप से काम करने वाली टीमों ने प्रस्तुत किए हैं .वैज्ञानिक पद्धति स्वतन्त्र अन्वेषणों पर उनकी पुनरावृत्ति परपुनर्प्राप्ति पर ही यकीन रखती है .सहज स्वीकार्य कुछ भी नहीं है इस पद्धति में .यहाँ तो आत्मा अगर है तो लाओ उसे प्रयोगशाला में .हिग्स बोसोंन है तो कहाँ है दिखाओ ?कैसा होता है यह God Particle?
दरअसल साइंसदानों के लिए हिग्स बोसोंन होली ग्रेल ऑफ़ फिजिक्स इसीलिए रहा है यह एक अंतर -विरोध ,विरोधी विशेषताओं वाली स्थिति छिपाए है .आये देखें कैसे ?
जैसे जैसे हम भौतिक पदार्थ रूप संसार की तह तक जातें हैं अव -परमाण्विक कणों की द्रव्य की सूक्षम्तम स्तर पर पड़ताल करतें हैं संरचना बांचते हैं इसके अवयवों की शिनाख्त करतें हैं विखंडित करते चलते हैं इन्हें सूक्ष्म से सूक्ष्मतर संरचनाओं में .हमारी पकड़ इस पर ढीली होती जाती है .हम ढूंढते ही रह जातें हैं खाली हाथ .हाथ कुछ नहीं आता .
आधुनिक भौतिकी के अनुसार पदार्थ ऐसी सूक्ष्म कणिकाओं का रचाव है जिसकी लीलाएं अन्तरिक्ष में ही देखी जातीं हैं .वह भी कई मर्तबा अल्पकालिक से भी अल्पकालिक .यह उतना ही रिक्त अन्तरिक्ष रहता है और उतना ही कण रूपा .यानी है भी नहीं भी है .रिक्त भी भरा भरा भी .
और जब हम इन कणों का कुल तौल लेतें हैं तब यह उस परमाणु से कम पाया जाता है जिसके ये घटक हैं अवयव हैं अव -परमाणुविक कण हैं .अब सवाल यह पैदा होता है किसी भी वस्तु या कण का द्रव्यमान आता कहाँ से है ?कैसे पैदा हुआ है ?वजह क्या रही है इसके पैदा होने की .सृष्टि को उसका बुनियादी स्वरूप प्रदान कौन कर रहा है ?
हिग्स बोसोंन का नामकरण आशिंक रूप भारतीय साइंसदान सत्येन्द्र नाथ वासु के योगदान पर आधारित है जिन्होनें क्वांटम भौतिकी के तहत अनेकार्थी कणों की चर्चा की जो एक बल रूप भी थे कण रूपा भी .ब्रितानीं विज्ञानी पीटर हिग्स ने कहा -जिसे हम रिक्त अन्तरिक्ष बूझते हैं वहां ऐसा कुछ रहस्य पूर्ण व्याप्त है एक ऐसा परिक्षेत्र फील्ड व्याप्त है जो पदार्थ को परे धकेलता है .पदार्थ के चारों और यह क्षेत्र (फील्ड )संघनित हो जाता है ,कंडेंस(condense ) हो जाता है पदार्थ पर हर तरफ से .और अनंतर यही पदार्थ के द्रव्यमान के रूप में प्रगट होता है .यह फील्ड ही कणों को द्रव्यमान मुहैया करवाता है .इस द्रव्यमान प्रदाई प्रभाव के बिना सृष्टि का कोई मतलब नहीं है .कुछ नहीं बचेगा इसकी गैर -मौजूदगी में .
वैज्ञानिक पद्धति पहले किसी समस्या का रेखांकन करती है फिर उसके समाधान के लिए सूत्रण प्रस्तुत करती है .अब स्वतंत रूप इसकी पुष्टि के लिए प्रायोगिक प्रमाण जुटाए जातें हैं विभिन्न स्रोतों से प्रयोगों से .आंकड़े जुटाकर प्रस्तावित सिद्धांत के आलोक में उनकी विवेचना की जाती है .
लेकिन मानवीय स्वभाव पर इन तमाम प्रस्तावनाओं तरीकों को लागू करना विचार और मानवीय मेधा को यंत्रों के चंद उपकरणों के हवाले करना है .मानवीय सरोकारों पर इस वैज्ञानिक पद्धति का आरोहण नहीं किया जा सकता है .
हमारी रचनात्मकता भाषिक प्रवीणता ,वाक्पटुता ,धार्मिक आस्थाओं का निकष चंद सांखिकीय तरीकों को बनाया जाना .अर्थ शाश्त्र को भी अर्थ नीति को भी इसी तराजू पर तौलना अर्थ का अनर्थ कर देगा .इस दौर के चंद अर्थ शाष्त्री समाज वेत्ता यही कर रहें हैं .जबकि वैज्ञानिक खुलेपन के लिए वह राजी नहीं है .
विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धतियाँ आग्रह मूलक नहीं हैं .विज्ञानी हिग्स बोसोंन के देखे जाने के बारे में भी सौ फीसद सटीक कुछ नहीं कह रहें हैं .इसकी गैर मौजूदगी स्वीकार करने को भी राजी हैं .वह तो प्रयोग और निरंतर प्रयोग और पुष्टि की ही बात करतें हैं .इसीलिए यथा संभव होना देखा जाना ही मानतें हैं हिग्स बोसोंन का .सौ फीसद नहीं .
धर्म और नीति शाश्त्र को केवल वैकासिक नज़रिए से नहीं देखा जा सकता .न ही हमारा दिमाग (मन ,बुद्धि ,संस्कार की तिकड़ी )मात्र एक जैविक तंत्र के रूप में देखा समझा जाना चाहिए .और विचार मात्र न्युरोलोजिकल इमानेसंज़ नहीं हैं ,मात्र न्युरोंस का खेल और उत्सर्जन विसर्जन नहीं हैं .
प्रकृति के रहस्यों से मानव प्रागैतिहासिक काल से ही विस्मित होता आया है .डरा है भागा है .विकास क्रम में वैज्ञानिक पद्धति की खोज उसने सृष्टि को बूझने के लिए ही की .ताकि मानव निर्भय होकर काम कर सके प्रकृति से भय न खाए .
अब हम इसी स्वतंत्रता को कुदरत के हवाले करने को आतुर हैं .फिर तो स्वतन्त्र रूप कुछ भी करने की गुंजाइश ही नहीं रहेगी .हमारा हर काम कुदरत की स्कीम से बंधा माना जाएगा .एक्शन वही जो कुदरत करवाए वाले फलसफे की और लौट चलेंगें हम अपनी नादानी में .
केवल विज्ञान ही किसी फिनोमिना की व्याख्या कर सकता है बूझ सकता है हर शह को यह एक किस्म का विज्ञानवाद ही कहलाएगा .विज्ञानिक पद्धति से ही हर चीज़ को समझा जा सकता है ऐसा मानाजाना ,मानना एक प्रकार का हट ही है सनक है ओबसेशन है .
अर्थ शाष्त्री मोडेलिंग ,मार्किट एफिशिएंसी को ही अंतिम मान चुके हैं .यह अपने आपको औरों से ऊपर मानने बतलाने की बेहूदा जिद है .टेक्नोक्रेट्स अर्थ शाष्त्री यही कर रहें हैं .आर्थिक मन्दी के लिए यही कुसूरवार हैं .
ज़रुरत है बुनियादी अवधारणों की पड़ताल करना ताकि आर्थिक निदर्शों को जांचा जा सके परखा जा सके .आर्थिक मन्दी से बाहर कैसे आया जाए इस बाबत भी इनमे एक राय नहीं बन रहीं हैं कुछ संयम की बात करतें हैं मितव्यय की बात करतें हैं तो कुछ खर्ची बढाने की .आर्थिक साम्राज्य को फैलाने की .
उन्हें कण भौतिकी के माहिरों से कुछ सीखना चाहिए जो हिग्स बोसोंन के होने न होने दोनों के लिए तैयार हैं .विज्ञान वाद से ग्रस्त नहीं हैं .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI!RAM RAM BHAI!
नुश्खे सेहत के :
HEALTH TIPS :
Oats nourish and soothe the nervous system ,and ease depression ,anxiety and fatigue.
जै युक्त नाश्ता (ब्रेकफास्ट सीरियल्स,ओट्स पूरीज ) न सिर्फ केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र को पोषण प्रदान करता है राहत दिलवाता है किसी भी प्रकार के मानसिक या शारीरिक विक्षोभ से ,बे -चैनी ,अवसाद और थकेमांदे पन से .
Good fats are essential for production of hormones and neurotransmitters in the brain .This is why low -fat diets are depressing .
अखरोट बादाम आम तौर पर काष्ठ फल ,मूंगफली ,एवकादो (avocado ,नाशपाती जैसा एक फल जिसमे बीच में गुठली होती है ,a tropical fruit that is wider at one end than the other ,with a hard green skin and a large seed.ऐसी चिकनाई से भरपूर है यह फल जो दिल की दोश्त है ),पीकन (pecan)आदि सेहत के मुफीद चिकनाई मुहैया करवाते हैं .
सेलिनियम और निकिल युक्त खुराक अग्नाशय कैंसर (pancreatic cancer) के खतरे के वजन को कम रखती है .खुराक बदली करके अग्नाशय कैंसर से बचाव मुमकिन है .
Diet change can cut cancer risk :
High levels of trace elements selenium and nicklein your diet may help cut the risk of deadly pancreatic cancer .

