सोमवार, 31 मई 2010

माँ -बच्चों का परस्पर अनुराग आइन्दा के लिए भी सुखकर .

लाइव साइंस में प्रकाशित एक अध्धय्यन के मुताबिक़ किशोरावस्था के शुरूआती दौर में माँ -बच्चों का परस्पर रागात्मक जुड़ाव युवावस्था में इन बालकों के लिए आदर्श बन उनके अपने हमउम्रों से संबंधों में भी मिठास बनाए रख सकने में उन्हें ढालने पनपाने में विधायी भूमिका निभा सकता है ।
पेरेंट -चाइल्ड बोंड भविष्य में इनके रोमांटिक रिलेसन -शिप की आंच को बनाए रखने में भी अपना असर छोड़ता है ।
मोंट -क्लेयर यूनिवर्सिटी ,न्यू -जर्सी के रिसर्चर कांस्तांस गगेर कहतें हैं .माँ -बाप से नौनिहालों की प्रीती, संबंधों का एक मोडल, बनकर खड़ी हो जाती हैं .बच्चे रोल मोडिल बना लेतें हैं इस लगाव को .माँ बाप और बच्चों के बीच की लगाव हीनता ,विलगाव या दूरी कुछ सकारात्मक आधार या आदर्श नहीं बन पाती भविष्य के रिश्ते नातों का .
१४ साल के बाद को इस दृष्टि से लेट -अदोलिसेंन्स माना जाएगा .इससे पहले के परस्पर राग -विराग ज्यादा मायने रखतें हैं ।
गगेर और साथियों ने एक अमरीकी सर्वे के नतीजों का विश्लेसन किया है जिसमे ७,००० अमरीकी माँ -बाप शरीक थे .१९९२ -१९९४ के दरमियान पेरेंट्स और १० से १७ साला बच्चों के परस्पर संबंधों की हर साल पड़ताल की गई .२००१ और २००४ के बीच एक बार फिर इन बच्चों से इनके हमउम्रों के बीच पनपने वाले गंभीर रिश्तों डेटिंग आदि के दौरान रोमांटिक रिलेसन -शिप के बारे में जाना गया .एक प्रश्नावली इन्हें दी गई .अब तक ये किशोर -किशोरियां २० -२७ साल तक के हो गए थे .पेरेंट्स और बच्चों से परस्पर संबंधों की गर्माहट के बारे में भी सवाल ज़वाब किये गए थे ।
ग्रोन अप चिल्ड्रन से हमउम्रों से सम्बन्ध में कोंफ्लिक्ट रीजोलयुसन और सेतिस्फेक्सन के बारे में भी सवाल ज़वाब हुए .माँ द्वारा अपने बालकों से सम्बन्ध का ब्योरा भविष्य के संबंधों की सटीक प्रागुक्ति कर रहा था .भविष्य कथन ही था यह एक तरह से .जिन बच्चों का माँ से लाड दुलार वाला नाता था वह अब युवावस्था के इस चरण में भी अपने साथियों के साथ ज्यादा संतुष्ट ज्यादा एड्जस्तिद दिखलाई दिए ।
बेशक गत दशकों में बालकों के जीवन में बाप का भी दखल ,पोजिटिव इंटर -वेंसन बढा है लेकिन उसका बालकों के आइन्दा बनने वाले संबंधों पर अभी उतना असर नहीं दृष्टि गोचर हुआ है .आज भी बच्चों की परवरिश और घरेलू काज में औरत की हिस्सेदारी दो -तिहाई बनी हुई है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-किड्स क्लोज़ तू मोम्स हेव रोकिंग लव -लाइव्स लेटर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ३१ ,२०१० )

गेज़ गेज़ मौसेरे भाई ......

सिक्स्थ सेन्स विकसित होता है 'गेज़ 'का .अपने साथी 'गे 'को ,ट्रांस सेक्स्युअल्स ,बाई -सेक्स्युअल्स ,होमियो -सेक्स्युअल्स और लेस्बियंस को यह निगाह पड़ते ही पहचान लेते हैं ।
एक इन -बिल्ट जन्मजात 'राडार 'लिए होतें हैं गेयाईट्स.आप चाहें तो इसे 'गे -डार'कह सकतें हैं .साइंसदानों ने पता लगाया है ,यह सिंघावलोकन करतें हैं ,एक नजर में पूरा देख लेतें हैं .दे पे मोर एटेंसन तू डिटेल्स .और इसी कला के चलते यह अपने पीयर ग्रुप को पहचान लेते हैं .इसीलिए हमने कहा .गेज़ गेज़ मौसेरे भाई .मौसेरी बहिना ।
हालैंड के साइंस दानों ने अपने एक अध्धययन में ४२ गेज़ (समलिंगियों )और शेष स्ट्रेट वोलंतीयार्सकोकुछ 'फ़ोटोज़ विद आउट लाइंस ऑफ़ लार्ज स्क्वायर्स एंड रेक्तेंगिल्स दिखलाए .'इन्हें इनका विस्तृत ब्योरा देने को कहा गया .पता चला गे -मेंन और गे -वोमेन द्वारा प्रस्तुत विवरण ज्यादा सटीक और विस्तार समेटे था .बिग पिक -चर प्रस्तुत करनेमें भी इन्हें अपेक्षाकृत ज्यादा प्रवीण पाया गया ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'गेज़ पे मोर अटेन्सन तू डिटेल्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ३१ ,२०१० )'

दर्द -हारी ही बन जाता है 'एक्यु -पंक्चर '

हाथ पैरों की पीड़ा हर लेता है -एक्यु -पंक्चर .जानतें हैं कैसे ?न्युरो -साइंस -दानों (स्नायुविक विज्ञानियों )ने पता लगाया है ,एक्यु -पंक्चर के दौरान एक नेचुरल मोलीक्युल 'एडिनो -साइन 'का स्राव प्रेसर पॉइंट्स से होने लगता है .यह एक दर्द -हर (एनल -जेसिक )की माफिक काम करता है ।
विज्ञानियों ने अपने अध्धययन में पहले तो चूहों को इन्फ्लेमेसन पैदा करने वाले एक पदार्थ की सुइंयाँ लगा दीं,सीधे पा(पंजे ,पैर ) में .अब नी (घुटने )की मिड लाइनके नीचे बारीक सुइंयाँ फिट की गईं ,डाली गईं .एक्यु -पंक -चरकी दुनिया में इन्हें ज़ुसंली -पॉइंट्स कहा जाता है .(यह एक सुविख्यात एक्यूपंक्चर लोकेसन है ).आहिस्ता आहिस्ता हर पांच मिनिट बाद अब इन सुइंयों को रोटेट किया गया .तीस मिनिट तक यह क्रम ज़ारी रखा गया .यह एक मानक एक्यु पंक्चर इलाज़ का हिस्सा है ।
पता चला प्रयोग के दौरान और ठीक बाद में भी सुइंयों के आस पास के ऊतकों में 'एडिनोसाइन 'का स्तर २४ गुना ज्यादा हो गया है .माउस की पीड़ा भी 'रेस्पोंस टाइम तू टच एंड हीटके प्रति कम पाई गई ।
अब यही प्रयोग उन माइसपर दोहराया गया जिन्हें आनुवंशिक इंजीनियरिंग के ज़रिये इस प्रकार पैदा किया गया ताकि 'एडिनोसाइन 'उनमे कम रहे .इन चूहों को पीड़ा से छटपटाते देखा गया .एक्यु -पंक्चर इनकी पीड़ा कम नहीं कर सका ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एक्यूपंक्चर वर्क्स बाई रिलीजिंग नेचुरल पैन -किलर इनटू बॉडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ३१ ,२०१० )

नोर्मल डिलीवरी देती है नवजातों को दमे से सुरक्षा .

जो बच्चे सामान्य (योनी -प्रसव )वेजिनल डिलीवरी से पैदा होतें हैं ,वह बर्थ -कैनाल से गुजरने के दरमियान प्रो -तेक्तिव बेक्टीरिया प्राप्त करतें हैं .साइंसदानों के मुताबिक़ यह बेक्टीरिया त्वचा पर बना रहकर अंतड़ियों को अपना उपनिवेश बना लेता है ,यहीं डेरा डाल लेता है .हॉस्पिटल बग्स (हॉस्पिटल बोर्न इन्फेक्संस )से यही हिफाज़त करता है .इम्युनाइज़ेसन का काम करता है यह लाभकारी जीवाणु ।
दूसरी और प्रचलित 'सीजेरियन -सेक्सन "से पैदा होने वाले बच्चे दमा, तरह तरह की एलार्जीज़ का शिकार हो सकतें हैं .अरक्षित बने रहतें हैं बहु -विध इन्फेक्सन से .माँ के बर्थ -कैनाल से प्राप्त बेक्टीरिया इन बेचारों को नसीब नहीं होता ।
विशेष -कथन :चिठ्ठाकार के दो पोतें हैं ,ग्रांड -संस हैं .दोनों पुत्रवधू की पेल्विक इन्कम्पेबिलिती के चलतें सीजेरियन -सेक्सन से जन्मे गएँ हैं .दूसरे का तो जन्म भी निर्धारित कर लिया गया था .दोनों चाइल्ड -हुड एस्मा से ग्रस्त हैं .मौसम की बे -साख्ता मार झेल्तें हैं .

