गुरुवार, 30 नवंबर 2017

Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji Day 2(Part ll ,lll )

Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji  Day 2(Part ll ,lll )

संदर्भ -सामिग्री :

(१ )https://www.youtube.com/watch?v=_1UZvf4IGu8

(२)

LIVE - Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - 27th Dec 2015 || Day 2


अध्यात्म का अर्थ है जो स्वभाव की ओर लेकर आये जिससे अपने स्वरूप का बोध हो। जब व्यक्ति अपने स्वभाव को उपलब्ध होता है तब उसके पास भगवदीय सामर्थ्य उजागर हो जाती है। हमारी संस्कृति नर से नारायण बनाने वाली संस्कृति है। 

वेद के अनुसार यह कहा गया -अमृतस्य पुत्रा -हम अमृत की संतानें हैं। हमारी आध्यात्मिक यात्रा तभी संपन्न होती है जब हम अपनी अनंतता को उपलब्ध हो जाते हैं। अपनी नित्यता हर पल है। अब तो विज्ञान भी कहता है कोई चीज़ बदलती तो है लेकिन रूप बदलने के बाद भी वह रहती तो है। सदा रहती है सदा। तो जो नित्य तत्व है अपराजेय तत्व है ,शाश्वत तत्व है उस तत्व का बोध कराने वाली हमारी यह संस्कृति है। वेदों का एक ही घोष है मनुष्य केवल एक ही काम करे और वह ही उसके लिए आवश्यक है। वह अपने नित्य सनातन स्वरूप का बोध करे। वह भोर में उठकर शुभ संकल्प करे। और वह अपने स्वरूप को उपलब्ध हो। 

हम अपने पाथेय को विस्मृत न कर बैठें। भारतीय संस्कृति यह कहती है अपने स्वरूप को पहचानो  जो अपराजेय है। हमारी संस्कृति देह की मृत्यु की तो बात कहती है पर आत्मा की अमरता का भी सन्देश देती है। कोई ऐसा पदार्थ नहीं है जो मृत्यु के मुंह में न हो। लेकिन हमारी संस्कृति कहती है ,आत्मा नित्य है शाश्वत है। जिस दिन अपने स्वरूप का बोध होता है उस दिन व्यक्ति आनंद से ,अनुराग  से भर उठता है। 

यह कथा ज्ञान की सिद्धि के लिए भी है। यह कथा उपासना के भाव को जागृत करती है। और निष्काम कर्म योग में भी निष्णात करती है। सच तो यह है ,कथा सुनने के बाद हमें अपनी श्रेणी का ,अपनी कोटि का ,अपनी अवस्था का बोध हो जाता है। हम भक्त हैं तो भक्ति सिद्ध होगी। निष्काम कर्म योगी हैं तो सफलता की यहां से प्रेरणा मिलेगी। और यदि हम ज्ञान के उपासक हैं ,अपने स्वरूप के बोध के लिए कथा से  हमें अपार ऊर्जा मिलती है। 

कथा अत्यंत प्राचीन विधा है। इसलिए यह बात कही भी गई है हम श्रवण करें। 

श्रवण मंगलम। 


श्रवण से मांगल्य होता है और श्रवण पहला साधन भी है। जो हमें हमारे स्वभाव ,निजता की ओर लाता है। प्रसंग  इस तरह से आता है ,जब इस धरती पर व्याकुलता बढ़ गई ,उन्माद ,दमन ,अनीति ,अत्याचार ,भंडारण की जब प्रवृत्तियां बहुत प्रचंड हो गईं तब धरती पर कोई युग पुरुष आये और यहां व्यवस्था दे  ,ऐसी मांग बन गई। 

धरा पर बीज नहीं बो सकते आप। उसका फल नहीं ले सकते। तो किसी दैत्य ने पूरी धरती के अधिकार अपने पास अर्जित कर लिए। उसे हिरण्याक्ष कहा गया। जिसका सोने (स्वर्ण )पर ध्यान था ,धरती पर ध्यान था ,जितने भी धरा पर बहुमूल्य पदार्थ हैं ,मेरे हैं। वह ऐसा मानने लगा। 

न केवल धरा ,अग्नि ,वायु ,औषधि सब पर उसके अधिकार थे। आप कल्पना कर सकते हैं ,स्वर्ग में भी उसके अधिकार थे। व्यक्ति की पहली भूख है जिजीविषा। 

मैं राम अवतरण की कथा आरम्भ करूँ उससे पहले मैं व्यक्ति की पहली कामना से परिचय कराना चाहूंगा। जो मनुष्य की पहली कामना है वह जीना है ,जिजीविषा है। 

दूसरी कामना है सुख पूर्वक जीना और तीसरी कामना है -वह अपने अधीन रखना चाहता है सबको। अपनी कीर्ति को अक्षुण रखना चाहता है शीर्षस्थ होना चाहता। अपने मान सम्मान के नित्य विस्तार में रहता है। एक और बात -वह 'स्वयं -भू' होना चाहता है। 

हिरण्याक्ष आये ,हिरण्यकश्यप आये -न सुबह मरूँ न सांझ ,तो मनुष्य की पहली भूख क्या है वह ज़िंदा रहना चाहता है। सुख में वह अनुकूलता चाहता है ,सब मेरे अनुकूल रहें सब मेरे आधीन रहें। 

आदि दैत्य  हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप की कथा ,राम रावण से पहले आती है। 

ये धरती मेरी है यहां का सुख सामान यहां की सम्पदा मेरी है। ऐसी कुछ प्रवृत्तियां पश्चिम की भी हैं वहां तुलसी ,नीम ,बबूल ,पीपल , बिल्व ,हल्दी आदि नहीं होते।  लेकिन इन सब पर पेटेंट चाहते हैं वे। 

यहां जो कुछ भी अलौकिक है वह मेरा हो जाए -इसे आसुरी प्रवृत्ति  कहते हैं। भंडारण की जो प्रवृत्ति है ये आसुरी प्रवृत्ति है। योग पर भी वे अपना पेटेंट चाहते हैं। लेकिन हमारी संस्कृति सबको विश्व -कुटुंब को बांटने की प्रवृत्ति है। वसुधैव कुटुंबकम की संस्कृति है सबको बांटने की संस्कृति है।'होता 'यज्ञ की हरेक आहुति में कहता है यह मेरा नहीं है।यह मेरा नहीं है।  

जिसने अपनी  इन्द्रियाँ को जीत लिया है वही दशरथ प्रवृत्ति है। अंबर में छलांग लगाईं दशरथ ने स्वर्ग की रक्षा के लिए। जो देवताओं से भी न जीती जा सके उस नगरी का नाम अयोध्या है। 

संसार की सबसे प्राचीन नगरी है अयोध्या। पहला मानव इस धरती पर कोई आया है तो वह अयोध्या में आया है।ब्रह्मा के मन में कोई पहली  कामना जगी तो वह यह मैं इसे पूरा करूँ। 

मनु ही धरती पर दशरथ बनकर आएं हैं। हमारी पहली समस्या है -संवाद हीनता। किसी एक ऋषि के मन में यह आया कोई ऐसी व्यवस्था हो जो इस धरती को अभय दे। संवाद दे। 

भंडारण  की आसुरी प्रवृत्ति को पनपने न दे। इस धरती की अराजकता ,शोषण को दूर करने के लिए कोई एक अवतरण होना चाहिए। 

मनु और शतरूपा इसी हेतु आये हैं।पूरी धरती को सुख देने के लिए तप किया गया दोनों के द्वारा -कोई दिव्य पुरुष दिया जाए धरती को जो इस धरती को व्यवस्था दे। ऐसा संकल्प दोनों ने किया। 

अगर भजन ठीक नहीं चल रहा है तो अपना भोजन ठीक करें। आहार शुद्धि ही आपको स्वीकृति अस्वीकृति देगा। हेय  का आप त्याग करेंगे।निंदनीय को छोड़ेंगे ,जो ग्राह्य है वही आप लेंगे। आप जो भी ग्रहण करें उसे पहले भगवान् को समर्पित करें वह प्रसाद बन जाएगा। प्रसाद का अर्थ है प्रसन्नता। 

ये दोनों दैत्य ही- रावण और अह रावण  के रूप में आये। 

राम के अवतरण में मनु शतरूपा का तप है ,और तप तब होता है जब पेट भरा हो ,जब सारे भोग आपने भोग लिए हों जब सारी वस्तुएं आपको प्राप्त हों। जो फटे हाल हैं ,कंगाल हैं ,वे समझ नहीं पाएंगे। ऊंची सौध पर बैठने के बाद ही त्याग किया जा सकता है जिसने उच्च पद प्राप्त कर लिया हो वही त्याग कर सकता है।

वर्धमान ने ,बुद्ध ने ऋषभदेव ने पूरी धरती के सुख प्राप्त करने के बाद संन्यास लिया है। संन्यास कहते हैं सम्यक कामनाओं का न्यास। जिनके पास कुछ है वही संन्यास ले पाते हैं। 

एक दिव्यपुरुष धरती को दिया जाए ,एक नै व्यवस्था पृथ्वी को दी जाए इसके लिए मनु और शतरूपा तप करने बैठे। (ये दोनों ही मानसी सृष्टि थे ब्रह्मा जी की ,जिनके तप से सृष्टि पैदा हुई ,कृष्ण/महाविष्णु  ने चाहा मैं एक से अनेक हो जाऊं और हिरण्यगर्भ ब्रह्मा जी पैदा हो गए उनसे सारी सृष्टि ......  ). 

