बुधवार, 30 नवंबर 2011

भोजन से केलोरी कम करते रहना मधुमेह से निजात भी दिलवा सकता है .

नित्य प्रति के भोजन में से रोजाना केलोरी कम करना मधु मेह रोग खासकर सेकेंडरी डायबितीज़ के रोगियों के लिए दवा से ज्यादा असरकारी सिद्ध हो सकता है बा शर्ते भोजन में से केलोरी कम करके खाने का सिलसिला कमसे कम चार माह तक ज़ारी रखा जाए .यह नतीजे नीदरलैंड्स की Leiden University के रिसर्चरों की एक टीम ने निकाले हैं अपने एक ताज़ा तरीन अध्ययन से .यानी जीवन भर का रोग मधुमेह जिसमे अग्नाशय पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता जो खून में से ग्लूकोज़ को तोड़ सके ठिकाने लगा सके चार माह तक रोजाना कम केलोरी वाला भोजन लेते रहने से ठीक भी हो सकता है .ज़ारी दवा दारु से ज्यादा मुफीद सिद्ध हो सकता है .
अध्ययन से पता चला वे तमाम मधुमेही जो अपनी रोजमर्रा की खुराक से रोजाना केलोरीज़ कम करते रहे उनका ब्लड सुगर कंट्रोल कुलमिलाकर दाय्बेतिक स्टेटस बेहतर रहा .इनकी सेहत में आमतौर पर भी अपेक्षाकृत ज्यादा सुधार देखा गया दी गई दवा दारु के बरक्स .
मजेदार बात यह रही चार माह के बाद उन्हें जीवन रक्षक इंसुलिन की ज़रुरत ही नहीं रह गई थी .इनकी हृद पेशी के गिर्द एकत्र फैट भी कम हो गया था .दिल का कामकाज भी पहले से बेहतर चलने लगा .इसका मतलब क्या यह है कि बहुत ही कम केलोरी वाला भोजन एक ऐसा कदम है इंटर -वेंशन है जो मधुमेह से मुक्ति भी दिलवा सकता है .जी हाँ सेकेंडरी डायबितीज़ से टाइप -२ डायबितीज़ से निजात भी दिलवा सकता है .इसके असर दूरगामी है .अपार क्षमता और संभावनाएं हैं इस साधारण से दिखने वाले इलाज़ की .
जीवन शैली में लाए गए ऐसे बदलाव दिल के लिए और भी ज्यादा मुफीद साबित हो सकतें हैं .खासकर सेकेंडरी डायबितीज़ के मामलों में .डेली एक्सप्रेस अखबार ने इस अध्ययन के मुखिया Sebastiaan Hammer का यह वक्तव्य सुखियों में प्रकाशित किया है .आकाशवाणी ने इसे प्रभात समाचार में स्थान दिया है .टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने इस पूरी खबर को प्रकाशित किया है .
सन्दर्भ -सामिग्री :Eating low -calorie diet for 4 months can cure diabetes/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,NOVEMBER 30,2011,P19.
NOVEMBER 30,2011.
अच्छा दिखने के लिए कुछ भी करेंगे नै चाल के बच्चे .
अच्छा दिखने के लिए कुछ भी करेंगे नै चाल के बच्चे .
(Gen X willing to try anything for 'perfect 10' figure)/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,MUMBAI,NOVEMBER29,2011,P17.
आजकल के बच्चे एक अप्राप्य देह यष्टि ( अन -अतेनेबिल बॉडी इमेज) और खामखयाली से भरपूर तौल को हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं .एक प्रकार का ओब्शेशन बरपा है इन पर अपने लुक्स को लेकर .यही सार तत्व है एक ताज़ा तरीन अध्ययन का .जिसमे ११-१६ साला ८१० किशोर किशोरियों पर नजर रखी गई है .सर्वे में शामिल तकरीबन ५०%लडकियां तथा एक तिहाई लड़कों में कथित आदर्श कदकाठी के अनुरूप तौल और नैन नक्श को लेकर एक उतावलापन एक दीवानगी ,उन्माद दिखलाई दिया है .जिसे हासिल करने के लिए ये कुछ भी तो करेंगे .डेली मेल ने इस खबर को प्रकाशित किया है .
हालत यह है कि सर्वे में शामिल हर दस लड़कों में से एक ज्यादा से ज्यादा मस्क्युँल्र (पेशीय दम ख़म वाले लुक्स )के लिए स्तीरोइड्स तक लेने को राज़ी हैं जबकी हरेक आठ में से एक लड़की डाईट पिल्स और विरेचक (laxatives)लेने को उद्विग्न है .
Central YMCA (यंग्स मेन क्रिस्चियन एसोशियेशन )की मुख्य कार्यकारीRosi Prescott (Chief executive) कहतीं हैं :ये मासूम कमसिन अपने होने दिखने लुक्स को लेकर बहुत ही अ सहज और अ -सुरक्षित महसूस करतें हैं .बॉडी इमेज को लेकर पशोपेश में हैं .भ्रमित हैं .इन्हें तुरता हल चाहिए इन समस्याओं के भले वे देर से चली आई उलझनों को न सुलझा पायें और हकीकत में घातक हों सेहत का सत्या नाश करने वाले तुरता समाधान हों ..यही वह उपकारी संस्था है जिसने इस सर्वे को कमीशन किया है .
हद तो यह है जो समस्या कल तक यंग गर्ल्स तक सीमित थी वह अब यंग बोइज /यंग मेन में जड़ ज़मा रही है .
इस ब्रितानी सर्वे में शामिल एक चौथाई लड़के लडकियां टी वी स्टार्स सा दिखने के लिए कोस्मेटिक सर्जरी तक करवाने को तत्पर हैं .५०%लडकियां तथा सर्वे में शरीक एक तिहाई लड़के अपनी छवि का मिलान छोटे परदे पर दिखने वाले करिश्माई पात्रों से कर रहें हैं .
सवाल है जो अ -प्राप्य है ,अ -वास्तविक है उसे वजूद में कैसे लाया जाए अपनाया जाए ?
RAM RAM BHAI!
स्तन कैंसर की बढ़वार को मुल्तवी रखती है टाइप -२ डायबितीज़ की दवा मेटफोर्मिन .
टाइप -२ डायबितीज़ के प्रबंधन में स्तेमाल होती है एक दवा मेत्फ़ोर्मिन(Metformin ).खासी सस्ती है यह दवा लेकिन अपने असर में समझा जाता है यह ब्रेस्ट कैंसर की बढ़वार को लगाम लगा देती है .समझा जाता है यह दवा जो सेकेंडरी डायबिटीज़ के मरीजों को दाय्बेतिक कंट्रोल के लिए दी जाती है कुछ मानव निर्मित तथा कुछ कुदरती रसायनों को बाधित करती है जो ब्रेस्ट कैंसर ( स्तन कैंसर) की बढ़वार को हवा देते हैं .डायबितीज़ से सम्बद्ध कुछ कैंसरों में आम हैं स्तन ,अग्नाशय तथा यकृत कैंसर (ब्रेस्ट ,पेंक्रियाज़ तथा लीवर कैंसर्स ).डायबिटीज़ के मरीज़ के लिए इन कैंसरों के खतरे का वजन बढ़ जाता है .
डायबितीज़ के प्रबंधन में प्रयुक्त यह दवा इन कैंसरों का जोखिम घटा देती है लेकिन यह सब होता कैसे है यह अभी अनुमेय ही है .
यही कहना है बाल रोगों के माहिर तथा Michigan;s college of Human Medicine में बतौर प्रोफ़ेसर कार्यरत Trosko का .
Michgan state university के जामेस त्रोसको के अलावा साउथ कोरिया की सिओल युनिवार्सिती की एक टीम भी इस रिसर्च से जुडी रही है .इस आशय की साक्ष्य जुटाए गए हैं कि मेत्फ़ोर्मिन दवा इन कैंसरों के खतरे को कम किये रहती है .
LINKS TO THIS POST :SECONDARY DIABETES ,METFORMIN ,CANCERS .
सन्दर्भ - सामिग्री : Low-cost daibetes drug can reduce cancer risk/SHORT CUTS /TIMES OF INDIA ,MUMBAI /NOVEMBER ,28 ,2011,P17
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
परिवास योग्य एक ग्रह पृथ्वी जैसा .
(Found :Planet that's just like Earth/Gliese May Contain Liquid Water And Even Life ,Say Scientists )/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,NOVEMBER 28,2011/P17.
साइंसदानों ने दावा किया है बिलकुल पृथ्वी जैसा एक ग्रह खोज निकालने का जहां सिर्फ पानी ही नहीं जीवन भी हो सकता है .समझा जाता है वायुमंडल से लैस हो सकता है यह ग्रह अपने पर्याप्त गुरुत्व की वजह से ,परिवास योग्य भी .
इस भौमेतर ग्रह (exoplanet )को Gliese 581g कहा जा रहा है .हमारे अपने ग्रह पृथ्वी से इसकी दूरी १२३ ट्रिलियन मील बतलाई जा रही है .एक हज़ार अरब को एक ट्रिलियन या दस खरब कहा जाता है .और एक मील में होतें हैं १.६ किलोमीटर .यह अपने पेरेंट स्टार की परिक्रमा ठीक उतनी दूरी से कर रहा है जो इसके परिवास योग्य होने के लिए कॉफ़ी है .इसे Goldilocks zone कहा जाता है .पृथ्वी अपने पेरेंट स्टार सूरज से ठीक ठीक दूरी पर है और पर्याप्त गुरुत्व लिए है जो वायुमंडल को रोके रखे रहने के लिए कॉफ़ी है .यही परिवास योग्य क्षेत्र कहलाता है .जहां जीवन की संभावना बनी रहती है .
खगोली पिंडों के उद्भव विकास और भौतिक गुणों से सम्बद्ध एक विज्ञान पत्रिका astrophysical journal में यह नवीनतर शोध कार्य प्रकाशित हुआ है .प्रकाशित रिसर्च के अनुसार इस चर्चित ग्रह की सतह पर तरल रूप में द्रव रूप में पानी हो सकता है .यही संभावना इसे पृथ्वी की मानिंद परिवास योग्य ग्रहों और चन्द्रों के समक्षऔर समकक्ष ला खडा करती है .
इस शोध के अगुवा हैं केलिफोर्निया विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान और तारा -भौतिकी (Astrophysics) के आचार्य (Professor) Steven Vogt.
यह अनुसंधान ११ बरसों की तपस्या का नतीजा है .इस दरमियान लगातार निकटस्थ रेड ड्वार्फ स्टार Gliese 581 के प्रेक्षण लिए गए हैं .इस लाल बौने सितारे के गिर्द एक नहीं दो -दो ग्रहों को प्रेक्षण में लिया गया है .अब तक इसके गिर्द कुल मिलाकर छ :ग्रहों का पता चल चुका है .
हमारे सौर मंडल के बाहर यह छ :ग्रह अब तक की सबसे बड़ी ज्ञात संख्या में किसी सौर परिवार के सदस्य हैं . इन सबकी कक्षाएं करीब करीब वृताकार हैं .पृथ्वी की ही तरह सर्क्युँल्र ओर्बिट्स लिए हैं ये तमाम ग्रह .
इस ग्रह का द्रव्यमान पृथ्वी से तीन से चार गुना ज्यादा है .यह ३७ दिन में अपने पेरेंट स्टार की एक परिक्रमा कर लेता है यानी इस ग्रह पर एक वर्ष की अवधि ३७ दिन की बराबर है .इसके द्रव्यमान से भासित होता है यह चट्टानी प्रकृति का है ,सुनिश्चित आकार लिए है तथा प्रयाप्त गुरुत्व लिए है एक आवास योग्य वायुमंडल को थामे रखने के लिए .

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

अच्छा दिखने के लिए कुछ भी करेंगे नै चाल के बच्चे .

अच्छा दिखने के लिए कुछ भी करेंगे नै चाल के बच्चे .
(Gen X willing to try anything for 'perfect 10' figure)/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,MUMBAI,NOVEMBER29,2011,P17.
आजकल के बच्चे एक अप्राप्य देह यष्टि ( अन -अतेनेबिल बॉडी इमेज) और खामखयाली से भरपूर तौल को हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं .एक प्रकार का ओब्शेशन बरपा है इन पर अपने लुक्स को लेकर .यही सार तत्व है एक ताज़ा तरीन अध्ययन का .जिसमे ११-१६ साला ८१० किशोर किशोरियों पर नजर रखी गई है .सर्वे में शामिल तकरीबन ५०%लडकियां तथा एक तिहाई लड़कों में कथित आदर्श कदकाठी के अनुरूप तौल और नैन नक्श को लेकर एक उतावलापन एक दीवानगी ,उन्माद दिखलाई दिया है .जिसे हासिल करने के लिए ये कुछ भी तो करेंगे .डेली मेल ने इस खबर को प्रकाशित किया है .
हालत यह है कि सर्वे में शामिल हर दस लड़कों में से एक ज्यादा से ज्यादा मस्क्युँल्र (पेशीय दम ख़म वाले लुक्स )के लिए स्तीरोइड्स तक लेने को राज़ी हैं जबकी हरेक आठ में से एक लड़की डाईट पिल्स और विरेचक (laxatives)लेने को उद्विग्न है .
Central YMCA (यंग्स मेन क्रिस्चियन एसोशियेशन )की मुख्य कार्यकारीRosi Prescott (Chief executive) कहतीं हैं :ये मासूम कमसिन अपने होने दिखने लुक्स को लेकर बहुत ही अ सहज और अ -सुरक्षित महसूस करतें हैं .बॉडी इमेज को लेकर पशोपेश में हैं .भ्रमित हैं .इन्हें तुरता हल चाहिए इन समस्याओं के भले वे देर से चली आई उलझनों को न सुलझा पायें और हकीकत में घातक हों सेहत का सत्या नाश करने वाले तुरता समाधान हों ..यही वह उपकारी संस्था है जिसने इस सर्वे को कमीशन किया है .
हद तो यह है जो समस्या कल तक यंग गर्ल्स तक सीमित थी वह अब यंग बोइज /यंग मेन में जड़ ज़मा रही है .
इस ब्रितानी सर्वे में शामिल एक चौथाई लड़के लडकियां टी वी स्टार्स सा दिखने के लिए कोस्मेटिक सर्जरी तक करवाने को तत्पर हैं .५०%लडकियां तथा सर्वे में शरीक एक तिहाई लड़के अपनी छवि का मिलान छोटे परदे पर दिखने वाले करिश्माई पात्रों से कर रहें हैं .
सवाल है जो अ -प्राप्य है ,अ -वास्तविक है उसे वजूद में कैसे लाया जाए अपनाया जाए ?

सोमवार, 28 नवंबर 2011

स्तन कैंसर की बढ़वार को मुल्तवी रखती है टाइप -२ डायबितीज़ की दवा मेटफोर्मिन .

टाइप -२ डायबितीज़ के प्रबंधन में स्तेमाल होती है एक दवा मेत्फ़ोर्मिन(Metformin ).खासी सस्ती है यह दवा लेकिन अपने असर में समझा जाता है यह ब्रेस्ट कैंसर की बढ़वार को लगाम लगा देती है .समझा जाता है यह दवा जो सेकेंडरी डायबिटीज़ के मरीजों को दाय्बेतिक कंट्रोल के लिए दी जाती है कुछ मानव निर्मित तथा कुछ कुदरती रसायनों को बाधित करती है जो ब्रेस्ट कैंसर ( स्तन कैंसर) की बढ़वार को हवा देते हैं .डायबितीज़ से सम्बद्ध कुछ कैंसरों में आम हैं स्तन ,अग्नाशय तथा यकृत कैंसर (ब्रेस्ट ,पेंक्रियाज़ तथा लीवर कैंसर्स ).डायबिटीज़ के मरीज़ के लिए इन कैंसरों के खतरे का वजन बढ़ जाता है .
डायबितीज़ के प्रबंधन में प्रयुक्त यह दवा इन कैंसरों का जोखिम घटा देती है लेकिन यह सब होता कैसे है यह अभी अनुमेय ही है .
यही कहना है बाल रोगों के माहिर तथा Michigan;s college of Human Medicine में बतौर प्रोफ़ेसर कार्यरत Trosko का .
Michgan state university के जामेस त्रोसको के अलावा साउथ कोरिया की सिओल युनिवार्सिती की एक टीम भी इस रिसर्च से जुडी रही है .इस आशय की साक्ष्य जुटाए गए हैं कि मेत्फ़ोर्मिन दवा इन कैंसरों के खतरे को कम किये रहती है .
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सन्दर्भ - सामिग्री : Low-cost daibetes drug can reduce cancer risk/SHORT CUTS /TIMES OF INDIA ,MUMBAI /NOVEMBER ,28 ,2011,P17
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
परिवास योग्य एक ग्रह पृथ्वी जैसा .
(Found :Planet that's just like Earth/Gliese May Contain Liquid Water And Even Life ,Say Scientists )/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,NOVEMBER 28,2011/P17.
साइंसदानों ने दावा किया है बिलकुल पृथ्वी जैसा एक ग्रह खोज निकालने का जहां सिर्फ पानी ही नहीं जीवन भी हो सकता है .समझा जाता है वायुमंडल से लैस हो सकता है यह ग्रह अपने पर्याप्त गुरुत्व की वजह से ,परिवास योग्य भी .
इस भौमेतर ग्रह (exoplanet )को Gliese 581g कहा जा रहा है .हमारे अपने ग्रह पृथ्वी से इसकी दूरी १२३ ट्रिलियन मील बतलाई जा रही है .एक हज़ार अरब को एक ट्रिलियन या दस खरब कहा जाता है .और एक मील में होतें हैं १.६ किलोमीटर .यह अपने पेरेंट स्टार की परिक्रमा ठीक उतनी दूरी से कर रहा है जो इसके परिवास योग्य होने के लिए कॉफ़ी है .इसे Goldilocks zone कहा जाता है .पृथ्वी अपने पेरेंट स्टार सूरज से ठीक ठीक दूरी पर है और पर्याप्त गुरुत्व लिए है जो वायुमंडल को रोके रखे रहने के लिए कॉफ़ी है .यही परिवास योग्य क्षेत्र कहलाता है .जहां जीवन की संभावना बनी रहती है .
खगोली पिंडों के उद्भव विकास और भौतिक गुणों से सम्बद्ध एक विज्ञान पत्रिका astrophysical journal में यह नवीनतर शोध कार्य प्रकाशित हुआ है .प्रकाशित रिसर्च के अनुसार इस चर्चित ग्रह की सतह पर तरल रूप में द्रव रूप में पानी हो सकता है .यही संभावना इसे पृथ्वी की मानिंद परिवास योग्य ग्रहों और चन्द्रों के समक्षऔर समकक्ष ला खडा करती है .
इस शोध के अगुवा हैं केलिफोर्निया विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान और तारा -भौतिकी (Astrophysics) के आचार्य (Professor) Steven Vogt.
यह अनुसंधान ११ बरसों की तपस्या का नतीजा है .इस दरमियान लगातार निकटस्थ रेड ड्वार्फ स्टार Gliese 581 के प्रेक्षण लिए गए हैं .इस लाल बौने सितारे के गिर्द एक नहीं दो -दो ग्रहों को प्रेक्षण में लिया गया है .अब तक इसके गिर्द कुल मिलाकर छ :ग्रहों का पता चल चुका है .
हमारे सौर मंडल के बाहर यह छ :ग्रह अब तक की सबसे बड़ी ज्ञात संख्या में किसी सौर परिवार के सदस्य हैं . इन सबकी कक्षाएं करीब करीब वृताकार हैं .पृथ्वी की ही तरह सर्क्युँल्र ओर्बिट्स लिए हैं ये तमाम ग्रह .
इस ग्रह का द्रव्यमान पृथ्वी से तीन से चार गुना ज्यादा है .यह ३७ दिन में अपने पेरेंट स्टार की एक परिक्रमा कर लेता है यानी इस ग्रह पर एक वर्ष की अवधि ३७ दिन की बराबर है .इसके द्रव्यमान से भासित होता है यह चट्टानी प्रकृति का है ,सुनिश्चित आकार लिए है तथा प्रयाप्त गुरुत्व लिए है एक आवास योग्य वायुमंडल को थामे रखने के लिए .

