बुधवार, 14 अक्टूबर 2009

वेव जेनेटिक्स (तरंग आनुवंशिकी )का मायावी संसार .

इंसान का दी एन ऐ कुदरत का बख्शा हुआ एक नायाब जैविक इंटरनेट है जो साइबर जगत से बढ़चढ़ कर है .बेशक विज्ञानी (खासकर पश्चिमी जगत )इसके सिर्फ़ दस फीएसाद अंश को ही काम का मानते हैं जो प्रोटीन संसाधन करता है लेकिन शेष ९० फीसद अंश अपने कलेवर में पूरा वाक्य विज्ञान (सिंटेक्स ),पूरा शब्दार्थ विज्ञान (सिमेंतिक्स )एक अनुक्रम (दी एन ऐ सिक्युएंस )में छिपाए है ।
दी एन ऐ के एल्केलाइंस का अपना एक नियमित व्याकरण है ,भाषा विज्ञानिक नियम कायदे हैं .हमारी भाषाओं का रिफ्लेक्शन है यह दी एन ऐ सिक्युएंसिंग ।
इसीलियें हमारा दी एन ऐ अपने जैविक इंटरनेट से कोई भी सूचना ले दे सकता है .सूचना फीड भी कर सकता है ,डाउन लोड भी ।
अपने इतर संगी साथियों नाती -रिश्तेदारों मित्रों से संवाद भी कर सकता है .रिमोट हीलिंग (दूर नियंत्रण से इलाज़ ,दूर -संप्रेषण यानी टेलीपेथी ,दूर नियंत्रण तोही (रिमोट सेंसिंग )का काम कर सकता है ।
कारण है कुछ वैसी ही फ्रेक्युएंसी का हमारे दिमाग में होना जिन्हें स्चुमन्न फ्रेक्युएंसिज़ (शूमाँ -आवृत्ति )कहा जाता है .,और जैसी हमारी पृथ्वी के पास भी हैं जो मौसम का रुख निर्धारित करतीं हैं ,मौसमी फेर बदल भी ।
कुछ ऐसे ही हमारा दिमाग भी एक लेजर बीम की तरह हमारे विचारों को संकेंद्रित कर सकता है ,फोकस कर सकता है कहीं भी और दूरगामी प्रभाव पैदा कर सकता है .बस कुछ ख़ास अनुनादी आवृत्ति चाहिए एक शुद्ध अंतस ।
हमारे दी एन ऐ जींस एक अनुनादी बुनावट (सरंचना )लिए हुए हैं ,रेजोनेंत स्ट्रक्चर हैं .जो अति सूक्ष्म रूप में अपने परिवेश पर्यावरण पारिस्तिथिकी के साथ संवाद कर सकतें हैं वेव इंटरेक्शन के ज़रिये ,बस कुछ ख़ास आवृत्ति की तरंगे अनुनाद (रेसोनेंस ) यानी प्रकृति के साथ संवाद के लिए चाहियें .यही शूमाँ -फ्रीक्युएंसिज़ हैं ।
यानी जींस के साथ काट छाँट किए बिना भी आनुवंशिक अनुक्रम एक से दूसरे मनुष्य इतर तक अंतरित किया जा सकता है . प्राणी स्वरूप को अनुवांशिक तौर पर संवर्द्धित संशोधित किया जा सकता है ।
विज्ञानियों ने एक फ्राग एम्ब्रियो को सालामेंदर (एक उभय चर )एम्ब्रियो में इसी विधि से तब्दील कर दिखाया है .यानी दी एन ऐ कोड त्रेंस्फार किया है .सिर्फ़ वाणी से (तरंग से )।
इसी विधि से एक्स रेज़ से गुन -सूत्रों को पहुँचने वाली नुकसानी की भरपाई की जासकती है ।यह इस लेख माला की पहली किश्त है .धन्य वाद -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
(शेष जारी .......)

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