ग्रीन राइड ज़रूर है साइकिलिंग लेकिन ........

नगरों -महा -नगरों की गंधाती प्रदूशकों से लदी हवामें साइकिलिंग कितनी नुकसानी पहुंचा सकती है इसका हमें और आपको अंदाजा नहीं है .काम पर साइकिल से जाना स्वास्थ्य वर्धक विकल्प नहीं रह गया है .वजह है वह नेनो -पार्तीकिल्स ,लाखों लाख विषाक्त प्रदूषक जो सवार की सांस की हर धौकनी को बेमानी बना देतें हैं ,क्योंकि पैदल या फिर गाडी में सफर करने वालों से कोई पांच गुना ज्यादा टोक्सिक नेनो -प्रदूषक साइकिल सवार अपने फेफड़ों में ले जाने को विवश है .लम्बी सांस खींचनी पडती है सवार को पेडालिंगके दरमियान ।
एक घन -सेंटीमीटर -हवा में कई हजार नेनो -कण होतें हैं प्रदूषकों के, नगरीय हवा में, जो सांस के संग सवार के फेफड़ों में दाखिल होकर रिस -पाय -रेत्री एवं हृद -रोगों की बड़ी वजह बन रहें हैं ।
एक हजार क्यूबिक सेंटीमीटर हवा अपने फेफड़ों में एक बार में भर लेता है साइकिल सवार जिसमे कई करोड़ तक नेनो -प्रदूषक रहतें हैं .पूरे सफर में यह तादाद बढ़ कर अरबों -अरब हो जाती है ।
अपने अध्धययन में साइंसदानों ने साइकिल सवारों को मास्क पह्नादिये जिनमे ऐसे उपकरण समाहित थे जो प्रदूषक कणों का हिसाब रखते थे .पता चला 'ब्रुस्सेल्स का साइकिल सवार एक मीटर आगे बढ़ने में ५.५८ मिलियन ,मोल (बेल्जियम का एक छोटा सा उपनगर )१.१ मिलियन नेनो -पार्तिकिल्स अपने फेफड़ों में उड़ेल रहा था .कार में चलने वालों के बरक्स यह संख्या ४-५ गुना ज्यादा थी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-साइकिलिंग इन सिटी :ग्रीन राइड इज नोट ए हेलदी ओप्शन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ३१ ,२०१० )

क्या 'नियर डेथ एक्स्पीरियेंसिज़ 'जैव -रासायनिक घटना 'मात्र हैं?

आउट ऑफ़ बॉडी एक्स्पिरीयेंसिज़ से लेकर नियर डेथ एपिसोड्स के किस्से अनेक लोग बयाँ करतें हैं .आचार्य रजनीश जब जबलपुर -विश्व -विद्यालय में अध्यापन करते थे उनकी क्लास की छात्राएं अजीबो -गरीब अनुभव से गुजरतीं थीं .आखिरकार उनकी विश्व -विद्यालय से छुट्टी कर दी गई ।कुछ भातीय मानतें हैं ,शरीर छोड़ने के बाद आत्मा शरीर के गिर्द मंडराती सब कुछ देखती रहती है .यह सिलसिला कई दिनों तक चल सकता है .शायद इसीलियें १३ दिन तक जिस कमरे में आत्मा शरीर छोडती है दिया(दीपक )
जलाया जाता है ।कुछ लोग मौत के मुह से लौट कर अपने अनुभव बतलातें हैं .कैसे एक अनुपम ज्योति उन्हें बुला रही थी .कुछ राम तो कुछ लोर्ड क्रिश्ना से तो कुछ ईसा मसीह से भेंट का पूरा ब्योरा देतें हैं .कुछ दिव्य प्रकाश सुरंग में जाकर लौट आने की बात बत्लातें हैं .अध्धययन बतलातें हैं १५ -२० फीसदकार्डिएक अरेस्ट के वह मरीज़ जो क्लिनिकल डेथ के बाद भी मौत के मुह से लौट आतें हैं उस क्षण का पूरा वेळ -स्ट्रक्चर्ड और तार्किक ब्योरा देतें हैं .उनकी तर्क शक्ति काबिले गौर होती है । भारतीय मूल के एक अमरीकी विज्ञानी बाकायदा मौत के करीब पहुंचे लोगों की ब्रेन वेव एक्टिविटी बेहतरीन एनसी -फेलोग्रेफ्स से दर्ज़ करते रहें हैं .आपके अनुसार -मृत्यु के उस विधायी क्षण से पूर्व आधे से लेकर तीन मिनिट तक पेशेंट्स एक्स्पिरीयेंस्द ए बर्स्टइन ब्रेन वेव एक्टिवि .जैसे जैसे दिमाग में ओक्सिजन की कमीबेशी ,रक्त संचरण कम होता गया ,विद्युत् -ऊर्जा का सैलाब सा उमड़ पड़ा .विद्युत् की एक लहर उठी और एक हिस्से से तमाम हिस्सों तक फ़ैल गई ।विविध
और रोचक एवं दिव्य अनुभव की वजह यही विद्युत् लहर बनती है ।
ब्रिटेन में तो 'अवेयर 'नाम से एक अध्धय्यन बाकायदा ऐसे लोगों पर चल रहा है जिन्हें 'ऋ -ससितियेत 'किया जाता ,मुख में सांस फूंक कर पुनर -जीवन देने का प्रयास आखिरी क्षण तक किया जाता है .बेशक मौत के बाद क्या पुनर जीवन है इस दिशा में यह रिसर्च कुछ ना बता कह सके लेकिन मृत्यु की सिर्फ जैव -रासायनिक वजहें ही नहीं हैं .कहीं कुछ और भी है .हो सकता है 'यही ईशवर 'हो ,अल्लाह या भगवान् हो ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'ब्रेन वेव बर्स्ट लास्ट्स अप तू थ्री मिनिट्स इन नियर -डेथ '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ३१,२०१० ,पेज २० )

मौत के मुह से लौट आने की शरीर -क्रिया -वैज्ञानिक वजहें हो सकतीं हैं .

एक भारतीय मूल के अमरीकी साइंसदान ने मृत्यु -शैया तक पहुँचते लोगों की ब्रेन वेव्स का अध्धय्यन किया है .आप जार्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ,वाशिंगटन में 'एनस -थिज़ियोलोजिस्त "चेतना -हारी -विज्ञान 'के माहिर हैं .आपके अनुसार 'नियर -डेथ -एपिसोड्स 'का एक शरीर -क्रिया -वैज्ञानिक (फिजियोलोजिकल )आधार है .आपने ५० से ज्यादा मर्तबा ऐसे एपिसोड्स का अध्धययन और खुलासा किया है .पेलियेतिव -मेडिसन विज्ञान पत्र
में आपका सारा काम प्रकाशित हुआ है ।
बकौल आपके मृत्यु के विधाई क्षण से ठीक पहले दिमाग ओक्सिजन की बढती कमी के संग ही विशाल विद्युत् राशि(ए ह्यूज सर्ज ऑफ़ इलेक्त्रिसिती )का स्राव करने लगता है .एक तरफ रक्त संचरण घटने लगता है दूसरी तरफ ओक्सिजन का स्तर ,इसी के साथ दिमागके न्युरोंस (दिमागी कोशायें ) एक आखिरी 'इलेक्ट्रिकल -इम्पल्ज़ 'फायर करतीं हैं .जैसे जीवन ज्योति बुझने के पूर्व की आखिरी चमक हो ,चेतावनी हो यह विद्युत् -स्राव ।
दिमाग के एक हिस्से से शुरू हुआ यह स्राव जल्दी ही एक विद्युत् धार के रूप में बाकी हिस्सों को भी अपनी जद में ले लेता है .यही लब्बो -लुआब है निष् -चेतक -विद लखमीर चावला के संदर्भित अध्धययन का ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-आफ्टर लाइफ एपिसोड आर जस्ट ए ब्रेन -ट्रिक ?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ३१ ,२०१० ,कवर पेज )

रविवार, 30 मई 2010

एंटी- सेन्स जीन क्या है ?

