रविवार, 31 जनवरी 2010

"जब ज्योति निस्पंद हुई "

दिन की शुरूआत उस दिन भी किसी और दिन की तरह ही हुई थी ,मोहनदास करम चंद गांधी प्रातः ०३:३० पर उठ गए थे .प्रार्थना सभा में गए थे .सभा ने गीता के पहले दो श्लोकों को धव्नित किया था ,जिनका सार था :मृत्यु जीवन संग अनिवार्य रूप से जुडी है .एक रोज़ पहले ही गांधीजी ने अपनी ग्रांड नीज मनु से कहा था :यदि मेरी मृत्यु किसी बीमारी से हो जाए तो दुनिया को कहना ,मैं एक मिथ्या (झूठा ) महात्मा था .लेकिन यदि कोई मुझ पर गोली दागे और मैं निस्पृह सीने पे गोली झेलू ,होठों पर हो राम का नाम ,तभी मुझे सच्चा महात्मा कहना ।
क्या गाँधी (जी )को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था ?ऐसा ही महसूस होगा .दस रोज़ पहले इसी गुट ने उनकी जान लेने की कोशिश की थी ,जिसका अगुवा नाथू राम गोडसे ही था .लेकिन यह होना तो ३० जनवरी (१९४८ )को था .पहले प्रयास में नाकामयाब रहने के बाद नाथू राम को आशंका थी ,गांधीजी के गिर्द सुरक्षा घेरा बढा दिया गया होगा .उसने फोटोग्रेफर के वेश में ,बुर्काधारी औरत के वेश में यह काम करने की सोची ,लेकिन बात बनी नहीं कैमरा ज़रुरत से ज्यादा बड़ा था ,छिपाया नहीं जा सकता था ,और बुर्के की चुन्नटों से गोली चलाने के लिए हाथ निकालने में बाधा थी .और अगर औरत के भेष में पकड़ा गया तो शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी .यह सब उसने अपने सहायक को बतलाया था .आखिर में एक जोखिम उठाने की ठान ली ।
उस रोज़ नाथूराम ने ग्रेइश कलर का (भूरे रंग का )फौजी सुइट पहन रखा था .पिस्टल जेब में ठूंसी हुई थी ।
नाथू राम गोडसे के पूरे गुट को यह देख कर आश्चर्य हुआ ,उनकी तलाशी नहीं ली गई .प्राथना स्थल बिरला हाउस ,दिल्ली सभी पहुँच गए ।
मल्गोंकर की लिखी किताब "दी मेंन हूँ किल्ड गांधी "के मुताबिक़ ,ठीक दस बजे प्रातः गाँधी अपने कक्ष से बाहर निकले उनके हाथ दोनों ग्रांड भातिजीयों मनु और आभा के कन्धों का सहारा लिए हुए थे .गांधी मैदान को तेज़ क़दमों से पार कर वहां पहुंचे जहां उनका सब लोग इंतज़ार कर रहे थे .गोडसे के हाथ में पिस्टल थी ,उसने दोनों हाथ नमस्कार के लिए जोड़े ,और यंत्रवतआप से आप गोलियां चल पड़ीं ,जैसा उसने बाद में बतलाया था ।
महात्मा गाँधी की धोखे से की गई इस ह्त्या ने दुनिया को हिला दिया ।
भौचक्क नेहरू ने राष्ट्र के नाम संबोधन में रेडियो से बतलाया :हमारे जीवन से रोशनी चली गई है ,ज्योति स्पंद हो गई है ,दी लाईट हेज़ गोंन आउट ऑफ़ अवर लाइव्स ।
जार्ज बर्नार्ड शा ने साफ़ -साफ़ (दोटूक बतलाया )यह ह्त्या है जो खुलासा करती है ,कितना खतरनाक होता है आदमी का अच्छा होना .

जानिये "गीक होटल" क्या है "

जो लोग हरदम कंप्यूटर से चिपके रहतें हैं ,कंप्यूटर और इतर प्रोद्योगिकी (टेक्नोलोजी )का झख की हद तक स्तेमाल करतें हैं ,ओब्सेसिव यूज़र हैं कंप्यूटर के उन्हें तेक्नोफिलियाक कहा जाता है .ऐसे लोग छुट्टी के दिन भी अपनी डिजिटल ज़िन्दगी से जुदा होना गंवारा नहीं करते ।
"गीक होटल "ऐसे ही प्रोद्योगिकी प्रेमियों के लियें हैं ."गीक कहते ही कंप्यूटर प्रेमी को ,कंप्यूटर स्तेमाल के माहिर को हैं ।
इस होटल के हरेक कमरों में वायर -लेस टेक्नोलोजी का स्तेमाल किया जाता है .तमाम तरह की गेजेट्स ,गिज्मोज़ यहाँ उपलब्द्ध करवाई जातीं हैं .कंप्यूटर तमाम तरह के सोफ्ट वेयर से लैस किये जातें हैं ,फोटो ,साउंड एडिटिंग ,केम्राज़ ,वायरलेस आदि .यहाँ आकर आपकी डिजिटल ज़िन्दगी को पंख लग जातें हैं .इन होटलों की अपनी दिक्कत्तें हैं ,प्रोद्योगिकी विस्तार ,कटिंग एज टेक्नोलोजी के अनुरूप इन्हें बराबर अपडेटिंग करते चलना पड़ता है .यहाँ तक की इंटीरियर दीज़ैनिंग से लेकर कमरों की साज़ सज्जा तक तमाम जगह टेक्नोलोजी ही रिफ्लेक्ट होती है ।
वायर -लेस फैदिलिती(वाई -फाई टेक्नोलोजी )क्या है ?
यह आलमी तौर पर (दुनिया भर में )स्तेमाल होने वाली ऐसी वायर -लेस नेट -वर्किंग टेक्नोलोजी है जो ८०२.११ स्तेंदर्ड्स (मानकों )का स्तेमाल करती है .इसका विकाश १९९७ में इंस्टिट्यूट ऑफ़ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियर्स (आई ई ई ई )द्वारा किया गया था .यह तेज़ रफ़्तार वायर लेस इंटरनेट मुहैया करवाती है यहाँ किसी केबिल नेटवर्क की ज़रुरत नहीं रह जाती है ।
सारा सौदा (ताम झाम )बिना तारों (वायर -लेस )है .

शनिवार, 30 जनवरी 2010

माँ -बाप से संतानों में आने वाले रोगों से बचाव के लिए जीन किट

कुछ रोग चुपके से माँ -बाप से उनके बच्चों में दोष पूर्ण -जीवन इकाइयों के चलते चले आतें हैं ."एक्स्ट्रा -ऑर्डिनरी-मेज़र्स" फिल्म में इनका ज़िक्र है .फिल्म में बतलाया गया है ज्यादा से ज्यादा इन बच्चों की उम्र दस साल है .इसी से प्रेरित होदो बेटों का पिता इन तथा ऐसे ही वंशागत रोगों से बचाव के लिए एक जीन किट तैयार कर डालता है .सच्ची घटना (कथानक )पर आधारित है यह फिल्म .पिता ने सच मुच में ही एक जीन किट तैयार कर ली है जो जन्मजात बीमारियों से छुटकारा दिलवाने का वायदा करती है .सिस्टिक फाइब्रोसिस (एक आनुवंशिक रोंग जो पैदा होते ही शिशु की अनेक ग्रंथियों (ग्लेंड्स )को असरग्रस्त बनादेता है .नतीज़तन म्यूकस ज्यादा विस्कास (गाढा )हो अंदरूनी मार्गों को (यथा )फेफड़ों को अवरूद्ध कर स्वशन सम्बन्धी परेशानियों की वजह बनता है .)टे-सचस (टे -सेक्स डिसीज़ )जिसमे लिपिड्स दिमाग और नर्व्समें ज़माहोकर आँखों की रौशनी ले उड़तें हैं तथा दिमाग के कई अन्य कार्यों को अवरूद्ध कर्देतें हैं ),स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी,सिकिल सेल डिसीज़ तथा पोम्पे डिसीज़ ऐसी ही कुछ अन्य बीमारियाँ हैं जन्मजात ।
अलावा इसके तकरीबन कुछ सौ और रोगों से निजात दिलवाने की बात कही गई है ।
दवा निगम "कोउन्स्य्ल "का कहना है किट से एम्ब्रियो की बारीक जांच के बाद परखनली गर्भाधान के ज़रिये अजन्मे शिशु को रोग पनपने से पहलेरोंग से ही छुटकारा दिलवाया जा सकता है ।
दवा निगम के मालिक के दो बेटे फिल्म में पोम्पे डिसीज़ से ग्रस्त दिखलाए गएँ हैं .जान लेवा और ला इलाज़ है यह जन्मजात रोग "पोम्पे डिसीज़ "जिसे ग्लैकोजन स्टोरेज डिसीज़ टा -इप -२ भी कहा जाता है ।फिलवक्त -
सिस्टिक फैब्रोसिस और टे -सेक्क्स डिसीज़ की आज -माइशें इस टेस्ट किट से की जा रहीं हैं .कुछ ख़ास नस्ली समूहों (एथनिक ग्रुप्स )में यह बीमारी देखी गई है .एक एक परिक्षण आदमी की जेब खाली कर देता है .हज़ारों डॉलर्स खर्च हो जाता है ।
"कोंसेल्स टेस्ट "सेलाइवा सेम्पिल्स से दी एन ऐ अलग कर जांच को भरोसे मंद बतलाता है .प्रति दम्पति मात्र ६९८ तथा दोनों में से किसी एक की ऐसी जांच पर खर्च आता है ३४९ डॉलर्स ।
अब से पहले ऐसा मुमकिन नहीं था अब जन्म जात रोगों के एक पीढ़ी से दूसरी में चुपचाप चले आने के सिलसिले को रोकने का वायदा है ,कोंसेल्स का ।
जेनेटिक कोंस्लार्स को इसी वेला का इंतज़ार था ,अलबत्ता पीयर रिवियु तथा इस दिशा में और अध्धयन ज़रूरी हैं .

झांसे में नहीं आना है आपको ...पांच दिनी आई -पिल के .

एक पुरानी कहावत है :आजमाए को आजमाए ,चूतिया (बेवकूफ ,चुगद )कहाए .विज्ञापन का माया जाल रात दिन भरमाये है कभी तीनदिनी और कभी पांच दिनी चूक की भरपाई करने वाली कथित आपद्कालीन (इमरजेंसी पिल ).जबकि प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ बिना किसी लारा लप्पा के खबरदार करते रहतें हैं ,बारहा दोहराते हुए -बचाव में ही बचाव है ,आप वक्त रहते एहतियात बरतिए ,फूल प्रूफ एकदम से निरापद कोई भी खाई जाने वाली गोली नहीं है ,चाहे फिर वह ७२ घंटे तक कारगर रहने वाली कथित आई पिल हो या नेनो - कार जैसी नै -नवेली पांच दिनों तक कारगर रहने वाली आपद्कालीन मोर्निंग पिल ।
लेवो -नोर्जेस्त्रेल मुख्य साल्ट (घटक )है तीन दिनी आई पिल का जो बाज़ार में अनेक व्यावसायिक नामों से उतारी गई है जैसे लेवोनेल्ले ,प्लान -बी आदि तथा १४० से भी ज्यादा देशों में उपलब्द्ध है ,तकरीबन ५० मुल्कों में तो इसे बिना डॉक्टरी नुस्खे के ही हासिल किया जा सकता है ,भारत भी उनमे से एक है ।
नै दवा यूली प्रिस्टल एसिटेट व्यावसायिक नाम एल्लोने से उपलब्द्ध है ,जिसके लिए डॉक्टरी पर्ची ज़रूरी है यूरोप में जहां यह पांच दिनी चूक के बाद खाने वाली मोर्निंग पिल बिक्री के लिए बाज़ार में उतारी गई है ।एक ट्रायल में -
१७०० युवतियों में से (१६ -३६ साला )यौनसंपर्क के तीन से पांच दिनों बाद आधी को प्लान -बी तथा शेष को एल्लोने मुहैया करवाई गई ,प्लान -बी लेने वाली महिलाओं में से २२ फिर भी गर्भवती हो गईं ,जबकि एल्लोने के मामले में १५ ।
सरदर्द अवांछित पार्श्व प्रभाव के बतौर देखा गया दोनों वर्गों में .एच आर ए फार्मा के नेत्रिर्त्व में यह अध्धय्यन संपन्न हुआ .यही नैदवा निर्माता कम्पनी है .लांसेट में इस अध्धय्यन की रपट प्रकाशित हुई है .पूर्व में संपन्न अध्धय्यन से मिलान करने पर पता चला ,एल्लोने के मामले में कुल मिलाकर गर्भधारण की दर १.८ जबकि प्लान -बी के मामले में इसकी दोगुनी २.६ फीसद पाई गई ।
जो हो झूठी दिलासा खुद को देने भरमाते रहने से अच्छा है पूर्ण -सुरक्षा .बचाव में ही बचाव है ,हठी सुरक्षा घटी दुर्घटना .आखिर यह अच्छी सेक्स्युअल हेल्थ का दौर है ,बिला वजह चोट खाने का फायदा ?

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

विकिरण चिकित्सा ज़ारी ...

२००५ में फ्लोरिडा अस्पताल ने खुलासा किया ,७७ ब्रेन कैंसर के मरीजों को विकिरण की ५० फीसद खुराख लिनीयर एक्स्लारेटर की गलत प्रोग्रेमिंग के चलते दी जाती रही .हालत यह है २० में से एक मरीज़ विकिरण की अतिरिक्त डोज़ झेल रहा है .

विकिरण चिकित्सा के नुक्सानात (ज़ारी ...)


बेशक जान बूझकर कोई किसी की जान नहीं लेता .लेकिन यहाँ तो कसूर वार मशीनें हैं ,सोफ्ट वेयर है .एनेस्थेटिक देने वाली मशीनें भी ऐसी ही गलती करतीं हैं .सुरक्षा नियमों की धज्जियां यूँ ही उडती रहतीं हैं ।
बेशक विकिरण ट्यूमर पर ज़ोरदार बमबारी करता है ,पिन पॉइंट फ़ोकसिंग भी हो जाती है ,लेकिन विकिरण चिकित्सा के पेचीला पन ने नै मुश्किलें पैदा कर दीं हैं .सोफ्ट वेयर फ्ला से लेकर फाल्टीप्रोग्रेमिंग ,सुरक्षा उपकरणों की कमी बेशी के साथ साथ विकिरण चिकित्सा कर्मियों का अभाव कुल मिलाकर विकिरण चिकित्सा को सवालों के दायरे में ले आतें हैं .यही गलतियां जान लेवा हो जातीं हैं ।
जून २००९ में फिलाडेल्फिया के अस्पताल में प्रोस्टेट कैंसर के ९० मरीजों को गलती से ओवरडोज़ देने के बाद चुप्पी साध ली थी .

विकिरण चिकित्सा फायदे और नुक्सानात ?

