शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

रेडिओ -धर्मी विकिरण से भारत में पहली बार एक मरा ..

क्या कुसूर था राजेन्द्र का ?यही ,वह कबाड़ी की दूकान पर काम करता था .पढ़ा लिखा ज्यादा नहीं था इसलिए वह क्या कबाड़ी बाज़ार पश्चिमी दिल्ली के माया- पुरी में कोई नहीं जानता था -गामा -इरादियेटर का मतलब क्या है .यह भी नहीं जानता था इसके आस पास जाने से पहले लेड धातु का एप्रिन पहनना पड़ता है ,ताकि खतरनाक विकिरण (गामा -विकिरण से जिसकी भेदन क्षमता बेशुमार होती है बचा जा सके ).,के असर से बचा जा सके ।
लेकिन देश की नाक समझे जाने वालेदिल्ली - विश्व -विद्यालय के एक नहीं दसियों प्रोफेसरों को मालूम था -गामा -इरादियेटर से रिसने वाला विकिरण विषाक्त होता है ।यह एक रिसर्च उपकरण है जिसके पास पूरी एहतियात बरतते हुए ही जाया जा सकता है .ला -परवाही खतरनाक हो सकती है .
इसका स्तेमाल उपकरणों को वि -संक्रिमित (स्त्रेलाइज़ेसन )करने ,खाद्य सामिग्री को डी-कन्तामिनेट करने ,सेल्फ लाइफ बढाने के लिए किया जाता है .गामा -विकिरण पड़ने पर जीवाणु नष्ट हो जातें हैं ।
इसका स्तेमाल बतौर विकिरण चिकित्सा कैंसर के खात्मे के लिए भी किया जाता है,उद्योग जगत में भी .कोबाल्ट -६० (मानव -निर्मित ,रेडिओ -धर्मी समस्थानिक ,रेडियो -एक्टिव -आइसो -टॉप कोबाल्ट -६० ) इसका प्रमुख स्रोत है ।
दिल्ली विश्व -विद्यालय का रेडियेशन -केमिस्ट्री विभाग इसका स्तेमाल १९७० -१९८० के दशक में शोध के बतौर कर रहा था ।
इसे कनाडा से १९६८ में आयात किया गया था .बेशक भाभा -परमाणु -शोध -केंद्र (बार्क )की अनुमति से ही इसकी खरीद की गई थी ।
लेकिन ४० बरस बाद इसे आम कबाड़ की तरह बेच दिया गया .पढ़े लिखे समाज में कुछ भी तो हो सकता है ।
१९८३ में एटोमिक एनर्जी रेग्युलेटरी बोर्ड का गठन हुआ .शायद यह 'गामा -इरादियेटर 'इसके राडार पर नहीं था ।
भारत रेडियो -आइसो -टॉप्स का निर्यात करता है ,एक्सपोर्ट करता है .भारत निर्मित सभी कोबाल्ट -६० स्रोतों का एटोमिक रेग्युलेटरी एजेंसी के साथ पंजीकरण (रजिस्ट्रेसन )ज़रूरी रहता है .नजर रखी जाती है इन्स्रोतों पर ।
अलबत्ता १९७० -१९८० के दशकों में आयातित विकिरण स्रोत इस एजेंसी के साथ पंजीकृत नहीं रहें हैं .ऐसे तमाम स्रोतों पर अब नजर रखने की ज़रूरत बढ़ गई है ।बेशुमार खतरा है चिकित्सा कबाड़ से जो मेडिकल कालिजों से निकल रहा है .
फिर कोई बे-कसूर राजेन्द्र (३५ वर्ष )विकिरण का ग्रास ना बने ।
रेडिओ -एक्टिव तत्वों में एटोमिक स्केल पर लगातार विस्फोट होते रहतें हैं .इनके नाभिक आपसे आप टूटते रहतें हैं .इस डिके (दिस -इन्तिग्रेसन ),विखंडन के साथ विकिरण के बतौर अल्फा ,बीटाया फिर गामा -रेज़ रिस्तीं हैं ।
हरेक रेडिओ -धर्मी तत्व का एक लाइफ -साइकिल ,जीवन अवधि है .इसका निर्धारण हाफ लाइफ -साइकिल्स से होता है .इनमे लोंगर -लिव्ड कुदरती आइसो -टॉप्स भी हैं ,शोर्ट -लिव्ड भी ,मानव निर्मित भी .
एक हाफ- लाइफ- साइकिल के बाद किसी तत्व की मात्रा पहले से आधी रह जाती है .कोबाल्ट -६० दस हाफ -लाइफ -साइकिल के बाद बेअसर हो जाता है .यानी अब विकिरण रिसाब एक सुरक्षित सीमा में ही होता है जिसे निरापद समझा जाता है ।
एक हाफ साइकिल की अवधि ५.२७ बरस है कोबाल्ट -६० के लिए .दस हाफ साइकिल यानी ५२.७ बरस बाद यह निरापद समझा जा सकता था ।
लेकिन शायद यह इससे पहले ही कबाड़ में पहुँचा दिया गया .ऐसी लापरवाही भविष्य में भी किसी राजेन्द्र की जान ले सकती है .खुदा खैर करे .

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

बारह बरस पहले ही बुढापे की ज़द में ले आती हैं चार बुरी आदतें

'फॉर बेड हेबिट्स एड १२ ईयर्स तू यूओर एज (स्मोकिंग ,ड्रिंकिंग ,इनेक्तिविती एंड ए पूअर डाइट कम्बाइन तू पोज़ ह्यूज़ हेल्थ रिस्क्स :रिसर्चर्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २८ ,२०१० )
'एक मच्छर साला आदमी को नपुंसक बना देता है '-यह पंक्ति है एक विज्ञापन की .जरा सोचिये -चार चार ऐबों की मिलीभगत ,दुर्भि- संधि आपकी सेहत के साथ क्या गुल खिला सकती है ।
ये चार दुर्गुण चलन में है -स्मोकिंग ,ड्रिंकिंग तू मच ,जीवन में कसरत का अभाव ,और गलत खान पान (पूअर डाइट ).१२ साल पहले ही आप बुढापे की जद में आ सकतें इनके हत्थे चढने पर ।
ओस्लो विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने इस खोज को परवान चढाया है .आर्काइव्स ऑफ़ इंटरनल मेडिसन में इसके नतीजे छपे हैं ।
अपनी खोज के दौरान शोध छात्रों ने ५००० ब्रितानी बालिगों को ट्रेक किया .इनमे से ३१४ चारों गंदी आदतों से ग्रस्त थे .अध्धययन के दरमियान ही इनमे से ९१ (यानी २९ फीसद )चल बसे .जबकि इसी दरमियान ३८७ सबसे ज्यादा तंदरुस्त लोगों में से सिर्फ ३२ (८ फीसद )ही मरे .ये लोग चारों आदतों से मुक्त थे .मर्दों का रोजाना तीन पेग से ज्यादा शराब पीना ,हफ्ते में दो घंटे से भी कम व्यायाम करना ,और दिन में तीन मर्तबा भी फल और हरी सब्जियों का सेवन ना करना .बेड हेबिट्स के तहत आयेगा ।
महिलाओं के लिए दो पेग से और मर्दों के लिए तीन पेग से कमतर शराब का सेवन शराब खोरी की गंदी आदत में शुमार नहीं होगा ।हेल्दियेस्ट उन्हें माना जाएगा जो रोजाना चार कप फ्रूट्स या सब्जी की सर्विंग्स लेतें हैं .दो घटा प्रति सप्ताह से ज्यादा व्यायाम करतें हैं .धूम्रपान से परहेज़ रखतें हैं ।
जो इन चारों दुर्गुणों की जद में बने रहतें हैं वह उम्र से १२ साल पहले बूढ़े दिखने लगतें हैं ,सच मुच जल्दी बढाने लगतें हैं .

जीवन रक्षक होतें हैं -हार्ट -वाल्वस ..

हार्ट वाल्व एक झिल्लीनुमा संरचना को कहतें हैं .चार -कक्षों वाले हमारे ह्रदय में इतने ही हृद वाल्व होतें हैं .जिनका काम निरंतर एक ही दिशा में रक्त संचरण को बनाए रखना है .यह ऊपरी और निचले कक्षों के प्रवेश और निकासी मार्ग पर मौजूद रहतें हैं ।वास्तव में वाल्व किसी भी होलो ओर्गेंन या वेसिल (पात्र )में लगे होतें हैं .इनका काम तरल को आगे प्रावाहित करते रहना है ,पीछे लौटने से रोकना है .इनमे फोल्ड होनेया बंद का प्रावधान रहता है ।
हृद वाल्वों के खुलने , बंद होने का मतलब ही दिल की धोंकनी का निरंतर चलते रहना है .तथा शरीर के विभिन्न अवयवों तक रक्त पहुंचाना .,इनके ही जिम्मे रहता है ।
बहुत ही नाज़ुक होतें हैं हृद वाल्व .यह जन्मजात तथा अर्जित दोनों ही तरह की बीमारियों से असर ग्रस्त हो जातें हैं ।
हृद वाल्व सम्बन्धी रोगों को अब सही प्रकार से ठीक कर लिया जाता है .चंद दशक पहले यह मुमकिन ही नहीं था .वाल्व खराब हो जाने ,वाल्व में किसी प्रकार की गडबडी ,वाल्व डेमेज हो जाने पर मरीज़ को उसके ही हाल पर छोड़ देना पड़ता था .नतीज़न जीवन की गुणवत्ता से समझोता करना पड़ता था ,रोगी की असमय मौत भी हो जाती थी ।
अब हर तरह के पेचीला- पन कोम्प्लेक्स वाल्व दिस -ऑर्डर को बाकायदा दुरुस्त कर रोगी को सामान्य जीवन जीने के अनुकूल बना दिया जाता है ।
लेकिन कई जन्मजात रोग इलाज़ ना करवाने पर हार्ट वाल्व और स्वयम हमारे जीवन के लिए खतरा बन जातें हैं .
र्ह्युमेतिक फीवर ऐसा ही एक कोन्जिनाइत्ल -रोग है .यह दिल के इन द्वारपालों ,जीवन रक्षक वाल्वों को इलाज़ मयस्सर ना हो पाने की स्थिति में नस्त ही कर डालता है ।
भारत में खासकर आर्थिक -सामाजिक तौर पर समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों में यह रोग व्याप्त है .आम तौर पर इसी वर्ग के किशोर -किशोरियां इस बीमारी की चपेट में आतें हैं .इन्हें पेंसीलिन के दीर्घावधि इलाज़ से रोग मुक्त किओया जा सकता .ज़रुरत तवज्जो देने की है ।
इलाज़ के लिए इन्हें आगे लाने के लिए जन -शिक्षण वक्ती ज़रुरत है ।
र्युमेतिक फीवर शुरूआती दौर में थ्रोट -इन्फेक्सन के बतौर अपने को प्रकट करता है .उच्च ज्वर और जोड़ों में दर्द इसके ख़ास लक्षण हैं .इसकी अनदेखी करना ख़तरा -ए -जान समझो ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-हार्ट वाल्वस :गेट-कीपर्स ऑफ़ लाइफ (टाइम्स ऑफ़ फिन्डिया ,अप्रैल २८ ,२०१० .,कवर स्टोरी )

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

दुखते दिल को मरहम लगाता है संगीत

'म्युज़िक सूद्स दा स्ट्रेस्ड हार्ट '(हार्ट डाइजेस्ट ,कवर ,टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २८ ,२०१० )।
संगीत के माहिरों का कहना हैं संगीत दिल पे पसरे दवाब से छुटकारा दिलाता है ।
शास्त्रीय संगीत की जानी मानी गायिका सुधा रघुनाथन का मानना है ,कुछेक राग (शास्त्र बद्ध बंदिशें )स्वस्थ चित्त होने का एहसास करवातीं हैं .(वैसे तो संगीत ध्यान की ही एक अवस्था है )।
बेशक रागों की पसंदगी हर व्यक्ति की अलग अलग हो सकती है .लेकिन आमतौर पर रागस साहना(एस ए एच ए एन ए ),राग देश ,सुभापंतुवाराली ,द्विजवंथी ,नीलाम्बरी ,रीथिगोवला ,अनंदा भैरवी ,अहीर भैरवी ,चक्रवाहम ,कापी और मध्यमावाठी सच- मुचमें आपको अपने अच्छा होने का एहसास करवातें हैं ।
फिल्म बैजू -बावरा में रागों की लीला ,रागों के प्रभाव का बेहद खूब -सूरत चित्रण दिग्दर्शन हुआ है ।

कितनी कैफीन ले सकतें हैं आप ?

कैफीन एक सफ़ेद रंगी क्रिस्टलीय जेंथींन एल्केलोइड है. यह एक उत्तेज़क पदार्थ है ,स्तिम्युलेंत है जो आमतौर पर कोफी ,चाय ,कोला नट्स में मौजूद रहता है .सोफ्ट ड्रिंक्स (कोला पेय )कोकोआ ,दवाओं और दर्द नाशी के बतौर भी यह काम में लिया जाता है ।
कैफीन का शरीर में बाहुल्य कैफीनिज्म की वजह बन सकता है .जिसके फलस्वरूप डायरिया ,हाई -पर -टेंशन ,पेल्पितेसंस ,एक्स्सलेरितिद ब्रीद -इंग तथा इन्सोमिनिया (अनिद्रा )के लक्षण पैदा हो सकतें हैं ।
मोडरेशन इस दा की .:कैफीन से एड्रीनेलिन का स्राव होता है. मोडरेशन में इसका स्तेमाल एलर्ट -नेस को बढाता है ,चुस्ती बनी रहती है .पेशियों की सक्रियता का स्तर बढ़ जाता है .नर्वस सिस्टम और दिल भी ठीक रहतें हैं ।
लेकिन इसका बहुत अधिक सेवन लॉन्ग टर्म स्ट्रेस जैसा असर छोड़ता है ।
अलबत्ता लत पड़ जाने पर यकदम बंद मत कीजिये इसका सेवन .विद्रोवल -सिंड्रोम की चपेट में आ सकतें हैं आप .धीरे धीरे और दीर्घावधि में ,ओवर ए पीरियड ऑफ़ टाइम ही इसका स्तेमाल कम कीजे ।
एड्रीनेलिन :एक हारमोन है जिसका स्राव एड्रिनल -ग्लेंड्स करतीं हैं .कुछ नर्व -एन्दिंग्स भी एड्रीनेलिन स्रावित करतीं हैं .यह स्ट्रेस -रिएक्शन के तहत होता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-हाउ मच कैफीन आर यूं अलाउद ?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २८ ,हार्ट -दाई -जेस्त ,विन्डोज़ ,पेज -कवर )

बचाव में ही बचाव -दिल के बचाव के लिए

दिल के लिए कोई सात जोखिम भरी बातें बतलाई हैं साइंस दानों ने ,हृद -रोगों के माहिरों ने .दिल की सलामती के लिए इन्हें टाले रखिये।
स्मोकिंग यानी धूम्रपान की आदत :जो लोग धूम्र पान नहीं करते उनकी तुलना में स्मोकर्स के लिए दिल के खतरे का वजन दोगुना बढ़ जाता है .(पहले धमनियों का अन्दर से खुरदरा पड़ना ,संकरा हो जाना -आर्तिरीयो -स्केलेरोसिस और फिर कोरोनरी आर्तारीज़ दीजीज़ स्मोकिंग की ही सौगातें हैं ।).
खून में घुली अतरिक्त चर्बी (बेड कोलेस्ट्रोल ):खून में घुली चर्बी का विनियमन कीजिये .कम दाइत्री-कोलेस्ट्रोल लीजिये (ऐसी खुराख जिसमे डाईट-री कोलेस्ट्रोल कम रहे ),ट्रांस फेटि एसिड्स (हैद्रोज्नीक्रित चिकनाई ,डालडा ,हाइड्रोजन -युक्त वानस्पतिक तेल )तथा संतृप्त वसाओं का डेरा ना हो .नियमित व्यायाम करने से बेड कोलेस्ट्रोल ही गुड कोलेस्ट्रोल में बदल जाता है ।
ब्लड -प्रेशर :अपने पूरे रिस्क प्रोफाइल के मद्दे नजर अपने रक्त चाप के ऊपरी और निचले पाठों को विश्व -स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्थापित आदर्श मानों के अनुरूप रखिये .(११० /७० ).इसके लिए अपनी खुराख ,दैनिक व्यायाम ,वेट मेनेजमेंट पर तवज्जो रखिये .ज़रुरत के मुताबिक़ एंटी -हाई -पर -तेंसिव दवाएं लीजिये माहिरों की सलाह के अनुसार ऐसा नियम निष्ठ होकर कीजिये ,कोई कोताही नहीं ,कोई नागा नहीं ।
दायाबीतीज़ मेलाइतिस(मधुमेह ):सब रोगों की माँ है -दायाबीतीज़ .जीवन शैली रोग भी है जो गलत खान पान रहनी सहनी का नतीज़ा है ।
अलबत्ता खानदानी या जन्म जात होने पर इसे तजवीज़ की गई खुराख ,व्यायाम और सिफारिश की गई दवाओं को नियन निष्ठ लेते रहकर काबू किया जा सकता है .बहर -सूरत इलाज़ कोई नहीं है इस मेटाबोलिक दिस -ऑर्डर का ।
व्यायाम :सिदेंत्री लाइफ स्टाइल ,बैठे बैठे कंप्यूटर पर काम करने की मजबूरी या फिर अदबदाकर तनाव भरे धारावाहिकों की लत पाले रखना ,काउच पोटेटो बने रह जाना आज तमाम तरह के रोगों के ट्रिगर मोटापे की भी वजह बन रहा है ,इतर रोगों की भी .
"बस आधे घंटा हल्का व्यायाम ,सब रोगों से आराम "
अपना महत्व है चलने फिरने का .आप काज महा काज ।
ईटिंग यानी खान पान :जैसा अन्न वैसा मन ,जैसा मन वैसी काया .जैसा पानी ,वैसी वाणी ,जैसी वाणी वैसा आपा ।
कम नमक ,कमतर( संतृप्त वसा ,ट्रांस फेट्स ,कोलेस्ट्रोल) तथा कमतर परिष्कृत खाद्य (सफ़ेद चीनी ,चावल ,मैदा और इसके उत्पाद )दिल के लिए मुफीद हैं .कह सकतें हैं -हार्ट हेल्दी डाईट के अंग हैं ।
गहरे रंगों की तरकारी ,फल एंटी -ओक्सिदेंट्स के भण्डार हैं (ब्रोकली ,बेल पेपर ,लाल पीली ,नारंगी शिमला मिर्च ,चुकंदर (बीट- रूट्स ),विलायती गाज़र (ओरेंज कैरट),ग्रीन टी ,गहरे हरे रंग की सब्जीयाँ आदि विटामिन्स ,पुष्टिकर तत्वों के भण्डार हैं ,फाइटो- केमिकल्स केभी भण्डार हैं ये .).ड्राई फ्रूट्स का खुराख में होना रहना भी उतना ही महत्वपूर्ण है .खुबानी ,चेरीज़ ,ब्लेक बेरीज ,रेस्प बेरीज आदि पुष्टिकर हैं .राज माँ को भी कम मत समझिये ।
मोटे अनाज और गुड (जेग्री )गुड चने खून में लौह तत्वों की कमी की भी संभाल करेंगे .खाओ चने रहो बने ।
स्ट्रेस यानी रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में पसरा तनाव :
माहिरों की माने तो यही तनाव मार रहा है .दी बिगेस्ट किलर ऑफ़ आवर टाइम्स .इससे बचिए .बच कर निकलिए निगेटिव लोगों से .निगेटिव थाट इज मोर पावर फुल देंन एन एटोमिक वेपन .विष कन्याओं और विष पुरूषों की सोहबत से बचिए .अपना एतित्युद बदलिए .खुद को बदलना आसान है .अपना आपा अच्छा तो जगत अच्छा ।
बेलगाम गुस्सा अपनों और परायों पर ,खुद पर, 'हार्ट -अतेक्स 'तथा सेरिब्रो -वैस्क्युँल्र -एक्स्सिदेंट्स 'दिमागी दौरे की एक एहम वजह बना हुआ है .अपने साथ रहना सीखिए .तनाव का प्रबंधन किसी भी विध कीजिये ।
सन्दर्भ सामिग्री :-वाट यु केन डू तू सेव यूओर हार्ट (लीड स्टोरी /बॉक्स न्यूज़ टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २८ ,२०१० )

