मंगलवार, 17 अगस्त 2021

अफगानिस्‍तान पर तालिबानी कब्जा अमेरिकी साख पर धब्बा, भारत के सामने खड़ा हुआ बड़ा संकट

 अफगानिस्तान का भविष्य अधर में और विश्व शांति खतरे में पड़ गई

तालिबानी सत्ता को लेकर भारत के समक्ष सबसे बड़ा संकट वैचारिक आधार का है। दरअसल एक जिहादी संगठन होने के नाते तालिबान भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान के लिए असहज करने वाला पहलू है। हालांकि व
प्रणव सिरोही। अफगानिस्तान अमेरिका के लिए सबसे लंबी चली लड़ाई का मैदान साबित हुआ, जिससे बाहर निकलने के लिए वह अर्से से युक्ति भिड़ा रहा था। उसने तालिबान से वार्ता भी शुरू की। अपनी फौजों की वापसी के लिए 31 अगस्त की तारीख भी तय कर दी, पर उसमें भी उसने हड़बड़ी दिखाकर गड़बड़ी कर दी। उसकी फौजों की वापसी से पहले ही काबुल पर तालिबानी कब्जा और अफगान राष्ट्रपति का पलायन अमेरिकी साख पर धब्बा है। वहीं, इससे अफगानिस्तान का भविष्य अधर में और विश्व शांति खतरे में पड़ गई है।
संभव है कि आप राबर्ट गेट्स के नाम से उतने परिचित न हों। दरअसल गेट्स अमेरिका के रक्षा मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने दशकों तक शीर्ष अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए में भी अपनी सेवाएं दीं। उनकी काबिलियत से प्रभावित होकर रिपब्लिकन राष्ट्रपति जार्ज वाकर बुश ने उन्हें अपने प्रशासन में रक्षा मंत्री बनाया। राबर्ट गेट्स पर यह भरोसे का ही प्रतीक था कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद राष्ट्रपति बने डेमोक्रेट बराक ओबामा ने भी उन्हें रक्षा मंत्री के पद पर बनाए रखा। स्वाभाविक है कि अमेरिकी सार्वजनिक जीवन में लंबे समय तक सक्रिय रहे गेट्स के पास बहुत व्यापक अनुभव रहा है। इसी अनुभव के आधार पर उन्होंने अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन के बारे में वर्ष 2014 में लिखा था कि ‘पिछले चार दशकों के दौरान विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रत्येक महत्वपूर्ण मसले पर बाइडन का रुख बुरी तरह नाकाम साबित हुआ।’
इस समय अफगानिस्तान में जो परिदृश्य उभर रहा है वह बाइडन को लेकर गेट्स के इसी आकलन पर पूरी मुखरता के साथ मुहर लगाता है। अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों को वापस बुलाने की हड़बड़ी ने न केवल कई दशकों तक अशांत रहने वाले अफगान के भविष्य को अधर एवं अनिश्चितता में डाल दिया, बल्कि इस घटनाक्रम ने एशिया समेत पूरी दुनिया को अस्थिर बनाने के साथ ही विश्व शांति के समक्ष जोखिम भी पैदा कर दिया है। साथ ही, इस घटनाक्रम ने अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। वह भी ऐसे समय में जब अमेरिका को चीन की चुनौती का कोई कारगर तोड़ निकालना है।

तालिबानी तत्परता : रविवार का दिन अमेरिकी साख के ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ जब तालिबान बड़ी आसानी से राजधानी काबुल में घुसकर सत्ता प्रतिष्ठान के केंद्र तक जा पहुंचा। जाहिर है कि अमेरिका और उसके साथियों द्वारा अफगानिस्तान में उपलब्ध कराया गया सुरक्षा आवरण भरभराकर ढह गया। अब सत्ता हस्तांतरण महज एक औपचारिकता रह गई है। अफगानिस्तान के अंतरिम मुखिया के तौर पर अली अहमद जलाली की ताजपोशी की तैयारी चल रही है। वहीं दूसरी ओर दोहा में इस संदर्भ में चल रही वार्ता एक प्रहसन मात्र बनकर रह गई है। वार्ता से जुड़ी परिषद का दारोमदार संभालने वाले अब्दुल्ला अब्दुल्ला ही सत्ता में साङोदारी का नया फामरूला तैयार करने में मध्यस्थ बन गए हैं।

इस पूरे घटनाक्रम में राहत की बात यही रही कि तालिबान ने काबुल में घुसने से पहले ही राजधानी के बाशिंदों को आश्वस्त कर दिया था कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं, क्योंकि शहर पर हमला नहीं किया जाएगा। हालांकि शहरवासियों को ऐसा ही भरोसा अफगान सरकार में विदेश एवं आंतरिक मामलों के मंत्री अब्दुल सत्तार मिर्जाक्वाल ने भी एक वीडियो संदेश के माध्यम से दिया था कि सरकार अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा बलों के साथ मिलकर काबुल की रक्षा करेगी, लेकिन उनका यह दावा भी भोथरा ही साबित हुआ। तालिबान ने अब काबुल में भी लंगर डाल लिया है। सत्ता एक तरह से उसके शिकंजे में है। बस उसे स्वरूप देना शेष रह गया है।

अमेरिकी असफलता: अफगानिस्तान में इस बदले हुए परिदृश्य का जिम्मेदार पूरी तरह से अमेरिका ही है। वियतनाम के बाद अफगानिस्तान से इस तरीके से हुई विदाई ‘अंकल सैम’ को हमेशा सालती रहेगी। निश्चित रूप से ऐसी असहज स्थिति से बचा जा सकता था, लेकिन बाइडन की बेपरवाही और अदूरदर्शिता ने सबकुछ मटियामेट करके रखा दिया। यहां तक कि अमेरिकी सेना के शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने भी जल्दबाजी से बचने और चरणबद्ध तरीके से सैन्य बलों की वापसी का सुझाव दिया था, लेकिन राष्ट्रपति ने ऐसी सलाह को दरकिनार करते हुए वापसी को लेकर वीटो कर दिया। वैसे तो अमेरिका ने 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से अपने सभी सैन्य बल वापस बुलाने की तारीख तय की है, लेकिन उसने काफी पहले से ही अपना बोरिया बिस्तर बांधना शुरू कर दिया था।पिछले माह ही रातोंरात बगराम एयरबेस खाली करने जैसी घटनाओं से इसके स्पष्ट संकेत मिलने लगे थे।

