रविवार, 31 जुलाई 2011

लघु कथा :नफासत .


लघु कथा -"नफासत "

मेरी नफासत क्या और कैसी है यह मुझे आज पता चला .हुआ यूँ मैं दिल्ली हाट और आई एन ऐ मार्किट को जोड़ने वाले पैदल पार पथ से गुजर रहा था .गुजरा कल भी था .रास्ता कल की तरह आज बे -साख्ता गंधाता नहीं घूर रहा था .गुजारा करने लायक था .बुहार दिया गया था .मैं अपनी छड़ी की टेक लिए अपनी ढाल उतर रहा था सबवे की सीढियां . आखिरी पैड़ी(सीढ़ी )से उतरते ही मैंने अनायास थूक दिया .हालाकि मन में कहीं थोड़ा बहुत संकोच भी था ."अरे मैंने तो थूक दिया "सोचते हुए मैं आगे बढ़ा ही था ."वही शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति जो पोलियो ग्रस्त है और एक वेंग मशीन लिए बैठा रहता है दिन भर यह उसका आशियाना है .,मुझे फटकार रहा था -यह थूकने की जगह है ?"बिल्कुल नहीं .भाई साहिब" गलती हो गई ,यहाँ नहीं थूकना चाहिए था ,मैं गलती तस्दीक कर ही रहा था ,उसने कहा कैसे ले देकर हम सफाई करतें हैं .मैंने कहा उस्ताद जी आपने पहचाना नहीं .मैं निकलते बड़ते आप को आदाब करता हूँ .आपकी वेइंगमशीन पर वजन भी करता हूँ ."ताबे दार हैं "-ज़वाब मिला .बड़ा ही खुद्दार है यह आदमी जो अपने पोलियो ग्रस्त मुड़े हुए हाथ से बामुश्किल पैसे गिन कर खीसे के हवाले करता है ।किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता यह वजन तौलने की मशीन ही उसकी आजीविका है .लेकिन आज तो इसने मुझे मेरी औकात ही बतला दी -
मुझे बहुत ज़ोर से एहसास हुआ -मेरी नफासत क्या है ?कैसी है ?कितने ज़हीन हैं हम लोग ?विकलांग यह नहीं मानसिक रूप से मैं हूँ .और हम लोग उस पर दया दृष्टि करते हुए निकल जातें हैं -बेचारा टोंटा है .

वजन भी कम हो सकता है स्तन पान करवाने से ...

६०० केलोरीज़ ले उड़ता माँ से नवजात एक बार में ही स्तन पान के ज़रिये ,इसलिये वजन कम करना है तो बच्चे को स्तनपान करवाइए तब तक जब तक दूध बनता है ।
दादी नानियाँ कहतीं थीं -शिशु को सलीके से आंचल में ढक ढांप छिपाकर स्तन पान करवाओ ताकि किसी की नजर ना लगे ।एक स्वस्थ माँ को एक घडा भर दूध उतरता है ।कालिदास ने नवप्रसूता को पीन्स्तनी कहा है ।
दीर्घावधि अध्धय्यनों से सिद्ध हुआ है -स्तनपान वजन कम करने का बेहतरीन साधन है महज मिथ नहीं है ।
स्तन पान के दौरान माँ की मेटाबोलिक रेट्स (रेट ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ )बढ़ जाती है ।
हर हफ्ता एक पोंड तक वजन कम हो जाता है स्तनपान करवाने वाली माँ का ।
नार्थ केरोलिना विश्व -विद्य्यालय,ग्रीन्सबोरो में पोषण विज्ञान की प्रोफेसर चेरय्ल लव लेडी उक्त तथ्य की पुष्टि करतीं हैं ।
मजेदार बात यह है ये औरतें ना तो किसी प्रकार की डा -इटिंग ही करतीं हैं उल्टे रोजमर्रा की खुराख से ५०० केलोरीज़ फालतू ही लेतीं हैं ताकि पर्याप्त मात्रा में दूध बनता रहे ।
अब सवाल पैदा होता है -क्या स्तनपान वेट लोस को पंख लगा देता है ,तेज़ी से घटता है वजन स्तनपान करवाने से ?
कोई सीधा सपाट ज़वाब नहीं है इस सवाल का .कई बातें हैं जो तय करतीं हैं वजन की घटबढ़ को ।
गतवर्ष ३६००० डेनमार्क की महिलाओं पर एक अध्धय्यन इसी बात की पड़ताल के लिए किया गया ।जिस महिला ने अधिक अवधि तक (०-२ वर्ष के दरमियान )उत्तर्प्रसव(पोस्ट पार्तम) और कम अन्तराल से हर रोज़ स्तन पान करवाया ६ महीने के बाद उनके वजन में ज्यादा कमी दर्ज की गई ।इस के अलावा इस बात को भी मद्दे नजर रखा गया ,क्या गर्भावस्था से पूर्व महिला का वजन आदर्श कद काठी के अनुरूप निर्धारित भार से अधिक था ,गर्भ धारण की तैयारी के दरमियान उसका वजन कितना था ?ये तमाम घटक मिलकर ही अन्तिम निष्कर्ष तक ले जातें हैं ,किसको कितना फायदा हुआ ,किसका कितना वजन कम हुआ ।
कोर्नेल में प्रोफेसर कथ्लीन रासमुस्सेन भी उक्त तथ्य की पुष्टि करतीं हैं ।

कुदरत का नायाब नज़ारा "विंटर लाइन "क्या है ?

सूरज जब शिवालिक की पहाडियों के पीछे रात्रि विश्राम के लिए चला जाता है तब दूनघाटी से कुदरत का एक बेहतरीन नज़ारा (मौसमी अचम्भा )मसूरी की शाम को सैलानियों के लिए अक्टूबर मध्य से दिसम्बर मध्य तक बेहद खूबसूरत बना देता है ।
शाम की यही रंगत स्वीटज़रलेंड से भी देखी जा सकती है .यहाँ भी पश्चिमी क्षितिज रंगों की नुमाइश से सराबोर हो उठता है -पीला ,गहरा लाल ,नारंगी ,चमकीला लाल गुलाबी जामुनी रंग एक साथ मुखरित होतें हैं।
उत्तरांचल की हिल क्वीन मसूरी का माल रोडपर गश्त करता सैलानी शाम होते ही कुदरत के इस अप्रतिम अनचीन्हें नजारे को देखने के लिए सड़कों के किनारे पडी बेंचों पर आ बैठता है ।
हवा की दो विभिन्न तापमान वाली परतों को एक काल्पनिक किरमिजी गहरे लाल रंग की रेखा यहाँ अलगाए रहती है ।अस्ताचल को जाता -
सूरज एक जाली (नकली )क्षितिज के पीछे छिप जाता है ,तब पैदा होती है एक भूरी चमकीली लाल गुलाबी जामुनी रंगों की पट्टी ।
साफ़ तौर पर एक श्याम पट्टी (ब्लेक लाइन ) तब वायुमंडल की भूरी गंदली परत को अस्ताचल को जाते सूरज की गोल्डन ब्राउन और गहरे लाल (क्रिमसन रेड )परत से अलग करती दिखलाई देने लगती है .यही है -विंटर लाइन ।
ऐसा लगता है प्रकृति के किसी दिव्य चितेरे ने कूची - ब्रश संभाल लिया है ।
कुछ विज्ञानी इसे प्रकाश के अपवर्तन (रिफ्रेक्सन )की घटना बतलातें हैं ,जब प्रकाश एक ख़ास कोण पर दो अलग अलग वर्त्नांक वाली परतों में प्रवेश करने पड़ मुड़ जाता है ,विचलित हो जाता है रिजु मार्ग से तब पर्बतीय क्षेत्रों से पश्चिमी क्षितिज की साफ़ घाटी की तरफ़ निहारने पर कुदरत का यह मौसमी नज़ारा दिखलाई देता है ।
अलबत्ता शाम के इस आश्चर्य लोक की सृष्टि स्नो -फाल के दौरान क्यों नहीं होती और केवल सर्दी के दो महीनों में ही क्यों होती है यह अभी अनुमेय ही है ।
संभवतय सर्दी के मौसम में पैदा होने वाला तापमान कंट्रास्ट अस्ताचल को जाते सूरज की अपवर्त्नीय रश्मियों (रिफ्रेक्तिंग रेज़ )के साथ किर्या -प्रतिक्रया (इन्तारेक्त )करता है ।
(दी क्लोजेस्ट मीटियोरोलोजिकल एक्सप्लेनेशन फॉर दिस इवनिंग वंडर विटनेस्ड फ्रॉम मसूरी एंड स्वित्ज़र्लेंद इज देट दी कंट्रास्ट इन दी टेम्प्रेचर ड्यूरिंग विंटर इनतेरेक्ट्स विद दी रिफ्रेक्तिंग रेज़ ऑफ़ दी सेटिंग सन मे बी दी रीज़न फॉर इट्स अक्रेंस ।)

और वक्ष के कुसुम कुञ्ज सुरभित विश्राम भवन ये,

जहां मृत्यु के पथिक ठाहर कर श्रान्ति दूर करतें हैं .





नारि का वक्ष प्रदेश वक्ष स्थल सदैव ही आदमी के आकर्षण और सम्मोहन का केन्द्र बिन्दु रहा है .पोषण का प्राथमिक स्रोत तो यह है ही .शिशु को अभी दान और रोग -प्रति -रक्षण भी देता ही है .संस्स्कृत साहित्य में बारहा -पीनास्तनी लफ्ज़ आया है .नारी जंघा की तुलना केले के चिकने मृसन तने से तथा वक्ष की घडे से की गई है .इधर विज्ञानी अपने तरीके से वक्ष की गोलाइयों और कर्विईअर्नेस को,कंटूर्स बनाए रखने के अभिनव तरीके इजाद करते रहें हैं ।पहले सिलिकोन जेल और अब ब्रेस्टटोकसास (बोटोक्स की सुइयां )।आधा घंटा चाहिए वक्ष स्थल की ढलाई के लिए बस ।लेंग्थी बूब जोब्स से मुक्ति ।अलबत्ता ५०० पांड्स चाहिए वक्ष -प्रदेश को दर्शनीय बनाए रखने के लिए ,कार्वीयर बनाए रखने के लिए ।तो ज़नाब सौन्दर्य भी अब पैसे का खेल है ।पैसा फेंक ,तमाशा देख ।(दी प्रोसीज़र ऑफर्ड बाई "कोस्मेटिक सर्जरी ग्रुप ट्रांसफोर्म क्लिनिक "स्टार्ट्स विद पेशेंट्स हेविंग एनेस्थेटिक क्रीम रब्ब्द इनटू दे -आर ब्रेस्ट्स।दे देन रिसीव १२ इंजेक्शंस ऑफ़ बोटोक्स इन दे -आर पेक्तोरेलिस माइनर चेस्ट मसल । )एक सौन्दर्य प्रशाधन शल्य संस्था "ट्रांसफोर्म क्लिनिक "ने यह तरीका ईजाद किया है जिसके तहत एक लोकल एनस- थे -टिक सुंयाँ लगाने से पहले ,वक्ष स्थल पर लगाया जाता है .इसके बाद एक पेशी "पेक्तोरेलिस माइनर चेस्ट मसल" में बोटोक्स की १२ सुइयां लगाई जाती है ।गोलाइयों और कार्विनेस को बनाए रखने के लिए हर ६ माह के बाद सुइयां बूस्टर डोज़ के बतौर लगाई जाती हैं ।कविवर दिनकर की उर्वशी सहज ही याद आ जाती है -और वक्ष के कुसुम कुञ्ज सुरभित विश्राम भवन यह /जहाँ मृत्यु के पथिक ठहर कर श्रान्ति दूर करतें हैं .और यह भी पंक्तियाँ उर्वशी से ही हैं -सत्य ही रहता नहीं यह ध्यान तुम ,कविता ,कुसुम या कामिनी हो .

शनिवार, 30 जुलाई 2011

कहाँ गया कलावती का "ग्रीन चूल्हा "?

कहाँ गया कलावती का "ग्रीन चूल्हा "?