हृदरोगों की राजधानी बनता भारत

अपोलो अस्पताल के संस्थापक मुखिया (चेयर- मेन)डॉक्टर प्रताप सी रेड्डी ने भारत वासियों को चेताते हुए कहा है ,यदि शीघ्र ही हमने बचावी उपाय नहीं किये जीवन शैली में सुधार नहीं किया तो भारत हृद रोगों की राजधानी बन जाएगा ।
विश्व -स्वास्थ्य संगठन के माहिरों के मुताबिक़ दूसरे मुल्कों के बरक्स (बनिस्पत )भारतवासियों के लिए हृद-रोगों का ख़तरा ज्यादा ही मुह बाए खड़ा रहता है .हमारा खान पान और जेनेटिक मेक अप इन रोगों के अनुकूल है .बेशक जीवन शैली सुधार कर हृद रोगों ,हाई -पर्टेंसन,दायाबीतीज़ (मधुमेह ,शक्कर की बीमारी ),कैंसर ,स्वसन सम्बन्धी संक्रमणों से अपेक्षा कृत बचे रहा जा सकता है ।
और इस में कुछ मेहनत भी आपको नहीं करनी है .हेल्दी फ़ूड लीजिये (परम्परा -गत भारतीय थाली ,दही भात ,दाल सब्जी ,मौसमी फल तथा सलाद आदि ).,यदि धूम्रपान करतें हैं तो मुल्तवी कर दीजिये -अपने और अपने परिवार की भलाई और सलामती के लिए .आखिर आप आपने शौक के लिए दूसरे के फेफड़ों का स्तेमाल क्योंकर करिएगा ?आप अपने बीबी बच्चों को प्यार करतें हैं ।?
बैठे ठाले काउच-पटेटो बने रहना हृद के लिए खतरनाक है .थोड़ा सा हल्का व्यायाम .आधा घंटा टहलकदमी ,गार्डनिंग (किचिन गार्डन की संभाल कौन बड़ी बात है ).बस हफ्तेमें पांच मर्तबा और कुछ नहीं तो हल्का तेज़ चल लीजिये अपनी सामर्थ्य के हिसाब से .बैठे बैठे हुक्म मत चलाइये ,हिलिए अपनी जगह से , अपने काम खुद कीजे ।
अपने गुस्से पर काबू रखना सीखिए .दिल के लिए घातक है गुस्सा .स्ट्रेस का प्रबंधन करना सीखिए (अपनी मर्ज़ी का कोई काम ज़रूर कीजिये ,कुछ शौक रखिये, रचनात्मक )।
अपने खून में घुली चर्बी (कोलेस्ट्रोल )को ,शक्कर कोवि - नियमित ,नियंत्रित रखिये ।
सन्दर्भ- सामिग्री :-बिलियन हार्ट्स बीटिंग केम्पेन लोंच्द (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २८ ,२०१० )

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

खबरदार -परग्रह वासियों से दूर की दोस्ती ही अच्छी ,,

'एलिएंस एग्ज़िस्ट्स ,बट डोंट ट्राई टाकिंग तू देम'कोंटेक्ट विद एक्स्ट्रा -टेरिस्ट्रियल कुड स्पेल दीवास्तेसन फॉर ह्युमेनिती ,सेज स्टीफेंन हाकिंग (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २६ ,२०१० )
तकरीबन २०० अरब तारें हैं एक निहारिका में (गेलेक्सी को निहारिका या दूध गंगा भी कह देतें हैं ,जैसे हमारी मिल्की- वे गेलेक्सी को कह दिया जाता है ).और तकरीबन एक हज़ार अरब (एक ट्रिलियन ) निहारिकायें हैं सृष्टि में ..सितारों के एक बड़े समूह को जिसमे अरबों खरबों सितारे होतें हैं गेलेक्सी कहा जाता है ।रफ्ली वन लेक मिलियन मिलयन मिलियन स्टार्स आर देयर इन दी ओब्ज़र्वेबिल यूनिवर्स .
अब तक तकरीबन चार सौ एक्सो -प्लेनेट्स (सौर मंडल से परेमिले गृह ) का पता चल चुका है .विज्ञानियों (खगोल विज्ञान के माहिरों )का एक तबका मानता है -भौमेतर जीवन है .अति -मानव भी हो सकतें हैं किसी सूदूर गेलेक्सी की छाँव में .इनसे दूर की दोस्ती ही भली .कन्ज्युमारिज्म में यह हमारे बाप हो सकतें हैं .हो सकता है अपने प्लेनेट के संसाधनों को हजम कर अब यह शिकार पर निकलें हों ।खतरनाक समुंद्री लूटेरों से .
लेकिन इनकी खोज 'सेती जैसे 'सर्च फॉर एक्स्ट्रा -टेरिस्ट्रियल बींग्स 'जैसे अभियान हमारे गले ना पड़ जाए ?यही कहना है मशहूर रेडियो -खगोल और भौतिकी विद वील चेयर बाउंड 'स्टीवेंस हाकिंग्स 'का ।
एक नवीन दोक्युमेंत्री -सीरीज में हाकिंग महोदय ने सृष्टि की बेजोड़ गुत्थियों पर रौशनी डालते हुए उक्त विचार व्यक्त कियें हैं ।
बकौल हाकिंग जीवन भौमेतर (पृथ्वी के अलावा और पृथ्वी के बाहर ) ही नहीं सितारों के केंद्र में यहाँ तक की सितारों के बीच के खाली स्थानों (अंतर -तारकीय -स्पेस )में भी यहाँ वहां तैर रहा होसकता है .पक्के समर्थक हैहाकिंग भौमेतर जीवन के ,पृथ्वी से परे मौजूद सुपर ह्यूमेन बींग्स के ।
अब सवाल इनके स्वरूप का है ?मिजाज़ का है .तेज़ तर्रार होने का है ।
यह उड़न लिजार्ड्स (येलो -लिज्जार्ड्स ),दो पैरों वालीभीमकाय छिप्किलियों से भी हो सकतें हैं .उन्हीं के शब्दों में -'दे में बी तू लेगिद हर्बिवोर्स ब्रोव्सिंग ओंन एन एलियेंन क्लिफ फेस वेअर दे आर पीकद ऑफ़ बाई फ़्लाइंग .,येलो लीजार्द ला -इक प्रीदेतर्स.'
एक और दोक्युमेंतरी का परिदृश्य इस प्रकार है -दी दोक्युमेंतरी शोज़ ग्लोइंग फ्लोरिसेंत एक्वातिक एनिमल्स फोर्मिंग वास्ट शोअल्स इन दी ओशन थोट तू अन्डरलाई दी थिक आइस कोटिंग ,युरोपा वन ऑफ़ दी मून्स ऑफ़ जुपिटर ।
बेशक ऐसे नज़ारे संदेह और खौफ दोनों एक साथ पैदा करतें हैं .लेकिन मकसद यह बतलाना है ,.कहीं पर अति- विकसित और खतरनाक स्वभाव वाले प्राणी भी हो सकतें हैं .इनसे संपर्क पृथ्वी वासियों के लिए घातक हो सकता है .यह हमारे संसाधनों को हड़प सकतें हैं .इनकी साज़िश तमाम सृष्टि को अपना उपनिवेश बनाने की भी हो सकती है .यह पृथ्वी पर आकर लूट पाट करके आगे बढ़ सकतें हैं भौमेतर ग्रहों को लूटने के लियें ,किसी शातिर घूमंतू की तरह ।
याद कीजिये कूलाम्बस द्वारा अमरीका की खोज मूल -निवासियों के लिए कैसी अप्रीतिकर रही थी .क्या हश्र हुआ था नेटिव्स का ,रेड इंडियंस का ?

जलवायु परिवर्तन से निजात दिलवा सकती है 'वेह्ल -द्रोपिंग्स '

ऑस्ट्रलियाई साइंस दानों की माने तो वेह्ल द्रोपिंग्स सद्रंन ओशन को गरमाकर आलमी गर्मी (ग्लोबल वार्मिंग )का मुकाबला करवा सकती है ।
साइंस दानों के मुताबिक़ वेह्ल एक्स्क्रीता (मल या फीशिस )आयरन -रिच (लौह तत्व बाहुल्य लिए रहता है ) होता है .यह (एक्स्करी )एक कुदरती ओशन फ़र्तिलाइज़र (सागरीय उर्वरक )है जो पूरे पारिश्थिति तंत्र को गहरे समुन्दर में ज्यादा से ज्यादा कार्बन सोखने ज़ज्ब करने के लिए तैयार करसकता है ।
इस एवज बालींन वेल्स और किरिल्स की बड़ी आबादी चाहिए .ताकि सद्रंन ओशन अधिकाधिक कार्बन दाई -ओक्स्साइड ज़ज्ब कर सके .यह पूरा इको सिस्टम इन वेल्स की तादाद बढ़ जाने पर कार्बन दाई -ओक्स्साइड का सोखता बन सकता है .हम जानतें हैं समुन्दर वैसे भी कार्बन -दाई -ओक्स्साइड के ज्ञात स्रोत हैं ।
प्लांट्स की यह पहली पसंद हैं फस्ट लव है .वास्तव में पादप वायु मंडल से कार्बन की निकासी करतें हैं .द्रोपिंग्स सोलिड्स और लिक्वीड्स का एक प्लूम साबित होगी .अन्टार्क्टिक डिविज़न (ऑस्ट्रलियाई )ने इस रिसर्च को आगे बढाया है ।
वास्तव में सद्रंन ओशन में आयरन एक सीमित माइक्रो -न्युत्रियेंत ही बना रहा है .ऐसे में सतहीजल में घुलन शील लौह तत्व फाइटो-प्लांक -तन और एल्गी कीबड़े पैमाने पर फार्मिंग की वजह बनेगा .सतही जल में पल्लवित एल्गी में जहां पादप फलते फूलतें हैं ग्रो करतें हैं आइय्रण भी मौजूद रहता है .लेकिन लौह बहुल कण गहरे जल में समाधि लेते रहतें हैं ,पैंठ जातें हैं ।
किरिल इस एल्गी को खाती है और वेल्स किरिल को .वेळ एक्स्क्रीता के बतौर एक बार फिर आयरन लौट आता है .नतीज़न सतही जल में आयरन का स्तर बढ़ जाता है .यहीं इसकी अधिक ज़रुरत भी है ।
सागरीय जल के बरक्स वेळ- पू (वेह्ल एक्स्क्रीता )में आयरन का ज़माव (सांद्रण ,कन्संत्रेसन )एक करोड़ गुना ज्यादा पाया गया है .किरिल -एल्गी -वेह्ल का परस्पर इन्तेरेक्सन बहुत ही उच्च स्तर पर होता है .यह एक स्वयं चालित कायम रह सकने लायक तंत्र बन जाता है ।
अब सवाल यह है -कितना वेह्ल -पू चाहिए ?ताकि सद्रं ओशन ज्यादा से ज्यादा कार्बन का एक ब्लोटिंग पेपर एक बेहतरीन से भी बेहतरीन सिंक बन जाए ?इस सवाल का ज़वाब मिलना बाकी है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-वेह्ल द्रोपिंग्स केंन हेल्प काम्बेट क्लाइमेट चेंज (टाइम्स सोफ़ इंडिया ,अप्रैल २६ ,२०१० )
वेह्ल द्रोपिंग्स केंन हेल्प काम्बेट 'क्लाइमेट चेंज '.

जींस का भी हाथ हो सकता है स्मोकिंग एडिक्सन में ?

एक साथ तीन अध्धय्यन इस और संकेत कर रहें हैं ,धूम्र -पान की शुरुआत और इसकी लत पड़ जाने के पीछे कुछ जींस का भी हाथ हो सकता है ।
रिसर्चरों को कुछ क्रोमोज़ोम्स (गुणसूत्रों )में बस एक लेकिन एक व्यापक स्तर पर लोगों में व्याप्त बदलाव देखने को मिला है .स्मोकिंग हेबिट्स के लिए बहु -विध इसी बदलाव की तरफ शक की सुईं घूम रही है ।
इस निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले १,४०,००० से ज्यादा लोगों के जीनोम की पड़ताल की गई है .इनमे स्मोकर्स और नॉन -स्मोकर्स दोनों ही शामिल थे ।
क्रोमोजोम संख्या ११ के एक वेरिएंट की इस एवज निशाँ देही की गई .इसका सम्बन्ध धूम्रपान की शुरुआत करवाने से जोड़ा गया है .अलावा इसके गुणसूत्र ९ की भी निशाँ देही की गई .इसका सम्बन्ध धूम्रपान मुकम्मिल तौर पर छोड़ देने से जोड़ा जाता रहा है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-जींस इन्फ़्ल्युएन्स स्मोकिंग एडिक्सन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २७ ,२०१० )

खानदानी वजहें भी हो सकतीं हैं 'शीघ्र -पतन 'की ?

क्या 'शीघ्र -पतन 'यौन कर्म 'या सेक्स एपिसोड से बेहदजल्दी निवृत्त होने की खानदानी वजूहातेंभी हो सकतीं हैं ?.क्या मैथुन- रत ज्यादा देर तक ना बने रहने के पीछे कुछ जीवन इकाइयों (जीन्ज़ ,जीवन खण्डों )का भी हाथ हो सकता है ?
हालाकि साइंसदान इसकी मनोवैज्ञानिक वजहें बतलाते आयें हैं .लेकिन एक अध्धययन, बेड रूम में शर्मिन्दगी की इस वजह को विरासत बतलाता है ।
इन लोगों में एक आनुवंशिक एब्नोर्मेलियी हो सकती है .न्युरोत्रांस -मीटर 'डोपामिन 'को विनियमित ,नियंत्रित रखने वाले एक जीन में गड़बड़ी (दोष )का नतीज़ा हो सकता है 'प्री -मेच्युओर इजेक्युलेसन '.सुखा -नुभूति और आनंद की बागडोर यही जैव -रसायन करवातादिमाग को करवाता है .मूवमेंट और अटेंशन भी इसी के हाथ में रहता है ।
विज्ञान पत्रिका 'सेक्स्युअल मेडिसन 'में प्रकाशित एक नवीन अध्धय्यन के मुताबिक़ यह गड़बड़ी एक पीढ़ी से दूसरी को स्थानान्त -रित हो सकती है .एक से दूसरी पीढ़ी में जा सकती है ।
बस एक जीन का थोड़ा सा बदला हुआ संस्करण इस जेनेटिक एब्नोर्मेलिती'प्री -मेच्युओर इजेक्युलेसन की वजहबन रहा है .
डोपामिन स्तर को प्रभावित करने वाली दवाएं 'प्री -मेच्युओर इजेक्युलेसन 'के इलाज़ में कारगर हो सकतीं हैं ऐसा रिसर्चरों का अनुमान है ।
साइंस दानों ने १३०० उम्रदराज़ लोगों की पड़ताल के बाद यह नतीजे निकाले हैं .एक डोपामिन ट्रांस -पोर्टर जीन में संभावित दोष का पता लगाने के लिए इन लोगों के सेलाइवा साम्पिल्स लेकर भी जांच की गई थी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-जींस तू ब्लेम फॉर 'प्री -मेच्युओर इजेक्युलेसन '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २६ ,२०३० )

बचपन में पद जाती है 'ओस्टियो -पोरोसिस 'की नींव ?

समझा जाता है 'अस्थि -क्षय 'यानी ओस्टियो -पोरोसिस प्रोढ़ -अवस्था का रोग है .खासकर महिलाओं में इसकी शुरुआत रजो -न्रिवृत्ति के बाद होनी मानी समझी गई थी .लेकिन एक अध्धययन से ऐसे संकेत मिल रहें हैं -बचपन में ही नींव पद जाती है अस्थि क्षय ,लोस इन बोन मॉस की .इसीलिए शिशु काल से ही केल्सिंम पोषण ,केल्सियम न्यूट्रीशन ज़रूरी है .कई मर्तबा कहा गयाहै दूध के साथ छाछ ,बतर -मिल्क भी उतना ही ज़रूरी है हमारे नौनिहालों के लिए ।
अब पता चला है ताउम्र अस्थियों की सेहत के लिए केल्सियम पोषणजन्म के फ़ौरन बाद एहम है ।
मेसेंच्य्मल -स्टेम सेल्स को यह एक सोफ्ट वेयर दे देता है .प्रोग्रेमिंग इफेक्ट है इन मसेंन -च्य्मे सेल्स पर केल्सियम पोषण का .

.यही वह भ्रूण कोशिकाएं है (एम्ब्रियोनिक सेल्स हैं )जो विकसित होकर कनेक्तिव तिश्युस (आबन्धी ऊतक) अस्थि (बोन )उपास्थि (कार्तिलेज़ ),ब्लड और लिम्फेटिक सिस्टम (लिम्फ प्रणाली )तैयार करतीं हैं ।
अपने अध्धय्यन में साइंस दानों ने नियोनेटल पिग का स्तेमाल ह्यूमेन इन्फेंट के सर्रोगेत के बतौर किया है ।
अध्धययन में तकरीबन एक दर्जन पिग्लेट्स (बाल -शूकरों ,नवजात पिग्स )को केल्सियम बहुल तथा इतने ही और पिग्लेट्स को केल्सियम रिक्त खुराख दी गई .जन्म के पहले चार हफ़्तों तक यह आजमाइशें की गईं .बेशक केल्सियम स्टेटस और ग्रोथ की इत्त्ल्ला देने वाले ब्लड मार्कर्स दोनों में यकसां मिले लेकिन अस्थि घनत्व में खासा अंतर पाया गया .केल्सियम रिक्त खुराख वाले पिग्लेट्स की बोन डेंसिटी कम पाई गई .स्ट्रेंग्थ भी बोन की अपेक्षा कृत कमतर रही .बोन मारो तिश्युस का विश्लेसन करने पर पता चला ,केल्सियम देफिशियेंत पिग्लेट्स की कोशिकाएं को फेट सेल्स तैयार करने का सोफ्ट वेयर (प्रोग्रेम पहले ही मिल चुका है )मिल चुका है .जबकि प्रोग्रेम मिलना चाहिए था -बोन फोर्मिंग ओस्टियो -ब्लास्ट्स सेल्स तैयार करने का ।
शिशु काल में कमतर ओस्टियो -ब्लास्ट्स सेल्स आगे चलकर अस्थि बढ़वार की क्षमता को असर ग्रस्त करता है घटाता है .अस्थि टूट फूट की दुरुस्ती करने की कूवत भी कम रह जाती है ।
ज़ाहिर है 'शिशु काल में केल्सियम -न्यूट्रीशन एहम रोल अदा करता है '।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ओस्टियो -पोरोसिस ए चाइल्ड -हुड एल्मेंट देत स्ट्राइक्स लेटर ?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २७ ,२०१० )

यौन- कुरुक्षेत्र में बने रहने के लिए

अक्सर लोग सुरक्षा कवच धारण कर यौन कुरुक्षेत्र के मैदान में कूद पडतें हैं और जल्दी हताहत हो जाते हैं .मैदाने जंग छोड़ देतें हैं .अब ऐसे ही यौन -रन -छोड़ों के लिए देर तक टिके रहने के लिए एक गोली प्रिलिग्य हाज़िर है जिसे प्राइवेट नुस्खा दिखाकर हासिल किया जा सकता है ।
यह यौन सामर्थ्य बढाने वाली गोली मस्तिष्क -जैव रसायन 'सेरोटोनिन 'के स्तर में फेर बदल कर यह करिश्मा दिखाती है .नतीज़नयौन - शिखर पर देर तक बने रहा जा सकता है .अलबत्ता शराब ,शबाब और कबाब का साथ साथ सेवन करने वालों से गुजारिश है 'प्रिलिग्य 'का सेवन शराब पीने के बाद ना करें ।
सेरोटोनिन :यह एक जैव रसायन है ,न्यूरो -ट्रांस- मीटर है .जहां तक इसकी केमिस्ट्री का सवाल है इसे अमीनो अम्ल 'त्रिप्तोफेंन से प्राप्त किया जा सकता है .यह हमारे ऊतकों में व्यापक रूप से विभाजित है .चोटिल हो जाने पर यह ब्लड वेसिल्स को कोंस्त्रिक्त कर देता है .,सकरा बना देता है .यह हमारे संवेगों ,इमोशनल स्टेट्स को प्रभावित करता है .
इसकी तीन गोलियों की कीमत है -७६ डॉलर्स .कुछेक योरोपीय देशों में इसकी बिक्री ज़ारी है .व्याग्रा से बाज़ी मार रही है 'प्रिलिग्य '।
इसे १८ -६४ साला आयु वर्ग के लिए टार्गेट किया गया है .ल्लोय्ड्स -फार्मेसी .कोम पर विमर्श के बाद यह निजी नुश्खों पर ओंन लाइन भी उपलब्ध है .शीघ्र पतन से छुटकारा दिलवाएगी 'प्रिलिग्य '
सन्दर्भ -सामिग्री :इन ए फस्ट ,ए पिल तू मेक मेंन लास्ट थ्री टाइम्स ओवर (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २७ ,२०१० )

रविवार, 25 अप्रैल 2010

क्या हैं 'कार्बन -क्रेडिट्स '?