रविवार, 27 नवंबर 2011

मुक्तावली सम्बन्धी समस्याओं(Dental problems) के लिए कुसूरवार है आजकल की खुराक .

मुक्तावली सम्बन्धी समस्याओं(Dental problems) के लिए कुसूरवार है आजकल की खुराक .
आजकल की दन्तावली से जुडी समस्याओं के लिए दांतों के माहिरों ने आधुनिक खुराक को कुसूरवार ठाह्राया है .रिसर्चरों के अनुसार आजकल की सोफ्ट खुराक जबड़ों को दांतों के बरक्स लघुतर बनाती जा रही है .जिसका मतलब है मुंह में भीड़ बढ़ रही है .अखबार डेली टेलीग्राफ ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया है .
इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए रिसर्चरों ने भूमंडलीय स्तर पर ११ अलग अलग पोप्युलेशन के स्कल्स का हवाला जुटाया है .पता चला है जो लोग शिकार करके खाते हैं हंटर गेदरार जीवन शैली अपनाए रहें हैं उनके जबड़े अपेक्षाकृत लम्बे और संकरे पनपे (Narrower)पनपे हैं .
सन्दर्भ सामिग्री :शोर्ट कट्स (SHORT CUTS/'Modern diet the culprit behind dental problems'/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,NEW-DELHI ED.P21)./NOv23,2011.
राम राम भाई !राम राम भाई !
अब एच आई वी पोजिटिव लोग भी संतान (एच आई वी निगेटिव संतान )पैदा कर सकतें हैं .
(NOW HIV+ men can have children:TOI,NOv23,2011 .SHORT CUTS).
ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चरों ने दावा किया है उन्होंने कृत्रिम गर्भाधान कराने (Artificial insemination ) का एक ऐसा तरीका ईजाद कर लिया जिसे अपना कर एच आई वी पोजिटिव लोग भी अपनी संतानों और साथिन को संक्रमित किये बिना संतान प्राप्त कर सकेंगे ,बाप बन सकेगे .
दरअसल विक्टोरिया स्थित रोयल वूमेंज़ अस्पताल के चिकित्सकों ने एक ऐसा प्रोग्रेम तैयार किया है जिससे निषेचन (इनसेमिनेशन )के पूर्व ही स्पर्म से एच आई वी (विषाणु )को अलग किया जा सकेगा .इस प्रकार माँ और संतान दोनों को ही एच आई वी संक्रमण से बचाया जा सकेगा .
राम राम भाई !राम राम भाई !
प्रोधावस्था में मुटियाना(Middle age fat ) अल्ज़ाइमर्स के खतरे के वजन को बढा सकता है .
मिडिल एज फेट आगे चलकर बुढापे के आम डिमेंशिया अल्ज़ाइमर्स की संभावना को बढा सकती है जबकी बुढापे में ओवरवेट हो जाना इसकी संभावना को कमतर करता है एक नवीन अध्ययन से यही संकेत मिले हैं .
राम राम भाई !राम राम भाई !
बौअल कैंसर को टोह कर उसका सफाया करने वाली दवा .
रिसर्चरों ने एक ऐसी दवा ईजाद कर लेने का दावा किया है जो बौअल कैंसर को टोह कर उसका सफाया कर सकती है इसे २-in -1 bowel cancer drug कहा जा रहा है .समझा जाता है दवा के कोई पार्श्व प्रभाव भी सामने नहीं आयें हैं .
साइंसदानों की एक आलमी टीम के अनुसार दवा को ट्यूमर का पता लगाने में सिर्फ पांच मिनिट लगतें हैं .उसके बाद देखते ही देखते बस ट्यूमर का सफाया हो जाता है .नैदानिक परीक्षणों (क्लिनिकल ट्रायल्स )में इसकी पुष्टि हुई है
ram ram bhai

रविवार, २७ नवम्बर २०११
अच्छी नींद छुटकारा दिलवाती है दुखद यादों के दंश से .
केलिफोर्निया और बर्कले विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने पता लगाया है गहरी नींद से पैदा स्वप्न अवस्था (रैम अवस्था ,Rapid eye movement sleep )हमारे संवेगों ,मनो -आवेगों ,का संशाधन करके हमें दुखद यादों के दंश से मुक्ति दिलवा सकती है .ओवर -नाईट थिरेपी का काम करती है .वो कहतें हैं न वक्त सारे जख्म भर देता है अच्छी गुणवत्ता वाली नींद में गुजरा वक्त जादुई स्पर्श सा जख्मों को भरने वाला सिद्ध होता है .यादों को खंगालती है गहरी रैम अवस्था स्लीप उन्हें सही संदर्श और सन्दर्भ मुहैया करवाती है .कुछ ऐसे पुनर -समायोजित करती है री -एक्टिवेट करती है अच्छी नींद यादों को कि न्यूरो -केमिस्ट्री नींद की दुखद यादों का शमन करती ,स्ट्रेस न्यूरो -रसायनों का शमन करती दुखद यादोंअनुभवों के दंश से राहत दिलवाती है . माहिरों की यही राय है .
अध्ययन में शामिल 30 सेहतमंद युवाओं को रिसर्चरों ने दो वर्गों में विभक्त करने के बाद एक समूह के तमाम युवाओं को सुबह और शाम दो मर्तबा 150 संवेगात्मक छवियाँ दिखलाई .इस अंतराल में ये प्रतिभागी सचेतन जागृत अवस्था में ही रहे .छवियों को दिखलाने के बाद इनके दिमाग की सक्रीयता दर्ज़ करने के लिए MRI उतारे गए .
जबकि दूसरे वर्ग के तमाम लोगों को सिर्फ शाम को बाद उसके रात की नींद लेने के बाद अगली सुबह यही संवेगात्मक चित्र दिखलाए गए .फिर इनका चुम्बकीय अनुनाद चित्रांकन किया गया .
दूसरे समूह के तमाम युवाओं में कमतर साम्वेगात्मक प्रतिक्रियाएं दर्ज़ हुईं .
नींद का जादुई असर दिमाग के एक हिस्से Amygdala पर पड़ा .इस हिस्से की Reactivity बेहद कमतर हो गई . यही वह दिमागी हिस्सा है जो राग विराग संवेगों हमारे ज़ज्बातों सारी रागात्मकता Emotions का संशाधन ,processing करता है .
This allowed the brain's "rational"prefrontal cortex to regain control of the participants emotional reactions ,the researchers said .
ram ram bhai !ram ram bhai !
27 NOVEMBER,2011,4C,ANURADHA,NOFRA,COLABA,MUMBAI-400-005
न्यूरोन प्रत्यारोप से एक दिमागी विकार दुरुस्त हुआ .
(Researchers rebuild the brain 's circuitry /Mumbai mirror ,November 26,2011/P23,Brain stem cell transplant :Way to beat Parkinson's ?/THE TIMES OF INDIA ,NOVEMBER26,2011,MUMBAI,ED.P!9.)
एक दिमागी विकार होता है जिसमे दिमाग का आधारीय हिस्सा हाइपोथेलेमस एक हारमोन लेप्टिन के प्रति अनुक्रिया करना बंद कर देता है नतीज़न चय अपचयन की प्रक्रिया बेकार हो जाती है ,प्राणि मात्र को ऐसे में यह इल्म ही नहीं होता कि खाना कब बंद करना है भले पेट भर गया हो .नतीजा होता ओवरवेट होते चले जाना . यही वह हारमोन है जो Metabolism को Regulate करता है चयअपचयन का विनियमन करता है .दिमाग को तृप्ति और पेट भर जाने का एहसास कराता है .

लेकिन चूहों की उत्परिवर्तित किस्म (कुछ लेबोरेट्री रोदेंट्स )में इस प्रक्रिया के बाधित होने से इनमे Morbid obesity पैदा हो जाती है .न्यूरोन प्रत्यारोप से इस विकार को ही दुरुस्त किया गया है .अपने प्रयोगों में साइंसदानों ने विकार ग्रस्त दिमागी परिपथ को दुरुस्त करके चूहों के हाइपोथेलेमस को लेप्टिन का स्तेमाल करने योग्य बना दिया .इस एवज विकास की एक समुचित अवस्था में भ्रूण से सामान्यप्रकार्य करने वाले न्यूरोन लेकर रुग्न (बीमार ) म्युटेंट माइस के हाइपोथेलेमस में प्रत्यारोप लगाया गया . i
एक प्रकार से यह कोशिका स्तर पर हाइपोथेलेमस की दुरुस्ती का उदाहरण है .बेहतरीन मिसाल है .पहली मर्तबा किया गया करिश्मा है .दिमाग का बड़ा ही पेचीला इलाका है हाइपोथेलेमस जो हमारी भूख ,शरीर के तापमान ,यौन वृत्ति रूचि अरुचि ,आक्रामकता का निर्धारण और विनियमन करता है .चयअपचयन का विनियमन करता है .
उम्मीद की जाती है यही तरकीब न्यूरोन प्रत्यारोप एक दिन रीढ़ रज्जू की चोट ,spinal cord injury ,Autism ,Epilepsy ,Parkinson's और Hatington's disease का समाधान प्रस्तुत करेगी गौर तलब है आज की तारीख में आत्म विमोह (ऑटिज्म ),पार्किन्संज़ और हटिंगटन सिंड्रोम ला इलाज़ ही बने हुए हैं ..
एक अवधारणा की पुष्टि हुई है इस रिसर्च से वह यह कि नए न्यूरोन (दिमागी कोशिका )विकार ग्रस्त और पेचीला दिमागी सर्किटों (परिपथों )में समायोजित करके ऐसे सर्किटों को दुरुत किया जा सकता है .यह एक बड़ी बात है .

अच्छी नींद छुटकारा दिलवाती है दुखद यादों के दंश से .

केलिफोर्निया और बर्कले विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने पता लगाया है गहरी नींद से पैदा स्वप्न अवस्था (रैम अवस्था ,Rapid eye movement sleep )हमारे संवेगों ,मनो -आवेगों ,का संशाधन करके हमें दुखद यादों के दंश से मुक्ति दिलवा सकती है .ओवर -नाईट थिरेपी का काम करती है .वो कहतें हैं न वक्त सारे जख्म भर देता है अच्छी गुणवत्ता वाली नींद में गुजरा वक्त जादुई स्पर्श सा जख्मों को भरने वाला सिद्ध होता है .यादों को खंगालती है गहरी रैम अवस्था स्लीप उन्हें सही संदर्श और सन्दर्भ मुहैया करवाती है .कुछ ऐसे पुनर -समायोजित करती है री -एक्टिवेट करती है अच्छी नींद यादों को कि न्यूरो -केमिस्ट्री नींद की दुखद यादों का शमन करती ,स्ट्रेस न्यूरो -रसायनों का शमन करती दुखद यादोंअनुभवों के दंश से राहत दिलवाती है . माहिरों की यही राय है .
अध्ययन में शामिल 30 सेहतमंद युवाओं को रिसर्चरों ने दो वर्गों में विभक्त करने के बाद एक समूह के तमाम युवाओं को सुबह और शाम दो मर्तबा 150 संवेगात्मक छवियाँ दिखलाई .इस अंतराल में ये प्रतिभागी सचेतन जागृत अवस्था में ही रहे .छवियों को दिखलाने के बाद इनके दिमाग की सक्रीयता दर्ज़ करने के लिए MRI उतारे गए .
जबकि दूसरे वर्ग के तमाम लोगों को सिर्फ शाम को बाद उसके रात की नींद लेने के बाद अगली सुबह यही संवेगात्मक चित्र दिखलाए गए .फिर इनका चुम्बकीय अनुनाद चित्रांकन किया गया .
दूसरे समूह के तमाम युवाओं में कमतर साम्वेगात्मक प्रतिक्रियाएं दर्ज़ हुईं .
नींद का जादुई असर दिमाग के एक हिस्से Amygdala पर पड़ा .इस हिस्से की Reactivity बेहद कमतर हो गई . यही वह दिमागी हिस्सा है जो राग विराग संवेगों हमारे ज़ज्बातों सारी रागात्मकता Emotions का संशाधन ,processing करता है .
This allowed the brain's "rational"prefrontal cortex to regain control of the participants emotional reactions ,the researchers said .
ram ram bhai !ram ram bhai !
27 NOVEMBER,2011,4C,ANURADHA,NOFRA,COLABA,MUMBAI-400-005
न्यूरोन प्रत्यारोप से एक दिमागी विकार दुरुस्त हुआ .
(Researchers rebuild the brain 's circuitry /Mumbai mirror ,November 26,2011/P23,Brain stem cell transplant :Way to beat Parkinson's ?/THE TIMES OF INDIA ,NOVEMBER26,2011,MUMBAI,ED.P!9.)
एक दिमागी विकार होता है जिसमे दिमाग का आधारीय हिस्सा हाइपोथेलेमस एक हारमोन लेप्टिन के प्रति अनुक्रिया करना बंद कर देता है नतीज़न चय अपचयन की प्रक्रिया बेकार हो जाती है ,प्राणि मात्र को ऐसे में यह इल्म ही नहीं होता कि खाना कब बंद करना है भले पेट भर गया हो .नतीजा होता ओवरवेट होते चले जाना . यही वह हारमोन है जो Metabolism को Regulate करता है चयअपचयन का विनियमन करता है .दिमाग को तृप्ति और पेट भर जाने का एहसास कराता है .

लेकिन चूहों की उत्परिवर्तित किस्म (कुछ लेबोरेट्री रोदेंट्स )में इस प्रक्रिया के बाधित होने से इनमे Morbid obesity पैदा हो जाती है .न्यूरोन प्रत्यारोप से इस विकार को ही दुरुस्त किया गया है .अपने प्रयोगों में साइंसदानों ने विकार ग्रस्त दिमागी परिपथ को दुरुस्त करके चूहों के हाइपोथेलेमस को लेप्टिन का स्तेमाल करने योग्य बना दिया .इस एवज विकास की एक समुचित अवस्था में भ्रूण से सामान्यप्रकार्य करने वाले न्यूरोन लेकर रुग्न (बीमार ) म्युटेंट माइस के हाइपोथेलेमस में प्रत्यारोप लगाया गया . i
एक प्रकार से यह कोशिका स्तर पर हाइपोथेलेमस की दुरुस्ती का उदाहरण है .बेहतरीन मिसाल है .पहली मर्तबा किया गया करिश्मा है .दिमाग का बड़ा ही पेचीला इलाका है हाइपोथेलेमस जो हमारी भूख ,शरीर के तापमान ,यौन वृत्ति रूचि अरुचि ,आक्रामकता का निर्धारण और विनियमन करता है .चयअपचयन का विनियमन करता है .
उम्मीद की जाती है यही तरकीब न्यूरोन प्रत्यारोप एक दिन रीढ़ रज्जू की चोट ,spinal cord injury ,Autism ,Epilepsy ,Parkinson's और Hatington's disease का समाधान प्रस्तुत करेगी गौर तलब है आज की तारीख में आत्म विमोह (ऑटिज्म ),पार्किन्संज़ और हटिंगटन सिंड्रोम ला इलाज़ ही बने हुए हैं ..
एक अवधारणा की पुष्टि हुई है इस रिसर्च से वह यह कि नए न्यूरोन (दिमागी कोशिका )विकार ग्रस्त और पेचीला दिमागी सर्किटों (परिपथों )में समायोजित करके ऐसे सर्किटों को दुरुत किया जा सकता है .यह एक बड़ी बात है .

शनिवार, 26 नवंबर 2011

वीजिंग (घरघर करते हुए सांस लेने को )को कम करती है फिश डाईट .

वीजिंग (घरघर करते हुए सांस लेने को )को कम करती है फिश डाईट .
'Fish diet halves wheezing in kids ':(TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI,NOVEMBER25,2011,P17).
एक नए अध्ययन केअनुसार जिन शिशुओं को उम्र के नौवें महीने से पहले ही मच्छी खाने को मिल जाती है उनके लिए वीजिंग की संभावना (घट कर )५०%कम रह जाती है .स्वीडन के गोठेन्बुर्ग (University of Gothenburg)के रिसर्चरों ने अपने एक अध्ययन में पता लगाया है कि जिन नौनिहालों को नौ माही (नौ महीने की उम्र होने से पहले पहले )मच्छी खुराक में दी गई आगे चलके उनके घरघर करके साइंस लेने (Wheezing, सांस लेने में घरघराहट )के मौके घटके आधे ही रह गए .
राम राम भाई !राम राम भाई !राम राम भाई !
दिमाग को विद्युत् स्पंदन देकर उत्तेजित करना अल्ज़ाइमर्स के खिलाफ संघर्ष में एक असरदार अश्त्र बन सकता है .
दिमाग को रुक रुक करके आकस्मिक और अल्पकाली विद्युत् स्पंदन के ज़रिए ऊर्जित करने एनर्जी देते रहने से अल्ज़ाइमर्स से पैदा दिमाग की सिकुडन (ब्रेन श्रीन्केज ) को लगाम लगती है .
दिमाग का यही वह हिस्सा है जिसके सिकुड़ते चले जाने से याददाश्त कम होती चली जाती है .
ओंटारियो राज्य(कनाडा ) के टोरोंटो वेस्ट्रन अस्पताल के रिसर्चरों ने एक स्माल स्केल स्टडी में पता लगाया है कि ऐसा नियमित करते रहने से दिमाग के ठीक उसी हिस्से का सिकुड़ना कम होता है जिसका सम्बन्ध इस बीमारी से जोड़ा जाता रहा है .
माहिरों के अनुसार डिमेंशिया की एक किस्म एल्ज़ाइमर्स में दिमाग का आधारीय हिस्सा खासकर हिप्पाकैम्पस सिकुड़ता है .न्यू साइंटिस्ट पत्रिका को इस अध्ययन के अगुवा रहे ज़नाब अन्द्रेस लोजानो ने यही बतलाया है .अध्ययन में उतारे गए ब्रेन स्केन्स से मुखर हुआ है प्रगट हुआ है साफ़ हुआ है ठीक ठीक खुलासा हुआ है कि दिमाग का temporal lobe (दिमाग का एक हिस्सा जिसे कनपटी का शंख भी कहतें हैं)तथा दिमाग का एक और भी हिस्सा जिसे Posterior Cingulate कहतें हैं सुगर की खपत सामान्य खपत से कमतर करने लगतें हैं .इन सभी लोगों को अल्ज़ाइमर्स था तथा इनके दिमाग कोregular fleeting pulses of electricity dekar उत्तेजन प्रदान किया गया था बाद उसके इनके स्केन उतारे गए थे .सुगर की खपत का कम होना मतलब दिमाग के इन हिस्सों का स्लो होना .सिकुड़ने के बाद ही ऐसा होता है . यह तथ्य सर्विदित है .
ram ram bhai !ram ram bhai !
NOVEMBER 26,2011
4C,ANURADHA,COLABA,MUMBAI-400-005
ram ram bhai!