हम जानतें हैं ,'मेसेंजर आर एन ए का संस्लेषण डी एन ए हेलिक्स की दो में से किसी एक लड़ी (स्ट्रेंड )से किया जाता है .दोहरी कुण्डली नुमा सीढ़ी है डी एन ए की बनावट .इनमे से ही उसी एक स्ट्रेंड को टेम्पलेट या फिर 'सेन्स -स्ट्रेंड 'कह दिया जाता है ।
डी एन ए के संपूरक स्ट्रेंड को (दूसरे स्ट्रेंड को )ही एंटी -सेन्स स्ट्रेंड कह दिया जाता है .परस्पर यही दोनों लड़ियाँ यानी सेन्स और एन्तिसेंस स्ट्रेंड संपूरक कही जातीं हैं .इनसे ही तो मिलकर निर्मित हुई है डी एन ए की दोहरी सर्पिल कुंडली दार संरचना ।
इन दोनों डी एन ए स्त्रेंड्स से जो आर एन ए स्त्रेंड्स तैयार होतें हैं वह भी एक दूसरे के संपूरक कहे जातें हैं .डबल हेलीक्स में बद्धहोने के बाद आर एन ए स्त्रेंड्स प्रोटीन बनाने का फंक्शन अंजाम नहीं दे सकतें हैं ।
एंटी -सेन्स ;इट्स एन एड्जेक्तिव रिलेतिंग तू ऑरहेविंग ए स्ट्रेंड ऑफ़ डी एन ए कोम्प्लिमेंतरी तू आदर जेनेटिक मेटीरियल इनेबलिंग दी एक्सप्रेशन ऑफ़ ए ट्रेट तू बी रेग्युलेतिद .

आत्मा -फिजिक्स के नज़रिए से ..........

'फिजिक्स इज दी स्टडी ऑफ़ एनर्जी एंड मैटर एंड इट्स म्युच्युअल इन्तेरेक्संस '
पदार्थ और ऊर्जा का विज्ञान है -भौतिकी .पदार्थ और ऊर्जा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं .अद्वैत है द्वैत का .एक ही भौतिक राशि है -'पदार्थ -ऊर्जा '।
ऊर्जा का किसी बिन्दु के गिर्द ज़माव ,कन्सेंत्रेसन ऑफ़ एनर्जी 'पदार्थ -ऊर्जा 'का पदार्थ के रूप में गोचर प्रगटीकरण है .पदार्थ -ऊर्जा का विरलीकृत रूप अगोचर ऊर्जा है ,एनर्जी है ।
आत्मा सचेतन ऊर्जा ही है .कोंशश एनर्जी है सोल ।
हाड ज़रेज्यों लाकडी ,केश ज़रें ज्यों घास ,सब जग जरता (जलता )देख कर ,कबीरा भया उदास ।
इंसान मर कर भी मरता कहाँहै ? गोचर पदार्थ से अगोचर -ऊर्जा की ओर प्रस्थान है -मृत्यु .रूपांतरण है पदार्थ का दृश्य जगत से अदृशय की ओर.आत्माओं का भी कन्ज़र्वेसन होता है .इज्नेस बरकरार रहती है .होना नहीं जाता आत्मा का ।
सुपर हेवी एलिमेंट्स सृष्टि के आरम्भ में भी थे । दिके हो गए ,दिस -इन्टीग्रेट हो गए ,रेडियो -एक्टिव थे .ऊर्जा में तब्दील हो गए .एक बार फिर पल्लवित होंगे अनुकूलतम परिस्थति होने पर .सुपर -हेवी -एलेमेंट्स भविष्य के गर्भ में हैं .आदिनांक ११८ तत्व मिलें हैं .हैं ओर भी ,फिर प्रगट होंगे .यही सार है ,होने ना होने का .मिलने बिछुड़ने का ।
कागा सब तन खाइयो ,चुन चुन खाइयो मांस ,दो नैना मत खाइयो ,पीव मिलन की आस .

क्या हैं -प्रति -कण ?

प्रकृति में हरेक चीज़ का जोड़ा है .बलों के भी जोड़े होतें हैं .ए सिंगिल फ़ोर्स इज नोट नॉन तू एग्जिस्ट .न्यूटन का गति कापहला नियम बल की नहीं ,असंतुलित बल ,परिणामी बल की बात करता है .बल की अनु -पस्थिति की बात करता है .'इन दी एब्सेंस ऑफ़ ए नेट फ़ोर्स ए बॉडी वुड आइदर रीमेंन अत रेस्ट और मूव विद ए कोंस्तेंत वेलोसिटी इन ए स्ट्रेट लाइन ।'
लडका है तो लडकी है ,पुरुष है ,तो नारी है .(अलबत्ता भारत में लडका लडकी अनुपात अपवाद स्वरूप विषम हो रहा है ).यहाँ(भारत में ) नियम नहीं अपवाद काम करतें हैं ।
सृष्टि के हरेक कण के पीछे एक प्रति -कण मौजूद है .इलेक्त्रोंन है तो पोज़ित्रोंन (इलेक्त्रोंन विद ए पोजिटिव चार्ज )भी है .प्रोतोंन है तो प्रति -प्रोटोन भी है (इसका एक गुण धर्म प्रोटोन से जुदा है ).फोटोंन और ग्रेवितोंन के प्रति -कण फोटोंन और ग्रेवितोंन विद ए डिफरेंट कोर्दिनेट्स (स्पिन ,नर्तन आदि )हैं ।
गर्ज़ यह ,सृष्टि के प्रत्येक कण के पीछे एक प्रति -कण का अस्तित्व है ।
हाइड्रोजन के सरल तम परमाणु में एक नाभिकीय प्रोतोंन के गिर्द एक इलेक्त्रोंन घूम रहा है .एक ऐसा परमाणु बनाया जा सकता है जिसमे नाभिक के एक एंटी -प्रोतोंन के गिर्द एक पोज़ित्रोंन परिभ्रमण करता हो .यानी प्रति -हाइड्रोजन सिद्धांत तय बनाया जा सकता है .इसी प्रकार पहले एंटी -ओक्सिजन और फिर दो एंटी -हाइड्रोजन और एक -एंटी -ओक्सिजन के मेल से प्रति -जल (एंटी -वाटर) का एक अनु तैयार किया जा सकता है .जल और प्रति जल मिलकर एक दूसरे को भारी विस्फोट के साथ विनष्ट कर देंगे .इसीलिए पदार्थ -प्रति -पदार्थ की सृष्टि में भिडंत नहीं होती .एक यूनिवर्स है तो एक एंटी -यूनिवर्स भी है .दोनों कभी नहीं मिलते नदी के दो किनारों से .

प्रकाश की गति को द्रव्य कणों की गति सीमा क्यों कहा जाता है ?

आइन्स्टाइन ने अपने विशेष सापेक्षवाद सिद्धांत में बतलाया था ,सृष्टि का कोई भी कण प्रकाश की गति (वेलोसिटी ऑफ़ लाईट इन वेक्यूम )की बराबरी नहीं कर सकता .प्रकाश की अपनी निर्वातिय गति गोचर जगत के ज्ञात कणों के लिए एक प्राकृतिक गति सीमा ,नेच्युँरल स्पीड लिमिट है .प्रकाशकी गति से तेज़ गति से कोई सिग्नल कोई सन्देश कोई भी ,कभी भी प्रसारित नहीं कर सकेगा .प्रकाश की गति का अतिक्रमण द्रव्य की कथित बुनियादी कणिकाएं भी नहीं कर सकतीं ।
आखिर क्यों कोई कण प्रकाश की गति का अति -क्रमण नहीं कर सकता ?बकौल आइन्स्टाइन यदि कोई कण प्रकाश की गति प्राप्त कर लेगा तब उसका द्रव्य -मान बढ़कर अनंत हो जाएगा .ऐसे में इस कण को रोकने के लिए उस पर अनंत परिमाण का बल डालना पडेगा .अब अनंत -परिमाण के बल का तो अस्तित्व ही नहीं है .कहाँ से लाइयेगा इतना गुरुतर परिमाण बल ?इसीलिए कोई कण प्रकाश के वेग की बराबरी नहीं कर सकता .ऐसे में अतिक्रमण का तो सवाल ही कहाँ पैदा होता है ?
एक बात और यह वेग के साथद्रव्य -मान में वृद्धि होने का अर्थ क्या है ?क्या पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है ?क्वान्तिती या इन्तेंसिती ऑफ़ मैटर बढ़ जाती है .इलेक्त्रोंन -प्रोटोन न्युत्रोंन आदि कणों की संख्या बढ़ जाती है ?
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होता है ।
अलबत्ता 'इनर्शिया ऑफ़ मोसन 'बढ़ जाता है .यही बढे हुए द्रव्य मान की वजह बनता है ,इन्क्रीज्द मॉस के रूप में प्रकट होता है .गति के इस जड़त्व को नष्ट करने के लिए भी अनंत बल चाहिए जिसका अस्तित्व नहीं है .इसीलिए कोई भी द्रव्य -मान युक्त कण प्रकाश की गति से गति नहीं कर सकता ।
पूछा जा सकता है -फोटोंन (प्रकाश का क्वांटम )स्वयं प्रकाश की गति से क्यों चल सकता है ?इसलिए की इसका विराम -द्रव्य -मान (रेस्ट मॉस ऑफ़ ए फोटोंन )शून्य है .ईट हेस सम मॉस ड्यू तू मोसन .मास्लेस पार्तिकिल्स (द्रव्यमान रहित कण )जैसे ग्रेवितोंन (क्वांटम ऑफ़ ग्रेविटेशनल फील्ड ,गामा रैज्स आदि )प्रकाश के वेग से ही गतिशील हैं .इन्हें कभी विराम की स्थिति में नहीं देखा गया है .फोटोंन को भी नहीं देखा गया है ,विराम की स्थिति में .लाईट त्रेविल्स एज फास्ट एज ईट त्रेविल्स .ए फोटोंन केंन नाईदर बी एक्स्सलेरेतिद नोर दिसलेरेतिद .