कार्बन क्रेडिट एक परमिट का नाम है .जिसके पास एक कार्बन -क्रेडिट होता है वह एक टन कार्बन डाय-ओक्स्साइड गैस खुले माहौल (ओपन एन्वायरन्मेंट ) में निसृत कर सकता है अपने उद्योगिक प्लांट से ,किसी अन्य उत्पादन संयंत्र से ।
कार्बन क्रेडिट्स उन कम्पनियों या पर्यावरण समूहों को पुरूस्कार स्वरूप प्रदान किये जातें हैं जो अपने तै ,अपने लिए किसी सरकारी अथारिटी द्वारा स्वीकृत ,मंज़ूर शुदा कोटे से कम कार्बन डाय -ओक्स्साइड,इतर ग्रीन हाउस गैसें (जी एच जीज़ ) पर्यावरण में छोड़तें हैं ।
कार्बन क्रेडिट्स को अंतर -राष्ट्रीय -खुले बाज़ार में वर्तमान दर पर बेचा जा सकता है ।
क्योटो -प्रोटोकोल के साथ ही 'कार्बन -क्रेडिट सिस्टम 'अस्तित्व में आया था .इसे अंतर -राष्ट्रीय स्वीकृति मिली थी इस प्रणाली का एक मात्र लक्ष्य कम्पनियों और समूहों,मुल्कों द्वाराउत्सर्जित दिनानुदिन बढ़ते कार्बन -डाय -ओक्स्साइड के स्तर को लगाम लगाना है ।
मान लीजिये एक एनवायरन -मेंटल समूह इतने अधिक पेड़ उगाता है ,जो माहौल से एक टन कार्बन -डाय -ओक्स्साइड सोख लेतें हैं तब उसे पुरूस्कार के बतौर एक कार्बन -क्रेडिट दिया जाएगा ।
अब मान लीजिये एक स्टील कम्पनी को दस टन का एमिसन कोटा स्वीकृत हुआ है लेकिन कम्पनी का अनुमान है ,एमिसन ११ टन हो जाएगा ,तब वह उक्त कार्बन -क्रेडिट को नकदी चुका कर खरीद सकेगा .,उक्त पर्यावरण समूह या कहीं और से भी ।
अंतिम लक्ष्य इस प्रणाली का उत्सर्जन को एक स्तर पर रोक देना है .मुल्कों को अपने स्वीकृत कोटा के तहत रहना चाहिए .स्वीकृत कोटे से कम उत्सर्जन करने वाले समूहों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाता है .

क्या एमिसन ट्रेडिंग ?

एमिसन ट्रेडिंग एक अति विकसित तरीका है प्रदूषण को नियमित ,नियंत्रित करने का .इसके तहत आर्थिक प्रोत्साहन का प्रावधान है .यानी प्रदूषण कम करने वाली कम्पनी को आर्थिक लाभ मुहैया होगा ।
इसके तहत एक सरकारी आथारिटी किसी भी कम्पनी द्वारामुक्त पर्यावरण में (ओपन एन्वायरन्मेंट में ) छोड़े जा सकने वाली प्रदूषण(वास्तव में प्रदूषकों की मात्रा )की हदबंदी कर देती है .यानी एक सीमा तय कर देती है ।
निर्माता कम्पनियों को उत्पादन ज़ारी रखने के लिए 'एमिसन परमिट्स 'दिए जातें हैं .इस एवज उन्हें समतुल्य अलावेंसिज़ या क्रेडिट्स अलोट किये जाते हैं ।कुल एमिसन को इस अलोतिद राशि के अंतर्गत ही रखना होता है .
कम्पनीज आर अलोतिद एन इकुवालेंत नंबर ऑफ़ अलावेंसिज़ और क्रेडिट्स तू एमिट ए स्पेसिफिक एमाउंट ऑफ़ पोल्युतेंट्स ।जिन कम्पनियों को इससे ज्यादा क्रेदिस चाहिए .उसके सामने एक ही तरीका है .वह उन कम्पनियों से क्रेडिट्स खरीदे जो कम प्रदूषण ओपन एन्वायरन्मेंट में छोड़ रहीं हैं और अलोतिद क्रेडिट्स में से कुछ बचा रहीं हैं ।
बस यही एमिसन ट्रेडिंग हैं .दी ट्रांसफर ऑफ़ अलावेंसिज़ इस रेफार्ड एज ट्रेड ।
सन्दर्भ सामिग्री :ओपन स्पेस -वाट इज एमिसन ट्रेडिंग (सन्डे टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २५ ,२०१० पेज २२ )

है क्या एमिसन ट्रेडिंग ?

एमिसन ट्रेडिंग को केपभी कहा जाता है .यह एक प्रशासनिक तरीकाहै एमिसन यानी पोल्यूशन (फेक्त्रीज़ आदि से निकलने वाले अपशिस्ट पदार्थ ,तरह तरह के प्रदूषकों ) को कम करने का .इसके तहत उन कम्पनियों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाता है जो एक निर्धारित और सुरक्षित समझी जाने वाली एमिसन की मात्रा से भी कम अपशिस्ट पर्यावरण में छोड़तें हैं .यानी प्रदूषण को नियमित और नियंत्रित करतें हैं ,एक सुरक्षित और स्वीकृत सीमा में बनाए रख कर ।
एक सरकारी प्राधिकार या फिर केन्द्रीय आथारिटी जो आम तौर पर एक सरकारी संस्था ही होती है किसी भी कम्पनी के लिए पर्यावरण में छोड़े जा सकने वाले प्रदूषक तत्वों की सुरक्षित समझी जाने वाली एक सीमित राशि को यही गोमेंट बॉडी मंजूरी देती है .इसी सीमित मात्रा को अलावेंस या क्रेडिट कहा जाता है .इस एवज कम्पनियों को एमिसन परमिट्स ज़ारी किये जातें हैं .कम्पनियों के लिए एक समतुल्य संख्या में इन क्रेदितों या अलावेंसिज़ को सुरक्षित भीरखना ज़रूरी रहता है .केप को निर्धारित सीमा में रखना होता है .यानी स्वीकृत क्रेडिट के तहत ही अपशिस्ट पर्यावरण में छोड़े जा सकतें है .केप से ज्यादा नहीं .इस प्रकार कुल उत्सर्जन की हदबंदी हो जाती है ।ऐसी
कम्पनीज जो अपने क्रेडिट्स बढ़ाना चाहती हैं वह ऐसा करने के लिए उन कम्पनियों से क्रेडिट्स खरीद सकतीं हैं जो अपेक्षा कृत कम एमिसन पर्यावरण में छोड़ रहीं हैं .यानी कम प्रदुषण कर रहीं हैं .एमिसन का स्तर जिन्होनें स्वीकृत स्तर से भी कम रखा हुआ है ,यानी जो क्रेडिट्स की बचत कर रहीं हैं .वह अपने क्रेडिट्स ट्रांस फर कर सकतीं हैं ।
दी ट्रांसफर ऑफ़ अलावेंसिज़ इस काल्ड 'ट्रेड '.इसका मतलब यह हुआ क्रेडिट्स का खरीदार जुर्माना भर रहा है सीमा से बाहर प्रदूषणपैदा करने का .और बेचने वाला लाभ कमा रहा है .यूं भी कह सकतें हैं उसे प्रदूषण कम रखने का इनाम मिला है .

क्या होता है शुगर- फ्री चीज़ों में ?

शुगर -फ्री में वैसे ही थोड़ी सी केलोरीज़ (शुगर )होती है जैसे भैंस में थोड़ी सी अक्ल भी होती है ।
एक व्यक्ति ने किसी से पूछा था -भैया अक्ल बड़ी या भैंस ?
"भैंस "-ज़वाब मिला .क्योंकि भाई साहिब भैंस में थोड़ी सी अक्ल भी होती है लेकिन अक्ल में भैंस नहीं होती ।
बहर -सूरत जीरोकेलोरीज़ कोई ड्रिंक हो ही नहीं सकती .चंद केलोरीज़ ज़रूर मौजूद रहेंगी ।
शुगर- फ्री प्रोडक्ट्स की आजकल मार्किट में भरमार हैं .इनमे कुदरती या फिर कृत्रिम मानव निर्मित रसायन रहतें हैं ।डाईट-कोक या ऐसा कुछ भी इसी वर्ग में आयेगा .
आर्तिफिशीयल स्वीट -नर्स में प्रमुख हैं -सैख्रीन (सैकरीन ),अस्पर्तामे (एस्पार्टेम )सुक्रालोज़ ,निओ -तेम,अससुल्फमे पोटासियम ,स्टेविया आदि ।
यह ऐसे रासायनिक यौगिक कहे जा सकतें हैं जिनमे सक्रोज़ (टेबिल शुगर ,चीनी /शक्कर )से ३०० -५०० गुना ज्यादा मिठास होती है .तो ज़नाब 'कथित शुगर फ्री 'में शुगर तो मौजूद रहती ही है .अलबत्ता केलोरीज़ कमतर ,बस थोड़ी सी ही ,कह सकतें हैं ,नाम लेने भर ही रहतीं हैं ।
ऐसे में थोड़े से स्वीट -नर्स से ही गुज़ारा हो जाता है ,बर्फी बनालो या फिर हलुवा ,खीर या फिर रसगुल्ला .ऊर्जा कम ही मिल पाती है स्वीट -नर्स से .ब्लड ग्लूकोज़ लेविल्स में भी फर्क नहीं पड़ता ।क्योंकि आर्टिफीशियल स्वीट -नर्स का ग्लाई-केमीक इंडेक्स कमतर रहता है .

दुघटना ग्रस्त व्यक्ति का पूरा चेहरा बदला गया

स्पेन के बार्सिलोना स्थित वाल डी'हेब्रोन अस्पताल के माहिरों ने पहली मर्तबा एक दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति का पूरा चेहरा बदल का करिश्मा कर दिखाया है .यूं अब तक तकरीबन ११ फेस ट्रेस -प्लांट (चेहरा प्रत्यारोप )दुनिया भर में हो चुके हैं लेकिन इन सभी में विकृत चेहरे के चुनिन्दा हिस्सों नाक ,कान ,आँख ,चेहरे की पेशियाँ त्वचा ,होंठ (लिप्स ),जबड़ा ,दांत ,तालू या फिर कपोल की अस्थियों (चीक बोंज़ ) में किसी एक आदिको ही बदला जा सका था .यह पहली मर्तबा है ,२२ घंटा चले एक ओपरेशन में पूरे चेहरे का ही प्रत्यारोप लगाया गया है ।
बेशक इस शल्य कर्म को ३० माहिरों की एक टीम ने पूरा किया है लेकिन चेहरा तकरीबन पहले जैसा ही बन पड़ा है .डोनर से तो बिलकुल भी मेल नहीं खाता .यही कहना है दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति के सगे सम्बन्धियों का .बेशक फिलवक्त इस व्यक्ति के माथे और गर्दन पर शल्य कर्म के निशाँ हैं लेकिन वक्त के साथ ये त्वचा में छिप जायेंगे ।
शल्य कर्म के तकरीबनएक हफ्ता बाद जब इस व्यक्ति ने अपना चेहरा माहिरों और मनोविज्ञानियों से इजाज़त मिलने के बाद आईने में देखा ,तब यह व्यक्ति संतुष्ट और शांत दिखा ।
मरीज़ का चिकित्सा से पहले बाकायदा यह पता लगाने के लिए साईं -कियात्रिक टेस्ट किया गया ,क्या वह अपना बिलकुल पहले से भिन्न चेहरा देख और झेल सकेगा .दो माह के बाद इसे अस्पताल से छुट्टी दे दी जायेगी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-फस्ट कम्प्लीट फेस ट्रेन्स -प्लांट पर्फोर्म्द (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २४ ,२०१० )

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

यौनेच्छा को कम कर सकतीं हैं -अवसाद और गर्भ -रोधी दवाएं .

औरत के यौन -स्वास्थ्य से ताल्लुक रखने वाली आलमी संस्था 'इंटर -नेशनल सोसाइटी फॉर दी स्टडी ऑफ़ वूमेंस सेक्स्युअल हेल्थ 'के मुताबिक़ इन दिनों युवतियों में अपनी सेक्स परफोर्मेंस को लेकर निराशा व्याप्त है .लिबिडो की कमी अपराध -भावना (गिल्ट फीलिंग्स )को भी बढा रही है ।
अवसाद कम करने वाली 'एंटी -दिप्रेशेन्ट्स दवाएं 'तथा गर्भ -निरोधी गोलियों को यौन -इच्छा में कमी के लिए दोषी पाया गया है ।
ओब्स्तेत्रिक्स और गाय्नेकोलोजी (स्त्री -रोग और प्रसूति से ताल्लुक रखने वाली विज्ञान पत्रिका ) के २००८ अंक में १८ -४४ साला औरतों पर संपन्न एक अध्धययन की रिपोर्ट छपी थी .इसमें ३१,००० युवतियां शामिल थीं ।
पता चला १० में से एक युवती हाइपो -एक्टिव सेक्स्युअल डिजायर दिस- आर्डर ,लो -लिबिडो यानी यौनेच्छा में कमी से ग्रस्त थीं .खुद से शर्मिन्दा थीं अपराध बोध तले पिस रहीं थीं ।
दिस्फंक्ष्नल रिलेशन -शिप ,दवाब और अवसाद को आम तौर पर यौनेच्छा में कमी के लिए कुसूरवार पाया जाता है ,लेकिन अक्सर इसके पीछे अवसाद रोधी ,गर्भ -रोधी दवाएं भी रहीं हैं ।
२००८ में संपन्न उल्लेखित अध्धय्यन में शामिल तकरीबन आधी महिलाओं में कोई ना कोई सेक्स्युअल -दिस -ऑर्डर पाया गया है ।
अपने से आजिज़ आ चुकी इन महिलाओं को तवज्जो की ज़रुरत है जिनकी आज कोई नहीं सुनता ।
सन्दर्भ -सामिग्री :एंटी -दिप्रेशेन्ट्स, पिल्स कट डिजायर इन वूमेन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २४ ,२०१० )

किडनी स्टोन से बचाव के लिए 'नीम्बू की शिकंजवी

यूनिवर्सिटी कोलिज संदेगो कोम्प्रिहेंसिव किडनी स्टोन सेंटर के निदेशक रोजर सुर के मुताबिक़ नीम्बू की शिकंजवी का सेवन किडनी स्टोन के बनने को मुल्तवी रख सकता है .अलावा इसके अतिरिक्त तरल पदार्थों (जल और जलीय )का सेवन रोजाना आपके द्वारा लिए जाने वाले नमक ,खुराखी केल्सियम और प्रोटीनों की मात्रा को नियंत्रित रखने में मददगार होता है .कम करता है इनकी मात्रा को ।
दरअसल नीम्बू (लेमंस )साइट्रेट का एक बेहतरीन और सान्द्र स्रोत है ,जो किडनी स्टोन को बनने से रोके रह सकता है .किसी और खट्टे फल में इतना साइट्रेट नहीं है .साइट्रेट स्वाभाविक तौर पर किडनी स्टोन रोधी है ।
लेमोनेड -थेरिपी के तहत सुर ने पता लगाया है -दो लिटर पानी में चार ओंस ऋ-कन्स्तित्युतिद लेमन ज्युईस से तैयार शिकंजवी का प्रति दिन सेवन (लेमन कन्सेंत्रेट चार ओंस+दो लीटर पानी ,से तैयार शिकंजवी ) किडनी स्टोन बनने की बहुतायत को एक से घटाकर ०.१३ मरीज़ पर ले आता है .
जहां तक दूसरे खट्टे फलों के सेवन का सवाल है ,एक तो उनमे नीम्बू से कम साइट्रेट है दूसरे इन्हें केल्सियम सम्पूरण के साथ लेना पड़ता है .अलावा इसके इनमे ओक्स्ज्लेट्स भी रहतें हैं जो किडनी स्टोन बनाने में सहायक रहतें हैं तथा किडनी स्टोंस का एक एहम घटक हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'ड्रिंक लेमोनेड तू प्रिवेंट किडनी स्टोंस (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २४ ,२०१० )

बेबीज़ को रोते बिलखते अपने ही हाल पर छोड़ने का खामियाजा

बच्चों को (०-५ साला ) उनके ही हाल पर रोते बिलखते छोड़ देना आगे चलकर ब्रेन डेमेज के खतरे के वजन को बढा देता है ।
बेबीज़ को चुप कराना चाहिए ,रेस्पोंस ना मिलने पर वह थक हार कर सो ज़रूर जातें हैं लेकिन निराश होकर तवज्जो ना मिलने का दर्द उन्हें भी होता है .देर तक चिल्लाते कल्पते रहने से पल्लवित होते विकाश्मान नन्ने मस्तिष्क को आगे चलकर नुकसानी उठानी पद सकती है .
'योर बेबी एंड चाइल्ड :फ्रॉम बर्थ तू एज फाइव 'किताब की लेखिका डॉक्टर पेनेलोपेलीच कहतीं हैं ,यह मेरा एक विचार मात्र नहीं है एक तथ्य है ,बच्चों को बिना तवज्जो दिए उन्ही के हाल पर छोड़ना बेहद दिमागी नुकसानी उठाने की वजह बन सकता है आगे चलकर ।
डॉक्टर पेनेलोपे लीच का सिद्धांत परम्परा गत सिद्धांत के ठीक विपरीत है जिसके अनुसार बच्चों को २० मिनिट तक रोते छोड़ना उनके विकाश के लिए अच्छामाना जाता रहा है . .बेशक तवज्जो ना मिलने पर बच्चा थक हार कर झक मार कर सो ज़रूर जाता है लेकिन निराशा को गले लगाकर .रोना सोने में मददगार नहीं ,इग्जाशन की बेहद थकान की वजह बनता है .जिसके खामियाजे आगे चलकर भुगतने पद सकतें हैं .
जब बच्चा तवज्जो ना मिलने पर लगातार रोता बिलखता रहता है तब उसके दिमाग में स्ट्रेस हारमोन 'कोर्तिसोल 'का स्तर बढ़ जाता है .इस प्रकार दीर्घावधि तक रोने कल्पने से कोर्तिसोल का स्तर बेहद बढ़कर ब्रेन डेमेज की वजह बन सकता है ।
बेशक इस का मतलब यह नहीं है ,रोना बच्चे के लिए ठीक नहीं है .बच्चे को रोना नहीं चाहिए .रोना बच्चे की भाषा है स्वभाव है .लेकिन दिक्कत तब पेश आती है जब बच्चे को कोई रेस्पोंस ,किसी भी प्रकार की तवज्जो इस दरमियान नहीं मेल पाती हैं .यहाँ आकर बच्चा टूट जाता है .उसका हौसला पस्त हो जाता है .उसकी ऊर्जा का क्षय होता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-बेबीज़ लेफ्ट तू क्र्याई अत रिस्क ऑफ़ ब्रेन डेमेज लेटर इन लाइफ (टाइम्स सोफ़ इंडिया ,अप्रैल २४ ,२०१० )