स्लीप वाकिग नहीं स्लीप टेक्स्टिंग शुक्रिया स्मार्ट फून्वा .
स्लीप वाकिग नहीं स्लीप टेक्स्टिंग शुक्रिया स्मार्ट फून्वा .
(New sign of too much stress :Sleep -texting/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI,NOV 25 ,2011 /p17)
रिसर्चरों के अनुसार आधुनिक जीवन की ,रोजमर्रा की रहनी सहनी में तनाव इस कदर बरपा है कि लोग सोते सोते भी टेक्स्ट मेसेजिंग कर रहें हैं भलेही इन संदेशों में कोई तारतम्य सामंजस्य संगतता न हो इन -कहिरेंस ही हो .स्लीप टेक्स्तार्स की संख्या लगातार बढ़ रही है .
मजेदार बात यह है जो लोग इस आधुनिक अफ्लिक्शन,से इस अधुनातन बीमारी से ग्रस्त हैं उन्हें इस बात का इल्म भी नहीं है कि वह गहन निद्रा में भी असंगत सन्देश अपने चहेतों को नाती सम्बन्धियों को भेज रहें हैं उन्हें जो दिन रात उनके जेहन में हैं .कुछ कुछ इस तरह -
"शीशा -ए -दिल में छिपी तस्वीरे यार ,जब जरा गर्दन झुकाई देख ली "और इन लोगों का खुद हाल यह है -
"कुछ लोग इस तरह जिंदगानी के सफ़र में हैं ,दिन रात चल रहें हैं ,मगर घर के घर में हैं "-
रिसर्चर फ्रांक थोर्ने के मुताबिक़ डेली मेल अखबार ने इस रिपोर्ट को विस्तार से छापा है ..
समाधान क्या है इस संक्रमण से बचाव का ?
माहिरों के अनुसार इस समस्या से ग्रस्त लोगों को अपने शयन कक्ष में मोबाइल कथित स्मार्ट फोन रखकर नहीं सोना चाहिए .
नींद विज्ञान के माहिर डेविड कनिंगतन के मुताबिक़ स्लीप टेक्स्टिंग दिन भर की मशक्कत तनाव , बेहद की टेक्स्टिंग का ही नतीजा है .लोगों को सोते सोते भी यही लगता है वह काल ले रहें हैं .ई -मेल्स को अनवरत प्राप्त करते रहना स्मार्ट फोन्स की अधुनातन देन है .स्लीप टेक्स्टिंग इसीका पार्श्व प्रभाव है तोहफा है दिन भर के संचित स्ट्रेस का .स्मार्ट फोन्स चौबीस घंटा खबरदार करता है इत्तल्ला देता रहता है .इसी खबरदारी के चलते हम सोने और जागने में फर्क नहीं कर पाते .
घोड़े बेचके सोने के लिए ज़रूरी है रात भर के लिए अपने स्मार्ट फोन को भूल जाएँ उसे शयन कक्ष के बाहर ही रखें या फिर बंद करदें .अगर फोन नाईट स्टेंड पर रहेगा तब आप को उत्सुकता रहेगी ओबसेशन रहेगा काल बेक करने का काल को लेने की बे -चैनी रहेगी .फेसबुक एकाउंट को चेक करने की बे -चैनी सालती रहेगी .
तो ज़नाब नींद पर ध्यान दीजिये निद्रा देवी का स्वागत कीजिए नींद की गुणवता पर ध्यान दीजिए .स्लीप टेक्स्टिंग आज की युवा भीड़ का फेशन स्टेटमेंट है .क्रेज़ है ओब्शेशन है .सेल फोन यूज़र्स की बीमारी है स्लीप टेक्स्टिंग .यह सब अधुनातन प्रोद्योगिकी की बैशाखियों का सहारा लेने का खमियाजा है .वैसे तकनीकी तौर पर गहन निद्रा की अवस्था में आप संगत सन्देश भेज ही नहीं सकते गफलत में असंगत कुछ भी करते रहें असंगत सन्देश इन -कहिरेंट मेसेज भेजते रहें यह और बात है .

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

स्लीप वाकिग नहीं स्लीप टेक्स्टिंग शुक्रिया स्मार्ट फून्वा .

स्लीप वाकिग नहीं स्लीप टेक्स्टिंग शुक्रिया स्मार्ट फून्वा .
(New sign of too much stress :Sleep -texting/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI,NOV 25 ,2011 /p17)
रिसर्चरों के अनुसार आधुनिक जीवन की ,रोजमर्रा की रहनी सहनी में तनाव इस कदर बरपा है कि लोग सोते सोते भी टेक्स्ट मेसेजिंग कर रहें हैं भलेही इन संदेशों में कोई तारतम्य सामंजस्य संगतता न हो इन -कहिरेंस ही हो .स्लीप टेक्स्तार्स की संख्या लगातार बढ़ रही है .
मजेदार बात यह है जो लोग इस आधुनिक अफ्लिक्शन,से इस अधुनातन बीमारी से ग्रस्त हैं उन्हें इस बात का इल्म भी नहीं है कि वह गहन निद्रा में भी असंगत सन्देश अपने चहेतों को नाती सम्बन्धियों को भेज रहें हैं उन्हें जो दिन रात उनके जेहन में हैं .कुछ कुछ इस तरह -
"शीशा -ए -दिल में छिपी तस्वीरे यार ,जब जरा गर्दन झुकाई देख ली "और इन लोगों का खुद हाल यह है -
"कुछ लोग इस तरह जिंदगानी के सफ़र में हैं ,दिन रात चल रहें हैं ,मगर घर के घर में हैं "-
रिसर्चर फ्रांक थोर्ने के मुताबिक़ डेली मेल अखबार ने इस रिपोर्ट को विस्तार से छापा है ..
समाधान क्या है इस संक्रमण से बचाव का ?
माहिरों के अनुसार इस समस्या से ग्रस्त लोगों को अपने शयन कक्ष में मोबाइल कथित स्मार्ट फोन रखकर नहीं सोना चाहिए .
नींद विज्ञान के माहिर डेविड कनिंगतन के मुताबिक़ स्लीप टेक्स्टिंग दिन भर की मशक्कत तनाव , बेहद की टेक्स्टिंग का ही नतीजा है .लोगों को सोते सोते भी यही लगता है वह काल ले रहें हैं .ई -मेल्स को अनवरत प्राप्त करते रहना स्मार्ट फोन्स की अधुनातन देन है .स्लीप टेक्स्टिंग इसीका पार्श्व प्रभाव है तोहफा है दिन भर के संचित स्ट्रेस का .स्मार्ट फोन्स चौबीस घंटा खबरदार करता है इत्तल्ला देता रहता है .इसी खबरदारी के चलते हम सोने और जागने में फर्क नहीं कर पाते .
घोड़े बेचके सोने के लिए ज़रूरी है रात भर के लिए अपने स्मार्ट फोन को भूल जाएँ उसे शयन कक्ष के बाहर ही रखें या फिर बंद करदें .अगर फोन नाईट स्टेंड पर रहेगा तब आप को उत्सुकता रहेगी ओबसेशन रहेगा काल बेक करने का काल को लेने की बे -चैनी रहेगी .फेसबुक एकाउंट को चेक करने की बे -चैनी सालती रहेगी .
तो ज़नाब नींद पर ध्यान दीजिये निद्रा देवी का स्वागत कीजिए नींद की गुणवता पर ध्यान दीजिए .स्लीप टेक्स्टिंग आज की युवा भीड़ का फेशन स्टेटमेंट है .क्रेज़ है ओब्शेशन है .सेल फोन यूज़र्स की बीमारी है स्लीप टेक्स्टिंग .यह सब अधुनातन प्रोद्योगिकी की बैशाखियों का सहारा लेने का खमियाजा है .वैसे तकनीकी तौर पर गहन निद्रा की अवस्था में आप संगत सन्देश भेज ही नहीं सकते गफलत में असंगत कुछ भी करते रहें असंगत सन्देश इन -कहिरेंट मेसेज भेजते रहें यह और बात है .

कोंटेक्ट लेंस पर प्राप्त कीजिएगा ई -मेल ?

यकीन मानिए आप अपने कोंटेक्ट लेंसों पर ई -मेल तथा टेक्स्ट मेसेज़िज़ जल्दी ही प्राप्त करने लगेंगें क्योंकि ऐसे कोंटेक्ट लेंस न सिर्फ कम्प्युत्रिकृत होंगें वरन इंटरनेट से भी जुड़े होंगें .चलिए पहले एक पारिभाषिक शब्द पिक्सेल (Pixel)को समझ लेते हैं जो एक बुनियादी इकाई है जिनके संयोजन से कंप्यूटर स्क्रीन पर बनने वाली तस्वीर बनाई जाती है .पिक्सेल दरअसल प्रकाश के एक अकेले tiny dot नन्ने से बिंदु को कहा जाता है .इन्हीं पिक्सलों से मिलकर टी वी स्क्रीन पर तस्वीर बनती है .
फिलवक्त जो कोंटेक्ट लेंस साइंसदान बनाने में कामयाब रहें हैं उसकी सीमा यह है की इसमें एक ही पिक्सेल उभरती है लेकिन एक अवधारणा की जांच कर ली गई है .आदिम प्रारूप (Prototype)बना लिया गया है इस कम्प्युतारिकृत प्राविधि का स्पर्श लेंस का .
इस काम को अंजाम दिया है फिनलैंड की आल्टो यूनिवर्सिटी तथा अमरीका की वाशिंगटन यूनिवर्सिटीके साइंसदानों ने . इसे जीते जागते इंसानों की आँखों पर आजमाया जा चुका है कामयाबी के साथ .कोई अवांछित प्रभाव पार्श्व प्रभाव सामने नहीं आये हैं .
कल बहु -पिक्सेल कोंटेक्ट लेंस बनाए जा सकेंगे .सैंकड़ों की तादाद में जिनके संयोजन से छोटे छोटे सन्देश भेजना मुमकिन हो जाएगा . साइंसदानों के लफ्जों में यह कंप्यूटर से पैदा दृश्य सूचना का वास्तविक दुनिया रियल वर्ल्ड पर आच्छादन है .जिल्द है .
इसका स्तेमाल कंप्यूटर खेलों और नेविगेशन में भी किया जा सकेगा .
(The scientist said the device could overlay computer generated visual information on to the real world and be of use in gaming devices and navigation systems.)
अलावा इसके इस प्राविधि को लेंस पहनने वाले व्यक्ति के शरीर से जोड़ कर उसके खून में घुली शक्कर का भी जायजा लिया जा सकेगा .
एक समस्या हमारी आँख के लेंस की न्यूनतम फोकस दूरी है (Minimum focal distance of several centimetres ).इस से छुटकारा प्राप्त करने के लिए विशेष छरहरे पतले थिन तथा सपाट फ्रेज्नेल लेंसों का स्तेमाल किया गया .इस प्रकार इतनी कम फोकस दूरी पर भी कोंटेक्ट लेंसों पर आई सूचना का विभेदन संभव हुआ .प्रक्षेपित छवियों को आँख के परदे तक भेजना इस प्रकार संभव हुआ .
जानिएगा क्या है फ्रेज्नेल लेंस ?
A fresnel lens is a thin lens of short focal length with a surface consisting of concentric rings ,each having a curvature corresponding to a similar ring of plain convex lens .Augstin -jean Fresnel made such a lens in Mid -19C(1788-1827).

बुधवार, 23 नवंबर 2011

आखिर दुनियाभर से कोरल्स का सफाया क्यों हुआ ?

आखिर दुनियाभर से कोरल्स का सफाया क्यों हुआ ?
आलमी स्तर पर बढ़ते हुए तापन के चलते दुनिया भर से कोरल्स प्रवाल या मूंगे की चट्टानों का देखते ही देखते क्यों सफाया हुआ इस रहस्य से साइंसदानों ने पर्दा उठाने में कामयाबी हासिल की है .ऑस्ट्रेलियाई साइंसदानों के अनुसार समुद्री जल के गरमाने के साथ ही प्रवाल अपनी संक्रमित कोशाओं (infected cells )को आत्मघात कर लेने के आशय का संकेत भेजतें हैं .ताकि सुरक्षित कोशायें जहां तक संक्रमण अभी नहीं पहुंचा है वहां ठीकठाक बनी रहें वहां से .रिकवर कर सकें .
ARC Centre of Excellence for Coral Reefs Studies तथा जामेस कुक यूनिवर्सिटी के साइंसदानों की एक सांझी टीम का कहना है :समुद्री जल का बढ़ता तापमान प्रवाल के कुदरती रंगों को ले उड़ता है उनके रंगहीन होकर विरंजित होने की वजह बन जाता है .बढ़ते तापमान ही कोरल ब्लीचिंग की वजह बनते हैं .
बढ़ते हुए तापमान प्रवाल और उसके साथ सहजीवन पाती एल्गी के लिए Heat stress की वजह बन जातें हैं .फलस्वरूप इन दोनों की लिविंग टुगेदर परस्पर सहजीवन और पल्लवन खंडित होजाता है . अब एल्गी ही तो कोरल्स का प्राथमिक आहार होता है शिशु के लिए माँ के दूध सा ,एल्गी की मौत या फिर कोरल द्वारा बहिष्करण आखिर में कोरल्स की मौत की भी वजह बन जाता है .
सन्दर्भ -सामिग्री :Mystery behind coral deaths solved :TIMES TRENDS /TOI,NOV 22,2011/p21
ram ram bhai !ram ram bhai !
रूस के दूरदराज़ निर्जन क्षेत्र में येती का अता पता ?
(Experts :Yeti nests found in remote Russian area)/TIMES TRENDS/TOI/NOV 21,2011/p17
रिसर्चरों ने दावा किया है हिमालय क्षेत्र का परिवासी येती जिसे Abominable Snowman भी कह दिया जाता है ,अब तलक रहस्य के आवरण में लिपटा ape like cryptid न सिर्फ अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं रूस के दूरदराज के क्षेत्र में इसने वृक्षों की डालों और बड़ी बड़ी शाखों को झुका मिलाकर अपने घरोंदे परिवास भी बनाए हुए हैं .
Cryptids are the yet-to-be discovered animals or recovered supposedly extinct zoological species that are being sought by cryptozoologists, zoologists, anthropologists, and other researchers through fieldwork in the wild, reexaminations of specimens in zoological collections, and searches of archival materials.

हाल ही में रूस में संपन्न एक अंतर -राष्ट्रीय संगोष्ठी में साइंसदानों ने ,कई माहिरों ने घोषणा की थी कि देश के दूरदराज़ निर्जन क्षेत्र में अजीबोगरीब अंदाज़ में विशालकाय वृक्षों का झुका होना शाखों का परस्पर गुंथा होना यह बतलाता है कि रहस्य रोमांच के परदे में लिपटा कोई जीव यहाँ ओरंगउतान तथा गुरिल्लाओं की मानिंद ही अपने परिवास बनाता है .
एक मेहराब सी बानाए हुए है परस्पर बुनी हुई बटी हुई रस्सी सी शाखें जिन्हें सायास बलपूर्वक बंटा बुना गया है .रूस के kemerovo region में ये अज़ब गज़ब रहवास देखे गएँ हैं .यह इलाका इस बहु -चर्चित येती के बाराहा देखे जाने के किस्सों के लिए जाना जाता रहा है .
निएंदर्थाल तथा आधुनिक मानव के बीच की विलुप्तप्राय कड़ी के बतौर जाना समझा जाता है इस Wildman को .दावे के साथ साइंसदान आत्म विशावस से भरपूर कहतें हैं चंद महीनों की बात है हम इस के पुख्ता प्रमाण जुटा लेंगें .यह वक्तव्य Igor Burtsev के सौजन्य से आया है .आप International Centre Of Hominology के मुखिया हैं .
कनाडा के येती अन्वेषक जॉन बिन्देर्नागेल कहतें हैं :साइबेरिया में हमने जो कुछ देखा है पेड़ों की शाखों को जिस हालजिस तरह गुंथे हुए लिपटे हुए देखा है वह किसी मनुष्य के बूते की बातनहीं है . ब्रितानी टेबलोइड


"दी सन'' ने इस पूरी कथा को प्रकाशित किया है .अमरीका रूस तथा कनाडा से अन्य अनेक माहिर भी इन दावों से सहमत प्रतीत होतें हैं अपने इलाके में येती की मौजूदगी से ये इत्तेफाक रखतें हैं ..

शहर और सेहत संग साथ नहीं चलते .आंकडा ३६ का है .

शहर और सेहत संग साथ नहीं चलते .आंकडा ३६ का है .
(Health and the city :They don't go together)/TIMES TRENDS ,TOI,NEW -DELHI /p21.
अध्ययनों से पुष्ट हुआ है अनेक मानसिक और भौतिक व्याधियों से रु -बा -रु रहते हैं .शहर में पैदा होने वाले नौनिहाल .
शहर में रहने की कीमत सेहत को चुकानी पड़ सकती है .मसलन शहरी रह वास आपको अवसाद ग्रस्त ,मोटापा ग्रस्त तथा बाँझ (अनुर्वरक ,इन -फर्टाइल )बना सकता है .इतना ही नहीं शहरी रिहाइश आपको घातक' जीवन शैली रोग 'कैंसर की ज़द में भी ला सकता है .
अनेक अध्ययनों से यह पता चला है शहरों में पैदा हुए बच्चे यहाँ परवरिश पाते बढ़ते विकसते पलते नौनिहाल अनेक स्वास्थ्य गत समस्याओं से घिरे रहतें हैं .ये समस्याएं इनके भौतिक (कायिक )और मानसिक दोनों किस्म के स्वास्थ्य को असर ग्रस्त करतीं हैं .
लाइलाज और दीर्घावधि कायम रहने वाली रोग प्रतिरक्षा प्रणाली से सम्बद्ध इम्यून डिजीज के अलावा शहरी रहनी सहनीआबोहवा शहरी प्रदूषण आर्थराइटिस ,दिल की बीमारियों के अलावा कैंसर रोग समूह तथा प्रजनन सम्बन्धी मुश्किलात के वजन को बढाए रहती है .
प्रदूषण से रोज़ -बा -रोज़ पड़ने वाला साबका गर्भस्थ को भी असर ग्रस्त करता रहता है .यानी आप अभी पैदा भी नहीं हुए हैं और संकट आपकी सेहत पर मंडराने लगा है .यही से उम्र भर के लिए रोग प्रवणता सेहत के लिए जोखिम बढ़ते जातें हैं .
बेशक शहर में पैदा शिशु बड़े डील डौल लिए तौल में भी ज्यादा होतें हैं (भले उनकी माँ तौल में कम रही हो ,)अपने ग्रामीण हमउम्रों के बरक्स .लेकिन जब शहरी और ग्रामीण माताओं के पुरइन(placentas)की अलग अलग जांच की गई तब चौकाने वाले नतीजे सामने आये .
पता चला शहरी क्षेत्रों की माताओं के खून में शहरी रासायनिक प्रदूषक Xenoestrogens (ज़ीनोईस्त्रोजन्स )का डेरा है तथा इन शहरी प्रदूषकों की मात्रा शहर में पैदा हुए पले बढे शिशुओं केरक्त में भी अपने ग्रामीण हम उम्रों के बरक्स कहीं ज्यादा है .
ये उद्योगिक रसायन समूह है जो हमारी सेहत को असरग्रस्त करता है चौपट करता है .अपने असर में यह स्त्री हारमोन इस्ट्रोजन जैसा ही होता है .जन्म के समय शहर में पैदा हुए बिगर बेबीज़ तथा हेवियर बेबीज़ की वजह यही बन रहा है .भ्रूण की ज़रुरत से ज्यादा (अतरिक्त बढ़वार) के पीछे इसी उद्योगिक रसायन समूह का हाथ रहता है .
लेकिन अतिरिक्त बढ़वार के संग साथ सौगात मिलती है इन नौनिहालों को मोटापे की हाइपरएक्टिविटी की ,जल्दी से युवावस्था के देहलीज़ पर पाँव रखने की उम्र से पहले ही जवान हो जाने की puberty की .प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं की लंग ,ब्रेस्ट तथा प्रोस्टेट (पौरुष ग्रंथि ) कैंसर की .
University of Granada ,स्पेन के रिसर्चरों ने यह भी पता लगाया है कि एक तरफ शहरी माताएं हालाकि उम्र में बड़ी थीं,तौल में भी कमतर थीं अपनी ग्रामीण बहना के बरक्स लेकिन फिर भी इनके शिशु बड़े डील डौल वाले थे .They still gave birth to larger babies. .
यह सब करामात विषाक्त ज़ीनोईस्त्रोजन्स(xenoestrogens) की रही है .इसका बेहद का प्रभाव पड़ता है गर्भस्थ शिशु की बढ़वार पर .यही कहना है रिसर्चर Maria Marcos का .आपकी रपट दो टूक खुलासा करती है प्रमाण प्रस्तुत करती है कि शहरी आबोहवा ,प्रदूषकों से गंधाती हवा बच्चों की सामान्य बढ़वार को असरग्रस्त करती है .
बात तमाम यही जाके खत्म नहीं होती है ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में की गई आजमाइशों से पता चला है शहरी प्रदूषक तत्व शिशुओं में चयअपचयन सम्बन्धी (metabolic changes)बदलाव ला सकतें हैं . नतीज़तन इनका ब्लड सुगर लेविल बढ़ सकता है ,इंसुलिन के प्रति प्रतिरोध भी पनपता है .
ram ram bhai


इन वीट्रो फ़र्तिलाइज़ेशन की कामयाबी के लिए .
इन वीट्रो फ़र्तिलाइज़ेशन की कामयाबी के लिए .
दो प्रकार का गर्भाधान होता है एक कुदरती यानी इन -वाइवो जैसे माँ के गर्भ में स्त्री पुरुष के स्वाभाविक मैथुन के बाद और दूसरा परखनली गर्भाधान यानी इन -वीट्रो एज इन ए ग्लास ट्यूब या फिर पेट्री डिश में
साइंसदानों ने पता लगाया है परखनली निषेचन की कामयाबी के मौके तब निश्चय ही बढ़ जातें हैं जब संतान का इच्छुक पुरुष जो कुदरती गर्भाधान कर पाने में किसी भी वजह से असमर्थ है और विकल्प के लिए इन -वीट्रो फ़र्तिलाइज़ेशन का सहारा ले रहा है अपनी खुराक में अधिकाधिक फल और अनाजों (खासकर चोकर युक्त अनाज )का सेवन करता है तथा रेड मीट का न्यूनतर .अलावा इसके एल्कोहल और कोफी भी जिसकी जीवन शैली में कम से कम है .ब्राजील में हाल में पुरुष स्पर्म्स (Spermatozoon ,a male reproductive cell (gamete) that has an over head with a nucleus ,a short neck ,and a tail by which it moves to find and fertilize an ovum,also spermaozoan) जिसे आम भाषा में लूजली वीर्य भी कह दिया जाता है की गुणवत्ता पर संपन्न एक अध्ययन में उक्त नतीजे निकाले गए हैं .
महिलाओं की प्रजनन सम्बन्धी गड़बड़ियों का रिश्ता जहां बॉडी वेट (शरीर भार ,तौल )से जोड़ा गया है ,शराब और धूम्रपान से जोड़ा गया है वहीँ इस अध्ययन से पहले यह साफ़ नहीं हुआ था कि क्या पुरुषों के लिए भी यह बात इन -वीट्रो -ट्रीटमेंट के दौरान लागू होती है .
अध्ययन में कुल २५० मर्द शरीक थे जो एक दम्पति के बतौर फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए आ रहे थे .यह ख़ास इलाज़ था -'Intracytoplasmic sperm injection '.
Ram Ram Bhai !Ram Ram Bhai !