टाइम डाय-लेसन क्या है ?

टाइम डाय -लेसन ,टाइम डाय -लेतेसन :'ईट इज दी प्रिन्सिपिल देट टाइम इलेप्स्द इज रिलेटिव तू मोसन ,सो देट टाइम पासिज़ मोर स्लोली फॉर ए सिस्टम इन मोसन देन फॉर वन अत रेस्ट रिलेटिव तू एन आउट -साइड ऑब्ज़र्वर ।'
टाइम डाय -लेसन की चर्चा आइन्स्टाइन महोदय ने अपने 'विशेष सापेक्षवाद सिद्धांत 'के तहत विस्तार से की है ।
समय -विस्तार ,समय -फैलाव अलबत्ता दर्ज़ तभी होगा जब दो प्रेक्षकों के बीच गति भी 'सापेक्षिक हो ,रिलेटिव -स्टिक हो यानी इतनी ज्यादा हो जिसकी तुलना प्रकाश की अपनी निर्वातीय गति से की जा सके .'आम जीवन में हमारा सामना ऐसी सापेक्षिक गति से नहीं होता .हमारी उड़ान गति सीमा सीमित है प्रकाश की तकरीबन तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकिंड की गति के .,तुल्य नगण्य ।
टाइम डाय -लेसन को समझने के लिए द्रव्य के बुनियादी कणों की चाल की ओर देखना विचारना होगा .लार्ज हेद्रोनकोलाइदर प्रोटानों ,एंटी -प्रोटानों को ऐसी सापेक्षिक गति दे सकता है ।
अलबत्ता हम और आप 'आइन्स्टाइन -ट्रेन 'आइन्स्ताइनीयन ट्रेन में सवार हो सकतें हैं (मान लीजिये बैठ गएँ हैं ).रिलेतिव्स्तिक स्पीड से दौडती है आइन्स्टाइन की रेल ।
मैं आपको सी ऑफ़ करके लौट आता हूँ .जिस समय हम विदा हुए ,जुदा हुए हमारी घड़ियों में एक ही वक्त था .अवर वाचिज़ वर शोइंग दी सेम टाइम .यानी सिन्क्रोनाइज़्द थीं हमारी घड़ियाँ ।
जब तक आप लौट कर आयेंगे दुनिया की सैर करके आप जस के तस जवान बने रहेंगे .मेरे अलावा मेरी कई पीढियां गुजर चुकी होंगी .ए रनिंग क्लोक लूज़िज़ टाइम .आपके लियें समय बीता ही कहाँ था .घड़ी की सुइंयाँ थम गईं थीं ।
मैं शरीर छोड़ चुका था ,मेरी कई पीढियां भी .टाइम डाय -लेसन एक सापेक्षिक घटना है .समय का प्रवाह कम ज्यादा नहीं होता है .समय का चक्र यकसां चलता है .मेरीघडीकी तुलना में आपकी घड़ी गति शील थी ।
आपकी घड़ी आपकी तुलना में विराम में थी .मेरी तुलना में गति शील ।
जब आप लौट रहे थे मेरी जानिब आप को आपकी घडी को एक बाहरी प्रेक्षक ,एक टाइम कीपर डिवाइस देख रही थी .टाइम डाय -लेसन उसके लिए काल्पनिक नहीं था .आपकी घडी उसके लिए स्लो -चल रही थी ।
मेज़ोनिक क्लोक के लिए टाइम डाय -लेसन काल्पनिक नहीं है .कोस्मिक रेज़ जब हमारे वायुमंडल में दाखिल होतीं हैं ,तबउनके बहुलांश प्रोटानों की वायुमंडल के अनु -परमाणुओं से आपस में टक्कर से म्यु -मिजोंस पैदा होतें हैं .यह अति अल्प कालिक कण हैं .इनकी जीवन लीला पृथ्वी तक पहुँचने से पहले समाप्त हो जानी चाहिए थी .लेकिन समुन्दर के किनारे लेब में ये कण बराबर एक काउंटर में दस्तक देतें हैं .इनका अपना लोकल टाइम है .इनके लिए समय आहिस्ता आहिस्ता बीत रहा है .मेजोंनो की चाल रिलेतिव्स्तिक जो है .प्रकाश की चाल से इसकी तुलना की जा सकती है .लेब की घडी के लिए इन्हें रास्तें में ही अपनी अल्प -जीवन अवधि के अनुरूप नष्ट हो जाना चाहिए था .लेकिन यह तो बराबर आ रहें हैं समुन्दर के स्तर पर स्थापित लेब में .टाइम -डाय -लेट जो हो गया .फ़ैल गया .इस विस्तारित समय में ही ये लेब में चले आये .

क्या है 'ई-मेल अप्नेअ'?

अवांछित जंक मेल्स में से अपने काम की मेल छाँटकर पढ़ना ,उनका संसाधन करना ,ज़वाब देना ,फाइल्स को यथा स्थान संजोकर रखना दिनानुदिन दुष्कर हो रहा है .फलस्वरूप आदमी नाहक ही लम्बी गहरी सांस छोड़ने लगता है ,उत्तेजना में .ऐसे में खून में कार्बन -डाय -ओक्स्साइड का टेंसन ज़रुरत से कम होने लगता है .(बेहोश भी हो सकता है ,समय का पीछा करता इंसान )।
ऐसे में स्थाई ना सही अस्थाई तौरपर तो सांस रुक ही सकती है क्योंकी रिस -पाय -रिट्री सेंटर को पर्याप्त उत्तेजन (स्तिम्युलस)हासिल नहीं होपाता .ओवर -ब्रीदींग के दौरान यही होता है ,रक्त में मौजूद कार्बन दायओक्स्साइड कम होने लगती है .रिस -पाय -रेत्री सिस्टम इम्पुल्सिज़ दिस -चार्ज नहीं कर पाता.यही है 'ई -मेल -अप्नेअ "।
आर्तीरियो -स्केलोरोसिस ,मेनिन्जाइतिस,कोमा ,हार्ट और किडनी डिजीज में अप्नेअ देखने को अक्सर मिल जाता है ।
अदबदाकर सांस रोकने पर भी ,चेयने -स्टोक्स -रिस -पाय -रेसन से भी ऐसा होता है .स्वस्थ शिशु और कभी -कभार गहन निद्रा में कई बुजुर्ग भी इसका शिकार क्षण भर को हो जातें हैं ।
अब इस की वजह 'ई -मेल्स 'की छंटनी बन रही है .वजह है स्ट्रेस ,जो पैदा होती है काम की ई -मेल ,ई -मेल कबाड़ से तलाशने में ।
रिसर्चर लिंडास्टोन ने इस हाई -ब्रीदशब्द का पहली मर्तबा स्तेमाल किया है .जी का जंजाल बन रहाहै 'मेल -फाइलिंग ,फॉर -वर्डिंग ,प्रोसेसिंग '.नतीज़ा है 'ई -मेल -अप्नेअ '.

हिम -युग के अंत में समुन्दर लौटा देतें हैं अपने गर्भ में छिपी कार्बन -डाय-ओक्स्साइड .

(वार्मिंग ट्रिग्गर से आगे ...ज़ारी ....)
यदि यह बात या फिर सिद्धांत सही है ,हिमयुग के अंत में समुन्दर लौटा देतें हैं अपने गर्भ में छिपी कार्बन-डाय -ओक्स्साइड तब इस बात की पड़ताल की जासकेगी ,क्या वायुमंडल में पसरी अतिरिक्त कार्बन -डाय -ओक्स्साइड समुन्दर में गहरे दफन की जा सकती है .जिसे समुन्दर देर सवेर लौटा देतें हैं .कब ?यह समुन्दर के अन्दर गैस के सर्क्युलेसन पर निर्भर करेगा .अलबत्ता ग्लोबल वार्मिंग से निजात का यह भरोसे मंद ज़रिया भी हो सकताहै .आखिर समुन्दर कार्बन -डाय -ओक्स्साइड के बड़े सिंक तो हैही .सन्दर्भ -सामिग्री :-जाइंट कार्बन -डाय -ओक्स्साइड 'बर्प' sतार्तिद वार्मिंग १८,००० ईयर्स एगो (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २९ ,२०१० )

शनिवार, 29 मई 2010

१८ ,०००साल पहले कार्बन डाय-ओक्स्साइड बर्प से शुरू हुई वार्मिंग .