इम्यून सिस्टम को पुख्ता बनाने के लिए बस ६ किलोग्रेम वेट घटाइए

ऑस्ट्रलियाई साइंस दानों ने पता लगाया है ,जिन लोगों पर चर्बी चढ़ जाती है खासकर एब्दोमन फ्लेब ,सिर्फ ६ किलोग्रेम- वेट वजन घटाकर ये लोग अपने दिस्तार्ब्द इम्यून सिस्टम को दुरुस्त कर सकतें हैं .यह बात उन लोगों के लिए बड़े काम की है जो जीवनशैली दायाबीतीज़ (सेकेंडरी दायाबीतीज़ ) की ज़द में आ गए हैं .,और मोटापे से ग्रस्त है दरअसल हमारा रोग -प्रतिरोधी रक्षा कवच (इम्यून सिस्टम ) कई किस्म की कोशिकाओं से लैस हैं .इनमे सुरक्षा प्रहरी सेल्स भी है ,किलर भी ।
अच्छी सेहत के लिए यह ज़रूरी है इनमे परस्पर सामंजस्य हो मेल मिलाप ,मिलजुलकर काम करने की कूवत हो .तालमेल हो बढ़िया .अतिरिक्त फ्लेब खासकर एब्दोमन ओबेसिटी इसी ताल मेल को तोड़ देती है .विक्षोभ पैदा करती है .यही प्रतिरक्षा कवच हमें तरह तरह के पेथोजंस का ,जीवाणु ,रोगाणु ,विषाणु ,परजीवी आदि का मुकाबला करने की ताकत देता है .मोटापा इसके सुरक्षा कवच में सेंध मारी करता है .कोशिकाओं के परस्पर ताल मेल को भंग कर देता है .ज़ाहिर है इसमें मोटे व्यक्ति की खुराख ,अतरिक्त बॉडी फेट अपना रोल अदा करतें हैं .ऐसे में प्रोइंफ्लेमेत्री सेल्स पैदा हो जातीं हैं .यह हमारी सुरक्षा तो दूर सुरक्षा के लिए ख़तरा बन उसमे सेंध लगाने लगतीं हैं ।
सिडनी के गर्वन इन्स्तित्युत ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के साइंसदानों ने पता लगाया है -सिर्फ ६ किलोग्रेम वजन घटा कर इस ट्रेंड में उलटफेर की जा सकती है .इम्यून सिस्टम में होने वाले नुकसानदायक बदलावों से बचा जा सकता है .एब्दोमन फेट उक्त प्रोइंफ्लेमेत्री सेल्स के पैदा होने में मददगार की भूमिका निभाता है .रक्त प्रवाह में शामिल होकर यह हमारे शरीर में इन्फ्लेमेशन पैदा करने लगतीं हैं .इसीलिए इन्हें 'प्रो -इन्फ्लेमेत्री इम्यून सेल्स भी कह दिया जाता है .इसी क्रोनिक इन्फ्लेमेसन और कोरोनरी आर्तारीज़ डिसीज़ में एक अंतर सम्बन्ध की पुष्टि भी हो चुकी है .मोटापा कम करने के ,अतरिक्त चर्बी उतारने के और भी कई फायदे हैं ,सेहत के लिए ।उनकी चर्चा फिर कभी .
सन्दर्भ -सामिग्री :-लूज़ जस्ट ६ किलोग्रेम तू गिव योर इम्यून सिस्टम ए बूस्ट (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २४ ,२०३० )

स्मोकिंग छोड़ने की एक और वजह हाज़िर है

अगर आप चाहें ,स्मोकिंग छोड़ने की एक और वजह हाज़िर है .साइंसदानों ने पता लगाया है ,एक्टिव स्मोकर्स ,का वजन बढ़ता है .वजन का यह बढना धूम्र पान छोड़ देने के बाद भी ज़ारी रहता है .,तुलना के लिए धूम्र -पान ना करने वालों का वजन भी इस अवधि में दर्ज किया गया .नवर्रा यूनिवर्सिटी ,स्पेन के रिसर्चरों ने एक चार साला अध्धययन के संपन्न होने पर यह निष्कर्ष निकाला है ।
इन स्पेनी शोध छात्रों ने निकोटिन कन्ज़म्प्शन (सेवन की गई निकोटिन की मात्रा) और वेट गेंन में परस्पर एक अंतर -सम्बन्ध की पुष्टि की है .
महज़ एक मिथ ,एक खाम -खयाली है यह मानना समझना ,स्मोकिंग से आप छरहरे ,पतले दुबले बने रहतें हैं .कुछ लोग तो स्मोकिंग एडिक्शन को ,धूम्र -पान की लत को ,मोटापे से छुटकारा पाने के लिए मुफीद बतलातें हैं .लेकिन यह बात सच नहीं है .वैज्ञानिक कसौटी पर खरी नहीं उतरती है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-स्मोकर्स पुट ओंन मोर वेट (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २४ ,२०१० )

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

गुस्से को ज़ज्ब करना दिल के लिए ख़तरा -ए -जान

दिल के मरीजों को खासकर वह जो गुस्सा अन्दर ही अन्दर ज़ज्ब कर जातें हैं ,एक बारफिर अपने इस नज़रिए के बारे में पुनर -विचार करना पड़ेगा ।
टिलबर्ग यूनिवर्सिटी ,नीदर लैंड्स के रिसर्चरों ने पता लगाया है ,दिल के ऐसे मरीज़ जो अपना गुस्सा किसी पे ज़ाहिर नहीं कर पाते अन्दर अन्दर सुलगते रहतें हैं वह अपने लए दिलके दौरे के खतरे का वजन तीन गुना बढा लेतें हैं .आइन्दा पांच दस सालों में इनकी मृत्यु की संभावना भी बलवती बनी रहती है ।
रिसर्चरों ने इन्हें टाइप-डी व्यक्तित्व वाला कहा है ।
रिसर्चरों ने क्रोध (गुस्सा ),गुस्से की ज़ज्बी (सप्रेसन ऑफ़ एंगर ),और टाइप -डी पर्सनेलितीज़ पर इसकेपरस्पर संभावित सभी पहलुओं की जांच पड़ताल की है .दिल के दौरे के जोखिम का जायजा लिया है इनके लिए ।
गुस्से के अलावा तमाम तरह के रिनात्मक संवेगों की सामाजिक अभिव्यक्ति में इन लोगों को खासी दिक्कत पेश आती है .प्रतिकूल सामाजिक परिस्थितियों का यह ठीक से सामना नहीं कर पाते .चिल्ला नहीं पाते ,रो नहीं पाते .नतीज़ा होता है -हार्ट अटेक।
सन्दर्भ -सामिग्री :-बोतिल्ड अप एंगर केंन किल हार्ट पेशेंट्स :टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २३ ,२०१० .

वक्त से पहले बूढ़ा कर सकती है शराब

'बूजिंग मे लीड तू प्रीमेच्युओर एजिंग 'शीर्षक उस खबर काहै जो टाइम्स ऑफ़ इंडिया के २३ अप्रैल,२०१० अंक में प्रकाशित हुई है .आइये जाने क्या बतलाया गया है इस रिपोर्ट में जो उस शराब के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की बात करती है जिसे गत दो बरसों में दिल के लिए अच्छा बतलाया गया है ,बेहद हाइप किया गया है -वाइन को भी .
यह खबर एक नवीन अध्धययन से ताल्लुक रखती है जिसमे बतलाया गया है ,शराब का सेवन बुढापे को आमंत्रित करता है जल्दी बुला लेता है ,तथा कैंसर के जोखिम के वजन को भी बढाता है .इटली की मिलन यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पता लगाया है शराब आंशिक तौर पर उन कोशिकाओं (कोशाओं या सेल्स ) को नष्ट कर देती है जिनका सम्बन्ध अब वक्त से पहले बुढाने तथा कैंसर से जोड़ा जा रहा है .
पता चला है ,शराब 'तेलोमेरेस'(तेलिओ- मीअर्स ) यानी डी एन ए लड़ियों के सिरों में स्ट्रेस और इन्फ्लामेसन की वजह बनती है ।रिसर्चर्स दिस्कवार्ड देत एल्कोहल कोज़िज़ स्ट्रेस एंड इन्फ्लेमेसन तू तेलिओ -मीअर्स -दी एंड्स ऑफ़ डी एन ए स्त्रेंड्स देत स्टोप्स डेम अन -रेवेलिंग मच लाइक दी एंड्स ऑफ़ शू -लेसिज़ .
तेलोमेरे :(तेलों- मीअर )ईट इज ए रीज़न ऑफ़ डी एन ए एट दी एंड्स ऑफ़ एक्रोमोजोम देत प्रोतेक्ट्स दी स्टार्ट ऑफ़ दी जेनेटिक कोडिंग सीक्वेंस अगेंस्ट शोर्त्निंग ड्यूरिंग सक्सेसिव रेप्लिकेसंस ।
हम जानते हैं उम्र के साथ तेलिओ -मीअर्स के सिरे छीजते चले जातें हैं ,लम्बाई कम होती जाती है ,आखिर कार यह इतना छीज और टूट फूट जाते हैं कि ये नष्ट ही होजातें हैं .एल्कोहल इसी प्रोसिस (प्रकिर्या )को तेज़ कर देता है ।
बेहिसाब से शराब खोरी करने वाले पियक्कड़ों के चेहरे पर झुर्रियां (शिकन )पड़ने लगती है ,चेहरा से थके मांदे ,परेशान और बीमार दिखने लागतें हैं ये लोग .बुढापा जल्दी पैर पसारने लगता है .आँखों के गिर्द काले घेरे साफ़ दिखने लगतें हैं .
तेलिओ- मीअर्स क़ी लम्बाई के कम होने का सम्बन्ध कैंसर से भी साफ़ साफ़ जोड़ा गया है .रिसर्चरों ने बतलाया है ज्यादा ,शराब पीने से तेलोमीअर्स कि लम्बाई के कम हो जानेपर कैंसर के खतरे का वजन भी उसी अनुपात में बढ़ जाता है .
रिसर्चरों न ऐसे २५० लोगों क़ी पड़ताल क़ी है जो रोजाना कमसे कम चार पेग शराब गले के नीचे उतार लेतें हैं .और इनमे से कुछ तो इस से भी ज्यादा शराब का सेवन रोजाना कर रहे थे .यह सभी एक ही आयु के थे .खान पान भी सभी का एक सा था ताकि तेलोमीअर्स क़ी लम्बाई कम करने वाले दूसरे कारकों सेपैदा विक्षोभ से दूर रहा जा सका ।
कार्य स्थल पर बनने वाला दवाब और सब का परिवेश भी यकसां था ।
साफ़ पता चला शराब लेने वालों के तेलोमीअर्स क़ी लम्बाईअप्रत्यासित तौर पर घट जाती है .हेवी ड्रिंकर्स में यह घट कर आधी ही रह गई थी बरक्स नॉन -एब्युज़र्स के ।
इस शोध के नतीजे अमरीकी कैंसर शोध संघ क़ी वार्षिक बैठक के समक्ष पढ़े जा चुकें हैं ।

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

पृथ्वी दिवस पर -हवा ,पानी ,मिटटी की तात्विकता को बचाए रखने का संकल्प उठाइये

कहा गया है ,बूँद बूँद सो भरे सरोवर .एक और एक ग्यारह होतें हैं .पृथ्वी दिवस पर क्या यह सोचने विचारने का वक्त भी नहीं है -आज पञ्च तत्वों की तात्विकता ही विनष्ट हो चली है .हमारी हवा ,पानी ,मिटटी सभी तो गंधाने लगीं हैं .गंगा जमुना में 'ई -कोली 'का डेरा है .मिटटी में लवण का ज़म- घट है ,पानी तो भूमिगत भी छीज रहा है ।
वन की परिभाषा बदल गई है .पहले घने पेड़ों के झुरमुट को ही वन कहा जाता था ।
आज हरियाला आँचल भी उसमे शामिल है ।
'महा- काल के हाथ पर गुल होतें हैं ,पेड़
सुषमा तीनों लोक की कुल होतें हैं ,पेड़ ।
पेड़ पांडवों पर हुआ ,जब जब अत्याचार
ढांप लिए वाट वृक्ष ने ,तब तब दृग के द्वार ।
अपनी धरती अपनी सी तो लगे भैया ,यहाँ तो सब कुछ बदल रहा है .एक और पृथ्वी चाहिए जीवन की निरंतरता को बनाए रखने को ।कहाँ से लाइयेगा ?
वीरुभाई
९३ ५०९८६६८५

गर्भावस्था में बेहिसाब बढ़ा हुआ वजन मोटापे की नींव रख देता है ?

गर्भावस्था में वजन का एक हिसाब से बढना आम बात है (आखिर गर्भस्थ ,गर्भ जल ,गर्भजल थैली (एम्निओतिक् सेक )अम्बैलिकल - कोर्ड ,प्लेसेंटा आदि सभी का वजन भी इसमें शामिल रहता है )कुछ समय के बाद खान पान और रख रखाव जीवन शैली ठीक ठाक होने पर वजन आम तौर पर फिर से सामान्य हो जाता है .लेकिन एक हिसाब से ज्यादा इस दौरान वजन को बढ़ने देना ,आलस ,प्रमाद किसी भी वजह से, प्रसव के इक्कीस साल बाद भी मोटापे की वजह बन सकता है .यही संकेत है इस ताज़ा अध्धययन का .
यह पहली बार है ,दीर्घावधि प्रभाव गर्भावस्था का देखने को मिला है .एक तरह से प्रागुक्ति है 'कल के मोटापे की 'गर्भावस्था में ज्यादा वजन का बढना ,जिसे सही खान पान ,रहनी सहनी से एक सीमा के अन्दर रखा जा सकता है ,सचेत रहकर .
गर्भावस्था में वजन का अतिरिक्त रूप से बढ़ना भविष्य में मोटे होजाने के खतरे के वजन को बढ़ा देता है ,यही इस अध्धययन का सार है .यह स्टडी क्वींस लैंड के रिसर्चर अब्दुल्ला मामून के नेत्रित्व में संपन्न हुई है .
सन्दर्भ -सामिग्री :-'वेट गेंन इन प्रेगनेंसी इन्दिकेट्स ओबेसिटी (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २१ ,२०१० )

तीन पुश्तों की खबर लेगा जंक फ़ूड

तीन पीढ़ियों तक जा सकता है 'जंक फ़ूड 'का असर .आज गर्भवती महिला जो कुछ खा रही है यदि वह कबाड़िया और बासा भोजन है जंक फ़ूड है ,उसका असर अगली तीन पीढ़ियों तक बरकरार रह सकता है .नाती- ने, पोते-पोतियाँ कैंसर की चपेट में भी आ सकते हैं ।
एक नवीन अध्धयन इसी और इंगित कर रहा है ,गर्भवती माँ यदि बेहिसाब जंक फ़ूड खाती है (बिंज ईटिंग करती है ,कबाड़िया भोजन की ,चिकनाई सने खाद्यों की ),उसका असर ना सिर्फ अजन्मे शिशु को प्रभावित करता है ,अगली तीन एक पीढ़ियों तक बना रह सकता है ।
नातिन (ग्रांड चिल्ड्रन ) ब्रेस्ट कैंसर की ज़द में भी आ सकतीं हैं .यह रपट डेली मेल अखबार ने प्रकाशित की है .यानी सौगात में बेटियों -नातिनों को ब्रेस्ट कैंसर मिल सकता है 'बारास्ता जंक फ़ूड '।
अध्धय्यन में रिसर्चरों ने गर्भवती माउस के एक वर्ग को साधारण खुराख तथा दूसरे को ठीक उतनी ही केलोरीज़ की लेकिन बहुत चिकनाई वाली फेतीयरखुराख दी .अब इनके ऑफ़ स्प्रिंग्स में बेटियों और नातिनों में संभावित ब्रेस्ट कैंसर के बढे हुए खतरे के वजन की पड़ताल की ।
बावजूद इस तथ्य के ,दूसरी और तीसरी पीड़ी की संतानों को साधारण खुराख ही दी गई ,फेटि फ़ूड भकोसने को लियें नहीं दिया गया ,इसमें कैंसर के खतरे का वजन ६० फीसद बढा पाया गया ,अन्य कृन्तकों(कुतर कुतर कर खाने वाले रोदेंट्स ,चुहिया इसी कुल में आतीं हैं ) के बरक्स ।
तीन पुश्तों तक गर्भावस्था मेंज़म कर खाए गए जंक फ़ूड का असर किस तरह बरकरार रहता है ,इस बात की पड़ताल करने पर पता चला ,इस्ट्रोजन का स्तर जंक फ़ूड जमकर खाने से नहीं बढ़ता है ,जो स्तन कैंसर के लिए बुनियादी तौर पर जिम्मेवार रहता है .लेकिन इसकी व्याख्या एपी -जेनेटिक्स कर सकती है ,गर्भ में किन स्थितियों में वह परिवर्तन होतें हैं जो उत्परिवर्तन (म्युतेसंस )को हवा देतें हैं .बस गर्भ में थोड़े से परिवर्तन ,वेरी सटल चेंज़िज़ चाहिए .लेकिन यहाँ यह अति सूक्षम फेरबदल गर्भीय परवेश की, उत्परिवर्तन की नहीं लेकिन ऐसे रद्दो बदल की ज़रूर वजह बन जाती है जो दूर तक चले जातें हैं ,तीसरी पीढ़ी तक .पिता से पुत्र को भी स्थानातरित होतें हैं यह सटल चेंज़िज़ .यही टाइनी चेंज़िज़ संदर्भित रिपोर्ट में ब्रेस्ट में ऐसी 'बड्स 'पैदा कर सकतें हैं जिनके कैंसर ग्रस्त होने की प्रबल संभावना बनी रहती है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-जंक फ़ूड इफेक्ट्स एक्सटेंड तू थर्ड जेन (जेनरेशन )-टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २१ ,२०१० )

कर भला, हो भला ,अंत भले का भला

मन की उदारता दान -पुण्य,दयालुता ,पर- हितेषिता(चैरिटी )दाता को मानसिक मजबूती ,दृढ- प्रतिग्यता प्रदान करती है .हालिया संपन्न दो दो अध्धय्यनों से यही ध्वनित हुआ है ।
कहा भी गया है -परहित सरस धरम नहीं भाई ।
एक अध्धययन हारवर्ड विश्व -विद्यालय में किया गया जिसके तहत वोलान्तीयार्स को एक एक डॉलर दिया गया .अपनी मर्जी मुताबिक़ उन्हें इसे जनहित में लगाने या फिर अपने ऊपर खर्च करने की छूट दी गई .अब उनसे एक एक वेट थामे रहने के लिए कहा गया .जिन लोगों ने परहित में यह राशि खर्च की वह १० सेकिंड देर तक वजन को थामे रहे एक अन्य परीक्षण में उन लोगों में ज्यादा देर तक काम करते रहने की सामर्थ्य पाई गई जो जनहित के बारे में सोच रहे थे ..बनिस्पत उनके जो इस और से उदासीन बने रहे .इनमे सहन शीलता ,धैर्य भी अधिक दिखलाई दिया ।
लेकिन सबमे सबसे ज्यादा दृढ उन्हें पाया गया जो दूसरे को नुक्सान पहुचाने की बात सोच रहे थे ।
एक और अध्धय्यन में लोगों को एक ऐसे खेल में शरीक होने को कहा गया जिसमे नकदी (कैश )औरों को देना -बांटना था .जिन लोगों ने दूसरो को खुलकर धन -राशि बांटी उन्हें ज्यादा लोगों ने पसंद किया .इन्हें भरोसे का आदमी भी औरों से बेहतर समझा माना गया ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'हेल्पिंग अदर्स केंन मेक पीपल तफ़र (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २२ ,२०१० )

संसाधित गोश्त बढा देता है कैंसर के खतरे का वजन .

एक औत्रेलियाई अध्धययन में बतलाया गया है ,वह महिलायें जो बेहद सेसंसाधित सलामी और हाट डॉग्स का सेवन करतीं हैं उनमे अंडाशय कैंसर (ओवेरियन कैंसर )के खतरे का वजन बढ़ जाता है ।
जबकि वह तमाम महिलायें जो इनके स्थान पर खुराख में मच्छी (फिश ,मछली ) ज्यादा लेतीं हैं उनके लिए अंडाशय कैंसर का ख़तरा कम हो जाता है ।
रिसर्चरों को रेड मीट और कैंसर के आपस में लिंक के बारे में कुछ नहीं मिला है ।
गाय्नेकोलोजिकल कैंसर्स ग्रुप एत क्वींस लेंड इन्स्तित्युत ऑफ़ मेडिकल रिसर्च,ऑस्ट्रेलिया के शोध छात्रों ने इस अध्धययन को संपन्न किया है .अध्धययन के अगुवा रहें हैं ,पेनी वेब ।
सन्दर्भ सामिग्री :-प्रोसेस्ड मीट बूस्ट्स कैंसर रिस्क (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रिल२२ ,२०१० )

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

गर्भावस्था में स्मोकिंग का मतलब ?