भावी माँ मोटापा कम करे वरना ....
भावी माँ मोटापा कम करे वरना .....
(Obese moms make babies fat :)/Short Cuts /TOI,NOV21,2011,P17,New-Delhi.,ed .
भावी माताओं को साइंसदानों की यही हिदायतें हैं गर्भ धारण करने से पहले मोटापा ,अतिरिक्त चर्बी शरीर से हटायें वरना शिशु भी आगे चलके मोटापे की गिरिफ्त में आने से बच नहीं सकेगा ..एक नए अध्ययन के अनुसार मोटापे से लथपथ संतान की इच्छुक भावी माताओं में मोटापे का विनियमन करने वाला एक हारमोन सम्बन्धी विकार पैदा होजाता है .यह विकार सहज ही माँ से संतानों में अंतरित हो जाता है चला आता है चुपके से इसलिए अपनी भावी संतान को मोटापे की गिरिफ्त में जाने से बचाने के लिए भावी माताएं खुद फ्लेब से छुटकारा पाने के उपाय करे तब गर्भ धारण करने का सोचें .
पढ़ाकू कंप्यूटर .

(This computer can read like humans )/SHORT CUTS/TOI/NOV21,2011,New-Delhi ed.
समझा जाता हमारे दौर में साइंसदान एक ऐसा कंप्यूटर विकसितकरने में में जुटे हुएँ हैं जो विज्ञान साहित्य का अनुशीलन कर सकता है अनथक .तथ्यों के बीच की कड़ी खोज सकता है उनका संयोजन कर सकता है .परिकल्पनाएं प्रस्तुत कर सकता है . इस दौर में प्रकाशित लाखों लाख रिसर्च पेपर्स से काम की सूचना खोज सकता है .उनका सटीक विश्लेषण और समालोचना कर सकता है .
केम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक रिसर्च टीम के मुताबिक़ इसे CRAB कहा जा रहा है .
राम राम भाई !राम राम भाई !
सील्स नेविगेशन निपुण होतीं हैं .
समुन्दर के अपेक्षाकृत ठन्डे इलाकों में मछलियों का शिकार करके पेट भरने वाला मांसाहारी जीव होता है सील जो एक स्तनपाई है .इसका छरहरा बदन तैरने के अनुकूल बनाया है कुदरत ने .स्ट्रीम लाइंद है इसकी स्लीक बॉडी तथा इसके झिल्लीदार पैर कालान्तर में फ्लिपर्स में तबदील हुएँ हैं .
साइंसदानों के मुताबिक़ यह समुद्री स्तनपाई जीव समुन्दर में सालों साल (तकरीबन पांच साल की अवधि )बिताने के बाद भी अपना जन्म स्थल ढूंढ निकालता है अतल असीम सागर में .ऐसी ही इनकी नेविगेशन प्रवीणता ., कौशल्य .

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

इन वीट्रो फ़र्तिलाइज़ेशन की कामयाबी के लिए .

इन वीट्रो फ़र्तिलाइज़ेशन की कामयाबी के लिए .
दो प्रकार का गर्भाधान होता है एक कुदरती यानी इन -वाइवो जैसे माँ के गर्भ में स्त्री पुरुष के स्वाभाविक मैथुन के बाद और दूसरा परखनली गर्भाधान यानी इन -वीट्रो एज इन ए ग्लास ट्यूब या फिर पेट्री डिश में
साइंसदानों ने पता लगाया है परखनली निषेचन की कामयाबी के मौके तब निश्चय ही बढ़ जातें हैं जब संतान का इच्छुक पुरुष जो कुदरती गर्भाधान कर पाने में किसी भी वजह से असमर्थ है और विकल्प के लिए इन -वीट्रो फ़र्तिलाइज़ेशन का सहारा ले रहा है अपनी खुराक में अधिकाधिक फल और अनाजों (खासकर चोकर युक्त अनाज )का सेवन करता है तथा रेड मीट का न्यूनतर .अलावा इसके एल्कोहल और कोफी भी जिसकी जीवन शैली में कम से कम है .ब्राजील में हाल में पुरुष स्पर्म्स (Spermatozoon ,a male reproductive cell (gamete) that has an over head with a nucleus ,a short neck ,and a tail by which it moves to find and fertilize an ovum,also spermaozoan) जिसे आम भाषा में लूजली वीर्य भी कह दिया जाता है की गुणवत्ता पर संपन्न एक अध्ययन में उक्त नतीजे निकाले गए हैं .
महिलाओं की प्रजनन सम्बन्धी गड़बड़ियों का रिश्ता जहां बॉडी वेट (शरीर भार ,तौल )से जोड़ा गया है ,शराब और धूम्रपान से जोड़ा गया है वहीँ इस अध्ययन से पहले यह साफ़ नहीं हुआ था कि क्या पुरुषों के लिए भी यह बात इन -वीट्रो -ट्रीटमेंट के दौरान लागू होती है .
अध्ययन में कुल २५० मर्द शरीक थे जो एक दम्पति के बतौर फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए आ रहे थे .यह ख़ास इलाज़ था -'Intracytoplasmic sperm injection '.
Ram Ram Bhai !Ram Ram Bhai !

भावी माँ मोटापा कम करे वरना ....
भावी माँ मोटापा कम करे वरना .....
(Obese moms make babies fat :)/Short Cuts /TOI,NOV21,2011,P17,New-Delhi.,ed .
भावी माताओं को साइंसदानों की यही हिदायतें हैं गर्भ धारण करने से पहले मोटापा ,अतिरिक्त चर्बी शरीर से हटायें वरना शिशु भी आगे चलके मोटापे की गिरिफ्त में आने से बच नहीं सकेगा ..एक नए अध्ययन के अनुसार मोटापे से लथपथ संतान की इच्छुक भावी माताओं में मोटापे का विनियमन करने वाला एक हारमोन सम्बन्धी विकार पैदा होजाता है .यह विकार सहज ही माँ से संतानों में अंतरित हो जाता है चला आता है चुपके से इसलिए अपनी भावी संतान को मोटापे की गिरिफ्त में जाने से बचाने के लिए भावी माताएं खुद फ्लेब से छुटकारा पाने के उपाय करे तब गर्भ धारण करने का सोचें .
पढ़ाकू कंप्यूटर .

(This computer can read like humans )/SHORT CUTS/TOI/NOV21,2011,New-Delhi ed.
समझा जाता हमारे दौर में साइंसदान एक ऐसा कंप्यूटर विकसितकरने में में जुटे हुएँ हैं जो विज्ञान साहित्य का अनुशीलन कर सकता है अनथक .तथ्यों के बीच की कड़ी खोज सकता है उनका संयोजन कर सकता है .परिकल्पनाएं प्रस्तुत कर सकता है . इस दौर में प्रकाशित लाखों लाख रिसर्च पेपर्स से काम की सूचना खोज सकता है .उनका सटीक विश्लेषण और समालोचना कर सकता है .
केम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक रिसर्च टीम के मुताबिक़ इसे CRAB कहा जा रहा है .
राम राम भाई !राम राम भाई !
सील्स नेविगेशन निपुण होतीं हैं .
समुन्दर के अपेक्षाकृत ठन्डे इलाकों में मछलियों का शिकार करके पेट भरने वाला मांसाहारी जीव होता है सील जो एक स्तनपाई है .इसका छरहरा बदन तैरने के अनुकूल बनाया है कुदरत ने .स्ट्रीम लाइंद है इसकी स्लीक बॉडी तथा इसके झिल्लीदार पैर कालान्तर में फ्लिपर्स में तबदील हुएँ हैं .
साइंसदानों के मुताबिक़ यह समुद्री स्तनपाई जीव समुन्दर में सालों साल (तकरीबन पांच साल की अवधि )बिताने के बाद भी अपना जन्म स्थल ढूंढ निकालता है अतल असीम सागर में .ऐसी ही इनकी नेविगेशन प्रवीणता ., कौशल्य .

भावी माँ मोटापा कम करे वरना ....

भावी माँ मोटापा कम करे वरना .....
(Obese moms make babies fat :)/Short Cuts /TOI,NOV21,2011,P17,New-Delhi.,ed .
भावी माताओं को साइंसदानों की यही हिदायतें हैं गर्भ धारण करने से पहले मोटापा ,अतिरिक्त चर्बी शरीर से हटायें वरना शिशु भी आगे चलके मोटापे की गिरिफ्त में आने से बच नहीं सकेगा ..एक नए अध्ययन के अनुसार मोटापे से लथपथ संतान की इच्छुक भावी माताओं में मोटापे का विनियमन करने वाला एक हारमोन सम्बन्धी विकार पैदा होजाता है .यह विकार सहज ही माँ से संतानों में अंतरित हो जाता है चला आता है चुपके से इसलिए अपनी भावी संतान को मोटापे की गिरिफ्त में जाने से बचाने के लिए भावी माताएं खुद फ्लेब से छुटकारा पाने के उपाय करे तब गर्भ धारण करने का सोचें .
पढ़ाकू कंप्यूटर .

(This computer can read like humans )/SHORT CUTS/TOI/NOV21,2011,New-Delhi ed.
समझा जाता हमारे दौर में साइंसदान एक ऐसा कंप्यूटर विकसितकरने में में जुटे हुएँ हैं जो विज्ञान साहित्य का अनुशीलन कर सकता है अनथक .तथ्यों के बीच की कड़ी खोज सकता है उनका संयोजन कर सकता है .परिकल्पनाएं प्रस्तुत कर सकता है . इस दौर में प्रकाशित लाखों लाख रिसर्च पेपर्स से काम की सूचना खोज सकता है .उनका सटीक विश्लेषण और समालोचना कर सकता है .
केम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक रिसर्च टीम के मुताबिक़ इसे CRAB कहा जा रहा है .
राम राम भाई !राम राम भाई !
सील्स नेविगेशन निपुण होतीं हैं .
समुन्दर के अपेक्षाकृत ठन्डे इलाकों में मछलियों का शिकार करके पेट भरने वाला मांसाहारी जीव होता है सील जो एक स्तनपाई है .इसका छरहरा बदन तैरने के अनुकूल बनाया है कुदरत ने .स्ट्रीम लाइंद है इसकी स्लीक बॉडी तथा इसके झिल्लीदार पैर कालान्तर में फ्लिपर्स में तबदील हुएँ हैं .
साइंसदानों के मुताबिक़ यह समुद्री स्तनपाई जीव समुन्दर में सालों साल (तकरीबन पांच साल की अवधि )बिताने के बाद भी अपना जन्म स्थल ढूंढ निकालता है अतल असीम सागर में .ऐसी ही इनकी नेविगेशन प्रवीणता ., कौशल्य .

सोमवार, 21 नवंबर 2011

चार किस्में बतलाई गईं है मर्द के शरीर की . (Men's bodies classiefied inti 4 types ) महिलाओं की देह यष्टि के लिए अकसर "एपिल शेप्ड "या फिर

चार किस्में बतलाई गईं है मर्द के शरीर की .
(Men's bodies classiefied inti 4 types )
महिलाओं की देह यष्टि के लिए अकसर "एपिल शेप्ड "या फिर "पीयर शेप्ड "आकृतियों का स्तेमाल किया जाता है .अब पुरुषों ने भी स्वयं के लिए कुछ आकृतियों के प्रतिमान गढ़ लिए हैं .retailor High and Mighty द्वारा करवाए गए एक अध्ययन में पुरुष देह यष्टि को अब चार वर्गों में रखा गया है .ये वर्ग हैं :
(१)क्रिसमस पुडिंग ,एक प्रकार की स्वीट डिश मिष्ठान्न जिसका स्तेमाल ईसा मसीह के जन्म दिन पर किया जाता है (Chrismas pudding ).कहलाती है .
(२ )Yule log .
(3) parsnip
(4)Candle
yule log के कंधे और कटि प्रदेश (कमर ),waist एकाकार होतें हैं एक सा ही साइज़ होता है शोल्डर्स और कमर के घेरे का .
पर्स्निप और केंडिल पुरुष का मतलब है लंबा और छरहरा (लम्बू बिग बी जैसा ).क्रिसमस पुडिंग का मतलब है कुल भार का शरीर के मध्य भाग में अधिकाधिक अंश का रहना .
अपने यहाँ नायक नायिका भेद की पुरानी परम्परा रही है वर्गीकरण कामसूत्र के प्रणेता वात्सायन ने किया है .पुरुष को अश्व ,वृषभ ,सांड (बुल),नायिका को मुग्धा मध्या ,बडवा (प्रगल्भ )कहा है .वीर्य की गंध सुगंध ,लिंग की आकृति (साइज़ ),योनी की लम्बाई (गहराई )मिजाज़ स्त्री पुरुष का विस्तार से बतलाया है .
किशोर वृन्दों में आत्मघाती प्रवृत्ति .
१२ में से एक किशोर ,किशोरी खुद को नुकसान पहुंचाते हैं आत्मघाती आदत से ग्रस्त रहतें हैं .
(One in 12 teens self -harms).
इनमे ज्यादातर किशोरियां ही होतीं हैं .कलाई की नस काट लेना खुद को आग लगालेने से लेकर यह अनेकानेक जोखिम भरे काम कर डालतीं हैं .इनमे से १०%लोग किशोरावस्था के पार युवावस्था में भी इस खतरनाक आदत को साथ ले जातें हैं .एक ताज़ा प्रकाशित अध्ययन से यही नतीजे निकलें हैं .
गौर तलब है खुद को नुकसान पहुंचाने की आत्मघाती प्रवृत्ति आगे चलकर आत्महत्या करने की आशंका और प्रवणता की और साफ़ साफ़ इशारा है यही कहना है उन मनो -रोगों के माहिर का जिन्होनें इस अध्ययन को संपन्न किया है .इन अन्वेषणों की मदद से समय रहते सार्थक बचावी पहल के उपाय अपनाए जा सकतें हैं .
ब्रितानी ऑक्सफोर्ड विश्विद्यालय से सम्बद्ध आत्महत्या शोध के प्रमुख विज्ञानी कीथ हव्टों ने लन्दन में एक पुनर -आकलन में कहा आत्म घाती प्रवृत्ति के इतने ज्यादा मामलों की अनदेखी करना स्वयं एक आत्मघाती कदम होगा .
दूसरी तरफ Centre for Adolescent Health ,Murdoch Children's Research Institute ,Melbourne,Australia में इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले George Patton ने कहा किशोरावस्था के बीचो बीच आती है एक "Window of Vulnerability"जब किशोर किशोरियां भावात्मक संवेगों से जूझतें हैं .खुद को नुकसान पहुंचाना एक तरह से इस प्रवृत्ति से दो चार होने का एक ज़रिया बन जाता है .
लांसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित इस काम को अंजाम देने वाली पट्टों की टीम का कहना है जिन लोगों में यह खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति मिली है उनमे अकसर मानसिक सेहत से जुडी समस्याएं भी मौजूद रहतीं हैं .इनका समाधान इलाज़ के अभाव में नहीं हो पाता है .
खुद को नुकसान पहुचाना एक आलमी प्रवृत्ति के बतौर सामने आ रहा है .१५-२४ साला लडकियां /युवतियां इसकी चपेट में ज्यादा हैं .सेल्फ एब्यूज की यह प्रवृत्ति दिनानुदिन बढती प्रतीत होती है जो खासी चिंता का वायस है .
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तकरीबन दस लाख लोग हर बरस आत्म ह्त्या करतें हैं .एक लाख के पीछे १६ लोग आत्म घाती प्रवृत्ति की भेंट चढ़ जातें हैं .दूसरे शब्दों में हर ४० सेकिंड के बाद एक व्यक्ति आत्म घात करता है .गत ४५ बरसों में इस प्रवृत्ति में ६०%इजाफा हुआ है .
Reference material :One in 12 teens self harms/TIMES TRENDS/TOI,NOV 20,2011,P19.
कैसे की जाए भूकंप की भविष्य वाणी .
कैसे की जाए भूकंप की भविष्य वाणी .
(How to predict an earthquake?)
एक नए सिद्धांत (सिद्धान्तिक प्रस्तावना ,परिकल्पना )की माने तब आसन्न भूकंप (ज़लज़ले )की प्रागुक्ति टूटती दरकती चट्टानों से रिसती ओजोन के आधार पर की जा सकती है .इस एवज़ इंजिनीयरि फिजिक्स (अभियानविकी भौतिकी )के प्रोफ़ेसर Raul A Baragiola ने टूटती दरकती (अंदरूनी चट्टानी दवाब से ,Crushing rocks से रिसती )ओजोन गैस के मापन के लिए अनेक प्रयोग ईजाद किये हैं .
अलग अलग प्रकृति की चट्टाने अलग अलग मात्रा में ओजोन निसृत करतीं हैं .
कई मर्तबा भू -दोलन से पहले भूमिगत फाल्ट्स में दवाब बनने लगता है यही दवाब चट्टानों को चटकाने लगता है समझा जाता है इसी चटकन के फलस्वरूप इतनी ओजोन ज़रूर पैदा हो जाती है चट्टानों के रिसाव से जिसे संवेदी उपकरणों द्वारा पकड़ा जा सके .वर्जीनिया विश्वविद्यालय के साइंसदानों ने अपनी एक विज्ञप्ति में यही पेशकश की है .
बस यही से प्रोफ़ेसर Baragiola ने यह संकेत ग्रहण किया कि ओजोन के इस अल्पांश में होने वाले शुरूआती रिसाव की टोह संवेदकों से ली जा सकती है .और एक चेतावनी प्रसारित क़ी जा सकती है एक प्रागुक्ति संभव है भू -दोलन की.
पशुओं के व्यवहार में भू -कंप से होने वाला बदलाव अकसर देखा भाला गया है .घोड़े अस्तबल से रस्सा तुडाके भाग खड़े होतें हैं .रेंगेनेवाले जीव अपने भूमिगत बिलों से बाहर निकल आतें हैं .यही बदलाव Seismic activity भूकंपीय सक्रीयता की समय रहते इत्तला दे देता है .
भू -कम्पीय हाई जोंस भू -दोलन प्रवण इलाकों से हटकर एक पूरा नेट वर्क ओजोन टोहकों का खडा किया जा सकता है .सिज्मोग्राफ्स की मानिंद .