जानतें हैं आप स्कॉट जेरोमे -पार्क्स की आखिरी इच्छा जो उसने मरने से पहले आम करने के लिए विल के रूप में रखी।
"आम और ख़ास को बतलाया जाए जेरोमे की यह खौफनाक हालत विकिरण चिकित्सा की ओवरडोज़ (गैरज़रूरी अतिरिक्त खुराख) ने की है ,उसे सुनाई देना बंद हो चुका है ,रेडियेशन उसकी श्रवण शक्ति ले उड़ा ,दिखलाई भी उसे ले दे कर ही देता है ,बीनाई भी साथ छोड़ रही है .कुछ भी गले के नीचे उतारना उसके लिए मुमकिन नहीं रह गया है ,उसके मुख और हलख में गहरे ज़ख्म हो चुकें हैं ,गला जैसे जल चुका है ,मितली हर दम आती रहती है .पता लगाया जाए ऐसा क्यों हुआ औरों को इस खोफ्नाक जानलेवा दुःख से बचाया जाए ,आखिर में इसी विकिरण की ओवरडोज़ से उसका दम घुट गया ,मर गया जेरोमे ।"
मरने से पूर्व उसने आखिरी बार क्रिसमस मनाने की इच्छा ज़ाहिर की ,उसके संगी साथी उस सागर तट की दो बाल्टी रेत ले आये ताकि वह पुरानी यादों से बावास्ता हो सके .४३ साल की उम्र में आखिर जेरोमे इस दुनिया को अलविदा कह गया ।
nyuyaark सिटी अस्पताल उसका ज़बान के कैंसर के लिए इलाज़ कर रहा था.लेकिन कंप्यूटर की उस गलती को अस्पताल कर्मी पकड़ नहीं पाए जिसके चलते लिनीयर एक्स्लारेटर ने विकिरण की अतिरिक्त डोज़ से उसका ब्रेन स्टेम खातिग्रस्त कर दिया .विकिरण ने उसका गला जलाकर रख दिया ,दांत जबड़ा छोड़ गए .और ऐसा अतिरिक्त विकिरण की बमबारी तीन दिनों तक होती रही ।
इसके बाद ही ज़ारी हुई सैंट विन्सेंट्स अस्पताल ने जो मेनहटन में स्तिथ है ,विकिरण की ओवर डोज़ के बारे में अतिरिक्त सावधानी बरतने के अनुदेश ज़ारी किये .लिनीइअर एक्स्लारेटर विकिरण (तेज़ तर्रा र ,अति शक्तिशाली विकिरण पुंज )पैदा करता है ।
स्तिथि की विडंबना देखिये ,जिस दिन यह अलर्ट ज़ारी किया गया उसी दिन स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयार्क डाउन स्टेट मेडिकल सेंटर (ब्रूकलिन )में दाखिल ३२ साला ब्रेस्ट कैंसर की एक मरीजा जन -चार्ल्स विकिरण की ज़रुरत से तीन गुना ज्यादा डोज़ फिर उसी गलती के चलते दी गई ।
दोनों की मृत्यु में एक महीने का फासला रहा .दोनों ने विकिरण का खौफ नाक मंजर झेला .बेशक इसी विकिरण ने एक बेहतरीन डायग्नोस्टिक टूल के रूप में दोनों का समय रहते रोग निदान किया लेकिन घातक खुराख ने दोनों की समय से पहले जान भी ले ली ।
इस दौर में अमरीकी विकिरण की गैर ज़रूरी और फालतू खुराख से दो चार हो रहें हैं .रोग निदान (डायग्नोसिस )के लिए प्रयुक्त विकिरण की मात्रा में १९८० के बरक्स अब सात गुना इजाफा हो चुका है .लाइफ टाइम औसत डोज़ बढ़ी है .अब आधे से ज्यादा कैंसर मरीज़ इसी विकिरण चिकित्सा के भरोसे हैं ।
बेशक विकिरण चिकित्सा ने बेशुमार जिंदगियों को बचाया है ,दुर्घटनाए भी आम नहीं हैं (रेडियेशन एक्सिदेंट्स आर रेयर )
लेकिन लोगबाग विकिरण चिकित्सा के नुक्सानात से वाकिफ नहीं हैं .

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

लिंगोथ्थान सम्बन्धी समस्याओं ने नकली व्याग्रा की आन लाइन बिक्री को हवा दी है .

लिगोथ्थान और इतर सेक्स समस्याओं ने नकली व्याग्रा की आन लाइन बिक्री को बेतहाशा (४४ फीसद )बढाया है .आज तकरीबन २३ लाख नकली दवाएं प्रचार -प्रसार पा रहीं हैं लिंगोथ्थान और अन्य यौन समस्याओं से निजात दिलवाने के नाम पर .इन दवाओं के बेरोकटोक बिक्री धड़ल्ले से आन लाइन ज़ारी है .यह कहना है ,चिकित्सा और औषध - शाश्त्र (भेषज साइंस दानों )के ब्रितानी ,स्वेडन(स्वीडन )और अमरीकी माहिरों और साइंस दानों का ।
इरेक्टाइल -डिसफंक्शन (लिंगोथ्थान अभाव )इसकी एक बड़ी वजह बना हुआ है जिसके चलते ९० फीसद तक नकली दवाएं आन लाइन बिक रहीं हैं .रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में पसरा तनाव ,दवाब तो कहीं इरेक्टाइल -डिसफंक्शन के मूल में नहीं ?

सोमवार, 25 जनवरी 2010

मधुमेह और मोटापे से राहत दिलवाने वाली युक्ति .....


साइंस दानो ने एक गैर -शल्य युक्ति तैयार करलेने का भरोसा दिया है जो १५ मिनिट में मरीज़ की आंत में फिट की जा सकती है ,तथा मोटापे की असरकारी काट ही नहीं मधुमेह की भी छुट्टी कर देगी ,राहत दिलवाएगी शुरूआती सेकेंडरी दायाबीतीज़ से .वजन को ज़रुरत के मुताबिक़ घटाकर यह मधुमेह की भी कारगर रोकथाम में असरकारी सिद्ध होगी ऐसा दावा किया गया है ।
जो हो मोटापे से ग्रस्त दुनिया वजन तो घटाना चाहती ही है .इस युक्ति का नाम है -"एंडो-बेरियर ",जो एक प्लास्टिक स्लीव है ,इस पर आने वाला कुल खर्च मोटापा घटाने वाले सबसे सस्ते शल्य कर्म (सर्जरी )से बहुत कम है ,वर्तमान में मात्र २००० पोंड्स ।
एंडोस्कोप की मदद से इसे ओरल केविटी (मुह के ज़रिये )के ज़रिये आंत तक पहुंचाया जाएगा ।
वेट लास सर्जरी के अपने खतरे हैं ,जनरल एनास्थीज़िया देना पड़ता है ,ड्रास्तिक वेट लास खुद भी एक ख़तरा बन जाता है ।
इस नान सर्जिकल युक्ति के परिक्षण (आजमाइशें,ट्रायल्स )चर्लोत्ते के कारोलिनस मेडिकल सेंटर में गत १८ माह से ज़ारी हैं ,यह सर्जिकल केंद्र नार्थ केरोलिना में आता है ।
जिन लोगों ने इस ट्रायल में भागे दारी की है वह इसकी कामयाबी से इस तरह गदगद हैं ,इन्होनें प्लास्टिक स्लीव हठवाने(रिमूव )से साफ़ इनकार कर दिया है ।
यूरोप और अमरीका में एंडो -बेरियर के व्यापक परिक्षण हो रहें हैं .गत सप्ताह इसे यूरोप में स्तेमाल किये जाने के वास्ते लाइसेंस भी मिल गया है .नीदर लेंड में किये गए एक १२ वीक ट्रायल के दौरान देखा गया जिन लोगों ने एंडो -बेरियर फिट करवाया इस दरमियान उनका वजन १६ किलोग्रेम वेट कम हो गया जबकि इसी दरमियान डाइटिंग करने वाले कंट्रोल ग्रुप का वजन ५किलोग्रेम वेटही कम हुआ ।
जो मरीज़ इसका स्तेमाल कर रहें हैं उनका वजन लगातार कम हो रहा है ,उन्हें अपना खान पान सुधारने की प्रेरणा मिली है .वह स्वास्थ्य कर खुराख पर आ गए हैं ।
छोटी आंत के पहले दो फीट के हिस्से में यह युक्ति फिट की जाती है .यहीं पर सारा भोजन ज़ज्ब (एब्ज़ोर्ब )होता है ,.मरीज़ की ब्लड सूगर कम करके ट्रायल के दौरान इस युक्ति ने उन्हें दायाबीतीज़ से निजात दिलवाई है .अब इन्हें दवा (ओरल दायाबेतिक पिल्स )की ज़रुरत नहीं हैं .

स्वच्छ ऊर्जा अब आयेगी अंतरीक्ष से ...


अंतरीक्ष विज्यानी अब पृथ्वी की कशा में ऐसे उपग्रह स्थापित करने को उतावले हैं जो सौर ऊर्जा को सीधे सीधे "इन्फ्रा -रेड -लेज़र "में तब्दील कर पृथ्वी पर किसी भी वांछित जगह भेज सकेंगें .प्रदूषण विहीन स्वच्छ ऊर्जा स्रोत इस दौर की एक बड़ी ज़रूरीयात है ।
यूरोप का एक बड़ा" निगम ई ए डी एस एस्त्रियम "जो सबसे बड़ी अन्तरिक्ष कम्पनी के रूप में विख्यात है ,अन्तरिक्ष के माहिरों की मदद से एक अन्तरिक्ष आधारित पावर स्टेशन तैयार कर लेना चाहतें हैं जो पृथ्वी पर मन चाहि जगह पर २४ घंटा बिजली मुहैया करवा सके ।
इस बिजली घर की विशेषता (खसूसियत )यह होगी "लेज़र बीम "को पृथ्वी की और कहीं भी कक्षा के नीचे भेजा जा सकेगा .दूर दराज़ के क्षेत्रों को जहां बिजली के खम्बे लगाना मुस्किल पड़ता है ,इन्फ्रा रेड लेज़र एक बड़ी सौगात के रूप में सामने आयेगा ।
यदि यह दिमोंस्त्रेटर के रूप में स्थापित होने वाला स्पेस पावर स्टेशन काम याब रहा तब बड़े बिजली घर भी देखने को मिलेंगे जिनका स्रोत अन्तरिक्ष में स्थापित उपग्रह होंगें .

रविवार, 24 जनवरी 2010

बीटिंग रीट्रीट क्या है ?

परम्परा बीटिंग रीट्रीट की अति प्राचीन है ,तब जब सूर्य के छिप जाने पर युद्ध बंदी की घोषणा बिगुल बजाकर की जाती थी .महा भारत में भी ऐसा प्रसंग आता है ।
इधर गणतंत्र दिवस समारोह की विदाई (समापन )तीन दिवसीय परेड के बाद विजय चौक ,नै दिल्ली में संपन्न होती है .,हर बरस २९ जनवरी को ,जिसमे प्रतिरक्षा सेवाओं के चुनिन्दा बेंड परम्परा गत धुनें बजा कर वातायन को गुंजा देते हैं .इस का आनंद परमानंद की स्तिथि में पहुँच जाता है ,जब एक स्वर हो सभी बेंड एक ही धुन निकाल्तें हैं ।
जैसे ही बेंड खामोश हो जातें हैं ,एकल तुरही वादक उनका स्थान ले लेता है ."सिकी ए मोल" रिवार्बरेट करने लगता है दिशान्तरों में ।
इसके बाद समवेत स्वर गूंजता है "एबाइड विथ मी "कहतें हैं यह बंदिश गांधीजी को बहुत प्रिय थी तभी से इसे बजान एकी परम्परा चली आई है ।
संध्या ठीक ६ बजे बीटिंग रीट्रीट की इत्तला बिगुल देता है ,और इसी के साथ राष्ट्रगान का स्वर गूंजता है ,तिरंगा झुका दिया जाता है और इसी केसाथ एक औपचारिक विदाई गणतंत्र समारोह की संपन्न हो जाती है ।
अचानक मूर्ती बने हुए ऊँट सवार क्षितीज से बाहर आ पृष्ठ भूमि को अलविदा कहने लगतें हैं .सजे धजे ऊंटों का काफिला एक बरस के लिए लौट जाता है ।
और इसी के साथ राष्ट्रपति भवन अपनी बगलिया इमारतों के संग रोशनियों में डूब जाता है ,रोशनियाँ जो इसी पल का इंतज़ार कर रहीं होतीं हैं .

क्या है "पिंक नोइज "?


पिंक नोइज या १/ऍफ़ ,एक ऐसी ध्वनी है जिसकी ऊर्जा सभी ओक्तेव्स (अष्टक ओं )में यकसां है .(पिंक नोइज इज ए साउंड देत हेव इक्व्युअल एनर्जी इन आल ओक्तेव्स .एक अष्टक में सात स्वर होतें हैं -सा ,रे ,गा ,माँ ,पा ,धा ,नी और फिर "सा "यह दूसरा "सा" पहले से दोगुना आवृत्ति लिए होता है ,लेकिन पिंक नोइज में पहले, दूसरे,तीसरे अष्टक की फ्रीक्वेंसी एक जैसी (यकसां )होगी .इसे एक बटा ऍफ़ से अभिव्यक्त किया जाता है (१ /फ )।
व्यावहारिक दिक्कतों की वजह से पिंक नोइज कुछ ही फ्रीक्वेंसीज़ पर पैदा की जा सकती है ,अलबत्ता ,यह कुदरती तौर पर रहती है ,होती है ,पैदा होती रहती है ।
कुछ सितारों से भी अंतरीक्ष शोध कर्ताओं ने इसे निसृत (आते ,निकलते )देखा है ,दर्ज किया है ।
हार्ट बीत भी पिंक नोइज पैदा करती है ,इसका खुलासा डी एन ए सिक्युएंस स्टेटिस्टिक्स में हुआ है .

क्या है कॉच सर्फिंग ?

इंटरनेट से दुनिया -जहां की (आलमी सूचनाएं )जानकारी हासिल करना ,दूसरी जगहों के बारे में जानना ही "कॉच सर्फिंग "कहा जा रहा है ।
कॉच सर्फिंग एक आलमी (अंतर -राष्ट्रीय ,इंटर नॅशनल ),गैर -लाभकारी (नान प्रोफिट नेटवर्क )संजाल है जो पर्यटन कर्ताओं को दुनिया जहां की सैर को निकले लोगों को स्थानीय लोगों से जोड़ने का काम करता है .यह नेट वर्क २३० देशों के लोगों को इत्तला मुहैया करवाता है ,देश विदेश की ।
२००४ से ही इसके सदस्य देश परस्पर सांस्कृतिक आदान प्रदान के लिए इस नेट वर्क का स्तेमाल कर रहें हैं ।
फिल वक्त इस नेट वर्क के सर्फर्स की अनुमानित संख्या दस लाख है .दुनिया को संस्कृति के एक सूत्र से जोड़ने एक वैश्विक संस्कृति रचने का यह एक बेहतरीन ज़रिया बन रहा है .

कैसे पैमाइश (नाप्तें हैं )करतें हैं -मैक्सिमम और मिनिमम तापमान की ?