स्वाभाविक है कि इसने तालिबान का हौसला बढ़ाया। इसके परिणाम एक के बाद एक प्रांतों और हेरात से लेकर कंधार और अब काबुल तक तालिबानी कब्जे के रूप में देखने को मिले। इस स्थिति के लिए भी अमेरिका ही पूरी तरह कुसूरवार है। गत वर्ष जब उसने तालिबान के साथ वार्ता आरंभ की थी तो उसमें इस जिहादी समूह ने कई मांगें रखी थीं। इसमें उसने अफगान सरकार के कब्जे में कैद 5,000 तालिबानियों की रिहाई के लिए भी कहा था। अफगान सरकार इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने में हिचक रही थी, लेकिन अमेरिकी दबाव में उसे झुकना पड़ा। चिंता की बात यह हुई कि उन 5,000 बंदियों के छूटने से तालिबानी धड़े को मजबूती मिली और वही अफगान सुरक्षा बलों के लिए नासूर बन गए। ऐसे में अमेरिका न केवल तालिबान का मिजाज भांपने में नाकाम रहा, बल्कि वह अफगानिस्तान के संदर्भ में दीवार पर लिखी साफ इबारत को भी नहीं पढ़पाया। उसकी खुफिया एजेंसियों की पोल खुल गई। जो अमेरिकी एजेंसियां कह रही थीं कि काबुल पर कब्जा करने में तालिबान को 90 दिन और लग सकते हैं, ऐसे अनुमानों की भी तालिबान ने हफ्ते भर से कम में ही हवा निकालकर रख दी।

समग्रता में देखा जाए तो तालिबान की ताकत का अंदाजा लगाने में बाइडन प्रशासन मात खा गया। पिछले महीने ही बाइडन ने शेखी बघारते हुए कहा था कि तालिबान की तुलना वियतनाम की सेना से करना गलत है, क्योंकि तालिबान तो उसके पासंग भी नहीं और यहां आपको ऐसे दृश्य देखने को नहीं मिलेंगे, जहां अमेरिकी दूतावास की छत पर चढ़े लोगों के हवाई अभियान के जरिये बचाव की नौबत आ जाए। जाहिर है कि आज जो स्थिति बनी उसे परखने में अमेरिका, उसके साथियों और उनकी खुफिया एजेंसियां असफल रहीं। अफगानिस्तान में स्थिरता और स्थायित्व के लिए कुछ मात्र में अमेरिकी सैन्य बलों की उपस्थिति आवश्यक थी, लेकिन उसने परिस्थितियों और परिणाम कीपरवाह न करते हुए आनन-फानन में अफगानिस्तान से निकलने का जो दांव चला, उसने इस समूचे क्षेत्र को एक खतरे में झोंक दिया है।

पाकिस्तानी प्रपंच: इसमें कोई संदेह नहीं कि तालिबान को पाकिस्तान का सहयोग और समर्थन हासिल है। ऐसे में अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के कब्जे से उसकी कई मुरादें पूरी हो सकती हैं। एक तो बीते कुछ वर्षो के दौरान अफगानिस्तान में भारतीय निर्माण गतिविधियों से नई दिल्ली-काबुल के रिश्तों में जो नई गर्मजोशी आई, उन पर संदेह के बादल मंडरा सकते हैं। पाकिस्तान लंबे अर्से से इस प्रयास में लगा था कि अफगानिस्तान में भारत के प्रभाव को कैसे सीमित कर भारतीय हितों पर पर आघात किया जाए। अब वह इस मुहिम को कुछ धार देता हुआ नजर आएगा। इससे भी बड़ा खतरा इस बात का है कि पाकिस्तान अफगान धरती को आतंक की नई पौध तैयार करने में इस्तेमाल कर सकता है जैसाकि उसने पिछली सदी के अंतिम दशक में किया भी। इस समय पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की हालत बेहद खस्ता है और‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ के संभावित प्रतिबंधों से सहमे पाकिस्तान पर अपने यहां कायम आतंकी ढांचे पर प्रहार करने का दबाव है। ऐसे में वह दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए अपने आतंकी ढांचे पर दिखावटी आघात कर उसे अफगानिस्तान में स्थापित कर सकता है।

पाकिस्तान का मित्र चीन भी उसके इन हितों की पूर्ति में मददगार बनने के लिए जोर-आजमाइश करता दिखेगा। वह पहले से ही अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा खाली किए जा रहे स्थान की भरपाई के लिए लार टपका रहा है। अफगानिस्तान में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए भी चीन की नीयत खराब है। ऐसे में पाकिस्तानी प्रश्रय से स्थापित होने वाली तालिबानी सत्ता इस्लामाबाद और बीजिंग दोनों के हित साधने का काम करेगी। भारत के लिए यह दुरभिसंधि निश्चित रूप से एक खतरे की घंटी होगी, जो पहले से ही बिगड़ैल पड़ोसियों से परेशान है।

भारत के समक्ष कायम दुविधा

तालिबानी सत्ता को लेकर भारत के समक्ष सबसे बड़ा संकट वैचारिक आधार का है। दरअसल एक जिहादी संगठन होने के नाते तालिबान भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान के लिए असहज करने वाला पहलू है। हालांकि, विदेश नीति के कई जानकार तालिबान के साथ संवाद की वकालत कर चुके हैं। उनका मानना है कि कूटनीति में कोई स्थायी शत्रु नहीं होता। इसके बावजूद तालिबान को लेकर भारत की स्वाभाविक हिचक किसी से छिपी नहीं। कुछ दिन पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर की तालिबान के प्रतिनिधि से मुलाकात की खबरें आई थीं, जिनका भारतीय विदेश मंत्रलय ने जोरदार तरीके से खंडन भी किया था। हालांकि, तब और अब में काफी फर्क आ चुका है। अब काबुल में तालिबानी परचम फहरा चुका है। तालिबान के पहले दौर और वर्तमान समय के बीच मेंअफगानिस्तान की तस्वीर काफी बदल चुकी है। उल्लेखनीय है कि बीते वर्षों के दौरान अफगानिस्तान में व्यापक स्तर पर विकास और पुनर्निर्माण के काम हुए हैं। इस बार सत्ता कब्जाने के अपने अभियान में तालिबान ने भी कुछ अलग संकेत दिए। उसने परिसंपत्तियों को खास निशाना नहीं बनाया। यहां तक कि काबुल में भी शांति का परिचय दिया है। वह यह बखूबी जानता है कि हिंसा के कारण उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने से रही। इस पर शंघाई सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की दुशांबे में हुई बैठक में भी आम सहमति बनी थी।

वहीं, यूरोपीय संघ ने भी तालिबान को स्पष्ट रूप से चेतावनी दे दी है। ऐसे में अमेरिका के साथ वार्ता के जरिये तालिबान को जो अंतरराष्ट्रीय वैधता प्राप्त हुई है, वह शायद उसे कायम रखने का कुछ प्रयास करे, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सहयोग के अभाव में तालिबान के लिए सत्ता को सुचारु रूप से चला पाना संभव नहीं होगा। चूंकि, भारत की वहां कई परियोजनाएं दांव पर लगी हैं तो इस मामले में वैचारिक आधार से कहीं बढ़कर व्यावहारिकता से फैसला करना होगा, लेकिन इसमें किसी तरह के जोखिम से भी बचा जाना चाहिए। खासतौर से पाकिस्तान और चीन के साथ तालिबान के समीकरणों को सही तरह से समझकर ही आगे बढ़ना उचित होगा।


