मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009

बुढापे में डेडी -संतान की सेहत दाव पर ......

यूँ ही नहीं कहा गया है -बुढापे की संतान मरिअल रह सकती है ,सेहत को जिसकी सौ खतरे हो सकतें हैं ।
अब ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध छात्रों की एक टीम ने पता लगाया है -उम्र दराज़ होने के साथ ही मर्दों में तेस्तिक्युलर ट्यूमर सेल्स की मौजूदगी बलवती हो जाती है -साथ ही बढ़ जाती है उनके "दी एन ऐ "में म्युतेसंस की संभावना ।
ऐसे मर्दों के बच्चों को विरासत में यह उत्परिवर्तित जींस बारास्ता डेडी के शुक्राणु मिल सकती है ।
यानी डेडी के स्पर्मेताज़ोआन से यह म्युतेतिद जीन बच्चों को अंतरित हो सकती है ।
उम्र दराज़ होने पर ट्यूमरपैदा करने वाले सेल्स के सूक्ष्म झुंड अन्डकोशों के ऊतकों में अक्सर पैदा होने लगतें हैं .यही ऊतक जर्म्स सेल्स तैयार करतें हैं जिनसे पैदा होतें हैं -शुक्राणु (स्पर्म्स )।
एंड्रयू विल्की कहतें हैं -ज्यादर तर मर्दों में उत्परिवर्तित कोशिकाओं के सूक्ष्म झुंड तेस्तिकिल्स में उम्र दराज़ होने पर पैदा होने लगतें हैं ।
यह ठीक वैसे ही है जैसे चमड़ी पर तिल (मोल्स )का बन ना ,अक्सर बिनाइन इन नेचर (यानी निरापद )।
लेकिन अन्डकोशों में इनकी मौजूदगी निरापद ही रहे यह ज़रूरी नहीं है .एंड कोष शुक्राणु भी तो बनातें हैं .ऐसे में पैदा होने वाले बच्चे जन्मजात गंभीर रोगों से ग्रस्त हो सकतें हैं .
तो साहिब हर चीज़ की एक उम्र है -प्रकृति का अपना विधान है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-वाई किड्स आफ ओल्डर दैड्स आर प्रोन तू हेल्थ रिस्क्स (टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २७ ,२००९ ,१५ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

1 टिप्पणी:

शरद कोकास ने कहा…

इसलिये कहते है कि प्रकृति के खिलाफ नही जाना चाहिये ।