रविवार, 20 नवंबर 2011

अल्ज़ाइमर्स के खिलाफ संगर्ष में आपकी नाक भी मददगार सिद्ध हो सकती है .

अल्ज़ाइमर्स के खिलाफ संगर्ष में आपकी नाक भी मददगार सिद्ध हो सकती है .
(Your nose can help in fight against Alzheimer's )
बुढापे के लाइलाज बने रोग अल्ज़ाइमर्स रोग के खिलाफ जेहाद में अब हमारी नासिका भी एक ढाल बनके सामने आ सकती है .जर्मन साइंसदानों ने रोगनिदान हेतु एक ऐसा परीक्षण ईजाद किया है जोरोग के लक्षण प्रगट होने से सालों साल पहले ही रोग को भांप लेता है रोग निदान बतलादेता है कि आगे जाके रोग होगा ही होगा .दरअसल अल्ज़ाइमर्स के रोगियों की दिमागी कोशिकाओं में एक विषाक्त प्रोटीन ताऊ पाई जाती है .जर्मन साइंसदानों ने यही Toxic Protin Tau नासिका की स्लेश्मल झिल्ली में भी उन लोगों की नासिका में मौजूद रहने की पुष्टि की है जिन्हें आगे चलके रोग होने की आशंका बनी रहेगी .
कैंसर के खिलाफ जेहाद में कामयाबी हासिल कर पाना अभी वक्त लेगा.
कैंसर के खिलाफ जेहाद में कामयाबी हासिल कर पाना अभी वक्त लेगा. कितना ?इसका अभी कोई निश्चय नहीं .यह वक्फा दस साल का भी हो सकता है इससे ज्यादा भी हो सकता है .एक भारतीय मूल के साइंसदान ने अपने अध्ययन से पता लगाया है लाखों लोग यूं ट्यूमर लिए हैं लेकिन इनके रोग निदान में दसियों सालों का वक्त लग जाता है .ट्यूमर अपना सुराग आसानी से हाथ नहीं लगने देता .
वर्तमान में उपलब्ध रक्त परीक्षणों में रक्त संचरण में कुछ बायोमार्कर्स का पता लगाया जाता है यही वह पदार्थ होतें हैं जो कैंसर कोशायें देर सवेर रक्त प्रवाह में छोडती चलती हैं .
भारतीय मूल के ये विज्ञानी है प्रोफ़ेसर संजीव गंभीरहैं .आप स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से जुड़े हैं .बकौल आपके एक कैंसर कोशा को ट्यूमर का आकार लेने में दसियों साल लग जातें हैं तब जाकर वह इन जैव -सकेतकों का स्राव ब्लड स्ट्रीम में छोडती है .यही बायोमार्कर्स स्क्रीनिंग में हाथ आतें हैं .
सन्दर्भ -सामिग्री :Cancer can go undetected for a decade ,says study/TIMES TRENDS /SHORT CUTS/TOI.,New-Delhi,NOV18,2011/p21.
क्या दफ्तर में आप उनींदे रहतें हैं ?यदि हाँ तो चौकन्ना रहने के लिए खाइए अंडे .
क्या दफ्तर में आप उनींदे रहतें हैं ?यदि हाँ तो चौकन्ना रहने के लिए खाइए अंडे .
बेशक अंडा सेहत के माहिरों द्वारा उतनी स्वीकृति प्राप्त नहीं कर सका है .खासकर एग यलो अंडे की पीली ज़र्दी कोलेस्ट्रोल का स्रोत समझी गई है .हमारे अश्थी रोग के माहिर ने हमें रोज़ एक अंडा खाने की सिफारिश की तो दिल के माहिर ने कहा भैया बाजरा खाओ केल्शियम की आपूर्ति के लिए .कभी हमने एक अन्य अध्ययन को खंगालते हुए पाया चिकनाई के माहिर कई पोषण विज्ञानी अंडे को उतना बुरा नहीं मानतें हैं जितना यह समझ लिया गया है .मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जो आम्लिट भी एग वाईट का ही बनवातें हैं एग यलो को अलग रख देतें हैं कोई और चाहे तो खाए .
अब साइंसदान एग यलो के गुण गायन में कह रहें हैं -यदि कामकाजी स्थल पर आप उनींदे रहतें हैं जब तब नैप के लपेटे में आते है तब चुस्त दुरुस्त चौकन्ने बने रहने के लिए बस एक अंडा रोज़ खाइए इसके सफ़ेद भाग में मौजूद प्रोटीन आप को सचेत बनाए रहेगी .
केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने दम ख़म को बनाए रखने एनर्जी बूस्टर के रूप में चोकलेट्स बिस्किट्स और स्वीट्स में मौजूद कार्बोहाईद्रेतों (Carbohydrates) के बरक्स अंडे से प्राप्त प्रोटीनों को ज्यादा कारगर, असरकारी पाया है .रिसर्चरों का मकसद यह पता लगाना था कि कैसे पुष्टिकर तत्व दिमागी कोशाओं (न्युरोंस )को प्रभावित करतें हैं .यही न्युरोंस हमें चौकन्ना बनाए रहतें हैतथा ऊर्जा को ठिकाने लगातें हैं .
एक उत्तेजक स्तिम्युलेंत(Stimulant) होता है ओरेक्सिंन (Orexin) साइंसदानों ने अपने अध्ययन में एग वाईट में मौजूद प्रोटीन जैसा ही एक मिश्र जब ब्रेन सेल्स पर आजमाया तब पता चला वह इस उत्तेजक पदार्थ के उत्पादन को उकसा देता है .जबकि शक्कर (Sugar)इसके स्राव को बाधित करती है .
शोध के अगुवा साइंसदान डॉ .डेनिस बुर्दाकोव कहतें हैं आपकी कलाकारी इसमें है कैसे आप इन चुनिन्दा कोशिकाओं को चुनिन्दा खाद्यों से अधिकाधिक कारगर बनाएं ट्यून करें इन्हें दुरुस्त रहने के लिए .मान लीजिए आपके सामने नाश्ते में दो विकल्प रखे जातें हैं :
(१)जैम लगे टोस्ट .
(२)एग वाईट से सने टोस्ट .
आपकी बुद्धिमानी यह है आप दूसरा विकल्प चुनें .बेशक दोनों में केलोरीज़ का लोड यकसां हो .प्रोटीन को भांप आपका शरीर प्राप्त केलोरीज़ की ज्यादा से ज्यादा खपत को उकसाएगा .शोधार्थियों ने यह भी पता लगाया है कि अंडे में जिस किस्म का कोलेस्ट्रोल पाया जाता है उससे दिल की बीमारियों का ख़तरा न्यूनतर रहता है . पूर्व में संपन्न शोध से भी ऐसी ही ध्वनी आई थी अपने काम पर अंडा खाके निकलिए .मान्यता के विपरीत यह स्वास्थ्यकर फ़ूड के तहत आयेगा .
सन्दर्भ -सामिग्री :Have eggs to stay alert at work (PTI)./TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW-DELHI,NOV18,2011/P21.

शनिवार, 19 नवंबर 2011

ग्रीन टी बनाम बेड कोलेस्ट्रोल .

ग्रीन टी बनाम बेड कोलेस्ट्रोल .

('Green tea may cut bad cholestrol '),शनिवार १९ नवम्बर ,२०११ .
LDL Cholestrol यानी लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रोल को जहां तक दिल का सवाल है अमित्र -कोलेस्ट्रोल समझा जाता है .दूसरी तरफ हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रोल (HDL Cholestrol ) को दिल सम्मत माना जाता है .व्यायाम करने से पैदल चलने से बुरा कोलेस्ट्रोल अच्छे में तबदील होने लगता है .
समझा जाता है कैप्स्यूल रूप में या फिर चाय के एक प्याले के रूप में ली जाने वाली नियमित ग्रीन टी का सेवन भी बेड कोलेस्ट्रोल को कम करता है .डमी कैप्स्युलों के बरक्स ग्रीन टी LDL Cholestrol को ५-६ पॉइंट्स कम कर देती है .एक ताजातरीन अमरीकी अध्ययन ने यही नतीजे निकाले हैं ..
RAM RAM BHAI !
ram ram bhai


दिल की हिफाज़त में मददगार रहता है लहसुन .
दिल की हिफाज़त में मददगार रहता है लहसुन .
भले लहसुन को तामसिक भोजन के तहत रखा गया है लेकिन इसका तीखा तीक्षण बल्ब कोशाओं की टूट फूट को मुल्तवी रख के आपके हृदय की हिफाज़त करता है .यह कमला उस एक यौगिक का है जो लहसुन के हरेक तीक्षण बल्ब में मौजूद रहता है .गार्लिक उच्च रक्त चाप को भी काबू में रखता है यह सर्व ज्ञात है .
सन्दर्भ -सामिग्री :Study :Garlic helps protect heart /TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,Nov,18 ,2011 ,P-21,New-Delhi Ed.
RAM RAM BHAI!
ram ram bhai

11 मिनिट ले उडती है एक सिगरेट आपकी ज़िन्दगी के .
11 मिनिट ले उडती है एक सिगरेट आपकी ज़िन्दगी के .
स्वास्थ्यकर भोजन और जोगिंग ,नियमित व्यायाम सब जाया हो जाता है यदि आप स्मोक करतें हैं बीडी सिगरेट पीते हैं किसी और बिध तम्बाकू का सेवन करतें हैं .पान मसाला खातें हैं खैनी खातें हैं .विश्वकैंसर दिवस पर कैंसर के माहिर डॉ .वेदान्त काबरा कहतें हैं .:सेहत दुरुस्त रखने का जीवन शैली सुधारने का एक ही तरीका है धूम्रपान छोड़ दिया जाए .
रोजाना तकरीबन ३००० बच्चे धूम्रपान की जद में आजातें हैं अपनी पहली सिगरेट सुलगा लेतें हैं .इसी बीमारी के चलतेइनमे से एक तिहाई अ -समय ही चल बसतें हैं . बीडी पीने लगतें हैं .ज्यादातर लोग किशोरावस्था में ही यह रोग पाल लेतें हैं .
हर आठ सेकिंड में सिगरेट एक का जीवन ले लेती है .कुलमिलाकर पचास लाख लोग हर साल सिगरेट की भेंट चढ़ जातें हैं .
४,८०० रसायन होतें हैं सिगरेट के धुयें में .इनमे ६९ कैंसर पैदा करतें हैं कैंसरकारी कार्सिनोजन होतें हैं .
बीडी में टार की मात्रा सिगरेट से दोगुना तथा सामान्य रेग्युअल्र सिगरेट्स (किंग साइज़ नहीं ,रेग्युअल्र )से सात गुना ज्यादा निकोटिन रहता है .ज़ाहिर है बीडी और भी ज्यादा घातक है सेहत के लिए .
७० साल की उम्र के नीचे सिगरेट जन्य बीमारियों से कालकवलित होने वाले लोगों की तादाद स्तन कैंसर ,एच आई वी एड्स ,दुर्घटनाओं तथा नशीले पदार्थों की लत से मरने वाले लोगों की कुल संख्या से ज्यादा रहती है .
एक अकेली सिगरेट धूम्रपानी की ज़िन्दगी के ११ मिनिट ले उडती है .
तम्बाकू और लंग कैंसर :एक अंतर -सम्बन्ध :सुस्थापित हो चुका है तम्बाकू और लंग कैंसर का रिश्ता .अलावा इसके दिल और रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसिल्स )की बीमारियाँ देती है स्मोकिंग ,श्वसनी शोथ ब्रोंकाइटिस ,दमा ,अन्य अंगों के कैंसर (वास्तव में कैंसर रोगों का एक समूह है हर अंग के कैंसर का रोग निदान जुदा है ,प्रबंधन अलग है ,नतीजा अलग है ),नपुंसकता ,रोगप्रति रक्षा तंत्र के शमन से ताल्लुक रखने वाले रोग (डिप्रेस्ड इम्यून सिस्टम डिजीज )स्मोकिंग की अन्य सौगातें हैं .स्तन पान करवाने वाली तथा गर्भवती महिलायें जो धूम्रपान करतीं हैं उनकी संतानों में बढ़वार सम्बन्धी दोष ,अवमंदित बढ़वार तथा बर्थ दिफेक्ट्स (जन्म सम्बन्धी दोष )सामने आतें हैं .
स्मोकिंग स्टेंस मुक्तावली की आब ले उड़तें हैं ,मुस्कान की मिठास .दुर्गन्ध पूर्ण श्वसन ,बेड ब्रीथ ,जल्दी से थकान का होना ,जख्म का देर से भरना धूम्रपान के अन्य असर हैं .अलावा इसके एक धूम्रपानी घर की बंद चारदीवारी में जब धूम्रपान करता है तब सबका स्वास्थ्य चौपट करता है .सेकेंडरी स्मोक भी उतना ही घातक है जितना प्राइमरी स्मोक .
क्या है लक्षण फेफड़ा कैंसर के ?
दिक्कत यह है इस अ -संक्राम्य ,अ-छूतहा, नॉन इन्फेक -शश बीमारी के लक्षण तब तक प्रकट नहीं होते जब तक बीमारी एक सुनिश्चित आकार नहीं ले लेती .साइज़ेबिल मॉस नहीं ले लेती कैंसर गांठ या ट्यूमर लेकिन यही देरी रोग मुक्ति को दुष्कर दुसाध्य भी बना देती है .
बेहतर है शुरूआती लक्षणों का प्रगटीकरण होते ही जांच के लिए आगे आया जाए .ये शुरूआती लक्षण हो सकतें हैं :
(१)तीन सप्ताह से ज्यादा अवधि तक कफ का बने रहना .बलगम में खून के धब्बे आना .

(२)सांस लेने में किसी भी किस्म की दिक्कत सीने में कैसी भी परेशानी महसूस होना ,सांस लेने में खड़खड़ ,व्हिज़िंग नोइज़ .
(३)आवाज़ का कर्कश ,होर्स हो उठना ,ग्रेटिंग वोईस ,तीन हफ़्तों तक स्वर का यह बदलाव बने रहना .
(४)बिना किसी स्पष्ट वजह के वजन का गिरना .थकान का होना ,बने रहना .
अब सवाल यह है कैसे छोड़ी जाए ये सत्यानाशी बुरी आदत ?
असल बात है दृढ निश्चय ,पक्का इरादा सेहत सचेत होने दिखने का .मन के हारे हार है मन के जीते जीत ,मन जीते जगजीत .परिवार का इस दिशा में सहयोग और दोस्तों का प्रोत्साहन ,प्रोफेशनल हेल्प सभी मददगार सिद्ध होतें हैं .मैं खुद एक एक्स स्मोकर हूँ .मेरे एक दोस्त उस दौर में बराबर मुझे समझाते थे ,कितने फल लाते हो बच्चों को .पांच संतरे पति पत्नी तीन बच्चे बस सबको एक एक और एक दिन में सिगरेट पांच छ :रूपये की फूंक देते हो ,ऊपर से बीडी भी .१९८० का दशक था वह .फॉर स्क्वायर रेग्युअल्र डेढ़ दो रूपये की डिब्बी आ जाती थी .५०१ बीडी का बण्डल रुपया आठ आना या दस आना था .कितना पैसा उड़ा देते हो धुयें में साल भर में ?
एक मर्तबा मेरे फेमिली डॉ ने मेरा मज़ाक उड़ाया था .क्रोनिक ब्रोंकाईतिस से ग्रस्त रहते थे ,डॉ ने पूछा: चलते समय सांस फूलती है हमने कहा नहीं
जल्दी फूलने लगेगी .हमें बुरा लगा .बुरा लगना असर कर गया .सिगरेट एक झटके से एक दिन में ही छूट गई . गुड के सेब अन्य मीठी चीज़ें खाने के बाद खा लेते थे ,फ्रूट्स भी जगह बनाने लगे ड्राई -फ्रूट्स भी .
लेकिन फ्रूट्स जोगिंग सब धुल जाते हैं सिगरेट के धुयें में .शेष रह जाती है गले की खिच -खिच,सीने की भीचन तब जब आप दोबारा इस व्यसन पर लौट आते हैं .
फैसला पक्का होना चाहिए सिगरेट छोड़ने का कम करने से बात नहीं बनती है दीवार को दीमक लगी है तो लगी है .
पूछिए अपने आप से आखिर क्यों पीते हैं आप तम्बाकू जब धुआं आपके जबड़े को पी जाता है .दन्तावली को बे -आबरू कर जाता है .आप दूसरे का परिवेश काटने लगते हैं राह चलते अपनी सिगरेट के धुयें से .सताने लगतें हैं अपनों को ही .
निकोटिन छुड़ाई के लिए क्लिनिक्स हैं उनकी मदद लीजिए .एक्स स्मोकर्स का संग साथ बड़े काम की चीज़ है .

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

दिल की हिफाज़त में मददगार रहता है लहसुन .

दिल की हिफाज़त में मददगार रहता है लहसुन .
भले लहसुन को तामसिक भोजन के तहत रखा गया है लेकिन इसका तीखा तीक्षण बल्ब कोशाओं की टूट फूट को मुल्तवी रख के आपके हृदय की हिफाज़त करता है .यह कमला उस एक यौगिक का है जो लहसुन के हरेक तीक्षण बल्ब में मौजूद रहता है .गार्लिक उच्च रक्त चाप को भी काबू में रखता है यह सर्व ज्ञात है .
सन्दर्भ -सामिग्री :Study :Garlic helps protect heart /TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,Nov,18 ,2011 ,P-21,New-Delhi Ed.
RAM RAM BHAI!
ram ram bhai

शुक्रवार, १८ नवम्बर २०११
11 मिनिट ले उडती है एक सिगरेट आपकी ज़िन्दगी के .
11 मिनिट ले उडती है एक सिगरेट आपकी ज़िन्दगी के .
स्वास्थ्यकर भोजन और जोगिंग ,नियमित व्यायाम सब जाया हो जाता है यदि आप स्मोक करतें हैं बीडी सिगरेट पीते हैं किसी और बिध तम्बाकू का सेवन करतें हैं .पान मसाला खातें हैं खैनी खातें हैं .विश्वकैंसर दिवस पर कैंसर के माहिर डॉ .वेदान्त काबरा कहतें हैं .:सेहत दुरुस्त रखने का जीवन शैली सुधारने का एक ही तरीका है धूम्रपान छोड़ दिया जाए .
रोजाना तकरीबन ३००० बच्चे धूम्रपान की जद में आजातें हैं अपनी पहली सिगरेट सुलगा लेतें हैं .इसी बीमारी के चलतेइनमे से एक तिहाई अ -समय ही चल बसतें हैं . बीडी पीने लगतें हैं .ज्यादातर लोग किशोरावस्था में ही यह रोग पाल लेतें हैं .
हर आठ सेकिंड में सिगरेट एक का जीवन ले लेती है .कुलमिलाकर पचास लाख लोग हर साल सिगरेट की भेंट चढ़ जातें हैं .
४,८०० रसायन होतें हैं सिगरेट के धुयें में .इनमे ६९ कैंसर पैदा करतें हैं कैंसरकारी कार्सिनोजन होतें हैं .
बीडी में टार की मात्रा सिगरेट से दोगुना तथा सामान्य रेग्युअल्र सिगरेट्स (किंग साइज़ नहीं ,रेग्युअल्र )से सात गुना ज्यादा निकोटिन रहता है .ज़ाहिर है बीडी और भी ज्यादा घातक है सेहत के लिए .
७० साल की उम्र के नीचे सिगरेट जन्य बीमारियों से कालकवलित होने वाले लोगों की तादाद स्तन कैंसर ,एच आई वी एड्स ,दुर्घटनाओं तथा नशीले पदार्थों की लत से मरने वाले लोगों की कुल संख्या से ज्यादा रहती है .
एक अकेली सिगरेट धूम्रपानी की ज़िन्दगी के ११ मिनिट ले उडती है .
तम्बाकू और लंग कैंसर :एक अंतर -सम्बन्ध :सुस्थापित हो चुका है तम्बाकू और लंग कैंसर का रिश्ता .अलावा इसके दिल और रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसिल्स )की बीमारियाँ देती है स्मोकिंग ,श्वसनी शोथ ब्रोंकाइटिस ,दमा ,अन्य अंगों के कैंसर (वास्तव में कैंसर रोगों का एक समूह है हर अंग के कैंसर का रोग निदान जुदा है ,प्रबंधन अलग है ,नतीजा अलग है ),नपुंसकता ,रोगप्रति रक्षा तंत्र के शमन से ताल्लुक रखने वाले रोग (डिप्रेस्ड इम्यून सिस्टम डिजीज )स्मोकिंग की अन्य सौगातें हैं .स्तन पान करवाने वाली तथा गर्भवती महिलायें जो धूम्रपान करतीं हैं उनकी संतानों में बढ़वार सम्बन्धी दोष ,अवमंदित बढ़वार तथा बर्थ दिफेक्ट्स (जन्म सम्बन्धी दोष )सामने आतें हैं .
स्मोकिंग स्टेंस मुक्तावली की आब ले उड़तें हैं ,मुस्कान की मिठास .दुर्गन्ध पूर्ण श्वसन ,बेड ब्रीथ ,जल्दी से थकान का होना ,जख्म का देर से भरना धूम्रपान के अन्य असर हैं .अलावा इसके एक धूम्रपानी घर की बंद चारदीवारी में जब धूम्रपान करता है तब सबका स्वास्थ्य चौपट करता है .सेकेंडरी स्मोक भी उतना ही घातक है जितना प्राइमरी स्मोक .
क्या है लक्षण फेफड़ा कैंसर के ?
दिक्कत यह है इस अ -संक्राम्य ,अ-छूतहा, नॉन इन्फेक -शश बीमारी के लक्षण तब तक प्रकट नहीं होते जब तक बीमारी एक सुनिश्चित आकार नहीं ले लेती .साइज़ेबिल मॉस नहीं ले लेती कैंसर गांठ या ट्यूमर लेकिन यही देरी रोग मुक्ति को दुष्कर दुसाध्य भी बना देती है .
बेहतर है शुरूआती लक्षणों का प्रगटीकरण होते ही जांच के लिए आगे आया जाए .ये शुरूआती लक्षण हो सकतें हैं :
(१)तीन सप्ताह से ज्यादा अवधि तक कफ का बने रहना .बलगम में खून के धब्बे आना .