मंगलवार, 10 अगस्त 2021

कहीं सूखा, कहीं बाढ़, चक्रवात और लू...तबाही से बचने का अब रास्ता नहीं? जानें, क्या कहती है IPCC रिपोर्ट

भारतीय परिप्रेक्ष्य में कुछ हालिया घटनाएं हमारा ध्यान खींचती हैं इनमें शामिल है -राजस्थान ,मध्यप्रदेश की अप्रत्याशित बाढ़ ,महाराष्ट्र के कोंकड़ क्षेत्र ने जिसका और भी विकराल रूप देखा है। बिहार की आवधिक बाढ़। असम केरल पूर्व में ये मंजर देखने के अभ्यस्त हो चले थे। 

बादलों का यहां वहां फटना बिजली का गिरना क्या आकस्मिक  रहा है ?इसकी एक बड़ी वजह भारतीय समुद्री क्षेत्र का दुनिया भर के सागरों की वनिस्पत ज्यादा तेज़ी से गरमाना रहा है ,तो  वनक्षेत्र का सफाया भी रहा है ,  अरावली जैसे क्षेत्रों की परबत मालाओं का आवासों द्वारा रौंदा जाना भी रहा है इतर अतिरिक्त खनन ,सड़कों का पहाड़ी अंचलों में  निर्माण पारिस्थितिकी पर्यावरण तमाम पारितंत्रों को मुर्दार बनाता रहा है। क्या ये आकस्मिक है वन्य पशु आबादी का रुख करने लगे हैं। भविष्य के लिए ये अशुभ ही नहीं भयावह संकेत हैं जबकि उत्तरी अमरीका से लेकर कनाडा तक लू का प्रकोप दावानल का निरंतर खेला कब रुकेगा केलिफोर्निया से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक इसका कोई निश्चय नहीं।   


What is IPCC ?

आईपीसीसी सरकार और संगठनों द्वारा स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति जलवायु परिवर्तन पर श्रेष्ठ संभव वैज्ञानिक सहमति प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है। ये वैज्ञानिक वैश्विक तापमान में वृद्धि से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर समय-समय पर रिपोर्ट देते रहते हैं जो आगे की दिशा निर्धारित करने में अहम होती है।यह एक आलमी संगठन है जो जलवायु संबंधी एक सरकारी पैनल है। इंटरनेशनल गवर्मेंटल पीनल आन क्लाइमेट चेंज। 

key points about climate change that you need to know about the ipcc report
कहीं सूखा, कहीं बाढ़, चक्रवात और लू...तबाही से बचने का अब रास्ता नहीं? जानें, क्या कहती है IPCC रिपोर्ट
जलवायु परिवर्तन से धरती पर मंडरा रहा खतरा और भी ज्यादा विनाशकारी होने वाला है। यह बात साफ हो गई है संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (IPCC) की एक नई रिपोर्ट से। इससे पहले करीब आठ साल पहले IPCC की रिपोर्ट ने जलवायु परिवर्तन के वैश्विक संकट स दुनिया को आगाह किया था लेकिन दूसरी रिपोर्ट का पहला हिस्सा सोमवार को सामने आने के बाद जाहिर हो गया है कि त्रासदी सामने खड़ी दिख रही है लेकिन इंसान ने सीख नहीं ली है बल्कि हालात बदतर ही हुए हैं। एक नजर डालते हैं इस रिपोर्ट की कुछ अहम बातों पर-
रिपोर्ट कहती है कि औद्योगिक काल के पहले के समय से हुई लगभग पूरी तापमान वृद्धि कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन जैसी गर्मी को सोखने वाली गैसों के उत्सर्जन से हुई। इसमें से अधिकतर इंसानों के कोयला, तेल, लकड़ी और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन जलाए जाने के कारण हैं। वैज्ञानिकों ने कहा कि 19वीं सदी से दर्ज किए जा रहे तापमान में हुई वृद्धि में प्राकृतिक वजहों का योगदान बहुत ही थोड़ा है। गौर करने वाली बात यह है कि पिछली रिपोर्ट में इंसानी गतिविधियों के इसके पीछे जिम्मेदार होने की ‘संभावना’ जताई गई थी जबकि इस बार इसे ही सबसे बड़ा कारण माना गया है।
करीब 200 देशों ने 2015 के ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से कम रखना है और वह पूर्व औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फारेनहाइट) से अधिक नहीं हो।

रिपोर्ट के 200 से ज्यादा लेखक पांच परिदृश्यों को देखते हैं और यह रिपोर्ट कहती है कि किसी भी सूरत में दुनिया 2030 के दशक में 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के आंकड़े को पार कर लेगी जो पुराने पूर्वानुमानों से काफी पहले है। उन परिदृश्यों में से तीन परिदृश्यों में पूर्व औद्योगिक समय के औसत तापमान से दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की जाएगी।

रिपोर्ट 3000 पन्नों से ज्यादा की है और इसे 234 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि तापमान से समुद्र स्तर बढ़ रहा है, बर्फ का दायरा सिकुड़ रहा है और प्रचंड लू, सूखा, बाढ़ और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात और मजबूत और बारिश वाले हो रहे हैं जबकि आर्कटिक समुद्र में गर्मियों में बर्फ पिघल रही है और इस क्षेत्र में हमेशा जमी रहने वाली बर्फ का दायरा घट रहा है। यह सभी चीजें और खराब होती जाएंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंसानों द्वारा वायुमंडल में उत्सर्जित की जा चुकी हरित गैसों के कारण तापमान ‘लॉक्ड इन’ (निर्धारित) हो चुका है। इसका मतलब है कि अगर उत्सर्जन में नाटकीय रूप से कमी आ भी जाती है, कुछ बदलावों को सदियों तक ‘पलटा’ नहीं जा सकेगा।

रिपोर्ट 3000 पन्नों से ज्यादा की है और इसे 234 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि तापमान से समुद्र स्तर बढ़ रहा है, बर्फ का दायरा सिकुड़ रहा है और प्रचंड लू, सूखा, बाढ़ और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात और मजबूत और बारिश वाले हो रहे हैं जबकि आर्कटिक समुद्र में गर्मियों में बर्फ पिघल रही है और इस क्षेत्र में हमेशा जमी रहने वाली बर्फ का दायरा घट रहा है। यह सभी चीजें और खराब होती जाएंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंसानों द्वारा वायुमंडल में उत्सर्जित की जा चुकी हरित गैसों के कारण तापमान ‘लॉक्ड इन’ (निर्धारित) हो चुका है। इसका मतलब है कि अगर उत्सर्जन में नाटकीय रूप से कमी आ भी जाती है, कुछ बदलावों को सदियों तक ‘पलटा’ नहीं जा सकेगा।

इस रिपोर्ट के कई पूर्वानुमान ग्रह पर इंसानों के प्रभाव और आगे आने वाले परिणाम को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त कर रहे हैं लेकिन आईपीसीसी को कुछ हौसला बढ़ाने वाले संकेत भी मिले हैं, जैसे - विनाशकारी बर्फ की चादर के ढहने और समुद्र के बहाव में अचानक कमी जैसी घटनाओं की कम संभावना है हालांकि इन्हें पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। आईपीसीसी सरकार और संगठनों द्वारा स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति जलवायु परिवर्तन पर श्रेष्ठ संभव वैज्ञानिक सहमति प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है। ये वैज्ञानिक वैश्विक तापमान में वृद्धि से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर समय-समय पर रिपोर्ट देते रहते हैं जो आगे की दिशा निर्धारित करने में अहम होती है।

दुनिया के 3 अरब लोगों का 'जीवन' महासागर, ले डूबेंगे मुंबई?