साइंसदानों ने पता लगाया है ,गर्भवती महिलाओं द्वारा गर्भावस्था के दौरान किया गया धूम्रपान आगे चलकर उनके लाडलों के पुंसत्व को ,फर्टिलिटी को असर ग्रस्त कर सकता है ।
जेस्तेशन पीरियड में भावी -माँ द्वारा किया गया धूम्रपान मेल चाइल्ड के नपुंसकत्व (बांझपन )की वजह बन सकता है .गर्भ काल में भावी -माँ अपने आप को कैसे रखती है उसका एक एहम असर अजन्मे शिशु पर पड़ता है ।
इस अध्धययन के नतीजे 'फिलोसोफिकल त्रान्ज़ेक्संस ऑफ़ दी रोयल सोसायटी बी जर्नल 'में प्रकाशित हैं ।
अध्धययन के मुताबिक़ गर्भावस्था की पहली तिमाही के शुरूआती चंद हफ्ते शिशु की सेहत पर एहम प्रभाव डालतें हैं .इस दौरान पेस्तिसैड्स (नाशी -जीव -नाशी ,पेस्ट -ईसैड्स ) ,ट्रेफिक पोलुशन तथा धूम्रपान का जितना बुरा असर गर्भस्थ पर पड़ता है ,उतना बालिगों पर नहीं पड़ता है .
उक्त सभी में मौजूद विषाक्त पदार्थ (तोक्सिंस ) गर्भस्थ की सर्तोली सेल्स की संख्या घटा सकता है .मेल -गेमीत (स्पर्म्स यानी स्पर्मेता -जू -ओं ,या जर्म सेल्स ) का पल्लवन पोषण यही सर्तोली सेल्स करतीं हैं .बालक के वयस्क होने तक यह सिलसिला चलता है .तब जाकर परिपक्व होता है स्पर्म .डेली मेल में यह रिपोर्ट छपी है .एडिनबरा यूनिवर्सिटी के माहिरों ने दुनिया भर में किये गए उन अध्धयाय्नों की पड़ताल की है जो मेल फर्टिलिटी पर इन पदार्थों के संभावित असर से ताल्लुक रखतें हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :'मोम्स- तू- बी हूँ स्मोक हार्म देयर संस फर्टिलिटी '(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २० ,२०१० )

डाइटिंग करना माना न्योतना दिल की बीमारियों को ,कैंसर को

डाइटिंग करना माना न्योतना हृद -रोगों और कैंसर को ,सुनने समझने में अटपटा लग सकता है लेकिन एक ताज़ा अध्धययन के नतीजे इसी और इशारा करतें हैं . यहाँ तक की शक्कर की बीमारी भी डाइटिंग के झांसे में आने वालों को हो सकती है ।
डेली मेल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ डाइटिंग के तहत जो लोग खुराखी केलोरीज़ कम कर लेतें हैं ,एक स्ट्रेस हारमोन 'कोर्तिसोल की मात्रा अपने बढा लेतें हैं ,नतीज़न कुछ लोगों का वेट वजाय घटने के बढ़ जाता है ।
मानसिक स्वास्थ्य भी नुकसानी की चपेट में आ सकता है ,फ़ूड केलोरीज़ गिनते गिनते .क्योंकि केलोरीज़ का हिसाब किताब ,बही खाता बनाते रहने से एक मनोवैज्ञानिक दवाब बनता है .भले ही वजन घटे ना घटे ,स्ट्रेस लेविल और 'कोर्तिसोल '(एक स्ट्रेस हारमोन )ज़रूर बढ़ जाता है ।
डाइटिंग का मशविरा देने वालों को दोबारा सोचना पड़ सकता है इस रिसर्च को बूझ कर ।
लगातार और बराबर लम्बी अवधि तक स्ट्रेस का बने रहना यानी क्रोनिक स्ट्रेस की मौजूदगी डाय-बितीज़ ,उच्च -रक्त चाप (हाइपर टेंशन ),कोरोनरी हार्ट डिजीज का सबब बनते देखी गई है .मोटापा चढ़ता है सो अलग ।
डाइटिंग स्ट्रेस लोड को बराबर बढाए रहती है ।
केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी सानफ्रांसिस्को और मिन्नेसोता यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने उन १२१ महिलाओंकी जांच पड़ताल की जिन्हें 'थ्री वीक डाईट १२०० केलोरीज़ ए दे 'पर रखा गया .इनमे से तकरीबन आधी महिलाओंको २००० केलोरीज़ तजवीज़ (रिकमेंड ) की गई .यानी इन्हें प्रतिदिन २००० केलोरीज़ वाली खुराख मुहैया करवाई गई ।
प्रत्येक की लार (सेलाइवा )की जांच की गई .ऐसी जांच अध्धय्यन से पहले और बाद में दो बार की गई .ताकि कोर्तिसोल के स्तर का पता लगाया जा सके ।
तीन सप्ताह बाद डाइटिंग वर्ग की महिलाओं में कोर्तिसोंन का स्तरखासा अधिक पाया गया .
सन्दर्भ सामिग्री :पीपुल ऑन ए डाईट इनवाईट कैंसर ,कार्डिएक डिजीज (टाइम्स सोफ़ इंडिया ,अप्रैल २० ,२०१० )

रविवार, 18 अप्रैल 2010

मोटापे से बचाव के लिए रन -नीति

अकसरगुना और सुना है ,भोजन और भजन एकांत में ,खाना धीरे धीरे छोटे छोटे ग्रास औरभली भाँती चबाकर ही खाइए ।
अब एक नवीन अध्धय्यन के मुताबिक़ इस सीख को उठाकर ताख पर रख दीजिये .बड़े बड़े ग्रास कम चबाकर खाइए .बेशक चर्वण से पाचन सुगम बनता है ।
केंटरबरी यूनिवर्सिटी के साइंसदानों ने पता लगा या है ,बड़े ग्रास उदर में देर तक बने रहतें हैं ,पेट भरने का एहसास अपेक्षाकृत जल्दी होने लगता है .ज़ाहिर है मेटा- बोलीक रेट्स कमतर हो जाती है .रेट ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ घट जाती है ।
भूख एक बार भर पेट खालेने के बाद अपेक्षाकृत देर से लगेगी .रेट ऑफ़ एनर्जी रिलीज़ कम हो जाता है ।
बेशक खाना चबाने में कितना वक्त लगेगा यह खाद्य की प्रकृति से भी तय होगा .परन्तु कम चबाने वाले खाद्य तैयार किये जा सकतें हैं ।
अध्धय्यन के दौरान होल ग्रेन फूड्स के लाभ सामने आये .पता चला 'होल -ओत मुईसली ,होल ग्रेन ब्रेड से अपेक्षाकृत थोड़ा खाने से भी तृप्ति मिल जाती है .ईट सेतियेट्स दी एपेताईट फास्टर ।
पास्ता (इतालवी राष्ट्रीय भोजन )से ऊर्जा धीरे धीरे रिसती है (स्लो रिलीज़ ऑफ़ एनर्जी )।
' एस्पायर फॉर लाइफ 'उस डा -ईट प्रोग्रेम का नाम है जिसे ओटागो यूनिवर्सिटी में आजमाया जा चुका है .नैदानिक परीक्षण किये जा चुके हैं इस खुराख के जो ओं लाइन उपलब्ध है .
सन्दर्भ सामिग्री :च्यु लेस ,टेक बिग बाइट्स तू एवोइड गेनिंग वेट (टाइम्स सोफ़ इंडिया ,अप्रैल १७ ,२०१० )
एस्पायर फॉर लाइफ '

अवसाद से जुडी है स्मोकिंग की नव्ज़?

धूम्र -पान करने वाले वयस्कों (बालिगों ,एडल्ट्स )के बारे में अमरीकी सेंटर फॉर हेल्थ स्टेटिस्टिक्स ने जो व्यापक आंकड़े जुटाएं हैं उनसे विदित होता है जो लोग डिप्रेशन की जद में रहतें हैं उनके धूम्र -पान करने की संभावना नॉन -स्मोकर्स से दो गुनी बनी रहती है .अवसाद ग्रस्त बालिग़ रोजाना एक से ज्यादा डिब्बी सिगरेट्स की फूंक डालतें हैं .यहदर नॉन स्मोकर्स से दोगुना ज्यादा रहती है ।
यु .एस सेंटर फॉर हेल्थ स्टेटिस्टिक्स, सेंटर फॉर दीजीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन का ही एक अंग है .पता चला है ,बीस बरस और इससे ज्यादा उम्र के ४३ फीसद लोग स्मोक करतें हैं जबकि गैर -धूम्र पानियों में यह प्रतिशत २२ रहा है ।
४० -५४ साला मर्दों तथा २० -३९ साला औरतों में यह फिनोमिना ज्यादा दिखलाई दी है ।
४० -५४ साला अवसाद ग्रस्त लोगों में जहां आधे से ज्यादा स्मोकर्स थे वहीँ इसी आयु वर्ग के नॉन -स्मोकर्स में यह ट्रेंड एक चौथाई में ही दिखलाई दिया है ।
२० -३९ साला अवसाद ग्रस्त महिलाओं में आधी स्मोक करती हैं जबकि नॉन स्मोकर्स महिलाओं के लिए इसी आयु वर्ग के लिए यह दर २१ फीसद रही ।
जिन मर्दों में डिप्रेशन के मामूली से भी लक्षण थे उनके स्मोकर्स होने की संभावना ज्यादा पाई गई बरक्स उनके जिनमे इस क्रोनिक इलनेस के लक्षण नहीं थे ।
यह भी पता चला अवसाद ग्रस्त लोगों को सिगरेट की लत छोड़ने में ज्यादा दिक्कतें पेश आतीं हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :डिप्रेस्ड एडल्ट्स स्मोक मोर ,फाइंड ईट डिफिकल्ट तू क्वीट (टाइम्स सोफ़ इंडिया ,अप्रैल १६ ,२०१० )

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

ईर्ष्या और द्वेष के खामियाजे भुगतने पद सकतें हैं .

ईर्ष्या और द्वेष से खबरदार रहिये .अंधा हो सकता है आदमी .क्योंकि ईर्ष्या जिसके प्रति उपज रही है उसका कुछ बिगाड़े या ना बिगाड़े जिस मन में उपज रही है उसका बेड़ा गर्क ज़रूर कर सकती है .रिसर्च्र्ण ने पता लगाया है जिन महिलाओं को ईर्ष्या को गले लगाने को कहा गया उनका नजरिया इतना विकृत हो गया ,उन्हें अपना लक्ष्य भी नजर नहीं आया .नजरिया ही बिगड़ गया इन सबका ।
ईर्ष्या व्यक्ति को लक्ष्य -च्युत कर देती है .व्यक्ति का परसेप्शन ,समाज के प्रति रवैया विकृत कर देती है ईर्ष्या .सामजिक व्यवहार में अपनाए गए संवेग हमारे भौतिक (कायिक )और मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा असर डालतें हैं .सीधे सीधे हमारे देखने जगत को परखने को ही असर ग्रस्त कर डालती है ईर्ष्या ।
जेलिसी केन प्रेक्टिकली ब्लाइंड यु (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल १६ ,२०१० )

दिल की सेहत के लिए कौनसी खुराख अच्छी ?

'सब्स्ती -त्युतिंग बेड कार्बोहैद्रेट्स फॉर बेड फेट्स अप्प्स हार्ट रिस्क '
डेनमार्क में संपन्न एक नवीन रिसर्च से पता चला है ,खुराख में कुछ लोग फेटि एसिड्स की मात्रा घटाकर सफ़ेद चीज़ों की भरमार कर देतें हैं .वाईट पास्ता ,वाईट ब्रेड ,वाईट राईस वाईट चीनी ,मैदा तथा अन्य परिष्कृत शक्करों(रिफाइंड कार्बो -हाई -द्रेट्स) की मात्र बढ़ाकर दिल के लिए कोई अच्छा काम नहीं कर रहें हैं .
अलबत्ता दिल के लिए मुफीद (फायदे का सौदा) रहता है ,चिकनाई का कम स्तेमाल (दिन भर में १५ ग्रेम से ज्यादा नहीं ),वाईट ब्रेड के स्थान पर होल ग्रेन ब्रेड्स (मल्तिग्रेंन ब्रेड्स ),ब्राउन राईस ,ब्राउन सूगर ,जेग्री ,हरी सब्जियां (आलू के अलावा )कोम्प्लेक्स कार्बो -हाई -द्रेट्स (जिनका ग्लाईकेमिक इंडेक्स कमतर हो ),जो रक्त में शक्कर के स्तर को अपेक्षाकृत ज्यादा ना बढातें हों ,आदि का खुराख में शरीक रहना .दी टाईप आफ कार्बो -हाई -द्रेट्स मेटर्स ।
सब्स्ती -त्युतिंग बेड कार्ब्स फॉर बेड फेट्स अप्प्स हार्ट रिस्क (टाइम्स सोफ़ इंडिया ,अप्रैल १५ ,२०१०)

फायदे का सौदा हैं किसानों के लिए'जीन संशोधित फसलें ? ..

माहिरों के अनुसार पार जातीय फसलें पर्यावरण और किसान दोनों के लिए फायदे का सौदा हैं .नाशी -जीव-नाशियों की कमतर ज़रुरत पडती हैं इन जीन -संशोधित फसलों को .लेकिन अब एक ख़तरा और पैदा हो गया है .जिस खरपतवार नाशी 'राउंड अप 'की ज़रुरत जीन संशोधित फसलों को खरपतवार से बचाए रखने के लिए पेश आती है उस राउंड- अप के प्रति खरपतवारों ने एक प्रतिरोध खड़ा कर लिया है यानी अब वीड किलर्स के छिडकाव से बे असर बनी रहतीं हैं तमाम तरह की खर्पत्वारें (वीड्स )।
इसका मतलब यह हुआ जीन इंजिनीयरिंग की पूरी क्षमताओं का पूरा दोहन नहीं हो पा रहा है .जब की यह क्षेत्र अपार संभावनाओं से भरा है ।
वीड किलर 'ग्लाइफोसेट 'के प्रति भी यही प्रतिरोध पनप रहा है .पोर्ट लैंड स्टेट यूनिवर्सिटी ,ओरीगोंन के माहिरों का यही कहना है .आप नॅशनल रिसर्च कोंसिल पेनल में शामिल हैं .ग्लाइफोसेट मुख्य घटक है 'राउंड अप' का.बीज निगम मोंसान्तो इसका खुल कर स्तेमाल करता है .बेशक यह वीड किलर अन्य नाशी -जीव -नाशियों के मुकाबले मनुष्यों के लियें निरापद समझा जाता है .यानी किसान राउंड अप का धड़ल्ले से स्तेमाल कर सकतें हैं .शायद इसी के चलते वीड्स ने अपना प्रतिरोध खड़ा कर लिया है ।
पता चला है खरपतवार की नौ किस्मों में ग्लाइफोसेट के प्रति प्रति -रोध पनप चुका है .और यह प्रतिरोध वहां ही दिखलाई दिया है जहां पार्जातीय फसलें चलन में आईं हैं . शेष इलाकों में नहीं ।
माहिरों के अनुसार आम तौर पर जीन संशोधित फसलों का चलन किसानों के लिए लाभ का सौदा रहा है ।
नाश -जीवों से बेअसर रहने वाली पार जातीय फसलों के लिए खेत की जुताई की कमतर ज़रुरत रह जाती है .परिणाम स्वरूप मिटटी की गुणवत्ता बनी रहती है .अपरदन के प्रभावों से भी बचाव होता है .
सन्दर्भ सामिग्री :'जेनेटिकली मोडिफाइड क्रोप्स बेनिफिट फार्मर्स '(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल १५ ,२०१० )

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

औरतों को रति -शीर्ष पर पहुंचाने वाली वियाग्रा ?

फाई -ज़र दवा कम्पनी के लिए कार्यरत साइंसदानों की एक टीम ने एक ऐसे पदार्थ का पता लगालेने का दावा पेश किया है जो औरतों को काम उत्तेजना के शीर्ष पर पहुंचाने में मददगार साबित होगी .इसे फिमेल व्याग्रा कहा जा रहा है दरअसल दुनिया भर में चालीस फ़साद औरतें 'सेक्सुअल अराउज़ल दिस ऑर्डर 'काम उत्तेजना अभाव से ग्रस्त बतलाई गईं हैं ।इन्हें ओर्गेज़म (आगेंम ,कामशीर्ष)नसीब ही नहीं होता .
जैसे मर्दों में लिंगोथान (इरेक्शन )का मतलब पीनाइल आर्त्रीज़ (शिश्न को रक्त ले जाने वाली नालियों का लबालब हो जाना है ,मोर ब्लड तुवार्ड्स पीनाइल आर्त्रीज़ है वैसे ही औरतों में भी एक्सटर्नल सेक्स ओर्गेंन (लिबिया ,क्लैटोरिस यानी भग-शिश्न ,तथा योनी की ओर उत्तेजना के क्षणों में अतिरिक्त रक्त प्रवाह होने लगता है परिणाम स्वरूप जेनितेलिया )फूल जाता है .यह पदार्थ जिसे युके -४१४,४९५ (ए प्रोटो टाइप ड्रग )कहा जा रहा है ,एक इन्टरनल केमिकल मेसिंजर के ब्रेकडाउन को रोक दे ता है (यानी एक रासायनिक राजदूत के टूट जाने को मुल्तवी रखता है ).यही मेसिंजर यौन उत्तेजना के क्षणों में अतिरिक्त रक्त प्रवाह करवाता है एक्सटर्नल सेक्सुअल ओर्गेंस की तरफ ।
साइंस दानों ने पता लगाया है ,पेल्विक नर्व (श्रोणी प्रदेश की नस )को विद्युत उत्तेजन देने से जेनितेलिया (फिमेल सेक्सुअल ओर्गेंन )की और अतिरिक्त रक्त बहने लगता है ,यह दवा इस प्रक्रिया को तेज़ करने में मददगार सिद्ध हो सकती है .
सन्दर्भ -सामिग्री :कमिंग सून ,ए फिमेल व्याग्रा (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल १५ ,२०१० )

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

बुदापे के रोग 'अल्जाइ -मार्स 'के जोखिम को कम करती है सही खुराख .

एक नवीनतर अध्धययन के मुताबिक़ यदि आपकी खुराख में ओलिव आइल के संग मेवे (नट्स आदि ),गहरे गाढे रंगों के कुछ चुनिन्दा फल और तरकारियाँ शामिल है ,तो निश्चय ही आप अपने लिए 'अल्जाइ -मर्स 'के संभावित खतरे का वजन कम कर सकतें हैं ।
जो लोग खासकर दिमागी स्वास्थ्य को पुष्ट करने रखने वाले पुष्टिकर तत्वों का नियमित सेवन करतें हैं उनमे औरों की बनिस्पत अल्जाइ -मर्स का खतरा४० फीसद घट जाता है .कूलाम्बिया यूनिवर्सिटी के अल्जाइ -मर्स रिसर्चरों ने ये निष्कर्ष निकालें हैं ।
आर्काइव्स ऑफ़ न्यूरोलोजी में प्रकाशित इस रिसर्च के मुताबिक़ खुराख को विनियमित करके दिमागी स्वास्थ्य के अनुरूप रखकर अल्जाइ -मर्स के जोखिम को कम करना एक दम से आसान काम है जिसे कोई भी कर सकता है ।
बेशक अल्जाइ -मर्स एक ला इलाज़ मर्ज़ है लेकिन इससे बचाव और इसे मुल्तवी रखना मुमकिन है ।
इन रिसर्चरों ने पुष्टिकरतत्वों से भरपूरऐसे फलों के वर्ग बनाकर बारीक विश्लेषण किया है ,जिनका सम्बन्ध अल्जाइ -मर्स के जोखिमको कम करने से रहा है ..
दुसरे छोर पर हाई -केलोरीज़ हाई -न्युत्रिएन्त्स फूड्स फेटि एसिड्स बहुल गोस्त (रेड मीत) और मख्खन की भी पड़ताल की गई है जो अल्जाइ -मर्स के खतरे को बढातें हैं .
दिमाग के लिए मुफीद रहतें हैं ,.दिमागी सेहत के लिए अच्छे रहतें हैं ,ओमेगा थ्री तथा ओमेगा सिक्स फेटि एसिड ,विटामिन -ई तथा विटामिन -१२ .
अध्धययन से यह भी पता चला जिन लोगों की खुराख में ज्यादा ओलिव आइल की द्रेस्सिंग वाली सलादें थीं ,रेड मीत कम था ,नट्स फिश टमाटर ब्रोक्क्ली हरी पत्तेदार सब्जियां तथा फल इफरात से थे उनमे अल्जाइ -मर्स का ख़तरा कम रह गया था .इन लोगों की खुराख में चिकनाई सने हाई -फेट डैरीउत्पाद ,ओर्गेंन मीत आदि भी कमतर पाए गए ।
डा -ईट, हार्ट हेल्दी और स्ट्रोक (सेरेब्रल वैस्क्युलर एक्सीडेंट )हेल्दी, अल्जाइ -मर्स के खतरे को भी कम करती रखती है .अलावा इसके ओमेगा -३ फेटि एसिड्स ,एंटी -ओक्सिदेंट्स और फोलेट दिमाग के लिए टोनिक का काम करतें हैं .

बच्चों को छित्तर मारने के खतरे ....