आहार शुद्धि ,तत्व शुद्धि तप का पहला साधन बतलाया गया है हमारे शास्त्रों में। यदि हम प्रकाश मार्ग पर चलना चाहतें हैं तो पहले आहार शुद्ध करना होगा। जो यह कह रहे हैं हमारा भजन ठीक नहीं चल रहा है जप ठीक नहीं चल रहा है ,हम ध्यानस्थ नहीं हो पाते हैं ,एकाग्र नहीं हो पाते हैं चित्त में एकाग्रता और स्थिरता नहीं रहती तो यह ध्यान रहे वह अपना भोजन ठीक करें। जो आपकी थाली में रखा है बस वही आप बनने वाले हैं आहार ही आपको आकार देगा। आहार ही आपको विचार देगा ,वृत्तियाँ ,प्रवृत्तियां देगा। आहार में ही एक स्वीकृति अस्वीकृति पैदा होगी यह ध्यान रहे। 

आहार आपका शुद्ध है तो आप त्याग करना चाहते हैं। वह ग्रहण करना चाहते हैं जो शुद्ध है जो हेय है भयकारक है आप उसका त्याग करना चाहते हैं। 

आहार यदि आपका शुद्ध नहीं है तब आप ऐसा आहार करना चाहते हैं जो विष है निंदनीय है।पूरे संसार में अगर आहार शुद्धि की चर्चा हो रही है तो केवल भारत में। 

आहार मितभोजी होना चाहिए उसमें मात्राज्ञता  होनी चाहिए। कितनी मात्रा में लिया जाए ?आहार सुपाच्य होना चाहिए।आहार आपका प्रसाद बन जाए। प्रसाद माने प्रसन्नता।  आप पहले भगवान् को आहार समर्पित करें  फिर वह प्रसाद बन जाएगा। 

करहिं आहार शाक फल कंदा, 

 सुमरहिं ब्रह्म सच्चिदानंदा। 

उर अभिलाष निरंतर होई ,

देखहुँ नैन परम प्रभु सोही। 

वेद में वीर्य के पावित्र्य , रज शुद्धि की विधि बताई है।के कितनी पीढ़ी में रक्त ,धातुएं ,मैद ,रुधिर ,वीर्य ,मज्जा ,रस ,प्राण ,विचार ,मति ,संकल्प पवित्र हो , शुद्ध हो जाएंगे।एक गर्भाधान करने में मनु शतरूपा को  बारह बरस लग गए। बारह बरस तक लगातार एक तप किया मनु और शतरूपा ने। एक व्रत किया पहले।मन पर काम किया उन्होंने ,विचार पर काम किया। ये सब उत्तम कोटि की संतान के लिए किया। हम ओस की एक बूँद की तरह स्वाभाविक हो जाएँ। आकाशगंगा में वह जो दूधिया सागर है वैसे सहज हो जाएँ।धवल चादर से हम सहज हो जाएँ।  जिस दिन सिंह हमारे पास आकर बैठ जाएगा ,हमें डर नहीं लगेगा -इसके लिए अन्न की साधना की ,विचार की साधना की। 

भोजन देखने में  ग्राहीय लगे।वरना अन्न में बड़ी दुर्गन्ध है। 

अन्न औषधि है केवल भूख मिटाने के लिए नहीं है आपके अंदर एक कांति ,एक ओज आपके अंदर पैदा हो। अन्न में उन्माद न हो। उत्तेजना न हो। थाली ब्रह्म को अर्पण हो जाए। अन्न को नैवेद्य ,ईश्वरीय पदार्थ बनाइये और यह काम इन दोनों ने किया। 

अन्न से एकाग्रता आती है। निर -विचार ,निर -वितर्क अवस्था आती है। वीर्य ,रज ,अस्थि , मज़्ज़ा  सब शुद्ध कर लिए मनु शतरूपा ने । तब भगवान् ने कहा जाइये मैं आपके यहां आऊंगा। आप त्रेता युग में दशरथ और कौशल्या  होंगें। आपको ही मैं चुनूंगा माता पिता के रूप में। 

पार्वती परमात्मा को कुरेदना जानतीं हैं उन्होंने कितने प्रश्न किये -गुरु से प्रश्न किये लोक कल्याण के लिए ,जन चेतना के लिए ,आपको गुरु से प्रश्न करना आना  चाहिए पार्वती की तरह। 

पार्वती  कहतीं हैं - हमने सुना है नारद ने भगवान् को शाप दिया था। शाप तो क्रोध में ही दिया जाता है जब शरीर के अंदर विष बढ़ जाता है तब क्रोध आता है । क्रोध बिना काम के आ ही नहीं सकता ,तो क्या नारद ने क्रोध किया  शाप देने से पहले। जब व्यक्ति विचार शून्य हो जाता है तब क्रोध करता है। वह स्वयं पर नियंत्रण खो बैठता है तब क्रोध करता है।  जिसका अभ्यास सफल नहीं हुआ है वह क्रोध करता है। 

नारद के शाप के कारण भगवान नारायण (राम )बनकर आये। नारद ने इतना क्रोध क्यों किया मुझे बताइये। दमित काम जब प्रकट होता है तब क्रोध आता है। नारद के भीतर ऐसा क्या था ?मुझे बताइये प्रभु -कहतीं हैं पार्वती शिव से। 
(ज़ारी ....)  

क्रोध आ ही नहीं सकता काम के बिना। काम की कोख से ही क्रोध निकलता है। अगर कोई व्यक्ति क्रोध कर रहा हो तो समझ लेना यह वह व्यक्ति है जो हारा हुआ है। इसका अभ्यास सफल नहीं हुआ है। 

पार्वती शिव से कहने लगीं -हे देव हम ने सुना है नारद के भयानक शाप के कारण नारायण राम बन के आये। तो क्या कारण रहा नारद को इतना क्रोध आया ,उन्हें शाप देना पड़ा ?

क्रोध की तीन अवस्थाएं हैं :

(१ )जब आप ज्ञान शून्य हैं ,विचार शून्य हैं 

(२ )जब आप अपनी वासनाओं में लालसाओं में मनोवांछाओं में असफल हो गए हैं तो क्रोध आता है 

(३)दमित काम का बीज जो हमारे अंदर होता है और जो कभी हमें दिखाई ही  नहीं दिया ,जब वह प्रकट होता है तब क्रोध आता है। 

भाव की अधम अवस्था का नाम क्रोध है जब व्यक्ति स्वयं -भू ,परि -भू होना चाहता है सबको अपने अधीन रखना चाहता है शीर्षस्थ होना चाहता है। मैं ही मैं हूँ ,दूसरा कोई नहीं। 

भाव की सर्वोच्च अवस्था का नाम भक्ति है। 

भाव की जो पवित्रतम अवस्था है उसका नाम तो भक्ति है। और भाव की जो नि-कृष्ठ जो अवस्था है उसका नाम क्रोध है। यह क्रोध तभी प्रकट होगा जब अनियंत्रत ,डिस्प्रोपोशनेट (असमानुपाती )काम आपके भीतर है।

काम बुरी चीज़ नहीं है मैं और आप काम की ही उत्पत्ति हैं। काम से ही यह जगत है। बिना काम के जगत का विस्तार नहीं हो सकता। लेकिन डिस्प्रोपोशनेट काम का फलादेश है क्रोध। 

एक बहुत ही  उदण्ड मन अराजक मन की कथा सुनाते हैं आपको।जो यह प्रकट करता है मैं बड़ा शिष्ट हूँ लेकिन भीतर की कामना कैसे जागतीं हैं -बड़ा सुंदर चित्र है उसका इस कथा में। 

"हे गुरु नारद मैं आपको प्रणाम करता हूँ ,आप ने मुझे हरा दिया ,शिव मुझसे लड़ के जीत नहीं सके अपनी शक्ति से भगवद्ता से उन्होंने मुझे भस्म ज़रूर कर दिया  लेकिन आप ने तो मुझे जीत लिया मैं आपको प्रणाम करता हूँ। इन्द्रादि सनकादि कुमार यक्ष आदि सब नारद की जय जैकार करने लगे। अरे ब्रह्मा ने तो सरे आम अपनी पुत्री सरस्वती का हाथ पकड़ लिया था कामासक्त होकर और इसीलिए आज तक ब्रह्मा की कहीं पूजा नहीं होती एकाध ही मंदिर है ब्रह्मा जी का भारत में। लेकिन । आप ने तो ऋषिवर मुनिवर मुझे निस्तेज कर दिया-बोला काम नारद से। " 

आज तक भी विश्व में कोई इसलिए यश का भागी नहीं हुआ के उसने अर्थ बहुत अर्जित कर लिया ,यश जिसको भी मिला है त्याग से मिला है तप से मिला है। ऋषियों ने कहा हम ने पहली बार कोई तप देखा जिसमें स्वाभाविक विरति है उपरति है। संसार के लिए कोई आकर्षण नहीं रहा इस तरह से संसार भीतर से खो गया है  . हम ने पहली बार कोई साधु देखा है। सबने नारद का गुणगायन किया। 

संसारी और साधु  का फर्क देखिये -  संसारी संसार में रहता है उसके भीतर भी एक संसार रहता है। साधु संसार में रहता है और उसके भीतर में संसार नहीं रहता। तो जिसके भीतर की सांसारिकता ,पारिवारिकता खो गई है बस वही साधु है। ऐसा कहकर पूरी देव सत्ता अप्सराएं नमित होने लगीं नारद के समक्ष । और ब्रह्मा ने भी उनका (नारद )का वंदन किया। ब्रह्मा जी यह कहकर प्रणाम करने लगे -मैं काम जीत नहीं सका और जय जैकार नारद की सारी धरती पर हो गई। सब उनका सम्मान करके जा रहे थे अकेले ब्रह्मा रह गए। ब्रह्मा ने नारद के कान में कहा शब्द ,स्पर्श ,रूप ,रस ,गंध -मैं छू कर देखूँ ,सूंघकर ,चख कर देखूं  आदि इन सब पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं रहा। देखने की कामना पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं रहा। तूने कर लिया। जो मैं नहीं कर सका वह तूने किया। 