(२)सांस लेने में किसी भी किस्म की दिक्कत सीने में कैसी भी परेशानी महसूस होना ,सांस लेने में खड़खड़ ,व्हिज़िंग नोइज़ .
(३)आवाज़ का कर्कश ,होर्स हो उठना ,ग्रेटिंग वोईस ,तीन हफ़्तों तक स्वर का यह बदलाव बने रहना .
(४)बिना किसी स्पष्ट वजह के वजन का गिरना .थकान का होना ,बने रहना .
अब सवाल यह है कैसे छोड़ी जाए ये सत्यानाशी बुरी आदत ?
असल बात है दृढ निश्चय ,पक्का इरादा सेहत सचेत होने दिखने का .मन के हारे हार है मन के जीते जीत ,मन जीते जगजीत .परिवार का इस दिशा में सहयोग और दोस्तों का प्रोत्साहन ,प्रोफेशनल हेल्प सभी मददगार सिद्ध होतें हैं .मैं खुद एक एक्स स्मोकर हूँ .मेरे एक दोस्त उस दौर में बराबर मुझे समझाते थे ,कितने फल लाते हो बच्चों को .पांच संतरे पति पत्नी तीन बच्चे बस सबको एक एक और एक दिन में सिगरेट पांच छ :रूपये की फूंक देते हो ,ऊपर से बीडी भी .१९८० का दशक था वह .फॉर स्क्वायर रेग्युअल्र डेढ़ दो रूपये की डिब्बी आ जाती थी .५०१ बीडी का बण्डल रुपया आठ आना या दस आना था .कितना पैसा उड़ा देते हो धुयें में साल भर में ?
एक मर्तबा मेरे फेमिली डॉ ने मेरा मज़ाक उड़ाया था .क्रोनिक ब्रोंकाईतिस से ग्रस्त रहते थे ,डॉ ने पूछा: चलते समय सांस फूलती है हमने कहा नहीं
जल्दी फूलने लगेगी .हमें बुरा लगा .बुरा लगना असर कर गया .सिगरेट एक झटके से एक दिन में ही छूट गई . गुड के सेब अन्य मीठी चीज़ें खाने के बाद खा लेते थे ,फ्रूट्स भी जगह बनाने लगे ड्राई -फ्रूट्स भी .
लेकिन फ्रूट्स जोगिंग सब धुल जाते हैं सिगरेट के धुयें में .शेष रह जाती है गले की खिच -खिच,सीने की भीचन तब जब आप दोबारा इस व्यसन पर लौट आते हैं .
फैसला पक्का होना चाहिए सिगरेट छोड़ने का कम करने से बात नहीं बनती है दीवार को दीमक लगी है तो लगी है .
पूछिए अपने आप से आखिर क्यों पीते हैं आप तम्बाकू जब धुआं आपके जबड़े को पी जाता है .दन्तावली को बे -आबरू कर जाता है .आप दूसरे का परिवेश काटने लगते हैं राह चलते अपनी सिगरेट के धुयें से .सताने लगतें हैं अपनों को ही .
निकोटिन छुड़ाई के लिए क्लिनिक्स हैं उनकी मदद लीजिए .एक्स स्मोकर्स का संग साथ बड़े काम की चीज़ है .

11 मिनिट ले उडती है एक सिगरेट आपकी ज़िन्दगी के .

11 मिनिट ले उडती है एक सिगरेट आपकी ज़िन्दगी के .
स्वास्थ्यकर भोजन और जोगिंग ,नियमित व्यायाम सब जाया हो जाता है यदि आप स्मोक करतें हैं बीडी सिगरेट पीते हैं किसी और बिध तम्बाकू का सेवन करतें हैं .पान मसाला खातें हैं खैनी खातें हैं .विश्वकैंसर दिवस पर कैंसर के माहिर डॉ .वेदान्त काबरा कहतें हैं .:सेहत दुरुस्त रखने का जीवन शैली सुधारने का एक ही तरीका है धूम्रपान छोड़ दिया जाए .
रोजाना तकरीबन ३००० बच्चे धूम्रपान की जद में आजातें हैं अपनी पहली सिगरेट सुलगा लेतें हैं .इसी बीमारी के चलतेइनमे से एक तिहाई अ -समय ही चल बसतें हैं . बीडी पीने लगतें हैं .ज्यादातर लोग किशोरावस्था में ही यह रोग पाल लेतें हैं .
हर आठ सेकिंड में सिगरेट एक का जीवन ले लेती है .कुलमिलाकर पचास लाख लोग हर साल सिगरेट की भेंट चढ़ जातें हैं .
४,८०० रसायन होतें हैं सिगरेट के धुयें में .इनमे ६९ कैंसर पैदा करतें हैं कैंसरकारी कार्सिनोजन होतें हैं .
बीडी में टार की मात्रा सिगरेट से दोगुना तथा सामान्य रेग्युअल्र सिगरेट्स (किंग साइज़ नहीं ,रेग्युअल्र )से सात गुना ज्यादा निकोटिन रहता है .ज़ाहिर है बीडी और भी ज्यादा घातक है सेहत के लिए .
७० साल की उम्र के नीचे सिगरेट जन्य बीमारियों से कालकवलित होने वाले लोगों की तादाद स्तन कैंसर ,एच आई वी एड्स ,दुर्घटनाओं तथा नशीले पदार्थों की लत से मरने वाले लोगों की कुल संख्या से ज्यादा रहती है .
एक अकेली सिगरेट धूम्रपानी की ज़िन्दगी के ११ मिनिट ले उडती है .
तम्बाकू और लंग कैंसर :एक अंतर -सम्बन्ध :सुस्थापित हो चुका है तम्बाकू और लंग कैंसर का रिश्ता .अलावा इसके दिल और रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसिल्स )की बीमारियाँ देती है स्मोकिंग ,श्वसनी शोथ ब्रोंकाइटिस ,दमा ,अन्य अंगों के कैंसर (वास्तव में कैंसर रोगों का एक समूह है हर अंग के कैंसर का रोग निदान जुदा है ,प्रबंधन अलग है ,नतीजा अलग है ),नपुंसकता ,रोगप्रति रक्षा तंत्र के शमन से ताल्लुक रखने वाले रोग (डिप्रेस्ड इम्यून सिस्टम डिजीज )स्मोकिंग की अन्य सौगातें हैं .स्तन पान करवाने वाली तथा गर्भवती महिलायें जो धूम्रपान करतीं हैं उनकी संतानों में बढ़वार सम्बन्धी दोष ,अवमंदित बढ़वार तथा बर्थ दिफेक्ट्स (जन्म सम्बन्धी दोष )सामने आतें हैं .
स्मोकिंग स्टेंस मुक्तावली की आब ले उड़तें हैं ,मुस्कान की मिठास .दुर्गन्ध पूर्ण श्वसन ,बेड ब्रीथ ,जल्दी से थकान का होना ,जख्म का देर से भरना धूम्रपान के अन्य असर हैं .अलावा इसके एक धूम्रपानी घर की बंद चारदीवारी में जब धूम्रपान करता है तब सबका स्वास्थ्य चौपट करता है .सेकेंडरी स्मोक भी उतना ही घातक है जितना प्राइमरी स्मोक .
क्या है लक्षण फेफड़ा कैंसर के ?
दिक्कत यह है इस अ -संक्राम्य ,अ-छूतहा, नॉन इन्फेक -शश बीमारी के लक्षण तब तक प्रकट नहीं होते जब तक बीमारी एक सुनिश्चित आकार नहीं ले लेती .साइज़ेबिल मॉस नहीं ले लेती कैंसर गांठ या ट्यूमर लेकिन यही देरी रोग मुक्ति को दुष्कर दुसाध्य भी बना देती है .
बेहतर है शुरूआती लक्षणों का प्रगटीकरण होते ही जांच के लिए आगे आया जाए .ये शुरूआती लक्षण हो सकतें हैं :
(१)तीन सप्ताह से ज्यादा अवधि तक कफ का बने रहना .बलगम में खून के धब्बे आना .

(२)सांस लेने में किसी भी किस्म की दिक्कत सीने में कैसी भी परेशानी महसूस होना ,सांस लेने में खड़खड़ ,व्हिज़िंग नोइज़ .
(३)आवाज़ का कर्कश ,होर्स हो उठना ,ग्रेटिंग वोईस ,तीन हफ़्तों तक स्वर का यह बदलाव बने रहना .
(४)बिना किसी स्पष्ट वजह के वजन का गिरना .थकान का होना ,बने रहना .
अब सवाल यह है कैसे छोड़ी जाए ये सत्यानाशी बुरी आदत ?
असल बात है दृढ निश्चय ,पक्का इरादा सेहत सचेत होने दिखने का .मन के हारे हार है मन के जीते जीत ,मन जीते जगजीत .परिवार का इस दिशा में सहयोग और दोस्तों का प्रोत्साहन ,प्रोफेशनल हेल्प सभी मददगार सिद्ध होतें हैं .मैं खुद एक एक्स स्मोकर हूँ .मेरे एक दोस्त उस दौर में बराबर मुझे समझाते थे ,कितने फल लाते हो बच्चों को .पांच संतरे पति पत्नी तीन बच्चे बस सबको एक एक और एक दिन में सिगरेट पांच छ :रूपये की फूंक देते हो ,ऊपर से बीडी भी .१९८० का दशक था वह .फॉर स्क्वायर रेग्युअल्र डेढ़ दो रूपये की डिब्बी आ जाती थी .५०१ बीडी का बण्डल रुपया आठ आना या दस आना था .कितना पैसा उड़ा देते हो धुयें में साल भर में ?
एक मर्तबा मेरे फेमिली डॉ ने मेरा मज़ाक उड़ाया था .क्रोनिक ब्रोंकाईतिस से ग्रस्त रहते थे ,डॉ ने पूछा: चलते समय सांस फूलती है हमने कहा नहीं
जल्दी फूलने लगेगी .हमें बुरा लगा .बुरा लगना असर कर गया .सिगरेट एक झटके से एक दिन में ही छूट गई . गुड के सेब अन्य मीठी चीज़ें खाने के बाद खा लेते थे ,फ्रूट्स भी जगह बनाने लगे ड्राई -फ्रूट्स भी .
लेकिन फ्रूट्स जोगिंग सब धुल जाते हैं सिगरेट के धुयें में .शेष रह जाती है गले की खिच -खिच,सीने की भीचन तब जब आप दोबारा इस व्यसन पर लौट आते हैं .
फैसला पक्का होना चाहिए सिगरेट छोड़ने का कम करने से बात नहीं बनती है दीवार को दीमक लगी है तो लगी है .
पूछिए अपने आप से आखिर क्यों पीते हैं आप तम्बाकू जब धुआं आपके जबड़े को पी जाता है .दन्तावली को बे -आबरू कर जाता है .आप दूसरे का परिवेश काटने लगते हैं राह चलते अपनी सिगरेट के धुयें से .सताने लगतें हैं अपनों को ही .
निकोटिन छुड़ाई के लिए क्लिनिक्स हैं उनकी मदद लीजिए .एक्स स्मोकर्स का संग साथ बड़े काम की चीज़ है .

गुरुवार, 17 नवंबर 2011

एक मिथ को तोड़ता करिश्माई बेबी .

एक मिथ को तोड़ता करिश्माई बेबी .
( A miracle baby for cancer patient )
Sarah Best ,diagnosed with mouth cancer when she was four months pregnant ,was told she needed to undergo radiotherapy which could risk the health of her unborn baby .Two lead shields were built to encase her bump during radiotherapy sessions every day .Minutes after finishing her last day of treatment ,Best went into labour.
यद्यपि रसायन और विकिरण चिकित्सा के चलते प्रजनन क्षम महिलाओं को गर्भ न धारण करने की हिदायतें दी जातीं हैं लेकिन इन चिकित्साओं के चलते भी एक ३० वर्षीय ब्रितानी महिला ने एक स्वस्थ बेबी को जन्म दिया है .
Sarah Best नाम की यह महिला जब गर्भावस्था की पहली तिमाही पार कर गई तब चौथे माह में जाकर यह रोगनिदान रोग - इल्म हुआ कि बेस्ट मुख कैंसर से ग्रस्त है .
Coventry 's University Hospital के कैंसर शल्य चिकित्सा के माहिरों ने उसका टंगट्यूमर तो हटा दिया लेकिन इल्म हुआ कि कैंसर गांठ लसिका ग्रंथियों(lymph nodes) तक फ़ैल चुकी है .
बेस्ट को साफ़ साफ़ दो टूक लफ्जों में बतलाया गया उसे रेडियो तथा कीमोथिरेपी की ज़रुरत है जो गर्भस्थ शिशु की सेहत को असर ग्रस्त कर सकती है .बेशक चार इंच मोटाई वाली दो लेड शील्ड्स उनके bump को आच्छादित करने के लिए तैयार की गई (विकिरण के खिलाफ यह एक सुरक्षा कवच होता है ).इसके बाद रोजाना तकरीबन २० मिनिट तक उन्हें विकिरण चिकित्सा मुहैया करवाई गई .हर चंद इन सत्रों के दौरान पूरी कोशिश लेड कवचों के ज़रिये गर्भस्थ को विकिरण की बौछार से बचाने की जाती रही .
जनवरी में आरम्भ यह विकिरण चिकित्सा अप्रैल के आखिरी दिनों में २८ अप्रैल को जैसे ही संपन्न हुई अविश्वास्य तौर पर बेस्ट को चंद मिनिटों बाद ही लेबर पैन शुरु हो गया .
तीन घंटे बाद Jack इस दुनिया में सही सलामत आ चुका था .ऐसे ही नहीं कहा गया है :जाको राखे साइयां मार सके न कोय ,होनी तो होके रहे, लाख करे किन कोय . और यह भी :तुलसी भरोसे राम के रहियो खाट पे सोय ,होनी सो होके रहे ,अनहोनी न होय .
हालाकि बेस्ट को टंग सर्जरी के बाद लेबर के दौरान राहत के लिए Gas aur air pain relief भी मुहैया नहीं करवाया जा सका .डेली एक्सप्रेस ने इस खबर को प्रकाशित किया है .
Sarah का मामला चिकित्सा क्षेत्र में विरल था .वह संभवतया गर्भावस्था के दौरान विकिरण और रसायन चिकित्सा लेने वाली विश्व की पहली महिला हैं .
कैंसर चिकित्सा के माहिर Dr Lydia Fresco ऐसा ही मानते हैं .बेस्ट स्वयं एक चिल्ड्रन'स सेंटर में ,नौनिहाल देखरेख केंद्र में अफसर हैं .आपने अपने कैंसर के बारे में जानते ही यही कहा "मैं तबाह हो गई कहीं की न रही ".शुक्रिया उन शल्य कर्मियों का जिन्होनें जबान का ट्यूमर हटा दिया साथ ही यह भी ताड़ लिया कि कैंसर का अंश लसिका नोड्स को भी अपनी चपेट में ले रहा है .
मुझे उम्मीद थी Jake मेरा इलाज़ पूरा होने के एक माह बाद ही इस दुनिया में आयेगा लेकिन वह तो चंद मिनिट बाद ही आहट देने लगा .और मैं लेबर रूम में थी .
सन्दर्भ -सामिग्री :-A miracle baby for cancer patient /TIMES TRENDS /TOI,NOV16 ,2011.