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

लो भैया जी नुश्खे ही नुश्खेसेहत के .

लो भैया जी नुश्खे ही नुश्खेसेहत के .
HEALTH TIPS:
Kiwi Fruit is a rich source of omega -3fatty acid that helps cure depression .
जी हाँ किवी को भी एक खट्टे फल के रूप में आजमाइए जो ओमेगा -३ वसीय अम्लों से भरपूर है अवसाद को दूर भगाता है .अलावा इसके भाई साहब यह विटामिन -सी का अव्वल स्रोत है जिसमे आंवले से भी पांच गुना ज्यादा विटामिन -सी मौजूद है .और हाँ पकने पर किवी मिठास से भर जाता है .मुलायम हो जाता है चीकू सा .
Cabbage contains vitamin C and folic acid ,which protects you from stress ,infection and heart disease and many types of cancers.
जी हाँ बंद गोभी विटामिन सी और फोलिक एसिड से भरपूर है .हर चंद यह आपका बचाव करता है तनाव से संक्रमण से और हृद रोग से कैंसर रोग समूहों से .अलावा इसके यह विटामिन -ई के लिए भी जाना जाता है जो जीवन क्षम है प्रजनन क्षमता के लिए अच्छा है .
तैलीय चमड़ी से बचाव के लिए :गुनगुने पानी में नीम्बू मिलाकर उससे चेहरा दिन में कई मर्तबा साफ़ कीजिए .जब भी पसीना आए स्वच्छ ठंडे जल से मुख धौ डालिए .
To get rid of oily skin ,wash your face with lemon juice diluted with warm water .
If you wish to lighten your skin tone ,rub a piece of apple on your face .
जी हाँ किन्नौर का हो या कुल्लू मनाली का या फिर कश्मीर का सेव आपकी चमड़ी के लिए भी अच्छा है इसका मुलायम गूदा धीरे धीरे चेहरे पर मलिए त्वचा में निखार आयेगा .कान्ति बढ़ेगी चेहरे की दमक बढ़ेगी .वोल्टेज बढेगा आपके चेहरे का .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI! RAM RAM BHAI ! RAM RAM BHAI !
DEC 20,2011.
मृत्यु का आलेख हैं ये प्रोटिनें.
(Protin in blood can help predict early death :Study/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC 17,2011,P17).
हमारे खून में दो ऐसे जैविक मारकर्स(BIOLOGICAL MARKERS) -CYSTATIN C,तथा BETA TRACE PROTIN की पड़ताल की गई है जिनकाहमारे खून में विद्यमान स्तर मृत्यु की प्रागुक्ति (भविष्य वाणी ,PROGNOSTIC INFORMATION )
सिद्ध हो सकता है .
हमारी किडनियों )(गुर्दों )की दशा ही यह इत्तल्ला दे सकती है आगे जीवन की संभावना कितनी है आकस्मिक मौत का ख़तरा कितना है .यह तब होता है जब गुर्दे अपना काम ठीक से अंजाम नहीं दे पाते .गुर्दों की दशा का बोध उनकी निथारने की क्षमता,और दर से (FILTRATION RATE )से पता चलता है .लेकिन यह कोई आसान काम नहीं है गुर्दों के फंक्शन का ठीक ठीक जायजा लेपाना ..इसीलिए खून में मौजूद एक प्रोटीन CREATININE के स्तर का जायजा लिया जाता है .
लेकिन अब इल्म हुआ है उल्लेखित दोनों प्रोटिने CYSTATIN C तथा BETA TRACE PROTIN गुर्दों के अलावा आदमी की सेहत के बारे में और भी कुछ कहतीं हैं जानतीं हैं .THE JOURNAL OF THE AMERICAN SOCIETY NEPHROLOGY ने इसे प्रकाशित किया है .
अध्ययन से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण TUFTS UNIVERSITY MEDICAL CENTRE के MARK SARNAK और NAVDEEP TANGRI एवं उनके साथियों ने किया है .इन्होनें गुर्दों के रोगों में खुराक में संशोधन के असर का अध्ययन किया था .
इस एवज ८१६ गुर्दों के मरीजों पर १६.६ बरसों तक नजर रखी गई .इसी दौरान इनदोनों MARKERS के स्तर का पता चला .
पता चला गुर्दों की निथारने की दर से सर्वथा स्वतंत्र रूप भी जिन मरीजों में CREATININE का स्तर ज्यादा था बेशक उनके किडनी फेलियोर की संभावना ज्यादा थी लेकिन मृत्यु का ख़तरा कम ही था .
जबकि जिन मरीजों में CYSTATIN C और BETA TRACE PROTIN का स्तर ऊंचा था उनके किडनी फेलियोर के अलावा मौत का ग्रास बनने का जोखिम भी ज्यादा था .
इसका मतलब यह हुआ कि CREATININE ,CYSTATIN C और BETA TRACE PROTIN गुर्दों के अलावा भी सेहत का हाल बयान करतें हैं ,जीवन मृत्यु का लेखा बांचतें हैं . लेकिन BETA TRACE PROTIN और CYSTATIN C बेहतर PROGNOSIS प्रस्तुत करतें हैं CREATININE के बरक्स .अच्छे भविष्य वक्ता हैं .