वह ताप मापी जिस से अधिक तम तथा न्यूनतम तापमान मापे जातें हैं ,मेक्स्मम एंड मिनिमम थर्मोमीटर कहलाता है .छोटी छोटी वैध शालाएं ,जो अनेक नगरों में मौसम विभाग ने स्थापित की हैं वह इस काम को अंजाम देतीं हैं .वर्षापात ,अधिकतम और न्यूनतम तापमान की इत्तला तार द्वारा मौसम विभाग को रोजाना भेजी जाती है .इस एवज ओब्ज़र्वेत्रीज़ में वेदर में नियुक्त किये गए हैं ।हालाकि मौसम की इत्तला देने वाले उपग्रह हैं ,लेकिन मेन्युअल रीडिंग्स का अपना महत्व है .ऑब्ज़र्वर मौसम की एक महत्वपूर्ण कड़ी है ,अखबार के हाकर की तरह .
एक ही लकड़ी के बक्से में यह दोनों मैक्सिमम और मिनिमम थर्मामीटर समायोजित रहतें हैं .इसमें तापमान का पाठ रीडिंग पढने के लिए स्लिट्स (सूराख )रहतें हैं ,इनका मुख आमतौर पर उत्तर दिशा में रखा जाता है .इसे "स्टीवेंसन स्क्रीन "कहतें हैं ।
मैक्सिमम थर्मामीटर एक मरकरी -इन ग्लास थर्मामीटर है .तापमान के चड़ने पर पारा फैलता है यह एक बाधा (कोंस्त्रिक्षण )के पार चला जाता है .तापमान के गिरने पर यही रोक ,कोंस्त्रिक्सन पारे को थामे रहती है ,उच्च दाब के सहारे .यही अधिक तम ताप - मान का पाठ यानी मैक्सिमम टेम्प्रेचर है ।
मिनिमम थर्मामीटर एक एल्कोहल इन ग्लास थर्मामीटर है .इसे बक्से में होरिजोंतल (पृथ्वी के समानांतर क्षेक्तिज़ रखा जाता है .)रखा जाता है उसी लकड़ी के फ्रेम में .जैसे जैसे तापमान गिरने लगता है एल्कोहल सिकुड़ने लगता है (कोंत्रेक्त होने लगता है ),साथ ही इंडेक्स बल्ब की तरफ (जिसमे एल्कोहल भरा होता है )खिसकने लगता है .एल्कोहल की मिनिस्कस (सतह ) का पाठ ही मिनिमम टेम्प्रेचर होता है ,जिसे ऑब्ज़र्वर आकर रोज़ पढता है ।
यहाँ थर्मामीत्रिक प्रोपर्टी -एक्सपेंशन है .तापमान के साथ द्रव का प्रसार और सिकुड़ना (एक्सपेंशन एंड कोंत्रेक्सन ).

वाइल्ड -स्केप क्या है ?

यह वन्य जीवों का बगीचा है ,जहां एक भरा पूरा पारी तंत्र (पारिस्तिथि तंत्र )मेढकों ,सर्पों (सरी- सर्पों ),पक्षियों ,तितलियों का परस्पर सिम्बियोतिक लिविंग (सहजीवन )बनाए रहता है .छोटे वन्य जीववाइल्ड स्केप की मटर गस्ती (सैर )को निकलतें हैं .यहाँ इन्हें खान पानी रैनबसेरा सब कुछ नसीब होता है .जिसे कोई नगर पालिका नहीं उजाड़ सकती ।
ईट इज ए गार्डन लेंड -स्केप्द फॉर वाइल्ड -लाइफ .

क्वांटम गोंड इफेक्ट क्या है ?

अलबर्ट आइन्स्टाइन "क्वांटम एन्तेंगिल मेंट "क्वांटम उलझन ,क्वांटम जाल "को क्वांटम भौतिकी की तरह ही हास्या -स्पद समझते बतलाते थे ।
क्वांटम एन्तेंगिल मेंट की अवधारणा के तहत दो कण इस तरह परस्पर सम्बद्ध (आबद्ध और गुथे हुए हो सकतें हैं ),एक में होने वाले बदलाव की इत्तला दूसरेसे भी मिलने लगती है .तात्कालिक हो जाता है यह सम्प्रेषण ।
फिर चाहें यह दोनों कण एक दूसरे से अपार दूरी (कितने ही प्रकाश वर्ष की दूरी पर ही क्यों ना हो ,न्यूटन इसी को एक्शन एट ए डिस्टेंस कहते थे ।) पर ही क्यों ना हों ।
जो होऐसे ही एन्तेंगिल्मेंट्स की इत्तला बाकायदा ओंन रिकोर्ड्स है .इसे ही "दी गोड इफेक्ट "कहा जाता है .इसी के ज़रिये तात्कालिक सम्प्रेषण (इंस्टेंट कम्युनिकेशंस )की अवधारणा आई है ,कूट संकेतों को इसी के ज़रिये इस पार से उस पार हिफाज़त के साथ सात समुन्दर पार भेजने की सूरत बनी है ?क्या इसी में टेली-पोर्तेशन की संभावना छिपी है ?
अलबर्ट आइन्स्टाइन ने आगे चलकर बतलाया था -कोई भी सूचना प्रकाश के वेग का अतिक्रमण नहीं कर सकती .आखिर प्रकाश को भी एक स्थान से दूसरी जगह पहुचने में वक्त तो लगता ही है .

प्रति चक्रवात क्या हैं ?(ज़ारी ...)

प्रति -चक्रवात वायु -मंडलीय उच्च दवाब का एक विशाल तंत्र हैं (लार्ज सिस्टम ऑफ़ एटमोस्फियरिक हाई -प्रेशर )जिसमें पवनें केंद्र से क्लोक्वाइज़ उत्तरी में तथा एंटी -क्लोक -वाइज़ दक्षिणी गोलार्द्ध में तेज़ी से चलतीं हैं .मौसम के मिजाज़ को आम तौर पर यह मुस्तकिल (स्थाई ,यकसां )बनाए रहतीं हैं .

प्रति -चक्रवात क्या है ?

प्रति -चक्रवात , चक्रवात के विलोम हैं ,जिनमें पवनें कम दवाब वाले क्षेत्रों की ओर बहतीं हैं ,जबकि यहाँ प्रति -चक्रवातों में पवनें उच्च दवाब वाले क्षेत्रों से निम्न दवाबीयक्षेत्रों की ओर बहतीं हैं .प्रति -चक्र्वातीय पवनें उत्तरी -गोलार्द्ध में घडी की सूइयों की दिशा में यानी क्लोक -वाइज़,तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सूइयों के विपरीत यानी एंटी -क्लोक -वाइज़ ,बहतीं हैं ॥
उच्च दवाब क्षेत्र एक बड़े इलाके तक फैला रहता है ,यह उस वायु राशि के नीचे की ओर चले आने से बनता है ,जो गर्म तो होती है लेकिन नमी युक्त नहीं .आद्र नहीं रह जाती है यह गर्म हवा ,तथा जल वाष्प (मोइस्चर,नमी ,आद्रता )के अभाव में यहसूखी हवा भारीभी हो जाती है .यही हवा मोइस्चर की मौजूदगी में हलकी होती ।
नमी हलकी होती है हवा से (जलवाष्प हलकी होती है ,जल से ,वाष्प सदैव ही मदर लिक्विड से हलकी होती है )।
अब जब यह अपेक्षाकृत भारी नाइट्रोजन ओर ओक्सिजन को हठाती है ,विस्थापित करती है ,तब एंटी -साइकलों न बन ने लगतें हैं .

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

बैठे रहने के लिए नहीं डिजाइन किया गया है मानव शरीर ..


बैठे रहने के अनुकूल नहीं है मानव शरीर .फिर भी यदि आप घंटों बैठे रहतें हैं (कहीं भी ,टी वी ,कंप्यूटर के सामने या फिर कार सीट पर )तो आप की मर्ज़ी ।
सेहत के माहिरों ने पता लगाया है ,घंटों बैठे रहना नियमित कसरत करने वालों के लिए भी बुरा है ,घातक हो सकता है ।
बैठे बैठे दिन भर काम करने वाले लोग ना सिर्फ मुटिया सकतें हैं ,दिल के दौरों की संभावना भी बढा लेतें हैं ,मौत भी हो सकती है .हालाकि एक अध्धय्यन के यह अभी शूरूआती नतीजें ही हैं ,लेकिन खबरदार तो करतें ही हैं ।
स्पोर्ट्स मेडिसन के एक ब्रितानी जर्नल में प्रकाशित सम्पादकीय सलाह देता है ओथार्तीज़ को -"एक बार और सोच विचार कर लेवें ,आखिर फिजिकल एक्टिविटी है क्या ?ताकि बैठे रहने के खतरों के प्रति खबरदारी राखी जा सके ।
अध्धय्यन के मुताबिक़ चार घंटा लगातार बैठे रहने पर शरीर बाकायदा खतरनाक सन्देश भेजने लगता है (हम उसकी अनदेखी करते जाएँ यह और बात है ),शरीर में शक्कर और चर्बी का विनियमन करने वाले जीवन खंड (जींस रेग्युलेटिंग ग्लूकोज़ एंड फेट्स )एक एक करके काम करना बंद करने लागतें हैं .शत होने लागतें हैं ।
जो लोग व्यायाम भी करतें हैं एक डेस्क पर बैठे घंटों काम करते रहना उनके लिए भी नुक्सान दायक है .अलबत्ता यदि दिन भर में कसरत को थोड़ा थोड़ा करके कई मर्तबा किया जाए ,तब और बात है ,वरना सब गुड गोबर ।
एक अध्धय्यन में जो गत वर्ष कनाडा में प्रकाशित हुआ था ,बतलाया गया था ,जिसमे तकरीबन १७००० लोगों की दिन चर्या का १२ वर्षों तक जायजा लिया गया ,देर तक बैठे बैठे काम करने वालों की मृत्यु दर उनके व्यायाम करते रहने के बावजूद बढ़ जाती है .

कितना नमक खा लेतें हैं दिन भर में आप ?


खुराख में सिर्फ तीन ग्रेम नमक कम करके ९२,००० अमरीकियों को बचाया जा सकता है .शोध कर्ताओं ने पता लगाया है ,यदि अमरीकी अपनी रोजमर्रा की खुराख में से तीन ग्रेम नमक कम कर्लेवें तो सेरिब्रल वेस्क्युलर एक्सीडेंट के ६६,०० ० ,हृद रोग के ९९००० मामलों से बचा जा सकता है .कुल मिलाकर इन तमाम खतरों से ९२००० अमरीकियों को मौत के मुह में जाने से बचाया जा सकता है .सालाना इन बीमारियों पर होने वाले खर्च में से २४ अरब डोलर्स की बचत की जा सकती है ।
एक औसत अमरीकीमर्द की खुराख में १०.४ ग्रेम नमक चलाआ ता है ,महिलायें दिन भर में ७.३ ग्रेम नमक का सेवन कर लेतीं है .इसका ७५ -८० फीसद अंश संशाधित खाद्यों के ज़रिये खुराख में शामिल हो जाता है ।
हाई -पर टेंशन (उच्च रक्त चाप ,हाई -ब्लड प्रेशर ),तथा हृद रोगों की वजह बन जाने वाला नमक कुछ ज्यादा ही पसरा हुआ है अमरीकी खुराख में .भारतीय सन्दर्भ में इसकी शिनाख्त होनी चाहिए ।
अमरीकी यदि तीन ग्रेम नमक रोजाना के हिसाब से अपनी खुराख में से कम करदें तब इसका वहीफायदा होगा जो ५०५ लोगों को धूम्रपान छोड़ने पर होगा .मोटापा कम होगा .मोटापे की औसत दर भी कमतर हो जायेगी .इतना ही नहीं तमाम लोगों को कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवाएं (स्तेतिंस )भी दी जा सकेंगी ।
सिर्फ एक ग्रेम खुराखी नमक कम करदेने से ११०० -२३००० स्ट्रोक्स ,१८००० -३५००० हार्ट अतेक्स के मामलों से बचा जा सकेगा .कुल मिलाकर १५०० -३२००० मौतों को टाला जा सकेगा .बड़ा फायदा औरतों को होगा .न्यू इंग्लेंड जर्नल ऑफ़ मेडिसन में प्रकाशित एक रिपोर्ट से उक्त तथ्यों की पुष्टि होती है .

क्यों ज़रूरी है ,हर किसी को जूलियस सीज़र बनाना ?

कहतें हैं जूलियस सीज़र "सीजेरियन सर्जीकल डिलीवरी सिस्टम्स ऑफ़ बेबीज़ "के ज़रिये इस दुनिया में आये थे .इधर हमारे देश में पञ्च -तारा अस्पतालों में जहां पहले सीजेरियन -सेक्शन के ज़रिये बच्चे पैदा कराने की दर मात्र ५फ़ीसद थी ,वह बढ़कर ६५ प्रतिशत हो गई है ।
दिलचस्प होगा यह पता लगाना इनमे से कितने गैर -ज़रूरी हैं ,धन लालसा ,ग्रीड से ताल्लुक रखतें हैं .शोध प्रबंध का विषय भी हो सकता है यह सामाजिक मुद्दा .और ऐसा हम नहीं कह लिख रहें हैं ,विश्व -स्वास्थ्य संगठन का वर्तमान में ज़ारी सर्वेक्षण बतला रहा है ।
शिशु जन्म से ताल्लुक रखने वाली चिकत्सा प्रणाली में (ओब्स्तेत्रिक्स )में तमाम तरक्की के बावजूद भारत में हर पांचवा बच्चा माँ के पेट और गर्भाशय में चीरा लगवा के बाहर आ रहा है .इसमें कुछ दोष गर्भवती माताओं का भी है ,जो प्रसव को झंझट और एक स्वाभाविक सहनीय पीड़ा को गैर ज़रूरी बतला कर सीजेरियन -सेक्शन (सी -सेक्शन )का चयन कर रहीं हैं .चिकित्सकों में से कुछ ने भी चिकित्सा नीति -शाश्त्र को उठाकर ताक पर रख दिया है .मेडिकल एथिक्स से तलाक ले चुके हैं कुछ पेशा खोर चिकित्सक ।
फीटल डिस्ट्रेस हो ,या फिर सेफालो -पेल्विक दिस्प्रो -पोर्शन (इन्कम्पेतिबिलिती ),चिकित्सा कारणों से गर्भाशय में चीरा लगाया जा सकता है ,एब्दोमिन खोला जा सकता है ,जच्चा -बच्चा की सलामती के लिए ,लेकिन महज़ चिकित्सा आमदनी के मद्दे नज़र या फिर आधुनिक मरगिल्ली माँ के इल -इन्फोर्म्द होने का फायदा उठाकर किया जाने वाला सी -सेक्शन एक सामाजिक अपराध के दायरे में ही आयेगा .क्योंकि तमाम चिकित्सा उपकरण और खर्ची जब सीजेरियन -सेक्शन की नकली डिमांड को पूरा करने में जाया हो जायेगी तब जच्चा -बच्चा का स्वास्थ्य तो असरग्रस्त हो ही जाएगा ,तमाम सुविधाओं से वंचित रहेगा .क्या यह एक विकाश्मान देश की चिंता का विषय नहीं होना चाहिए ?
जबकि विश्व -स्वास्थ्य संगठन ने सी -सेक्शन के लिए १५ फीसद मामलों की सीमा निर्धारित की है .लेकिन कायदा क़ानून को हिन्दुस्तान में तवज्जो देता कौन है ?
जबकि सीजेरियन सेक्शन में किसी भी और सर्जरी की तरह माँ और शिशु दोनों को ही ख़तरा रहता है .लांसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़ उन महिलाओं के इंटेंसिव केयर यूनिट में पहुँचने की संभावना दस गुना ज्यादा हो जाती है ,जो गैर ज़रूरी होने पर भी इस का वरन किन्हीं भी कारणों से कर रहीं हैं .बरक्स उन महिलाओं के जो सामान्य प्रसव के ज़रिये पच्चा पैदा कर रहीं हैं .