चीज़ बनाम मख्खन सेहत -ए -दिल से जुडा है सवाल .
चीज़ बनाम मख्खन सेहत -ए -दिल से जुडा है सवाल .
(Cheese better than butter for heart health?).
हमारे कार्डियोलोजिस्ट ने हमें हालिया विज़िट में दो टूक बतलाया था .एनीमल प्रोटीन एनीमल फैट ,दूध और दुग्ध उत्पाद ही कोलेस्ट्रोल को बधातें हैं .हमारे ओर्थोपीदिशियंन ने हमें एक अंडा रोज़ लेने के लिए कहा था हृदय रोग के माहिर ने कहा मिलेट फिंगर बाजरा /ज्वार लो केल्शियम की आपूर्ति के लिए अंडा नहीं .हमारा मानना है मख्खन और चीज़ दोनों ही एनीमल प्रोडक्ट हैं .इस मंतव्य के साथ हम आज प्रस्तुत करतें हैं यह रिसर्च रिपोर्ट आप भी पढ़िए :
डेनमार्क के रिसर्चरों के मुताबिक़ चीज़ उतना बुरा भी नहीं है और इसे मख्खन के समकक्ष तो बिलकुल भी रख के न देखा जाए .अमरीकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रीशन में प्रकाशित इनके एक ताज़ा अध्ययन के अनुसार जिन लोगों (सब्जेक्ट्स )को छ :सप्ताह तक रोजाना चीज़ दिया गया ,डेली सर्विंग ऑफ़ चीज़ पर रखा गया उनमे LDL cholestrol (low density lipoprotin cholestrol) बेड कोलेस्ट्रोल समझा जाने वाला कोलेस्ट्रोल ,दिल का दुशमन कोलेस्ट्रोल कमतर पाया गया .बरक्स उस स्थिति के जब उन्हें इतना ही मख्खन देकर भी देखा रख्खा गया .जांच की गई इस अमित्र कोलेस्ट्रोल की .
जब इन तमाम लोगों को सामान्य खुराक पर रखा गया तब भी जिन लोगों को पहले चीज़ पर रखा गया था उनमे एल डी एल का स्तर हायर नहीं मिला .
चीज़ उस समय कोलेस्ट्रोल कम करता प्रतीत होता है जब इसकी तुलना मात्रात्मक रूप से इतना ही फैट लिए मख्खन से की जाती है .तथा जिस खुराक के आप आदि हैं उसके बरक्स भी यह आपके एल डी एल कोलेस्ट्रोल में इजाफा नहीं करता है .
यह विचार व्यक्त किया है कोपेनहेगन विश्वविद्यालय की Julie Hjerpsted तथा उनके सह -शोधार्थियों ने .इस ग्रुप ने तकरीबन ५० लोगों का जायजा लिया .इनमे से हरेक को नियंत्रित खुराक पर रखा गया लेकिन साथ में या तो चीज़ दिया गया या फिर मख्खन .दोनों को ही गाय के दूध से तैयार किया गया था .चीज़ और मख्खन की मात्रा इतनी रखी गई थी जो दिन भर के फैट कन्ज़म्प्शन के १३%के बराबर आती है .खाद्य से पैदा शरीर में आये बदलावों की तुलना हरेक सहभागी के अपने शरीर से ही कि गई थी .नोरमल डाईट से शामिल रहे आये फैट से ज्यादा मात्रा में फैट लेते रहने के बाद भी चीज़ लेने वालों के एल डी एल कोलेस्ट्रोल में वृद्धि दर्ज़ नहीं हुई .
दीगर है की इन्हीं सब्जेक्ट्स को मख्खन देने पर इनके एल ड़ी एल कोलेस्ट्रोल में औसत से ७%की वृद्धि दर्ज़ हुई .
ram ram bhai !
भीड़ को विसर्जित करने के लिए तरंग ऊर्जा (वेव एनर्जी ).
भीड़ को विसर्जित करने के लिए तरंग ऊर्जा (वेव एनर्जी ).
एक अमरीकी निगम ने भीड़ को तितर बितर करने के लिए एक गैर -घातक अस्त्र का निर्माण किया है जिसके तहत भीड़ पर कुछ तरंगों से बौछार करके उसे भगाया जा सकता है .इसे नॉन -लीथल वेपन कहा जा रहा है .बस ये तरंगे शरीर पर जहां भी पड़ती हैं उस भाग की चमड़ी में तब तक जलन होती रहती है जब तक इन तरंगों की बमबारी होती रहती है .इसमें मिलीमीटर लम्बाई की तरंगों की बौछार की जाती है ."सायलेंट गार्जियन "को विकसित किया है एक डिफेन्स एक्युप्मेंट कोंत्रेक्टर "Raytheon"ने अनियंत्रित बेकाबू भीड़ को विसर्जित करने में इसे नायाब नुश्खा बतलाया जा रहा है .
यह चमड़ी को १/६४ इंच तक बींध सकती है लेकिन तरंगों की बौछार रोक देने पर जलन भी काफूर हो जाती है .चमड़ी भी दुरुस्त रहती है बेदाग़ .अलबत्ता जब तक तरंग शरीर पर पड़ती है तीव्र जलन का एहसास बेतहाशा लक्ष्य को वहां से प्रदर्शन स्थल से भाग खड़े होने को विवश कर देता है .
"George Svitak of Raytheon 'sDirected Energy Solutions"का यही कहना है .भारतीय उद्योग जगत ने इस प्राविधि का स्वागत किया है .साफ़ साफ़ मांग की है इस डिवाइस की .यहाँ आये दिन प्रदर्शन होतें हैं पुलिस के साथ अब मंत्री भी प्रदर्शन कारियों के संग जूतम पैजार पर उतर आतें हैं .हमारे जैसी Regressive Democracy के लिए यह बड़ी मुफीद साबित होगी जहां प्रिंस ऑफ़ कोंग्रेस को काले झंडे दिखाना मना है .
हर तरफ एतराज़ होता है ,मैं जहां रौशनी में आता हूँ .

बुधवार, 16 नवंबर 2011

चीज़ बनाम मख्खन सेहत -ए -दिल से जुडा है सवाल .

चीज़ बनाम मख्खन सेहत -ए -दिल से जुडा है सवाल .
(Cheese better than butter for heart health?).
हमारे कार्डियोलोजिस्ट ने हमें हालिया विज़िट में दो टूक बतलाया था .एनीमल प्रोटीन एनीमल फैट ,दूध और दुग्ध उत्पाद ही कोलेस्ट्रोल को बधातें हैं .हमारे ओर्थोपीदिशियंन ने हमें एक अंडा रोज़ लेने के लिए कहा था हृदय रोग के माहिर ने कहा मिलेट फिंगर बाजरा /ज्वार लो केल्शियम की आपूर्ति के लिए अंडा नहीं .हमारा मानना है मख्खन और चीज़ दोनों ही एनीमल प्रोडक्ट हैं .इस मंतव्य के साथ हम आज प्रस्तुत करतें हैं यह रिसर्च रिपोर्ट आप भी पढ़िए :
डेनमार्क के रिसर्चरों के मुताबिक़ चीज़ उतना बुरा भी नहीं है और इसे मख्खन के समकक्ष तो बिलकुल भी रख के न देखा जाए .अमरीकन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल न्यूट्रीशन में प्रकाशित इनके एक ताज़ा अध्ययन के अनुसार जिन लोगों (सब्जेक्ट्स )को छ :सप्ताह तक रोजाना चीज़ दिया गया ,डेली सर्विंग ऑफ़ चीज़ पर रखा गया उनमे LDL cholestrol (low density lipoprotin cholestrol) बेड कोलेस्ट्रोल समझा जाने वाला कोलेस्ट्रोल ,दिल का दुशमन कोलेस्ट्रोल कमतर पाया गया .बरक्स उस स्थिति के जब उन्हें इतना ही मख्खन देकर भी देखा रख्खा गया .जांच की गई इस अमित्र कोलेस्ट्रोल की .
जब इन तमाम लोगों को सामान्य खुराक पर रखा गया तब भी जिन लोगों को पहले चीज़ पर रखा गया था उनमे एल डी एल का स्तर हायर नहीं मिला .
चीज़ उस समय कोलेस्ट्रोल कम करता प्रतीत होता है जब इसकी तुलना मात्रात्मक रूप से इतना ही फैट लिए मख्खन से की जाती है .तथा जिस खुराक के आप आदि हैं उसके बरक्स भी यह आपके एल डी एल कोलेस्ट्रोल में इजाफा नहीं करता है .
यह विचार व्यक्त किया है कोपेनहेगन विश्वविद्यालय की Julie Hjerpsted तथा उनके सह -शोधार्थियों ने .इस ग्रुप ने तकरीबन ५० लोगों का जायजा लिया .इनमे से हरेक को नियंत्रित खुराक पर रखा गया लेकिन साथ में या तो चीज़ दिया गया या फिर मख्खन .दोनों को ही गाय के दूध से तैयार किया गया था .चीज़ और मख्खन की मात्रा इतनी रखी गई थी जो दिन भर के फैट कन्ज़म्प्शन के १३%के बराबर आती है .खाद्य से पैदा शरीर में आये बदलावों की तुलना हरेक सहभागी के अपने शरीर से ही कि गई थी .नोरमल डाईट से शामिल रहे आये फैट से ज्यादा मात्रा में फैट लेते रहने के बाद भी चीज़ लेने वालों के एल डी एल कोलेस्ट्रोल में वृद्धि दर्ज़ नहीं हुई .
दीगर है की इन्हीं सब्जेक्ट्स को मख्खन देने पर इनके एल ड़ी एल कोलेस्ट्रोल में औसत से ७%की वृद्धि दर्ज़ हुई .
ram ram bhai !
भीड़ को विसर्जित करने के लिए तरंग ऊर्जा (वेव एनर्जी ).
भीड़ को विसर्जित करने के लिए तरंग ऊर्जा (वेव एनर्जी ).
एक अमरीकी निगम ने भीड़ को तितर बितर करने के लिए एक गैर -घातक अस्त्र का निर्माण किया है जिसके तहत भीड़ पर कुछ तरंगों से बौछार करके उसे भगाया जा सकता है .इसे नॉन -लीथल वेपन कहा जा रहा है .बस ये तरंगे शरीर पर जहां भी पड़ती हैं उस भाग की चमड़ी में तब तक जलन होती रहती है जब तक इन तरंगों की बमबारी होती रहती है .इसमें मिलीमीटर लम्बाई की तरंगों की बौछार की जाती है ."सायलेंट गार्जियन "को विकसित किया है एक डिफेन्स एक्युप्मेंट कोंत्रेक्टर "Raytheon"ने अनियंत्रित बेकाबू भीड़ को विसर्जित करने में इसे नायाब नुश्खा बतलाया जा रहा है .
यह चमड़ी को १/६४ इंच तक बींध सकती है लेकिन तरंगों की बौछार रोक देने पर जलन भी काफूर हो जाती है .चमड़ी भी दुरुस्त रहती है बेदाग़ .अलबत्ता जब तक तरंग शरीर पर पड़ती है तीव्र जलन का एहसास बेतहाशा लक्ष्य को वहां से प्रदर्शन स्थल से भाग खड़े होने को विवश कर देता है .
"George Svitak of Raytheon 'sDirected Energy Solutions"का यही कहना है .भारतीय उद्योग जगत ने इस प्राविधि का स्वागत किया है .साफ़ साफ़ मांग की है इस डिवाइस की .यहाँ आये दिन प्रदर्शन होतें हैं पुलिस के साथ अब मंत्री भी प्रदर्शन कारियों के संग जूतम पैजार पर उतर आतें हैं .हमारे जैसी Regressive Democracy के लिए यह बड़ी मुफीद साबित होगी जहां प्रिंस ऑफ़ कोंग्रेस को काले झंडे दिखाना मना है .
हर तरफ एतराज़ होता है ,मैं जहां रौशनी में आता हूँ .

भीड़ को विसर्जित करने के लिए तरंग ऊर्जा (वेव एनर्जी ).

भीड़ को विसर्जित करने के लिए तरंग ऊर्जा (वेव एनर्जी ).
एक अमरीकी निगम ने भीड़ को तितर बितर करने के लिए एक गैर -घातक अस्त्र का निर्माण किया है जिसके तहत भीड़ पर कुछ तरंगों से बौछार करके उसे भगाया जा सकता है .इसे नॉन -लीथल वेपन कहा जा रहा है .बस ये तरंगे शरीर पर जहां भी पड़ती हैं उस भाग की चमड़ी में तब तक जलन होती रहती है जब तक इन तरंगों की बमबारी होती रहती है .इसमें मिलीमीटर लम्बाई की तरंगों की बौछार की जाती है ."सायलेंट गार्जियन "को विकसित किया है एक डिफेन्स एक्युप्मेंट कोंत्रेक्टर "Raytheon"ने अनियंत्रित बेकाबू भीड़ को विसर्जित करने में इसे नायाब नुश्खा बतलाया जा रहा है .
यह चमड़ी को १/६४ इंच तक बींध सकती है लेकिन तरंगों की बौछार रोक देने पर जलन भी काफूर हो जाती है .चमड़ी भी दुरुस्त रहती है बेदाग़ .अलबत्ता जब तक तरंग शरीर पर पड़ती है तीव्र जलन का एहसास बेतहाशा लक्ष्य को वहां से प्रदर्शन स्थल से भाग खड़े होने को विवश कर देता है .
"George Svitak of Raytheon 'sDirected Energy Solutions"का यही कहना है .भारतीय उद्योग जगत ने इस प्राविधि का स्वागत किया है .साफ़ साफ़ मांग की है इस डिवाइस की .यहाँ आये दिन प्रदर्शन होतें हैं पुलिस के साथ अब मंत्री भी प्रदर्शन कारियों के संग जूतम पैजार पर उतर आतें हैं .हमारे जैसी Regressive Democracy के लिए यह बड़ी मुफीद साबित होगी जहां प्रिंस ऑफ़ कोंग्रेस को काले झंडे दिखाना मना है .

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

दमे के दौरे को और भी ज्यादा हवा दे सकती हैं कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवाएं .

दमे के दौरे को और भी ज्यादा हवा दे सकती हैं कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवाएं .
एक नए अध्ययन के मुताबिक़ भले कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवाएं दिल की बीमारियों से मुकाबले में मददगार रहतीं हैं लेकिन ये ही दवाएं (स्तेतिंस)दमे के प्रबंधन को दुष्कर ही नहीं बना देतीं हैं भड़का भी देतीं हैं एस्मा एपिसोड्स को ,दमे के दौरों को .
Safa Nsouli और उनकी टीम के अन्य सदस्यों की माने तो जिन्होनें २० ऐसे मरीजों की तुलना जो दमे से ग्रस्त थे तथा कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए स्तेतिंस ले रहे थे इतने ही ऐसे मरीजों से की जो ये दवाएं नहीं ले रहे थे तब पता चला की तीसरे ,छटेऔर और बारहवें महीने में दवा लेने वाले मरीजों में श्व्शनी क्षेत्र की सोजिश के ज्यादा दौरे पड़े बरक्स उनके जो ऐसी दवाएं नहीं ले रहे थे .ये सभी रिसर्चर Danville Asthma and Allergy Clinic ,Calif से सम्बद्ध हैं .
इनकी नींद में खलल भी ज्यादा बार पड़ा .दिन में भी दमे के दौरे अपेक्षाकृत ज्यादा पड़े ,वैसो -डाय लेटर्स ज्यादा काम में लेने पड़े ,रेस्क्यू मेडिकेशन का ज्यादा स्तेमाल करना पड़ा .
सन्दर्भ -सामिग्री :-cholesterol -lowering drugs may worsen asthma /Wellness /THE TRIBUNE ,NEW -DELHI ,NOV 9 ,2011
मंगलवार, १५ नवम्बर २०११
खगोल विदों को मिले आदिम गैस के दो बादल .
खगोल विदों को मिले आदिम गैस के दो बादल .
खगोल विज्ञानियों को गैस के ऐसे दो बादल मिलें हैं जो उनके अनुसार उस महाविस्फोट (बिग बैंग )के फ़ौरन बाद पैदा हुए थे जिससे सृष्टि की उत्पत्ति हुई मानी जाती है .इससे इस अब तक की सबसे ज्यादा स्वीकृत और मान्य बिग बैंग थियरी को पुनर्बल मिला है .
इन आदिम बादलों में सबसे हलके तत्वों में हाइड्रोजन और हीलियम ही मिले हैं जो बिग बैंग की ही सृष्टि थे .समझा जाता है इन ही धूल और गैस के आदिम बादलों के दब खप जाने से कालातर में कई करोड़ साल बाद आदिम सितारे फस्ट स्टार्स सबसे पहली पीढ़ी के सितारे अस्तित्व में आये .इन्हीं से उत्तरोत्तर भारी से और भी ज्यादा भारी तत्व बनते गए .आज हम जानते हैं सितारे ही प्राकृतिक तत्वों की सबसे बड़ी रासायनिक फेक्ट्री हैं .इनमे सभी उन तत्वों का निर्माण हुआ है जिनका पृथ्वी या अन्यत्र वजूद है .
केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ,संता क्रूज़ के ग्रेज्युएट तथा इस अध्ययन के अगुवा मिचेले फुमगाल्ली (Michele Fumagalli) कहतें हैं हमारे तमाम प्रेक्षण प्रारम्भिक यूनिवर्स की संरचना के बहुत करीब से है .
यह एक तरह से उस सिद्धांत की ही पुष्टि है जो प्रागुक्ति करती है कि बिग बैंग के ठीक बाद के शुरूआती क्षणों में हाड्रोजन और हीलियम जैसे अपेक्षाकृत हलके तत्वों का ही निर्माण हुआ था किन्हीं धातुओं मेटल्स का नहीं .हमारे तमाम
प्रेक्षण इस सिद्धांत की ही तरफदारी करतें हैं .
सन्दर्भ -सामिग्री :-Found :Gas formed after the Big Bang /TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI ,NOV!5,2011.

खगोल विदों को मिले आदिम गैस के दो बादल .

खगोल विदों को मिले आदिम गैस के दो बादल .
खगोल विज्ञानियों को गैस के ऐसे दो बादल मिलें हैं जो उनके अनुसार उस महाविस्फोट (बिग बैंग )के फ़ौरन बाद पैदा हुए थे जिससे सृष्टि की उत्पत्ति हुई मानी जाती है .इससे इस अब तक की सबसे ज्यादा स्वीकृत और मान्य बिग बैंग थियरी को पुनर्बल मिला है .
इन आदिम बादलों में सबसे हलके तत्वों में हाइड्रोजन और हीलियम ही मिले हैं जो बिग बैंग की ही सृष्टि थे .समझा जाता है इन ही धूल और गैस के आदिम बादलों के दब खप जाने से कालातर में कई करोड़ साल बाद आदिम सितारे फस्ट स्टार्स सबसे पहली पीढ़ी के सितारे अस्तित्व में आये .इन्हीं से उत्तरोत्तर भारी से और भी ज्यादा भारी तत्व बनते गए .आज हम जानते हैं सितारे ही प्राकृतिक तत्वों की सबसे बड़ी रासायनिक फेक्ट्री हैं .इनमे सभी उन तत्वों का निर्माण हुआ है जिनका पृथ्वी या अन्यत्र वजूद है .
केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ,संता क्रूज़ के ग्रेज्युएट तथा इस अध्ययन के अगुवा मिचेले फुमगाल्ली (Michele Fumagalli) कहतें हैं हमारे तमाम प्रेक्षण प्रारम्भिक यूनिवर्स की संरचना के बहुत करीब से है .
यह एक तरह से उस सिद्धांत की ही पुष्टि है जो प्रागुक्ति करती है कि बिग बैंग के ठीक बाद के शुरूआती क्षणों में हाड्रोजन और हीलियम जैसे अपेक्षाकृत हलके तत्वों का ही निर्माण हुआ था किन्हीं धातुओं मेटल्स का नहीं .हमारे तमाम
प्रेक्षण इस सिद्धांत की ही तरफदारी करतें हैं .
सन्दर्भ -सामिग्री :-Found :Gas formed after the Big Bang /TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI ,NOV!5,2011.

शनिवार, 12 नवंबर 2011

सावधान जी का जंजाल बन सकती है समय पूर्व रजोनिवृत्ती .