दुनिया के 3 अरब लोगों का 'जीवन' महासागर, ले डूबेंगे मुंबई?

हमेशा के लिए बदल जाएगी धरती..

इंसानों ने बिगाड़े हालात

     

    मंगलवार, 3 अगस्त 2021

    जन्म जयंती मैथलीशरण गुप्त

    जन्म जयंती मैथलीशरण गुप्त 

    है राष्ट्र भाषा भी अभी तक देश में कोई नहीं ,

     हम निज विचार जना सकें ,जिनसे परस्पर सब कहीं। 

    इस योग्य हिंदी है तदपि ,अब तक न निज पद पा सकी ,

    भाषा बिना भावैकता अब तक न हम में आ सकी.(मैथलीशरण गुप्त )

    (२ ) घन घोर वर्षा हो रही है ,गगन गर्जन कर रहा ,

         घर से निकलने को कड़क कर  वज्र वर्जन  कर रहा।

         तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम हैं ,

         किस लोभ से वे आज भी लेते नहीं विश्राम हैं। 

          बाहर निकलना मौत है आधी अंधेरे रात है ,

          आह शीत  कैसा पड़  रहा है ,थरथराता गात है। ('किसान' प्रबंध काव्य से )

    (३ )हो जाए अच्छी भी फसल पर लाभ कृषकों को कहाँ ?

         खाते खवाई बीज ऋण से हैं रंगे रख्खे यहां। 

          आता महाजन के यहां यह अन्न सारा अंत में ,

          अधपेट रहकर फिर उन्हें है कांपना हेमंत में। ('किसान' प्रबंध काव्य से )

    गुप्त जी की पीड़ा में महाजन -साहूकार -ज़मींदार की तिकड़ी में फंसा किसान रहा है तो उपेक्षित नारी पात्र भी। उर्मिला के त्याग रेखांकित करने वाला काव्य कोई गुप्त मैथलीशरण ही लिख सकते थे। आज भी किसान टिकैतों चढूनियों  के हथ्थे चढ़ा हुआ है। 

    नौवीं आठवीं की पुस्तक में पढ़ा होगा यह गीत गुप्त जी का (१९५० -६० )की अवधि में आज भी कंठस्थ है अपनी सादगी गेयता और  सम्प्रेषणीयता को लेकर :

    नर हो, न निराश करो मन को

    कुछ काम करो, कुछ काम करो
    जग में रह कर कुछ नाम करो
    यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
    समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
    कुछ तो उपयुक्त करो तन को
    नर हो, न निराश करो मन को

    संभलो कि सुयोग न जाय चला
    कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
    समझो जग को न निरा सपना
    पथ आप प्रशस्त करो अपना
    अखिलेश्वर है अवलंबन को
    नर हो, न निराश करो मन को

    जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
    फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
    तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
    उठके अमरत्व विधान करो
    दवरूप रहो भव कानन को
    नर हो न निराश करो मन को

    निज गौरव का नित ज्ञान रहे
    हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
    मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे
    सब जाय अभी पर मान रहे
    कुछ हो न तज़ो निज साधन को
    नर हो, न निराश करो मन को

    प्रभु ने तुमको दान किए
    सब वांछित वस्तु विधान किए
    तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो
    फिर है यह किसका दोष कहो
    समझो न अलभ्य किसी धन को
    नर हो, न निराश करो मन को 

    किस गौरव के तुम योग्य नहीं
    कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
    जान हो तुम भी जगदीश्वर के
    सब है जिसके अपने घर के 
    फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
    नर हो, न निराश करो मन को 

    करके विधि वाद न खेद करो
    निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
    बनता बस उद्‌यम ही विधि है
    मिलती जिससे सुख की निधि है
    समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
    नर हो, न निराश करो मन को
    कुछ काम करो, कुछ काम करो

    - मैथिलीशरण गुप्त

    स्वातंत्र्य पूर्व और स्वतंत्र भारत के संधिकाल को आलोकित करने वाले इस कवि  ने पूर्व में उन्नीसवीं शती के रेनेसाँ में हिंदी खड़ी बोली का श्रृंगार कर उसे सांस्कृतिक चेतना परम्परा और मूल्य बोध से जोड़ा। 

    राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है ,

    कोई कवि  बन जाए सहज सम्भाव्य है। (महाकाव्य साकेत से )

    "हम चाकर रघुवीर के, पटौ लिखौ दरबार;
    अब तुलसी का होहिंगे नर के मनसबदार?('साकेत' महाकाव्य  )

    भारतीय राष्ट्रीय चेतना के प्रखर प्रवक्ता रहें हैं राष्ट्रकवि राधा मैथलीशरण गुप्त। दिनकर और आप  में एक और भी साम्य है दोनों ही राज्य सभा के लगातार बारह वर्षों तक माननीय सदस्य रहे। 

    सन्दर्भ -सामिग्री :जन्मजयंती  पर दैनिक जागरण (२ अगस्त २०२१ में )सप्तरंग पुनर्नवा के अंतर्गत स्मरण किये गए हैं गुप्त जी रजनी गुप्त द्वारा gupt.rajni@gmail.com


          

    मंगलवार, 20 जुलाई 2021

    आज़ाद भारत में आईपीसी की धारा १२४ ए क्यों

    आज़ाद भारत में आईपीसी की धारा १२४ ए क्यों  

    इसकी संविधानिक वैधता जांचने से पहले दो फाड़ दो टूक सरे आम कहा जा सकता है जब तक टिकैत विचार के लोग विदेशी पैसे पे पल्लवित पोषित हो रहे हैं भारतीय दण्ड संहिता की धारा १२४ ए क्यों  नहीं होनी चाहिए ?-ये सवाल  ऐसे ही लोगों से पूछना चाहिए जो कहते हैं ट्रेक्टर कोई रोक के तो दिखाए बक्कल तार देंगे। और फिर इसी टिकैत विचार के लोग लाल किले पे धावा बोल देते हैं। 'खुला खेल फरुख्खाबादी 'खेलते हैं। पुलिस वालों को अपने जान बचाने के लिए लालकिले की चौहद्दी में मौजूद खाई में कूदना पड़ता है। 

    अभिव्यक्ति की आज़ादी है जमहूरियत में लेकिन 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' ,'अफ़ज़ल  हम शर्मिन्दा हैं तेरे कातिल ज़िंदा हैं,', 'कितने अफ़ज़ल मारोगे ,हर घर से अफ़ज़ल निकलेगा ' ,'कितने याकूब मारोगे हर घर से याकूब निकलेगा ' जैसे देश तोड़क नारे अभिव्यक्ति  की शर्त पूरी करते  हैं  ?