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

दैहिक मुद्राएं कर देतीं हैं झूठ का पर्दा फाश .

दैहिक मुद्राएं कर देतीं हैं झूठ का पर्दा फाश .
आज जब एक रिसर्च रिपोर्ट -
Liar,Liar :You can smell a lie from afar with 4 quich ways /THE TIMES OF INDIA,MUMBAI ,DEC15,2011/P17
का विस्तृत जायजा लिया समझा बूझा तब अचानक कविवर बिहारी की 'सतसई' का यह दोहा याद आ गया :
हरित बांस की बांसुरी ,मुरली धरी लुकाय ,सौंह दे ,भौहन हँसे ,दें कहे नत जाय .
गोपिकाएं कृष्ण की मुरली चुरा लुका लेती हैं उसे जतन से छिपा देतीं हैं .कृष्ण पूछते हैं मेरी मुरली तुम्हारे पास है ?तब सौगंध लेकर कहती हैं हमारे पास नहीं है लेकिन आँखों ही आँखों , भवों की पलकों में मुस्काती हैं .लेकिन लौटाने के लिए कहें तो कहती हैं हमारे पास कहाँ हैं .
अब लौटतें हैं उल्लेखित रिसर्च रिपोर्ट पर :
कैसे पकड़ा जाए झूठ ?दूर से ही झूठे का पता लग सकता है .दैहिक मुद्राओं के माहिर कहतें हैं एक नहीं दो नहीं चार चार ऐसे आसान तरीके हैं जिनसे झूठ बोलने वाला झूठ छिपाए नहीं छिपा सकता .पकड़ा जा सकता है .
(१)वह एकटक टकतकी लगाए आपकी तरफ अपलक देखता रहेगा .उसका व्यवहार बदला बदला असंगत होगा .
अनमेल विसंगत व्यवहार के अलावा झूठ से पर्दा उठाने वाली एक और चीज़ है. सत्य को उद्घाटित कर देती है, मुस्कान या फिर मुस्कान का गायब हो जाना .
अगर कोई अपना चेहरा छिपा रहा है हाथों से ढके है तब वह अपने अनजाने ही सब कुछ बता रहा है .उसकी अन -अवधानी रहस्य से पर्दा हटा जाती है .
दूसरे छोर पर ज़रुरत से ज्यादा मुस्कुराना जल्दी जल्दी मुस्काना असामान्य हालातों की ओर ही इशारा है .यह सच को छिपाने की ना -कामयाब कोशिश है .असली हंसी की बात ही कुछ और होती है .यह ओढ़ी हुई या खिसियानी हंसी से एक दम अलग होती है .इसमें व्यक्ति का मुखमंडल अलग आभा से मंडित हो उठता है .आँखों में चमक बढ़ जाती है .कपोल और भवें तीरकमान हो जातीं हैं .
फेक स्माइल तात्कालिक होती है .झलक दिखाके चली जाती है .इसीलिए कहा गया है खिसियानी हंसी .
कुल मिलाकर बदले बदले मेरे सरकार नजर आतें हैं .व्यवहार में ,ख़ास अंदाज़ में अंतर दर्शाता हुआ व्यक्ति कुछ छिपा रहा है .दर्पण होता है आदमी का चेहरा .सच कहा गया है :झूठ बोलने वाले के पाँव काँपते हैं .आइना झूओठ नहीं बोलता .
ram ram bhai !ram ram bhai !
दैहिक मुद्राएं कर देतीं हैं झूठ का पर्दा फाश .
HEALTH TIPS :Carrot blended with cucumber and spinach juices is a good remedy for migraine
गाज़र (विलायती या देसी ) के साथ खीरा और पालक का सत निकालकर पीजिए .आधा शीशी के पूरे सिर दर्द मीग्रेंन में आराम आयेगा .
सांस उखड़ने पर अदरक का अर्क शहद में मिलाकार थोड़ा थोड़ा करके चाटें दिन में कई मर्तबा .राहत मिलेगी .सांस के दौरे में थोड़ी सी .
If you have breathing problems ,take spoonful of ginger juice with honey twice a day .

सेहत के नुश्खे :

सेहत के नुश्खे :
BEAUTY TIPS:
To make the color stay longer ,put a bit of sugar all over your lips after applying lipstic.
लिपस्टिक को गहरे रचाने के लिए लिपस्टिक होंठों पर लगाने के बाद होंठों पर सब जगह थोड़ा शक्कर बुरक लें .
Blend yoghurt with fig to make a natural moisturiser .Apply on face and wash off after 15 minutes with warm water .
त्वचा की रुखाई शुष्कता कम करने के लिए हाज़िर है आप के लिए एक कुदरती क्रीम .बस थोड़ा सा दही लेकर उसमे अंजीर को घोट लीजिए .एक पेस्ट तैयार है .यही है आपकी कुदरती चिकनाई .

रविवार, 18 दिसंबर 2011

सेहत के नुश्खे .