कोई बीस बरस पहले गैर -परम्परा गत ऊर्जा मंत्रालय ने "धूम्र -रहित चूल्हा "की अवधारणा प्रस्तुत की थी .कहा गया था यह गाँव की कलावातियों को घरेलू पशुधन से निजात दिलाकर उनके सारे दुख -दर्द दूर कर देगा .जलावन लकड़ी ,कोयला और काओ -डंग(उपला ) ही गाँवों में रसोई का प्रधान ईंधन बना रहा है जिसने बांटी हैं दमा और लोवर एंड अपर रिस्पाय्रेत्री ट्रेक्ट इन्फेक्शन की सौगातें ।
विश्व -स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ भारत में हर बरस पाँच लाख कलावातियाँ भारतीय चूल्हे की भेंट चढ़ जाती हैं लेकिन इस मुद्दे को गत दो दशकों से ठंडे बसते में डाला हुआ है ।
उम्मीद की जा सकती है नव गठित "नव एवं पुनर -प्रयोज्य ऊर्जा मंत्रालय "इसकी सुध लेगा .कारबन -उत्सर्जन के २०२० तक के लक्ष्यों को पूरा करने के केन्द्र में "धूम्र -रहित "चूल्हे को रखा जाना चाहिए ,तभी कहा समझा जा सकेगा "कांग्रेस का हाथ वास्तव में आम आदमी के साथ है "फिल वक्त तो यह हाथ उसकी जेब में दिखलाई देता है ।
गाँव की रसोई नौनिहालों और महिलाओं के स्वास्थ्य को ही कमोबेश लीलती है ,बेवक्त बीनाई (आंख की रौशनी )ले उड़ता है गाँव का चूल्हा ।
वजह भारतीय चूल्हे से पैदा प्रदूषण का स्तर न्यूनतम सह्या स्तर से ३० गुना ज्यादा होना है .(स्रोत :विश्व -स्वास्थ्य संगठन ).कार्बन -डायऑक्साइड और मीथेन को कमतर करने का भरोसे मंद ज़रिया बन सकता है "ग्रीन चूल्हा "इसे ना सिर्फ़ स्थानीय स्तर पर तैयार किया जा सकता है ,इसे कायम रखने चालू रखने के लिए ज़रूरी इंतजामात भी स्थानीय स्तर पर किए जा सकतें हैं ।
सूट(अध् जला कार्बन ) और कार्बन -डायऑक्साइड इस दौर में विश्व -व्यापी तापन की एहम वजह बने हुए हैं सर्द -मौसम में शाम के झुर-मुठ में कलावातियाँ घास -फूस हरी टहनियों का स्तेमाल रोटी पकाने के लिए करती देखी जा सकती हैं ।
धान की लम्बी टहनियां भी दाने निकालने के बाद जल्दी से दूसरी फसल लेने के लिए बड़े पैमाने पर जला दी जातीं हैं कई दिनों तक सुलगती है यह आग .राईस हस्क से बाकायदा बिजली बनाई जा सकती है .बिहार के एक कम्युनिकेशन इंजीनीयर ने यह करके दिखाया है .ऐसी एक यूनिट मात्र १० लाख में खड़ी हो जाती है ।
ज़रूरत इस प्रोद्योगिकी को प्रोत्साहित करने की है .हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा ही चोखा ।
फारूख अब्दुल्ला साहिब से अनुरोध है जो नव एवं पुनर -प्रयोज्य ऊर्जा मंत्रालय की कमान संभाले हुए हैं एक बार फ़िर पूरे दम ख़म से बायो -मॉस-कुकिंग स्तोव्स को नवजीवन प्रदान कर ग्रामीण महिलाओं के हाथ मजबूत करें ।इनके मकानात में हवा की आवा- जाही के अनुरूप संशोधन करवाएं ।टेक्नोलोजी ट्रांसफ़रएंड फंडिंग के लिए विश्व -स्वास्थ्य संगठन की क्लीन डिवेलपमेंट मिकेनिज्म से सहयोग लिया जा सकता है ।जहाँ चाह वहाँ राह ।
ग्रीन -चूल्हे के अलावा सौर लाल टेन (सोलर लेंत्रें ),स्थानीय कचरे को ऊर्जा में बदलने की प्रोद्योगिकी को भारतीय गाँवों में विकसित किया जा सकता है ।

औरत हो या मर्द जींस (जीवन खंड /जीवन इकाइयों )में छिपा है शोपिंग स्टाइल का राज़

अकसर शादी शुदा मर्द खासकर शोपिंग के लिए अपनी औरत के संग स्टोरों में घुसने से कतराता है ।वह ख़ुद जब भी किसी शोपिंग माल या स्टोर में प्रवेश करता है झट -पट वह आइटम खरीद कर बाहर आ जाता है जैसे गया ही ना हो ।और औरत ?चयन में खासा वक्त लगाती है ।इसकी वजह जीवन की मूल भूत इकाइयों (जींस )के अलावा प्रागेतिहासिक काल में छिपीं हैं ।जब औरत को ही हंटर गैदरार के रूप में भोजन जुटाना पड़ता था ।
तब औरत का काम छांट छांट कर कंद मूल (एडिबिल प्लांटस और फंगी आदि जुटाना होता था .ज़ाहिर है चयन में ढूंढ निकालने में वक्त लगता था .मर्द हिंसक पशुओं का शिकार करता था .यूँ जाता था और यूँ आता था .हालाकि ६४ फीसद केलोरीज़ उसे ही जुटानी पड़तीं थीं ।
मिशगन यूनिवर्सिटी के डेनियल कृगेर शोपिंग स्टाइल में अन्तर की यह बड़ी वजह बतलातें हैं ।
अब आप कल्पना कीजिये बास्किट भर के सामान आपको लाना है वह भी अलग अलग जगह से (बेशक उसी स्टोर्स से ),कितना वक्त लगेगा आपको /आपकी श्री -मतीजी को ?घूम गया ना आपका भेजा ?
जबकि मर्द के लियें यह लाजिम था "गोश्त जुटा कर वह झट -पट उलटे पाँव लौटे ।
आज भी मर्द के दिमाग में एक ख़ास आइटम ही होता है जब वह "ओल्ड नेवी "या' कोह्ल्स "या फ़िर बेस्ट बाई या फ़िर आईकिया में प्रवेश करता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-शोपिंग स्टाइल्स टाईद टू जींस .


ग्लोबल वार्मिंग की न्यूनतम निर्धारित सीमा का अतिक्रमण करने की कगार पर पहुँच सकतें हैं हम लोग .

हमने अकसर अपने आलेखों में दोहराया है -बड़ा ही नाज़ुक है पृथ्वी का हीटबजट जिसमे ४ सेल्सिअस की घटबढ़ एक छोर पर आइस एज(हिम युग ) , दूसरे पर जलप्रलय ला सकती है ।
क्रोसिंग दी थ्रेश -होल्ड :"जस्ट ४ सेल्सिअस होटर एंड ऐ लिविंग हेल काल्ड अर्थ ".शीर्षक है उस ख़बर का जिसमे हमारेद्वारा बारहा बतलाई गई उक्त बात की पुष्टि हुई है ।
पृथ्वी का तापमान ४ सेल्सिअस बढ़ जाने पर यह ग्रह नरक बन जाएगा .कोई एलियंस (परग्रह वासी ) भी इधर का रूख नहीं करेगा .हालाकि कोपेनहेगन में आयोजित७ -१८ दिसंबर जलवायु परिवर्तन बैठक को लेकर कई माहिर भी हतोत्साहित है ,वहाँ सिवाय लफ्फाजी के ,थूक बिलोने के कुछ होना हवाना नहीं हैं ।
माहिरों के अनुसार पूर्व ओद्योगिक युग की तुलना में तापमानों में ४ सेल्सिअस की वृद्धि होना कोई असंभव घटना नहीं होगी ,ऐसा होने का पूरा पूरा अंदेशा है ।
यदि सच मुच ऐसा हो गया तब क्या कुछ हो सकता है .जानना चाहतें हैं ,दिल थाम के कमर कसके बैठ जाइए .समुन्दरों में जल का स्तर ३.२५ फीट तक बढ़ गया है ,कई तटीय द्वीप डूब गएँ हैं ,जल समाधि ले चुके हैं (कोई मनु नहीं बचा है यह लिखने लिखाने को -हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर /बैठ शिला की शीतल छाँव /एक पुरूष भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह /नीचे जल था ऊपर हिम था /एक तरल था एक सघन /एक तत्व की ही प्रधान- ता, कहो इसे जड़ या चेतन -कामायनी ,जयशंकर प्रसाद )
थाईलेंड ,बांग्ला देश ,वियेतनाम ,इतर डेल्टा -नेशंस के कई करोड़ लोग पर्यावरण रिफ्यूजी बन गए हैं ,बेघर हो गएँ हैं .सुरक्षित अपेक्षया समुद्र तल से ऊंचे स्थानों के लिए कूच हो रहा है .छीना झपटी है अफरा तफरी है ।
ध्रुवीय रीछ (पोलर बेयर) इतिहास शेष रह गए हैं .आलमी औसत तापमानों के बरक्स उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के तापमानों में तीन गुना तक वृद्धि हो चुकी है ।
(ऑस्ट्रेलिया इज रूतिन्ली स्वेप्त बाई वाईट हाट फायर्स ऑफ़ दी काइंड देट क्लेम्ड १७० लाइव्स लास्ट फेब्रारी )।
हिमालयीय हिमनद सूख गए हैं .एशिया का वह शाश्वत जीवन निर्झर कहीं नहीं हैं ।
दक्षिणी एशियाई मानसून आवारा ,हो गया है ,कभी सूखा कभी अतिरिक्त मूसला- धार अति -वर्षंन ।
जीवन की सुरक्षा और गुणवता दोनों खटाई में पड़ गईं हैं .मौसम चक्र टूट गएँ हैं ।
अरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफ़ेसर कार्य रत पामेला म्सल्वी ऐसी ही तस्वीर प्रस्तुत करतें हैं .खालाजी का घर नहीं हैं ४ सेल्सिअस की वृद्धि आलमी तापमानों में ।
२०६० तक ऐसा हो सकता है यह कहना है ब्रितानी मौसम विभाग का जो जलवायु परिवर्तन से सम्बद्ध काम करने वाली एक एहम संस्था है ।
अभूतपूर्व परिदृश्य हमारे बच्चों को आज की युवा भीड़ को देखने को मिलेंगें .२०८० में तीन अरब लोग एक घूँट पानी के लिए छीना झपटी कर रहे होंगें .फसली उत्पाद गिर जायेंगें .कितने लोगों को भूखा सोना पडेगा इसका कोई निश्चय नहीं ।

दुनिया से कूच करते वक्त पर्यावरण को नुकसान क्यों ...

पारसी लोग शव को खुले में रख देतें हैं .एक तरफ़ इसे पक्षी जीमते है तो दूसरी तरफ़ पर्यावरण को कोई क्षति नहीं पहुँचती .जीवन भर हम अपना कार्बन फुटप्रिंट छोड़तें चलतें हैं ,चलते चलते इस नुकसानी से बच सकतें हैं .ह्यूमेन एल्केलाइन हाइड्रोलिसिस को साकार कर रहें हैं "मेथ्युज़ इंटरनेश्नल कोर्पोरेशन.' पिट्सबर्ग ,पेन्सिल्वेनिया आधारित यह निगम ताबूत ,भस्म -बक्शे ,इतर शव सम्बन्धी सामान तैयार करता है ।
सेंटपिट्सबर्ग ,फ्लोरिडा में यह निगम जनवरी २०१० से काम करने लगा है . ।
एल्केलाइन हाइड्रोलिसिस में शव को स्टेन लेस स्टील से बने एक कक्ष में को डुबो दिया जाता है बाकी काम ऊष्मा (हीट),दाब ,सोप और ब्लीच बनाने में प्रयुक्त पोतेसियम-हाइड्रोऑक्साइड पूरी कर देता है ।तमाम ऊतक इस घोल में विलीन हो जातें हैं (घुल जातें हैं ).दो घंटा बाद अवशेष के रूप में बच जातीं है ,अस्थियाँ और एक सिरपी-ब्राउन घोल ,जिसे फ्लश करके बहा दिया जाता है .अस्थियाँ सगे सम्बन्धियों को लौटा दी जातीं हैं ।
इस प्रकार परम्परागत शव दाह के बरक्स इस विधि में (एल्केलाइन हाइड्रोलिसिस में )कार्बन उत्सर्जन में ९० फीसद कमी की जा सकती है ।
आज आदमी कमोबेश "साईं -बोर्ग "बन चुका है जिसमे मशीनी अंग लगे रहतें हैं ,नकली घुटने नकली हिप ,सिल्वर टूथ फिलिंग्स तो अब आम हो ही चलें हैं .सिलिकान इम्प्लान्ट्स का भी चलन है ।नकली वक्ष ही अब यौन आकर्षण का केंद्र है .
एक स्टेनदर्ड क्रेमेशन से वायुमंडल में ४०० किलोग्रेम कारबनडाय -ऑक्साइड शामिल हो जाता है ,इस ग्रीन हाउस गैस के अलावा डाय -आक्सींस तथा मरकरी वेपर भी शव दाह ग्रह से उत्सर्जित होतें हैं ,कारण बनती है सिल्वर टूथ फिलिंग ।
एल्केलाइन हाइड्रोलिसिस शव को ठिकाने लगाने वाली एक रासायनिक प्रकिर्या है जिसे साइंसदान "बायो -क्रेमेशन "(जैव शव दाह )कह रहें हैं ।
जाते जाते अपना कार्बन फुट प्रिंट कम करने की प्रत्याशा में अब अधिकाधिक लोग इसके लिए तैयार हैं ।इस विधि मे चक्रित कबाड़ कार्बोर्ड से बनी शव पेटियां (ताबूत )काम में ली जायेंगी ।एक तिहाई अमरीकी और अपनी आबादी के आधे से ज्यादा कनाडा वासी इसके लिए तैयार हैं ।यह लोग एम्बाल्मिंग (शव संलेपन )के भी ख़िलाफ़ हैं ,जिसमे पर्यावरण -नाशी रसायनों का स्तेमाल शव को सुगन्धित कर संरक्षित करने के लियें किया जाता है ।आख़िर में यह तमाम रसायन भी हमारी मिटटी में रिस आतें हैं ।मिटटी से (काया से )मोह कैसा ?

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

कैसे काम करतें हैं नाईट विज़न गोगिल्स ?

कैसे काम करतें हैं नाईट विज़न गोगिल्स ?