ये जो तेरी जय जैकार है इसकी भनक ,इसका समाचार शिव को न मिले -ध्यान रखना ,अच्छा नहीं लगेगा ब्रह्मा जी ने नारद को कहा। मैं तेरा पिता हूँ इस वर्जना का पालन करना। यहां पर यही सन्देश है कथा का -माता पिता कोई वर्जना दें तो उसका पालन करना। शिव काम को जीत न सके थे भस्म ज़रूर कर दिया था उन्होंने काम को अपनी सामर्थ्य से। 

मनुस्मृति में एक ही दृष्टि आई है -ज्येष्ठ जनों की आज्ञा का पालन ही धर्म है। ज्येष्ठजन जो परम्परा हैं उनकी आज्ञा का पालन करना ही धर्म है। 

नारद ने अवज्ञा की। इसका अर्थ है धर्म का उल्लंघन कर दिया। कीर्ति की भूख उन्हें शिव के द्वार पर ले गई। पहुंचे ये कहने मेरे पिता ने तो वर्जना दी हैं उन्होंने तो मना किया है लेकिन आप मेरे गुरु हैं ,अपनी कृति ,अपनी निर्मिति बताने के लिए नारद बे -चैन हैं उस बाज़ीगर की तरह जो  डुगडुगी बजाकर सारी दुनिया को तमाशा दिखाना चाहता है। अपने हाथ की सफाई दिखाना चाहता है। 

शिव अपनी तपस्या कभी भंग नहीं करते लेकिन आज वह नारद की स्तुति गुण -गायन  कर रहे हैं तपस्या से समाधि से बाहर आकर। नारद को ऊंचे आसन पर बिठाया जा रहा है रूद्र लोक में। पार्वती हैरान है यह नारद तो यहां अक्सर आता है ,आज ऐसी क्या घटना घटी है जो इसका इस प्रकार अभिषेक किया जा रहा है। श्रृंगी आदि सभी हाथों में पुष्प लिए खड़े हैं नारद के अभिवादन के लिए। शिव ने प्रार्थना की हम विजेता को नमन करते हैं। 

काम के जनक नारायण हैं उनमें ही पहली कामना पैदा हुई मैं एक से अनेक हो जाऊं। काम पर नारायण का नियंत्रण होता है। उसी के नाभि कमल से पैदा हुए ब्रह्मा वह पहला काम उसी नारायण में पैदा हुआ। काम से विलगता ,निष्काम होना काम से केवल नारायण को आता है। 

अगर काम से विलग हो गया है नारद तो क्या नारायण हो गया नारद ?

और अगर नारद नारायण हो गया है तो इसे प्रणाम करना चाहिए। इसलिए वंदन करने लगे। अगर अपने पतन का फाटक खोलना है तो बड़ों का आदर स्वीकार करने लगें। अगर उच्च पदस्थ व्यक्ति आपका आदर करने लगे और आपको वह अच्छा लगने लगे तो समझ लेना आपके पतन के द्वार खुल गए हैं। 

बड़ो से आदर कभी मत लेना क्योंकि बड़ों से आदर लेकर जो आपको सुख मिल रहा है उसे शास्त्रों में अधम सुख कहा गया है। 

नारद उच्च आसन पर बैठ गए। शिव निकट आये और उन्होंने कान में एक बात कही -अब मैं प्रार्थना ही कर सकता हूँ नारद अब मैं आदेश तो दे नहीं पाऊंगा क्योंकि मैं तेरा गुरु हूँ ,अब तू वो सारी मर्यादाएं लांघ गया क्योंकि मेरे द्वारा पूजित होकर तुझे सुख मिल रहा है। मैंने तुझे प्रणाम किया ,पुष्प  दिया ,उच्च आसन दिया तो मेरे द्वारा दिए गए उच्च आसन पर बैठकर तुझे बड़ा सुख मिल रहा है। इसका अर्थ है अब तू आदेश तो मानेगा नहीं। उपदेश अब तू स्वीकार नहीं करेगा। तो विनय करता हूँ मैं। 

एक मेरी विनय मान लेना ,नारद बोला क्या विनय है -बोले शिव नारद से -

ये जो समाचार तू ने मुझे दिया है के मैंने काम को जीत लिया ,क्रोध को जीत लिया ये नारायण को मत बताना। बस यही एक विनय है मेरी। ये समाचार आप नारायण के द्वार तक मत ले जाना के मैं स्वयं -भू हो गया हूँ ,परि -भू हो गया हूँ। काम नियंत्रक नियोक्ता हो गया हूँ मैंने काम जय कर ली है। अब मुझे कोई सांसारिक आकर्षण नहीं रहता यह समाचार उन्हें मत बताना। 

बार -बार विनवो (विनवहुँ )मुनि तोहि ,
ये जो कथा सुनाई मोहि।

एक अनियंत्रत मन उस समय हो जाता है जब अधिक आदर मिले ,आदमी ने अपनी परम्परा का एक -एक संवेदन समेट कर रखा है यहां तो गुरु भी हैं स्वयं ईशवर भी हैं फिर भी नारद में अहंकार है।  

ईश्वर अंश जीव  अविनाशी ,

चेतन अमल सहज  सुख राशि। 

ईश्वरीय अंश है हमारे अंदर (हम आत्मा है )जिसको बहुत आदर चाहिए।नारद को यह बात अच्छी नहीं लगी। 

मैं जाऊंगा -एक बार भगवान को पता तो लगे के भक्त की क्या उपलब्धि हैं। नारद पहुंचे और भगवान नारद से कहने लगे हे मुनि तूने बड़ा अनुग्रह किया मुझ पर आज तो मेरे आसन पर ही बैठना पड़ेगा। नारायण खड़े हो गए आसन छोड़कर। 

जिसमें इतना वैराग्य है उस शेषनाग की काया पर नारद बैठते हैं। लक्ष्मी ने कहा यह हो नहीं सकता  इसने काम को जीत लिया। इसमें यश की अभिलाषा बैठी है।
"ये नया कोई लोक है। ये मेरी कन्या है इसे वर चाहिए -और उस मायावी पुरुष  ने अपनी मायावी कन्या का हाथ माया मुक्त नारद के हाथ पर जैसे ही रखा नारद माया वश स्वयं हो गए। "

वह त्रिदेव पर शासन करने वाला होगा जो इसका वर होगा ,नारद सोचने लगे ये कन्या मुझे मिल जाए तो मैं तीनों लोकों का मालिक  हो जाऊँ। 

मेरी कन्या की एक ही शर्त है यह सुंदर पुरुष चाहती है जिसका सौंदर्य  छीज़ न जाए। जन्म ,विकास ,ह्रास (क्षय )और मृत्यु इस सृष्टि का नियम है। 
युवक को कभी यह पता नहीं लगता के प्रौढ़ता आ गई है। अब वह युवक नहीं रहा। ये आकर्षण कुछ देर का है फिर ह्रास है जिसमें कुछ लोग संतुलन खो बैठते हैं। नारद उसे अपनी पत्नी माने बैठे हैं ये मेरी बन गई तो मैं स्वयं -भू बन जाऊंगा। नारद को काम ने नहीं जीता -कीर्ति की भूख ने जीत लिया। मैं सृष्टि का मालिक बन जाऊं। 

जिसकी सुंदरता कभी खंडित न हो ,जिसमें आकर्षण कभी खो न जाए ऐसे पुरुष से विवाह करेगी मेरी पुत्री।मायावी नगरी का मायावी राजा (वास्तव में विष्णु )बोला नारद से।  

नारद मन ही मन सोचने लगे मैं पूर्ण नहीं हूँ पूर्ण तो नारायण  हैं क्यों न उनसे ये सारे गुण ये रूप  सौंदर्य मांग लूँ। 

आजकल लोगों को वेलनेस बिजनिस बड़ा सता  रहा है ये बात सता रही है    मेरा आकर्षण बना रहे।अब पदार्थ मुझे खींच रहें हैं उस काया ने मुझे क्यों वशीभूत कर लिया है मैं ये नहीं जानता मेरे अंदर ये हलचल क्यों हैं लेकिन मुझे अपना रूप दे दो जिससे मेरा कल्याण हो। 

अत्यंत विषयासक्त प्राणी बहुत सुन्दर नहीं रहता -याचक का चेहरा उतरा हुआ रहता है। साफ़ पता चलता है कुछ उधार मांगने आया है। जिस दिन आप अंतर्मुख होते हैं उस दिन आप सुन्दर दीखते हैं ,आपके अंदर से विषयासक्ति खो जाती है बहिर्मुख व्यक्ति सुंदर हो ही नहीं  सकता। 

इस विषय वासना ने नारद का रूप छीन लिया वह बंदर जैसे दिखने लगे। अश्वपति से उसने कहा मैं लड़का (वर )देख आईं हूँ। काल के गाल में से सावित्री अपने पति को छीन लाई। 

पावित्र्य हमारे मन को छूता है आकर्षित करता है जो  एकांत  के शील को  सुरक्षित रखता है। नारद को बंदर रूप देख वह मायावी सुन्दर कन्या हट गई। विष्णु का वरण कर लिया। 

नारद बोले तू सदा से ही छलिया रहा है -जा मैं तुझे सज़ा देता हूँ शाप देता हूँ -तू भी कभी अपनी स्त्री को जंगल दर जंगल ढूंढता फिरेगा राम के रूप में। मुझसे भी तूने छल ही किया अपना रूप देकर नाटक क्यों किया। 