Mix lemon juice in a cup of tea and drink the concoction to rapidly cure a headache.
जी हाँ नींबू की चाय एक दम से आराम पहुंचाती है सिर दर्द में .बस पानी उबालिए .
एक कप में थोड़ी सी पत्ती अपनी मन पसंद चाय की डालिए ऊपर से गरम पानी उड़ेल दीजिए .प्लेट में थोड़ी थोड़ी डालके पीजिए नीम्बू की बूँद स्वाद के आनुरूप टपका कर .चीनी मिलाइए चाहे शक्कर स्वादानुसार .
IF YOU SUFFER FROM CONSTIPATION ,EAT PAPAYA IN THE MORNING AS IT WORKS AS AN EXCELLENT LAXATIVE.
जी हाँ कब्जी तोड़ने के लिए नाश्ते में रोज़ पपीता लीजिए .मुलायम हो जाएगा पेट .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
क्या है हिग्स बोसोंन के होने ,न होने का मतलब ?
क्या है हिग्स बोसोंन के होने ,न होने का मतलब ?
(Holi Grail Of Higgs Hunters.Is humanity 's quest for the Higgs boson,dubbed as the "God particle ",about to end?)'Some may wonder ,What is the big deal?/THE TIMES OF IDEAS/THE TIMES OF INDIA MUMBAI ,DEC 16,2011,P20.
योरोपीय संघ की नाभिकीय शोध से जुड़े साइंसदानों की संस्था CERN ने इस आशय की घोषणा की है यथा संभव उन्होंने हिग्स बोसोंन की शिनाख्त कर ली है .जो अब तक भौतिकी शाश्त्र और इसके माहिरों की हाथ न आने वाली सबसे बड़ी चाहत बना रहा है ,holy grail of particle physics बना रहा है .तब क्या यह मान लिया जाए कि यह खोज समाप्त हो गई ?बेशक यह शिनाख्त एक दम से पुख्ता सौ फीसद सटीक और अकाट्य न भी हो फिर भी यह उत्सवी माहौल तो है ही .

तकरीबन चार दशकों तक भौतिकी के माहिर इस हाथ न आने वाली सोने की चिड़िया को ढूंढते रहे हैं . जिसे नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित साइंसदान Leon Lederman ने "God particle"कहा था .योरोपीय ओर्गेनाज़ेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च CERN के पास दुनिया का सबसे शक्तिशाली और विशाल कण त्वरक लार्ज हेड्रोंन कोलाईदर LHC है .यह प्रोटोनों को ९९.९९९९ C का के बराबर वेग प्रदान कर सकता है त्वरित कर सकता है तकरीबन तकरीबन प्रकाश के वेग (C)से. हम जानतें हैं और अच्छी तरह से मानतें हैं प्रकाश का अपना निर्वातीय वेग एक कुदरती नियतांक है एक नेच्युरल कोंस्तेंत हैं .इसे एक नियतांक C से दर्शाया जाता है .
गौर तलब है ऊपर हमने जिस कण त्वरक एटम स्मेशर का ज़िक्र किया है इसे हिग्स की टोह लेने के लिए ही खड़ा किया गया था .छ :अरब डॉलर की खर्ची के बाद .
बच्चों को स्कूल में यही पढ़ाया जाता है आदिनांक कि यह स्रष्टि परमाणुओं का खेला है परमाणु ओं की ही निर्मिती है .पुरातन काल से ही यह धारणा चली आई है परमाणु अविभाज्य है .इसके आगे और छोटे अंश नहीं हो सकते .क्वांटम है यह पदार्थ का .डेमोक्रेट्स ने एटम शब्द का स्तेमाल सबसे पहले किया था .दार्शनिक Leucippus ने भी इसे अखंडनीय कहा था .
उन्नीसवी शती के अंत में जे जे टॉमसन ने इलेक्त्रोंन की खोज की .पता चला परमाणु अविभाज्य नहीं है इसके इससे भी ज्यादा अव -परमाणुक अंश मौजूद हैं .इसके कुछ सालों के बाद ही प्रोटोन की खोज कर ली गई .
इसके बाद के दो दशकों में भौतिकी ने एक नै उड़ान भरी .क्वांटम भौतिकी का जनम हुआ जिसकी नींव रखी नील्स बोह्र इरविन श्रोडिन्गर तथा वार्नर हाइजेनबर्ग ने .यह पदार्थ से जुड़े सिद्धांतों की सूक्ष्म स्तर पर विवेचना थी .इसी के साथ परमाणु के बारे में हमारी जानकारी में और इजाफा हुआ .न्युत्रोंन का भेद खुला .जो द्रव्य की एक आवेश हीन उदासीन कणिका और प्रोटोन के सहोदर के रूप में , जुड़वां के रूप में अस्तित्व में आया .
इसके बाद और भी कणिकाओं का अव -परमाणुविक कणिकाओं का अस्तित्व रोशन हुआ .अगले दो दशकों में इनके कुनबे में और भी बढ़ोतरी हुई .
१९६०-१९७० के दरमियान भौतिकी के माहिरों की तिकड़ी में सर्व श्री Sheldon Glashow ,Steven Weinberg ,Abdus Salam ने एक गणितीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसने सभी अव -परमाणुविक कणों और उनके बीच परस्पर अनुक्रिया की Interactions की सटीक व्याख्या की . आगे चलकर यही मानक निदर्श (Standard model)के नाम से जाना गया .इस निदर्श के अनुसार द्रव्य की मूल भूत बुनियादी इकाइयों की संख्या दो दर्जन के करीब है .यह मोडल इसे समझाता है कि कैसे द्रव्य की बुनियादी कणिकाएं द्रव्यमान ग्रहण करती है .अलबता बुनियादी कणिकाओं के इस ज़म घट में प्रकाश का क्वांटम (सबसे छोटा और अखंडनीय कण) फोटोंन तथा अबूझ ग्ल्युओंन द्रव्यमान शून्य हैं मॉस लेस हैं . बुनियादी कणिकाओं को द्र्व्यामं का गुण प्रदान करने वाला कण बोसोंन या God particle कहलाता है .
IT IS HIGGS BOSON WHICH IMPARTS ALL OTHER ELEMENTARY PARTICLE THEIR MASS.,ENDOW THEM WITH MASS .
ब्रितानी भौतिक शाष्त्री पीटर हिग्स भारतीय विज्ञानी जगदीश चन्द्र वासु एवं आइस्न्ताइन ने बोसानों की सांख्यकी को समझाया है .इसे बोस -आइन्स्टाइन सांख्यकी भी कहा गया है .
१९७० एवं १९८० के दशकों में LHC की पूर्व वर्ती पीढ़ी के कण त्वरकों द्वारा संपन्न प्रयोगों ने जो CERN के तत्वाधान में किए गए इस मानक निदर्श की कई प्रागुक्तियों की पुष्टि की .लेकिन हिग्स बोसोंन पकड़ में नहीं आया .और इसीलिए यह भौतिक शाश्त्रियों की सनक बना रहा .
कण भौतिकी के माहिर दीवानगी की हद तक इसे खोजने में जुटे रहे .
कुछ ने कहा हमें ज्यादा शक्तिशाली कण त्वरकों की ज़रुरत है जो कणों को बेहद की ऊर्जा प्रदान कर आमने सामने से उनकी टक्कर करा सकें .यदि कभी मिला तो इन्हीं कणों की टकराहट में हिग्स बोसोंन पकड लिया जाएगा .कण टोही उसकी ऊंगलियों के निशाँ पकड लेंगे .चाहे फिर वह कितना ही अल्प जीवी हो .
कुछ ने तो हिग्स बोसोंन के अस्तित्व पर ही सवालिया निशाँ लगा दिया है .इनमे स्टीफन हाकिंग्स जैसे से दुनिया के शीर्ष भौतिकी के माहिर वील चेयर बाउंड साइंसदान भी शामिल है .
अब लगता है इसके अवशेष साइंसदान ने LHC में देखें हैं .बेशक पल भर की पलांश की झलक ही सही .दिक्कत यह है अभी इस झलक की निश्चयात्मक पुष्टि होना भविष्य के गर्भ में है .जिसके लिए CERN के तत्वाधान में और भी ज्यादा शक्ति शाली कण त्वरक चाहिए और प्रयोग होना बाकी है .फिल वक्त इसे कामचलाऊ पुष्टि ही अंतरिम पुष्टि ही समझा जाए लेकिन यह क्या कम है कि कहीं कुछ हिग्स बोसोंन जैसा ही देखा गया है LHC के गिर्द ?
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI!
DEC17,2011
HEALTH TIPS:Take some crushed garlic cloves and rub them on the face twice a day .
लहसुन की कुछ कलियाँ कूट पीस कर चेहरे पर दिन में दो बार मलें .चेहरा दस मिनिट बाद धौ डालें स्वच्छ जल से .फिर देखिए चेहरे की कान्ति.वैसे इन दिनों जब उत्तर भारत के कडाके की ठंड पड़ रही है कच्चा लहसुन सलाद में खाना भी चमड़ी की दमक को बढाता है .सर्दी का असर भी दूर भगाता है .
To maintain blood pressure ,mix a tablespoon of fresh amla (Indian Gooseberry)juice and honey together and drink it daily.
ताज़ा आमला को सत एक बड़ा चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना पियें ,रक्त चाप नियमित (मान्य )रहेगा .