'जाइंट कार्बन -डाय -ओक्स्साइड 'बर्प 'स्टार्तिदवार्मिंग १८,००० ईयर्स एगो 'यही शीर्षक है उस खबर का जो टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मई २९ अंक में प्रकाशित हुई है .खबर के मुताबिक़ अब से कोई १८,०००साल पहले आखिरी हिम युग संपन्न हुआ .ठीक इसी वक्त दक्षिण अफ्रिका और एन्तार्क्तिका के बीचों -बीच ओशन के नीचे अथाह गहराई पर एक कार्बन -डाय -ओक्स्साइड की जाइंट बर्प के साथ समुन्दर में ज़माग्रीन हाउस गैस कार्बन -डाय -ओक्स्साइड की विशाल राशिमुक्त हुई .हम जानतें हैं ओशंसकार्बन डाय -ओक्स्साइड के विशाल सिंक हैं ।

केम्ब्रिज विश्व -विद्यालय के एक साइंस दान ने इस अध्धय्यन को संपन्न किया है .पता चला है आखिरी हिम युग के दौरान समुन्दर की गहराइयों में अतिरिक्त दक्षता के साथ कार्बन -डाय -ओक्स्साइड गैस कैद होके रह गई थी ।

साइंस दानों की टीम ने दक्षिणी ओशन के नीचे चट्टानों की रेडियो -कार्बन -डेटिंग (रेडियो -धर्मिता से काल निर्धारण )करके आखिरी हिम युग के काल का निर्धारण किया है .इस एवज 'टाइनी-फोरामिनीफेरा किर्येचर्स '- ए लार्ज ',मेनली मेरीन प्रोटो -जों -आ देत हेज़ ए शेल पर्फोरेतिद विद मेनी स्माल होल्स थ्रू विच टेम्पोरेरी साइटों -प्लाज्मिक प्रो -त्रुज़ंस प्रोजेक्ट ,लिए गए .अध्धययन के नतीजे 'साइंस मैगजीन 'में प्रकाशित होंगे .शेल्स में कार्बन -१४ (कार्बन का एक रेडियो -आइसो -टॉप )का पता लगाया गया .इस मात्रा की तुलना वायुमंडल में मौजूद कार्बन स्तर से की गई .(वायु मंडल में कार्बन -१२ और कार्बन -१४ दोनों मौजूद रहतें हैं ,कार्बन -१२ स्थाई है ,कार्बन -१४ रेडियो -एक्टिव है .इसके परमाणु एक ख़ास रफ़्तार से टूटते रहें हैं .एक ख़ास अवधि के बाद आधे रह जातें हैं ,पहले की तुलना में ।

इससे कार्बन डाय -ओक्स्साइड के लोक -इन पीरियड का हिसाब लगा लिया जाता है .नतीजों से पता चला है ,तकरीबन २०,००० साल पहले आखिरी हिम युग आया था .तब अंटार्टिका के जल में गैस की घुलित मात्रा दीर्घावधि तक कैद रही थी वर्तमान के बरक्स ।

पता लगाया जा सकता है ,समुन्दर के अन्दर मिश्रण की कौन सी प्रकिर्या चलतीं हैं ,ग्लेशियल पीरियड में ।

'एनी पीरियड ऑफ़ जियो -लोजिकल टाइम वेंन मोस्ट ऑफ़ दी अर्थ वाज़ कवर्ड इन आइस केंन बे काल्ड ग्लेशियल पीरियड ।'

अध्धययन के मुताबिक़ हरेक १० ० ,००० साल बाद दक्षिणी ओषन में 'पल्सिज़ एंड आर 'बर्प्स 'ऑफ़ कार्बन -डाय -ओक्स्सैड्स ग्लोबलi था (पानी का गर्माना जिससे बर्फ पिघल जाए ).से विश्व -सिंस दी स्टार्ट सींचे थे स्टार्ट .थे इन्दुस्त्रिअल रेवोलुतिओं यदि'यदि है ।

इफ इफ तिस तिस,तिस तिस तिस तिस तिस तिस तिस तिस तिस शब्दों में -'दी साइज़ ऑफ़ दीज़ पल्सीज़ वाज़ रफ्ली एक्युवेलेंत तू दी चेंज इन कार्बन -डाय -ओक्स्साइड एक्स -पीरिएन्स्द since the start ऑफ़ the industrial revolution ।

बीनाई और दिमाग के लिए अच्छे हैं 'वायोलेंट वीडियो गेम्स .

'वायोलेंट वीडियो गेम्स आर लर्निंग टूल्स 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया २९ मई अंक में प्रकाशित ध्यान खींचता है .क्योंकि इसका सम्बन्ध हमारे नौनिहालों में अत्यंत लोक -प्रिय होते 'वायोलेंट वीडियो गेम्स से है .रपट आपको चौंका सकती है .बीनाई के लिए अच्छे दिमाग के फंक्शन के लिए बेहतर बतलाती है यह रिपोर्ट हिंसा से भरे वीडियो गेम्स को .भले ही यह वर्च्युअल वर्ल्ड की हिंसा है ।
रिसर्च की यह रिपोर्ट न्यू -योर्क विश्व -विद्यालय की एक कोंफ्रेंस में 'गेम्स एज लर्निंग टूल 'से ताल्लुक रखती है .सम्मलेन में रोचेस्टर विश्व -विद्यालय के एक साइंसदान ने बतलाया -'जो लोग इन तेज़ रफ़्तार खेलों में मशगूल रहतें हैं ना सिर्फ उनकी बीनाई (विज़न )बढ़ जाती है ,अँधेरे में भी यह लोग निशाना साध सकतें हैं ,कनकी आँख से यह बेहतर देखने लगते हैं .इनका पेरी -फरल -विज़न बढ़ जाता है ,ज्यादा ध्यान केन्द्रित कर सकतें हैं यह लोग सोचने समझने की ताकत (संज्ञान ,कोग्नीशन )में भी इजाफा होता है ।
दिन भर ज़ारी इस सेमीनार में 'कंप्यूटर गेम्स और वीडियो गेम्स 'पर एक शैक्षिक औज़ार ,एक एजुकेशनल ऐड के रूप में खुल कर विमर्श हुआ ।
लगता है इन्हें क्लास रूप में एक वैधानिक और सम्मान जनक स्थान मिलने जा रहा है .सभा में 'स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू -योर्क ,अल्बानी ,के साइंसदान सिगमंड तोबिअस ने इजराइली वायु -सेना द्वारा संपन्न उस अध्धयन का हवाला दिया जिसमे 'स्टडी 'के अंत में उन छात्रों को पायलट ट्रेनिंग में ज्यादा दक्ष पाया गया जिन्होंने 'स्पेस फोर्ट्रेस 'नाम का खेल खूब खेला था .'प्रो -सोसल गेम्स खेलने वालों को वास्तविक जीवन में लोगों की मदद करते देखा गया ।
किल और गेट किल्ड नामक खेल खेलने वालों के पेरिफरल विज़न में सुधार देखने को मिला ये लोग सांझ ढले गो -धूलि की बेला में भी चीज़ों को साफ़ साफ़ देख लेते थे ।
इन खेलों का स्तेमाल आँख के एक रोग 'अम्ब्ल्योपिया '(लेजी आई )के इलाज़ में भी किया जा सकेगा .इसमें एक आँख धुंधला देखने लगती है .मेथ्स में बेहतर परफोर्मेंस के लिए भी कुछ खेलों को आजमाया जा सकता है .

विश्वमारी बनते ग्लोबल फ्लू उद्गम कहाँ है ?