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

शख्शियत :अद्वैतवादी ग्रीन मोंक -जॉन सीड

ऑस्ट्रेलियाई "रेन फोरेस्ट इन्फार्मेशन सेंटर "के संश्थापक ,पेशे से इंजीनियर रहे पर्या -वरन्विद जॉन सीड का ध्यान प्रकृति और पर्यावरण की लयकी तरफ तब गया जब न्यु साउथ वेल्स के तेरानिया क्रीक में वर्षा वनों को बचाने के लिए १९७९ में एक विशाल जन आन्दोलन हुआ .इसी आन्दोलन ने सीड की ज़िन्दगी का रुख मोड़ दिया ।
आप मानतें हैं:जो जड़ में है वही चेतन में है ।
प्रकृति अन्दर बाहर की यकसां है ,जो हमारे अन्दर सौन्दर्य तत्व है ,वही बाहर पृकृति में छितराया हुआ है ।
हम एक सतत वेब का हिस्सा मात्र है .यह जगत ना तो एक पिरामिड है और ना ही आधुनिक मानव (होमियो -सेपियन )इसमें एक विशिष्ठ स्थान बनाए हुए है .यह हमारा मात्र एक भ्रम है ,हमने प्रकृति को जीत लिया है .प्रकृति और हम दो नहीं एक हैं ।
"एक तत्व की ही प्रधानता कहो इसे जड़ या चेतन ".पूरब का दर्शन ऐसा लगता है इस वृक्ष मानव ने आत्म सात कर लिया है ।हम एम्ब्रियो और फीटस में विभेद नहीं करतें हैं .ठीक उसी दिन से जब स्पर्म का ओवा (ओवम )से मिलन होता है ,यानी फस्ट दे आफ कन्सेप्शन जीव (फ़र्तिलाइज़्द एग )में आत्मा (शख्सियत )आ जाती है .यानी जो जड़ में है व्ही चेतन में भी है .माया और ब्रह्म का अद्वैत ही आखिरी सच है .सीड भी इसी विचार के कायल हैं .
सीड मानतें हैं ,विज्यापन के माया जाल ने एक भ्रम की सृष्टि की है ,जिसके पास जितने भौतिक साधन है ,वह उतना ही सुखी है ।
सुख हमारे अपने और उन अपनों से हमारा अंतर सम्बन्ध है .कोई बाहरी उपादान सुख नहीं हो सकता यही ,जॉन सीड का सारा जीवन दर्शन है ।प्रकृति और हम दो नहीं एक हैं .पर्यावरण और पारिस्तिथिकी (पारितंत्र ,इको सिस्टम का विनाश )हमारा सर्व -नाश है .यही सीड के चिंतन का मूल स्वर है .
कितनी अजीब बात है ,पूरब (यानी हम )पश्चिम हो रहें हैं ,और पश्चिमपूरब बन रहा है ।समस्या वहीँ की वहीँ है .बीच का रास्ता निकले तो बात बने .
कहाँ हम शिव लिंग की पूजा करते थे और पश्चिम मंदिर के शीर्ष पर स्थापित स्वर्ण मीनार की .सोने के गुम्बद शीर्ष की .और कहां हम आज स्वर्ण (भौतिक उपादानों )के पीछे दौड़ रहें हैं और पश्चिम शिवलिंग की उपासना में मुब्तिला है .

बुधवार, 20 जनवरी 2010

मोलर प्रेगनेंसी (ज़ारी ....)

डी एंड एन यानी दाय्लेषण एंड क्युरितेज़ .यह एक छोटा सा आपरेशन होता है जिसके तहत एब्नोर्मल टिश्यु को साफ़ कर दिया जाता है ,चूषण विधि द्वारा (सक्शन मेथड ).कई मर्तबा यही काम दवाओं से भी हो जाता है .ताकि असामान्य आकृत विहीन मॉस से निजात मिल सके .इसे ही मेडिकल मेनेजमेंट कह दिया जाता है .कई मर्तबा कुछ ऊतक अंश गर्भाशय में बचा रह जाता है जिसे हठाने के लिए एक बार और सफाई (दाय्लेषण एंड क्युरितेज़ )करनी पड़ती है ।
इसके बाद भी लगातार परिक्षण डॉक्टर के कहे मुताबिक़ करवाने पडतें हैं .डी एंड एन के बाद यूरीन (पेशाब ,मूत्र )एवं खून के नमूने मरीज़ से जुटाए जातें हैं .जांच करके प्रेगनेंसी हारमोन ह्यूमेन -कोरियोनिक -गोनाडोट्रोपिन (एच सी जी )के स्तर का पता लगाया जाता है .जब इस हारमोन का स्तर शून्य हो जाता है ,शरीर रोग मुक्त हो जाता है ।
(जान बची और लाखों पाए ,लौट के बुद्धू घर को आये ,जान है ,तो जहां है ,औलाद भी हो जायेगी ,गोद ले ली जायेगी )
कुदरत का खेल है मोलर प्रेगनेंसी में ओवम भ्रूण में विक्सित ना होकर आकृति विहीन मॉस में बदल जाएगा .,बदल जाता है .मोलर प्रेगनेंसी बी ब्लड ग्रुप की महिलाओं में होती देखी गई है ,पाकिस्तानी और भारतीय महिलाओं में दोबारा भी इसके होने की संभावना देखी गई है ।
बीस साल से कम और चालीस साल से ऊपर की महिलाओं में मोलर प्रेगनेंसी की दर ज्यादा देखी गई है ।
ओवम में कमी बेशी (दिफेक्ट्स इन एग ),गर्भाशय में किसी प्रकार की असामान्यता (एब्नोर्मलिती इन यूट्रस ),शरीर तंत्र में पुष्टिकर तत्वों की कमी मोलर प्रेगनेंसी की वजह बन सकती है .यूरोप में मोलर प्रेगनेंसी की दर हज़ार प्रेगनेंसी के पीछे एक ,दक्षिण एसिया और मेक्सिको में १ /२००ओ है .प्रोटीन और केरोटीन की कमी ,ओव्युलर डिफेक्ट (ओव्यूलेशन ,ओवम सम्बन्धी विकार )भी इसकी वजह हो सकता है ।
इसे एकतोदर्म का रोग कहा गया है ।
एकतो -दर्म :स्तन पाई जीवों के भ्रूण को संजोके रखने वाली बाहरी परत जो निषेचित अंडे (फ़र्तिलाइज़्द ह्यूमेन एग )को गर्भाशय की दीवार से चस्पां करती है ,पुष्टिकर तत्वों को ग्रहण कर ज़ज्ब करती है -एकतो दर्म कहलाती है .मोलर प्रेगनेंसी इज ए डीज़ीज़ ऑफ़ एक्तोदार्म इन विच दी ओवम दिव्लाप्स इनटू ए शेप्लेस मॉस .

तब जब गर्भ -पात ज़रूरी हो जाता है .


एक्दर्म से सम्बन्धी एक बीमारी है त्रोफोब्लास्तिक दीजीज़ ,जो फाल्स प्र्ग्नेंसी (मोलर प्र्ग्नेंसी )कहलाती है .ज़ाहिर है स्पर्म -ओवम का मिलन यहाँ ठीक से नहीं हो पाता.कई मर्तबा ऐसा होता है ओवम (फिमेल एग )का न्युक्लिअस ही नदारद हो जाता ,या फिर एक दम से निष्क्रिय .ऐसे में स्पर्मेताज़ोयाँ (स्पर्म ,शुक्राणु )अपनी ही कुनबा परस्ती अपनी ही और प्रतियां तैयार करने लगता है .ऐसे में फिमेल एग के पास तो कोई आनुवंशिक सूचना (जेनेटिक इन्फार्मेशन )ही नहीं होती है .न्युक्लिअस ही स्रोत है जीवन खण्डों ,गुणसूत्रों का (क्रोमोज़ोम्स और उस पर विराजमान जींस का ).ऐसे में ना तो कोई भ्रूण होता है (नो फीटस ),ना प्लेसेंटा ,ना कोई फ्ल्युइड ना कोई एम्नियोटिक मेम्ब्रेन (नो एम्नियाँ न ).फिर गर्भाशय में होता क्या है ?एक आकृति -विहीन (शेप्लेस मॉस यानी मोल होता है यूट्रस में इसी लिए तो इसे मोलर प्रेगनेंसी कहा जाता है ,बस अंगूर के छोटे छोटे गुच्छेअल्ट्रा साउंड दर्शायेगा .कलर्ड एक्स रे भी यह काम कर सकता है ।

अब क्योंकि कोई प्लेसेंटा तो है नहीं ,जिसे खून के दौरान उसी रक्त से पोषण मिलता है ,जो मेन्स्त्र्युअल् साइकिल के दौरान निकलता है ,इसी लिए गर्भाशय विवर (यूटेराइन केविटी में रक्त का स्राव होने लगता है .वेजिनल ब्लीडिंग होने लगती है ।

पार्शियल मोलर प्रेगनेंसी तब होती है जब एक साथ दो स्पर्म (स्पर्मेताज़ोयाँ ,शुक्राणु )एक ही ओवम से जा मिलतें हैं ,और गर्भाधान कर्देतें हैं ,फ़र्तिलाइज़ कर देतें हैं सिंगिल ओवम को ।

एक हेल्दी तथा नोर्मल फ़र्तिलाइज़्द ह्यूमेन एग में कुल ४६ गुणसूत्र (क्रोमोज़ोम्स )होतें हैं ,जिनमे से २३ माता ,तथा इतने ही फादर से मिलतें हैं .जबकि पार्श्यल मोलर प्रेगनेंसी में २३ माता से ,४६ बाप से आ जातें हैं ,६९ ऐसे में कुछ प्लेसेंतल तिस्सू आकृति विहीन जैविक द्रव्यमान (शेप्लेस मॉस )के गिर्द जल्दी ही दिखलाई देने लागतें हैं ।भ्रूण विक्सित भी होने लगता है ,फीटल तिस्यु भी ज़ाहिर है पनपने लागतें हैं ,एक एम्नियोटिक सेक (गर्भ थैली ,एम्नियाँ न )भी बन्ने लगती है ,लेकिन यह सब एक आनुवंशिक विकृति ही है ,यह सामान्य शिशु में कभी भी तब्दील नहीं हो सकता .गर्भ पात ही ऐसे में एक समाधान है ,जिसे "डी एंड एन "यानी
aise me kuchh plesental tissue शापेलेस

खून की जांच से गर्भस्थ भ्रूण का निर्धारण .

कई मर्तबा मेडिकल रीजंस (चिकित्सा कारणों से भ्रूण की सलामती और उसमे पनपने वाली संभावित विकृति की दुरुस्ती के लिए )उसके लिंग (सेक्स ,जेंडर )के बारे में जान लेना ज़रूरी हो जाता है .एक खानदानी विरासत में मिला जेनेटिक डिस-ऑर्डर है कोन्जिनाइतल-एड्रीनल -हाई -पर- प्लेज़िया जिसके तहत लड़कियों में अस्वाभाविक एक्सटर्नल जेनितेलिया (रिप्रोदाक्तिव ओर्गेन) ,प्रजनन अंग पनपने लगतें हैं ,लड़कों जैसी भारी भरकम आवाज़ ,शरीर परमर्दों जैसे बालों का ज़मघट होने लगता है .ऐसे ही मामलों में प्रसव -पूर गर्भास्त का सेक्स जानना ज़रूरी हो जाता है ।
परम्परा गत एम्नियो -सिंतेसिस टेस्ट के तहत एम्नियोटिक सेक (एम्नियाँ न )से सूईं द्वारा गर्भ जल खींच कर सेक्स निर्धारण किया जाता है ,लेकिन यह तरीका गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में ही आजमाया जा सकता है ,तब तक कोंजी -नैटल-एड्रीनल हाई -पर प्लेज़िया के मामले में किसी भी प्रकार के समाधान या दुरुस्ती के लिए देर हो चकी होती है .ऐसे ही मामलों में नीदर्लेन्ड के शोध -कर्मियों द्वारा विकसित इस ब्लड टेस्ट द्वारा शिशु का लिंग जानना बड़े काम की चीज़ सिद्ध हो सकता है .इस टेस्ट्स को गर्भावस्था के पहले चरण में ही आजमाया जा सकता है ।
याद रहे गर्भ जल परीक्षण द्वारा सेक्स निर्धारण निरापद नहीं है ,इससे फीटस को नुकसानी भी उठानी पड़सकती है .अलावा इसके यह एक इन्वेज़िव तरीका है ,एम्नियाँ न में सूईं चुभोनी पड़ती है ।
जबकि यह टेस्ट गर्भावस्था के दौरान एक रूटीन खून परीक्षण की तरह कर लिया जाएगा ऐसा दावा कर रहें है ,ओब्स -तेत्रिक्सएंड गैनेकोलाजी जर्नल में प्रकाशित लेख के नीदर्लेन्ड वासी शोध -कर्मी .इस टेस्ट को जिसके तहत माता के खून में जांच के दौरान कुछ सुनिश्चित और ख़ास मार्कर्स का पता लगाया जाता है .इसे यूं तो पहले भी आजमाया जाता रहा है जिसकी फीसद कामयाबी यकसां नहीं रही है ,लेकिन प्रस्तुत शोध इसके नतीजों को लिंग -निर्धारण के मामले में १०० फीसद खरा बतला रही है ,जिसके नतीजे २०० गर्भवती महिलाओं पर कामयाबी के साथ आजमाए जा चुके हैं ।
अलबत्ता इस टेस्ट पर कितनी खर्ची आएगी ,कब यह आम फ़हम (आम आदमी को उपलब्ध होगा )होगा इस बारे में शोध -करता खामोश हैं .जो हो इसे एक एहम ब्रेक -थ्रू समझा जाएगा .अलबत्ता भारत के सन्दर्भ में खुदा खैर करे ,जहां औरत -मर्द अनुपात पहले ही बहुत विषम हो चुका है .लडकियां लगातार गायब हो रहीं हैं .थेंक्स तू अल्ट्रा -साउंड ।

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

बिल बोर्ड्स हैं जन सुविधाएं ?(कथा वृत्तांत )

शाम के वक्त ६ बजे के आस पास दिल्ली की सड़कें बदहवास हो जाती हैं .स्कूटर वालों को शिफ्ट बदलने की उतावली होती है ,किराए का तिपहिया मालिक को लौटाना होता है .लालच यह भी होता है ,एक आदि सवारी उधर की ही मिल जाए जिधर उसे जाना है ।
सवारी की अपनी पीड़ा होती है ,उसके गंतव्य के लिए चलने के लिए स्कूटर (तिपहिया )तैयार हो जाए तो उसकी लाटरी खुल जाती है ,उस पर भी मीटर अपने आप से डाउन करदे तो सवारी उपकार से झुक जाती है .कमसे कम उसके साथ तो अब इस उम्र में ऐसा ही होता लगता है ।
स्कूटर वाला उसके गंतव्य के लिए चलने के लिए तैयार ज़रूर हुआ ,लेकिन उसके चारा डालने के बाद "दस रूपये फ़ालतू दूंगा "(जो यह मांगेगा उससे ).यह क्या इसने तो मीटर भी डाउन कर दिया .अब तो वह करूणा से भर गया ,तब और भी ज्या दा जब उसने बतलाया -बाबूजी मुझे टट्टी जाना था .उसने कहा ,मेरे घर चले जाओ ,मैं अकेला हूँ ,चाबी मेरे पास है ."मैं तो इसी लिए रेलवे स्टेशन जा रहा था "-ज़वाब मिला .लेकिन वह स्कूटर चलाता रहा .संकोच वश रुका नहीं .मैंने कहा ठीक है भाई मैं ओर्थो- नोवा अस्पताल जा रहा हूँ .वहां तुम्हे तोइलित तक मैं ले जाउंगा ,वेस्त्रँ टट्टी है ,लौट कर आना तुम्हारा काम ,अन्दर से बंद कर लेना ।
दिल्ली की सड़कें अपनी ही तरह आवारा थीं .कौन कहाँ चल रहा है ,लें न वें न क्या होती है .यह मेट्रो के निर्माणाधीन होने से सब गुड गोबर हो रहा है .वैसे भी यहाँ लोग फुट पाथपर भी चढ़ कर अपना वाहन आगे निकाल लेने की तक में रहतें हैं .आई आई टी मोड़ से राईट को मुड़ना था .सड़कें खचाखच भरीं थी .ट्रेफिक रेंग रहा था .काफी देर के बाद सड़क ने रफ़्तार पकड़ी .साला यु -टार्न भी खासा लंबा हो चुका था .नए बने फ्लाई ओवर के नीचे से जाने लगा है .मुड़ने के बाद भी ५ -७ मिनिट और लग गए .बाएं हाथ को पार्क देख कर जहां अन्धेरा था स्कूटर वाले में जान आई ,मेरी तरफ देखते हुए प्रार्थना में बोला ,साहिब यहाँ टट्टी चला जाउंगा आप यहीं उतर जाओ .मैं तैयार था .बस सौ मीटर ही तो और आगे था ओर्थो -नोवा अस्पताल ।
जितने खुले पैसे मेरे पास थे व्ही लेकर चला गया .मुझे तो दस रूपये फ़ालतू देने थे .उसके पास छुट्टा नहीं था ।
सोचता है वह जन -सुविधाएं कहाँ हैं .पंडारा रोड पर वह भी तो पूरे दो साल रहा है .एक ही सड़क पर जन सुविधाएं हैं ज़रूर लेकिन बिल बोर्ड्स से कवर्ड हैं .पता ही कहाँ चलता है .यहाँ जन सुविधाएं भी हैं .बेहद खूबसूरत अंदाज़ में कहीं जीरो -साइज़ हीरोइने हैं कहीं बिग -बी .सब विज्यापन की माया है .टट्टियों का भी व्यवसाई -करण .यहाँ आदमी का बस चले ,दो पोस्टर अपने बाप के मुह पर भी चिपका दे सोचता हुआ वह आगे बढ़ गया .