    बेशक फिरंगियों ने ये क़ानून बनाया था भारत तब पराधीन था। पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं। आज़ाद भारत में संविधान सभा के समक्ष बोलते हुए भारतीय संविधान के पितामह बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने ये कहा था :"व्यक्ति को सविनय अवज्ञा ,असहयोग और और सत्याग्रह के तरीकों को अब  छोड़ना चाहिए। "लोकतंत्र में विरोध के तरीकों से मुखातिब थे वह जब उन्होंने ये कहा -अब हम आज़ाद हैं और अब हमें अपना विरोध प्रदर्शित करने के लिए अराजकता का परित्याग करना चाहिए।दूरन्वेषी थे अम्बेडकर भांप ली थी उन्होंने आने वाले भारत की तस्वीर।  

    आज जबकि  राष्ट्रविरोध को मोदी विरोध का पर्याय मान लिया गया है टिकैत सोच के लोग न अपेक्स कोर्ट की मानते हैं टूलकिट के पुर्जे बनके मनमानी कर रहें हैं। धारा १२४ ए को हटाना बेलगाम घोड़ों को खुला छोड़ देना ही सिद्ध होगा। माननीय कोर्ट इस क़ानून की वैधानिकता की जांच शौक से करे राष्ट्ररक्षा के उपाय भी सुझाये।आदेश पारित करे उसकी राय सर माथे पर।   

    कृपया यहां भी पधारें :https://hindi.livelaw.in/category/columns/bhim-rao-ambedkar-constitution-day-150158

    संविधान सभा को दिए अपने आखिरी भाषण में बीआर आंबेडकर ने कौन सी तीन चेतावनी दी थीं? संविधान दिवस पर विशेष

    स्वतंत्र भारत के इतिहास में 26 नवंबर का अपना महत्व है, क्योंकि इसी दिन वर्ष 1949 में, भारत के संविधान को अपनाया गया था और यह पूर्ण रूप से 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था। इसलिए इस दिन को भारत के एक नए युग की सुबह को चिह्नित करने के रूप में जाना जाता है। संविधान के निर्माताओं के योगदान को स्वीकार करने और उनके मूल्यों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए, 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' (Constitution Day) के रूप में मनाया जाता है।

    गौरतलब है कि, भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने वर्ष 2015 में 19 नवंबर को गजट नोटिफिकेशन द्वारा 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' के रूप में घोषित किया था। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा वर्ष 1979 में एक प्रस्ताव के बाद से इस दिन को 'राष्ट्रीय कानून दिवस' (National Law Day) के रूप में जाना जाने लगा था।

    बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर का चर्चित भाषण 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनी कार्यवाही को समाप्त करने के एक दिन पहले, संविधान की ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष, बी. आर. आंबेडकर ने सभा को संबोधित करते हुए एक भाषण दिया, जोकि काफी चर्चित हुआ। गौरतलब है कि इस भाषण में उन्होंने नव निर्मित राष्ट्र के सामने आने वाली चुनौतियों का विस्तार से वर्णन करने के साथ ही बड़े संयमित शब्दों में उन चुनौतियों से निपटने के तरीके भी सुझाए थे। मौजूदा लेख में, हम उनके द्वारा भारत, भारत के संविधान और भारत के लोकतंत्र को लेकर दी गयी 3 चेतावनियाँ एवं उनके तार्किक सुझाव आपके समक्ष रखेंगे।

    आंबेडकर की तीन चेतावनी बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर की पहली चेतावनी, लोकतंत्र में 'विरोध के तरीकों' के बारे में थी। "व्यक्ति को सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह के तरीकों को छोड़ना चाहिए," उन्होंने कहा था। उनके भाषण में दूसरी चेतावनी, किसी राजनीतिक व्यक्ति या सत्ता के आगे लोगों/नागरिकों के नतमस्तक हो जाने की प्रवृति को लेकर थी। "धर्म में भक्ति, आत्मा के उद्धार का मार्ग हो सकती है। लेकिन राजनीति में, भक्ति या नायक की पूजा, पतन और अंततः तानाशाही के लिए एक निश्चित मार्ग सुनिश्चित करती है," उन्होंने कहा था।

    उनकी अंतिम और तीसरी चेतावनी थी कि भारतीयों को केवल राजनीतिक लोकतंत्र से संतोष प्राप्त नहीं करना चाहिए, क्योंकि राजनीतिक लोकतंत्र प्राप्त कर लेने भर से भारतीय समाज में अंतर्निहित असमानता खत्म नहीं हो जाती है। "अगर हम लंबे समय तक इससे (समानता) वंचित रहे, तो हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को संकट में डाल लेंगे," उन्होंने कहा था। इसके अलावा वह अपने भाषण के दौरान इस बात को लेकर काफी सचेत थे, कि यदि हम न केवल रूप में, बल्कि वास्तव में संविधान के जरिये लोकतंत्र को बनाए रखना चाहते हैं, तो हमें इसके लिए क्या करना होगा।

    आंबेडकर के प्रमुख सुझाव आंबेडकर ने अपनी पहली चेतावनी के सम्बन्ध में यह सुझाव दिया था कि यदि हमे अपने सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करना है तो संवैधानिक तरीकों पर तेजी से अपनी पकड़ बनानी होगी। उनका मानना था कि कि हमें खूनी क्रांति के तरीकों को पीछे छोड़ देना चाहिए। इससे उनका तात्पर्य, सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह की पद्धति को छोड़ देने से था। यह चौंकाने वाला अवश्य हो सकता है, परन्तु उन्होंने अपने इस विचार को साफ़ करते हुए आगे कहा था कि जब आर्थिक और सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संवैधानिक तरीकों के उपयोग करने के लिए कोई रास्ता मौजूद नहीं था, तब इन असंवैधानिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाना उचित था। लेकिन जहां संवैधानिक तरीके खुले हैं (संविधान के जरिये), वहां इन असंवैधानिक तरीकों को अपनाने का कोई औचित्य नहीं हो सकता है।

    आंबेडकर ने अपनी दूसरी चेतावनी के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए जॉन स्टुअर्ट मिल के लोकतंत्र के प्रति विचार को उद्धृत करते हुए कहा था कि किसी नेता या किसी संस्था के समक्ष, नागरिकों को अँधा समर्पण नहीं करना चाहिए। दरअसल मिल ने कहा था कि, "किसी महापुरुष के चरणों में अपनी स्वतंत्रता को समर्पित या उस व्यक्ति पर, उसमें निहित शक्ति के साथ भरोसा नहीं करना चाहिए, जो शक्ति उसे संस्थानों को अपने वश में करने में सक्षम बनाती हैं।" आंबेडकर का यह मानना था कि उन महापुरुषों के प्रति आभारी होने में कुछ भी गलत नहीं है, जिन्होंने देश के लिए जीवन भर अपनी सेवाएं प्रदान की हैं। लेकिन कृतज्ञता की अपनी सीमाएं होती हैं। आंबेडकर ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आयरिश पैट्रियट डैनियल ओ'कोनेल के विचार को भी सदन के सामने रखा था। डैनियल ओ'कोनेल के मुताबिक, "कोई भी व्यक्ति अपने सम्मान की कीमत पर किसी और के प्रति आभारी नहीं हो सकता है, कोई भी महिला अपनी शुचिता की कीमत पर किसी के प्रति आभारी नहीं हो सकती है और कोई भी देश, अपनी स्वतंत्रता की कीमत पर किसी के प्रति आभारी नहीं हो सकता है।"