अगर दुःख घेर लें तो भगवान् के गुणों का ध्यान करें। भगवान् ने कहा नारद अरे तेरा मन ठीक नहीं है। नारद शिव का ध्यान करने लगे। चित्त शांत हो गया नारद का। 

शिव शिव शम्भु शंकरा ,
हर हर हर महा -देवरा।    

नम :शिवाय नमःशिवाय ,

शिव शिव शम्भु नम :शिवाय। 
   

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१)https://www.youtube.com/watch?v=_1UZvf4IGu8

(२ )

LIVE - Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - 27th Dec 2015 || Day 2

बुधवार, 29 नवंबर 2017

Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji Day 2 ,Part l

भगवान् कहते हैं कोई मेरे सम्मुख तो आये मैं उसके इस एक जन्म तो क्या कई जन्मों के पाप नष्ट कर देता हूँ-


अध्यात्म का प्रवाह कोई भेदभाव नहीं करता समदृष्टि ,समभाव ,समत्व लिए 

रहता है सब के लिए - 

मीर  की ग़ज़लें उसी अंदाज़ में हम चूमते हैं ,

सूर के पद  गुनगुनाकर जिस तरह से झूमते हैं। 

मस्जिदों से प्यार उतना ही  हृदय में है हमारे ,

जितने मंदिर मठ,गिरिजाघर  हैं गुरूद्वारे। 

किसी ने पूछा इस संसार में जानने योग्य वस्तु क्या है ?

रामहि केवल प्रेम पियारा ,

जान लेओ जोई जानन हारा। 

हमारा राम तो बड़ा व्यापक राम है -

राम  सच्चिदानंद दिनेशा ,

 नाहिं ताहि मोह निक   लवलेशा 

राम का प्रेम शबरी का प्रेम है ,मर्यादा में रहता वह प्रेम है  जिसमें केवट है ,वनवासी हैं ,जिसमें विकलांग है ,संसार के  उपेक्षित  वे लोग भी हैं जिन्होनें अपने जीवन को सफल बनाया। 

इश्क़  मज़हब हो तो ज़ाहिब ,कुफ्र क्या ,इस्लाम क्या ,

हो कहीं काबा या बुतखाना ,किसी से काम क्या। 

दिल में है काबा मेरे और इश्क है मेरी नमाज़ ,

चाहे जब चाहूँ कर लूँ अदा ,इसमें सुबह क्या और शाम क्या। 

गुजराती शब्द है थाप -जिसका मतलब होता है थकान। कथा का उलटा होता है थाप -कथा सुन ने से थाप मिट जाता है। 

वैष्णव जन तो तेने रे कहिये ,जे पीड़ पराई जाने रे  

वैष्णव उसको कहते हैं जो दूसरों की पीड़ा का अनुभव करके उसको मिटाने की कोशिश करता है।उसके अभाव को मिटाने का प्रयत्न करता हो। 

राम कथाकार आध्यात्मिक चिकित्सक होता है। 

जब भी जीवन में कोई बड़ी उपलब्धि हो कोई आपकी प्रशंशा करे तो सर झुका लेना ,लंकादहन जैसी घटना घट गई समुद्र पार कर जाना  - सब कुछ उसकी कृपा से होता । 

आप किए क्या होय। 

भगावन की कृपा से ही यह हुआ है। 



जब भगवान् को परशुराम अपशब्द बोलने लगते हैं गाली देते हैं तब भी वह विनम्रता पूर्वक कहते हैं -जिनकी इच्छा से सृष्टि में प्रलय लय और विलय होता है उससे -किसने धनुष को तोड़ा -पूछा परशुराम जी ने -

नाथ  शम्भु धनु भंजन हारा ,

होइ कोई एक, दास तुम्हारा।

भूप सहस्र- दस एक ही बारा ,

लगे उठावन ,टरै न टरा। 

इतने बड़े धनुष को भंग करने के बाद भी भगवान् राम कहते हैं आपकी कृपा से आपके बल से ही वह धनुष किसी आपके सेवन ने ही  तोड़ा होगा। जब भी जीवन में किसी बड़ी उपलब्धि पर मन में गर्व आये -श्रीराम की विनम्रता को याद कर लेना। 

गुरु वशिष्ठ कुल पूज्य हमारे ,

इनकी कृपा दनुज दनु मारे। 

राम से जब माता कौशल्या पूछती हैं -सोचते हुए मेरे दोनों बालक इतने सुकुमार हैं इन्होनें रावण को कैसे मारा होगा तब राम यही कहते हैं गुरु की कृपा बरसती थी उसका सम्प्रेषण मेरे बाणों तक होता था मेरे बाणों में इतनी शक्ति कहाँ  थीं।ये विनम्रता है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की , दम्भ जिनका स्पर्श ही नहीं कर सकता। 

विजय का श्रेय अपने आराध्य के चरणों में समर्पित करिये -गुरु को समर्पित करिए -मैं मैं मत करिये -मैंने ये किया ....वो किया 

फक्र बकरे ने किया ,मैं के सिवाय कोई नहीं , 

मैं ही मैं हूँ इस जहां में दूसरा और कोई  नहीं ,

हड्डी और  चमड़ा जो  था जिस्म -ए -गार  में ,

कुछ लुटा ,कुछ पिसा ,कुछ बिक गया बाज़ार में ,

कुछ बिक गया बाज़ार में ,

रह गईं आँतें  फ़क़त , मैं ,मैं सुनाने के लिए ,

रह गईं आतें फकत मैं ,मैं सुनाने के लिए ,

तो ले गया लद्दाख उसे ,धुनकी बनाने के लिए ,

जरब (जर्ब )से  सोटे  के जिस दम , तांत घबराने लगी ,

  मैं के बदले तू ही तू की ,सदा आने लगी।

भारतीय संस्कृति कहती है - 

तू को इतना मिटा के तू न रहे  तुझमें   द्वय की बू न  रहे -

 तत् त्वं असि -देखता तब तू 

अपने भीतर देखता तो -अहम ब्रह्मास्मि को देखता और तब अगर 

तू  - विश्व को देखता तो -

सर्वं खल्विदं ब्रह्म -को देखता -यदि तुझमें तू न होता 

राम कथा का सन्देश ?राम कथा सुनने का लाभ क्या है ?

राम ने अपने चरित की सारी लीलाएं लोकव्यवहार ,लोकमान्यताओं के आलोक में ही की हैं। राम का चरित हमारे लिए एक आचार संहिता के समान ही है जिसे सुनने से हमारा उत्थान और उन्नयन  होता है। 

भौतिक पदार्थों के प्रति हमारी आसक्ति जड़ है। यह जड़ता ही अहिल्या है जो हम सबके अंदर हैं।   

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१)https://www.youtube.com/watch?v=_1UZvf4IGu8

(२ )

LIVE - Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - 27th Dec 2015 || Day 2




मंगलवार, 28 नवंबर 2017

Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji (Day 1)

तापस वेश विशेष उदासी ,

चौदह बरस राम वनवासी। 

श्रवण अज्ञान मुक्ति का आत्म कल्याण का साधन है। आपका बोलना ,आपका देखना वह मांगल्य तभी होगा जब आप अच्छा सुनें। 

शास्त्र का निर्देश हैं पहले आप अच्छा सुनें -स्वरूप अनुसंधान के लिए। मनन (contemplation )और ,निद्धियासन (constant contemplation )बाद के साधन हैं । जब ब्रह्मा का चातुर्य विस्मृत हो गया तब उन्होंने भी अपने लक्ष्य बोध के लिए श्री हरि की शरण ली उनसे कथा सुनी। शिव ने भी कथा सुनी। 

श्रवण मंगलम 

सुन ने की बात अति प्राचीन विधा है। ईश्वरीय सामर्थ्य उपलब्धता के लिए एक ही संस्कार है और वह है :श्रवण। वैसा सुने जिससे आपके भीतर के कपाट  खुलें  ,माधुर्य जगे।मंथरा कुसंग हैं ,श्रवण योग्य नहीं हैं। कैकई ने मंथरा की सुनी और राम के लिए वनवास ही नहीं माँगा ,उनके वस्त्र भी उतरवा लिए। ऐसी सजा इतिहास में आपने सुनी नहीं होगी। 

श्रवण मंगलम -मांगल्य सुनो। 'श्रुति' श्रवण है। वेद सुने जाते हैं। पढ़े नहीं जाते। 

 राम कथा -संवाद पिटारी है। शिव -पार्वती संवाद , ऋषि याज्ञवाल्क्य और भारद्वाज ........    संवाद ,यहां तक के तुलसीदास का खुद के साथ भी संवाद है रामकथा में।काग भुसण्डी जी के साथ गरुण का संवाद है हालांकि गरुण ने पूरी कथा सुनी भी नहीं थी उनका संशय ,अहंता भाव तिरोहित हो गया।  

श्रवण मंगलम। वेद श्रुति है सुन ने की चीज़ है। कथा भी सुन ने की चीज़ है। उपदेश सुनने के लिए हैं। वेद पढ़ा नहीं जाता -सुना जाता है। हमारा प्राचीनतम वेद -ऋग्वेद सुना गया है ऋषियों के द्वारा।हमारे भीतर का प्रमाद ,संशय ,व्यक्ति का नाश कर देता है। संशय से एक अ -श्रद्धा आती है ,आत्मघाती वृत्ति आती है। व्यक्ति भ्रमित हो जाता है अपने अस्तित्व से अलग हो जाता है।

श्रद्धा से एकलव्य पैदा होता है अकेला पात्र है महाभारत का जो सबको फीका कर देता है। द्रोणाचार्य की अपनी प्रतिबद्धता है विवशता है चाह कर भी वह एकलव्य को दीक्षा नहीं दे पाते हालांकि द्रोणाचार्य जानते है एकलव्य सुपात्र है।  

इस सृष्टि का पहला सवाल है -मैं  कौन  हूँ ?