इज यूं एस दी इन्क्युबेटर फॉर ग्लोबल फ्लू पेंदेमिक ?यह सवाल टाइम्स ऑफ़ इंडिया के २९ मई अंक में प्रकाशित एक रिपोर्ट में अमरीकी साइंस दानों ने ही उठाया है .रिसर्चरों ने अनुमान लगाया है ,नोर्थ अमरीका फ्लू की कुछ स्त्रैंस के लिए कहीं एक 'इन्क्यु -बेटर'की तरह तो काम नहीं कर रहा ।
अब तक यही समझा जाता था 'चीन 'और दक्षिण -पूर्व एशिया ही फ्लू -स्त्रैंस का हब हैं .यहीं इनका इन्क्युबेसन और फार्मिंग होती है .कुनबा परस्ती के लिए एक अनुकूल माहौल फ्लू -स्त्रेंस को चीन और साउथ ईस्ट एशिया में ही मिलता है ।
अब मिशिगन विश्व -विद्यालय ,होवार्ड हुघेस मेडिकल इन्स्तित्युत ,फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों की एक टीम कह रही है ,फ्लू -सीज़न के अंत में सारीकी सारी फ्लू स्त्रैंस का खात्मा नहीं होता है (हालाकि एक सेल्फ लिमिटिंग डिजीज है फ्लू ).इनमे से कुछ साउथ अमरीका का रूख करतीं हैं .कुछ और भी दूर तक निकल जातीं हैं ।
हो सकता है 'एच १ एन१ इन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस -ए 'के साथ भी ऐसा ही हुआ हो .पेंदेमिक बन गया था कथित स्वाइन-फ्लू ।
आखिर फ्लू अमरीका की राष्ट्रीय आपदा बनता रहा है .इस शोध से फ्लू -वायरस की अलग अलग स्त्रेंस पर नजर रखने में मदद मिलेगी .ऐसी उम्मीद है .

दिमागी ताकत के लिए 'ईटिंग -बेक्टीरिया '.

'ईटिंग बेक्टीरिया केन बूस्ट ब्रेन -पावर 'यही शीर्षक एक रिपोर्ट काहै जिसे टाइम्स ऑफ़ इंडिया के २९ मई अंक में जगह मिली है .रिपोर्ट के मुताबिक़ चूहों पर संपन्न एक अध्धययन से पता चला है जिन्हें खाने के लिए 'पीनट बटर को एक हानि रहित 'सोइल -बेक्तीरियम'से लिथेड़ कर ,मिटटी में पाए जाने वाले इस जीवाणु से संसिक्त कर दिया गया .उन्होंने एनीमल -मेज़ (भूल -भुलैयां )में पहले से दोगुनी रफ़्तार से दौड़ लगाईं ,रास्ता तलाश लिया फ़टाफ़ट .ऐसा करने में इन्होनें पहले से ज्यादा दिल चस्पी दिखलाई . इन्हें मेज़ में से रास्ता ढूंढनापहले से ज्यादा रास आया ।
इस बेक्टीरिया का नाम है -माइको -बेक्तीरियम -vaccae ,जिसकी आज़माइश सेज -कोलिज़िज़ ,ट्रॉय,न्यू -योर्क के साइंसदानों ने डोरोथी मत्ठेव्स के नेत्रित्व में की हैं .इस स्टडी में कंट्रोल ग्रुप के चूहों को फीड में सिर्फ पीनट दिया गया था .मेज़ से बाहर आने में इन्होनें दोगुना वक्त लगाया .दौड़ में भी पिछाड़ी रहे .

पृथ्वी पर संचार तंत्र को नस्ट कर सकता अन्तरिक्ष -मलबा .

'स्पेस -जंक मे क्रेश अर्थ्स-नेटवर्क 'अपनी जीवन अवधि भुगता चुके उपग्रह ,नाकारा रोकिट्स ,मिज़ईल्स के यहाँ वहां छितराए तैरते टुकड़े ,उल्काओं के अंश पृथ्वी की कक्षा में निरंतर मंडरा रहें हैं .अन्तरिक्ष कबाड़ का कोई निश्चय ठौर ठिकाना नहीं है ,कब पृथ्वी की कक्षा में स्थापित उपग्रहों की परस्पर ज़ोरदार टक्कर करवा पृथ्वी के संचार तंत्र को चौपट करवा दे .इसलिए अब ऐसे शीर्षक चौकांते कम भयऔर आशंका ज्यादा पैदा करतें हैं ।
यह चेतावनी किसी ऐरा गैरा नथ्थू खेडा ने नहीं अमरीकी प्रति -रक्षा विभाग ने प्रसारित की है ।
साइंसदानो क मुताबिक़ पृथ्वी की कक्षा में बे -तरतीब तैरता यह कचरा एक ऐसी स्थिति में आ पहुंचा है जहां ऐसी टक्कर होने की संभावना अधिकतम है .एक टिप -पिंग -पॉइंट तक पहुँच रहा है .,यह अंतरीक्ष मलबा .आप जानतें हैं ?सबसे बड़ा सर्विस सेक्टर बन रहा है 'स्पेस सर्विस सेक्टर .२५० अरब डॉलर का उद्योग है यह ।
कबाड़ क दो टुकड़े आपस में टकराने की देर है ,हज़ारों हज़ार और टुकड़े तैरने लगेंगे अंतरीक्ष में आवारा .नीयर और फार अर्थ ओर्बिट्स में .एक ऐसी श्रृखला बद्ध क्रिया चलेगी ,एक ऐसी चैन -रियेक्सन बनेगी जो बेलगाम होकर तमाम टेलीफोन संजाल ,टी वी सिग्नल ,ग्लोबल -पोजिशनिंग -सिस्टम ,वेदर -फोरकास्ट क परखचे उड़ा देगी .संचार क ठप्प हो जाने का मतलब सभी जानतें हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-स्पेस जंक मे क्रेश अर्थ्स नेटवर्क्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २९ ,२०१० )

ओरल हाइजीन से भी जुडी है 'हृद -रोगों 'की नव्ज़.

१९वी शती में यह जन -विशवास जोर पकड़े था ,मुख -संक्रमण सारे शरीर के लिये जंजाल बन जाता है ,पूरी काया का ही रोग बन जाता है .इसी भय से लोग अपने सारे दांत बाहर निकलवा देते थे ।
फोकल सेप्सिस का सिद्धांत जोर पकड़े था ।
'फोकल सेप्सिस आर सिंड्रोम 'इज काज़्द बाई दी प्रिजेंस ऑफ़ माइक्रो -ओर्गेनिज्म आर देयर टोक्सिंस इन दी टिश्यु आर ब्लड -स्ट्रीम ।
इधर इस विस्वास को एक बार एक और दिशा से बल मिला है .साइंस -दानों ने पता लगाया है ,पुअर- हाइजीन के चलते जो लोग 'गम -डिजीज की चपेट में आजातें हैं उनमे मधु -मेह तथा हृद -रोग के खतरे का भी वजन बढ़ सकता है ।
मुख और जबड़े का संक्रमण खून की नालियों को प्लाक से अवरुद्ध कर सकता है .इसीलिए साइंसदानों ने दिन में दो मर्तबा दांत साफ़ करने की सिफारिश की है .इसका मतलब यह हुआ जो लोग दिन में दो मर्तबा ब्रश नहीं करतें हैं ,ओरल हाइजीन ठीक नहीं रखतेंहैं उनके लिये हृद -रोगों का ख़तरा भी बढ़ जाता है ।
उक्त निष्कर्ष ब्रितानी रिसर्चरों ने स्काट -लैंड के १२,००० बालिगों (एडल्ट्स ) की ओरल -हाइजीन की पड़ताल करने के बाद निकाले हैं .पता चला इनमे से जो लोग दिनमें दो बार ब्रश करते थे ,उनके लिये हृद रोगों का ख़तरा कम हो गया था जबकि पुअरओरल हाइजीन वालोंके लिये यह बढ़कर ७० फीसद हो गया था .जहां स्मोकर्स में यह १३५ फीसद बढ़ जाता है वहीं गम डिजीज में ७० फीसद ।
कुल मिलाकर ११,८६९ लोगों में से ५५५ को या तो दिल का दौरा पड़ा या फिर हृद -धमनी रोग के किसी पेचीलापन से दो चार होना पड़ा ।
बेशक स्मोकिंग और पुअर डा -ईट दिल के लिये बड़े खतरे हैं लेकिन रेग्युलर टी -थ ब्रशिंग के ओरल -गुड हाइजीन के अपने फायदें हैं .इसके महत्व को नजर -अंदाज़ नहीं किया जा सकता ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ब्रश टी -थ तवा -इस तूएवोइड हार्ट डिजीज (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २९ ,२०१० )

शुक्रवार, 28 मई 2010

भारत को भी चाहिए एक सेटेलाईट -नेविगेसन -सिस्टम .