'स्पेंकिंग किड्स मेक्स देम एग्रेसिव '
न्यू ओर्लीन्स के 'तुलने यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़पब्लिक हेल्थ एंड ट्रोपिकल मेडिसन में संपन्न एक हालिया अध्धययन से पुष्ट हुआ है ,वह बच्चे जिन्हें बचपन में धौल जामाए जातें हैं ,खुले हाथ से जिनके नितम्बों पर गाहे बगाहे प्रहार किया जाता है उनके आगे चलकर दोगुना ज्यादा आक्रामक हो जाने का खतरा पैदा हो जाता है ,बनिस्पत उनके जो स्पेंकिंग से बचे रहतें हैं ।
यह आक्रामक बच्चे तरह तरह से फ़ैल मचातें हैं .बात बात पर अपने साथियों के साथ मार पीट पर उतारू हो जातें हैं ,चीज़ों को तोड़ना फैंकना शुरू कर देतें हैं .इनका व्यवहार भी अपने साथियों से बदतर किस्म का रहता है .अपने आप को तीस मार खान समझने लगतें हैं यह बच्चे ।
पीडियाट्रिक्स बाल साहित्य पत्रिका में इस अध्धययन के नतीजे प्रकाशित हैं .

रविवार, 11 अप्रैल 2010

क्या है 'अरच्नो -फोबिया '?

'अरच्नो' एक यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ,स्पाइडर (मकोड़ा ,मकडा ,मकड़ी ) .इसी प्रकार फोबोज़ से बना है फोबिया जिसका अर्थ भय या भीती होता है .कुछ लोग अकारण ही स्पाई -डर्स से बेहद खोफ खातें हैं एक तीव्र एलर्जिक रिएक्शन जैसा कुछ इनमे होता है मकोड़े पर नजर पड़ते ही .भले ही मकोड़े द्वारा काटे जाने के मौके ना के बराबर ही रहतें हों .फोबिया कहते ही अतार्किक डर को ।

१९९० में एक फिल्म बनी थी 'अरच्नोफोबिया 'जिसमे इस भीती को भुनाया गया था ।
पौराणिक कथा के अनुसार 'अरचने 'नाम की एक क्वारी कन्या थी .कताई -बुनाई वीविंग में यह अति प्रवीना थी .कहतें है एक बार इस वर्जिन ने गोडेस 'अथेना 'को ही वीविंग मुकाबलेमें शरीक होने की चुनौती दे डाली .क्रुद्ध होकर अथेना ने इस स्किल्ड वीवर को मकड़ी हो जाने का शाप (श्राप )दे डाला .और यह युवती मकड़ी बन गई .

क्या है 'स्पर्म व्हेल '?

स्पर्मासेती व्हेल का संक्षिप्त रूप है सार संक्षेप है 'स्पर्म व्हेल '.यह दन्तावलीयुक्त व्हेल्स (मुक्तावली ,तूथ्द व्हेल्स )की सबसे बड़े आकार की मछली होती है .मेस्सिव स्क्वायर हेड (बड़े सिर वाली )वाली इस मछली के सिर में केवितीज़ (गह्वर )होतीं हैं जिनमे स्पर्म -आइल और स्पर्मासैती वेक्स का मिश्रण मौजूद रहता है .यह एक विशेष प्रकार का मोम होता है जिसमे कई वसीय अम्ल (फेटि एसिड्स ) तथा ईस्टर्स पाए जातें हैं .इस सफ़ेद मोम से मोमबत्तियां ,कई तरह के सौन्दर्य प्रसाधन ,मरहम (आइन्त्मेंट्स ) तैयार किये जातें हैं ।
स्पर्मेताज़ोआ (मेल गेमीट ) से इसका कोई लेना देना नहीं है .

क्या है 'साउंड बाईट टेलिविज़न '?

कुछ बच्चे बे -हिसाब टेलिविज़न से चिपके रहतें हैं .एक प्रकार से हूकिंग हो जाती है इनकी टेलिविज़न से .ओबसेशन की हद तक ये बुद्धू -बक्से से चिपके रहतें हैं .यही वे नौनिहाल हैं जो स्कूल में कक्षा में उखड़े उखड़े रहतें हैं .किसी भी पाठ की विस्तृत व्याख्याके दौरान इनका ध्यान बारहा भंग होता रहता है .अटेंशन स्पेन घट जाता है .यही कहना है इनके क्लास टीचर का .कुसूरवार है साउंड बाईट टी वी यानी फास्ट पेस ऑफ़ टेलिविज़न ।
फेड ए डा -ईट ऑफ़ साउंड एंड विज्युअल्स ,दीज़ चिल्ड्रन शो ए वेरी शोर्ट अटेंशन स्पेन एंड स्त्र्गिल तू फोकस इन क्लास ।
बारहा अटेंशन लोस ,ध्यान भंग होना इन्हें बा -मुश्किल ही कुछ समझने बूझने के लायक छोड़ता है .साउंड एंड विज़नकी खुराख ना मिलने पर ये एक दम से दिस -रप -तिव हो जातें हैं व्यवस्था को नहीं मानते सब कुछ तहस नहस करने पर उतारू हो जातें हैं ।
वैसे एक मुहावरा है एक फ्रेज़ है -दे -आर इज नो सब्सटेंस तू दे -आर पालिसी -ईट इज आल साउंड बाईट ।
साउंड बाईट किसी राजनेता द्वारा दिया गया कोई संक्षिप्त बयान भी हो सकता है ,कोई छोटी सी टिपण्णी भी .साउंड बाइट्स टी वी चेनल्स द्वारा बारहा दोहराई जातीं हैं ,समाचारों में इनका उल्लेख किया जाता है .भले ही ये टिप्पणियाँ निस्सार हों .

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ज़हर को ज़हर काटता है ?

पोइज़न क्युओर :आर्सेनिक तू फाईट कैंसर (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल १० ,२०१० )
साइंसदानों ने पता लगाया है ,खतरनाक विष 'आर्सेनिक'खतरनाक ब्लड कैंसर कोशिकाओं को नस्त कर देता है .आर्सेनिक को लक्षित किया जाता है कैंसर कोशिकाओं में मौजूद ख़ास प्रोटीनो पर .आर्सेनिक के संपर्क में आने पर यह प्रोतिनें नष्ट हो जातीं हैं ।
इस रिसर्च को आगे बढाया है ,स्टेट की लेबोरेट्री ऑफ़ मेडिकल जीनोमिक्स शंघाई (चीन )के साइंस दानों ने ।
केमोथिरेपी के खतरनाक साइड इफेक्ट्स के बरक्स आर्सेनिक चिकित्सा कमोबेश निरापद बतलाई जा रही है.वैसे भी चीन में आर्सेनिक का स्तेमाल परम्परागत चीनी चिकित्सा पद्धति में किया जाता रहा है ।
रसायन चिकित्सा ना सिर्फ हमारे रोग प्रति -रक्षी तंत्र का शमन करती है यानी ना सिर्फ इम्यून सिस्टम को सप्रेस करती है ,बोन- मारोको भी सप्रेस करती है , गंज -पन (हेयर लास )की भी वजह बनती है ।
लगता है 'एक्यूट प्रो -माँ -इलो -सा -इतिक ल्यूकेमिया 'यानी रक्त कैंसर का इलाज़ ढूंढ लिया गया है .

कैसे संक्रमित करता है 'एच आई वी -एड्स वायरस 'महिलाओं को .

साइंसदानों ने पता लगाया है ,कैसे एच आई वी -एड्स वायरस एपिथेलियल सेल्स को पार कर महिलाओं के 'रिप्रोदाक्तिव ट्रेक्ट '(प्रजनन मार्ग )को संक्रमित कर डालता है .दरअसल एड्स विषाणु एपिथेलियल सेल्स के 'इलेक्ट्रिकल बेरियर रेजिस्टेंस 'को कम कर देता है .बस इसका प्रवेश सुगम हो जाता है ।
एच आई वी -एड्स विषाणु महिलाओं के अंतड़ी मार्ग और प्रजनन मार्गों के संरक्षी कवच 'प्रोटेक्टिव म्युकोसल बेरियर 'को तोड़ कर विषाणु के प्रवेश को आसान बाना देता है .बस मैथुन (इंटर -कोर्स )के दौरान वायरस एपिथेलियल सेल्स में सेंध लगाने में काम- याब हो जाता है .
एच आई वी के प्रवेशित होने पर एपिथेलियल सेल्स इन्फ्लेमेत्री अनुक्रिया करतीं हैं .इसी के कारण एपिथेलियल सेल्स के टाईट जंक- सन्स टूट जातें हैं .ऐसे में कोशिकाएं खुद बा खुद टूटने लगतीं हैं और यह खतरनाक विषाणु शरीर में दाखिल हो जाता है .
दुनिया भर में कुल ४ करोड़ संक्रमित व्यक्तियों में आधी महिलायें हैं .विषम लिंगियों (हेत्रो -सेक्स्युअल्स )में महिलायें ही मैथुन के दौरान ज्यादा संक्रमित हो रहीं हैं .ऐसी महिलाओं की तादाद लगातार बढ़ रही है ।
सन्दर्भ सामिग्री :क्रेक्द :हाउ एड्स वायरस इन्फेक्ट्स वोमेन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल १० ,२०१० )

सुखमय दाम्पत्य 'सेरिब्रो -वेस्क्युलर एक्सीडेंट' से बचाव

जीवन भर वफादारी और साथ निभाने की शपथ सप्त -पदी के मौके पर लेने के अलावा दाम्पत्य को सुखमय बनाए रखना फायदे की चीज़ है .सेहत के लिए फायदे मंद है सुखमय दाम्पत्य ।
तेल अवीव यूनिवर्सिटी में संपन्न एक रिसर्च के मुताबिक़ सुखमय दाम्पत्य और स्ट्रोक के जोखिम के बीच परस्पर एक अनुसंबंध की पुष्टि होती है ।
प्रोफ़ेसर उरी गोल्दबौर्ट कहतें हैं वैवाहिक जीवन की ख़ुशी स्ट्रोक के जोखिम को कमतर करती है .गैर शादीशुदा अकेले जीवन यापन करने वाले सिंगिल मेंन के लिए जहां स्ट्रोक का खतरा ६४ फीसद ज्यादा बना रहता है शादीशुदा मर्द के बरक्स वहीँ दाम्पत्य संबंधों में खटपट ,कडवाहट भी इस खतरे को ६४ फीसद बढा देती है बनिस्पत उन दम्पत्तियों के जिनके जीवन में खुशहाली है ,अच्छा तालमेल है ,रिदम है ,लय और मिठास है ।
जहां तक संभव हो वैवाहिक जीवन को भरा पूरा संपुष्ट बनाइये .स्ट्रोक से बचे रहने का बेहतर तरीका है सफल दाम्पत्य ,सुखकर वैवाहिक जीवन ।
सन्दर्भ सामिग्री :'हेपी मैरीजीज़ प्री -वेंट फेटल स्ट्रोक्स इन मेंन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल १० ,२०१० )

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

नियर डैथ एक्सपिरीयेन्स को हवा देती है कार्बन -डाय-ओक्स्सैद

कुछ लोग आप को आप बीती के तौर पर मौत के मुख से लौट आने के किस्से सुनातें हैं .पत्र -पत्रिकाओं में भी ऐसे किस्से पढने देखने को मिल जायेंगे ।
हर घटना के पीछे कार्य -करण कॉज़ एंड इफेक्ट का संग साथ है .आखिर क्या है "नियर डैथ एक्सपिरीयेन्स "का कौज़ल एजेंट ,स्तिम्युलेंत या फिर केतेलिस्ट ?कौन से ऐसे कारक हैं जो इन दिव्य अनुभवों को उत्तेजन प्रदान करतें हैं ?
स्लोवेनिया के रिसर्चरों ने पता लगाया है ,ऐसे लोगों के रक्त में अक्सर कार्बन डाय -ओक्स्साइडऔर कभी कभी साथ में पोतेसियम का स्तर बढा हुआ पाया जाता है जो मौत के मुख से लौट आने के किस्से सुनातें हैं ।
११-२३ फीसद लोग जो हार्ट अटैक के बाद बच जातें हैं नियर डैथ एक्सपिरीयेन्स के किस्से सुनातें हैं .कुछ इस दरमियान फ्लेशिंग लाइट्स दिखलाई देने का हवाला देतें हैं तो कुछ गहन शांति और आनंदातिरेक की अनुभूतिहोना बयान करतें हैं .मानो किसी दिव्य -शक्ति का साक्षात् कार करेक लौटें हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :कार्बन -डाय -ओक्स्साइड स्पार्क्स 'नियर डैथ 'एक्सपिरीयेन्स ?(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ९ ,२०१० )

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

दिमाग में छुपी है कुछ लोगों के अंतर -मुखी होने की वजह .

सम आर वायर्ड तू बी इंट्रो- वार्ट(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ८ ,२०१० )
अंतर मुखी होतें हैं सौ में से बीस लोग .इनका दिमाग सृष्टि (जीवन और जगत )का संसाधन अलग तरीके से करता रहता है ,दुनिया को देखने समझने का इनका तरीका जुदा रहता है ।
कोई बीस फीसद लोग एक खसूसियत 'सेंसरी परसेप्शन सेंसिटिविटी 'यानी एस पी एस लिए पैदा होतें हैं इसीलिए इनके ट्रेट्स (चारित्रिक विशेषताएं) भिन्न रहतीं हैं .यानी रूप रस गंध स्पर्श से प्राप्त ज्ञान के प्रति इनकी संवेदनशीलता अलग किस्म की होती है ।
ये लीग अक्सर शर्मीले और नर्वस बने रहतें हैं .अत्यधिक और अकारण औत्सुक्य (हाई लेविल ऑफ़ एन्ग्जायती )इनमे दिखलाई देता है .एक तरह की न्युरोतिसिज्म ,नकारात्मक सोच इनमे दिखलाई देती है .सोसल सिचुएशंस में ये लोग एम्ब्रास मह्शूश करते हैं ।
कुछ नौनिहालोंमे भी यह ट्रेट्स दिखलाई देंगें .ये लोग धीरे धीरे सोसल सिचुएशंस में शिरकत करतें हैं ,बहुत जल्दी रोना धोना शुरू कर देतें हैं ।
अंतर मुखी लोग कोई भी फैसला करने में ज्यादा वक्त ले लेतें हैं ,अपनी अंतर -आत्मा की आवाज़ के अनुरूप नियम निष्ठ होकर काम करतें हैं .कर्तव्य निष्ठा इनका गुण है ।
इस रिसर्च के भागी दारों में बराबर के साथी रहें हैं ,स्टोनी ब्रुक यूनिवर्सिटी ,न्यू -योर्क ,साउथ -वेस्ट यूनिवर्सिटी और चीन की अकादेमी ऑफ़ साइंसिज़ ।
साइंसदानों के मुताबिक़ सेंसिटिविटी त्रेत तकरीबन १०० अन्य प्रजातियों में भी पाया जाता है जिनमे से कुछ हैं ,फ्रूट -फ्लाईज़ ,फिश और केना -इन्स ,प्राइमेट्स आदि ।
सन्दर्भ सामिग्री :सम आर वायर्ड तू बी इन्त्रोवार्ट्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ८ ,२०१० )

स्वास्थ्य समस्या बन सकती है "माउथ-ब्रीडिंग ".

आपने देखा होगा कुछ लोग जब देखो तब मुख शवसन करतें हैं,नाक की जगह मुख से सांस लेते रहतें हैं .लोगों को यह मुगालता भी हो सकता है ,कहते सुना भी जाता है ,माउथ -ब्रीडिंग कोई स्वास्थ्य दोष नहीं है ,इसका स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है ।
एक अध्धययन इस भ्रांत धारणा का खंडन ही नहीं करता ,माउथ ब्रीदिंग को एक ऐसी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या बतलाता है जिसका इलाज़ ना करवाने पर खासकर बच्चों के मामले में आगे चलकर गभीर नुकसानी उठानी पड़ सकती है सेहत के मामले में ।
अमरीकी अकादेमी ऑफ़ जनरल देन्तिस्ट्री के मुताबिक़ इलाज़ ना करवाने पर माउथ ब्रीद -इंग करने वाले नौनिहालों में एब्नोर्मल फेसियल और डेंटल दिव्लेप्मेंट की समस्या पेश आ सकती है .(लॉन्ग नेरो फेसिस एंड मौथ्स )हँसते समय जबड़े दिखलाई दे सकतें हैं जैसे की मुख में दांत ही ना हो .अलावा इसके जिन्जिवा का इन्फ्लेमेशन (जिसमे मसूड़े फूल कर लाल हो जाते हैं ,दर्द करतें हैं .सोजिश रहने लगती है ).दन्तावली त्विस्तिद (बेतरतीब एलाइन -मेंट लिए हो सकती है मुक्तावली )।परेशान किये रह सकता है .
इसलिए माउथ ब्रीदिंग की अनदेखी ना कीजिये ।
सन्दर्भ सामिग्री :ब्रीदिंग थ्रू माउथ डेंजरस (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ८ ,२०१० )

आवर्त तालिका में इंगित लेकिन मिसिंग ११७ वां तत्व तैयार किया गया .

रुसी और अमरीकी साइंसदानों की एक टीम ने एक सुपर हेवी एलिमेंट तैयार कर लिया है जिसकी प्रागुक्ति पहले ही कर दी गई थी .अब तक ज्ञात ११८ तत्वों की सारणी में इस गैर हाज़िर तत्व का सीट नंबर (अतोमिक नंबर) ११७ है यानी इसमें प्रोटानों या फिर इलेक्ट्रानों की संख्या ११७ है .अभी इसका नाम करण किया जाना बाकी है .बहर- सूरत ऐसे अभी और भी सुपर्हेवी लेकिन स्टेबिल एलिमेंट्स का ज़िक्र है जिनकी रचना अभी पार्तिकिल एक्सारेलेत्रों से की जानी बाकी है परस्पर ज्ञात कणों की ज़ोरदार टक्कर कराकर ।
ऐसी ही एक ज़ोरदार टक्कर केल्सियम और रेडियो -एक्टिव -बर्केलियम में कराकर यह तत्व तैयार किया गया है .यह कंन त्वरक (पार्तिकिल एक्सारेलेटर )वोल्गा नदी के किनारे मोस्को से ७५ मील उत्तर दिशा में स्थापित है.साइंसदानों ने इस नए तत्व के कमसे कम ६ परमाणु पैदा करलेने का दावा किया है .यह तत्व लेड से ४० फीसद ज्यादा भारी है ।
विज्ञानियों ने प्रागुक्ति की थी सुपर हेवी एलिमेंट्स अपेक्षा कृत स्टेबिल (लोंगर लिव्ड )होंगे ,अर्द्ध जीवन अवधि इनकी ज्यादा होगी कृत्रिम तौर पर निर्मित अब तक तैयार तत्वों से ,जिनमे से ज्यादा तत्व अल्पकालिक हैं .अर्द्ध जीवन अवधि इनकी अपेक्षा कृत कम है .ऐसे अभी और भी तत्वों का पता लगाया जाना कंन त्वरकों से पैदा किया जाना बाकी है जो सुपर्हेवी होने के साथ साथ ज्यादा हाफ लाइफ लिए होंगे ।
इनके अभिनव प्रयोग अभी भविष्य के गर्भ में हैं ।
उत्तर युरेनियम तत्व आसानी से विखंडित करवाए जा सकतें हैं .मिनी स्केल पर एक अतोमिक एक्स्प्लोज़ंन इनमे कुदरती तौर पर ही होता रहता है अल्फा या बीता या फिर गामा कणों के रिसाव (उत्सर्जन /रिसाव )के साथ .इसी फिनोमिना को रेडियो -एक्टिविटी कह दिया जाता है .लेकिन एक सीमा के बाद जैसे जैसे तत्वों का भार (परमाणु संख्या )बढ़ता है ,स्टेबिलिटी भी एक बार फिर से बढ़ने लगती है .देखना बाकी है स्टेबिलिटी की यह लिस्ट आगे कहाँ तक जाती है .अभी तक इस नए तत्व के आगे परमाणु संख्या ११८ तथा पीछे ११६ परमाणु संख्या वाले तत्वखासे स्टेबिल पाए गए हैं ।
न्युत्रोंन और प्रोटोन परस्पर किस प्रकार बंधे हुए हैं इसे समझने बूझने में यह सुपर्हेवी एलिमेंट्स मदद गार हो सकतें हैं .भले ही आज हम शोर्ट लिव्ड एत्म्स के संभावित उपयोग से वाकिफ ना हों ।
सन्दर्भ सामिग्री :सुपर हेवी "एलिमेंट ११७ "इज फाइनली किर्येतिद (टाइम्स सोफ़ इंडिया ,अप्रैल ८ ,२०१० )

मल्टी-विटामिनों का नियमित सेवन ब्रेस्ट कैंसर की वजह बन सकता है .