को हम !

इस प्रश्न का उत्तर भारत की धरती ने दिया है। क्या मैं देह मात्र हूँ ,शिशु हूँ ,बालक हूँ ,वृद्ध हूँ ?धमनियों में बहने वाला रक्त हूँ। हृद्स्पन्दन मात्र हूँ। 

कथा वह है जो हमारे होने के अर्थ को उजागर करती है। 

'सती' जानना तो चाहतीं थी यथार्थ क्या है -लेकिन वह इस अहंकार में के मैं बहुत श्रेष्ठ हूँ एक प्रमाद उनके आसपास आ गया। उन्हें निद्रा आ गई कथा सुन न सकीं।शिव कहते रहे। कथा सुनी एक तोते ने। कथा सुन ने के लिए : 

पहला साधन है -अ -प्रमत्तता ,अपने प्रमाद को त्यागे। जिसने एकाग्रता का अभ्यास  कर लिया है  वह अपनी निजता को जान लेता है। कौन है जो इस पूरी श्रेष्ठि का नियामक है। 


जिज्ञासा करनी है तो -

परम सत्य की कीजिये -

अथातो ब्रह्म। 

इस राम कथा की उपलब्धि क्या है ?अपने  स्वरूप को पहचानना है ,आत्म -स्मृति है। जितने भी हमारे दुःख हैं उनका एक ही कारण है :आत्म विस्मृति। स्वयं के प्रति जो  अल्पज्ञता है ,अज्ञेय -ता है ,वही हमारे दुःख का कारण है। मैं कौन हूँ ?

नष्टो मोहा स्मृति लब्धा 

अग्रज जो कहेंगे मैं अब वही करूंगा। अर्जुन कहता है -आपको सुन ने के बाद मुझे स्मृति मिल गई है। मेरी विस्मृति का नाश हो गया है। उपदेश भी स्मृति ही है। 

कथा खुद की उपलब्धि के लिए है। इसलिए कोई ढंग से कथा सुने और ऐसा हुआ है इस धरती के समूचे साधनों के एक मात्र उपभोक्ता ने -ऐसा करके दिखाया है। 

कथा हमारे भय को छीनती है अल्पता अभाव को छीनती है। राम जब अयोध्या से वनवास के लिए निकलते हैं तब उन्हें कोई संकोच न था ,द्वंद्व नहीं था ,निर-द्वंद्व वो गुरु के चरणों में प्रणाम करते हैं।

अल्पता ही मेन्टल इलनेस है ,मानसिक रोग है ,मानसिक रोग और कुछ नहीं है बस इस से थोड़ा सा ही  ज्यादा होगा। व्यक्ति इस अभाव में सोचता है ,के जो प्राप्त है वह थोड़ा है ,जो अ -प्राप्त है उसका आकर्षण बड़ा है जो प्राप्त है उस से न हम संतुष्ट  हैं न प्रसन्नता से भरे हुए हैं।अ -प्राप्त की ही चिंता है व्याकुलता है सारी। व्यक्ति सोचता है -जो प्राप्त है वह थोड़ा सा है। बस यही मानसिक रोग है। 

एक बात और अगर हम प्रसन्न नहीं हैं ,हमारे आसपास माधुर्य नहीं है ,संतोष नहीं है इसका मतलब है हमारे विचार में कहीं कोई न कोई खोट है। 

भव-सागर अब सूख गया है , 

फ़िक्र  नहीं मोहे तरनन  की ,

मोहे लागि लगन  गुरु चरणन  की। 

जिस ने अपने चित्त का समाधान कर लिया है वही चतुर है सुजान है।महान है गुणवान है एक साथ सभी वही है।  

सीखने के लिए कभी द्वार बंद मत करना जिस दिन भी स्वाध्याय के प्रति ,सत्संग के प्रति विरति हो गई  ,जिस दिन आपके अंदर प्रमाद पैदा हुआ उस दिन सारी  संभावनाओं का अंत हो जाएगा ,मनुष्य जीवन अंतहीन ऊर्जा ,अंतहीन संभावनाओं का नाम है उसकी भनक कहीं से भी लगती है जहां से भी लगती है उसका नाम सतसंग है। 

कथा से विषम प्रतिकूल परिस्थतिथियों में खड़े रहने की ऊर्जा मिलती है। उपदेश हमारे अवसाद को ,भय को छीनता है।कथा का फल स्वयं भगवान् हैं ,अभयता है स्वयं सिद्धि है।आत्मबोध है कथा।  

तुमहि जान तुमहि हो जाई   

आज साधन बहुत हैं लेकिन साथ ही अ -परिमित अ -संतोष हमारे जीवन में आया है। मनुष्य ने कथाएं ही तब सुनीं हैं जब जीवन में अवसाद हुआ है । 
सच्चे मन से गुरु की गली में आने का मन बनाइये -समाधान मिल जाएगा। गरुड़ जी अभी कागभुसुंड जी की गली में ही पहुंचे थे कथा सुन ने के लिए उन्हें समाधान मिल गया -बड़ा अहंकार हो गया था गरुण को अपनी भगवद्ता का के मैंने ही भगवान् की जान बचाई है नापाश से उन्हें मुक्त किया है।सुग्रीव की भगवदता तब काम न आई थी।  अहंकार से भरे हुए शिव के पास गए, समाधान ढूंढने -शिव ने कहा -कथा सुनो। कागभुसुंडि जी के पास जाओ। 

तुलसीदास परम्परा के पोषक हैं पहली चौपाई में ही गुरु को प्रणाम किया है।हमारी पहली गुरु माँ है। जहां से आपको पोषण ,रक्षण ,माधुर्य ,वातसल्य ,दुलार ,आकार मिला है वहां अगर आप कृतज्ञ नहीं हैं तो विकास नहीं होगा ,उन्नययन नहीं होगा ,तरक्की नहीं होगी  

कबीर कहते हैं -

'तीरथ जाए एक फल ,संत मिलें फल चार ,

सद्गुरु मिले अनेक फल कहत कबीर विचार।'

तीरथ जाने से अंत : करण  शुद्ध  हो जाता है।   

(धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष का बोध हो जाएगा संत के पास जाने से गुरु जीवन में आ जाएगा तो अर्थ का भी संरक्षण होगा ),संत पवित्रता है ,विचार मूर्ती ,ज्ञान मूर्ती है  ,पावित्र्य है। 

सच्चे गुरु मिल गए तो फलासक्ति ही नहीं रहेगी। दूसरों  को लाभान्वित करना है।सदैव दूसरों का उपकार करना है सब को प्रसन्नता ही देनी है।  

मुद मंगलमय ,संत समाजु 

जो जड़ जंगम, तीरथ राजू 

रमता जोगी बहता  पानी 

जो रमक  में है चलता फिरता है ,जो निरंतर है- सद्कर्मों में गतिमान है निरंतर ,वह जंगम है ,मोबाइल है ।

संत मोबाइल है। संत एक विचार है। 

राम इस देश की धरती का प्रथम प्रकाश है भोर की पहली किरण है। 

साधू ज्ञान मूर्ती हैं विचार मूर्तिं हैं वह ज्ञान अग्नि में अपने को भस्म कर देता है स्वयं अपना संस्कार करता है अपने प्रारब्ध को जलाता ,कर्म भागे ,भोग -विषय ,आसक्ति ,जड़ता को जलाता है साधु । संत जीवन में आता है तो मानिये बसंत आता है जीवन में। 

इसीलिए तुलसी बाबा ने प्रणाम किया है संतों को, तीर्थों को मंगलाचरण में ही।

रुक्मणि और कृष्ण के संवाद आते हैं भागवद में। पहला वाक्य क्या कहा रुक्मणि ने कृष्ण को। रुक्मणि जामवंती के ,राधा और  कृष्ण के ,राम और सीता के पहले क्या संवाद थे।हनुमान और राम के पहले संवाद क्या थे। राम लक्ष्मण को बतलाते हैं ये न वानर है ,न ब्राह्मण ,न देवता ,देवता और किम पुरुष भी नहीं है देव इतने विनम्र नहीं हो सकते। इतनी प्रखरता इसमें है यह कोई परमपुरुष है। सिद्ध इतना विनम्र नहीं हो सकता क्योंकि उसे ये गुमान रहता है मेरे पास सिद्धियां हैं। 


शंकर स्वयं केसरीनन्दन 

ये विद्या संपन्न प्राणी है। विद्या विचार संपन्न व्यक्ति जब बोलता है बिना लिए दिए ऐश्वर्य का अनुभव होता है। 

पार्वती बिल्व पुष्प आदि लेकर बैठी हैं प्रणाम करतीं हैं शिव को हे सनातन पुरुष इतना तो मैं जान ही गई के आप प्रथम पुरुष हैं। अब मुझे जीव और माया का दर्शन बतलाइये ,प्रकृति ,पुरुष ,आत्मा और माया क्या है। कौन है जो आपका का भी नियामक है कौन है जिसके अनुशासन में आप भी रहते हैं। मुझे यथार्थ बतलाइये।आप किसकी उपासना करते हैं ?आप से ऊपर कौन है ? 

विनय प्रेमवश हुईं भवानी।

पार्वती शिव के क्या संवाद हैं -पहले पहले संवाद। 

पूजा और वचन निर्वाह ,परम्परा की पूर्ती में और पूजा में अंतर होता है। साधक को पता होता है उसने क्या किया है आज पूजा में। 
राम क्या है मुझे राम का सत्य बताइये। मैं राम का सत्य जानना चाहतीं हूँ। 

सुनि  गिरिजा हरि चरित सुहाए ..   ......  