यदि विज़न २०२० मात्र खाब नहीं तब भारत को भी चाहिए एक'उपग्रह -नौचालन -प्रणाली 'परस्पर लिंक्ड एक दूसरेके साथ मिलकर काम करने वाले उपग्रहों का नेटवर्क .यहाँ आये दिन २६ /११ घटते हैं .ट्रेने पटरीसे उतारी जाती हैं .सुरक्षा बल नक्सालियों का अचूक निशाना बनतेंहैं ।
इन हालात में हमें फ़ौरन एक उपग्रह निगरानी तंत्र चाहिए जो ढूंढ ढूंढ कर नक्सली ठिकानों को उडाये .महा -शक्ति बननातो दूर की कौड़ी है ,वर्तमान में तो हम अपनी जन -परिवहन की सबसे बड़ी प्रणाली रेलों को भी सुरक्षा नहीं मुहैया करवा पा रहें हैं ।
जब चीन ,योरोपीय युनियन ऐसा वर्ल्ड -वाइड-सेटेलाईट -नेविगेसन -तंत्र खड़ा करने का मंसूबा रखें हैं तोहम अपने लोक तंत्र की मजबूती के लिए ऐसा क्यों नहीं कर सकते .हमें तो २४घन -टा३६५ दिन सीमा पार से घुस पैंठरोकनी पडती है .अन्दर -बाहर हर तरफ शत्रु खड़ा है ।
रही बात खर्चे की ,फिल -वक्त भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा अरब -पति हैं .माया वती हैं .८०० मीट्रिक टन सोना हम सालाना स्वर्ण आभूषणों की भेंट चढ़ा देतें हैं .प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है यह देश जहां के नेता ही मिलकर एक 'नव -स्टार जी पी एस 'अमरीका सरीखा ग्लोबल -पोजिशनिंग -सेटेलाईट -सिस्टम 'खड़ा कर सकतें हैं .आप नेताओं के असेट्स माल -मत्ता देखिये .एक मुलायम या चौटाला ढूँढने निकलेंगे सौ मिलेंगे .पैसे का क्या रोना है .जहां चाह वहां राह .भारतीय जो ठान लेते हैं कर दिखाते हैं ।
एक भारतीय सेटेलाईट नेविगेसन प्रणाली आज की ही नहीं कल की भी ज़रुरत है .आज हमारे पास दूसरे देशों के उपग्रहों को वांछित कक्षा में स्थापित करने का तंत्र मौजूद है .स्पेस टेक्नोलोजी के लिए बेहतरीन दिमाग हैं .आखिर भारत कब तक एक सोफ्ट स्टेट सोफ्ट टार्गेट बना रहेगा 'बैंगन -मुल्कों' का ?और फिर इस तंत्र में निवेश करना तो लाभ का सौदा .इनपुट चंद सालों में निकल आयेगा .तमाम स्टेक -होल्डर्स को इत्तला भर करनी हैं ,इन तेंदमकाम करना है ,सेटेलाईट मैश की मानिंद .बस .तब देखेंगे कौन इधर बुरी नजर डालता है ,फिल वक्त तो गरीब की जोरू सारे गाँव की लुगाई वाला हाल है मेरे भारत का .

एंटी -रेट्रो -वायरल ड्रग्स -एच आई वी एड्स के फैलाव को लगाम .

एक परिक्षण के नतीजों के अनुसार जो लोग एच आई वी -एड्स के इलाज़ के लिए 'एंटी -रेट्रो -वायरल ड्रग्स 'नियम निष्ठा के साथ ले रहे थे उनसे अपने हमबिस्तर होने वाले पार्टनर को लगने वाले संक्रमण का ख़तरा ९२ फीसद घट गया बरक्स उनके जिन्हें प्लेसिबो दिया गया ।
इसका मतलब यह हुआ 'एंटी -रेट्रो -वायरल ड्रग्स 'का स्तेमाल एक रन -नीति के तहत रोग के फैलाव को रोकने में एहम रोल अदा कर सकता है ।
वाशिंगटन विश्व -विद्यालय तथा फ्रेड हुत्चिंसों कैंसर रिसर्च सेंटर, सीत्तले (सिएटल )के माहिरों ने उक्त विचारकी पुष्टि की है ।
विज्ञान साप्ताहिक 'लांसेट 'में प्रकाशित एक अध्धय्यन में सात अफ्रीकी देशों के ३३८१ विषम -लिंगी जोड़ों (हेत्रो -सेक्सुअल्स )को शरीक किया गया .इनमे से एकएक एच आई वी -एड्स से संक्रमित (इन्फेक्तिद )था (सरो -दिस्कोर्देंत था एक साथी ।).
इनके खून में 'सी डी फॉर 'कोशिकाओं की जांच की गई .जब इनका स्तर एक न्यूनतम स्तर से नीचे गिर गया तब सिर्फ ३४९ को एंटी -रेट्रो -वायरल -दवा तथा शेष संक्रमित को दवा के नाम पर मीठी गोली (प्लेसिबो यानी छद्म दवा )ही दी गई ।
इनके साथी की जांच करने पर पता चला २४ महीनों के बाद वह भी संक्रमित हो गया ,जबकी ट्रायल के शुरू में वह स्वस्थ था .एच आई वी करियर भी नहीं था .ऐसे साथियों की संख्या १०३ निकली ।
लेकिन इन १०३ ट्रांस -मिसन में से सिर्फ १ ट्रांस -मिसन उस व्यक्ति से अपने साथी तक पहुंचा जो एंटी -रेट्रो -वायरल ड्रग्स ले रहा था ,शेष सभी प्लेसिबो पर थे ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एच आई वी ड्रग्स रिड्यूस रिस्कऑफ़ ट्रांस -मीटिंग वायरसbaaee ९२ पर sent (दी taaims ऑफ़ india ,mey २८,२०१० )

कैंसर -कारी बना सकता है शैम्पू मलमूत्र से उपचारित जल को .

रिसर्चों से पता चला है कुछ शैम्पूज़ और कपड़ा धोने के काम आने वाले 'दितार्जेंट्स ' इतर घरेलू सफाई में प्रयुक्त रसायन कैंसर -पैदा करने वाले तत्वों से भरपूर हैं .यही कार्सिनोजंस सीवेज त्रीत्मेंट्स प्लांट्स से पैदा जल को कैंसर कारी बना देतें हैं ।
हमारे पर्यावरण को गंधाने वाले जल को संदूषित करने वाले 'नाइट्रो-सोडियम -इथाइल -एमिन'एन डी एम् ए जैसे संदूषकों (कन्तामिनेंट्स )को अभी ठीक से समझा परखा जाना बाकी है ।
यह 'सेमी -वोलाताइल -ओरगेनिक -केमिकल्स 'बेहद विषाक्त (तोसिक्स )हैं .संदेह है ये 'ह्यूमेन -कार्सिनोजेनिक्स 'कैंसर पैदा करने वाले तत्व हैं इंसानों में ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-शैम्पूज़ केनमेक वाटर कार -सीनों -जेनिक :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २८ ,२०१० .)

अना -रेक्सिया से पैदा 'ब्रेन -सृन्केज़ 'की भरपाई हो सकती है .

अक्सर किशोरियां एक ऐसे रोग की चपेट में आजातीं है जिसमे उन्हें मोटे हो जाने का वहम और भय दोनों घेरे रहतें हैं .कोई जीरो -साइज़ के पीछे दोड़तीहै तो कोई इससे भी दो हाथ आगे .यही है 'अना -रेक्सिया -नर्वोसा '।
भूँखोरहे जाना इस रोग में तमाम शरीर -क्रियाविज्ञान को असर ग्रस्त बनाने के अलावा दिमाग के प्रकार्य को भी प्रभावित करता है .ग्रे -मैटर का हिस्सा (ग्रे -मैटर-वोल्यूम )इस रोग में कमतर होता चला जाता है .'एडल्ट -ब्रेन -वोल्युम' घट जाता है .अच्छी और आश्वस्त कारी खबर अमरीकी मनो -विज्ञानियों तथा न्यूरो -साइंस -दानों ने दी है ।
भर -पाई हो सकती है इस ब्रेन -श्रीं -केज की .(अल्ज़ैमार्स रोग में ब्रेन स्थाई तौर पर सिकुड़ जाता है )।
ईटिंग दिस -आर्डर्स से ताल्लुक रखने वाले एक अंतर -राष्ट्रीय जर्नल में यह रिसर्च प्रकाशित हुई है .अलबत्ता विशिस्ट इलाज़ माहिरों से करवाना होगा .
सन्दर्भ -सामिग्री :-'ब्रेन -श्रीन्केज़ ड्यू तू अना -रेक्सिया इज ऋ -वर्सिबिल (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २८ ,२०१० )

स्टेम सेल्स से तैयार की गई 'रेटिना '.