प्रकाश की तीव्रता को दस हज़ार गुना बढ़ा सकने में सक्षम "नाईट विज़न गोगिल्स "परिवेशीय प्रकाश ,आस पास की रौशनी )दूर दराज़ के सितारों ,पड़ोसी चाँद से आती मद्धिम रोशनियों को एकत्र कर एक ट्यूब में ज़मा कर लेतें हैं .यह कोई साधारण ट्यूब ना होकर विशेष तौर पर इसी काम के लिए तैयार की गई है ।
यह विशेष ट्यूबज़मा प्रकाश के ऊर्जा स्तर (एनेर्जी लेवल ) को बढ़ा कर प्रकाश को एक "फास्फोरस स्क्रीन "पर प्रक्षेपित कर किसी भी पिंड से ग्रहण किए गए प्रकाश का आवर्धित प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करवाने में विधाई भूमिका निभाती है वान्दर्बिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के साइंस दानों ने एक अभिनव प्रोद्योगिकी का स्तेमाल करके यह नूतन नाईट विज़न गोगिल्स तैयार किए हैं ।
पूर्व में प्रतिरक्षा सेवाओं के अलावा खोजी मिशंस में इनका स्तेमाल किया जाता रहा है .अब एयर एम्बुलेंस सेवाओं में इनका चलन शुरू होने को है .यात्री विमान सेवाओं के पायलट और इतर स्टाफ को यह गोगिल्स मुहैया करवाए जायेंगें ।
वान्दर्बिल्ट लाइफ फला -इट्स के कुल चार बेसिस में से तीन में इनका चलन शुरू किया जा चुका है .चौथा बे -स २०१० तक प्रशिक्षण पूरा कर लेगा ।
बकौल विल्सन मेथ्युज़ (आर एन ,इ एम् टी ,चीफ फला -इट्स नर्स ,लाइफ -फला ईट बे स ,तेंनेस्सी )जहाँ तक इन गोगिल्स की क्षमता का सवाल है ,इन्हें पहन कर दस मील दूरखड़े किसी व्यक्ति के हाथों में सुलगती सिगरेट की रौशनी देखी जा सकती है ,पेड़ पौधों के पत्तों की बनावट का जायजा लिया जा सकता है ।
अब सीन लेंडिंग के दौरान पायलट ,नर्सें इतर एम्बुलेंस सेवा कर्मी टेडी मेढ़ी पहाड़ियों ,पावर लाइंस ऊंचे नीचे दरख्तों को साफ़ साफ़ देख सकेंगें ।आपात कालीन लेंडिंग के दरमियान खतरें कम हो सकेंगें .इस प्रकार सिविलियन एवियेशन ऑपरेशंस की सुरक्षा को भी अब पुख्ता किया जा सकेगा .

पोर और ऊंगली के जोड़ों को चटकाने पर चाट चट-चट की आवाज़ क्यों आती है ?

एक गाढा (विस्कस) और पार दर्शी तरल हमारे जोड़ों के लियें एक कुदरती स्नेहक (लुब्रिकेंट )के बतौर कामकरता है .इसे स्निवोयल फ्लूइड कहा जाता है .इसी तरल में जब नाइट्रोजन के बुलबुले फूटतें हैं तब चट चट की ध्वनी पैदा होती है ।
ऐसा तब होता है जब हम देर तक काम करने के बाद ,लिखते रहने के बाद या फ़िर आदतन अपने पोर और ऊंगलियों के जोड़ों को खींचतें हैं .वास्तव में ऐसा करते ही इस तरल द्वारा पैदा दाब (फ्लूइड प्रेशर )कम हो जाता है फलस्वरूप इसमे मौजूद गैसें पूरी तरह घुल जातीं हैं (दिज़ोल्व हो जातीं हैं )।
गैसों के घुलने के कारण और इसके साथ साथ ही एक प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिसे केविटेसन कहतें हैं ,इसी की वजह से बुलबले बनते हैं .(फीटल की लिंग जांच के वक्त भी केविटेसन की वजह से बुलबुलों का बनना और फ़िर फटना भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है )।
जोड़ों को खींचने से ऊंगली चटकाने मोड़ने की क्रिया में तरल दाब (सिनोवियल प्रेशर )के कम हो जाने पर बुलबले फट कर चट चट की ध्वनी करतें हैं ।
आपने देखा होगा एक बार ऊंगली चटकाने के बाद दोबारा कुछ अंतराल के बाद ही ऐसा हो सकता है क्योंकि गैस को दोबारा घुलने में २५ -३० मिनिट का वक्त लग जाता है .


कैसे पता लगाया जाता है सितारों का ताप मान ?

आपने निरअभ्र आकाश के नीचे लेटे हुए शुक्ल पक्ष की रातों में अपने बचपन में ज़रूर आकाश को निहारा होगा .हो सकता है सितारे गिनने की कोशिश भी की हो .आपने सितारों को रंग बदलते भी देखा होगा ,कोई सितारा लाल कोई नीला तो हरा भी दिखा होगा .यहाँ रंग सितारे के तापमान का द्योतक होता है ,तापमान की ख़बर देता है .रंग का मतलब सितारे से निकलने वाले प्रकाश की तरंग की लम्बाई भी है ।
लाल रंग का प्रकाश तरंग दीर्घता (वेव लेंग्थ )में सबसे ज्यादा और नीले रंग का न्यूनतम लम्बाई की वेव लिए होता है .इसका मतलब लाल दिखलाई देने वाला सितारा अपेक्षतया कम गर्म तथा नीला सबसे ज्यादा गर्म होता है .गर्मी की मात्रा (तीव्रता )तापमान है .इसका निर्धारण आकलन करने के लिए यूँ हमारे पास "वीन्स-डिस्प्लेसमेंट ला "है .जो हमें बतलाता है :दी प्रोडक्ट ऑफ़ वेव लेंग्थ फॉर मैक्सिमम एमिशन ऑफ़ रेडियेशन फॉर ऐ स्टार एंड दी फोर्थ पावर ऑफ़ इट्स टेम्प्रेचर रीमेंस कोंसटेंट ।इसे यूँ भी कह सकतें हैं : टेम्प्रेचर ऑफ़ ऐ स्टार इज इन्वार्ज्ली प्रोपोर्शनल टू दी फोर्थ पावर ऑफ़ इट्स एब्सोल्यूट टेम्प्रेचर .
ताप -मान के आकलन के लिए इन दिनों प्रकाश विद्युत् प्रकाश मापी फोटेलेक्ट्रिक फोटोमीटर )का स्तेमाल किया जाता है ,जिसमे प्रकाश को अलग अलग कई फिल्टरों से गुजारा जाता है ,तथा इनके पार गई प्रकाश की मात्रा का मापन किया जाता है ।अब प्रकाश की इस तीव्रता (मात्रा )के आधार पर ही तापमान का आकलन स्तान्दर्द स्केल्स पर किया जाता है (यह एक प्रकार का केलिब्रेशन ही होता है ,देट इज कम्पेरिज़न ऑफ़ ऐ अन -नॉन क्वान्तिती विद ऐ नॉन स्तान्दर्द )।

खान पान भी खानदानी और क्षेत्रीय जीवन इकाइयों से ताल्लुक रखता है ?

कहा जाता है हिन्दुस्तान में तीन कोस पर बोली बदल जाती है .हो सकता है बोली के भी खान- दानी जींस एक दिन पता चलें बहरहाल इधर साइंस दानों और शोध कर्ताओं ने बतलाया है आप जिस क्षेत्र विशेष में पैदा होतें हैं वहीं का खान- पान पसंद आता है आप को और यह महज इत्तेफाक नहीं हैं इस प्रवृत्ति का फैसला आपके जींस में छिपा होता है .आप एक विशेष खान पान के प्रति लगाव लिए ही इस दुनिया में आयें हैं ,इसकी वजह आप की आंचलिकता (क्षेत्रीयता )में छिपीं हैं .क्षेत्रीय खान पान के प्रति मौजूद इस जन्म जात रूझान को "टेस्ट दाय्लेक्त "कहा जा रहा है .इस टेस्ट डाय-लेक्त का सम्बन्ध व्यक्ति या फ़िर समुदाय के जन्मस्थान /अंचल से है जो उसकी आनुवंशिक बनावट में छिपा रहता /अभिव्यक्त होता है .हज़ारों हज़ार लोगों की जांच करने पर उक्त तथ्य की पुष्टि हुई है .यही वजह हर व्यक्ति को अपने अंचल का खाना ज्यादा पसंद आता है .बाकी टेस्ट वह बाद को कल्टीवेट करता है .

बुधवार, 27 जुलाई 2011

ग्रीन एनर्जी से हमारा मतलब क्या है ? हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी )की अवधारणा को आत्म सात करने से पहले हमें यह समझना होगा "ऊर्जा स्रोतों के संरक्षण और निर

ग्रीन एनर्जी से हमारा मतलब क्या है ?

हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी )की अवधारणा को आत्म सात करने से पहले हमें यह समझना होगा "ऊर्जा स्रोतों के संरक्षण और निरंतरता "से हमारा क्या आशय है ?आज हम जिन ऊर्जा स्रोतों को बरत रहें हैं कहीं हम उनका बिलकुल सफाया ही ना कर दें ,आइन्दा आने वाली पीढ़ियों के लियें भी कुछ सोचें .यानी किसी भी ऊर्जा स्रोत का "होना " उसकी "इज्नेस "बनी रहे भावी पीढ़ियों के लिए .अलबत्ता ग्रीन एनर्जी एक ब्रोड -स्पेक्ट्रम टर्म है ,व्यापक अर्थ है हरित ऊर्जा का .कायम रहने लायक ऊर्जा स्रोतों को ग्रीन ऊर्जा कहा जा सकता है .पुनर प्रयोज्य ऊर्जा स्रोतों का भी यही अर्थ लगाया समझा जाएगा ."क्लीन डिवेलपमेंट मेकेनिज्म "स्वच्छ ऊर्जा को भी हम ग्रीन एनर्जी कहेंगें .ज़ाहिर है उत्पादन की ऐसी प्रकिर्या हमें चाहिए जो हमारे पर्यावरण को कमसे कम क्षति पहुंचाए .यही कायम रह सकने लायक विकास है .जब हम ही नहीं रहेंगे तो हमारी हवा पानी मिटटी को निरंतर गंधाने वाले ऊर्जा स्रोतों की प्रासंगिकता का मतलब ही क्या रह जाएगा ?इसीलिए "ग्रीन एनर्जी /क्लीन एनर्जी "इस दौर की ज़रूरीयात है ,महज़ लफ्फाजी नहीं है .इस दौर में हम कोयला और जीवाश्म ईंधनों का बला की तेज़ी से सफाया कर रहें हैं ,कल यह स्रोत रहें ना रहें .पर्यावरण तो टूट ही रहा है जलवायु का ढांचा ,मौसम का मिजाज़ डांवां-दोल है .इसे बचाने के लिए "ग्रीन एनर्जी चाहिए ।
जैव ईंधनों (बायो -फ्यूल्स )सौर ऊर्जा पवन ऊर्जा तरंग ऊर्जा ,भू -तापीय एवं ज्वारीय ऊर्जा जिनका स्तेमाल अभी अपनी शैशव अवस्था में हैं ग्रीन एनर्जी के तहत ही आयेंगी ।
ऊर्जा दक्षता में इजाफा करने वाली अभिनव प्रोद्योगिकी को इसी श्रेणी में रखा जाएगा इनमे पहली पीढ़ी की जल और भूतापीय ऊर्जा दूसरी की सौर एवं पवन ऊर्जा तथा तीसरी की "जैव -मात्रा गैसीकरण "यानी बायोमास गैसीफिकेशन सौर -तापीय इसी वर्ग में जगह पाएंगी ।

एल एस डी और एक्सटेसी की तरह घातक है शराब .

एडिक्शन (लत )के माहिर तथा ओटागो विश्व विद्यालय में प्रोफ़ेसर के बतौर कार्य -रत डौग सेल्लमन के मुताबिक़ जहां तक सम्बद्ध खतरों का सवाल है एल्कोहल हेरोइन और जी एच बी की तरह ही खतरनाक है ।
जहां तक भांग (केनाबीज़ ,मारिजुयाना )का सवाल है एल्कोहल जितना ख़तरा इनसे नहीं हैं ।
आधे मामलों में मारपीट (भौतिक और शारीरिक हमला ),यौन हिंसा के पीछे शराब का ही हाथ होता है .एक साल में १००० से ज्यादा लोगों की जान ले लेती है शराब .इनमे आधे से ज्यादा युवा होतें हैं .(भारत के सन्दर्भ में शराब पीकर गाडी चलाने वाले एक साल में कितनी दुर्घटनाएं करतें हैं ,रोड रेज का खुला तमाशा करतें हैं ,इसका जायजा लेना खासा दिलचस्प होगा .यहाँ शराब पीकर गाडी चलाना आम बात है ,फेशनेबिल समझा जाता है ।).
एल एस डी :एन इल्लीगल ड्रग देत मेक्स यु सी थिंग्स एज मोर ब्यूटीफुल स्ट्रेंज फ्राईत्निंग ,आर मेक्स यु सी थिंग्स देत दू नात एग्जिस्ट (हेल्युसिनेशानस )।
ईट इज ए हेल्युसिनोजेनिक ड्रग मेड फ्रॉम लाइसर्जिक एसिड देत वाज़ यूस्ड एक्स्पेरिमेंतली एज ए मेडिसन एंड इज टेकिन एज एन इल्लीगल ड्रग ।

स्तन पान कम करता है मधुमेह और हृद रोगों का ख़तरा .