विपुल विशद निगमागम गाये। 

आगम और निगम ने गाये हैं ये चरित। 

राम कथा मात्र उपाख्यान नहीं है घटनाओं का जोड़ तोड़ मात्र नहीं है। जिनमें दो तीन चार पांच व्यक्तित्व दिखलाई देते हैं जिन्हें सोचना नहीं आता ,हम कुछ नहीं है हम अपनी सोच का ही हैं उत्पाद हैं ,राम कथा में आपको सूत्र मिलेंगे -आप कैसे सोचें। कैसे आपके विचार उत्पादक हों प्रेरक हों अपने में एक आदर्श बने। आपको सोचने की कला सिखाती है राम कथा। 

जो कर्म की गति है कब और कैसे और क्या करें ?जो निंद्य है जिस से दुःख पैदा होता है ऐसी  संहारक शक्ति से कैसे मुक्त हों।अकारथ को उड़ा देती है राम कथा ,जो आपको अपने अंत :करण में नहीं रखना चाहिए  उस विचार से राम  कथा हमेँ मुक्त होना सिखाती है।

समय का पालन करना साधक का धर्म होना चाहिए। शेष चर्चा कल करेंगें। 

श्रद्धा लभते ज्ञानम् -एकलव्य महान धनुर्धर गुरु में अगाध  श्रद्धा रखने से ही हो गए।  

केशव माधव गोविन्द बोल ,

केसव माधव हरि हरि बोल ,

मुकुंद  माधव हरि -हरि बोल। 

हरि -हरि राम राम शिव -शिव बोल ,

केसव माधव गोविन्द बोल।     

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१)Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji (Day 1)

(२ )https://www.youtube.com/watch?v=vc2LGF19-vU

हाफ़िज़ सईद की रिहाई का जश्न मना रहे हैं राहुल

हाफ़िज़ सईद की रिहाई का जश्न मना रहे हैं राहुल -

मोदी जी बात बनी नहीं -हाफ़िज़ सईद रिहा हो गया ,पाक को अमरीकी सैन्य सहायत बहाल होगी -राहुल (यह सुर्खी थी एक हिंदी के अखबार की )

(गांधी तो ये व्यक्ति है नहीं ,क्योंकि पारसियों में गांधी उपनाम और वर्ण ,गोत्र आदि नहीं हैं ये नेहरू वंश का बचा खुचा उच्छिष्ट है वर्ण - संकर रूप में ),राहुल को गांधी कहना उस महात्मा की तौहीन है जिसे मोहनदास करमचंद गांधी कहा जाता था। खुद गांधी वंश के नातियों ने एतराज जताया है इन कांग्रेसियों के आरएसएस पर  आक्षेपों का और इनके गांधी उपनाम बनाये रहने पर )

हम अपने मूल विषय की  ओर  लौटते हैं -राहुल की मोदी जी पर टिपण्णी भारत के प्रधानमन्त्री पर तानाकशी मात्र नहीं है हाफ़िज़ सईद की रिहाई का सेलिब्रेशन है इस सोनिया पुत्र द्वारा।

जबकि यह हमला मुंबई में कांग्रेस के सु -शासन में ही हुआ था। फिर भी हमारा मानना है दहशद गर्दी सारा राष्ट्र मिलकर रोकता है सामना करता है उसका मुंबई की शाश्वत चेतना के साथ ,मुंबई की स्पिरिट जैसा।ये दलगत मामला नहीं होता राष्ट्र की अस्मिता से जुड़ा मसला होता है।  

ये कैसा कुलकलंक है भारतीय राजनीति का 'राहु ' जो इस मौके पर भी चंद वोटों की खातिर जो इन्हें अब मिलना नहीं है भारत के एक और विघटन को तैयार है। क्या ये फिर किसी मणिशंकर अय्यर को पाक भेजने की योजना बना रहा है -जो पूर्व में ये कहकर आये थे -मोदी हटाओ -हमें  लाओ। 

 हमने तो संतों से सुना है 'गर्भस्थ' माँ से ही सारी संवेदनाएं लेता है सिर्फ भाषा नहीं सारा सृजन सारी उत्तर जीवन की कलात्मकता गर्भकाल में ही लेता है इसने क्या ग्रहण किया -भारत का विग्रह ,विघटन चर्च की शह पर अपनी उस माँ से जो हुश -हुश करके संसद में कांग्रेसियों को उकसा कर  सत्ता पक्ष पे छोड़ देती है गली के कुत्तों की तरह। 

 सन्दर्भ -सामिग्री :

(१)http://www.telegraph.co.uk/news/worldnews/asia/india/10474304/Mumbai-2611-five-years-on-city-still-feels-scars-of-devastating-ter

Mumbai 26/11: five years on, city still feels scars of devastating terrorist attack

26/11 attack on Mumbai has left its mark on the city – not only with armoured vehicles patrolling tourist hot spots – but also on the psyche of India's "city of dreams"


Mumbai, India's City of Dreams, has always walked a fine line between hope and despair. Time and again, the home of Bollywood has overcome tragedy, with recent deadly bomb blasts, flooding and riots giving rise to the adage "The Sprit of Mumbai".
This spirit – the resilience and very soul of India's commercial and entertainment capital – was tested like never before five years ago on Tuesday, when just 10 Pakistani terrorists turned the world's fourth largest city into a war zone, holding major landmarks such as the Taj Mahal Hotel under siege for three long days and nights and turning global counter-terrorism policy on its head.
The 166 individuals killed and hundreds injured will be marked in Mumbai on Tuesday and throughout the week at public and private memorial services – with heightened security across the city.
The physical damage of the attack, that began on the night of November 26, 2008, has long since been swept away. The bullet holes are plastered over – apart from where they have been kept as a tourist gimmick – and the five star hotels were quick to replace the shattered glass and throw open their doors again.

The lone surviving gunman, Ajmal Amir Kasab was hanged last November and, in the past year, bilateral relations between India and Pakistan have finally started to improve.
However, the attacks have left a lasting impact on the face of Mumbai.
Futuristic armoured vehicles mounted with machine guns now patrol the wealthy downtown heart of the city, with the iconic Gateway of India transformed from a bustling tourist hive to a controlled fortress.
Hotel security, with airport-like scanners, car bomb checks for every vehicle and armed guards, now resembles Islamabad or Kabul.
There are heavily-armed "Force One" units stationed across the city, ready to respond quickly to any attack or threat.
During the 26/11 attacks, several police officers tried to combat the AK47-wielding terrorists with their misfiring, wooden-framed, bolt-action Short Magazine Lee-Enfield rifles – some of which were issued when Queen Victoria was still Empress of India and had not been fired for decades. Others simply fled.
Police chiefs have since tried to rid the force of the caricature of overweight, lazy, corrupt policemen, dozing on their cane lathis (sticks).
The force – humiliated and castigated for their total inability to handle five separate teams of just two men – has finally been equipped with 21st century weapons and officers receive better pay and training.
As part of the police reform plan, Dhanushyakodi Sivanandan, the Mumbai police commissioner in the aftermath of the attacks, even announced that a training programme was under way for the wives of officers, to teach them how to cook "a proper diet for their husbands", to keep the force "fit and healthy". There are now organised police yoga sessions to "relieve stress" and regular medical check-ups.

Rakesh Maria, the head of the Anti Terrorist Squad for Maharashtra state who was in charge of police operations on the night of 26/11, recently told The Telegraph the force is now far better prepared to face any future attack, with a "new mindset to improve mental toughness".
"We have a dedicated group of units, who are trained for such situations … Now the response is much faster and more terrorist-oriented. The equipment has come in. The government did not spare any cost with the new top of the line equipment," he said.
Maharashtra's home minister, R.R. Patil, insisted this week that Mumbai was safe from any future such attacks. "The state and central government have jointly and individually initiated many measures to prevent and ward off such terror threats in the future, both from within and from the Arabian Sea route," he said.
ATS Chief Maria points out that "everyone has learnt a lesson at our expense," with the experience of 26/11 leading to a transformation in global counter-terrorism strategies.
There have been several recent reports of "Mumbai-style" cells operating in Europe and threatening the London Olympics. Last month, four men were arrested in London for plotting a "Mumbai-style" attack on the city. The New York City Police viewed 26/11 as "a major shift in traditional terrorist tactics".

With several parallels to 26/11, Islamist terrorists from the al-Qaeda-linked al-Shabaab group took an upmarket shopping mall in Nairobi under siege for three days in September, leaving 61 civilians dead.


This new type of terror tactic generally targets densely populated urban areas, often landmark sites such as hotels, where a siege situation can be established to create maximum media coverage – and casualties. Rather than a complicated bomb attack, a small group of men armed with machine guns are sent in by "handlers" in a third country with a battlefield mentality, targeting civilians. It is a tactic that is very difficult to defend against.
Police and security services across the world have reacted to the threat, as shown by the fact that plots are frequently being foiled.
However, in Mumbai, five years after the city's darkest hour, the psychological scars of 26/11 have not healed. There remains a feeling of insecurity, fear and an overriding sense that the city is vulnerable.
The "Spirit of Mumbai" still exists, but the old bravado has gone – replaced by extra precautions taken and a day-to-day acceptance that the next attack is around the corner. The police, armed forces and government are unable to guard against it and the city was the victim of yet another terrorist attack in July 2011, when a string of bomb blasts left 26 people dead.
Suresh Khopade, a retired superintendent, states that people's continued lack of faith in the police has led them increasingly to trust god with their protection.
Kamal Singh, a witness of the attack on the Nariman House Jewish centre on 26/11, said his community was even considering arming themselves because, if an attack happens again, "we have to learn to face it without the police".
Bhisham Mansukhani, a survivor of the Taj attack said: "It will take another attack to evaluate the security measures. I know a lot of people who have left the country because they felt vulnerable and if given a chance even I would want to move to some other country where I can live safely."
One of the prime witnesses in the Kasab trial that gripped India, Devika Rotawan, who was shot in the leg during the Chhatrapati Shivaji Terminal Station attack on 26/11 said: "I am fearless, but I know our government is not capable of preventing further terror attacks."
Sunita Shah, who was at CST on 26/11, summed up how people have come to terms with the fact that they will never have security: "Mumbai is attacked so often that one just becomes numb to it. Not much seems to have changed after 26/11 – just a few tanks here and there. The people certainly don't feel safer. We are just waiting for the next tragedy."