    आंबेडकर यह मानते थे कि भारत के मामले में, यह सावधानी बरती जानी, किसी अन्य देश की तुलना में कहीं अधिक आवश्यक है। उनके अनुसार भारत में, भक्ति (या जिसे आत्मा के उद्धार का मार्ग कहा जा सकता है), देश की राजनीति में वह भूमिका निभाती है, जो दुनिया के किसी भी अन्य देश की राजनीति में निभाई नहीं जाती है। उनका यह मानना था कि, धर्म में भक्ति, आत्मा के उद्धार का मार्ग हो सकती है, लेकिन राजनीति में, भक्ति या नायक-पूजा, तानाशाही की राह सुनिश्चित करती है। आंबेडकर ने अपनी तीसरी चेतावनी के सम्बन्ध में यह सुझाव दिया था कि हमें मात्र राजनीतिक लोकतंत्र (Political Democracy) से संतुष्ट नहीं होना चाहिए, बल्कि हमे समानता (Equality), स्वतंत्रता (Liberty) और बंधुत्व (Fraternity) के अंतर्निहित सिद्धांतों के साथ सामाजिक लोकतंत्र के लिए भी प्रयासरत रहना चाहिए। हमें अपने राजनीतिक लोकतंत्र को एक सामाजिक लोकतंत्र (Social Democracy) भी बनाना होगा। उनके अनुसार, एक राजनीतिक लोकतंत्र तब तक प्रगति नहीं कर सकता, जब तक कि उसका आधार सामाजिक लोकतंत्र नहीं होता है।

    गौरतलब है कि मई 1936 में छपी 'जाति का विनाश' (Annihiliation of Caste) नामक अपनी उल्लेखनीय पुस्तिका में उन्होंने यह साफ़ तौर पर कहा था कि लोकतंत्र में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के लिए सबसे पहले समानता लाने पर जोर दिया जाना होगा और राजनीतिक परिवर्तन के पहले, सामाजिक परिवर्तन पर जोर दिया जाना चाहिए। उनका कहना था, "राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं चल सकता जब तक कि वह सामाजिक लोकतंत्र के आधार पर टिका हुआ नहीं है। सामाजिक लोकतंत्र का क्या अर्थ है? यह जीवन का एक तरीका है, जो जीवन के सिद्धांतों के रूप में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को पहचान देता है।" भारत नामक विचार को जीवित रखने के लिए आम्बेडकर के अंतिम शब्द हमे पढने चाहिए एवं आत्ममंथन करना चाहिए। उनके कहना था कि, "... हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस स्वतंत्रता ने हमें महान जिम्मेदारियां दी हैं। स्वतंत्रता के बाद से हम कुछ भी गलत होने पर अब अंग्रेजों को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं। यदि यहाँ से चीजें गलत हो जाती हैं, तो हमारे पास खुद को छोड़कर, दोष देने के लिए कोई नहीं होगा..."

    यह कहना ग़लत नहीं होगा कि यह उनकी दूरदर्शिता ही थी कि वे संविधान सभा के आख़िरी भाषण में आर्थिक और सामाजिक गैरबराबरी के ख़ात्मे को राष्ट्रीय एजेंडे के रूप में सामने लेकर आये।

    https://hindi.livelaw.in/category/columns/bhim-rao-ambedkar-constitution-day-150158


    मंगलवार, 13 जुलाई 2021

    'बढ़ती आबादी अंत बर्बादी '

    'बढ़ती आबादी अंत बर्बादी ' बात उन दिनों की है जब दुनिया की आबादी पांच अरब के पार चली गई थी। यही विषय था वार्ता का आकाशवाणी रोहतक से जो मुझे एक वार्ताकार के रूप में दिया गया था।साल और दिन था ११ जुलाई  १९८७। दुनिया भर का ध्यान इस ओर गया लेकिन हुआ क्या ?मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों -ज्यों दवा की।आबादी की रफ्तार को थामने में कहीं धर्म आड़े आया कहीं परम्पराएं। चर्च गर्भपात की खिलाफत करता रहा है [प्रयोगशला में इंटेलिजेंट क्रिएशन की भी।इसे ईश की  अमानत में खयानत माना गया। यहां तक की स्टेम सेल रिसर्च को सरकारी सहायता मुहैया नहीं करवाई गई यहां भी चर्च आड़े आया।

    अमरीका और कनाडा का भौगोलोक क्षेत्र विशाल है जनसंख्या घनत्व कभी मुखरित ही नहीं हो पाता वहां। एक वर्ग मील में ९४ लोग रहतें हैं अमेरिका में। कनाडा में मात्र यही संख्या ११ है प्रति वर्गमील में। जबकि चीन में यह आंकड़ों ३९७ है प्रति वर्गमील क्षेत्र  के लिए। भारत के लिए यह संख्या १२०२ प्रति वर्ग मील है जबकि हमारा भौगोलोक क्षेत्र चीन का  एक तिहाई  है।हमारी आबादी चीन से आज मात्र पांच करोड़  ही कम है वे एक अरब चौवालीस करोड़ हैं तो हम एक अरब उन्तालीस करोड़ के पार निकल गए हैं।अमेरिका का क्षेत्र हमसे १९९ फीसद ज्यादा है।     

    नारे खूब उछले -

    छोटा परिवार सुखी परिवार। 

    हम दो हमारे दो।  

    बस दो या तीन बच्चे होते हैं घर में अच्छे। 

    मज़ाक भी चला किसी के चार बीवियां हों तो नारा हो जाएगा

     हम पांच हमारे आठ।

     नारों से क्या होता है आदमी की नीयत होनी चाहिए काम करने की आज जीवन से अपेक्षाएं बहुत बढ़ गईं  है। एक छोर पर 

    डबल इनकम नो किड्स। 

    का नारा चला है ,इसी का आनुषंगिक रहा है

     सहजीवन लिविंग टुगेदर 

    लेकिन ये सब महज़ एक सीमित वर्ग का ही शगल रहा है। नरेटिव नहीं बन पाया है। 

    जब भी हमारे देश में जनसंख्या को सीमित करने की बात  होती है विघ्नसंतोषी अपने -अपने बिलों में से निकल आते हैं। ये कोई मानने को तैयार नहीं धरती एक ही है। आदमी का एकल परिवास यही धरती अब सात अरब नब्बे करोड़ लोगों का पोषण करने में कब से लड़खड़ाने लगी है एक धरती और चाहिए सबके पोषण के लिए।बच्चों को कोई अल्लाह की रहमत अल्लाह की मर्ज़ी बतलाता है कोई उसका करम।      

