हमारे वायुमंडल की सबसे ऊपरी पर्त को आयनमंडल (आयानोस्फियर )कहा जाता है .यहाँ आयनों (यानी आवेशित परमाणु ,चार्ज्ड एत्म्स होतें हैं )का डेरा होता है .विद्दयुत चुम्बकीय तरंगे वायुमंडल की इसी परत से टकरा कर लौटती हैं और इस प्रकार रेडियो प्रसारण (शार्ट वेव ब्रोडकास्ट )सम्भव हो पाता है .हम जहाँ पानी बिजली आंधी तूफ़ान के साथ रहते हैं (0-१०किलोमीतर तक ऊपर की परत )वह परत विक्षोभ मंडल (त्रोपोस्फिअर )कहलाती है ।
विज्ञानियों ने एक प्रयोग के तहत शक्तिशाली रेडियो तरंगे आकाश में निरंतर फायर कर ,भेजकर आसमान के एक छोटे से टूकडे को एक आर्तिफिशिअल आयनों -स्फीअर (आयन -मंडल ) में तब्दील कर दिया है . जैसे दीवार से टक्कर मार कर गेंद लौट आती है ,ऐसे ही यह आयन मंडल खंड भी रेडियो तरंगों को लौटा देता है -पृथ्वी की ओर।
नेचर न्यूज़ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रयोग को नाम दिया गया है -"हाई फ्रीक्युवेंसी एक्टिव औरोरल रिसर्च प्रोग्रेम ",यह टुकडा गाकोना (अलास्का )के ऊपर है .यह प्रयोग गत दो दसकों से चल रहा है जिसका स्तेमाल रेडियो वेव्स के ज़रिये पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र और आयनमंडल को समझने के लिए किया जा रहा है ।
इस प्रयोग के तहत ध्रुवीय आकाश में रंगों की नुमाइश (औरोरास )पैदा की जा सकी है ।
यह रोशनियाँ "औरोरा बोरिएलिस "और "औरोरा ऑस्ट्रेलिस "जैसी ही हैं ।
हम जानतें हैं -उत्तरी और dksheeni ध्रुवीय आकाश के ऊपर रंगों की बेहतरीन नुमाइश होती है .ऐसा तब होता है जब आवेशित सौर किरणें (इलेक्त्रों एवं इतर आवेशित कण पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से छिटक कर )hamaare ऊपरी वायुमंडल में मौजूद वायुमंडलीय गैसों के अणुओं से टकराती हैं .इस टक्कर से ये अनु उत्तेजित होकर ऊर्जा स्तर में ऊपर चले जातें हैं ,निचले ऊर्जा स्तरों में लौट ते वक्त यही अनु रंगीन रोशनियाँ (डिफरेंट वेव्स )पैदा करतें हैं .यही हैं "ध्रुवीय रोशनियाँ "
सन्दर्भ सामिग्री :-"अर्तिफिसिअल इओनोस्फ़ीअर क्रिएतिद "(टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर ५,२००९ ,पृष्ठ १५ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).
सोमवार, 5 अक्टूबर 2009
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