जो माताएं अपने नवजातों को ज्यादा अवधि तक स्तन पान (ब्रेस्ट फीडिंग )करवातीं हैं उनके लिए आगे चलकर प्रोढा-वस्था मेंजीवन शैली मधुमेह(सेकेंडरी दायाबीतीज़ ) और हृद रोगों का ख़तरा कमतर हो जाता है .एक अध्धय्यन के मुताबिक़ जो महिलायें नवजातों को कमसे कम एक माह तक नियमित स्तन पान करवातीं हैं उनमे प्री -डाय -बिटीज़ का जोखिम घटकर आधा रह जाता है .आगे चलकर यही पूर्व -मधुमेह रोग की स्तिथि पूरे लक्षणों के संग डायबिटीज़ और हृद रोगों की वजह बनती है ।
२०सालों तक ज़ारी रहने वाले इस अध्धय्यन के अनुसार जो महिलायें इस दरमियान पैदा होने वाले अपने नौनिहालों को स्तन पान करवाती रहीं हैं उनमे बोतल से दूध पिलाने वाली महिलाओं के बरक्स खून में घुली चर्बी और शक्कर का स्तर स्वास्थाय्कर स्तरों पर दर्ज किया गया है ।
अध्धय्यन में उन ७०४ महिलाओं पर निगरानी रखी गई जो अपने पहले बच्चे का इंतज़ार कर रहीं थीं .बच्चे के जन्म के दो दशक बाद तक इनमे मेटाबोलिक सिंड्रोम डिवलपमेंट (प्री- डायबिटीज़ कंडीशन) का जायजा लिया जाता रहा ।
इनमें से उन महिलायेंमें जो गर्भावस्था में "जेस्तेश्नल डायबिटीज़ "की लपेट में आ गई थीं उनमे सेकेंडरी डायबिटीज़ प्रोढा -वस्था में होने का ख़तरा ४४ -८६ फीसद के बीच घट गया .यह सब कमाल था "स्तन पान "का .केलिफोर्निया के कैसर पेर्मनेंते केयर ओर्गेनाइज़ेशन की गुन्दरसों के अनुसार अलबत्ता यह बतलाना मुश्किल है (अनुमेय ही है ),किस प्रकार स्तन पान इन खतरों को कम करता है ।
लेकिन आप ने यह भी जोड़ा ,इस लाभ की वजह वेट गेंन में अन्तर फिजिकल एक्टिविटी का अन्तर नहीं रहा है ।

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

सूचना की सुनामी क्या दिमाग पर भारी पड़ रही है ?


सूचना की सुनामी क्या दिमाग पर भारी पड़ रही है ?

एक सेकिंड में २.३ और एक दिन में तकरीबन एक लाख अभिनव शब्दों से पाला पड़ता है हमारे दिमाग का .यूँ चौबीस घंटों के दिन में आदमी ले देकर १२ घंटा ही सक्रिय रहता है .इस दरमियान सूचना की बमबारी हर तरफ़ से होती
है फ़िर चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलेक्त्रोनी ,नेट सर्फिंग हो या कंप्यूटर गेम्स .हमारा दिमाग भले ही एक लाख शब्दों का संसाधन संग्रहण ना कर पाये आँख कान शब्द बाण से बच नही सकते ।
एक अनुमान के अनुसार ३४ गीगा बाइट्स के समतुल्य सूचना हमारे दिमाग को झेलनी पड़ती है .एक हफ्ते में इतनी इत्तला से एक लेपटोप का पेट भर जाएगा ।
केलिफोनिया यूनिवर्सिटी ,सान- डिएगो के साइंस दानों के अनुसार जहाँ १९८० में शब्दों की यह भरमार ४५०० ट्रिलियन थी वहीं २००८ में यह बढ़कर १०,८४५ ट्रिलियन हो गई ।
(ऐ थाउजंद बिलियन इज ऐ ट्रिलियन )।
सूचना संजाल (टेलिविज़न कंप्यूटर ,प्रिंट मीडिया आदि )से रिसती कुल सूचना का यह दायरा २००८ में ३.६ ज़ेता -बाइट्स (वन जेड इ टी टी ऐ -बाइट्स =वन बिलियन गीगा बाइट्स )।
साइंस दानो के मुताबिक़ इस सबका असर हमारे सोचने समझने के ढंग को असरग्रस्त कर सकता है .हो सकता है दिमाग की संरचना अन्दर खाने बदल रही हो ?
एक और विचार रोजर बोहन ने रखा है ,"जहाँ तक सोचने समझने का सवाल है ,ध्यान को टिकाये रखने का सवाल है ,हम शायद इस शब्द बमबारी के चलते गहराई से नहीं सोच पा रहें हैं ,विहंग - अवलोकन कर रहें हैं ,सिंह -अवलोकन नहीं कर पा रहें हैं .थोड़ी देर ही टिकता है कहीं हमारा दिमाग "।
एक मनोरोग विद ईद्वार्ड हल्लोवेल्ल के अनुसार इससे पहले दिमाग को इतनी सूचना संसाधन कभी नहीं करनी पड़ी थी .हमारे सामने एक पूरी पीढ़ी पल्लवित हो रही है ,जिसे कंप्यूटर- शकर कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा .सेल फोन और कंप्यूटर इनकी चर्या से चस्पां हैं ।और अपने ब्लोगिये ?
यह लोग सोचने समझने की ताकत खो रहें हैं ?ऊपरी सतही सूचना तक सिमट के रह गएँ हैं ये तमाम लोग ?
आदमी आदमी से कट गया है .एक और दुनिया उसने बना ली है ,वर्च्युअल -कायनात ?
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में शरीर किर्या -विज्यान (फिजियोलाजी )के प्रोफ़ेसर जॉन स्तें कहतें हैं "सूचना की यह बमबारी यदि यूँ ही ज़ारी रहती है तब दिमाग इवोल्व भी कर सकता है .मेमोर्री असर ग्रस्त हो सकती है .ऐसा तब भी सोचा गया था जब छपाई खाना (प्रिंटिंग प्रेस )अस्तित्व में आई थी .लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था .अब भी नहीं होगा .दिमाग की क्षमता अकूत है .हम कमतर समझ रहें हैं .इसलिए मैं ज़रा भी विचलित नहीं हूँ ।"
कन्तिन्युअस पार्शियल अटेंशन इस दौर की सौगात है क्योंकि लोग बाग़ एक साथ कई काम करतें हैं ,एक तरफ़ नेट सर्फिंग दूसरी तरफ़ बातचीत .आदमी गाड़ी भी चला रहा है तीन फोन काल भी ले रहा है ।
तो क्या दिमाग की ओवर लोडिंग हो रही है ?
"नहीं ऐसा हो ही नहीं सकता इसमें से बहुत सी सूचना ऐसी भी है जिसका संसाधन दिमाग ने पहले भी किया था ."

सोमवार, 25 जुलाई 2011

पार्टनर का शिकायती लहजा एंजाइना के खतरे को बढा सकता है .

पार्टनर का शिकायती लहजा एंजाइना के खतरे के वजन को बढा देता है .

पार्टनर का शिकायती लहज़ा एंजाइना के खतरे को ...

योर पार्टनर्स नेगिंग कैन लीड टू एंजाइना .
आपके पार्टनर का चौबीसों घंटों का शिकायती लहज़ा ,आपके प्रति आलोचनात्मक स्थाई तेवर ,किसी भी काम के लिए दवाब बनाए रहना ,किसी काम के लिए लगाता बार बार कहते फटकारते रहना एंजाइना के खतरे को बढा देता है ।
अपने अध्ययन में कोपेनहैगन विश्वविद्यालय के साइंसदानों ने डेनमार्क के ४५०० लोगों को शरीक किया इसमें औरत और मर्द दोंनो थे ।
अध्ययन कि शुरुआत में (सन २००० )ये तमाम सहभागी ह्रदय रोगों से ग्रस्त नहीं थे .एक वर्ग चालीस साला तथा दूसरा पचास साला लोगों का था .६ सालों तक इन पर निगाह रखी गई .सेहत का जायजा लिया जाता रहा ।
पता चला साथी कि झिडकियां सहते चले आरहे लोगों के लिए एंजाइना के खतरे का वजन चार गुना बढ़ गया है .बच्चों और परिवार के दूसरे सदस्यों के इस्युज़ (झमेलों )ने ऐसे खतरे के वजन क दो गुना बढा दिया था ।
एंजाइना कोरोनरी हार्ट डिजीज की ही एक सौगात है जिसमे हृदय को पूरी रक्तापूर्ति न होकर आंशिक तौर पर ही हो पाती है .नतीजा होता है सीने में दर्द जो अकसर स्टर्नम से उठता है .कई मर्तबा बाजू से होकर ऊंगलियों तक आजाता है .कभी रेडियेट न होकर जबड़े ,कमर ,स्टमक तक ही सीमित (लोकेलाइज़ )रहता है .कुछ को सीने में दवाब तो कुछ को लगता है कहीं धुयें में फंस गएँ हैं ।
मेनी डिस -क्राइबस दी फीलिंग एज सीवीयर टाईट -नेस ,अदर्स से इट मोर रिज़ेम्बिल्स ए डल "एक" ,दी जर्नल ऑफ़ एपी -डेमिया -लाजी एंड कम्युनिटी हेल्थ रिपोर्ट्स कोंसटेंट नेगिंग बाई ए पार्टनर कैन बी ए पोटेंट ट्रिगर फॉर एंजाइना .

रविवार, 24 जुलाई 2011

क्यों सबसे ज्यादा दवाब में जीती है भारतीय औरत .

विकासशील तीसरी दुनिया और विकसित मुल्कों की उपभोक्ता तथा जन संचार से जुडी आदतों का जायजा लेने वाली एक निगम (नील्सैन कम्पनी) ने अपने एक हालिया अध्ययन के हवाले से बतलाया है, दुनियाभर की तमाम महिलाओं में से भारतीय महिलायें सबसे ज्यादा दवाब झेल रहीं हैं .
दी वीमेन ऑफ़ टमारो नाम के इस अधययन में २१ मुल्कों की ६५०० महिलाओं का फरवरी से अप्रेल २०११ तक अध्ययन किया गया .पता चला कामकाजी महिलाओं में से भारत की ८७ %महिलायें तकरीबन तमाम वक्त ही दवाब का सामना करतीं हैं .इन्हें मरने की भी फुर्सत नहीं है .८२ %के पास "मी टाइम "नाम की कोई चीज़ नहीं है कोई फुर्सत के पल अपने लिए नहीं है सुस्ताने ठीक से सांस ले पाने के ,रिलेक्स होने के .
मेक्सिको (७४ %)तथा रूसी महिलायें(६९%) भी दवाब के मामले में इनसे बहुत पीछे नहीं हैं .
दवाबकारी स्थितयों का %कुछ यूं हैं घटते हुए क्रम में -
शीर्ष पर भारतीय महिलायें (८७%),मेक्सिको (७४ %),रूसी (६९%)तथा ब्राज़ील (६७%),स्पेन (६६%),फ्रांस (६५%),दक्षिणी अफ्रीकी (६४%),इटली (६४%),नाईजीरिया (५८%),तुर्की (५६%),यू.के (५५%),यू .एस. .(५३%),जापान ,कनाडा ,ऑस्ट्रेलिया (५२%),चीन (५१%),जर्मनी (४७%),थाईलैंड और दक्षिणी कोरिया (४५%),मलेशिया और स्वीडन (४४%).
न्यूज़ एजेंसी रायटर्स के मुताबिक़ खर्ची के मामले भारतीय महिलायें शीर्ष स्थान बनाए हुएँ हैं यानी डिसपोज़ -एबिल इनकम का बहुलांश(९६%) ये भारतीय महिलायें अपने ऊपरखर्च करतीं हैं पता चला इस प्रयोज्य आय को तीन चौथाई महिलायें अपनी सेहत और सौन्दर्य प्रशाधनों पर खर्च करतीं हैं .जबकि इनमे से ९६ %ने बतलाया वे इस पैसे के कपडे लत्ते खरीदतीं हैं .
कमोबेश सभी विकास शील मुल्कों की महिलायें यह अतिरिक्त आय कपड़ा लता ,सौन्दर्य सामिग्री ,ग्रोसरीज़ तथा अपने बच्चों की शिक्षा पर ही खर्च करती मिलीं .
जबकि विकसित दुनिया की औरतें इस आय का समायोजन छुट्टियों की मौज मस्ती ,बचत और क़र्ज़ से मुक्ति में करती देखीं गईं .
दुनिया भर की औरतें शिक्षा के मामले में लगातार ऊंची सीढियां चढ़ रहीं हैं ,वर्क फ़ोर्स में इनका दखल बढा है और घरेलू आय में योगदान भी .इनके खर्ची की क्षमता में बढ़ोतरी के साथ ही आनुपातिक तौर पर घर के मामलों में फैसले लेने में भी इनकी हिस्सेदारी बढ़ रही है ..
कहा जा सकता है आज की और आने वाले कल की औरत एक सशक्त उपभोक्ता है .बाज़ार की ताकतों और विज्ञापन की दुनिया को इन्हें लक्षित करना होगा इन्हें नजर अंदाज़ किया ही नहीं जा सकता .
नील्सैन कम्पनी के सर्वेक्षण से यह भी उजागर हुआ ,आज औरत एक से ज्यादा रोलों में है उसकी भूमिका बहु -मुखी है इसी अनुपात में उसका तनाव बढ़ता जाए है .
इकोनोमिक टाइम्स की राय में भारत में कम्पनियों और कामकाजी जगह का परिवेश तो प्रोद्योगिकी के संग साथ चलने लगा लेकिन भारतीय सामाज अभी वहीँ खडा है हतप्रभ .ऐसे में परम्परा और आधुनिकता बोध से रिश्ता तनाव औरत को ही झेलना पड़ रहा है .घर बाहर के साथ तालमेल बिठाने में वह सुबह से शाम तक बे -तहाशा भाग रही है ,"मी टाइम" की तलाश में .जो न्यूट्रिनो की तरह पकड़ा नहीं जाए है .
बेशक समय करवट ले रहा है .सर्वे में पता चला विकास शील देश की औरत पहले से कहीं ज्यादा आर्थिक रूप से आज़ादी महसूस कर रही है .शिक्षा और अधुनातन प्रोद्योगिकी तक इनकी बेटियों की पहुँचआर्थिक रूप से आगे चल रहे मुल्कों की बनिस्पत ज्यादा बढ़ रही है .
ज़ाहिर है समय के दवाब तले पिसते हुए भी उसका सशक्तिकरण ज़ारी है घर के आर्थिक बजट नियोजन में उसी का बड़ा हाथ है .अब यह जिम्मेवारी सामाजिक जन संचार माध्यमों की है कैसे वह उसके पर्स में हाथ डाले .उसे खर्च के लिए उकसाए .
सोसल नेट्वर्किंग इंटर नेट ,स्मार्ट फोन के उपभोग में भी औरत मर्द से आगे चल रही है .
ब्लॉग पर भी उसका हस्तक्षेप बढा है .देख सकता है कोई भी ब्लोगिया .
इस औरत से जुड़ने पकड़ने के लिए सोसल मीडिया को ही कोई नै रणनीति तैयार करनी होगी .ब्रांड्स के पीछे भी यही आधुनिका भाग रही है मर्दों से आगे आगे .
बाज़ार की इस सब पे नजर है .
आज भी टेलीविजन विज्ञापन और स्टोर तक पहुँचने का सबसे प्रमुख ज़रिया बना हुआ है .पुराने संचार के तरीके आज भी ज्यादा कारगर सिद्ध हो रहें हैं .
लेकिन आज भी दुनिया के विकसित बाज़ारों की औरत ७० % तथा विकास शील की ८० %मामलों में माउथ टू माउथ संचार और उत्पाद की सुनी सुनाई तारीफ़और सिफारिश पर ज्यादा भरोसा रखे है .
बाज़ार उसे टकटकी लगाए देखे है .
सन्दर्भ -सामिग्री :-Posted by: ,
Filed under: बिज़नस