एक नवीन अध्धय्यन के मुताबिक़ उन महिलाओं के लिए स्तन कैंसर का जोखिम बढ़कर ज्यादा हो जाता है ,जो मल्टी -विटामिन सम्पूरकों का नियमित उपभोग करतीं हैं ।
यह निष्कर्ष स्वीडन में संपन्न उस अध्धय्यन से निकाला गया है जिसमे पूरे दस बरस तक ३५००० महिलाओं पर नजर रखी गई है जिनकी उम्र ४९-८३ बरस तक थी .पता चला इनमे से जो महिलायें रोजाना मल्टी -विटामिन ले रहीं थी उनमे ट्यूमर पैदा होने का जोखिम १९ फीसद ज्यादा बढ़ गया था ।
कारोलिंसका इन्स्तित्युत ,स्टोकहोम के रिसर्चरों के अनुसार मल्टी -विटामिनों का नियमित सेवन स्तन ऊतकों के घनत्व को बढ़ाकर कैंसर गाँठ पैदा होने को हवा दे सकता है .ब्रेस्ट तिस्यु का घनत्व (डेंसिटी )एक ज्ञात रिस्क फेक्टर है ब्रेस्ट -ट्यूमर के मामले में जिसका हाथ हो सकता है ।
अन्हेल्दी लाइफ स्टाइल (भ्रस्ट-जीवन शैली ) की क्षति पूर्ती के लिए ज्यादा तर औरतें मल्टी -विटामिन गोलियों का सेवन करतीं हैं जो ट्यूमर के जोखिम को बढा देता है उनके अनजाने ही .अलबत्ता कैंसर मामलों में बढ़ोतरी की वजह अध्धय्यन सिर्फ मल्टी विटामिन गोलियों को नहीं बतला रहा है .सिर्फ रिस्क फेक्टर्स का ज़िक्र किया गया है .जोखिम ज़रूर बढ़ रहा है स्तन कैंसर का ।
सन्दर्भ सामिग्री :रेग्युलर मल्टी -विटामिन्स ट्रिगर ब्रेस्ट कैंसर ?(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ८ ,२०१० )

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

उम्र के साथ ही आती है परिपक्वता .

अकसर बुजुर्ग कहते सुने जाते हैं ,ये बाल धूप में नहीं सफ़ेद हुए हैं .अनुभव के साथ आती है सफेदी और परिपक्वता .भले ही आज के बुजुर्ग युवा भीड़ की बनिस्पत ना तो नेट और ना ही कंप्यूटर सावी हैं लेकिन रिअल लाइफ सिचुएशन ,भोगे हुए यथार्थ और जिंदगी के थपेड़ों की उनकी समझ सोलिड होती है ।समस्याओं के निदान में भी वह माहिर रहतें हैं .
आधुनिक रिसर्च भी अब इस विचार पर अपनी मोहर लगा रही है ,अपने बुजुर्गों का कहा मानो ,संघर्षों से पार पाने में उनका कोई सानी नहीं है .जीवन की अनिश्चय्ताओं की स्वीकृति कोई अपने बुजुर्गों से सीखे .और यह भी जाने समझे उनकी ही मार्फ़त ,परिवर्तन जीवन का शाश्वत नियम है .यथार्थ है ।
सवाल यह नहीं है ,आप कितने तथ्यों से वाकिफ है ,कितने ज्ञान वांन हैं .सवाल यह भी नहीं है ,आप कितने गजेट्स का संचालन करने में माहिर हैं ,असल सवाल यह है ,आप असहमति को कैसे और कितना स्वीकार करतें हैं .सामाजिक बुद्धिमत्ता आप में कितनी है ।
मिशिगन यूनिवर्सिटी के माहिरों ने रिचर्ड निस्बेत्त के नेत्रित्व में पता लगाया है ,बुजुर्ग इस बात को तस्दीक कर लेतें हैं ,अलग अलग लोगों में मूल्य बोद्ध जुदा होतें हैं और वह इसी विचार के तहत दुसरे व्यक्ति के नजरिये (वियु पॉइंट )पर भी गौर कर लेतें हैं ।
समाज के हर स्तर पर समाज के हर तबके पर उम्र अपना बौद्धिक प्रभाव छोडती है .आई .क्यु .पर भी उम्र का असर पड़ता है .आदमी उम्र के साथ सीखता रहता है .उम्र खुद सीख देती है ।
बेशक आधुनिक अमरीका में बुजुर्ग भले ही तकनीकी ज्ञान में उन्नीस होंलेकिन सामजिक समस्याओं के विश्लेषण और समझ में उनका कोई सानी नहीं है ।
सामाजिक समस्याओं की उनकी समझ और पड़ताल हमेंआज भी बहुत कुछ सिखा समझा सकती है ।
आर्थिक रूतबा ,शिक्षा और आई क्यु .यद्यपि बुद्धिमत्ता से ताल्लुक रखतें हैं ,लेकिन एक ही स्तर तक शिक्षा प्राप्त अकादमिक और नॉन -अकादमिक में कोई फर्क नहीं देखा गया है .उम्र का अपना योगदान है .बुद्धिमत्ता उम्र के साथ बढती है अकादमिक और नॉन -अकादमिक दोनों में ही ।यही इस अध्धय्यन का सार तत्व है .
सन्दर्भ सामिग्री :ग्रेनी इज राईट :पीपुल दू गेट वैज़र विद एज (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ७ ,२०१० )

ओरल कैंसर की फ़टाफ़ट जांच के लिए टूथ ब्रश जैसी "नेनो बायो -चिप "

मुख कैंसर की जांच के लिए एक नॉन -इनवेसिव टूथ ब्रश जैसा उपकरण साइंसदानों ने नेनो -टेक्नोलोजी की मदद से तैयार कर लिया है .राईस यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों के नेत्रिर्त्व मेंबनाया गया यह "नेनो -बायो -चिप "९७ फीसद संवेदी (सेंसिटिव )और ९३ फीसद स्पेसिफिक है .कुल १५ मिनिट में यह इन्स्त्रयुमेंट "मलिग्नेंत /संक्रामय "या फिर कैंसर पूर्व की स्थिति "प्री -मलिग्नेंसी "की खबर दे देता है .ना कोई चीड फाड़ ना चीरा ,पूरी तकरीबन नॉन -इनवेसिव है "मुख कैंसर "का पता लगाने वाली यह प्राविधि ।
बस एक जेंटिल टच (मिनिमली नॉन इनवेसिव तरीके से )मुख कैंसर की जांच समय रहते कर ली जायेगी .इसे एक ज़बर्जस्त ब्रेक -थ्रू समझा जा रहा है .लेब आधारित जांच इनवेसिव होतीं हैं ,और नतीजे आने में वक्त लग जाता है ।
स्काल्पल और पञ्च बायोप्सी के लिए अब तक मुख कैंसर की शिनाख्त के लिए डेंटिस्ट तथा ओरल सर्जन के सहारे ही रहना पड़ता है .हर छमाही बारहा जांच ।
सन्दर्भ सामिग्री :"टूथ ब्रश "तू दितेक्त ओरल कैंसर इन जस्ट १५ मिनिट्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ७ ,२०१० )

स्लिम और हेल्दी बेबी के लिए गर्भकाल में व्यायाम .

औकलेन्ड यूनिवर्सिटी न्युज़िलेंद के साइंसदानों ने पता लगाया है ,गर्भ काल में माताओं द्वारा किया गया वातापेक्षी हल्काफुल्का व्यायाम(यानी एरोबिक एक्स्सर -साइज़ ) अजन्मे शिशु के लिए अच्छा है .एक ओर इससे जन्म के समय होने वाले शिशु का भार अधिक नहीं बढ़ पाता ,दूसरी ओर इसका गर्भ वती माँ के इंसुलिन रेजिस्टेंस पर भी कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता .अलावा इसके शिशु आगे चलकर मोटापे की ज़द में आने (ओबेसिटी )से अपेक्षाकृत( कमोबेश) बचा रहता है .बच्चा छरहरी काया लिए लेकिन तंदरुस्त रहता है .
दरअसल माता द्वारा किया गया ऐसा व्यायाम जिसमे ओक्सिजन की खपत बढ़ जाती है ,माँ के आंतरिक परिवेश को इस प्रकार ढाल देता है जिसका शिशु के पोषण उत्तेजन ओर परिणाम तय भ्रूण के विकाश पर असर पड़ता है .इसीलिए गर्भस्थ का प्रसव के समय वजन कम रहता है .(लेकिन यह उतना कम भी नहीं रहता ,उसके स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाले .तंदरुस्ती के अनुरूप रहता है यह वजन )।
हम जानते है जन्म के समय नवजात का वजन ज्यादा होना ,आगे चलकर उसे ओबेसिटी की ओर ले जा सकता है .लेकिन एक सीमा मेंजन्म के समय वजन के बने रहने पर शिशु विकास के आने वाले चरणों में मोटापे से बचा रह सकता है ।
इंडो -क्राइनोलोजी संघ की विज्ञान पत्रिका "क्लिनिकल एन्दोक्राइनोलोजि एंड मेटाबोलिज्म में इस अध्धययन के नतीजे प्रकाशनाधीन हैं ।
अध्धय्यन में पहली मर्तबा इस बात का जायजा लिया जा रहा है ,एरोबिक एक्स्सर -साइज़ -ट्रेनिंग का इंसुलिन सेंस्तिविती पर क्या असर पड़ता है (गर्भकाल के दौरान )।
मेतर्नल-इंसुलिन -रेजिस्टेंस ज़रूरी होता है भ्रूण के गर्भ -कालिक पोषण के लिए .इसका बर्थ वेट से भी सम्बन्ध बना रहता है .बेशक कसरत इंसुलिन रेजिस्टेंस को कमतर करती है लेकिन इसके(इंसुलिन -रेजिस्टेंस ) बहुत ज्यादा घट जाने का फीटल -न्यूट्रीशन पर बहुत ही विपरीत प्रभाव पड़ता है .लेकिन गर्भकाल के दौरान नियमित हल्का -फुल्का व्यायाम करते रहने से इंसुलिन रेजिस्टेंस सीमित तौर पर (एक सीमा के अन्दर अन्दर )ही घटता है उन महिलाओं के बरक्स जो गर्भवती नहीं हैं ।इसीलियें हल्का -फुल्का ओक्सिज़ंन खपाऊ व्यायाम अच्छा है अजन्मे शिशु के लिए .
सन्दर्भ सामिग्री :एक्स्सर -साइज़ ड्यूरिंग प्रग्नेंसी फॉर ए स्लिम एंड हेल्दी बेबी (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ६ ,२०१० )

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

केवल स्तन -पान से ........

शिशु -रोग विज्ञान पत्रिका "पीद्रिआत्रिक्स "में हाल ही मेंओन लाइन प्रकाशित एक आकलन के मुताबिक़ अमरीकी माताएं केवल अपने दूध -मुहे को जन्म के बाद की पहली छमाही में यदि नियमित ब्रेस्ट फीडिंग (स्तन पान )करवाएं तब ना सिर्फ तकरीबन ९०० सौ शिशुयों को कालकवलित होने से बचाया जा सकेगा ,अन्य बीमारियों पर इस दरमियान स्तन पान से वंचित शिशुयों पर खर्च होने वाले अरबों डॉलरों को टाला जा सकेगा ।
साइंसदान भी इस अध्धययन के नतीजों पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगातें हैं ।

स्तन -पान करवाने मात्र से उन तमाम शिशु तकलीफों से बचा जा सकेगा जिन पर बे -इन्तहा राशि (पैसा )खर्च होता है और अंत में कितने ही नौनिहाल काल का ग्रास बन ही जातें हैं ।

स्तन पान ना सिर्फ स्टमक वायरस के संक्रमण से हिफाज़त करता है ,कान के संक्रमण से बचाए रखने के अलावा दमे (एस्मा )से भी नौनिहालों को अपेक्षाकृत बचाए रहता है ."स्तन पान एक, फायदे अनेक" ,इसी लिए स्तन पान को "अमृत पान ",चिकित्सा शब्दावली में टीकाकरण कहा गया है .,फस्ट फीड इन टीकों से भर -पूर होती है ।

अलावा इसके जुवेनाइल -दाय्बीतीज़ (शिशुयों को होने वाली शक्कर की बीमारी ),सदेंन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम ,यहाँ तक की चा -इल्ड -हुड ल्यूकेमिया (बालपन में होने वाले कैंसर )से भी रोग प्रति -रक्षण हो सकेगा ।
यह करिश्मा उन "एंटी -बोदीज़ "का होता है माँ -का दूध जिनसे भरपूर रहता है .अनेक संक्रमणों से यही प्रति -पिंड बालक को बचाए रहते हैं .इतना ही नहीं "ब्रेस्ट मिल्क "खून में इंसुलिन के स्तर को भी प्रभावित करता है .स्तन पान भर -पूर करने वाले बच्चोंमें दाय्बीतीज़ के अलावा मोटापे की ज़द में आगे चलकर आने के जोखिम कम रह जातें हैं ।
स्तन -पान है जहां तंदरुस्ती है वहां .खुश -हाली है वहां ।सच जानिये यह सिर्फ सरकारी नारा नहीं है ,जन -आन्दोलन है .
सन्दर्भ सामिग्री :ब्रेस्ट -फीडिंग केंन सेव ९०० हंड्रेड लाइव्स ए ईयर इन यूं .एस .एलोन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ६ ,२०१० )

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

जिनके जीवन में रस है उनका कार्य स्थल पर भी मन लगता है ...

जो खुद से प्यार करतें हैं जीवन में जिनके रस है ,जीवन में जो रूचि लेतें हैं उन्हें कार्य स्थल पर भी अपने काम से संतुष्ट देखा गया है .यानी आपके जीवन की ख़ुशी में छिपा है वर्क -प्लेस से संतुष्ट रहने का राज ।
राईट स्टेट यूनिवर्सिटी में संपन्न एक अध्धययन से ऐसी ही ध्वनी आ रही है ।
पूर्व में किये गए अध्धय्यनों का जायजा लेने के बाद पता चला ,जो जीवन से खुश नहीं हैं उन्हें अपने काम से भी संतुष्टि नहीं मिल पाती है ।
बकौल मनो -विज्ञानी नाथन बोवलिंग दो समय अंतरालों पर जायजा लेने मेटा -अनेलेसिस करने के बाद पता चला जॉब सेतिस्फेक्सन और लाइफ सेतिस्फेक्सन में परस्पर एक अंतर -सम्बन्ध एक गुम्फन है .जो अन्दर नहीं है वह बाहर भी नहीं है ।
नाथन ने २२३ अध्धय्यनों का आकलन करते वक्त कार्य -संतुष्टि (जॉब -सेतिस्फेक्सन )से जुडी अन्य बातों यथा काम की प्रकृति से जुड़ा संतोष यानी पसंदगी ,ना पसंदगी ,पगार (पे -पैकेज ),तरक्की के मौके ,सहकर्मी और निगरानी आदि पर भी गौर किया ..
विषयी (सब्जेक्ट्स की ख़ुशी )की ख़ुशी तथा सब्जेक्टिव वेलबींग की भी तुलना की गई .यानी अनेक कोनों से अंतर सम्बन्ध को जांचा परखा गया .कुल मिलाकर काम से संतुष्टि कितनी है यह भी पता लगाया गया और अंत में एक सकारात्मक (पाजिटिव )अंतर सम्बन्ध ही स्थापित हुआ जॉब और जीवन से मिलने वाले संतोष में ।
सन्दर्भ सामिग्री :डोज़ हूँ एन्जॉय लाइफ मोर लाइकली तू बी हेपी एट वर्क (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ५ ,२०१० )

आप कितनी शराब पीती हैं इसका सम्बन्ध आपकी शिक्षा से जुदा हो सकता है .

औरतें कितनी शराब पीती हैं या कितनी शराब पियेंगी इसका सम्बन्ध उनके शैक्षिक स्तर से जोड़ा जा रहा है .क्या वास्तव में ऐसा कोई सह -सम्बन्ध है ?
लन्दन स्कूल ऑफ़ इक्नोमिक्स में किये गए एक अध्धययन से पता चला है ,अति उच्च शिक्षित महिलाओं को अपने जीवन में ऐसे मौकों से बारहा दो चार होना पड़ता है जो शराब के सेवन के ज्यादा अनुकूल होतें है बरक्स उन महिलाओं के जिनको यूनिवर्सिटी एजुकेशन का मौक़ा नहीं मिलता ।
यूनिवर्सिटी शिक्षा प्राप्त महिलायें शराब का सेवन अपेक्षाकृत ज्यादा करतीं हैं बनिस्पत उनके जिन्हें यूनिवर्सिटी स्तर तक जाने का मौक़ा नहीं मिलता ।
सन्दर्भ सामिग्री :एजुकेतिद वुमेन ड्रिंक मोर (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ५ ,२०१० )

ब्रेस्ट कैंसर की समय रहते शिनाख्त के लिए ब्लड टेस्ट ..

नोर्वे की दवा कम्पनी दैजेनिक ए एस ए ने एक ऐसा ब्लड टेस्ट ईजाद कर लिया है जो ट्यूमर तक पहुँचने वाले रक्त से चंद "केमिकल मार्कर्स "के बढे हुए स्तर का पता लगा कर स्तन कैंसर की शिनाख्त कर लेगा .यह शिनाख्त कैंसर के लक्षण प्रकट होने से पहले ही तब की जा सकेगी जब कैंसर गाँठ का आकार बामुश्किल एक छोटे से बीज के बराबर ही होगा ।
अब ना तो नोर्मल ब्रेस्ट स्क्रीनिंग चेक्स की ज़रुरत रह जायेगी और ना ही "एक्स -रे -मेमोग्रेम्स "की जिन्हें इस दौर में उतना निरापद भी नहीं माना जा रहा था .इसे एक बड़ी खबर बतलाया जा रहा है .परम्परा गत मेमोग्रेम्स से कैंसर का पता तब ही चल पाता है जब गाँठ अपना आकार तीन चार गुना बढा लेती है .
सन्दर्भ सामिग्री :ब्लड टेस्ट तू दितेक्त ब्रेस्ट कैंसर (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ५ ,२०१० )

रविवार, 4 अप्रैल 2010

वाट इज "अरच्नो -फोबिया "?

अरच्निद आठ टांगों दो उदरवाला जीव है .स्पाई -डर्स(मकड़ी ,मकड़े ),किलनी (जुआ ),घुन ,बिच्छु आदि इसी वर्ग के जीव हैं .यह एक बड़ा समूह है बिना रीढ़ वाले जीवों का .इसी वर्ग को -आर्थ्रो -पोडा कहा जाता है .इनमे से मकोड़ा और कुछ और जीव अपने शिकार को फंसाने के लिए अति महीन जाल बुनते है ।
फोबिया का अर्थ है "भीती ",अतार्किक भय।
अरच्नो -फोबिया का अर्थ हो गया "स्पाइडर"पर नजर पड़ते ही बेतहाशा भयभीत हो जाना .दिस इज ए मोर्बिड फीअर ऑफ़ स्पाई -डर्स .एन एब्नोर्माली स्ट्रोंग फीअर ऑफ़ स्पाई -डर्स .

ठहाके चिल्ला कर क्यों लगाए जातें हैं ?

वाई दज ए पर्सन क्राई वाइल हेविंग ए हार्टी लाफ ?
हमारी संवेदनाओं से जुडी है सुख दुःख ,ख़ुशी -गम की नस .और संवेदनाओं का केंद्र है हमारा दिमाग ।
ये तमाम उदगार एक विस्फोट (क्राई )के रूप में ही प्रगट होते हैं ।
वैयक्तिक संवेग दोनों प्रकार के हो सकतें हैं ,अच्छे और बुरे .इन्हीं के मुताबिक़ व्यक्ति अनुकिर्या करता है .इस अनुक्रिया की वजह वह सन्देश (सिग्नल्स )बनते हैं जिन्हें मस्तिष्क के उच्चतर केंद्र प्रसारित करतें हैं .जब यह सन्देश (अच्छे या फिर बुरे )अश्रु ग्रंथियों (टिअर ग्लेंड्स )तक पहुंचतें हैं ,आवेग स्वरूप हम दहाड़ मार कर रोतें हैं या फिर जोरदार ठहाका लगातें हैं ।
यह तमाम सन्देश पैरा -सिम्पेठेतिक मार्गों से गुज़रतें हैं .पेचीला संवेगों की इस गुत्थी को हम सहज बोध से जान समझ ,बूझ कर हंस देते है या रोने लगतें हैं .

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

बुलेट -प्रूफ शर्ट.