सोमवार, 27 नवंबर 2017

Vitamin D deficiency and lnsufficiency :A global public-health problem (Hindi l )

दुनिया भर में फिलवक्त कोई एक अरब लोग या तो इस "सनशाइन विटामिन "की कमी से या फिर अ -अपर्याप्त आपूर्ति से ग्रस्त हैं और समस्या ने तकरीबन एक आलमी (ग्लोबल )रुख ले लिया लगता है। 

इसी कमीबेशी के चलते यहां वहां कहीं बच्चों का सूखा रोग (रिकेट्स )तथा कहीं और ओस्टोमलासिया सिर उठाये हुए है। 

और बात सिर्फ इतनी ही नहीं है जब जिन्न  बोतल से बाहर आता है तो पूरा पैंडोरा बॉक्स ही खुल जाता है एक समस्या दूसरी को जन्म ही नहीं देती उसका पोषण भी करने लगती है इसी का नतीजा है के इस कमीबेशी के चलते मेटाबोलिक डिसऑर्डर्स (चयापचयन संबंधी शिकायतें )ही नहीं ,ऐसी बीमारियां भी उभर रहीं हैं जिन्हें आटोइम्यून डिज़ीज़ कहा जाता है और जिनमें अपना रोगप्रतिरोधी तंत्र अपने तन को ही विजातीय मान ने की भूल कर बैठता है। 

स्केलेटल डिज़ीज़ीज़ ,कैंसर रोग समूह ,हृदय एवं रक्तसंचरण सम्बन्धी कार्डिवस्कुलर रोग ,किस्म -किस्म के संक्रमण ,बोध -संबंधी (प्रज्ञानात्मक  दोष या कॉग्निटिव डिसऑर्डर्स ),मृत्यु-दर का बढ़ना  आदि भी मुखर हैं। 

उल्लेखित रोगों में ओस्टोमलासिआ मुख्य- तौर पर औरतों की ही समस्या बनती हैं कैल्सियम या फिर विटामिन -D की कमीबेशी इसकी वजह बनती है। इसमें अस्थियां मृदु होकर कमज़ोर भी पड़ने लगती हैं दुखन भी करने लगती हैं।

गत डेढ़ एक दशक में हमें जो जानकारी विटामिन -D के बारे में , 'शोध की खिड़की' से छनकर प्राप्त हुई है इससे लगातार इल्म हुआ है के हमारी सेहत की नव्ज़ इस विटामिन की कमीबेशी से जुड़ी  है। ये नव्ज़ ठीक से चलेगी या हरारत करेगी ये सवाल आज अहम है। इस विटामिन की कमी हो जाने पर सिर्फ चंद गोलियां या सैचिट्स के चलन से धूप  में निकलने मात्र से काम नहीं चलेगा और भी मायने हैं इसके प्रबंधन से जुड़े। 

विटामिन्स क्यों ?

आवश्यक माने गए है उपयुक्त मात्रा में ये पुष्टिकर तत्व जिन्हें या तो हमारा शरीर बना नहीं पाता ,ज़ज़्ब नहीं कर पाता ठीक से या फिर अ-पर्याप्त मात्रा ही हमारा शरीर क्रिया विज्ञान इन न्यूट्रिएंट्स की तैयार कर पाता है। इसका मतलब हुआ आपकी खुराक से भी इनकी जज़्बी हो पाए आप बाहर से सम्पूरक (सम्पूरण ,सप्लीमेंट्स )भी लें ,उपयुक्त खानपान के चलते। मसलन शाकाहारी खुराक में एक लोकप्रिय कॉम्बो पालक -पनीर बना हुआ है जबकि ये एक बहुत ही वाहियात कॉम्बो है ,पनीर पालक से प्राप्त लौह तत्व को बे -असर करता है इसकी जज़्बी शरीर के द्वारा इस रूप में बा -मुश्किल ही होती है वह भी थोड़ी बहुत ही।  बेहतरीन कॉम्बो है -आलू पनीर (जिसमें आलू स्किन समेत छिलका लिए हो ). 
वसा में घुलन शील इस विटामिन की कमी से कैसे अधिक से अधिक बचा जा सके इसकी चर्चा अगले अंक  में विस्तार से पढ़िए। 

विटामिन -A ,D ,E तथा K वसा में घुलनशील हैं फैट सॉल्युबल हैं। 

जैश्रीकृष्णा !

सन्दर्भ -सामिग्री :


Reference:

(1)https://www.medicinenet.com/vitamin_d_deficiency/article.htm

 cause symptoms?

(2)https://www.webmd.com/food-recipes/ss/slideshow-vitamin-d-overview

अंग्रेजी प्रेमियों के लिए मूल आलेख अंग्रेजी में दिया जा रहा है : 


The "sunshine" vitamin is a hot topic. You may have recently found out that you are deficient or know someone who is. It's shocking for most people when they have never had a problem before and believe nothing has changed to make it a problem now. The truth is that a lot has changed, and vitamin D deficiency and insufficiency is now a global public-health problem affecting an estimated 1 billion people worldwide.

The most well-known consequences to not having enough vitamin D are rickets in children and osteomalacia in adults. These are far from the only problems associated with a vitamin D deficiency. The consequences are numerous and include skeletal diseases, metabolic disorders, cancercardiovascular disease, autoimmune diseases, infections, cognitive disorders, and/or mortality. The majority of our knowledge about vitamin D has been discovered over the past 15 years, and with the growing issue of deficiencies, more health connections with vitamin D levels are being made. Correcting vitamin D deficiency is not as simple as taking a pill or getting more sun. This article will teach you all that you need to know about the benefits of achieving and maintaining optimal vitamin D levels.


Vitamins are considered essential nutrients because either your body cannot make them or they are made in an inadequate amount. This means you must provide them through your diet or by taking a supplement. They are essential for your health, and when you are lacking in them, there may be health consequences and diseases.
Vitamin D is one of the four fat-soluble vitamins (A, D, E, and K). There are two forms of vitamin D, D2 and D3. Vitamin D2, also known as ergocalciferol, comes from fortified foods, plant foods, and supplements. Vitamin D3, also known as cholecalciferol, comes from fortified foods, animal foods (fatty fish, cod liver oil, eggs, and liver), supplements, and can be made internally when your skin is exposed to ultraviolet (UV) radiation from the sun. Structurally, these two are not the same.

Symptoms of Vitamin D Deficiency


Does vitamin D deficiency cause symptoms?


Yes, deficiency of vitamin D can cause bone pain and muscle weakness. However, mild vitamin D deficiency is not necessarily associated with any symptoms. Vitamin D has been referred to as the "sunlight vitamin" because it is made in our skin when we are exposed to sunlight.


What are the vitamin D requirements?


There are currently two sets of guidelines for vitamin D intake. Typically, vitamin guidelines are established by the Institute of Medicine (IOM) in the form of recommended dietary allowances (RDA) or adequate intakes (AI). The RDA is the average daily intake sufficient to meet the nutrient requirements of nearly all (97%-98%) healthy individuals. The Endocrine Society put together a task force to review the research and come up with a set of guidelines for "people who are at risk for deficiency." The two recommendations are as follows:
1 to 18 years old19 to 70 years old71+ years old
IOM600 IU/day600 IU/day800 IU/day
Endocrine Society600-1,000 IU/day1,500-2,000 IU/day1,500-2,000 IU/day


What does vitamin D do for your health? What are symptoms and signs of vitamin D deficiency?



By the turn of the 20th century, 90% of the children living in New York, Boston, and Leyden in the Netherlands were afflicted with rickets, a bone-deforming disease. The first observation of this disease was in the mid-1600s by Whistler and Glissen, who reported that children living in industrialized cities in Great Britain had short statureand deformities of the skeleton, especially of the lower legs. It wasn't until 1889 that the discovery that "sunbathing" was important for preventing rickets came about.

Since then, many other health benefits of vitamin D have been discovered. These include the following:
Skeletal disease: Anyone taking calcium knows that you need to take it with vitamin D. It's needed because vitamin D promotes calcium absorption in the gut and maintains blood calcium levels to enable normal mineralization of bone and prevent abnormally low blood calcium levels that can then lead to tetany. Vitamin D insufficiency leads to secondary hyperparathyroidism (overly active parathyroid glands) that causes increased bone loss, osteopenia, osteomalacia, osteoporosis, and increased fracture risk.
Fall prevention is a public-health goal for the elderly. Each year, one in three people 65 years and older experiences at least one fall, with 5.6% resulting in a fracture, and vitamin D can play a role in preventing this. There are vitamin D receptors in human muscle that have a direct effect on muscle strength. A severe vitamin D deficiency can cause myopathy, which can cause muscle weakness and pain. Vitamin D supplementation can reverse this and improve balance. Supplementing 700-1,000 IU/day of vitamin D3 has been shown to possibly reduce falls by 19%-26%. Vitamin D3 at a dosage of greater than 800 IU/day given with calcium has been shown to reduce the risk of fractures by 10%-15%.