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

क्या है हिग्स बोसोंन के होने ,न होने का मतलब ?

क्या है हिग्स बोसोंन के होने ,न होने का मतलब ?
(Holi Grail Of Higgs Hunters.Is humanity 's quest for the Higgs boson,dubbed as the "God particle ",about to end?)'Some may wonder ,What is the big deal?/THE TIMES OF IDEAS/THE TIMES OF INDIA MUMBAI ,DEC 16,2011,P20.
योरोपीय संघ की नाभिकीय शोध से जुड़े साइंसदानों की संस्था CERN ने इस आशय की घोषणा की है यथा संभव उन्होंने हिग्स बोसोंन की शिनाख्त कर ली है .जो अब तक भौतिकी शाश्त्र और इसके माहिरों की हाथ न आने वाली सबसे बड़ी चाहत बना रहा है ,holy grail of particle physics बना रहा है .तब क्या यह मान लिया जाए कि यह खोज समाप्त हो गई ?बेशक यह शिनाख्त एक दम से पुख्ता सौ फीसद सटीक और अकाट्य न भी हो फिर भी यह उत्सवी माहौल तो है ही .

तकरीबन चार दशकों तक भौतिकी के माहिर इस हाथ न आने वाली सोने की चिड़िया को ढूंढते रहे हैं . जिसे नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित साइंसदान Leon Lederman ने "God particle"कहा था .योरोपीय ओर्गेनाज़ेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च CERN के पास दुनिया का सबसे शक्तिशाली और विशाल कण त्वरक लार्ज हेड्रोंन कोलाईदर LHC है .यह प्रोटोनों को ९९.९९९९ C का के बराबर वेग प्रदान कर सकता है त्वरित कर सकता है तकरीबन तकरीबन प्रकाश के वेग (C)से. हम जानतें हैं और अच्छी तरह से मानतें हैं प्रकाश का अपना निर्वातीय वेग एक कुदरती नियतांक है एक नेच्युरल कोंस्तेंत हैं .इसे एक नियतांक C से दर्शाया जाता है .
गौर तलब है ऊपर हमने जिस कण त्वरक एटम स्मेशर का ज़िक्र किया है इसे हिग्स की टोह लेने के लिए ही खड़ा किया गया था .छ :अरब डॉलर की खर्ची के बाद .
बच्चों को स्कूल में यही पढ़ाया जाता है आदिनांक कि यह स्रष्टि परमाणुओं का खेला है परमाणु ओं की ही निर्मिती है .पुरातन काल से ही यह धारणा चली आई है परमाणु अविभाज्य है .इसके आगे और छोटे अंश नहीं हो सकते .क्वांटम है यह पदार्थ का .डेमोक्रेट्स ने एटम शब्द का स्तेमाल सबसे पहले किया था .दार्शनिक Leucippus ने भी इसे अखंडनीय कहा था .
उन्नीसवी शती के अंत में जे जे टॉमसन ने इलेक्त्रोंन की खोज की .पता चला परमाणु अविभाज्य नहीं है इसके इससे भी ज्यादा अव -परमाणुक अंश मौजूद हैं .इसके कुछ सालों के बाद ही प्रोटोन की खोज कर ली गई .
इसके बाद के दो दशकों में भौतिकी ने एक नै उड़ान भरी .क्वांटम भौतिकी का जनम हुआ जिसकी नींव रखी नील्स बोह्र इरविन श्रोडिन्गर तथा वार्नर हाइजेनबर्ग ने .यह पदार्थ से जुड़े सिद्धांतों की सूक्ष्म स्तर पर विवेचना थी .इसी के साथ परमाणु के बारे में हमारी जानकारी में और इजाफा हुआ .न्युत्रोंन का भेद खुला .जो द्रव्य की एक आवेश हीन उदासीन कणिका और प्रोटोन के सहोदर के रूप में , जुड़वां के रूप में अस्तित्व में आया .
इसके बाद और भी कणिकाओं का अव -परमाणुविक कणिकाओं का अस्तित्व रोशन हुआ .अगले दो दशकों में इनके कुनबे में और भी बढ़ोतरी हुई .
१९६०-१९७० के दरमियान भौतिकी के माहिरों की तिकड़ी में सर्व श्री Sheldon Glashow ,Steven Weinberg ,Abdus Salam ने एक गणितीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसने सभी अव -परमाणुविक कणों और उनके बीच परस्पर अनुक्रिया की Interactions की सटीक व्याख्या की . आगे चलकर यही मानक निदर्श (Standard model)के नाम से जाना गया .इस निदर्श के अनुसार द्रव्य की मूल भूत बुनियादी इकाइयों की संख्या दो दर्जन के करीब है .यह मोडल इसे समझाता है कि कैसे द्रव्य की बुनियादी कणिकाएं द्रव्यमान ग्रहण करती है .अलबता बुनियादी कणिकाओं के इस ज़म घट में प्रकाश का क्वांटम (सबसे छोटा और अखंडनीय कण) फोटोंन तथा अबूझ ग्ल्युओंन द्रव्यमान शून्य हैं मॉस लेस हैं . बुनियादी कणिकाओं को द्र्व्यामं का गुण प्रदान करने वाला कण बोसोंन या God particle कहलाता है .
IT IS HIGGS BOSON WHICH IMPARTS ALL OTHER ELEMENTARY PARTICLE THEIR MASS.,ENDOW THEM WITH MASS .
ब्रितानी भौतिक शाष्त्री पीटर हिग्स भारतीय विज्ञानी जगदीश चन्द्र वासु एवं आइस्न्ताइन ने बोसानों की सांख्यकी को समझाया है .इसे बोस -आइन्स्टाइन सांख्यकी भी कहा गया है .
१९७० एवं १९८० के दशकों में LHC की पूर्व वर्ती पीढ़ी के कण त्वरकों द्वारा संपन्न प्रयोगों ने जो CERN के तत्वाधान में किए गए इस मानक निदर्श की कई प्रागुक्तियों की पुष्टि की .लेकिन हिग्स बोसोंन पकड़ में नहीं आया .और इसीलिए यह भौतिक शाश्त्रियों की सनक बना रहा .
कण भौतिकी के माहिर दीवानगी की हद तक इसे खोजने में जुटे रहे .
कुछ ने कहा हमें ज्यादा शक्तिशाली कण त्वरकों की ज़रुरत है जो कणों को बेहद की ऊर्जा प्रदान कर आमने सामने से उनकी टक्कर करा सकें .यदि कभी मिला तो इन्हीं कणों की टकराहट में हिग्स बोसोंन पकड लिया जाएगा .कण टोही उसकी ऊंगलियों के निशाँ पकड लेंगे .चाहे फिर वह कितना ही अल्प जीवी हो .
कुछ ने तो हिग्स बोसोंन के अस्तित्व पर ही सवालिया निशाँ लगा दिया है .इनमे स्टीफन हाकिंग्स जैसे से दुनिया के शीर्ष भौतिकी के माहिर वील चेयर बाउंड साइंसदान भी शामिल है .
अब लगता है इसके अवशेष साइंसदान ने LHC में देखें हैं .बेशक पल भर की पलांश की झलक ही सही .दिक्कत यह है अभी इस झलक की निश्चयात्मक पुष्टि होना भविष्य के गर्भ में है .जिसके लिए CERN के तत्वाधान में और भी ज्यादा शक्ति शाली कण त्वरक चाहिए और प्रयोग होना बाकी है .फिल वक्त इसे कामचलाऊ पुष्टि ही अंतरिम पुष्टि ही समझा जाए लेकिन यह क्या कम है कि कहीं कुछ हिग्स बोसोंन जैसा ही देखा गया है LHC के गिर्द ?
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI!
DEC17,2011
HEALTH TIPS:Take some crushed garlic cloves and rub them on the face twice a day .
लहसुन की कुछ कलियाँ कूट पीस कर चेहरे पर दिन में दो बार मलें .चेहरा दस मिनिट बाद धौ डालें स्वच्छ जल से .फिर देखिए चेहरे की कान्ति.वैसे इन दिनों जब उत्तर भारत के कडाके की ठंड पड़ रही है कच्चा लहसुन सलाद में खाना भी चमड़ी की दमक को बढाता है .सर्दी का असर भी दूर भगाता है .
To maintain blood pressure ,mix a tablespoon of fresh amla (Indian Gooseberry)juice and honey together and drink it daily.
ताज़ा आमला को सत एक बड़ा चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना पियें ,रक्त चाप नियमित (मान्य )रहेगा .