साउथ केरोलिना ,स्वित्ज़र्लेंद तथा चीनी साइंसदानों ने कार्बन और कोटन के मिश्र से एक ऐसी टी -शर्ट बनाली है जिसे कवच या बुलेट -प्रूफ की तरह पहना जा सकेगा .इतना ही नहीं यह कमीज़ खतरनाक पराबेंग्नी रोशनियों से भी शरीर की हिफाज़त करेगी .सौर विकिरण का परा बेंगनी अंश कुछ के लिए सन बर्न्स की वजह बन जाता है खासकर गोरी चमड़ी वालों के लिए.यह वाही सौर विकिरण अंश है जिसे जैवमंडल में दाखिल होने से ओजोन कवच रोके रहता है .अलावा इसके, विखंडित होते रेडियो -धर्मी पदार्थों से (खासकर उच्च ऊर्जा न्युत्रोंन कणों से ),अन्यप्रकार के हानिकारक विकिरण से यह शर्ट शरीर को बचाए रहेगी .ज़ाहिर है सैनिकों ,अन्य सुरक्षा बलों के लिए यह एक उपयोगी और हल्का फुल्का परिधान बन सकती है ।
इतना ही नहीं इस मिश्र पदार्थ से हलके लेकिन अति मज़बूत वायुयान ,ईंधन दक्ष कारें अन्य वाहन भी तैयार किये जा सकेंगे ।
एटमी भट्टियों पर काम करने वाले कर्मियों के लिए इससे विकिरण शील्ड तैयार की जा सकेंगी .है ना वही बात "आम के आम गुठलियों के दाम "।
हम जानते है कार्बन सभी कोटन परिधानों में मौजूद रहता है .इसी कार्बन का बोरोंन के साथ मिश्र तैयार किया गया है .बस एक टफ लाईट वेट "बोरोंन कार्बाइड "काफेब्रिक " तैयार .जिसे मनमानी शक्लों में ढाला जा सकता है .यह टी -शर्ट वाल -मार्ट में उपलब्ध है ।
प्रति -रक्षा बलों को एक कारगर लेकिन पहनने लायक हल्का फुल्का आर्मर हैं बोरोंन -कार्बाइड से बने वस्त्र ।
सन्दर्भ सामिग्री :ए टी शर्ट देत तर्न्स इनटू बॉडी आर्मर (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ३ ,२०१० )

छरहरी काया के लिए सोयाबीन की नै किस्म ....

इलिनॉय विश्व -विद्यालय की रिसर्चर एलविरा दे मेजिया "स्लिमिंग सोयाबीन "की ब्रीडिंग (नै किस्म जिसे काया को पतला दुबला बनाए रखने की नीयत से तैयार किया गया है ) के करीब करीब नज़दीक पहुँच गईं हैं ।
आपके अनुसार सोयाबीन की इस करामाती किस्म में एक ऐसी प्रोटीन है जो वसा को एक जगह अड्डा ही नहीं बनाने देती है ,एकत्र नहीं होने देती है फेट को .अलावा इसके "स्लिमिंग सोयाबीन "इन्फ्लेमेशन को कम करती है .इस प्रकार एक दम से सही मिश्र ,सही संरचना (वांछित इन्ग्रेदियेंट्स वाली सोया )तैयार करके खेती किसानी के लिए मुहैया करवाई जा सकती है ।
सन्दर्भ सामिग्री :सून ,सोयाबीन्स फॉर स्लिमिंग (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ३ ,२०१० )

जब साथी हाथ बढाए ,प्रेम पींग बढ़ जाए .

"कलीनिंग हाउस टाइड तू मोर सेक्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ३ ,२०१० )"
जो दम्पति घर की साफ़ सफाई में अभिरुचि रखतें हैं उनकी सेक्स लाइफ (लव मेकिंग ) भी बेहतर रहती है .यही कहना है डॉक्टर कांस्तांस गगेर का .आप अमरीका की मोंत्क्लैर यूनिवर्सिटी से ताल्लुक रखतें हैं .कारण जब मर्द घरेलू काम काज में हाथ बटाता है ,तब औरत को उसी अनुपात में थोड़ी राहत मिल जाती है ,थोड़ी ऊर्जा भी बची रहती है "सेक्स "के लिए .(जी हाँ बेडो- मीटर से सेक्स एपिसोड में खर्च हुई ऊर्जा का जायजा भी लिया जा सकता है ।).ऐसे में स्वाभाविक तौर पर उनकी अभिरुचि सेक्स में भी हो सकती है ।
यह बात औरत और मर्द दोनों के लिए सही है ."फलसफा है ,साथी हाथ बढ़ाना ,साथी रे ,एक अकेला थक जाए तो मिलकर बोझ उठाना "इसीलियें ना कहा गया है ,औरत और मर्द गृहस्थी के दो पाए हैं ।"
ज्यादा फुर्सत ज्यादा "काम".,दोनों को रहता आराम ।
डॉक्टर गगेर कहतें हैं ,सर्वे से पता चला कूकिंग ,वाशिंग ,लोंद्री करना ,या फिल बिल जमा करवाने जाना ,सभी का काम -संबंधों पर सकारात्मक (सुखात्मक )प्रभाव पड़ता है ।
आप भी आगे आइये ,मिलकर गाइए -साथी हाथ बढ़ाना .......
सन्दर्भ सामग्री :क्लीनिंग हाउस टाइड तू मोर सेक्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ३ ,२०१० )

यौन उत्तेजना को ले उड़ सकती है -कोला पेयों की लत .

एक ताज़ा अध्धय्यन से पता चला है ,जो मर्द रोजाना एक लीटर या फिर और भी ज्यादा कोला पेयों यानी कथित "ठंडा "का सेवन करतें हैं उनकी मर्दानगी बेतरह असर ग्रस्त हो जाती है ,स्पर्म -काउंट तकरीबन ३० फीसद कम हो जाता है ।
अध्धय्यन के अगुवा रहे टीना कोल्ड जेन्सेन कहतें हैं ,डेनमार्क के युवा गत चंद दसक से केफीन -बहुल सोफ्ट ड्रिंक्स का अधिकाधिक उपयोग कर रहें हैं .इसीलिए केफीन की प्रजनन स्वास्थ्य पर पड़ताल के लिए यह अध्धय्यन करने की पहल की गई है ।
कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी अस्पताल के रिसर्चर कहतें हैं हो सकता है प्रजनन स्वास्थ्य असर ग्रस्त होने की वजह केफीन ना होकर कोला पेयों में शामिल अन्य तत्व और जीवन शैली में शामिल अन्य चीज़ें हों .क्योंकि जो लोग कोफ़ी ज्यादा पीतें हैं उनमे यह सब देखने को नहीं मिला है हालाकि कोफ़ी में अपेक्षाकृत ज्यादा केफीन रहता है ।
अध्धय्यन में २५०० युवाओं की पड़ताल की गई ,पता चला इनमे से जो कोला का सेवन नहीं कर रहे थे उनका स्पर्म काउंट ५० मिलियन प्रति मिली -लीटर था , हालाकि इनकी जीवन शैली भी दुरुस्त थी ,भ्रष्ट खान पान नहीं था ।
इसके ठीक विपरीत वह ९३ युवा जो रोजाना एक लीटर कोला गटक रहे थे उनका स्पर्म काउंट ३५ मिलियन प्रति मिली -लीटर था .ये लोग हाई -केलोरी फ़ूड (फास्ट फ़ूड )ज्यादा जबकि सब्जी और फ्रूट्स कम ले रहे थे ।
हो सकता है इसके पीछे सिर्फ कोला या फिर सिर्फ फास्ट फ़ूड का हाथ रहा हो .कुसूरवार दोनों भी हो सकतें हैं ।
बेशक विश्व -स्वास्थ्य संगठन की नजर में यह स्पर्म काउंट भी सामान्य हो सकता है ,लेकिन तथ्य यह भी है जिन मर्दों का स्पर्म काउंट आम तौर पर कम पाया जाता है ,उनके बाँझ होने -रहने की जोखिम बढ़ी हुई रहती है ।
सन्दर्भ सामिग्री :कोला टेक्स फिज्ज़ आउट ऑफ़ मेल फर्टिलिटी .(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ३ ,२०१० )

बौद्धिक कोशांक को भी जला डालती है -स्मोकिंग .

तेलअवीव विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने मार्क वाइज़र के नेत्रित्व में पता लगाया है ,वह युवजन जो धूम्र -पान करतें हैं उनका इंटेलिजेंस कोशेंट अपने नॉन -स्मोकर्स साथियों के बरक्स कम रह सकता है .यानी निकोटिन आपके बौद्धिक -कोशांक का ही पान करने लगती है ,पलीता लगा देती है आपके इंटेलिजेंस कोशेंट को ।
इजरायली फौजियों के १८ -२१ साला आयु वर्ग का दीर्घावधि अध्धय्यन विश्लेषण करने के बाद पता चला है आप कितनी सिगरेट रोजाना फूंक देते है इसका आपके आई .क्यू पर सीधा असर पड़ता है ।
एकनॉन -स्मोकर का औसत आई .क्यू .१०६ आंका गया .,जबकि स्मोकर्स में यह घटकर औसतन ९४ अंक रह गया .यानी ७ अंक निकोटिन ने जला डाले ।
स्मोकर्स में जो युवा रोजाना एक पैकिट सिगरेट धुएं में उड़ा रहे थे उनका आई .क्यू और भी कम ९० पाया गया युव -जनों में जो सेहत मंद हैं और हर तरह के मानसिक रोग से मुक्त हैं यह ८४-११६ अंकों के बीच रहा है ।
लोवर आई क्यू का मतलब स्मोकिंग की लत भी होसकती है .यूँ अध्धय्यन में शामिल ज्यदातर फौजियों का आई क्यू एक औसत रेंज में ही दर्ज़ किया गया है ।
सन्दर्भ सामिग्री :स्मोकिंग केंन सिंज योर आई क्यू (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ३,२०१० )

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

सर्व -खाप पंचायतों से निवेदन .

इतिहास के झरोंखे से देखें ,विदित होगा सर्व -खाप पंचायतों ने ना सिर्फ अपने अपने इलाकों की आतताइयों से हिफाज़त की है ,अपने सामाजिक सरोकारों को भी तरजीह दी है ।
आज के सन्दर्भ में जो सर्व खाप पंचायतें खेती किसानी की ताकत बन किसानों के हितों की हिफाज़त कर सकतीं है .किसी बेसहारा विधवा को भू -माफिया से बचा सकतीं हैं .पद दलित को सरे आम बेईज्ज़त होने से बचा सकतीं हैं गाहे बगाहे इस या उस प्रांत में कितनी ही औरतों को (ज्यादातर बेसहारा विधवाओं को ,वह किसी ज़ाबाज़ फौजी की माँ भी हो सकती है जो देश की सीमाओं पर तैनात है ) डायन घोषित कर दिया जाता है .एच आई वी एड्स ग्रस्त औरत को तिरिश्क्रित होने से बचा सकतीं है जिसे यह सौगात अमूमन अपने पति परमेश्वर से ही मिलती है ।
लेकिन राजनीति पोषित आज की जातीय पंचायते अंतर जातीय ,सजातीय ,सगोत्रीय ,सग्रामीडएक ही गाँव में विवाह जो अक्सर प्रेम विवाह होतें हैं जैसे मुद्दे पर जडवतहोकर रह गईं हैं ।
यह उनकी समाज प्रदत्त ऊर्जा का अपक्षय नहीं तो और क्या है ।
ताज़ा प्रकरण करनाल की अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश वाणी गोपाल शर्मा द्वारा सुनाये गए बहु चर्चित दोहरे ह्त्या -काण्ड (बबली -मनोज दम्पति )से तालुक रखता है ।
सगोत्रीय विवाह एक सामाजिक दायरे में अमान्य हो सकता है लेकिन किसी भी कंगारू कोर्ट को सगोत्रीय दम्पतियों की सरे आम निर्मम हत्या करने की छूट नहीं दी जा सकती .विरोध के मान्य तरीके हुक्का पानी बंद करना रहे आये हैं .फिर ह्त्या जैसा खुद -मुख्त्यारी का फैसला क्यों ?
सगोत्रीय विवाह आधुनिक भारत की एक हकीकत है इससे कोई इनकार नहीं कर सकेगा भले ऐसे विवाह उत्तम संततियों के उपयुक्त विज्ञान की निगाह में ना हों .लेकिन प्रेम आदमी तौल कर नहीं करता ।"प्रेम ना बाड़ी उपजे ,प्रेम ना हाट बिकाय ....".
सच यह भी है :जान देना किसी पे लाजिम था ,ज़िन्दगी यूँ बसरनहीं होती ।
और जान लेना सरा - सर जुर्म है .अपने खुद के जायों की आदमी जान ले कैसे लेता है ?
मनो विज्ञानी इसके लिए उस प्रवृत्ति को कुसूरवार ठहरातें हैं जिसका बचपन से ही पोषण -पल्लवन किया जाता है सती मंदिरों को इसी केटेगरी में रखा जाए गा ।
विपथगामी वोट केन्द्रित राजनीति सब कुछ लील गई है .पथ-च्युत जातीय पंचायतें उसी सर्वभक्षी राजनीति की उप -शाखा हैं ।
फिलवक्त मनोज -बबली दम्पति की जांबाज़ माँ को सुरक्षा मुहैया करवाने का आदेश कोर्ट को पारित करना चाहिए माननीय मुख्य मंत्री हरियाणा सरकार न्यायाधीशा वाणी गोपाल शर्मा को भी एन एस जी सुरक्षा मुहैया करवाएं
विपथगामी सर्व -खापी पंचायतें कुछ भी करवा सकतीं हैं .यदि चन्द्र -पति की इस दौर में ह्त्या कर दी गई तो सभी औरतों का आइन्दा के लिए हौसला टूट जाएगा .बेहतर हो :दुश्मनी लाख सही ख़त्म ना कीजे रिश्ते ,दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते रहिये .खाप पंचायतें इस मर्म को समझें .अपने सामाजिक सरोकारों की जानिब लोटें ।
खुदा हाफ़िज़ ।
वीरुभाई .

सुपर -टास्कर नहीं हैं मैं और आप ....

सुपर -तास्कर्स : जस्ट वन इन फोर्टी केंन ड्राइव वेळ वाईल ऑन फोन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २ ,२०१० )।
अक्सर हम अपने को सुपर -टास्कर मान समझ बैठतें हैं ,तभी तो हम हीरा -लाल बनने की असफल कोशिश करते रहतें हैं .हाथ हमारा स्टीअरिंग पर होता है दिमाग फोन काल्स में अटका रहता है .उताह मनो विज्ञानियों ने पता लगाया है बिरले हीहम यह दोनों काम कुशलता पूर्वक कर सकतें हैं .फिर भी यदि आप ऐसा कर रहें हैं तो जोखिम उठा रहें हैं .क्योंकि ४० में से कोई एक बिरला ही इन दोनों कामों को बिना जोखिम अंजाम दे सकता है ।
२०० प्रति -भागियों पर संपन्न इस अध्धय्यन में केवल २.५ प्रतिभागी ही काम याब रहें हैं .इन्हें एक ड्राइविंग सिम्युलेटर ओपरेट करने को कहा गया .साथ ही एक सेल फोन पर बतियाने के लिए कहा गया ।
९७.५ फीसद प्रति भागी सिम्युलेटर पर गलती करते देखे गए .केवल २.५ फीसद से ही कोईउल्लेखनीय चूक नहीं हुई ।
मनोविज्ञानी जसन वाटसन और डेविड स्ट्रेअर के नेत्रित्व में संपन्न इस अध्धययन के नतीजे जौर्नल साइकोनोमिक बुलेटिन एंड रिव्यू में प्रकाशित होने हैं ।
कोगनिटिव थिएरी के मुताबिक़ सुपर -टास्कर का अस्तित्व ही नहीं होना चाहिए .किसी किसी में ही असाधारण काबलियत (मल्तीटास्किंग की क्षमता ) होती है .फिरभी कितने ही लोग ड्राविंग को सेल फोन के साथ मिक्स करते देखे जातें हैं .हर कोई अपने आप को माहिर समझता है ,मल्ती -टास्कर माने बैठा है .हेंड्स फ्री सेल फोन स्तेमाल करना भी उतना ही खतरनाक है .ये तमाम लोग ब्रेक मारने में २० फीसद ज्यादा वक्त लेतें हैं .सिम्युलेतिद ट्रेफिक के साथ ९७.५ फीसद लोग ताल मेल नहीं रख सके ३० फीसद ज्यादा दूर जाकर रुकी इन की गाडी . ड्राइविंग के दरमियान .,ब्रेक लगाने के बाद भी .यही हैं इस अध्धय्यन के नतीजे .

दिल के लिए भली है चोकलेट्स ....

एक नवीन अध्धय्यन के मुताबिक़ रोजाना बस ६ ग्रेम चोकलेट्स का सेवन हार्ट -अटेक और सेरिब्रल वेस्क्युलर एक्स्सीदेंत (आघात )के खतरों को ४० फीसद तक कम कर सकता है ।
अध्धय्यन के तहत जर्मन रिसर्चरों ने २०००० लोगों की रहनी सहनी (खान पान ,कसरत आदि की आदतों )का ८ साल तक जायजा लिया है .यूरोपीय हार्ट जरनैल में प्रकाशाधीन इस अध्धययन के अनुसार जो लोग औसतन चोकलेट बार का कमसे कम एक स्क्वायर (तकरीबन ६ ग्रेम )रोजाना ले रहे तह उनमे हार्ट -अटेक और आघात का ख़तरा ३९ फीसद घाट गया था ।
पूर्व में डार्क चोकलेट्स के फायदे सामने आयें है लेकिन यह एक दीर्घावधि अध्धययन है .माहिरों के मुताबिक़ चोकलेट्स में मौजूद फ्लेव्नोल ब्लड वेसिल्स की पेशियों को चोडा (वाई -दिन )कर देता है .जिसके कारन ब्लड प्रेसर कम हो जाता है ।
ब्रियन बुइज्स्से (जर्मन इन्स्तित्युत ऑफ़ ह्यूमेन न्यूट्रीशन ,नुठेतल )कहतें हैं ,चीनी और हाई -फेट -स्नेक्स के स्थान पर बेशक थोड़ी सी डार्क चोकलेट लेना फायदे मंद हो सकता है .(लेकिन अध्धयन चोकलेट्स के बेतहाशा स्तेमाल की बात बिलकुल नहीं करता है ।)
सन्दर्भ -सामिग्री :चोकलेट केंन कट स्ट्रोक एंड हार्ट अटेक रिस्क बाई ४० %(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल १ ,२०१० )

भूकंप का पूर्वाभास लगालेतें हैं "टोड्स ".

जर्नल ऑफ़ जूआलोजी में प्रकाशित एक अध्धययन के मुताबिक़ मेढकों की ज्यादर स्थल पर रहने वाली एक किस्म (टोड्स, एन एम्फीबियन ) भूकंप से पहले रिसने वाली गैसों और आवेशित कणों को भांप कर आपदाग्रस्त होने वाले स्थान से भाग खड़ी होती है ।
इटली में अप्रैल २००९ को आये भूकंप से पांच दिन पहले ही टोड्स ने चेतावनी प्रसारित कर दी थी .तीन दिन पहले हीये सारे उभयचर (एम्फिबीय्न्स ,टोड्स )ल"अकुइला शहर से भाग खड़े हुए थे .इस काम में नर मेढक ज्यादा संवेदी थे .इस शहर में ३०० लोग मारे गए थे ,चालीस हजार बेघर हो गए थे ।
इस अध्धययन के अगुवा रहे राचेल ग्रांट कहतें हैं यह अपने तरह का पहला अध्धययन है जिसमे भूकंप से पहले ,भूदोलन के दरमियान और इसके बाद टोड्स के व्यवहार और आवास में आये बदलाव का जायजा लिया गया है ।
पूर्व में आयनमंडल में होने वाले विक्षोभ (पर -तर -बेशन ) का सम्बन्ध भूकंप से पूर्व ज़मीन के नीचे से भूकंप पूर्व रिसने वाली रे -दोन गैस ,गुरूत्वीय तरंगों आदि से जोड़ा जा चुका है .हाथी घोड़ों भेडियो सर्पों ,मच्छियों के व्यवहार में भूकंप पूर्व होने वाले बदलावों को भी दर्ज किया गया है .कहतें हैं भूकंप से पहले घोड़े अस्तबल से भाग खड़ें होतें हैं ,सर्प बिलों (बाम्बिओं )से बाहर निकल आतें हैं ।
लेकिन फिर भी भूकंप अबूझ रहा है .हो सकता है इस अध्धययन से एक नै रौशनी पड़े ।
सन्दर्भ सामिग्री :टोड्स केंन तेल वेंन क्युएक्स एबाउट तू स्ट्राइक .(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल १ ,२०१० )