Smoking in pregnancy linked to serious birth defects


धूम्रपान का रिश्ता तमाम किस्म की सेहत से जुडी समस्याओं मसलन फेफड़ा कैंसर ,हृद रोगों ,दिमागी दौरों (stroke,),बांझपन ,समय पूर्व प्रसव , नवजात का निर्जीव पैदा होना ,जन्म के समय वजन का कम रह जाना तथा आकस्मिक शैया मृत्यु संलक्षण यानी
(stillbirth, low birth weight and SIDS) आदि से रिसर्च जोडती रही है फिर भी यदि आप धूम्रपान ज़ारी रखें हुएँ हैं और -विचलित रहे आयें हैं ,तब हो सकता यह रिपोर्ट आपको थोड़ा विचलित करे आप स्मोकिंग को मुल्तवी रखें अगले जन्म के लिए .
पूर्व संपन्न दर्ज़नों अध्ययनों का ताज़ा पुनर -आकलन धूम्रपान का सम्बन्ध कुछ बेहद गंभीर जन्म पूर्व की विकृतियों से जोड़ता है .इनमे हृद सम्बन्धी विकारों के अलावा हाथ -पैरों का जन्म के समय नदारद मिलने से लेकर ,उदर और आंत( gastrointestinal disorders and facial disorders.)चेहरे मोहरे से जुड़े विकार भी शरीक हैं .
गर्भावस्था में धूम्रपान और जन्म विकार नामी (“Maternal smoking in pregnancy and birth defects,” )इस अध्ययन का ऑन लाइन प्रकाशन विज्ञान प्रपत्रHuman Reproduction Update from the European Society of Human Reproduction and Embryology, ,” ने किया है जो अब तक का सबसे व्यापक अध्ययन है .इस अध्ययन में उन ख़ास विकारों को रेखांकित किया गया है जो धूम्रपान से सीधे -सीधे जुड़तें हैं.इसमें १९५९ -२०१० तक के प्रेक्षण आधारित अध्ययनों के अलावा १०१ शोध पत्रों का भी निचोड़ है .
गर्भावस्था धूम्रपान सम्बन्धी विकारों में ख़ास जगह मिली है -
()हृद विकारों के बढे हुए जोखिम को .
()हाथ पैरों की अविकसित अवस्था या नदार्दगीसे ताल्लुक रखने वाले विकार ( limb reduction defects—Human Reproduction Update from the European Society of Human Reproduction and Embryology, )
()क्लब फुट ( clubfoot).
()होठों और तालू का कटा फटा परस्पर जुड़ा होनातथा नेत्र विकार .(cleft lip or palate
– eye defects).
()उदर ,आंत ,गर्भ -नाल ,किस्म किस्म के हर्निया सम्बन्धी विकार ( gastrointestinal defects like gastroschisis, anal atresia, and umbilical/inguinal/ventral hernias).
पता यह भी चला गर्भ काल के दौरान धूम्रपान करते रहने वाली महिलाओं के शिशुओं में कमसे कम दो या और भी ज्यादा विकारों का डेरा देखनें को मिल सकता है .
बेशक एक हैरत अंगेज़ बात यह भी सामने आई धूम्रपानी महिलाओं में चमड़ी से ताल्लुक रखने वाले चमड़ी को बदरंग बनाने वाले विकार मसलन pigmentation disorders and moles,के खतरे का वजन कम हो जाता है .लेकिन इस अध्ययन का साफ़ लफ़्ज़ों में पल्लू से बाँधने वाला सबक यह है -गर्भ काल में धूम्रपान जच्चा और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक है .
फिर भी २००९ में मुंबई में संपन्न तंबाकू और सेहत से जुडी १४ वीं आलमी बैठक में बतलाया गया दुनिया भर में २५ करोड़ महिलाए रोज़ धूम्र पान करतीं हैं .२० %अमरीकी महिलायें धूम्र पानी हैं .तमाम खतरों से बा -खबर होते हुए भी इनमे से कितनी ही महिलायें गर्भावस्था में भी धूम्र -पान से बाज़ नहीं आतीं .
Reference material: This story was originally published by CNN's partner, Parenting.com.

क्यों सबसे ज्यादा दवाब में जीती है भारतीय औरत ?

विकासशील तीसरी दुनिया और विकसित मुल्कों की उपभोक्ता तथा जन संचार से जुडी आदतों का जायजा लेने वाली एक निगम (नील्सैन कम्पनी) ने अपने एक हालिया अध्ययन के हवाले से बतलाया है, दुनियाभर की तमाम महिलाओं में से भारतीय महिलायें सबसे ज्यादा दवाब झेल रहीं हैं .
दी वीमेन ऑफ़ टमारो नाम के इस अधययन में २१ मुल्कों की ६५०० महिलाओं का फरवरी से अप्रेल २०११ तक अध्ययन किया गया .पता चला कामकाजी महिलाओं में से भारत की ८७ %महिलायें तकरीबन तमाम वक्त ही दवाब का सामना करतीं हैं .इन्हें मरने की भी फुर्सत नहीं है .८२ %के पास "मी टाइम "नाम की कोई चीज़ नहीं है कोई फुर्सत के पल अपने लिए नहीं है सुस्ताने ठीक से सांस ले पाने के ,रिलेक्स होने के .
मेक्सिको (७४ %)तथा रूसी महिलायें(६९%) भी दवाब के मामले में इनसे बहुत पीछे नहीं हैं .
दवाबकारी स्थितयों का %कुछ यूं हैं घटते हुए क्रम में -
शीर्ष पर भारतीय महिलायें (८७%),मेक्सिको (७४ %),रूसी (६९%)तथा ब्राज़ील (६७%),स्पेन (६६%),फ्रांस (६५%),दक्षिणी अफ्रीकी (६४%),इटली (६४%),नाईजीरिया (५८%),तुर्की (५६%),यू.के (५५%),यू .एस. .(५३%),जापान ,कनाडा ,ऑस्ट्रेलिया (५२%),चीन (५१%),जर्मनी (४७%),थाईलैंड और दक्षिणी कोरिया (४५%),मलेशिया और स्वीडन (४४%).
न्यूज़ एजेंसी रायटर्स के मुताबिक़ खर्ची के मामले भारतीय महिलायें शीर्ष स्थान बनाए हुएँ हैं यानी डिसपोज़ -एबिल इनकम का बहुलांश(९६%) ये भारतीय महिलायें अपने ऊपरखर्च करतीं हैं पता चला इस प्रयोज्य आय को तीन चौथाई महिलायें अपनी सेहत और सौन्दर्य प्रशाधनों पर खर्च करतीं हैं .जबकि इनमे से ९६ %ने बतलाया वे इस पैसे के कपडे लत्ते खरीदतीं हैं .
कमोबेश सभी विकास शील मुल्कों की महिलायें यह अतिरिक्त आय कपड़ा लता ,सौन्दर्य सामिग्री ,ग्रोसरीज़ तथा अपने बच्चों की शिक्षा पर ही खर्च करती मिलीं .
जबकि विकसित दुनिया की औरतें इस आय का समायोजन छुट्टियों की मौज मस्ती ,बचत और क़र्ज़ से मुक्ति में करती देखीं गईं .
दुनिया भर की औरतें शिक्षा के मामले में लगातार ऊंची सीढियां चढ़ रहीं हैं ,वर्क फ़ोर्स में इनका दखल बढा है और घरेलू आय में योगदान भी .इनके खर्ची की क्षमता में बढ़ोतरी के साथ ही आनुपातिक तौर पर घर के मामलों में फैसले लेने में भी इनकी हिस्सेदारी बढ़ रही है ..
कहा जा सकता है आज की और आने वाले कल की औरत एक सशक्त उपभोक्ता है .बाज़ार की ताकतों और विज्ञापन की दुनिया को इन्हें लक्षित करना होगा इन्हें नजर अंदाज़ किया ही नहीं जा सकता .
नील्सैन कम्पनी के सर्वेक्षण से यह भी उजागर हुआ ,आज औरत एक से ज्यादा रोलों में है उसकी भूमिका बहु -मुखी है इसी अनुपात में उसका तनाव बढ़ता जाए है .
इकोनोमिक टाइम्स की राय में भारत में कम्पनियों और कामकाजी जगह का परिवेश तो प्रोद्योगिकी के संग साथ चलने लगा लेकिन भारतीय सामाज अभी वहीँ खडा है हतप्रभ .ऐसे में परम्परा और आधुनिकता बोध से रिश्ता तनाव औरत को ही झेलना पड़ रहा है .घर बाहर के साथ तालमेल बिठाने में वह सुबह से शाम तक बे -तहाशा भाग रही है ,"मी टाइम" की तलाश में .जो न्यूट्रिनो की तरह पकड़ा नहीं जाए है .
बेशक समय करवट ले रहा है .सर्वे में पता चला विकास शील देश की औरत पहले से कहीं ज्यादा आर्थिक रूप से आज़ादी महसूस कर रही है .शिक्षा और अधुनातन प्रोद्योगिकी तक इनकी बेटियों की पहुँचआर्थिक रूप से आगे चल रहे मुल्कों की बनिस्पत ज्यादा बढ़ रही है .
ज़ाहिर है समय के दवाब तले पिसते हुए भी उसका सशक्तिकरण ज़ारी है घर के आर्थिक बजट नियोजन में उसी का बड़ा हाथ है .अब यह जिम्मेवारी सामाजिक जन संचार माध्यमों की है कैसे वह उसके पर्स में हाथ डाले .उसे खर्च के लिए उकसाए .
सोसल नेट्वर्किंग इंटर नेट ,स्मार्ट फोन के उपभोग में भी औरत मर्द से आगे चल रही है .
ब्लॉग पर भी उसका हस्तक्षेप बढा है .देख सकता है कोई भी ब्लोगिया .
इस औरत से जुड़ने पकड़ने के लिए सोसल मीडिया को ही कोई नै रणनीति तैयार करनी होगी .ब्रांड्स के पीछे भी यही आधुनिका भाग रही है मर्दों से आगे आगे .
बाज़ार की इस सब पे नजर है .
आज भी टेलीविजन विज्ञापन और स्टोर तक पहुँचने का सबसे प्रमुख ज़रिया बना हुआ है .पुराने संचार के तरीके आज भी ज्यादा कारगर सिद्ध हो रहें हैं .
लेकिन आज भी दुनिया के विकसित बाज़ारों की औरत ७० % तथा विकास शील की ८० %मामलों में माउथ टू माउथ संचार और उत्पाद की सुनी सुनाई तारीफ़और सिफारिश पर ज्यादा भरोसा रखे है .
बाज़ार उसे टकटकी लगाए देखे है .
सन्दर्भ -सामिग्री :-Posted by: ,
Filed under: बिज़नस
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई भाई )
जुलाई २४ ,२०११ ,
१०१३ ,लक्ष्मी बाई नगर ,नै -दिल्ली -२३ .

