गुरुवार, 8 मार्च 2018

प्रतिमा भंजक वारहेड के इस दौर में

प्रतिमा भंजक वारहेड  के इस दौर में फिलवक्त यह बतलाना ज़रूरी है कि रक्तरँगी लेफटिये कहते और करते आये हैं  सत्ता  बंदूक की नौंक  से निकलती है। 

जेहादी तत्व हिंसा करके गर्वित होते हैं। गौरवान्वित होकर कहते हैं ये हिंसक कर्म हमारा है। 

नेहरुपंथी कांग्रेस इन दोनों के कर्मों पर ताली पीटती है वीरशिरोमणि दामोदर वीरसावरकर की नामपट्टिका को उखाड़ कर पाकिस्तान को सन्देश देते हैं तभी उनके प्रतिनिधि रूप में मणिशंकर एयर पाकिस्तान जाकर उनसे सलाह लेते हैं।  पाकिस्तान जाकर अपनी हार और कुंठाओं का रोना रोते हैं बारहा उनसे कहते हैं तुम हमारे देश को बाहर से तोड़ो हम अंदर से तोड़ेंगे। 

देश में प्रतीक पुरुषों की प्रतिमा भंजन इसी सोच की परिणीति है। बामयान में बौद्ध प्रतिमाओं का सफाया यही जेहादी सोच करती आई है। 

सूरज डूबते ही ये विखंडनवादी ताकतें चंद पेड चैनलों पर आकर ऐसा स्यापा करतीं हैं मानो हिन्दुस्तान में आग लगी है। 

अपने इंडियन नेवल अकादमी ,एषिमला प्रवास के दौरान मैंने देखा आये दिन इसी केरल के कन्नूर जिले में सरेआम बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या ,सड़कों चौराहों पर गाय के बछड़ों को जिबह कर प्रसाद की तरह गौमांस का वितरण इनका रोज़मर्रा  का शगल है। 

मूल रूप से यही तीनों वर्ग मूर्तिभंजक हैं। ये मूर्तियां तोड़ने का सिलसिला इन्हीं से शुरू होता है।