    यूं हर साल 11 जुलाई को पूरे विश्व में जनसंख्या दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य यह है कि, दुनिया के  सभी  व्यक्ति बढ़ती जनसंख्या (world population day 2021)की ओर ध्यान  अवश्य  दें  और जनसंख्या को कंट्रोल करने में अपना योगदान भी अवश्य करें. इस दिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई क्रियाकलाप किए जाते हैं. ताकि जनता जागरूक हो सके और जनसंख्या पर कंट्रोल कर सके. जनसंख्या वृद्धि विश्व के कई देशों के सामने बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है. खासकर विकासशील देशों में ‘जनसंख्या विस्फोट’ गहरी चिंता का विषय है. ऐसे में इस मौके पर आइए अपने आसपास के लोगों को जागरूक करते हैं. आइए पढ़ते हैं जनसंख्या दिवस के ये स्लोगन (world population day 2021 Slogan)-

    जब जनसँख्या पर लगाम होगा,
    तभी तो पूरे विश्व में भारत का नाम होगा.

    पृथ्वी पर बढ़ती आबादी का बोझ ना डालो,

    इसके परिणामों से बच जाओगे यह वहम ना पालो.

    विश्व को बढ़ती आबादी की समस्या के प्रति जगाना है,
    दुनिया भर में तरक्की का यह संदेश फैलाना है.

    बच्चों को ईश्वर का उपहार ना बताओ,
    आबादी को बढ़ाकर प्रकृति का उपहास ना उड़ाओ.

    बढ़ती आबादी एक दिन बनेगी बर्बादी का कारण,
    जनसंख्या नियंत्रण करके करो इसका निवारण.

    यदि हमने जनसंख्या नियंत्रण का उपाय नही किया,

    तो पृथ्वी पर जीवन का विनाश होने से कोई नही रोक पायेगा.

    क्या है विश्व जनसंख्या दिवस की थीम? 

    इस साल विश्व जनसंख्या दिवस 2021 की थीम 'कोविड-19 महामारी का प्रजनन क्षमता पर प्रभाव' है। इस साल यह वैश्विक स्तर पर यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और प्रजनन व्यवहार पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव पर अधिक प्रकाश डालने के लिए मनाया जाएगा। 

    विश्व जनसंख्या दिवस 2021 की थीम है 'अधिकार और विकल्प उत्तर है, चाहें बेबी बूम हो या बस्ट, प्रजनन दर में बदलाव का समाधान सभी लोगों के प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को प्राथमिकता देना है।'

    चीन के बाद भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। जहां दुनिया के 18.47 प्रतिशत में चीन का योगदान है, वहीं भारत वैश्विक आबादी के 17.70 प्रतिशत हिस्से को साथ भी पीछे नहीं है। वर्ल्डोमीटर के आंकडों के अनुसार, भारत के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका की पूरी दुनिया की आबादी का 4.25 प्रतिशत हिस्सा है।

    संयुक्त राष्ट्र कहता है कि जनसंख्या में वृद्धि बड़े पैमाने पर प्रजनन आयु तक जीवित रहने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि और प्रजनन दर में बड़े बदलाव, शहरीकरण में वृद्धि और प्रवास में तेजी के साथ हुई है। यह चेतावनी देता है कि आने वाली पीढ़ियों पर इसका असर होगा। इस समस्या को दूर करने के लिए विश्व स्तर पर जनसंख्या प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए।


    किस तरह मनाया जाता है विश्व जनसंख्या दिवस? 


    इस दिन पूरी दुनिया में जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए तरह-तरह से उपायों से लोगों को परिचित कराया जाता है। इसके अलावा परिवार नियोजन के मुद्दे पर भी बातचीत की जाती है। इस दिन जगह-जगह जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम होते हैं और उन कार्यक्रमों के जरिये लोगों को जागरूक करने की कोशिश की जाती है, ताकि बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाई जा सके। 

    World Population Day 2021: History, significance and theme of occassion observed on 11 July

    World Population Day. Image source: News18

      World Population Day is observed every year on 11 July to remind people of the challenges being faced due to overpopulation. The day is marked to call for attention to issues like the importance of family planning, child marriage, gender equality, human rights, and others.

      Amid the COVID-19 pandemic and fear, there has been a lot of focus on creating awareness about overpopulation on a national or global level so that the world ensures a long-term growth of our existing resources.

      जैसे -जैसे जीव -अवशेषी ईंधनों का सफाया हो रहा है हमारी कार्बन की भूख भी उसी अनुपात में बढ़ रही है अब तो अंतरिक्ष में पर्यटन शुरू होने को है  होड़ा-  होड़ी निजी निगमों के बीच होने को है एविएशन फ़्यूल हो या अन्य ईंधन कार्बन फुटप्रिंट बढ़ाते ही हैं। सभ्य होते जाने के साथ पर्यावरण पारितंत्रों को हम विनष्ट करने की कगार पे ले आये हैं कहीं जंगल की आग बुझाये न बुझे हैं। 

      डेथ वेळी नेवादा के निकट ५४ -५५ सेल्सियस के साथ दहक रही है कहीं बे -तहाशा सूखा कहीं अ-प्रत्याशित सैलाब ,बादल की फटन बिजली का कहर बन के टूटना ये विनाश की तरफ ही कदम ताल है। अभी तो शुरुआत है आगे आगे देखिये होता है क्या ,इब्तिदाए इश्क है रोता है क्या ?




       

      गुरुवार, 1 जुलाई 2021

      राम का गुणगान करिये

      राम का गुणगान करिये, राम का गुणगान करिये।
      राम प्रभु की भद्रता का, सभ्यता का ध्यान धरिये॥

      राम के गुण गुणचिरंतन,
      राम गुण सुमिरन रतन धन।
      मनुजता को कर विभूषित,
      मनुज को धनवान करिये, ध्यान धरिये॥

      सगुण ब्रह्म स्वरुप सुन्दर,
      सुजन रंजन रूप सुखकर।
      राम आत्माराम,

      आत्माराम का सम्मान करिये, ध्यान धरिये॥ 

      भावसार :


      श्री राम स्तुति महिमा  : श्री राम की महिमा अलौकिक है। श्री राम कण कण में व्याप्त हैं। हर जगह श्री राम का ही नाम है। श्री राम का जन्म और पूरा जीवन ही धर्म स्थापना के लिए हुआ था। श्री राम ने हर पग पर संघर्ष किया और सभी मर्यादाओं का पालन भी किया। उनका जीवन प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक आदर्श है। श्री राम हैं मर्यादा पुरुषोत्तम।
      जो रमैया है अर्थात रमा हुआ है सारी  कायनात के सर्वत्र जिसकी व्याप्ति है ,वही तो राम है। राम भारत की भोर का पहला स्वर है। कोई गलत बात कान में पड़ते ही आदमी कहने लगता है 'राम राम राम ',और ग़र कोई सुबह सवेरे किसी की निंदा में रस लेने लगे  तो ग्यानी जन कहने लगते हैं-अरे राम का नाम लो किसका ज़िक्र छेड़ दिया। जब आदमी किसी से तौबा कर लेता है तब भी कह उठता है राम राम राम। 
      अंतिम यात्रा में यही शाश्वत स्वर गूंजता है :राम नाम सत्य है ,सत्य बोलो गत्य है।   