शनिवार, 23 जुलाई 2011

Why diet sodas are no benefit to dieters ?

व्हाई डाइट सोडाज़ आर नो बेनिफिट टू डाइट -अर्स ?
अमरीकी मधुमेह संघ के विज्ञान सत्र में सद्य प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक़ डाइट ड्रिंक्स के मुगालते में रहने वाले अनजाने ही न सिर्फ अपना वजन बढा सकतें हैं ऐसे तमाम पेय में मौजूद कृत्रिम मिठास सेकेंडरी डाय -बिटीज़(जीवन शैली रोग मधु- मेह)के खतरे का वजन भी बढा देतें हैं ।
अपने एक अध्ययन में स्कूल ऑफ़ मेडिसन (यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सास हेल्थ सेंटर सान अंटोनियो)के रिसर्चरों ने ४७४ उन ओल्डर एडल्ट्स से ताल्लुक रखने वाले तमाम आंकड़े खंगाले जिन्होनें सान अंटोनियो लोंजी -ट्यु -डिनल स्टडी ऑफ़ एजिंग में भाग लिया था .ये डाटा एनरोलमेंट के वक्त ,बाद उसके होने वाली तीन परीक्षाओं में से हरेक परीक्षा के बाद जुटाया गया था ।
अध्ययन में सभी प्रतिभागियों के डाइट सोडा लेने ,हाईट ,वेट और कमर के घेरे का हिसाब किताब रखा गया था .मकसद था डाइट सोडा लेने से बॉडी फेट पर पड़ने वाले प्रभाव का जायजा लेना .क्या समय के साथ डाइट सोडा भी बॉडी फेट में इजाफा कर सकता है ?
पता चला कमर का घेरा सभी प्रति -भागियों का फ़ैल बढ़ गया है .लेकिन इनमें से जो डाइट सोडा लेते रहे थे इनकी वेस्ट लाइन ग्रोथ में ७०%की वृद्धि ९.५साल बाद दर्ज़ की गई बरक्स उनके जो डाइट सोडा नहीं ले रहे थे ।
जो लोग दिन भर में दो ढाई कैन डाइट सोडा की गटक जाते थे ,उनकी वेस्ट लाइन ५००%ज्यादा बढ़ गई बरक्स उनके जो सोडा लेते ही नहीं थे ।
बकौल रिसर्चर्स इस आकलन में प्रतिभागियों के डायबेटिक स्टेटस ,लेज़र टाइम फिजिकल एक्टिविटी तथा एज को भी एडजस्ट किया गया ।
बतलादें आपको -बेली के गिर्द चर्बी का चढना दिलऔर रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसिल्स ) की बीमारियों और मधुमेह के लिए एक ज्ञात जोखिम भरी बात है .रिस्क फेक्टर है कार्डियो -वैस्क्युअलर डिजीज और डाय -बिटीज़ के लिए .
पूर्व में संपन्न एनीमल स्टडीज़ में यह साबित हुआ था कृत्रिम मिठास की आदत ज्यादा खाने वजन बढाने की ओर ले जाती है .शरीर को भी बान पड़ जाती है ज्यादा चर्बी जमा करते रहने की .
आप जानतें हैं हमारा दिमाग मिठास मीठी चीज़ों का रिश्ता ज्यादा केलोरीज़ वाले खाद्य से जोड़े रहता है .ऐसे में कृत्रिम मिठास का स्वाद और इसमें मौजूद केलोरीज़ की कमी का अंतर्संबंध दिमाग के लिए टूट ही जाता है .दिमाग को केलोरी फेलोरी से क्या मतलब .उसे कोई बहका सकता है ?
एक अन्य अध्ययन में रिसर्चरों ने कृत्रिम मिठास में मौजूद एस्पार्टेम तथा बढे हुए फास्टिंग ग्ल्युकोज़ में एक अंतर -सम्बन्ध की पुष्टि की है .अध्ययन माउस (लेब चूहों )पर किया गया था .यहस्थिति एक डाय -बेटिक या फिर प्री -डाय -बेटिक कंडीशन की ओर इशारा है .
जो हो सीधा न सही अ- प्रत्यक्ष ही सही चूहों पर संपन्न अध्ययन हमारे लिए भी एक संकेत तो है ही हेवी -एस्पार्टेम की डाइट सोडा के ज़रिए खपत और संभावित डायबिटीज़ के खतरे को हम ताड़ लें .ले जा सकता है डाइट सोडा हमें उस ओर।
बेहतर है प्यास लगने पर हम ठंडा पानी पियें -ठंडा यानी कोको -कोला नहीं .
रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पीव ,
देख पराई चूपड़ी मत ललचावे जीव .
सन्दर्भ -सामिग्री :http://healthland.time.com/2011/06/29/studies-why-diet-sodas-are-no-boon-to-dieters/?hpt=he_c2

सोमवार, 18 जुलाई 2011

क्या धूम्रपान करना आपके जोड़ों की हिफाज़त करता है .?

क्या धूम्रपान करना आपके जोड़ों की हिफाज़त करता है .?
क्या धूम्रपान करना आपके जोड़ों की हिफाज़त करता है .?

Does Smoking Help Protect the जोइंट्स?

धूम्रपान बेशक आपके लिए वात -स्फीति (emphysema,),दिल की बीमारियाँ और मस्तिष्क आघात (ब्रेन अटेक ,स्ट्रोक ),तथा जल्दी इस दुनिया को छोड़ जाने के खतरे के वजन को बढाता है ,लेकिन खुदा न खास्ता यदि आप बच गए तो मौजा ही मौजा हैं ,जीवन के आखिरी चरण में आपको अपने घुटने शायद न बदलवाने पड़ें .
हिप्स एंड नीज रिप्लेसमेंट सर्जरी और स्मोकिंग ,क्या है अंतर सबंध ?
विचित्र किन्तु अध्ययन आधारित निष्कर्ष है यह .अध्ययन जिसमे ११ ,०००उम्र दराज़ ऑस्ट्रेलियाई बुजुर्गों को शरीक किया गया जो सभी धूम्रपान करते थे लेकिन जिन्होनें जितना ज्यादा अवधि तक धूम्रपान किया था उनके उसी अनुपात में आर्थ -राइटिस या अन्य वजहों से होने वाली हिप्स और नीज बदल शल्य चिकित्सा की संभावना भी उसी अनुपात में कमतर रह गई थी .जिन्होनें ४८ सालों तक या और भी ज्यादा अवधि तक धूम्रपान किया था उनके लिए ऐसे शल्य कर्म की आवशयकता ४१ %-५१% घट गई थी .(स्रोत: विज्ञान पत्रिका Arthritis & Rheumatism)पूर्व संपन्न अध्ययनों ने ऐसा ही इशारा ज़रूर किया था लेकिन एक मात्रात्मक अंतर सम्बन्ध इस अध्ययन से सामने आया दिखता .बेशक एक तरफ मोटापा दूसरी तरफ ताबड़ तोड़ कसरत की आदत आर्थ -राइटिस के जोखिम को बढ़ाती तथा स्मोकिंग इसके वजन को कम करते देखी गई है .जब इन तमाम कारणों पर एक साथ विचार किया गया आकलन में इन्हें भी शरीक किया गया स्मोकंग के संग साथ तब यह जोखिम यकसां (एक बराबर )निकला .(आंकड़ों में आर्थ -राइटिस के अलावा अन्य मेडिकल कंडीशंस पर भी गौर किया गया उनके मद्दे नजर और सबसे ज्यादा यह कि स्मोकर्स उम्र के इस आखिरी पडाव तक चले आये थे इसे भी शरीक किया गया बावजूद इन तमाम एब -दारियों के .
Nicotine may play a role,::पशुओं और मानवीय ऊतकों पर लेब आजमाइशों में पता चला है निकोटिन जोड़ों की उपास्थियों(joint cartilage, ) की कोशिकाओं में उत्तेजन पैदा करके ओस्टियो -आर्थ -राइटिस की उग्रता को कम कर सकती है .
वेट बियरिंग जोइंट्स की स्मोकिग कैसे हिफाज़त प्रदान करता है इसे बूझने के लिए अभी और अध्ययन चाहिए ही चाहिए .यदि ऐसा पुष्ट होने पर कुछ बचावी उपायों की ,इलाजों की रण -नीति तैयार क़ी जा सकी तब ही जोइंट रिप्लेसमेंट में कमी आये इसका सोचा गुना जा सकेगा उससे पहले नहीं .
रिसर्चर यह भी जोड़ने की उतावली ईमानदारी से दिखातें हैं -जोड़ों के स्वास्थ्य का धूम्रपान न तो ज़वाब है और न ही इसे इलाज़ और बचावी रण नीतियों में शामिल करने का सोचा जा सकता है .(हम सभी जानतें हैं ऐबों में धूम्रपान और रोगों में डायबिटीज़ होने का मतलब क्या है ).

Does Smoking Help Protect the joints?

धूम्रपान बेशक आपके लिए वात -स्फीति (emphysema,),दिल की बीमारियाँ और मस्तिष्क आघात (ब्रेन अटेक ,स्ट्रोक ),तथा जल्दी इस दुनिया को छोड़ जाने के खतरे के वजन को बढाता है ,लेकिन खुदा न खास्ता यदि आप बच गए तो मौजा ही मौजा हैं ,जीवन के आखिरी चरण में आपको अपने घुटने शायद न बदलवाने पड़ें .
हिप्स एंड नीज रिप्लेसमेंट सर्जरी और स्मोकिंग ,क्या है अंतर सबंध ?
विचित्र किन्तु अध्ययन आधारित निष्कर्ष है यह .अध्ययन जिसमे ११ ,०००उम्र दराज़ ऑस्ट्रेलियाई बुजुर्गों को शरीक किया गया जो सभी धूम्रपान करते थे लेकिन जिन्होनें जितना ज्यादा अवधि तक धूम्रपान किया था उनके उसी अनुपात में आर्थ -राइटिस या अन्य वजहों से होने वाली हिप्स और नीज बदल शल्य चिकित्सा की संभावना भी उसी अनुपात में कमतर रह गई थी .जिन्होनें ४८ सालों तक या और भी ज्यादा अवधि तक धूम्रपान किया था उनके लिए ऐसे शल्य कर्म की आवशयकता ४१ %-५१% घट गई थी .(स्रोत: विज्ञान पत्रिका Arthritis & Rheumatism)पूर्व संपन्न अध्ययनों ने ऐसा ही इशारा ज़रूर किया था लेकिन एक मात्रात्मक अंतर सम्बन्ध इस अध्ययन से सामने आया दिखता .बेशक एक तरफ मोटापा दूसरी तरफ ताबड़ तोड़ कसरत की आदत आर्थ -राइटिस के जोखिम को बढ़ाती तथा स्मोकिंग इसके वजन को कम करते देखी गई है .जब इन तमाम कारणों पर एक साथ विचार किया गया आकलन में इन्हें भी शरीक किया गया स्मोकंग के संग साथ तब यह जोखिम यकसां (एक बराबर )निकला .(आंकड़ों में आर्थ -राइटिस के अलावा अन्य मेडिकल कंडीशंस पर भी गौर किया गया उनके मद्दे नजर और सबसे ज्यादा यह कि स्मोकर्स उम्र के इस आखिरी पडाव तक चले आये थे इसे भी शरीक किया गया बावजूद इन तमाम एब -दारियों के .
Nicotine may play a role,::पशुओं और मानवीय ऊतकों पर लेब आजमाइशों में पता चला है निकोटिन जोड़ों की उपास्थियों(joint cartilage, ) की कोशिकाओं में उत्तेजन पैदा करके ओस्टियो -आर्थ -राइटिस की उग्रता को कम कर सकती है .
वेट बियरिंग जोइंट्स की स्मोकिग कैसे हिफाज़त प्रदान करता है इसे बूझने के लिए अभी और अध्ययन चाहिए ही चाहिए .यदि ऐसा पुष्ट होने पर कुछ बचावी उपायों की ,इलाजों की रण -नीति तैयार क़ी जा सकी तब ही जोइंट रिप्लेसमेंट में कमी आये इसका सोचा गुना जा सकेगा उससे पहले नहीं .
रिसर्चर यह भी जोड़ने की उतावली ईमानदारी से दिखातें हैं -जोड़ों के स्वास्थ्य का धूम्रपान न तो ज़वाब है और न ही इसे इलाज़ और बचावी रण नीतियों में शामिल करने का सोचा जा सकता है .(हम सभी जानतें हैं ऐबों में धूम्रपान और रोगों में डायबिटीज़ होने का मतलब क्या है ).

रविवार, 17 जुलाई 2011

एक था जमील मर्सिअस तब .,एक है जमील मर्सिअस अब.