माँ बाप का शौक बना बच्चों का रोग .

ram ram bhai

माँ बाप का शौक बना बच्चों का रोग .
DECEMBER 16,2011,C-4,NOFRA,COLABA,MUMBAI -400-005 एक भरी पूरी परिपूर्ण माँ सुपरमोम होने दिखने की कोशिश में ब्रितानी महिलाएं शराब का सहारा ले रहीं हैं यही लब्बोलुआब है उस अध्ययन का जिसे नाम दिया गया है "BOTTLING IT UP :THE NEXT GENERATION ".इस अध्ययन को आगे बढाया है :TURNING POINT ने .पता चला है कि तकरीबन छब्बीस लाख ब्रितानी नौनिहाल ऐसे माँ बाप कीं परवरिश में हैं जो बेतहाशा खतरनाक तरीके से शराब का सेवन कर रहें हैं .
ब्रितानी माँ बाप औसतन ३० यूनिट शराब की रोज़ गटक रहें हैं . यह निर्धारित सीमा से दस गुना ज्यादा मात्रा है शराब की .औसत २४ यूनिट शराब माताएं तथा ३३ यूनिट इन नौनिहालों के पिता श्री हलक के नीचे रोज़ -बा -रोज़ उतार रहें हैं .दूसरे शब्दों में तीन बोतल वाइन या फिर १५ पिंट (पाइंट )बीयर की ये गटक रहें हैं .
तरल को मापने की इकाई है पाइंट जो ०.५७ लीटर के बराबर होता है .एक गैलान तरल में आठ पाइंट होतें हैं .एक अमरीकी पाइंट ०.४७ लीटर के तुल्य होता है .अखबार डेली मेल ने इस अध्ययन को प्रकाशित किया है .अध्ययन के अनुसार शराब का स्तेमाल महिलाएं एक निर्दोष परिपूर्ण सर्वगुण संपन्न माँ होने दिखने के बढ़ते दवाब के तहत ही कर रहीं हैं .
कुछ का कहना है इस सबका कारण उनका अकेले सारा उत्तरदायित्व नौनिहालों का संभालना है जिसमे उन्हें उनके जीवन संगी का सहयोग मयस्सर नहीं हो पारहा है .कुछ महिलाएं इस सबसे तालमेल बिठाने के लिए हफ्ते में तीन रात शराब का सहारा ले रहीं हैं जिस दरमियान वे ७० यूनिट शराब गड़प जातीं हैं .जिसका मतलब दूसरे शब्दोंमे वाइन की आठ बोतलें होगया .और पीती भी यह अकेले में हैं तब जब बच्चे सोने के लिए अपने अपने बेड रूम्स में चले जातें हैं .सो जातें हैं .
इस सबका नौनिहालों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है .आगे जाके ये बच्चे सिजोफ्रेनिया ,बाईपोलर इलनेस (साइकोसिस )की चपेट में भी आसकतें हैं .ईटिंग डिस-ऑर्डर्स की भी .अवसाद ग्रस्त भी हो सकतें हैं ये बालिग़ होने पर .असर ग्रस्त ऐसे माँ बाप की परवरिश में चल रहे बच्चे ड्रग्स और शराब खुद भी चख सकतें हैं चस्का पड़ सकता है इन्हें भी इन आदतों का बाली उम्र में ही ..आगे जाके जो एक गंभीर समस्या बन सकतीं हैं .
सौ माँ बाप के इस सर्वे में२८% ने माना है उनके पीने की इस लत के कारण उनके नौनिहाल अकसर स्कूल नहीं पहुँच पाते पहुँचते हैं तो कक्षामे उनका ध्यान भंग होता है एकाग्र नहीं हो पता मन पढ़ाई लिखाई में .
५५%ने माना उनका यही शौक बच्चों में अवसाद बे -चैनी और बढ़ते हुए गुस्से की वजह बन रहा है .
सन्दर्भ -सामिग्री :Women turning to drink to cope with 'supermum'stress/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI /P19/DEC14,2011.
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI!RAM RAM BHAI !
DEC16,2011
अल्ज़ाइमर्स की यथा संभव शीघ्र शिनाख्त के लिए परीक्षण .
(Soon ,test to spot Alzheimer's early)/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,MUMBAI/DEC14,2011/P19.
साइंसदान एक ऐसे परिक्षण की पुख्ता आज़माइश कर लेने के करीब पहुँच गए हैं जो अल्ज़ैमार्स रोग, के रोग नैदानिक लक्षणों के प्रगट होने से तीन चार बरस पहले ही रोग की आहट का पता ले लेंगा .फिलवक्त एक ऐसे इमेजिंग कम्पाउंड के परीक्षण तीसरे चरण में पहुँच गएँ हैं जिसके नतीजे योरोप और अमरीकी साइंसदान आगामी चंद महीनों में ही प्रस्तुत कर देंगें . इस यौगिक का नाम है "FLUTEMETAMOL".
गौर तलब है कि दिमाग में BETA AMYLOID PLAQUES के ज़मा होने से दिमागी कोशिकाओं का क्षय अपविकासDE-GENERATION होने लगता है जो आखिर में अल्ज़ैमार्स रोग की वजह बन जाता है .स्मृति ह्रास के रूप में प्रगट होतें हैं इसके प्रारम्भिक लक्षण .