Another advantage to correcting a vitamin D deficiency has been seen in decreasing knee and hip pain. A longitudinal population-based cohort study of 769 randomly selected older adults aged 50-80 years found that moderate vitamin D deficiency predicts the incidence or worsening of knee pain over five years and possibly hip pain over 2.4 years.

Cancer: The link between the sun and cancer is typically not seen as a positive one because of the connection with skin cancer. UV-B radiation from the sun is said to be the most important environmental risk factor for nonmelanoma skin cancer. Because the sun is the primary source of vitamin D, researchers are looking to see what role it plays in skin cancer. Some believe that enough sun exposure to keep your vitamin D levels up while protecting your skin from damage is beneficial to skin cancer survival. There has also been research to show the protective effect that vitamin D has with the development of other cancers, including colon, breast, and prostate cancer.

In 1941, U.S. pathologist Frank Apperly published geographic data that demonstrated for the first time an inverse correlation between levels of UV radiation in North America and mortality rates from cancers. This means that more exposure to UV radiation (sun) leads to fewer deaths from cancers. Since this was published, it has been confirmed that there is an association between an increased risk of dying of various internal malignancies (for example, colon, breast, ovarian, melanoma, and prostate cancer) and living far from the equator. More research needs to be done to determine if there is a definite link between supplementing with vitamin D and the prevention of cancer.

What does vitamin D do for your health? What are symptoms and signs of vitamin D deficiency? (Continued)


Cardiovascular disease:

 Vitamin D deficiency is associated with an increased prevalence of hypertensionhyperlipidemiaperipheral vascular diseasecoronary artery diseasemyocardial infarctionheart failure, and stroke. The anti-inflammatory effects of vitamin D may be the reason for this. Research is being done to determine exactly how this works and why.

Infections: Do you tend to get more respiratory infections in the winter? Vitamin D deficiency could be the cause. Observational studies have shown an association between low vitamin D status and an increased risk of both upper and lower respiratory tract infections. The role of vitamin D in reducing the risk of hospital-acquired infections, such as pneumonia, bacteremias, urinary tract infections, and surgical site infections is also being investigated.

Depression: The association between lack of sunlight and depressive disorders was first noted 2,000 years ago. Vitamin D plays a role in regulating adrenaline, noradrenaline, and dopamine production in the brain through vitamin D receptors in the adrenal cortex, as well as protecting against the depletion of serotonin and dopamine. This is the possible link with vitamin D's role in depression. The research is new in this area, and only the associations have been shown so far. Vitamin D deficiency has been associated with an 8%-14% increase in depression. Research is also finding a relationship with low vitamin D levels and increased risk of suicide. In a study done on the Department of Defense Serum Repository personnel, researchers compared the vitamin D levels of 495 verified suicide cases versus 495 controls. They found the lowest 25(OH)D level are associated with an increased risk for suicide. Another study compared vitamin D levels in 59 suicide attempters, 17 nonsuicidal depressed patients, and 14 healthy controls. The suicide attempters had significantly lower vitamin D than depressed nonsuicidal patients and healthy controls. Research is ongoing in this area to determine if you can prevent and treat depression by correcting vitamin D deficiencies.



What does vitamin D do for your health? What are symptoms and signs of vitamin D deficiency? (Continued)




Multiple sclerosis:

 Evidence continues to accumulate supporting the role of vitamin D and the prevention and treatment of multiple sclerosis (MS). It begins with the vitamin D levels in pregnant women. Numerous studies have linked the occurrence of MS with birth month. There is a high prevalence of MS in high-latitude areas. The lack of sunlight exposure appears to be a significant predictor, and research is ongoing in this area.


Tuberculosis: Individuals with tuberculosis (TB) have been shown to have lower vitamin D levels than healthy people. Supplementation has shown to improve symptoms in these individuals. Further studies are needed to determine the cause and appropriate intervention.

Reducing the risk of type 2 diabetes: Research has shown that those with blood vitamin D levels over 25 ng/mL had a 43% reduced risk of developing type 2 diabetes compared with those with levels under 14 ng/mL.

Decreasing inflammation: Many of the health benefits associated with vitamin D may come from its role in decreasing inflammation. Research has shown a decrease in levels of C-reactive protein, a marker of inflammation, with increased levels of vitamin D to just below 21 ng/mL.

Reducing risk of allergies in children and adolescents: A nationwide study of over 6,000 individuals showed that allergic sensitization was more common in those with vitamin D levels under 15 ng/mL versus those with levels 30 ng/mL or more.

Sleep apnea: There is some evidence that vitamin D deficiency may increase the risk of obstructive sleep apnea brought on by inflammatory rhinitis and/or tonsillar hypertrophy. More research needs to be done to confirm this.


Decreasing dental cavities: A review of 24 controlled clinical trials encompassing 2,827 children found a 47% reduced risk of cavities with vitamin D supplementation.
Possibly helping with erectile dysfunction (ED): It is not clear if increasing your serum vitamin D levels can help with ED. Many men diagnosed with ED are diagnosed with cardiovascular disease (CVD) within a few years. Vitamin D deficiency is linked with CVD, so if you are deficient in vitamin D, some researchers believe that treating this could reduce your risk of ED.

Reference:

(1)https://www.medicinenet.com/vitamin_d_deficiency/article.htm

 cause symptoms?

(2)https://www.webmd.com/food-recipes/ss/slideshow-vitamin-d-overview

(3)

Vitamin D: Wonder Pill or Overkill?

Wouldn’t it be great if one vitamin could build stronger bones and protect against diabetes, multiple sclerosis, cancer, heart disease, and depression? Or even help you lose weight? Researchers have high hopes for vitamin D -- which comes from our skin's reaction to sunlight, a few foods, and supplements. Learn the facts in the slides ahead … and see who's at risk for a "D" deficiency.
Vitamin D is critical for strong bones, from infancy into old age. It helps the body absorb calcium from food. In older adults, a daily dose of "D" and calcium helps to prevent fractures and brittle bones. Children need "D” to build strong bones and prevent rickets, a cause of bowed legs, knock knees, and weak bones. Adding the vitamin to milk in the 1930s helped to nearly eliminate rickets.
Multiple sclerosis (MS) is more common far away from the sunny equator. For years, experts suspected a link between sunlight, vitamin D levels, and this autoimmune disorder that damages the nerves. One newer clue comes from a study of a rare gene defect that leads to low levels of vitamin D – and a higher risk of MS. Despite these links, there's not enough evidence to recommend vitamin D for the prevention or treatment of MS.
Some studies have shown a link between a low vitamin D level and type 1 and type 2 diabetes . So, can boosting your vitamin D levels help ward off the disease? There's not enough proof for doctors to recommend taking this supplement to prevent diabetes. Excess body fat may play a role in type 2 diabetes and low levels of vitamin D. 

Vitamin D and Weight Loss

Studies have shown that people who are obese often have low blood levels of vitamin D. Body fat traps vitamin D, making it less available to the body. It's not clear whether obesity itself causes a low vitamin D level or if it's the other way around. But one small study of dieters suggests that adding vitamin D to a calorie-restricted diet may help overweight people with low vitamin D levels lose weight more easily.

Overkill?

Wouldn’t it be great if one vitamin could build stronger bones and protect against diabetes, multiple sclerosis, cancer, heart disease, and depression? Or even help you lose weight? Researchers have high hopes for vitamin D -- which comes from our skin's reaction to sunlight, a few foods, and supplements. Learn the facts in the slides ahead … and see who's at risk for a "D" deficiency.
Normal Spongy Bone Matrix
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Vitamin D Boosts Bone Health

Vitamin D is critical for strong bones, from infancy into old age. It helps the body absorb calcium from food. In older adults, a daily dose of "D" and calcium helps to prevent fractures and brittle bones. Children need "D” to build strong bones and prevent rickets, a cause of bowed legs, knock knees, and weak bones. Adding the vitamin to milk in the 1930s helped to nearly eliminate rickets.

Shown here is the honeycombed structure inside a healthy bone.
woman with ms in wheelchair
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Vitamin D and Multiple Sclerosis

Multiple sclerosis (MS) is more common far away from the sunny equator. For years, experts suspected a link between sunlight, vitamin D levels, and this autoimmune disorder that damages the nerves. One newer clue comes from a study of a rare gene defect that leads to low levels of vitamin D – and a higher risk of MS. Despite these links, there's not enough evidence to recommend vitamin D for the prevention or treatment of MS.
woman checking glucose
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Vitamin D and Diabetes

Some studies have shown a link between a low vitamin D level and type 1 and type 2 diabetes . So, can boosting your vitamin D levels help ward off the disease? There's not enough proof for doctors to recommend taking this supplement to prevent diabetes. Excess body fat may play a role in type 2 diabetes and low levels of vitamin D. 
woman jumping rope
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Vitamin D and Weight Loss

Studies have shown that people who are obese often have low blood levels of vitamin D. Body fat traps vitamin D, making it less available to the body. It's not clear whether obesity itself causes a low vitamin D level or if it's the other way around. But one small study of dieters suggests that adding vitamin D to a calorie-restricted diet may help overweight people with low vitamin D levels lose weight more easily.
Depressed Woman Sitting on Bed
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Low "D" and Depression

Vitamin D plays a role in brain development and function, and low levels of vitamin D have been found in patients with depression. But studies don't show that Vitamin D supplementation will help reduce the symptoms of depression.  The best bet is to talk with your doctor about what might help reduce the symptoms of depression.