जमील मर्सिअस ने अपनी स्पोर्ट्स यूनीफोर्म की ओर देखा ,इल्म हुआ यह उसकी मिडिल स्कूल बेसबोल टीम का सबसे बड़ा साइज़ है .अन्दर ही अन्दर उसे खुद से शर्मिंदगी महसूस हुई .उसके साथी उसे जाइंट टेडी बीयर बुलाते .सातवें दर्जे तक आते आते उसकी जीवन शैली में वजन की बेशुमार वृद्धि के चलते नाटकीय बदलाव आने लगे .सालों साल शिरकत करते रहने के बाद अब वह टीम स्पोर्ट्स से ही छिटकने लगा .छिटकने के बहाने उसे रास आने लगे .पहले वह बेसबाल से अलग हुआ फिर सॉकर यानी फ़ुटबाल टीम से .आखिर में बारी आई बास्किट बाल के छूटने की भी .नतीज़न हाई स्कूल में बतौर जूनियर के उसका वजन ३०० पोंड के भी पार चला गया .
अब उसका समय जहां ४४ इंची वेस्ट की पेंटें ढूँढने में बीतता जबकि उसके साथ फेशनेबुल एब्रक्रोम्बी और फित्च के दीवाने हो चुके थे .
एक दिन उसे खुद के समाज से अलग थलग पड़ जाने का एहसास भी हुआ . .
स्कूल भुगताने के बाद उसके साथी खेल खुद की तैयारी करते वह .सीधे घर आता और जुट जाता होम वर्क में .
लेकिन जोर का झटका अपने बेहूदा डीलडौल को लेकर उसे तब लगा जब वह १७ साला होने पर हवाई में अवकाश भुगताने आया .ट्रिप से लौटते हुए वह अपने डिजिटल फोटो देख रहा था .यार दोस्तों को इस ट्रिप के फोटो दिखाने का उत्साह काफूर हो गया .उसे जोर का झटका अब लगा .ऑन लाइन इन छवियों को पोस्ट करने का दुस्साहस वह कर ही न सका .ज्यादा तस्वीरें उसने उतारी भी कहाँ थीं .वो कहतें हैं न तस्वीर झूठ नहीं बोलती .आईने दगा नहीं देते .
रूटीन फिजिकल चेक अप के लिए अपने डॉ .के पास पहुंचा .पता चला उसका वजन ३१३ पोंड हो चला है .पहले भी इस प्रकार के रूटीन चेक अप में डॉ. की हिदायतें यही होती थी वजन कम करो .खुराक के माहिर से टिप्स लो .डाईट चार्ट बनवाओ .इस बार भी वही होना था .हाई स्कूल कोर्स के दौरान वह कभी कभार ही जिम में दिखाई देता .लेकिन जिम जाने की बान कभी न पड़ी .सारे रिजोल्यूशन बिलाते रहे ,इरादे ढ़हते रहे लैंड स्लाइड से .
उस रात वह अपनी गराज में सबसे छुपके घुसा और अपने फैसले को अमल में लाना शुरु किया ताकि किसी की उस पर नजर न पड़े .तीसरे ही स्तर में इलिप्टिकल चरमरा के टूट गया .मशीन उसकी काया का बोझ ढ़ो न सकी बराबर- बराबर के दो भागों में टूट गई .
छुपता छुपाता वह लिविंग रूम्स में आया .गनीमत थी किसी ने उसे देखा नहीं न मशीन का टूटना देखा .
अब वह देर शाम घूमने के लिए जाने लगा .लोगों की घूरती मज़ाक उडाती चितवन से बचता बचाता ,जैसे चोरी कर रहा हो ,सैर नहीं .सिर मुंडाते ही ओले पड़े दूसरे तीसरे दिन ही किशोर किशोरियों की ट्रक में सवार टोली उसे खिझाते हुए निकल गई -मोटा भई मोटा .झोटा भई झोटा .
हालाकि ऐसा होना अपवाद ही होता है आम नहीं यहाँ अमरीका में .एक से बढ़के एक झोटें हैं, यहाँ . .आपकी सोच की सीमा से बहुत आगे .
धीरे धीरे मर्सिअस जोगिंग से दौड़ पर आने लगा .
फास्ट फ़ूड को कहा अलविदा और संशाधित नमक और चीनी लदे खाद्यों की जगह आ गए फल और तरकारियाँ .
माँ का उसे इस अभियान में पूरा आसरा और साथ मिला .उसके कम होते वजन का वह हिसाब रखती उसकी पीठ थपथपाती जोश दिलाती .
मर्सिअस ने किसी खुराक या किताबी डाईट का अनुसरण न करके खुद रिसर्च की आज़माइश की खुद पर .हौसला रखते रखाते हुए .
नाश्ते में प्रोटीन की बहुलता होती यथा कोटेज़ चीज़ ,योगर्ट ,दोपहर और रात के भोजन में सलाद और सब्जियां होतीं .एक प्रोटीन बहुल चीज़ भी ज़रूर रहती .कोई लक्ष्य निर्धारित न किया था .कहाँ आके रुकना है कितना वजन कम करना है .वह बस चल रहा था अपनी रौ में अपने रस्ते .
तीन साल में उसका वजन १३० पोंड कम हो गया .सितम्बर २०१० में रह गया था १८५ पोंड .अब वह खुद से मुखातिब था .खुश था .अब एक ही लगन. थी.मजबूती देनी है शारीर को .ये शरीर मेरा है अब मैं जानता हूँ मुझे इसका क्या करना है .
मर्सिअस अब २२ साला है .सातों दिन हफ्ते के वह सुबह ५.३० बजे उठके जिम पहुंचता है .आधा घंटा मानव चक्की पर चलना नित नित .कोलिज से ग्रेजुएशन करने के बाद उसका वजन १० पोंड ज़रूर बढा है लेकिन यह सब मसल मॉस है .फैट मॉस नहीं है .
फरवरी २०११ में उसने हाफ मैराथन में हिस्सा लिया था .अगस्त में दोबारा इसमें दौड़ने का प्रशिक्षण ज़ारी है .
हम सभी अपने लिए "मी -टाइम" निकाल सकतें हैं काम का, व्यायाम का ,कोई बहाना काम का नहीं होता है सब बेकार होतें हैं बहाने .मर्सिअस आज यही सोचता है .वह जो पहले अंतर मुखी था अब बहिर -मुखी है .कहाँ हाई -स्कूल तक एकांत प्रिय और अब मुखर प्रखर मुखरित औरबातूनी , वाचाल, दोस्तों में नेत्रित्व संभालता हुआ .सब कुछ जीवन शैली के स्वयं प्रेरित बदलाव की देन है .काया पर खुद के अधिकार का तोहफा है .


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शनिवार, 16 जुलाई 2011

दमे के प्रबंधन में प्लेसिबो प्रभाव कितना असर -कारी ?

दमे के प्रबंधन में प्लेसिबो प्रभाव कितना असर -कारी ?
क्या दवा का प्लेसिबो प्रभाव दमे के असर को भी कम करता है ?दमे की मानक चिकित्सा की तरह प्रभावशाली हो सकता है (standard medical therapy)सा प्लेसिबो प्रभाव (sham treatments)?हारवर्ड स्कूल ऑफ़ मेडिसन के रिसर्चरों के मुताबिक़ ऐसा हो सकता है .अपने एक अध्ययन में इन रिसर्चरों ने दमे के ३९ मरीजों को अव्यवस्थित तरीके से चार तरीके के इलाज़ बारी बारी से सभी मरीजों को मुहैया करवाए .
इनमे शामिल थे -albuterol inhalers,(दमे के इलाज़ में प्रयुक्त मान्य और मानक सूँघनी). placebo inhalers यानी छद्म सूँघनी ,sham acupuncture यानी छद्मएहसास की आपको सुइयां चुभी गईं हैं करवाया गया बिना सुइयां चुभोये .,कुछ को कोई भी इलाज़ नहीं (न छद्म न असली मानक इलाज़ )मुहैया करवाया गया .
तीन से लेकर सात दिन के अंतर से सभी मरीजों को बुलाया गया कुल मिलाकर हरेक को एक दजन बार बुलाया गया इन इलाजों के लिए .
इलाज़ मुहैया करवाने के फ़ौरन बाद हर विज़िट में मरीजों के फेफड़ों के काम करने का वास्तु परक मुआयना किया गया ,मानितरण किया गया प्रकार्य का फेफड़ों के .अलावा इसके उनसे सीधे -सीधे पूछा भी गया की वह लक्षणों के बाबत कैसा महसूस करतें हैं .
अल्बुट्रोल सूँघनी के स्तेमाल के बाद मरीजों ने ५०%फायदा होना बतलाया और प्लेसिबो -सूँघनी और छद्म एक्यु -पंचर चिकित्सा के बाद क्रम से४५%तथा ४६%फायदा होने की बात सबने बतलाई .जिन्हें किसी भी किस्म का इलाज़ ही नहीं मुहैया करवाया गया २१%लक्षणों में सुधार की बात उन्होंने भी की .साँय-साँय की आवाज़ ,सांस लेने में खड़ खड़ ,व्हिज़िंग ,शेलो ब्रीथिंग जैसे लक्षणों में सभी को इस प्रकार राहत पहुंची थी .
कितना फायदाकिसको वास्तव में पहुंचा इसका वस्तु परक मूल्यांकन करने के लिए अब सभी का प्रति सेकिंड फेफड़ों का अधिकतम .आयतन सांस छोड़ते वक्त मापा गया ...................................................................
by measuring their maximumin F forced expiratory volume in one second (FEV1), patients who got the real albuterol inhalers showed a 20% increase EV1.
जिन्हें छद्म एक्यु -पंचर या फिर किसी भी किस्म का इलाज़ मुहैया नहीं करवाया गया था ७% सुधार उनमे भी वस्तु परक आकलन में देखें में आया .
"Since there was no difference between either of the placebo treatments and the placebo 'control' [no treatment], we can report that there was no objective placebo effect with regard to change in lung function," lead author Dr. Michael Wechsler, assistant professor of medicine at Harvard Medical School, said in a statement.
इसका मतलब यह नहीं है अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला जाए क़ि प्लेसिबो प्रभाव का कोई लाभ नहीं मिलता .प्लेसिबो प्रभाव बेहद असरकारी है .मरीजों द्वारा खुद का आकलन भी .और यह फायदा असली दवा लेने से कम नहीं रहता है .
निष्कर्ष यह भी निकल सकता है सेल्फ रिपोर्टिंग मरीज़ की उतनी भरोसे मंद नहीं निकलती है वस्तुपरक आकलन पर .
"It's clear that for the patient, the ritual of treatment can be very powerful," noted study author Ted Kaptchuk, director of the program in placebo studies at Beth Israel Deaconess Medical Center. "This study suggests that in addition to active therapies for fixing diseases, the idea of receiving care is a critical component of what patients value in health care. In a climate of patient dissatisfaction, this may be an important lesson."
आपको इलाज़ मयस्सर है और आपकी ठीक से देख भाल क़ि जा रही है इसका बड़ा महत्व है ,प्लेसिबो प्रभाव छोड़ता है चिकित्सक का आश्वाशन और संभाल ,मरीज़ से आत्मीयता और लगाव .
सन्दर्भ -सामिग्http://healthland.time.com/2011/07/14/study-in-asthma-patients-placebo-treatments-feel-just-as-good-as-the-drug/?hpt=he_क२
http://healthland.time.com/2011/07/14/study-in-asthma-patients-placebo-treatments-feel-just-as-good-as-the-drug/?hpt=he_c2

सहभावित कविता :वोट मिला भाई वोट मिला है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सह- भाव :वीरेंद्र शर्मा .. वोट मिला भाई वोट मिला है ,

सहभावित कविता :वोट मिला भाई वोट मिला है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सह- भाव :वीरेंद्र शर्मा ..
वोट मिला भाई वोट मिला है ,
पांच बरस का वोट मिला है .
फ़ोकट सदन नहीं पहुंचें हैं ,जनता ने चुनकर भेजा है ,
किसकी हिम्मत हमसे पूछे ,इतना किस्में कलेजा है .
उनके प्रश्न नहीं सुनने हैं ,हम विजयी वे हुए पराजित ,
मिडिया से नहीं बात करेंगे ,हाई कमान की नहीं इजाज़त ,
मन मानेगा वही करेंगे ,मोनी -सोनी संग रहेंगे ,
वोट नोट में फर्क है कितना ,जनता को तो नोट मिला है ,
वोट मिला भाई वोट मिला है .पांच बरस का वोट मिला है .

हम मंत्री हैं माननीय हैं ,ऐसा है सरकारी रूतबा ,
हमें लोक से अब क्या लेना ,तंत्र पे सीधे हमारा कब्ज़ा ,
अभी तो पांच साल हैं बाकी ,फिर क्यों शोर विरोधी करते ,
हिम्मत होती सदन पहुँचते ,तो शिकवे चर्चे कर सकते ,
पर्चा भरने की नहीं कूव्वत ,फिर क्यों व्यर्थ कहानी गढ़ते ,
वोटर ही तो लोकपाल है ,हममें क्या कोई खोट मिला है ,
वोट मिला भाई वोट मिला है ,पांच बरस का वोट मिला है .

भगवा भी क्या रंग है कोई ,वह तो पहले भगवा है ,
फीका पड़ा लाल रंग ऐसा ,उसका अब क्या रूतबा है .
मंहगाई या लूट भ्रष्टता ,यह तो सरकारी चारा है ,
खाना पड़ेगा हर हालत में ,इसमें क्या दोष हमारा ,
जनता ने जिसको ठुकराया ,वह विपक्ष बे -चारा है ,
हमको ज़िंदा रोबोट मिला है ,वोट मिला भाई वोट मिला है ,
पांच बरस का वोट मिला है

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

Massive stroke: Life shattering, life affirming.