सोमवार, 18 जनवरी 2010

भू -कंप नापने का रिख्तर पैमाना क्या है ?


१९३४में एक अमरीकी भू- कंप विज्यानी चार्ल्स ऍफ़ रिख्तर ने एक पैमाना इजाद किया जिसे रिख्तर पैमाना कहा जाता है .इस पैमाने पर मेग्नित्यूद(परिमाण )५.०का भूकंप ४.० परिमाप वाले भू -कंप से दस गुना ज्यादा भू -कंप दोलन पैदा करेगा .भू -कम्पीय तरंग दस गुना ज्यादा शक्ति शाली होगी .जबकि निसृत (पैदा )ऊर्जा ३२ गुना ज्या दाहोगी ,इसीलियें इसे बेस तें न (लोग्रेथ्मिक बेस तें न स्केल )कहा जाता है ।
इस पैमाने पर जहां १.० मेग्नित्यूद शक्ति के भू -कंप से ६ ओंस ट्रायो-नाइट्रो-तोल्वीं (टी एन टी विस्फोटित करने से पैदा ऊर्जा के तुल्लय ऊर्जा )निकलेगी वहीँ ८.० परिमाण वाले भू -कंप से साठ-लाख टन टी एन टी विस्फोट के बराबर ऊर्जा निकलेगी जो भारी तबाही का कारण बनेगी ।
इस पैमानेपर रिनात्मक (नेगेटिव नंबर )परिमाण का भू -कंप भी दर्ज किया जा सकता है ,१०.० परिमाण का अति -विनाश कारी कंप भी .यह एक ओपिन स्केल है ।
अलावा इसके मर्केली स्केल है ,और पैमाने भी है ,विनाश का जायजा उस स्थान की तोपों -ग्रेफ़ी (स्थल -आकृति )के आधार पर लिया जाता है .मजबूत शिला खण्डों की नींव पर खड़े भवनों को रेट -मिटटी पर खड़ी इमारतों के बरक्स ज्यादा नुकसानी उठानी पड़ती है ।
अब भवन निर्माण में भू -कंप इंजीनियरिंग को भी शामिल किया जा रहा है ,भू -कंप रोधी इमारतें बनाई जा रहीं हैं ,ताकि विनाश को सीमित किया जा सके .

फ़ूड एंड मूड यानी जैसा अन्न वैसा मन .


अक्सर कहा गया है -जैसा अन्न वैसा आदमी का मन ,चित्त ,मिजाज़ ,जैसा पानी वैसी वाणी .अब साइंस दान भी इस ख़याल को तस्दीक करने लगें हैं .एक ताज़ा अध्धय्यन बतलाता है ,जंक फ़ूड उड़ाते रहने वाले "अवसाद यानी डिप्रेशन "के शिकार हो सकतें हैं ।
इनका चित्त खिन्न (अवसाद ग्रस्त ,उखडा उखडा ,अनमना )रहने लगता है ।
ब्रितानी और फ्रांस के साइंस -दानों ने लन्दन के एक कार्यालय में काम करने वाले ३४८६ औरतों और मर्दों के खान पान और चित्त का विश्लेषण करने के बाद उक्त नतीजे निकाले हैं .उम्र और सेक्स के लिए मार्जिन छोड़ने के बाद ही यह निष्कर्ष निकाले गए हैं ।
संशाधित खाद्य पर निर्भर लोग अपनी वेस्ट लाइन ही खराब नहीं करते अपना चित्त भी खराब कर लेते हैं .मन नहीं लगता इनका ,कहीं भी .जबकि स्वास्थाय्कर ताज़ा भोजन करने वाले प्रसन्न चित्त प्रसन्न वदनखुशदिल ,खुश मिजाज़ बने रहतें हैं .

कहाँ कहाँ डेरा है एंटी -ओक्सिदेंट्स का ?




बहु श्रुत एंटी -ओक्सिदेंट्स इस प्रकार हैं .(१) विटामिन -ए :केरोतिनिड्स भी इसी वर्ग में आतें हैं .गाज़र (केरट्स )स्क्वाश ,ब्रोक्काली ,शकरकंद (स्वीट पटेटो)./टमाटर ,कैल (वेरायटी ऑफ़ केबेज़ )कोलार्ड्स (ए वेरायटी ऑफ़ कैल विद ए क्राउन ऑफ़ स्मूथ एडिबिल लीव्ज़ ),केंटालूप ,पीचिज़ (आडू ,सतालू ),केल(करम कल्ला ).,एप्रिकोट्स (खूबानी ),ब्राईट कलर्ड फ्रूट्स और वेजीतेबिल्स इसी वर्ग में आयेंगें ।
(२)विटामिन -सी :खट्टे फल (साइट्रस फ्रूट्स ),संतरा ,किन्नू ,लाइम ,हरी -मिर्च ,ब्रोक्काली (फूल गोभी की एक किस्म )हरे पत्ते वाली सब्जीयाँ ,स्त्राबेरीज़ एवं टमाटर भर पूर स्रोत हैं विटामिन -सी का ।
(३)विटामिन -ई :तमाम तरह के नट्स (मेवे जैसे वाल नट्स आदि ),सीड्स ,होल -ग्रेन्स (मोटे अनाज ),पत्ते -दार सब्जीयाँ ,वेजिटेबिल तथा लीवर -आइल (वानस्पतिक और लीवर आइल )।
(४)सेलीनियम :मच्छी ,शेल फिश ,रेड -मीत,ग्रेन्स (अनाज ),अंडे ,चिकिन और लहसुन (गार्लिक )सेलेनियम के अच्छे स्रोत हैं ।
कुछ और कामन एंटी -ओक्सिदेंट्स इस प्रकार हैं :
फा -इतो केमिकल्स इसी वर्ग में आयेंगें .(१)फ़्लेवोनोइद्स /पोली -फीनोल्स :सोय रेड -वाइन ,काले बैंजनी अंगूर ,कोंकोर्ड ग्रेप्स ,अनार (पोमेग्रेनेट्स ),क्रेंबेरीज़ ,चाय आदि इनसे भरपूर हैं ।
(२)लाइ -कोपीन :टमाटर ,टमाटर से तैयार अन्य उत्पाद ,पिंक ग्रेप फ्रूट्स ,तरबूज (वाटर -मेलन )आदि लाइकोपीन के प्रचुर स्रोत हैं ।
(३)ल्युतीं न :गहरे हरे रंग की सब्जीयाँ (डार्क ग्रीन वेजितेबिल्स )जैसे करम कल्ला (कैल ),ब्रोक्काली ,किवी ,ब्रूसेल्स स्प्राउट ,पालक (स्पिनाच )।
(४)लिग्नन :फ्लेक्स सीड्स ,ओत मील ,(क्वेकर ओअट्स ),बार्ले ,रए
(५)विटमिन सरीखे ओक्सिदेंट्स :को -एंजाइम्स (को -क्यू १० ),ग्लुताथिओन ।
एंटी -ओक्सिदेंट्स एंजाइम हमारा शरीर भी तैयार करता है ,जैसे सुपर -ओक्सिदेज़ दिस्म्युतेज़ (एस ओ डी ),केतालेज़ ,ग्लुताथिओन पर -ओक्स्सैद .फ्री रेडिकल्स से होने वाली तबाही को यह भी कम करतें हैं ,फिर भी डा -इतरी (खूराखी )एंटी -ओक्सिदेंट्स की अपनी ज़रूरीयात है

रविवार, 17 जनवरी 2010

कन्जक्तिवाइतिस (नेत्र -स्लेश्मला शोथ )को जानिये .

मोटे तौर पर आँख की भीतरी भाग की झिल्ली सूजन को नेत्र स्लेश्मला -शोथ (कन्जक्तिवाइतिस )कहा जाता है ।
स्लेश्मला अथवा कन्जक्तिवा आँख के भीतरी भाग की बहुत ही नाज़ुक स्लेश्मल झिल्ली को जो पलक के अंदरूनी भाग को पूरी तरह ढके रहती है तथा कोर्निया (स्वेत मंडल यानी आँख की पुतली की रक्षा करने वाला सफ़ेद भाग )से जुडी रहती है ,कहा जाता है .इसी में किसी प्रकार के संक्रमण ,चोट लगने ,किसी भी प्रकार की एलर्जी (प्रत्युर्जा )से पैदा सूजन को स्लेश्मला शोथ (कन्जकती-वाइटिस)कहा जाता है .संक्रमण (इन्फेक्शन )की वजह जीवाणु (बेक्टीरिया )विषाणु (वायरस ),विंड ,स्मोक ,पोलें- न ,रेडियेशन (किसी भी प्रकार का विकिरण )या फिर रासायनिक एजेंट भी बन सकता है .इसे चेन्नई में "मद्रास -आई "भी कह दिया जाता है ।
ईट इज दी इन्फ्लेमेशन ऑफ़ दी आउटरमोस्ट कवरिंग ऑफ़ दी आई -बाल (कोर्निया )एंड इनर लेयर ऑफ़ आई -लीड ,जैसा हम ऊपर बतला आयें हैं ।

मरीज़ के तौलिये ,रूमाल आदि स्वच्छ और अलग रखने के अलावा उससे हाथ मिलाने से बचना चाहिए (मिला लिया ,तो हाथ और कुछ नहीं तो जर्मी -साइड युक्त लाइफ बॉय या ऐसे ही और किसी साबुन से साफ़ किजीये .वाश बेसन आदि की नाब आदि छूने पर भी ऐसा ही किजीये .मरीज़ से घनिष्ट -ता से बचिए .इसका रोगाणु (पैथोजन ,रोग कारक विषाणु /जीवाणु )हां -इली इन्फेक्शस होता है .वयेक्तिक संपर्क से फिलता है यह संक्रमण .

डिजिटल क्लीन्ज़ भी ज़रूरी है ?

सुविख्यात संगीत- कार ,ब्लोगर एवं ट्वीटर जॉन मायर ने नए साल के पहले सप्ताह (जनवरी १ -जनवरी ७ ,२०१० )के लिए पक्का फैसला कर लिया है ,नए साल का स्वागत वह पहले पूरे हफ्ते लोगों से मिलने जुलने ,प्रकृति से जुड़ने में बितायेंगें .ज़ाहिर है इस दरमियान वह अपने ब्लॉग से नदारद रहेंगें ,चहकने (ट्वीट)से भी baaz aayengen .tamaam tarh ki sosal netvarking saaits से door रहेंगें .unke इस nishchay ko hi डिजिटल kleenzing kahaa samjhaa jaa rahaa है ।
ee -meling ,texting से भी dilo -dimaag ko rahat dilvaane ki zaroorat samjhi gai है .aakhir shrir tantr ki safaai के लिए भी to ham log pargetivs का stemaal karten hain ।
ise letest helth fed aap kahnaa chaahen ,shauk से kahlen ,है yah kaam ki baat .

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

कैसे काम करतें हैं "एंटी -ओक्सिदेंट्स "?



पिछले लेख में हमने बतलाया था ऑक्सीकरण (ओक्सिदेशन )/सेल मेटा बोलिज्म के फलस्वरूप कुछ तेज़ तर्रार ऐसे पदार्थ पैदा हो जातें हैं जो अन्य रसायनों से मिलकररासायनिक प्रतिक्रया के तहत ज़ोरदार प्रतिक्रया करतें हैं .इन्हें "रिएक्तेन्त्स "कहा जाता है .यही हैं खतरनाक ओक्सिजन्फ्री रेडिकल्स. .एंटी -ओक्सिदेंट्स इन्हें ही हमारे शरीर से फ्लश आउट (निकाल बाहर )करतें हैं .आइये देखें कैसे ?
एंजाइम सुपरोक्सिदेज़- इज दिस्म्युतेज़ तथा परोक्सिदेज़ तथा विटामिन ए ,सी और ई जिन्हें प्रमुख एंटी -ओक्सिदेंट्स समझा जाता है इन्हीं खतरनाक ओक्सिजन फ्री रेडिकल्स से निजात दिल्वातें हैं .कोशिकीय एंजाइम्स (सुपर ओक्सिदेज़िज़ दिस्म्युतेज़ एवं अन्य सेल्युलर एंजाइम्स )घातक हाई -द्रोक्सिल रेडिकल्स को हाई -द्रोजन -पर -ओक्स साइड में पहले तो तब्दील कर देतें हैं .और फिरइसे निरापद जल और ओक्सिजन में परिवर्तित कर देतें हैं .और इस प्रकार कोशिका और माइतो-कोंद्रिअल मेम्ब्रेंस को होने वाली नुकसानी इस तब्दीली के कारण टल जाती है .यही हाई -द्रोक्सिल रेडिकल्स कोशिकीय प्रोटीनों की नुकसानी तथा एंजाइम्स को भी तबाह कर सकतें हैं ,यहाँ तक की डी एन ए उत्परिवर्तन (डी एन ए म्युतेशंसकी वजह भी बन सकतें हैं .ज़ाहिर है बहुत हानि कारक होतें हैं -ओक्सिजन फ्री रेडिकल्स ,हाई -द्रोक्सिल रेडिकल्स ।इसी घटा -टॉप में -
सेल एंजाइम्स प्रोतेकतार्स (कोशिका एंजाइम्स को बचाने वाले सहायक )की भूमिका में आ खड़े होतें हैं -एंटी -ओक्सिदेंट्स विटामिन्स ई और सी तथा बीटा-kएरोतींस ,जो विटामिन ए का ही आदिम प्रारूप है ,प्रीकर्सर है .ये विटामिन या तो फ्री रेडिकल्स को ज़ज्ब (एब्ज़ोर्ब )कर लेतें हैं या फिर इनसे चस्पां होकर (अटेच हो ) इन्हें आम कोशिकाओं पर धावा बोलने से रोक लेतें हैं ।
कभी कभार कुछ परिस्तिथियों में ओक्सिजन फ्री रेडिकल्स का बहुत अधिक (अतिरिक्त उत्पादन )बन जाना उपलब्ध ओक्सिदेंट्स पर हावी हो जाता है .ऐसे में डी एन ए म्यूटेशन का ख़तरा बढ़कर कैंसर की वजह बन जाता है ।
ओरल विटामिन्स तथा फ़ूड एडिटिव्स इसीलिए आज एंटी -ओक्सिदेंट्स थिरेपी का आवश्यक अंग बने हुए हैं।
ऐसी दवाओं की खोज ज़ारी है जो एंटी -ओक्सिडेंट एक्टिविटी की तरह काम करें ,एजिंग को मुल्तवी रखें .इसीलियें इस दौर में एंटी -ओक्सिदेंट्स को इतना हां -इप किया जा रहा है .गहरे रंग के फल तथा तरकारियाँ (वेजितेबिल्स )एंटी -ओक्सिदेंट्स से भरपूर हैं .और ग्रीन टी को क्यों भूलतें हैं ?