      श्री राम की चारित्रिक विशेषताएं और जीवन आदर्श  सभी के लिए अनुकरणीय हैं । श्री राम को जीवन ऐसा नहीं मिला था जिसमें  सिर्फ राजसी ठाट बाठ हों, उनका जीवन संघर्षों का एक अंतहीन क्रम था। श्री राम ने हर परंपरा का पालन किया और उन्हें १४ वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा। उन्होंने सहर्ष इसे स्वीकार किया। विकट परिस्थितियों में वन में रहना और वहां माता सीता का अपहरण हो जाना, रावण से युद्ध करना,वनवास में बाद विजय प्राप्ति माता सीता को पुनः खो देना श्री राम के संघर्ष को दर्शाते हैं। इसके विपरीत आज हम जीवन के छोटे छोटे संघर्षों से हार जाते हैं और दुखड़ा रोते रहते है। 
      और हाँ राम ने सीता को त्यागा नहीं था वह राजा की सहनशीलता नहीं  स्वीकृति थी स्वीकार था प्रजा की भावना का ,इनटॉलरेंस गैंग नॉट करे।भारतीय संस्कृति में किसी को सहने की विवशता नहीं है स्वीकार और सर्वसमावेशन है।  

      श्री राम का जीवन हमें सिखाता है की किस प्रकार से संघर्षों का सामना करते हुए भी हम मर्यादा का पालन करें। श्री राम की जीवन का हर एक कदम एक बड़ी शिक्षा है, जिसे हमें अपने जीवन में उतारना चाहिए। धैर्य, संघर्ष, मर्यादा, सत्यवादिता जैसे जीवन मूल्य हमें श्री राम जी के जीवन से  सीखने को मिलते हैं। श्री राम के जीवन का महत्त्व उनके संघर्ष की वजह से नहीं वरन उनके द्वारा समस्त बाधाओं और समस्याओं का शिष्टता पूर्वक सामना करने में है। यही जीवन का सार है। 

      राम पूजा से लाभ : दरअसल मेरा मानना है की आराध्य देव की पूजा से सीधे यह लाभ नहीं होता है की हमें कही गड़ा धन मिल जाएगा, नौकरी लग जायेगी या फिर पद्दोन्नति हो जायेगी , वरन पूजा से हमारा मनोबल बढ़ता है, सकारात्मक विचार आते हैं, खुद के अकेले होने का भाव समाप्त हो जाता है और व्यक्ति आत्मविश्वास  से भर जाता है जिसके सहारे से सम्पन्नता, रोजगार, वैभव और आपसी रिश्तों में मधुरता स्वतः ही आ जाती है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति का जीवन सुगमता से बीतता है। यही रहस्य है पूजा से मिलने वाले  लाभ का । आप चाहे तो यह समझ सकते हैं की ईश्वर के आशीर्वाद  से सारे काम बन जाते है। जब हम श्री राम के चारित्रिक गुणों को अपने जीवन में उतारने के लिए तैयार होते हैं तो हम सुगम जीवन की प्रथम सीढ़ी चढ़ चुके होते हैं। 



      मन्त्रों के शक्ति को वैज्ञानिक स्तर पर भी परखा जा  चुका है।'राम'नाम  महामंत्र है। सभी   मंत्र दिव्य हैं और हमारे मस्तिष्क को रहस्मय तरीके से जाग्रत कर देते हैं। ये एक प्रकार से विद्युत् तरंगों का निर्माण  करते हैं जो मस्तिष्क को उच्चतम सीमा तक सक्रीय कर देते हैं। 

      श्री राम का नाम  एक दिव्य मंत्र है जिसके जाप से आपके जीवन में सम्पन्नता आएगी और आप हर एक बाधा को पार कर लेंगे। यह मंत्र तारक मंत्र है और इस मंत्र के जाप से जातक के सभी दोष मिट जाते हैं और उसमे दया, क्षमा, निष्कामता जैसे दिव्य गुणों का विकास होने लगता है। इस मंत्र के जाप से दूषित संस्कारों का अंत होता है और व्यक्ति आत्मविश्वास से भर जाता है। ये तो हम सब जानते ही हैं की साहस और आत्मविश्वास के सहारे व्यक्ति बड़ी से बड़ी बाधा को भी पार कर सकता है। इस मंत्र की विशेषता है की इसका जाप कोई व्यक्ति कहीं भी कर सकता है। यह मंत्र इतना शक्तिशाली है की इसे "मंत्र राज" और संकटनाशक भी कहा जाता है। 

      इस मंत्र को सबसे पहले श्री हनुमान जी को नारद मुनि के द्वारा दिया गया था। यह मंत्र जाप करने के लिए बहुत सरल है और इसे कहीं भी जाप किया जा सकता है जिसके लिए किसी विशेष पूजा अर्चना की आवश्यकता नहीं होती बस जातक का हृदय प्रभु भक्ति से भरा होना चाहिए। यह मंत्र व्यक्ति को उसकी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने में सहायता करता है और दुःख दर्द और विषय विकारों का अंत कर देता है।

      श्री राम जी का दिव्य मंत्र :
      श्री राम, जय राम, जय जय राम
      मन्त्र की व्याख्या : यह मंत्र उच्चारण में बहुत ही सरल है लेकिन इसके प्रभाव बहुत शक्तिशाली है।

      श्रीराम : यहाँ जातक भगवान् श्री राम को पुकारलगाता है।
      जय राम : यह श्री राम की स्तुति है।
      जय जय राम:यहाँ जातक श्री राम के प्रति पूर्ण समर्पण दर्शाता है। 
      जीवन के तीन गुण  सत, रज और तम समस्त बंधनों के कारक हैं।  इस मंत्र से इन तीनों  पर विजय प्राप्त की जाती है।पाप और पुण्य दोनों से परे ले जाता है राम का नाम। 
      जय श्रीराम !
      https://www.youtube.com/watch?v=vc2LGF19-vU

      https://www.youtube.com/watch?v=kULNVVphAW4


      Ram Ka Gun Gaan Kariye | राम का गुण गान करिये | राम भजन | Pt. Bhimsen Joshi, Lata Mangeshkar

      Ram Ka Gun Gaan Kariye | राम का गुण ... - YouTube

      https://www.youtube.com/watch?v=vc2LGF19-vU

      LIVE - Shri Ram Katha by Shri Avdheshanand Giri Ji - 26th Dec 2015 || Day 1

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      Streamed live on Dec 26, 2015
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