गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009

वेव जेनेटिक्स का मायावी संसार -दूसरी किश्त .

इन दिनों जेनेटिक इंजीनिरिंग एप्रूवल कमिटी द्वारा -बी टी -ब्रिंजल (आनुवंशिक तौर पर संवर्द्धित बेगन की सुधरी खेती )को हरी झंडी मिलने की बाद एक बार फ़िर यह चर्चा चल पड़ी है -जीन संवर्द्धित खाद्य प्रकृति पर्यावरण और स्वयं हमारे स्वाश्थ्य के लिए कितने निरापद हैं ?
पता चला है -बी टी ब्रिंजल बेंगन को शूट -बोरर से तो बचा लेता है ,फसल को कीडा नहीं लगता और कम -उपजाऊ धरती पर भी अच्छी फसल निकल आती है -लेकिन इसमे मौजूद एंटी -बायटिक हमारी रोग प्रति -रोधक क्षमता को असर ग्रस्त बनाता है -इम्मुं उन सिस्टम को कमजोर बनाता है ।
बात साफ़ है -जीव और जगत के रिश्ते लिनिअर नहीं हैं ,पेचीला हैं ।
आइये हाई -पर कम्युनिकेशन पर एक बार फ़िर लौट -ते हैं ,जिसके दरमियान हमारे दी एन ऐ में विशेष फिनोमिना देखी जा सकती है ।
अपने एक प्रयोग में रूसी विज्ञानियों ने जब एक दी एन ऐ साम्पिल पर लेजर प्रकाश डाला (आलोकित किया ,इरादिएत किया लेजर लाईट से ),एक विशेष वेव पट रन परदे पर उभरा ,जो तब भी बना रहा जब दी एन ऐ साम्पिल को ही उठा लिया गया ।
वजह थी दी एन ऐ के एनर्जी फील्ड का बने रहना .इस प्रभाव को अब फेंटम दी एन ऐ प्रभाव कहा जाता है .इसी प्रकार पहुंचे हुए सिद्ध पुरुषों के गिर्द भी एक एनेर्जी फील्ड बना रहता है .यही प्रभा मंडल है (औरा )।
इसी फील्ड की वजह से सी दी प्लेयर्स ,इतर इलेक्त्रोनी उपकरण काम करना बंद कर देतें हैं ,रिकॉर्डिंग दिवैसिज़ बेकार हो जातीं हैं ,लेकिन ऊर्जा -क्षेत्र के छीज जाने पर दोबारा काम करने लगतीं हैं ।
कई हीलर्स और साईं किक्स (मृत आत्माओं का आवाहन कर उनसे संवाद करलेने वाले सिद्ध पुरूष ,भविष्य जान लेने वाले ,दूसरे के विचार दूर से ही पढ़ समझ लेने वाले )इस फेंटम दी एन ऐ प्रभाव से अवगत हैं ,वाकिफ हैं इसके लीला संसार से -इसीलियें दी एन ऐ के साथ आनुवंशिक काट छाँट ,दी एन ऐ स्लैसिंग ठीक नहीं है ।
पहले के आदमी में isi haai par kamyunikeshan ke chalte ek saamudaayik chetnaa thi ,pashu jagat kaa kaaray vyaapaar aaj bhi isi group consciousness se chaltaa hai .पहले के आदमी में यही सामुदायिक चेतना थी ,पशु जगत का कार्य -व्यापर इसी ग्रुप कान्शाश्नेस से ही चलता है .ऐसा है -हाई पर कम्युनिकेशन का जादू जो सिर चढ़के बोलता है .
vayektik chetnaaa ke vikaas (individual consciousness ) hamaari haai par kamyunikeshan ki kshmtaa jaati rahi ,"now we are fairly stable in our individual consciousness "व्यक्ति गत चेतना के उद्भव और विकास के बाद हमारी हाई पर कम्युनिकेशन की क्षमता छीजती चली गई और एक दिन समाप्त हो गई ,हम एक पूर्ण -व्यक्ति (स्तेबिल इन्दिविज्युअल बन गए ).
now that we are fairly stable in our individual consciousness ,we are at the threshold of creating a new form of "group consciousness ",namely in which we attain access to all information via our DNA without being forced or remotely controlled about what to do with that information .
we know that just as on the internet our DNA can feed its proper data into the network ,can call up data from the net work and can establish contact with other participants in the network .remote healing ,telpathy or "remote sesnsing "about the state of relatives etc ,can thus be explained .some animals (specially dogs and cats )know also from afar when their owners plan to return home .that can be freshly interpreted and explained via the concepts of group consciousness and hypercommunication .
but any collective consciousness can not be used over any period of time without a distinct ive individuality .otherwise we would revert to a primitive herd instinct that is easily mani pulated .hypercommunication in the new millennium means something quite new ,quite different .,about which ,I shall talk in the next and concluding article of this series .

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