एंटी -ओक्सिदेंट्स को जानिये .


कुछ खाद्य पदार्थों में ऐसे पोषक तत्व होतें हैं जो हमारे शारीर की साफ़ -सफाई करके इसे कैंसर से बचाए रह सकतें हैं .आम तौर पर इन्हें ही "एंटी -ओक्सिदेंट्स "कह दिया जाता है ।अलबत्ता एंटी -ओक्सिदेंट्स ऐसे पदार्थ को भी कह दिया जाता है जो आक्शिकरण (ओक्सिदेशन )के विनाशकारी प्रभाव को मुल्तवी (रोके )रख सकतें हैं .एंटी -ओक्सिदेंट्स ऐसा हमारे शरीर के अलावा खाने के चीज़ों और प्लास्टिक्स में भी कर सकतें हैं .कुल मिलाकर एक ऐसा एजेंट जो ओक्सिदेशन से पैदा नुकसानी को टाल सकता है एंटी -ओक्सिडेंट कहा जा सकता है .चाहे फिर वह कुदरती तौर पर पदार्थ हों या फिर संशाधित (संस्श्लेषित ,कृत्रिम तौर पर तैयार )।

दोनों ही स्थितियों में यह ओक्सिजनफ्री रेडिकल्स से पैदा नुकसानी से कोशिकाओं को बचाए रह सकतें हैं .फ्री -रेडिकल्स हाई -ली रिएक्टिव कंपाउंड्स (तेज़ रासायनिक क्रिया करने दर्शाने वाले यौगिक )होतें हैं जो सेल मेटा बोलिज्म (कोशिका -अप्चय्याँ न /कोशिका च्या- अपचय )के उप उत्पाद के बतौर पैदा हो जातें हैं ।

,एंजाइम्स (सुपर ओक्सिदेज़ ,दिस्म्युतेज़ ,पर -ओक्सिदेज़ेज़ आदि ),विटमिन्स ए ,सी ,ई एंटी -ओक्सिदेंट्स को हमारे सिस्टम से (शरीर क्रिया तंत्र )निकाल बाहर करने वाले सफाई कर्मी हैं ।

विकाश कर रहा है ,इवोल्व हो रहा है "वाई -गुणसूत्र "

मर्द एक "एक्स -वाई गुणसूत्र "शख्सियत है तो औरत "एक्स -एक्स गुणसूत्र धारी ".ज़ाहिर है औरत वाई -गुणसूत्र (वाई -क्रोमोजोम )की स्वामिनी नहीं है ।

बच्चे का सेक्स (लड़का या लड़की होना )मर्द के हाथों में है ना की महिलाओं के .बेशक महिलायें परस्पर दुरभि -संधि कर ,क्लोनिं ग के ज़रिये सिर्फ लडकियां ही आइन्दा पैदा करने का बीड़ा उठा सकतीं हैं .दीगर बात है यह ।

यहाँ मुद्दा दूसरा है .वाई -क्रोमोजोम के बारे में अब तक की सबसे बड़ी खबर है ,जो इस प्रकार है ।

शोध कर्मियों ने मर्द और चिम -पान्ज़ी के गुण सूत्र का विस्तृत और खंड खंड अध्धय्यन करने के बाद पता लगा या है ,हर टुकडा (संभाग ,सेक्शन )दोनों का एक दम से जुदा है .मर्द के क्रोमोज़ोम्स पर जो जींस (जीवन खंड ,जीवन इकाइयां )डेरा डाले हुए हैं ,वह चिम -पान्ज़ी के गुणसूत्रों पर बिलकुल नहीं हैं ।

यदयपि आदमी और चिम्प्स के सभी गुणसूत्रों का नक्शा तैयार कर लिया गया है ,लेकिन विस्तृत अध्धय्यन और मिलान चिम्प और मर्द के सिर्फ वाई और क्रोमोजोम नंबर २१ का ही आदिनांक किया जा सका है ।

तो भी एक बात जो एक दम से साफ़ है वह यह है ,वाई क्रोमोजोम (मर्द का )बला की तेज़ी से विकास मान है इवोल्व कर रहा है .जबकि दोनों के मर्द और चिम्प के वाई -गुणसूत्र में तीस फीसद का अंतर है ,बाकी गुणसूत्रों में यह फर्क मात्र २ फीसद पाया गया है ।

अब तक वाई क्रोमोजोम मर्द का जेनेटिक्स का "रोडनी देंजर्फील्ड "समझा गया था .कहा गया था ,बाकी गुणसूत्रों के बरक्स वाई पर विराजमान जीवन खण्डों (जींस )की संख्या भी सबसे कम है ,बरक्स दुसरे गुणसूत्रों पर बैठे जींस के ।
कहा गया यह भी था :आने वाले पचास हज़ार सालों में वाई -क्रोमोजोम का नामो निशाँ भी मिट जाएगा .ऐसे तमाम लोगों की नज़र एक शैर :अपना हाथी दांत का सपना लेकर अपने पास ही बैठो ,दल दल में जो फंसा हुआ था ,अब वो हाथी ,निकल गया है .

अपना हाथी दांत का सपना लेकर अपने पास ही बैठो ,.....

अपना हाथी दांत का सपना लेकर अपने पास ही बैठो ,

दलदल में जो फंसा हुआ था ,अब वो हाथी निकल गया है ।

अरे दधीची झूठा होगा ,जिसने करदीं दान अस्थियाँ ,

जबसे तुमने वज्र सम्भाला ,मरने वाला संभल गया है ।

बुरी खबर है उन नारीवादियों के लियें जो पुरूष यौन गुणसूत्र (मेल सेक्स क्रोमोजोम -वाई ) के छीजते चले जाने की पहले आई खबर पर इठला -इतरा रहे थे .कहा गया था ,वाई -क्रोमोजोम के पास जींस का खज़ाना भी कम रह गया है ,एक्स -के बरक्स ।

अब पता चला है :वाई -गुणसूत्र इवोल्व कर रहा है ,विकाशमान है ।

तो महिला वादियों मर्दुए को आदिम घोषित करने की नादानी छोडो .वाई -क्रोमो जोम शेष ह्यूमेन -जेनेटिक कोड (मानवीय आनुवंशिक कूट )के बरक्स कहीं ज्यादा तेज़ी से विकास मान है ।

चिम -पान्ज़ी महोदय से हमारे वाई -क्रोमोजोम का मिलान करने पर पता चला है ,दोनों में तीस फीसद का फर्क आ चुका है .जबकि शेष गुणसूत्रों (सोमाटिक-क्रोमोज़ोम्स )में मर्द और चिम -पान्ज़ीके मात्र २ फीसद का अंतर है ।

विज्यान पत्रिका "नेचर "का ताज़ा अंक उक्त तथ्यों की खबर दे रहा है ,आन लाइन । गत साथ लाख बरसों में दर्ज किये उक्त परिवर्तन ।
एम् आई टी में जीव विज्यान के प्रोफ़ेसर डेविड पेज (आप वाईट हेड इंस्टिट्यूट ,केम्ब्रिज के निदेशक भी हैं .)कहतें हैं ,ह्यूमेन क्रोमोज़ोम्स में यदि कोई सबसे ज्यादा इवोल्व (उद्भवित )हो रहा है ,वह मर्द को मर्दियत प्रदान करने वाला "वाई -क्रोमोजोम "ही है ।
(गलत फहमी में ना आयें मर्द -इवोल्व वाई -क्रोमोजोम हो रहा है ,मर्द नहीं )।
मर्द सिर्फ अपने जीवन खण्डों का जमा जोड़ नहीं है .सामाजिक परिंदा भी है .

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

बचाए रख सकती है "ग्रीन टी "लंग केंसर से

एक अध्धय्यन की माने तो ग्रीन टी का नियमित सेवन ,एक प्याला ग्रीन टी आपको फेफड़ा कैंसर से बचाए भी रख सकती है (धूम्रपान करने वालों को भी लाभ पहुँच सकता है ,धूम्रपान छोड़ने पर फायदा ही फायदा है )।
एक प्राकृतिक चिकित्सा सा कहा गया बतलाया जाता रहा है -ग्रीन टी को .बारहा कहा गया है ,मधुमेह (शक्कर की बीमारी जीवन शैली रोग ),डिमेंशिया(उन्माद ,अल्ज़ैमार्स आदि )और खून से चर्बी निकाल बाहर करने का कुदरती तरीका है ग्रीन टी का नियमित सेवन ।
समझा जाता है ग्रीन टी में मौजूद रासायनिक यौगिक "पोलिफीनोल्स "इन्फ्लेमेशन कम करता है ।
ताइवान में संपन्न एक ताज़ा अध्धय्यन की माने तो ग्रीन टी में मौजूद "एंटी -आक्सिदेंट्स "डी एन ए को होने वाली नुकसानी को मुल्तवी (रोके रखतें हैं )रखतें हैं .यही नुकसानी कैंसर की बुनियाद रखती है ,एड लगाती है तमाम तरह के कैंसरों को ।
एनशियेंट -ब्र्यु धूम्र पान करने ,ना करने वालों को बराबर पांच गुना ज्यादा कैंसर के खतरों से बचाव में कारगर हो सकती है .

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

यौन सुख से जुडी है दिल की सेहत की नवज ...

यौन सुख से जुडी है दिल की सेहत की नवज ,कमसे कम मर्दों के बारे में तो ऐसा कहा ही जा सकता है .एक अभिनव अध्धय्यन के अनुसार हफ्ते में दो सेक्स सेशन (भौतिक और मानसिक परितुष्टि -पूर्ण यौन सम्बन्ध )मर्दों के लिए दिल की बीमारियों के खतरे ४६ फीसद तक कम कर देता है .लेकिन गलत खान पान ,धूम्रपान की लत से पैदा ख़तरा अलग है यौन सुख से (दाम्पत्य यौन से शरीर और मनदोनों को शांत करने वाला सम्भोग ही असली सम्भोग है ,तृप्ति पूर्ण योग सा )।
अदल्त्रीहेल्दी सेक्स में नहीं आयेगा .

रविवार, 10 जनवरी 2010

साइज़ जीरो का मतलब समझ आ गया तो ....

कपड़ों का नाप बतलाने के लिए अमरीका ने एक केटा-लाग सिस्टम तैयार किया है .अमरीका वासी खासे मोटे होतें हैं ,इफरात का खाना पीना है .औरतें भी इसका अपवाद नहीं हैं .लिहाजा अमरीकी महिला के कपड़ों का औसत साइज़ १४ है .अब आप अंदाजा लगा सकतें हैं -जीरो पर आकर साइज़ की न्यूनतम संभव माप आ जाती होगी ।

जिसे अमरीका में साइज़ जीरो बतलाया जा रहा है ,वह युनाइतिद -किंडम (यू .के साइज़ )में साइज़ ४,यूरोप में ३२ ,इटली में ३६ ,ऑस्ट्रेलिया में आकर ४,हो जाता है .मर्दों की बात करें तो उनके लिए यह २१ हो जाएगा ।

यूं जीरो के नीचे साइज़ डबल जीरो (००)भी है .औसत सेहत के बरक्स साइजिंग सिस्टम बदला जाता रहा है ।

साइज़ जीरो का मतलब है :३०-२२ -३२ ,इंचों में सीना (छाती ),वेस्ट ,तथा नितम्ब में फिट आजाने वाले कपड़ों का नाप ।

यूं यही माप ३३ -२५ -८१ तक जा सकती है .बस यही है ज़ीरोसाइज़ की रेंज ।

ब्रिटेन में यही नाप एक ८ वर्षीय लड़की का होगा .आजकल सौदर्य प्रतियोगिताओं का पैमाना अच्छे स्वास्थ्य को बनाया जाता है ,जिसके तेहत १८.५ -२५ बोडीमॉस इंडेक्स वाली युवतियां ही इनमे शिरकत कर सकतीं हैं ।

शरीर के भार को किलोग्रेम में लिखकर उसे किसी व्यक्ति की ऊंचाई को मीटर में लिखकर उसके वर्ग (स्क्वायर )से भाग देने पर जो भाग फल आता है वाही बोडी मॉस इंडेक्स (बी एम् आई )है ।

सौन्दर्य के गलत प्रतिमान पूर्व में कई यौव्नाओं के प्राण ले चुकें हैं .साइज़ जीरो एक दिल्युस्ज़ं न ,एक हेलुसिनेशन ज़रूर हो सकता है ,इसका यथार्थ से कुछ लेना देना नहीं है ।

भारतीय सन्दर्भ में जहां महिलाओं का बहुलांश हेमोग्लोबिन दिफिश्येंसी एनिमियाँ से ग्रस्त है ,लड़कियों को गोरा और कमाऊ एक साथ होना चाहिए कुछ सिरफिरे साइज़ जीरो की मांग करने लगे तब क्या होगा ?

अनारोक्सिया नर्वोसा ,अनारोक्सिया बुलीमिया को बहुत पीछे छोड़ देती है ,साइज़ जीरो होने की जिद (आब्सेशन ).

रेगिस्तान में भी चींटियाँ अपना बिल (घर )ढूंढ लेती हैं ,कैसे ?

सहारा रेगिस्तान में पाए जाने वाली चींटियों पर जिन्हें "केता ग्लैफिस फोर्टिस "कहा जाता है जर्मनी के साइंस दानों ने कुछ दिलचस्प आज -माइशों (प्रयोगों ,एक्सपेरिमेंट्स )के बाद पता लगा -या है ,रास्ता तलाशने के लिए चींटियाँ जिस नेविगेशन का स्तेमाल करतीं हैं ,उसे "पाथ-इंटीग्रेशन "कहा जाता है ।
इस के अंतर्गत घर से निकलने के बादहर मोड़ से दूरी का जायजा लिया जाता है दूरी नापी जाती है .अपने घरोंदे की याद बनाए रखी जाती है .हर मोड़ से तय की गई दूरी ,हर दिशा में तय की गई दूरी याद रखी जाती है .यही है -"पाथ -इंटीग्रेशन "।
आदमी की बात और है वह बे इरादा भी घूम सकता है ,मटर गस्ती कर सकता है ,कुछ इस तरह :
"कुछ लोग इस तरह जिंदगानी के सफ़र में हैं ,दिन रात चल रहें हैं ,मगर घर के घर में हैं ."

मधु मख्खियों का नृत्य बेइरादा नहीं है .