सावधान जी का जंजाल बन सकती है समय पूर्व रजोनिवृत्ती .
भारत में रजोनिवृति की औसत उम्र महिलाओं में औसतन ४७ बरस है लेकिन अनेक कारणों से प्रीमेच्योर मीनोपोज़ अब ४० साल से पहले आ रही है .एक तरफ दोषपूर्ण खानदानी विरासत ,खराब जीवन इकाइयां ,तपेदिक जैसे आम रोग दूसरी तरफ ,केमोथिरेपी इतर विकिरण प्रभावन (रेडियेशन एक्सपोज़र ),ऑटोइम्यून डिसऑर्डर्स ,मेडिकल तथा सर्जिकल प्रोसीज़र्स इसकी वजह बन रहें हैं .
चालीस साल की उम्र से पहले का मीनोपोज़ ही समय से पहले आई रजोनिवृत्ती कहलाता है .यकीन मानिए यह अवस्था किशोरावस्था में भी आ सकती है .
दुर्भाग्य यह है कि प्रजनन क्षम महिलाओं की एक बड़ी फीसद तादाद इसकी चपेट में है जो इलाज़ के लिए प्रसूति एवं स्त्री -रोगों के माहिरों के पास नहीं पहुँच रही है .नजर अंदाज़ किए है इस स्थिति को जब कि इसका बाकायदा इलाज़ उपलब्ध है .
गौर तलब है इस स्थिति में तकरीबन तकरीबन अंडाशय दोनों ही (ओवरीज़ )स्त्री होरमोन इस्ट्रोजन बनाना स्थगित कर देते हैं .इस्ट्रोजन का स्तर एक दम से नतीज़न गिर जाता है .इस होरमोन का कमतर स्तर औरत की सेहत को कई तरह से असर ग्रस्त करने लगता है .एक तरफ अश्थी क्षय (ओस्टियोपोरोसिस )का जोखिम बढ़ने लगता है दूसरी तरफ दिल की बीमारियों के खतरे का वजन .
बड़ी आंत (कोलोन )तथा मसूढ़ो की बीमारियों (पेरियोदोंतल डिजीज )का जोखिम सिर उठाने लगता है .ड्राई आईज ,दांतों का छीजना (टूथ लोस ),सफ़ेद मोतिया होने लगता है .
Mood swings और Hot flashes के अलावा भावात्मक संवेगात्मक समस्याएँ भी कई महिलाओं के सामने आती हैं .
सामान्य मीनोपोज़ जैसे ही लक्षण होतें हैं प्री -मेच्युओर मीनोपोज़ के :
मासिक के दौरान बहुत ज्यादा या फिर बहुत कम रक्तस्राव का होना ,शरीर के विशेषकर ऊपरी हिस्से में एक दम से बेहद की गर्माहट महसूस होना (होट फ्लेशिज़ ),मासिक चक्र का अनियमित हो जाना .कभी आना कभी कई माह तक न आना .
योनी में सूखापन महसूस होना ,योनी का लोच खोकर छीजना थिन पड़ते जाना ,bladder irritability and worsening of the loss of bladder कंटोल .(इन्कोन्तिनेंस )असंयम ,मल त्याग के वक्त ऐंठन और मल त्याग पर control न रख पाना ,चमड़ी ,आँखों और मुंह का Dry रहना .,नींद न आना ,अवसाद ,irritability mood swings ,सेक्स में अरुचि आदि आम लक्षण है इस स्थिति के .
अलावा इसके जिन महिलाओं को अर्ली मीनोपोज़ का सामना करना पड़ता है उनमे आत्मविश्वास की कमी ,अवसाद में जाने का जोखिम ,जीवन की गुणवत्ता में कमी ,negative body image का सामना करना पड़ता है .
देश के राज्यों में Andhra pradesh की महिलाओं में इसका pratishat sarvaadhik 31.4 %,के baad Bihar का nambar aataa है jahaan 21.7%feesad महिलाएं प्रिमेच्युओर मीनोपोज़ झेल रहीं हैं jabkee Karnatak के लिए यह स्थिति bas zaraa सा कम २०.२ %महिलाओं के लिए बनी हुई है .
kerala की स्थिति 11.6% पर थोड़ी सी ठीक कही जायेगी .West Bangal और Rajasthaan के लिए यह स्थिति १२.८ तथा १३.१ %महिलाएं झेल रहीं हैं .कुल मिलाकर शहरी क्षेत्रों में १६.१%तथा ग्रामीण में थोड़ा सा इससे ज्यादा १८.३% महिलाएं समय पूर्व रजोनिवृत्ती का सामना कर रहीं हैं .तकरीबन २०%अपढ़ तथा ११.१ %महिलाएं प्रिमेच्युओर मीनोपोज़ की चपेट में हैं .
गरीब महिलाएं इस स्थिति से ज्यादा जूझ रहीं हैं खाते पीते घर की महिलाओं के बरक्स .
चंडीगढ़ में संपन्न एक हालिया अध्ययन में भी इसकी दर १८%पाई गई है .संयुक्त परिवारों का बिखरना औरत के ऊपर आर्थिक स्वतंत्रता का बढ़ता दवाब और परिवार में उससे बढती हुईनित नै अपेक्षाएं उसे भौतिक मानसिक और संवेगात्मक दवाब तले रौंद रहीं हैं .दिल्ली की एक मशहूर prasuti विद का यही मानना है .
अलावा इसके उचित पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा का अभाव औरतों के हारमोन संतुलन को बिगाड़ रहा है .नतीजा है प्रिमेच्युओर मीनोपोज़ .
दुर्भाग्य यह भी है जब तक औरत को अश्थी भंग (Bone Fracture) )का सामना न करना पड़ जाए अश्थी क्षय (ओस्टोपोरोसिस)की तरफ परिवार में किसी का ध्यान ही नहीं जाता है .इसलिए ज़रूरी है महिलायें अपने पारिवारिक चिकित्सक से संपर्क बराबर बनाए रहें .अपनी मेडिकल कंडीशन की अनदेखी न करें .
इलाज़ और समाधान क्या है इस स्थिति से उबरने के लिए ?
(१)मनोवैज्ञानिक सलाह मशविरा (Psychological कोउन्सेल्लिंग ) इस स्थिति में विशेष असरकारी सिद्ध होती है .support ग्रुप से संपर्क भी लाभदायक सिद्ध हुआ है .
(२)हारमोन पुनर्स्थापन एक स्वीकृत चिकित्सा मानी गई है .(Hormone replacement Therappy,)HRT के बेशक इस आयु वर्ग के लिए जोखिम भी सामने आयें हैं जल्दी मीनोपोज़ होना खुद भी तो एक जोखिम है .जितनी जल्दी जितनी कम उम्र में रजोनिवृत्ती आ धमकती है और harmone पुनर्स्थापन चिकित्सा फ़ौरन शुरु होकर दीर्घावधि चलती है उसी के अनुरूप जोखिम (पार्श्व प्रभाव )भी 60 साल की उम्र तक रहता ही है .
सर्जिकल कारणों से जिन महिलाओं को जल्दी रजोनिवृत्ती का सामना करना पड़ता है उनके Vasomotor symptoms को काबू में रखने के लिए इस्ट्रोजन की ज्यादा खुराक लेनी पड़ती है .
वैकल्पिक चिकित्सा के माहिर इस स्थिति से निजात के लिए आयुर्वेद के अलावा पुष्प चिकित्सा (flower remedies),aromatherapy(गंध चिकित्सा )की भी वकालत करते हैं .योग तो इन दिनों रामबाण है ही .

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

क्या जन्नत से आते हैं आतंकवादी ?

क्या जन्नत से आते हैं आतंकवादी ?
क्या जन्नत से आतें हैं आतंकवादी या फिर जेहन्नुम से या फिर किसी और गृह से आने वाले भौमेतर प्राणि होतें हैं आतंकवादी ?पाकिस्तानी के अंदरूनी मामलों के गृहमंत्री रहमान मालिक साहब एक सांस में अजमल आमिर कसाब को आतंकवादी और नान स्टेट एक्टर निजामेटर इंसान गैर सरकारी आदमी बतलाते हुए भारत सरकार से उसे फांसी देने की पेशकश करतें हैं तो दूसरी ही सांस में उसके उस्ताद दहशत गर्दों के सरगना ज़मातुद दावा तथा लश्कर के कर्ता धर्ता को आरोप मुक्त करदेतें हैं यह कहते हुए कि उनके खिलाफ सूचना है सबूत नहीं .
प्रत्युत्तर में हमारे काबिल प्रधान मंत्री जी पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री ज़नाब युसूफ रजा गिलानी साहब को "मेन ऑफ़ पीस " शान्ति का मसीहा बतला रहें हैं .यही गिलानी साहब मुंबई हमलों के दौर में भी प्रधान मंत्री थे .और यह सब उस दौर में हो रहा है जब सीमा पार से आतंकी घुसपैंठ उठान पर है .क्यों नहीं मनमोहन जी गिलानी साहब के लिए नोबेल पीस प्राइज़ दिलावाने की पेशकश आलमी बिरादरी को नहीं कर देते ?
ram ram bhai !
मुखबिर है यह स्वामी .
सरकारी गवाह सरकारी आदमी ,मुखबिर है यह स्वामी जो इन दिनों बिग बोस के मंच से संसद और सांसदों का अपमान कर रहा है .यही काम जब कोई विपक्षी करता है तो पहले कपिल सिब्बल बोलतें हैं ,गृह मंत्री बोलतें हैं .अवमानना का नोटिस ज़ारी होजाता है किरण बेदी के खिलाफ ,ॐ पूरी साहब के खिलाफ लेकिन यह सरकारी आदमी संसद की खुली अवमानना अपनी छवि मार्जन के लिए कर रहा है .सरकार का इसे मूक समर्थन प्राप्त .
ram ram bhai !
ram ram bhai

भारती :हिमानी महाद्वीप अन्टार्कटिका में भारत की अभिनव दखल.
भारत ने अन्टार्कटिका महाद्वीप में अपना तीसरा स्थाई केंद्र खोल दिया है .इसी के साथ पृथ्वी के इस धुर दक्षिणी सिरे के साथ भारत कातकरीबन तीस दशक पहले बना रिश्ता एक बार फिर से ताज़ा हो गया है .अब से कोई अठ्ठाईस बरस पहले भारत ने अपना पहला मुकम्मिल केंद्र यहाँ स्थापित किया था जिसे दक्षिणी गंगोत्री कहा गया था .१९८३ से अब तक का सफ़र एक यादगार सफ़र रहा है जब यहाँ पहला रिसर्च स्टेशन खोला था भारतीय साइंसदानों ने .जलवायु में होने वाले संभावित बदलाव हो या मौसम का बदलता मिजाज़ ,बात प्रदूषण के अध्ययन की हो या मौसम विज्ञान की या फिर महाद्वीपों के उद्भव और विकास की साइंसदानों की मह्त्वकान्शाएं नए क्षितिज तलाशती रहीं हैं .शोध की खिड़की से छनकर कुछ न कुछ नया आता रहा है .
समय के साथ हिम की मोटी होती चादर एक पूरा संग्रहालय होती है जिसमे जमा रहतें हैं सारे दस्तावेज़ सारा रिकार्ड ,हमारे वायुमंडल में दखल देती तमाम गैसों ,हवा के संग उड़कर आती धूल का कच्चा चिठ्ठा सारा इतिहास ,ज्वालामुखियों से निसृत राख ,यहाँ तक की रेडियोधर्मिता .परमाणु विस्फोटों के अवशेष वगैरा .पुराना रिकोर्ड संजोये हैं यह भण्डार गृह कुदरत के दिए संग्रहालय .यह कुदरती डाटाबेंक साइंसदानों को समय के साथ पैदा दीर्घावधि बदलावों को बूझने की समझ देता है .अन्वेषण के नए दरीचे खोलता है .पूरबी अन्टार्कटिका की इन हिम चादरों को गहरे पैठ कर खंगाला है भारतीय साइंसदानों ने .यहाँ से उठाए गए नमूनों की अग्रणी प्रयोगशालाओं में जांचपड़ताल की गई है .
भारतीय साइंसदानों द्वारा किए गए अन्टार्कटिका के इन अन्वेषणों को नेतृत्व प्रदान कर रहा है -NCAOR(The National Centre for Antarctic and Ocean Research ).भारतीय साइंसदानों द्वारा संपन्न अभिनव शोध को आलमी स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई है . साइंसदानों के कदम अब भूगर्भीय संरचनाओं प्लेट टेक्टोनिकी (Geological structures and Tectonics) के अन्वेषण की और बढ़ चले हैं .
भारत का तेज़ी से विकसित होता तीसरा स्टेशन"भारती " इन प्रयासों को नै ऊर्जा देगा .
गौर तलब है भारत का पहला अन्तरिक्ष केंद्र "दक्षिण गंगोत्री "हिम चादरों के नीचे जा चुका है .और अब एक ही स्थाई अन्वेषण केंद्र वहां काम कर रहा है .भारती से NCAOR नै आंच देगा . नया शोध स्टेशन "भारती" मौजूदा "मैत्रीस्टेशन "से बेशक ३००० किलोमीटर की दूरी पर विकसित हो रहा है .इससे शोध कार्य को व्यापक स्तर पर आगे बढ़ाया जा सकेगा इस क्षेत्र के एक बड़े हिस्से की आज़माइश हो सकेगी .हिमानी महाद्वीप भारतीय कोशिशों को एक नै परवाज़ देगा .साइंसदानों की मेहनत रंग लाएगी .
सन्दर्भ -सामिग्री :Antarctica ambitions New horizons for Indian scientists(Editorial.The Tribune ,New -Delhi,Wednesday,November 9,2011).P8.
RAM RAM BHAI !
विश्वव्यापी तापन के लिए कुसूरवार ग्लोबल वार्मिंग गैसों में वर्ष २०१० में सर्वाधिक वृद्धि .
कार्बनडायऑक्साइड गैसों के उत्सर्जन से ताल्लुक रखने वाले उन तमाम आंकड़ों के अनुसार जो अमरीकी ऊर्जा विभाग ने जुटाए हैं वर्ष २०१० के दरमियान अब तक की सर्वाधिक बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है .
Carbon Dioxide Information Analysis Centre Environmental Sciences Division के निदेशक Tom Boden कहतें हैं :यह बेतहाशा वृद्धि है आप Oak Ridge National Laboratory in Tennessee के ऊर्जा विभाग से सम्बद्ध हैं .
"उद्योगिक क्रान्ति से पहले वर्ष 1751 तक के तमाम आंकड़े हमारे पास मौजूद हैं लेकिन २०१० से पूर्व महज़ एक वर्ष में ५००मिलियन मीट्रिक टन की अप्रत्याशित वृद्धि इससे पहले कभी दर्ज़ नहीं हुई है ."आपने अशोशियेतिद प्रेस को यही बतलाया है .
२००९-२०१० के बीच ५१२ मिलियन मीट्रिक टन की वृद्धि का मतलब दूसरे शब्दों में कार्बनडायऑक्साइड उत्सर्जन में ६%वृद्धि ठहरता है जो इस दरमियान ८.६बिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर ९.१ बिलियन मीट्रिक टन तक पहुँच गया .चीन अमरीका और भारत में जीव अवशेषी ईंधनों खासकर कोयला और गैस के भंडारों के सफाए से यह कार्बनडायऑक्साइड की अपार मात्रा हमारी हवा में दाखिल हुई है .दुनिया के तीन बड़े प्रदूषक बने रहें हैं यह तीनों मुल्क इस बीच .
ज़ाहिर अमरीका विश्वव्यापी मंडी के २००७-२००८ के दौर से तेज़ी से उबरा है उत्सर्जन में यह बेशुमार वृद्धि इसी और इशारा है .कम्पनियों ने २००८ से पहले के उत्पादन स्तर को दोबारा हासिल किया है लोगों की आवाजाही ही फिर से बढ़ी है .
लेकिन इस सब का दुष्प्रभाव पर्यावरण की सेहत पर पड़ा है .जलवायु के ढाँचे को टूटने से बचाने के लिए ऐसे में उत्सर्जन में वांछित कटौती करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा यह आशंका व्यक्त की है ,जॉन अब्राहम साहब ने .आप St. Thomas School of Engineering ,Minnesota में अशोशियेत प्रोफ़ेसर हैं .

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

भारती :हिमानी महाद्वीप अन्टार्कटिका में भारत की अभिनव दखल.

भारत ने अन्टार्कटिका महाद्वीप में अपना तीसरा स्थाई केंद्र खोल दिया है .इसी के साथ पृथ्वी के इस धुर दक्षिणी सिरे के साथ भारत कातकरीबन तीस दशक पहले बना रिश्ता एक बार फिर से ताज़ा हो गया है .अब से कोई अठ्ठाईस बरस पहले भारत ने अपना पहला मुकम्मिल केंद्र यहाँ स्थापित किया था जिसे दक्षिणी गंगोत्री कहा गया था .१९८३ से अब तक का सफ़र एक यादगार सफ़र रहा है जब यहाँ पहला रिसर्च स्टेशन खोला था भारतीय साइंसदानों ने .जलवायु में होने वाले संभावित बदलाव हो या मौसम का बदलता मिजाज़ ,बात प्रदूषण के अध्ययन की हो या मौसम विज्ञान की या फिर महाद्वीपों के उद्भव और विकास की साइंसदानों की मह्त्वकान्शाएं नए क्षितिज तलाशती रहीं हैं .शोध की खिड़की से छनकर कुछ न कुछ नया आता रहा है .
समय के साथ हिम की मोटी होती चादर एक पूरा संग्रहालय होती है जिसमे जमा रहतें हैं सारे दस्तावेज़ सारा रिकार्ड ,हमारे वायुमंडल में दखल देती तमाम गैसों ,हवा के संग उड़कर आती धूल का कच्चा चिठ्ठा सारा इतिहास ,ज्वालामुखियों से निसृत राख ,यहाँ तक की रेडियोधर्मिता .परमाणु विस्फोटों के अवशेष वगैरा .पुराना रिकोर्ड संजोये हैं यह भण्डार गृह कुदरत के दिए संग्रहालय .यह कुदरती डाटाबेंक साइंसदानों को समय के साथ पैदा दीर्घावधि बदलावों को बूझने की समझ देता है .अन्वेषण के नए दरीचे खोलता है .पूरबी अन्टार्कटिका की इन हिम चादरों को गहरे पैठ कर खंगाला है भारतीय साइंसदानों ने .यहाँ से उठाए गए नमूनों की अग्रणी प्रयोगशालाओं में जांचपड़ताल की गई है .
भारतीय साइंसदानों द्वारा किए गए अन्टार्कटिका के इन अन्वेषणों को नेतृत्व प्रदान कर रहा है -NCAOR(The National Centre for Antarctic and Ocean Research ).भारतीय साइंसदानों द्वारा संपन्न अभिनव शोध को आलमी स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई है . साइंसदानों के कदम अब भूगर्भीय संरचनाओं प्लेट टेक्टोनिकी (Geological structures and Tectonics) के अन्वेषण की और बढ़ चले हैं .
भारत का तेज़ी से विकसित होता तीसरा स्टेशन"भारती " इन प्रयासों को नै ऊर्जा देगा .
गौर तलब है भारत का पहला अन्तरिक्ष केंद्र "दक्षिण गंगोत्री "हिम चादरों के नीचे जा चुका है .और अब एक ही स्थाई अन्वेषण केंद्र वहां काम कर रहा है .भारती से NCAOR नै आंच देगा . नया शोध स्टेशन "भारती" मौजूदा "मैत्रीस्टेशन "से बेशक ३००० किलोमीटर की दूरी पर विकसित हो रहा है .इससे शोध कार्य को व्यापक स्तर पर आगे बढ़ाया जा सकेगा इस क्षेत्र के एक बड़े हिस्से की आज़माइश हो सकेगी .हिमानी महाद्वीप भारतीय कोशिशों को एक नै परवाज़ देगा .साइंसदानों की मेहनत रंग लाएगी .
सन्दर्भ -सामिग्री :Antarctica ambitions New horizons for Indian scientists(Editorial.The Tribune ,New -Delhi,Wednesday,November 9,2011).P8.
RAM RAM BHAI !
विश्वव्यापी तापन के लिए कुसूरवार ग्लोबल वार्मिंग गैसों में वर्ष २०१० में सर्वाधिक वृद्धि .
कार्बनडायऑक्साइड गैसों के उत्सर्जन से ताल्लुक रखने वाले उन तमाम आंकड़ों के अनुसार जो अमरीकी ऊर्जा विभाग ने जुटाए हैं वर्ष २०१० के दरमियान अब तक की सर्वाधिक बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है .
Carbon Dioxide Information Analysis Centre Environmental Sciences Division के निदेशक Tom Boden कहतें हैं :यह बेतहाशा वृद्धि है आप Oak Ridge National Laboratory in Tennessee के ऊर्जा विभाग से सम्बद्ध हैं .
"उद्योगिक क्रान्ति से पहले वर्ष 1751 तक के तमाम आंकड़े हमारे पास मौजूद हैं लेकिन २०१० से पूर्व महज़ एक वर्ष में ५००मिलियन मीट्रिक टन की अप्रत्याशित वृद्धि इससे पहले कभी दर्ज़ नहीं हुई है ."आपने अशोशियेतिद प्रेस को यही बतलाया है .
२००९-२०१० के बीच ५१२ मिलियन मीट्रिक टन की वृद्धि का मतलब दूसरे शब्दों में कार्बनडायऑक्साइड उत्सर्जन में ६%वृद्धि ठहरता है जो इस दरमियान ८.६बिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर ९.१ बिलियन मीट्रिक टन तक पहुँच गया .चीन अमरीका और भारत में जीव अवशेषी ईंधनों खासकर कोयला और गैस के भंडारों के सफाए से यह कार्बनडायऑक्साइड की अपार मात्रा हमारी हवा में दाखिल हुई है .दुनिया के तीन बड़े प्रदूषक बने रहें हैं यह तीनों मुल्क इस बीच .
ज़ाहिर अमरीका विश्वव्यापी मंडी के २००७-२००८ के दौर से तेज़ी से उबरा है उत्सर्जन में यह बेशुमार वृद्धि इसी और इशारा है .कम्पनियों ने २००८ से पहले के उत्पादन स्तर को दोबारा हासिल किया है लोगों की आवाजाही ही फिर से बढ़ी है .
लेकिन इस सब का दुष्प्रभाव पर्यावरण की सेहत पर पड़ा है .जलवायु के ढाँचे को टूटने से बचाने के लिए ऐसे में उत्सर्जन में वांछित कटौती करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा यह आशंका व्यक्त की है ,जॉन अब्राहम साहब ने .आप St. Thomas School of Engineering ,Minnesota में अशोशियेत प्रोफ़ेसर हैं .