अल्ज़ैमार्स रोग से मर चुके रोगियों के दिमाग के हिस्सों का शव विच्छेदन करने पर ही BETA AMYLOID PLAQUES की पुष्टि हो पाती है .लक्षित इमेजिंग एजेंट्स (अभिकर्मकों के स्तेमाल से )रोग के पुख्ता निदान में मदद मिल सकेगी .
मरीज़ की बाजू में सुईं द्वारा फ्ल्यू -टी -मीटामोल पहुंचाने के घटा भर बाद ही यह अभिकर्मक दिमाग में बन पनप रहे प्रोटीन प्लाक्स से चस्पां हो जाएगा . लाल रंग से आलोकित हो उठेगा मौजूद प्लाक .बस यहीं से इल्म हो जाएगा आल्ज़ैमार्स रोग के संभावित खतरे के वजन का .
रेडियोलोजिस्ट (विकिरण विज्ञान के माहिर ) इस एवज़ पेट स्केन्स (POSITRON EMISSION TOMOGRAPHY SCANS)का अध्ययन विश्लेषण करके मौजूद प्लाक के स्तर की इत्तला देंगें .ये स्केन्स संभावित असरग्रस्त मरीज़ के दिमाग के हिस्सों के उतारे जायेंगें .
रोग नैदानिक परीक्षणों के आखिरी चरण में पहुँच गईं हैं इस यौगिक की आजमाइशें. आखिरी नतीजों का सभी को इंतज़ार है .योरोप और अमरीका भर में आठ अलग अलग जगहों पर ये आजमाइशें चल रहीं हैं .
गौर तलब है भारत के लिए इसके नतीजे बड़े सुखद सिद्ध होंगें जहां फिलवक्त अल्ज़ाइमर्स के साथ गुज़र बसर करने वाले ३७ लाख लोग हैं .२०३० तक यह संख्या दोगुना हो जाएगी .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
केंसर ट्यूमर्स के सफाए के लिए रेडिओथिरेपी के रूप में अब क्लस्टर बोम्ब .
कैंसर रेडिओ -चिकित्सा के शुरूआती चरण में कैंसर युक्त ट्यूमर्स के सफाए के लिए कोबाल्ट बोम्ब का स्तेमाल किया जाता था .कोबाल्ट का एक कुदरती सम स्थानिक रेडिओसक्रिय होता है जिसका मॉस नंबर ६० होता है .इससे अपने आप लगातार गामा विकिरण निकलता है .
अब रेडिओविग्यानिं ट्यूमर का बेहतर ढंग से खात्मा कर सकेंगे क्लस्टर बम के द्ववारा .आपको बतलादें यह शब्दावली नाभिकीय आयुद्ध क्लस्टर बम से ली गई है .
cluster bomb is a canister dropped from an aircraft to release a number of small bombs over a wide range.Also a cluster bomb is a type of bomb that throws out smaller bombs when it explodes .
यहाँ रेडिओ -विकिरण चिकित्सा के क्षेत्र में मांजरा कुछ कुछ ऐसा ही है .इजराइल के चिकित्सा रिसर्चरों ने ट्यूमर में अन्दर से बाहर की तरफ चौतरफा विस्फोट की रणनीति के तहत एक प्राविधि विकसित की है .यह एक पिन की आकार का रेडिओ -प्रत्यारोप है .विकिरण प्रत्यारोप है .रेडिओ -इम्प्लांट है .जिससे अल्फा विकिरण निकलेगा .हम जानतें हैं अल्फा विकिरण की रेंज कम होती है लेकिन आयनीकरण की क्षमता सबसे ज्यादा होती है निसृत ऊर्जा कैंसरग्रस्त कोशा का खात्मा करने में समर्थ रहती है .ज़ाहिर है इसे कैंसर गांठ में प्रत्यारोपित किया जाएगा .
यहाँ इस विकिरण की बौछार पहले पूरे ट्यूमर में होगी और विस्तृत विसरण के बाद अल्फा कणों का विखंडन शुरु होगा .अन्दर से बाहर की तरफ .इस प्रक्रिया में एक साथ सब जगह ऊर्जा निसृत होगी पूरे ट्यूमर मॉस में .ट्यूमर बॉडी में एक साथ विस्फोट होगा .
परम्परा गत विकिरण बम में ट्यूमर पर गामा विकिरण विकिरण बाहर से डाला जाता है .जिसकी विभेदन क्षमता तो रेंज तो सबसे ज्यादा होती है लेकिन आयनीकरण की क्षमता न्यूनतम रहती है .आयन के कमतर जोड़े पैदा करता है गामा विकिरण .यहाँ विस्फोट एक बिंदु पर न होकर अनेक बिन्दुओं पर पूरे ट्यूमर में होता है .क्लस्टर बम्ब की तरह यहाँ लगातार विखंडन होता रहता है रेडिओ -नाभिकों का .इसलिए एक मर्तबा सफाए के बाद ट्यूमर के फिर से पनपने की संभावना नहीं रहती है .
सन्दर्भ -सामिग्री :-New cancer 'cluster bomb ' to help blast tumors/times trends/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC 15,2011,P17

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

दमखम बनाए रहने और खुश रहने के लिए फूड्स कोम्बो .

जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए दमखम के साथ आपका खुश रहना भी ज़रूरी है यहाँ हम कुछ ऐसे खानों की तिकड़ी प्रस्तुत कर रहें हैं जिनका 'कोम्बो 'न सिर्फ आपको ऊर्जावान रखेगा ,अवसाद और उदासी से भी निपटेगा रात को घोड़े बेचके सोने में भी विधाई भूमिका निभाएगा .
POWER OF THE THREE /TO LEAD A QUALITY LIFE YOU NEED TO BE ENERGETIC AND HAPPY .THERE ARE MAGIC FOODS THAT CAN HELP YOU WHEN CLUBBED IN A TRIO/MUMBAI MIRROR /DEC 13 ,2011/P21.
दिन भर ऊर्जित रहने के लिए (FOODS TO BOOST ENERGY)
दिन भर में ऐसा वक्फा आता ही है जब शरीर में बे दमी का एहसास होता है चाहे बाद दोपहर या फिर कसरत के लिए जाते आते .यदि ऐसी ही बेदमी महसूस होती है और आपका ध्यान किसी भी काम में टिक नहीं पा रहा है मन रम नहीं रहा है तब ऐसा कुछेक विटामिन बी की कमी के कारण भी हो सकता है .ये विटामिन समूह न सिर्फ दिमागी क्षमता के उच्चतर स्तर को बनाए रहतें हैं शरीर को कार्बोहाईद्रेतों को ग्लूकोज़ में तोड़ने में भी मदद करतें हैं .ताकि शरीर को बराबर ईंधन (ऊर्जा )मिलती रहे .इसे हासिल करने के लिए अपनी खुराक में ओट मील्स(ओट पौरीज़ ,दूध में ओट को पकाके दलिया )शामिल कीजिए .सुबह के नाश्ते में शामिल कीजिए ओट पुरीज़ .
बेशक डार्क चोकलेट हार्ट डिजीज के खतरे के वजन को कमतर रखती है लेकिन यह झुर्रियों को भी मुल्तवी रखती है तथा आपके मिजाज़ को भी खुशनुमा बनाए रहती है .मूड बूस्टर है .
इसमें मौजूद है एक उद्दीपन पदार्थ थिओब्रोमिन तथा साथ में केफीन .कई लोकप्रिय पेय भी इससे लैस रहतें हैं .
चुकंदर का ज़वाब नहीं :दमखम देर तक बनाए रखने के अलावा यह कई पुष्टिकर तत्वों यथा मैग्नीशियम आयरन विटामिन सी तथा नाइट्रेट से युक्त है .इसका शक्कर बहुल होना फौरी तौर पर तब ऊर्जा मुहैया करवाता है जब इसकी ज़रुरत होती है .
अवसाद और उदासी से बचे रहने के लिए (FOODS TO BEAT THE BLUES.):
दिन में कभी कभार ऐसा वक्फा ऐसे लमाहात भी आतें हैं जब हम एक दम से बे -चैनी और उदासी से घिर जातें हैं .चिडचिडा -पन आ घेरता है हमें .इसी से बचाव के लिए है MARMITE .इसकी एक खुराक विटामिन बी से भरपूर रहती है .मिजाज़ को एकदम से बदल देती है .इसमें मौजूद विटामिन बी १२ और विटामिन बी ६ सेरोटोनिन बनातें हैं जो मिजाज़ को दुरुस्त रखने में मददगार सिद्ध होतें हैं .
तैलीय मच्छी ओमेगा थ्री वसीय अम्लों से सनी होने की वजह से दिल की सेहत के लिए अच्छी रहतीं हैं .अलावा इसके दिमाग की सेहत और मिजाज़ पुरसी में भी सहायक सिद्ध होतीं हैं .एक हालिया अध्ययन से यह बात सामने आई है कि जिन लोगों के खून में ओमेगा थ्री फेटि एइड्स का स्तर न्यूनतर बना रहता है वह अवसाद ग्रस्त अक्सर हो सकतें हैं इनका नज़रिया भी नकारात्मक रह सकता है .
केले ऊर्जा देतें हैं इनका सुगर बहुल रहना आपको ऊर्जित रखता है .लो एनर्जी लेविल को दुरुस्त करता है .अलावा इसके केले में होता है TRYPTOPHAN जो एक आवश्यक वसीय अम्ल है और सेरोटोनिन के स्तर को बढाए रखकर हमारे मूड को भी दुरुस्त रखता है .मसल क्रेम्प्स से भी निजात दिलवाता है .
अनिद्रा को दूर रखने के लिए (FOODS TO HELP YOU SLEEP):
आधुनिक जीवन की सौगात है अनिद्रा .हमारा खान पान भी हमें ठीक से सोने में मदद कर सकता है . रात के खाने में दूध दही शामिल कीजिए सोने से पहले दूध पीजिए .दूध में होता है TRYPTOPHAN जो शरीर में सेरोटोनिन और मेलाटोनिन के स्तर को भी बढाता है और खुद में एक आवशयक अमीनो अम्ल भी है ट्रिप्टोफेन.ये दोनों ही नींद लाने में सहायक सिद्ध होतें हैं सेरोटोनिन तथा मेलाटोनिन .
रात के खाने में स्वीट दिश के रूप में ओट पुरीज़ को भी जगह दीजिए :ओट मेला -टोनिन का कुदरती खज़ाना है .यह हमारी आंतरिक घडी जैविक लय को बनाए रखने क लिए उत्तम है .दूध के साथ लेने पर यह ट्रिप्टोफेन भी मुहैया करवाता है .
अलसी के बीज (FLAX SEEDS):
इनमे ट्रिप्टोफेन और ओमेगा थ्री वसीय अम्लों का डेरा है .इसीलिए इन्हें हमारी नींद के विनियमन में मददगार पाया गया है .सेरोटोनिन के उत्पादन को इसीलिए यह बढातें हैं .जो नींद लाने में मददगार रहता है .इन बीजों में मौजूद ओमेगा थ्री फेटि एसिड्स बे -चैनी और उदासी ,अवसाद को भगातें हैं .स्ट्रेस के स्तर को भी कमतर करतें हैं जो अनिद्रा की वजह बनतें हैं .