मधु मख्खियों का समूह नृत्य बा -मकसद होता है .एक सूचनाहै , इत्तल्ला है आस पास या फिर दूर कहीं भोजन (मकरंद ,नेक्टार )होने की .इसीलिए मधु -मख्खियाँ कई किस्म के नांच दिखाती हैं मजदूर साथिनों को ।
कभी कभी एक घेरे में घूमती हुई ,और कभी कभार तेज़ी से आगे -पीछे (टू एंड फ्रोमोशन करती ,तेज़ी से वोबिल करती सी ) गति करके एक सन्देश दे रहीं हैं ।
मधु मख्खी के छत्ते में बा कायदा एक डांस फ्लोर होता है जब मकरंद का स्रोत छत्ते से दूर होता है तब वेगिल करती है (तेज़ी से आगे -पीछे गति करतीं हैं ) और एक वृत्त बनाती है सखियों के संग जब स्रोत करीब होता है बी -हाइव के .

दिमागी रफेज़ क्या हो सकता है ?

आम तौर पर हमारे भोजन में खाद्य रेशों का होना जिगर के लिए ,कुल मिलाकर पाचन और मल त्याग के लिए अच्छा समझा जाता है ,बा -शर्ते आपको दस्त ना लगें हों कोई अन्य ऐसी बीमारी ना हो जिसमे रेशे वर्ज्य हों .रेशे हमारे स्टूल को मल को बल्क प्रदान कर मल त्याग को आसान बनातें हैं .आँतों की सफाई करतें हैं ।
अब भला ब्रेन -रफेज़ (दिमागी रफेज़ )क्या हो सकती है ?
दिमाग में रोज़ बा रोज़ जाने वाली सूचना जिसे दिमाग टुकडा टुकडा ग्रहण कर लेता है ,पचनीय सूचना ,जो दिमाग के स्म्रति कोष में समाहित हो जाती है ,दिमागी रफेज़ कही जा सकती है .सूचना - विस्फोट ,सूचना एक्सपोज़र से ताल्लुक रखती है यह टर्म (शब्द )जिसे गेस्त्रोनोमी से लिया गया है .कुछ विशेष पकवान बनाने की कला ,आंचलिक खान पान को इस केटेगरी में रखा जा सकता है .अच्छा भोजन चयन करना पकाना और खाना खा कर हज़म करना ,सूचना की ही तरह है ,जंक को अलग करना पडेगा (स्पेम को भी )।
सूचना क्रान्ति के दौर में "इन्फार्मेशन स्नेकिंग ""जंक ",स्पैमर जैसे शब्द चलन में आये हैं ।
दिमागी रफेज़ ग्रे सेल्स को पैनाने धार दार बनाने में कामयाब हो सकती है ,मशक्कत ज़रूर है ,काम की अच्छी सूचना को पचाना .डाक तो छांट कर अलग करनी ही पड़ेगी .

शनिवार, 9 जनवरी 2010

मेरा भारत धर्मी समाज ही निशाने पर क्यों ?

इस देश में ख़बरों का एक पेट्रनसा ही बन चला है .घटना को हल्का फुल्का बताने समझाने के लिए कहा जाता है -"ऑस्ट्रेलिया में एक और प्रवासी पर हमला "
ऐसा लगता है (भगवान् करे यह लगना गलत हो )हमारे अखबार सरकारी रुख का ही अनुसरण करते है .आप यह क्यों नहीं लिखते छापते "ऑस्ट्रेलिया में फिर भारत धर्मी समाज निशाँने पर ?)।
और इन दिनों हमारे मुन्ना भाई "बाबा राहुल कहाँ है ?"कलावती फेम के ?उनकी मातु -श्री ?
नीली पगड़ी वाले मनमोहन सिंह क्या कर रहें हैं ?विकाश के आंकड़े समझा रहें हैं ?इनकी तो रातों की नींद उड़ गई थी ,जब एक संदिग्ध डॉक्टर ऑस्ट्रेलिया में आतंकी होने के मुगालते में पकड़ा गया था ।
अब चुप्पी साधे बैठे है
कहीं भारत धर्मी समाज को ठिकाने लगाने की कोई आलमी (अंतर्राष्ट्रीय )मुहिमतो नहीं चल रही ?और सोफ्ट स्टेट भारत तमाशा देख रही हो ?

अल्ज़ैमार्स से बचाव के लिए मिल्क -शेक ?

इस दौर के सबसे ज्यादा दीवास्तेतिंग रोग अल्जाई -मर्स के बारे में कहीं से यदि यह आवाज़ सुनाई दे ,अल्पकालिक स्मृति ले उड़ने वाला बुढापे का यह रोग मात्र एक ग्लास मिल्क शेक पीने से मुल्तवी रखा जा सकता है तो ऐसा लगने लगता है कोई दिवास्वप्न देख रहें हैं .लेकिन जो हो ऐसा दावा किया जा रहा है ,एक ग्लास जादुई दूध जिसमे स्तनपान सा अमृत तत्व (गुणकारी तत्व )मौजूद है रोजाना लेने से इस डी-जेंरेतिव डिजीज से बचा जा सकता है ।
समझा जाता है स्ट्राबरी -शेक में यह गुण मौजूद हैं .एक तरफ दिमागी पोषक तत्व और दूसरी तरफ माँ के स्तन से रिसने वाले दूध से प्राकृत तत्व जो अल्जाई -मार्स जैसे रोग से बचाए रह सकतें हैं ,बशर्ते इस का नियमित सेवन किया जाए .इसे स्मृति -वर्धक टोनिक कहा जा रहा है .डिमेंशिया से बचाव का इसे बेहतरीन नुस्खा बतला रहा है ,ब्रितानी अखबार "डी डेली मेल ".

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

जवान बने रहने के लिए व्यायाम ...

उम्र को लगाम लगाने के लिए ,बुढ़ाने की प्रकिर्या को विलंबित रखने के लिए नियमित व्यायाम ज़रूरी है .एक नए अध्धय्यन के मुताबिक़ ,कसरत रोजाना करने की आदत कोशिका स्तर(सेल्युलर लेवल )पर एजिंग से मुकाबला करती है ,दो हाथ करती है ,जूझती है .सार्लेंद विश्व ०विद्यालय के शोध छात्र कहतें हैं -खिलाड़ियों के तेलोमीयार्स उतनी जल्दी छीज्तें घिसकर छोटे नहीं हो पातें हैं लम्बे प्रशिक्षण के दौरान यह देखा जा सकता है .प्रमुख प्रतिरक्षा कोशिकाओं के बारे में यह बात सोलह आने सच है (बिलकुल सही साबित हुई है )।
डी एन ए के विखंडन को रोककर यही तेलोमीयार्स इसे स्थाईत्व प्रदान करतीं हैं .लेकिन उम्र के साथ इन संरक्षी टोपियों की (प्रोटेक्टिव डी एन ए केप्स )की लम्बाई स्वाभाविक तौर पर कम होने लगती है .यानी यह हिफाज़ती टोपियाँ छीजने लगतीं हैं .इस छीज़ं न को ही नियमित कसरत रोके रखने का भरसक प्रयास करती है .कहा गया है :करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान ,रसरी आवत जात के सिल पर पडत निशाँ न ।
शोध कर्ताओं ने खिलाड़ियों के दो समूह तथा दो और ऐसे समूह के रक्त नमूने जुटा कर उनके तेलोमीयार्स की जांच की जो स्वस्थ थे और धूम्र -पान भी नहीं करते थे लेकिन कसरत भी नहीं करते थे ।
पता चला जो वर्ग कसरत करता था उसमे एक एंजाइम "तेलोमरेज़ "सक्रीय हो उठा .यही चाबी है तेलोमीयार्स को स्थाई बनाए रखने की ।
पता चला ल्यूकोसाइट्स में भी तेलोमीयार्स की लघु -तर होने की रफ़्तार को भी इस एंजाइम (किण्वक )ने कमतर कर दिया .सफ़ेद रक्त कोशिकाओं को ही ल्यूकोसाइट्स कहा जाता है जो रोगाणु से हमारी हिफाज़त करतीं हैं .

सौदेश्य गीत संगीत नौनिहालों को सुनागरिक बनाने में मददगार

इन्साफ की डगर पर बच्चों दिखाओ चलके ,ये देश है तुम्हारा नेता तुम्ही हो कलके या फिर हमें उन राहों पर चलना है जहां गिरना और सँभलना है ,हम हैं वो दिए औरों के लिए जिन्हें तूफानों में जलना है ,जैसे सौद्देश्य परक गीत बच्चों के मानस पर एक अमित स्थाई प्रभाव छोड़तें हैं खासकर तब जब उन्हें बेड टाइम पर सोते वक्त संगीत सुनना अच्छा लगता है .बच्चों की इस आदत ,गीत संगीत के प्रति उनके कुदरती रुझान का उन्हें कल का एक जिम्मेवार नागरिक बनाने में स्तेमाल किया जा सकता है .यह कहना है ,मनोविज्यानी (साइकोलोजिस्ट )तोबिअस ग्रेइतेमेयाएर का .आपने सालों साल उस संगीत के चित्त पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्धय्यन किया है जो औरतों के प्रति एक घृणा स्पद sअंदेश अपने लिरिक्स (संगीत के बोल )से छोड़ता है ।आप ससेक्स विश्व -विद्यालय ,इंग्लेंड में कार्य रत हैं .
अपने एक नवीनतर अध्धय्यन में आपने नौनिहालों के दिलो दिमाग पर उद्देश्य परक गीत संगीत का असर पता लगाया है .बकौल आपके बच्चों को सामाजिक तौरपर ज्यादा जिम्मेवार बनानेमें सौद्देश्य परक गीत संगीत एक विधाई भूमिका निभा सकता है .वैसे भी संगीत हमें सु -संस्कृत बनाता है .

अनोखा था वह विदाई समारोह .

मई मॉस की आखिरी तारीख थी .साल था ईसवी सन२००५ .राजकीय स्नातकोत्तर विद्यालयबादली (झज्जर ,हरयाना ) का ज्यादा -तर स्टाफ इनविजीलेशन पर अपने विद्यालय से बाहर ड्यूटी पर था .विश्व विद्यालय परीक्षा का मौक़ा था .यह दिन उसकी सेवा निवृत्ति का था .बतौर प्राचार्य ,राजकीय स्नाकोत्तर विद्यालय ,बादली (झज्जर ).उसने २६ मे को जाइन करने के बाद छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया था .आकस्मिक अवकाश बाकी था .एक सप्ताह पहले ही उसे पदोन्नति मिली थी .आज विद्यालय में उसका दूसरा और आखिरी (सेवा काल का भी आखिरी )दिन था ।
उसे स्टाफ मेम्बर्स के नाम और विभाग का इल्म नहीं था .स्टाफ की भी यही स्तिथि .बस इतना पता था .आज नए आये -गए प्राचार्य का आखिरी दिन था ।
कोई किसी को नहीं जानता था .फिर भी एक आत्मीय-ता थी .सब की बोडी-केमिस्ट्री यकसां थी .बाकायदा इस छोटे से कसबे में इतने शार्ट नोटिस पर जो हो सकता था ,किया गया था .लेकिन स्नेह की गंध आज भी बाकी है ।
राजकीय सेवा का दस्तूर है ,कुर्सी को सलाम ,फरमा बरदारी .हुकुम ऊदुली .एक स्थानीय साधनों से झटपट तैयार की गई माल उसे पहनाई गई थी .सम्मानार्थ जो कहा गया था वह बड़ा ही निर्मल ,निष्कलुष था -"हम शर्मा साहिब के विषय में विशेष कुछ नहीं जानते ,कभी साथ काम करने का मौक़ा ही नहीं मिला .हमारे कालिज में वे आये और गए भी .हम बाखबर हैं और उनकी दीर्घ आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करतें हैं ।
उपहार स्वरूप एक थर्मस भी दिया गया ।
चंद शब्द उसने भी कहे यह हरयाना शिक्षा सेवा में उसका आखिरी दिन था .ऐसा बिलकुल नहीं लगा ,इस छोटी सी जगह में बला का आकर्षण और सहजता थी जिसकी गंध आज भी बाकी है .कुछ पल हैं जो भुलाए नहीं भूलते ,उनमे से एक पल यह भी था .वह लौट रहा था शेष जिंदगी भुगताने के लिए उन्मुक्त गगन का पाखी सा .तनाव रहित .थर्मो स्टेट (ताप नियंत्रक थर्मस )उसके हाथों में झूल रहाथा .जीवन के सुख दुःख झलने काटने के लिए क्या यह नाकाफी था ?

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

प्रबुद्ध समाज के ज़हीन लोग हैं ये ....

बात हमारे सेवा निवृत्त होने से ताल्लुक रखती है .सेवा निवृत्त होने से ठीक हफ्ता पहले हमारी प्राचार्य के पद पर हरियाणा शिक्षा सेवा से पदोन्नति का आदेश आ गया .ता उम्र व्याख्याता के बतौर हम भुगता चुके थे ,हमारी शिनाख्त भी एक टीचर के बतौर ही थी .हरयाना के अनेक महा विद्यालयों में इन चालीस -बयालीस बरसों में पढ़ाने की कवायद खूब चली .बतौर प्रति -नियुक्ति पर हम उन दिनों यूनिवर्सिटी कालिज रोहतक में कार्य रत थे .यूँ उम्र का एक लंबा हिस्सा लौट फिर कर इसी महा विद्यालय में बीता था .इस दरमियान यह राजकीय महा -विद्यालय से यूनिवर्सिटी कालिज में तब्दील हो चुका था .महारिशी दया नन्द विश्विद्यालय को यू जी सी से मान्नयता दिलवाने के लिए ऐसा किया गया था .इसलिए जब हम सेवा निवृत्त हुए ,यहाँ दो किस्म का स्टाफ था -यूनिवर्सिटी अपोइंतिद तथा सरकारी .हम सरकारी थे ।
हमारे फेयरवल की (विदाई पार्टी )की खूब चर्चा चली .गरमा गर्म बहस ने जोर पकड़ा .विश्विद्यालय द्वारा नियुक्त स्टाफ ने कहा -हम क्यों पार्टी दें ?जहां पदोन्नति पर जा रहें हैं ,वहां के लोग पार्टी दें .हमें ३१ मई २००५ में सेवा निवृत्त होना था .प्रोमोशन आर्डर २४ मई २००५ को आया ।
स्टाफ पार्टी तो क्या हमें विभागीय पार्टी भी नहीं दी गई .वहां भी तो दो तरह का स्टाफ था .मामला २०० रुपया प्रति -हेड ,प्रति व्याख्याता के योगदान का था ।
हम तो किसी से क्या शिकवा शिकायत करते ,कुछ लोगों ने बतलाया (हमारे विभाग के ही थे ये लोग ),अरे साहिब हमने तो फेयरवल अद्द्रेस भी लिख लिया था .बस पार्टी ही तो नहीं दी गई ।
प्रबुद्ध समाज में ज्यादा ज़हीन लोग होतें हैं ,एका हो तो कैसे ?क्या फर्क पड़ता है ,मामला परम्परा से चस्पां था .परम्परा होती ही टूटने के लिए है .वह नियम ही क्या जिसका अपवाद ना हो ?
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा ,व्याख्याता ,भौतिकी ,यूनिवर्सिटी कालिज रोहतक -१२४ -००१
(एच इ एस -१,सेवा निवृत्त )
०९३५०९८६६८५

बुधवार, 6 जनवरी 2010

जय जय जय हनुमान गुसाईं ......