मुसीबतों से पार पाने की मौत के मुंह से ज़िन्दगी को निकाल बाहर लाने की बला की क्षमता होती है हममे से कितनो के ही पास लेकिन हमें इसका इल्म नहीं होता .ऐसी ही गाथा को डियाना रोब ने साकार किया है अपने पति को ब्रेन स्ट्रोक (दिमागी दौरे ) के प्राण लेवा असर से बाहर लाने में .
आसमान से जनवरी ४ ,२००४ की सुबह रोज़ की तरह ही उतरी थी .बिटिया केलसी स्कूल चली गई थी .डियाना ने रोज़ मर्रा की घरेलू चीज़ें जुटाने के लिए घर से बाहर का रुख किया था और उनके मूर्तिकार शिल्पकार पति केविन रोज़ की तरह अपने स्टूडियो में खिसक लिए थे .स्टेन- लेस स्टील से लेकर ताम्बे तक की मूर्तियाँ बनातें हैं केविन .वृहद् आकार की एबस्ट्रेक्ट मूर्तियाँ बनातें हैं केविन .कला का अप्रतिम गूढ़ नमूना गढ़तें हैं .
डियाना ने बाज़ार से लौटने पर देखा -केविन बेहोश पड़ें हैं अपने स्टूडियो में .
अम्बुलेंस के घर से अस्पताल का रुख करने से पहले केविन को जीवन रक्षक प्रणाली से लैस कर दिया गया था .वह इसी हाल १३ दिन तक बने रहे .
बस यहीं से जीवन और मौत का संघर्ष शुरु होता है .आप भी बनिए उसके साक्षी -
दूर दूर तक किसी को भान नहीं था केविन जो ४९ साल की उम्र में एक दम से हृष्ट -पुष्ट तंदरुस्त था कहीं कोई आशंका न थी कि खून का थक्का रक्त प्रवाह में शरीर के किसी और हिस्से से चलके दिमाग की राह हो लेगा .लेकिन ऐसा ही यकायक हुआ .
पुनर्वास अस्पतालों में पूरे सात सप्ताह बिताने खपाने के बाद सीधे हाथ के अंगों (शरीर के दाए पार्श्व का )फालिज लिए केविन घर लौट आये .केविन न संभाषण की स्थिति में थे न कुछ और सांकेतिक भाषा में समझाने की .सम्प्रेषण का पूर्ण ब्लेक आउट था .
पूरा एक महीना लिविंग रूम में बिताने के बाद भी केविन की स्थिति में जब सुधार के चिन्ह प्रगटित नहीं हुए ,उन्हें उनके स्टूडियो में ले जाया गया .बकौल डियाना उस वक्त उनके चेहरे की आभा देखते ही बनती थी जिस पल उनकी नजर उन औजारों पर टूल्स और धातुओं (मेटल्स )पर पड़ी जो कभी उनकी ज़िन्दगी थे .खो गये वो प्रतिमाओं के उस अद्भुत संसार में जहां कोई अपंगता नहीं थी .एक सम्मोहन था .
उनके चेहरे पर ज़िन्दगी के भाव -अनुभाव रागात्मकता देख डियाना की उम्मीद जीवित हुई .
हालाकि डियाना खुद हतप्रभ थीं जो पेशे से एक हेल्थ केयर एडमिनिस्ट्रेटर और एक पब्लिक स्पीकर ही थीं और उन्हें मूर्तियों को आकार देने का कोई अनुभव नहीं था .क्या कैसे करें वह इन टूल्स और मेटल्स का ?अब यही तीमारदारी और औज़ार इनकी ज़िन्दगी थी जो केविन को संजीवनी देते से लगे थे .६ महीने इसी ऊहापोह में खिसक लिए .लेकिन डियाना ने हार नहीं मानी .
इस दरमियान केविन कुछ चलना फिरना फिर से सीख गए बाए हाथ से कुछ ड्रो भी करने लगे .बिना संभाषण और आवाज़ के संकेतों की जुबां में अपनी कहने दूसरे की सुनने लगे ..उनके चेहरे पर वही परिचित मुस्कान और आँखों में चमक छाने लगी .केविन अपनी तमाम वृहदाकार प्रतिमाओं के प्रा-रूप खुद ही खींचते थे अपनी देख रेख में वेल्डर को सारे अनुदेश देते कहाँ कट करना है कहाँ कर्व देना और फिर वेल्ड करना है अंग -प्रत्यंगों को शिल्प के कृति को .
ज़ाहिर है स्ट्रोक के बाद भी उनका काम ज़ारी रहा .स्टूडियो से ही सब कुछ बिकता रहा .Included in his post stroke sculpting are: a 30 foot stainless steel sculpture that can be seen from I-5 in San Diego, CA, an 18 foot bronze sculpture for a library in Texas, a 20 foot stainless steel sculpture for the city of Wheat Ridge, CO, a 16 foot sculpture for the McCarran Business Park in Las Vegas, Nevada, as well as winning “Best of Show” at the Sculpture at River Market, an all -culpture juried show in Little Rock, Arkansas.
शिल्प आर्ट गेलेरीज़ में भी बराबर पहुंचता रहा .खरीददारों को कोई इल्म नहीं स्ट्रोक के बाद भी ज़िन्दगी रुकी नहीं .रफ्ता रफ्ता फिर आगे बढ़ी .
सारा खेल इच्छा शक्ति ,दृढ़ता और उस आदिम प्रवृत्ति का था जो एक शिल्पकार की धरोहर होती है ,चारित्रिक विशेषता होती है .वह ट्रेट कभी मरता नहीं है ज़िंदा रहता है .शायद अगले जन्म में भी संस्कार बन साथ होलेता है .यही ड्राइव और डिटर- मिनेशन उन्हें फिर से ज़िन्दगी के करीब ले आया था स्ट्रोक .आया और चला भी गया .
एक बिरले शिल्प कार मूर्तिकार हैं केविन जिन्होनें पूरे परिवार का पोषण संवर्धन इसी शिल्प के भरोसे किया और इसीलिए तमाम राष्ट्रीय अंतर -राष्ट्रीय स्तर पर उनके काम को सम्मान मिला है निगमों ,विश्वविद्यालयों ने उनकी मूर्तियाँ खरीदीं हैं .शिल्प ही उनके लिए रामबाण था .रामबाण रहा .
३६ सालों के इस दाम्पत्य सफर में डायना एक टीम मेट की तरह उनके साथ खड़ी दिखीं हैं आदिनांक .और इसीलिए -
Kevin is one of the rare sculptors who found a way to support his family with art. His metal sculptures have been collected by corporations, individual collectors, universities, cities and states; nationally as well as internationally. The year before the stroke he completed a commission for the Borgata Casino and Spa in Atlantic City, New Jersey, a collection of six large stainless steel sculptures.Some people would consider that he had reached the pinnacle of success with this commission but the fact is that he had already created a thriving sculpture business.
सन्देश यही है जो निरंतर काम मग्न रहता है साधना रत रहता है उसके काम का शिखर नित नै ऊंचाइयां छूता पठार की तरह ठहरता नहीं है .
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सहभावित कविता :वोट मिला भाई वोट मिला है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सह- भाव :वीरेंद्र शर्मा .. वोट मिला भाई वोट मिला है ,

सहभावित कविता :वोट मिला भाई वोट मिला है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सह- भाव :वीरेंद्र शर्मा ..
वोट मिला भाई वोट मिला है ,
पांच बरस का वोट मिला है .
फ़ोकट सदन नहीं पहुंचें हैं ,जनता ने चुनकर भेजा है ,
किसकी हिम्मत हमसे पूछे ,इतना किस्में कलेजा है .
उनके प्रश्न नहीं सुनने हैं ,हम विजयी वे हुए पराजित ,
मिडिया से नहीं बात करेंगे ,हाई कमान की नहीं इजाज़त ,
मन मानेगा वही करेंगे ,मोनी -सोनी संग रहेंगे ,
वोट नोट में फर्क है कितना ,जनता को तो नोट मिला है ,
वोट मिला भाई वोट मिला है .पांच बरस का वोट मिला है .

हम मंत्री हैं माननीय हैं ,ऐसा है सरकारी रूतबा ,
हमें लोक से अब क्या लेना ,तंत्र पे सीधे हमारा कब्ज़ा ,
अभी तो पांच साल हैं बाकी ,फिर क्यों शोर विरोधी करते ,
हिम्मत होती सदन पहुँचते ,तो शिकवे चर्चे कर सकते ,
पर्चा भरने की नहीं कूव्वत ,फिर क्यों व्यर्थ कहानी गढ़ते ,
वोटर ही तो लोकपाल है ,हममें क्या कोई खोट मिला है ,
वोट मिला भाई वोट मिला है ,पांच बरस का वोट मिला है .

भगवा भी क्या रंग है कोई ,वह तो पहले भगवा है ,
फीका पड़ा लाल रंग ऐसा ,उसका अब क्या रूतबा है .
मंहगाई या लूट भ्रष्टता ,यह तो सरकारी चारा है ,
खाना पड़ेगा हर हालत में ,इसमें क्या दोष हमारा ,
जनता ने जिसको ठुकराया ,वह विपक्ष बे -चारा है ,
हमको ज़िंदा रोबोट मिला है ,वोट मिला भाई वोट मिला है ,
पांच बरस का वोट मिला है

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

सहभावित कविता :वोट मिला भाई वोट मिला है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सह- भाव :वीरेंद्र शर्मा .. वोट मिला भाई वोट मिला है ,

सहभावित कविता :वोट मिला भाई वोट मिला है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सह- भाव :वीरेंद्र शर्मा ..
वोट मिला भाई वोट मिला है ,
पांच बरस का वोट मिला है .
फ़ोकट सदन नहीं पहुंचें हैं ,जनता ने चुनकर भेजा है ,
किसकी हिम्मत हमसे पूछे ,इतना किस्में कलेजा है .
उनके प्रश्न नहीं सुनने हैं ,हम विजयी वे हुए पराजित ,
मिडिया से नहीं बात करेंगे ,हाई कमान की नहीं इजाज़त ,
मन मानेगा वही करेंगे ,मोनी -सोनी संग रहेंगे ,
वोट नोट में फर्क है कितना ,जनता को तो नोट मिला है ,
वोट मिला भाई वोट मिला है .पांच बरस का वोट मिला है .

हम मंत्री हैं माननीय हैं ,ऐसा है सरकारी रूतबा ,
हमें लोक से अब क्या लेना ,तंत्र पे सीधे हमारा कब्ज़ा ,
अभी तो पांच साल हैं बाकी ,फिर क्यों शोर विरोधी करते ,
हिम्मत होती सदन पहुँचते ,तो शिकवे चर्चे कर सकते ,
पर्चा भरने की नहीं कूव्वत ,फिर क्यों व्यर्थ कहानी गढ़ते ,
वोटर ही तो लोकपाल है ,हममें क्या कोई खोट मिला है ,
वोट मिला भाई वोट मिला है ,पांच बरस का वोट मिला है .

भगवा भी क्या रंग है कोई ,वह तो पहले भगवा है ,
फीका पड़ा लाल रंग ऐसा ,उसका अब क्या रूतबा है .
मंहगाई या लूट भ्रष्टता ,यह तो सरकारी चारा है ,
खाना पड़ेगा हर हालत में ,इसमें क्या दोष हमारा ,
जनता ने जिसको ठुकराया ,वह विपक्ष बे -चारा है ,
हमको ज़िंदा रोबोट मिला है ,वोट मिला भाई वोट मिला है ,
पांच बरस का वोट मिला है .

बुधवार, १३ जुलाई २०११

सहभावित कविता :आखिर हम चुन कर आये हैं .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश .

सहभावित कविता :आखिर हम चुन कर आये हैं .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,वीरेंद्र शर्मा .
आओ अन्दर की बात कहें ,
कुछ तो दिल की बात सुनें .
माना एयर- पोर्ट पहुंचे थे ,हंस -हंस के पत्ते फेंटें थे ,
मंत्री ओहदे कितने ऊंचे ,ऐंठे साथ में कई अफसर थे ,
एक नहीं हम कई जने थे ,भीतर से सब चौकन्ने थे ,
बाबा को देना था झांसा ,झांसे में बाबा को फांसा ,
बाबा का कोई मान नहीं था ,हम को बस फरमान यही था .
एक हाथ समझौते का हो, दूजे हाथ में गुप्त छुरी,
रात में काँप उठी नगरी ,बाबा की सी सी निकली ,
तम्बू बम्बू सब उखड़े थे ,साड़ी पाजामे घायल थे ,
झटके में झटका कर डाला ,ऐसा शातिर दांव हमारा ,

क्या अब भी सरकार नहीं है ,क्या इसका इकबाल नहीं है ,
जाकर उस बाबा से पूछो ,क्या यही सलवार सही है ,
हमने परिधान बदल डाले ,नक़्शे तमाम बदल डाले ,
आखिर चुनकर आयें हैं ,नहीं -धूप में बाल पकाएं हैं ,
इसके पीछे अनुभव है ,खाकी का अपना बल है ,
सीमा पर अभ्यास करेंगें ,देश सुरक्षा ख़ास करंगें ,
सलवारें लेकर जायेंगें ,दुश्मन को पहना आयेंगें ,
तुम जनता हम मालिक हैं ,रिश्ता तो ये खालिस है ,
जय बोलो इंडिया माता की ,इंडिया के भाग्य विधाता की ,
जय कुर्ती और सलवार की ,इंडिया के पहरेदार की .