राजस्थान में एक जगह है अलवर और जयपुर के बीच कहीं "मेहंदीपुर चौक ",यहाँ बालाजी का मंदिर है .शिव का ही रूप है अवतार है "बालाजी '",सनातन धर्म में अवकाश है कोई किसी भी देव की आराधना करे जिसको चाहे पूजे .कोई झगडा फसाद नहीं .मोनोलिथिक धर्म नहीं है सनातन धर्म .लेकिन यहाँ एक और लफडा है .मार्क्स ने धर्म को अफीम कहा था .हिन्दू (सनातन धर्मी )देव देवताओं के जिम्मे एक और काम सौप रहें हैं -मनोचिकित्सा का ।

बालाजी का नज़ारा देखने लायक होता है .हमने यहाँ इंसानों को जंजीरों (जेवड़ी )से बंधा देखा है .औरतों ,किशोरियों को बाल खोल कर जय जय जय हनुमान गुन्साइन के नाद पर अजीबो गरीब हरकत करते देखा है ,ठीक हिस्टीरिया के रोगी जैसी हरकत .लोक्श्रुति ,जन विश्वाश है ,यहाँ दरबार लगता है ,तारीख पड़ती है ,बालाजी के दरबार में .ज्यादा तर मामलों में (मनोरोग के )यह मान समझ लिया जाता है ,रोगी को ऊपरी असर है ,मृत माँ किशोरी को सता रही है ,बालाजी भूत भगा देतें हैं .जैसे बालाजी मंदिर ना होकर एक "मनोरोग केंद्र हो "।

एक और जगह है -देवबंद ,यहाँ देवबंदी मदरसों के अलावा मौलाना साहिब है जो पढ़ा हुआ पानी मनो रोगियों को उपचार के लिए देतें हैं ,मन्त्र ,कलमा आदि कागज़ की कतरनों पर लिखे होतें हैं जिन्हें पानी में डाले रखा जाता है .रोज़ एक चम्मच्च पानी पीने से आराम आ जाता है ,ऐसा माना समझा जाता है .हो सकता है ,इस सब का प्लेसिबो इफेक्ट पड़ता हो .पर सत्य यही है -

आज हिन्दुस्तान की ७ फीसाद आबादी किसी ना किसी मनोरोग से ग्रस्त है .यानी सात करोड़ से ज्यादा मनोरोग असर ग्रस्त लोग हैं .इनमे से तीन करोड़ को फौरी (अविलम्ब )इलाज़ की ,तीस से पैंतीस लाख को इंस्टी -त्युस्नलाइज़करने (मनोरोग चिकित्सा केंद्र )में दाखिले की ,भर्ती कराने की ज़रुरत निमहांस (एन आई एम् एच ए एन एस )नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो -साइंसिज़ ,बेंगलोर के मनोरोग विदों ने जतलाई है .
बालाजी कर्म काण्ड पूजा पाठ के लिए अच्छी जगह हो सकती है .खान पान भी यहाँ शुद्ध है लेकिन इलाज़ तो दवाओं से ,केमोथिरेपी से ही होगा ।

हमारे दिमाग में जब जैव रसायनों का असंतुलन हो जाता है ,कुछ न्यूरो -त्रेंस्मितर कम या ज्यादा हो जातें हैं हम किसी ना किसी दिमागी रोग की चपेट में आ जातें हैं .दवाएं (एंटी डिप्रेसिव ,एंटी -साइकोटिक ,एंटी ओब्सेसिव .एंटी -न्युरोलेप्तिक )ज़रुरत के मुताबिक़ लेने पर यह संतुलन फिर से कायम हो जाता है .मनोरोग भी अन्य रोगों की तरह दवा लेने से दब खप जातें हैं .जीवन की गाडी चल पड़ती है ,रूकती नहीं हैं .

पढ़े लिखे समाज में .(लघु कथा )

जी हाँ पढ़े लिखे समाज में हुआ था यह सब .उसकी लाश ना मालूम कितने दिनों से गंधा रहा थी .यूनिवर्सिटी केम्पस के लोग नाक पर उस क्वाटर के आगे से रूमाल ढककर निकल जाते थे .किसी भले मानुष की हिम्मत नहीं हुई ,आखिर पता करें मांजरा क्या है .यह दरवाज़ा कबसे नहीं खुला कोई नहीं जानता था .भला हो उन छात्रों को जो उस रोज़ अपने "सर "को ढूँढने आ निकले थे .कई दिनों से देखा जो नहीं था .टीचर छात्रों के दिलों में ही तो ज़िंदा रहता है .यूँ मैं भी उनसे सीखता समझता था ,एक कलीग के नाते ,अंग्रेजी के एक धुरंदर विद्वान के नाते मैं सदैव ही शिष्य भाव से उनके संग बैठता .तब मैं भी कहाँ जानता था ,कैलाश विशाल राठी साहिब बाई -पोलर इलनेस से ग्रस्त हैं .मैं भी सुनी सुनाई बातों को ही सच मानता था -"पागल है साला ,ठरकी भी अपने को अति महान मानता समझता है ......"और यह सच भी था -महान होने का बोध उन्हें था भी .दस साल इंग्लेंड में रहे .डेनियल जोन्स का यह शिष्य वास्तव में उच्चारण का महारथी था .कहतें हैं ,आखिरी दिनों में इन्होने अपने क्वाटर में एक सुरंग खोद ली थी ,कई मर्तबा रास्ते में आये मेंन होल के सामने खड़े होकर सावधान की मुद्रा में ,जन गन मन अधिनायक ,का जय घोष करने लगते .लेकिन यह आदमी यूँ चला जाएगा ,अनाम सा ,बिना इलाज़ ,सोचा नहीं था .मनो रोगोयों को हमारा समाज ,पागल ही तो मान बैठा है ,जबकि थोड़ा बहुत पागल पन ,आम व्यवहार से विचलन हम सब में है .पता नहीं उनकी अस्थियों का क्या हुआ ?.छात्र अवशेष ले तो गए थे उनके जवान पुत्र और पत्नी के पास जो कब के उनसे पल्ला झाड चुके थे .वो भी कहाँ जानते थे ,इस नेक इंसान को इलाज़ की भी ज़रुरत है ,जबकि यूनिवर्सिटी से ही सम्बद्ध मेडिकल कालिज और अस्पताल है ,अलग से मनो रोग विभाग है ,कोंसेलिंग सेल है .सब बेकार .पहल कौन करे इस अध् कचरे पड़े लिखे समाज में .मनो रोगियों से ज्यादा हलूसिनेशन से यही पढ़ा लिखा समाज ज्यादा ग्रस्त है ,जो मनो रोग को साफ़ छिपा जाता है .ज़िंदा रहता ता उम्र नकार की मुद्रा बनाए .

मंगलवार, 5 जनवरी 2010

कुत्ते वालों से निवेदन ....

कुत्ता शौक से पालिए .जीव जगत का मानव से नजदीकी रिश्ता रहा है .एक दौर था हमारे शहर बुलंदशहर (यू.पी .)में हमारी कर्म भूमि रोहतक में भी तांगा चलता था .घोड़े की टप टपबेशाख्ता मन को भाति थी .घोड़ा लीद भी करता चलता था .बाकायदा उसके लिए नगर पालिकाएं पानी का इंतजाम करती थीं पानी की जगह जगह नांद बनाकर .लीद को ठिकाने लगाने वाला एक तंत्र भी था ,सड़कें साफ़ रहतीं थीं ।
यूँ कुत्ता पालना सेहत के लिए अच्छा है ,आपकी एक चर्या बन जाती है एक स्तक्चार्डरूटीन टाइम टेबिल बन जाता है सैर का .आप का ब्लड प्रेशर सामान्य बना रहता है ।
लेकिन ज़नाब यह भी तो आपको ही देखना है आपकी वजह से किसी और को तो दिक्कत नहीं है ।
डॉगएक्स्क्रीता इज हाइली इन्फेक -शश ,केरी ए पोलिथीन एंड प्लकर तो कलेक्ट इट फॉर इट्स सेफ डिस्पोज़ल .आपको कोई हक़ हासिल नहीं है ,आप नगर पालिका द्वारा कायम पार्कों ,सड़कों ,राजमार्गों को कुत्ते के मल-मूत्र्र से गंधाये .मल मूत्र अपने आस पास फैलाएं और पडोसी का सिर दर्द बने .कुत्ता पालिए मगर सलीके से ।
दिल्ली जैसी नगर पालिका भी अजीब है यहाँ आदमी के सड़कों पर थूकने पर जुर्माने का प्रावधान होने जा रहा है .कुत्ती-कुत्ते वालों को आज़ादी है ..टेक्स भी मात्र ५ रूपया सालाना ,पंजीकरण शुक्ल १५ रूपया .टेक्स देने वाला भी शर्मा जाए .भाई अभी पिछले दिनों एक युगल का प्यारा सा पप्पी गुम था .पता लगाने वाले को दो लाख के नकद इनाम की मुनादी पितवा दी गई थी .मालिक मालकिन अवसाद ग्रस्त हो गए थे .कुत्ता शै ही ऐसी है .आदमी से ज्यादा वफादार .आदमी सिर्फ टुकर खोर .कुत्ता मालिक के क़दमों की आहत मीलों दूर से भांप लेता है .लौट जाता है मालिक के क़दमों में .गड़बड़ कुत्ते में नहीं है .मालिक में है .तमीज भी उसे ही सीखनी है .कुत्ता बा-कुत्ता आपका है तो उसका मल -मूत्र भी आप ही ठीकानेलगायेंगे .कुत्ताबा - अदब बा- तमीज होता है .हम और आप ?जी हाँ सलीका सीखना है हमें .

रविवार, 3 जनवरी 2010

एच१ एन१ इन्फ़्लुएन्ज़ा से बचाव के लिए लोज्ज़िन्ज .

स्वाइन फ्लू की उग्रता को सहनीय बनाने वाली एक मुह में रखते ही घुल जाने वाली मीठीदवा की गोली सी लोज्ज़िन्ज अगले दो सालों में बाज़ार में आ सकती है जिसे ऑस्ट्रेलियाई साइंसदानों ने तैयार किया है .फिल वक्त इसके नैदानिक परीक्षण स्वयंसेवियों पर चल रहें हैं ।पूर्व में माइस पर किये गए परिक्षण कामयाब रहें हैं .
बेशक यह गले को भाने वाली गोली स्वाइन फ्लू का बचावी टीका नहीं है ,गोली खाते ही मुह में घुल कर हमारे रोग प्रतिरोधी तंत्र को खबरदार कर देती है ,एक प्रोटीन इंटर फेरों -अल्फा छोड़कर जो बारास्ता लार खून में मिलकर प्रहरी तंत्र को आगाह कर देती है ,वायरस के आने की अलर्ट ज़ारी कर देती है फिर चाहे वह बर्ड फ्लू हो या स्वाइन फ्लू वायरस या सर्दी जुकाम का आम फ़हम वायरस ही क्यों ना हो .कीमत मात्र नौ रुपया प्रति लोज्ज़िन्ज .सुबह के नास्ते से पहले बस एक गोली रोज़ लेनी पड़ेगी और स्वाइन फ्लू के लक्षणों की उग्रता कमतर हो जायेगी .जान को जोखिम में डालने वाले लोवर रैस -पैरेत्री इन्फेक्शन (नीचले स्वशन क्षेत्र के संक्रमण )से बचाए रहेगी यह दवा युक्त गोली ,दमा और सिस्टिक फाइब्रोसिस के मरीजों को भी ख़तरा कम राहत ज्यादा मिलेगी .वायदों की टोकरी से लबालब है यह लोज्ज़िन्ज .

शहद में मिठास कैसे आ जाती है ?

मधु मख्खी पुष्पों से मकरंद जुटा कर वापस अपने छत्ते की ओर आकर इसे हनी सेक (शहद की नन्नी थैली )में रख देतीं हैं .यहाँ पर एक एंजाइम जो इन हनी सेक में ही बनता है मकरंद में मौजूद कोम्प्लेक्स सुगर (प्राकृत -सक्रोज़ )को सिम्पिल सुगर (फराक्टोज़ और ग्लूकोज़ )में बदल देता है .ज़ाहिर है यह किण्वक जो शहद की नन्नी सी थैली में बनता है एक रासायनिक कैंची का काम करता है ,एक रासायनिक प्रकिर्या को हवा देता है .नतीज़ा होता है -मधु रस (शहद )।
नेक्टार (मकरंद ):इसे प्लांट लिक्युइड भी कहा जाता है .सच में यह एक मीठा पेय है (मीठा तरल है )जो पुष्प वाले पौधे कीट पतंगों को आकर्षित करने के लिए पैदा करतें हैं .नन्नी चिड़िया भी खिची चली आती है इस पेय की ओर ।
यह पुष्पी पादपों को पर -परागन के लिए कुदरत से मिला इनाम है ।
यूनानी पुराण ,पुरा कथाओं के अनुसार नेक्टार देवताओं का पेय है (ड्रिंक ऑफ़ दी गाड्स ) यही पेय इन्हें शाश्वत सौन्दर्य ओर अमरत्व प्रदान करता है .सागर मंथन से भी यही"दिव्य रस /अमृत )निकला था ,देवासुर संग्राम में .रोमन मिथक पुराण में भी इसी नेक्टार का गुन्गायन है .

जीरो -नेट क्या है ?

जीरो नेट उस युक्ति रणनीति का नाम है जो प्रदूषण को लगाम लगाने के लिए भवन निर्माण सम्बन्धी कामों में ऊर्जा के स्तेमाल से ताल्लुक रखती है .जब साईट पर ही जहां निर्माण कार्य चल रहा है या फिर आस पास से ठीक उतनी ऊर्जा की आपूर्ति हो पा रही है जितनी निर्माण में खप रही है तब इस स्तिथि को "जीरो नेट एनेर्जी "कहा समझा जा सकता है .
और ऐसी इमारतों को "जीरो नेट बिल्डिंग्स "कह दिया जाता है .इन दिनों ये यूरोप और अमरीका में लोकपिर्य हो रहीं हैं .हो भी क्यों ना यह शती पुनर्प्रयोज्य ऊर्जा के नाम लिख दी गई है .पहल भारत को भी करनी होगी .

एक आभासी और गैरहाजिर बल भी है .....

गतिशील चीज़ों (वस्तुओं ,पिंडों ) की आकाश -काल में गति को एक आभासी लेकिन गैरहाजिर बल प्रभावित करता है जिसका सम्बन्ध पृथ्वी की घूर्न्रणगति (रोटेशन )से है .यह एक काल्पनिक बल है जिसे कोरिओलिस फ़ोर्स कहा जाता है ।
कोरिओलिस प्रभाव को हम देख समझ सकतें हैं .मसलन गुलेल से दागा गया कंकर ,भाला फेंक प्रतियोगिता में खिलाड़ी द्वारा फेंका गया भाला (जेवलिन ),पृथ्वी से दागी गई "पृथ्वी -मिज़ाइल "की आकाश काल में त्रेजेक्त्री (डिफ्लेक्शन )पृथ्वी की स्पिन (रोटेशन ,नर्तन ,घूर्न्नन गति )से ही अपना आकाश में मार्ग तय करती है ।
एक फ्रांसीसी गनितज्य(फ्रेंच मेथेमेतिशियाँ)गस्पर्द दे कोरिओलिस (१७९२-१८४३ ) की याद में इसे यह नाम दिया गया है ।
यह कोरिओलिस बल की ही लीला है ,उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें दाहिनी ओर तथा दक्षिणी अर्द्ध -गोल में बाएं दिफ्लेक्त (मुड) जातीं हैं .इसे" फेरेल्स ला "भी कहा जाता है .दक्षिणी -पूरबी व्यापारिक पवनों के डिफ्लेक्शन के लिए यही नियम जिम्मेवार है .भारतीय प्रायद्वीप की जीवन रेखा मानसून (साउथ -वेस्ट मानसून )यही ट्रेड -विंड्स हैं .