ह्यूमेन एम्ब्रियोनिक स्टेम सेल्स से 'केलिफोर्निया -इरविन विश्व -विद्यालय 'के साइंसदानों ने एक आठ -परतों वाली 'रेटिना "तैयार कर ली है .समझा जाता है यह कलम कोशाओं से तैयार की गई पहली त्री -आयामीय संरचना है ।
ऊतकों से तैयार की गई यह एक पेचीला बुनावट है जो उन हज़ारों हज़ार लोगों को 'बीनाई 'विज़न मुहैया करवा सकती है जो 'दीजेंरेतिव आई दिस -ओर्दार्स '(आंखों के अपविकासी रोगों )से ग्रस्त हैं ।
'गौर तलब है '-ट्रांसप्लांट रेडी रेतिनाज़ 'मेक्युलर दिजेंरेसन 'का भी पुख्ता इलाज़ और समाधान है .लाखों लोग इससे ग्रस्त हैं ।
कन्सेप्सन सेलेकर कोशिका विभाजन के पहले पखवाड़े तक कोशायें 'अन -दिफ्रेंशियेतिद सेल्स 'कहलातीं हैं .यही स्टेम सेल्स हैं .जो एक ख़ास सोफ्ट -वेयर लेकर आतीं हैं .चुनिन्दा तौर पर सोफ्ट -वेयर देकर इन कलम कोशिकाओं से प्रत्यारोप हेतु कोई भी अंग तैयार करवाया जा सकता है .अल्ज़ैमार्स का समाधान भी एक दिन यही स्टेम सेल्स प्रस्तुत करेंगी .गर्भ नाल जिसे नवजात के पैदा होने पर काट फैंक दिया जाता है के खून से स्टेम कोशिकाए लेकर भविष्य के किसी संभावित 'ट्रांस -प्लांट 'के लिए सुरक्षित रखवाया जा सकता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-रेटिना क्रियेतिद फ्रॉम स्टेम सेल्स :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २८ ,२०१० )

डी एन ए म्यूटेशन के लिए रोजाना बस तीन सिगरेट्स काफी हैं .

यकीन मानिए सिर्फ तीन सिगरेट्स का रोजाना दीर्घावधि सेवन आपके जींस की सीक्युवेंसिंग बदल सकता है ,उत्परिवर्तन पैदाकर सकता है ,खानदानी विरासत को मटियामेट कर सकता है ।
अमरीकी रिसर्चरों ने पता लगाया है ,जो लोग चैन -स्मोकर्स बन जाते हैं ,२५ से ज्यादा सिगरेट्स रोजाना फूंक देतें हैं और आखिर -कार 'लंग -कैंसर 'का शिकार हो जातें हैं ,उनके हज़ारों जींस मयुतेट कर जातें हैं ,उत्परिवर्तित हो जातें हैं ।
केलिफोर्निया स्थित 'रोशेस बायो -टेक्नोलोजी यूनिट जेनेंतेक 'के रिसर्चरों ने उक्त नतीजेलंग -ट्यूमर ग्रस्त एक मरीज़ के ट्यूमर के सभी जींस की तुलना एक स्वस्थ व्यक्ति के तमाम जींस (जीवन -इकाइयों )से करने के बाद ही निकालें हैं .लंग कैंसर से ग्रस्त हुआ यह ५१ वर्षीय मरीज़ गत १५ वर्षों से रोजाना २५ से भीज्यादा सिगरेट्स फूंक डालता था .ट्यूमर काट कर निकालने पर तमाम जीवन खण्डों की व्यापक जांच से उक्त तथ्य पुष्ट हुआ है ।
तकरीबन ५०,००० म्युतेसंस दर्ज़ किये गए .विज्ञान पत्रिका 'नेचर 'में इस स्टडी के नतीजे प्रकाशित हुए हैं ।
हम जानते है 'लंग -कैंसर 'की एक एहम वजह धूम्र -पान बना रहा है .पी गई हरेक सिगरेट म्युतेसन की वजह बनती है यही कहना है माहिरों का .पता चला है तीन सिगरेट्स का रोजाना सेवन एक 'म्युतेसन "की वजह बन जाता है .और यह उत्परिवर्तनउस मेकेनिज्म को धता बता कर तब होता है जबकि जींस की टूट -फूट ,नुकसानी की दुरुस्ती के लिए हम सभी के पास एक तंत्र मौजूद है .जो स्मोकिंग से पैदा नुक्सान की भी भरपाई करने में समर्थ है .ज़ाहिर है कालान्तर में स्मोकिंग इस तंत्र की धार को भोथरा बना देती है ।
याद रखिये स्मोकिंग की लत पहली सिगरेट के साथ ही लग जाती है .जीनोम की सलामती के लिए स्मोकिंग को मुल्तवी रखिये .बचाव में ही बचाव है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-म्युतेंत जींस इन स्मोकर्स ता -ईद तू कैंसर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २८ ,२०१०)

चर्बी हठाने के लिए दो ग्लास दूध .

अकसर महिलाओं को यह भ्रम रहता है ,डैरी-प्रोडक्ट्स खासकर दूध का सेवन चर्बी चढ़ाता है उनके सुकुमार बदन पर .एक नै रिसर्च से पता चला है ,वेट -लिफ्टिंग रूटीन (भार -उत्तोलन शेड्यूल )के बाद जो महिलायें रोजाना शुग्री -एनर्जी ड्रिंक्स ना लेकर नियमित दो ग्लास दूध रोजाना लेतीं हैं ,उनका मसल -मॉस (आनोंपेशी -द्रवय्मान )पेशीय ताकत जहां बढती है ,वहीँ शरीर से चर्बी भी छटने लगती है ।
पूर्व के अध्धायनों यह तो पुष्ट हुआ था ,दूध का सेवन मर्दों में पेशीय -बल और दमखम का इजाफा करता है लेकिन यही बात माहिलाओं पर भी लागू होती है यह इसी हालिया स्टडी से ही पटा चला है .'डैरी -फूड्स आर नॉट फेट्निंग।
सन्दर्भ -सामिग्री :-२ ग्लासिज़ ऑफ़ मिल्क ए keep फेट ए बे.(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २८ ,२०१० )

गुरुवार, 27 मई 2010

यूनिवर्सल वेक्सीन की दिशा में एक कदम .

"इन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस'" का एक 'हेडलेस संस्करण '(इसमें वायरस की गर्दन को काटकर सिर्फ धड लिया गया है।) चूहों पर की गई आज़माइश में विषाणु की कई स्त्रैंस के खिलाफ असरकारी पाया गया है .एक यूनिवर्सल वेक्सीन के निर्माण की ओर ले जा सकता है यह 'नेकलेस -वायरस ',एक ताज़ा शोध इसी दिशा में अग्रसर है ।
रिसर्चरों ने इसके एक अंश का गहन परीक्षण किया है .यह टुकडा विषाणु की उत्परिवर्तित किस्म (म्युतेतिद स्ट्रेंन )में भी जसका तस पाया गया है ।
माउंट सिनई स्कूल ऑफ़ मेडिसन की रिसर्च टीम आशावान है ,यदि यह हम मनुष्यों पर भी इसी तरह के नतीजे देता है तब इन्फ्लेंज़ा के खिलाफ टीकाकरण अभियान को एक नै दिशा ज़रूर मिल सकती है .,इस विषाणु की आज़माइश से ।
ऐसा होने पर इन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस की अनेक स्त्रैंस के खिलाफ जंग को एक नै ताकत मिल जायेगी .साइंसदानो का यही अंतिम लक्ष्य है .वर्तमान में उपलब्ध वेक्सीन वायरस की कुछ ही स्त्रैंस के खिलाफअसर दिखलातीं हैं .इसीलिए हर साल एक नया टीका चाहिए .नै आज़माइश चाहियें ।
रिसर्चरो ने फ्लूवायरस के एक अंश 'हेमाग्ग्लुतिनिंन 'का परीक्षण किया है .पूरा ध्यान इसीपर दिया जा रहा है .खुम्बी (मशरूम शेप्ड )नूमा इसकी संरचना इसे उस कोशा से चस्पाँ होने में मदद देती है जिसे यह इन्फेक्ट करता चलता है .इसकी गर्दन उत्परीवर्तन के दरमियान बाकी अंशों की तरह म्युतेत नहीं होती है .इसी गर्दन में से एक दिन 'एंटीजन 'मिल सकताहै बा -शर्ते यह प्रति -रक्षा तंत्र की निगाह में आजाये .वेक्सीन के लिए यह एक बेहतरीन टार्गेट है ।
लेकिन इसका खुम्बी नूमा हिस्सा ,हेमाग्ग्लुतिनिंन प्रोटीन काएक अंश इसकी अरक्षित (वल्नारेबिल नेक )को इम्म्युंन सिस्टम की नजर से इसे बचाए रहता है .साइंस दानों ने इस गर्दन को काटने की तरकीब ढूंढ निकाल .लीहै ।
सन्दर्भ सामिग्री :-मास्टर शोट :क्लोजिंग इन ओंन दी यूनिवर्सल फ्लू जेब (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २७ ,२०१० )

कंप्यूटर वायरस का इंसानी -वेक्टर बना एक साइंसदान .

ब्रितानी साइंस -दान ने खुद को ही एक कंप्यूटर वायरस से संक्रमित कर लिया है .मार्क गस्सों नाम के इस साइंस दान ने पहले तो एक इलेक्ट्रोनिक चिप को संदूषित (क्न्तामिनेट )किया फिर इसे अपने बाएं बाजू में इम्प्लांट (प्रत्या -रोपित )करवा लिया .इस इलेक्ट्रोनिक चिप को एक वायरस की मदद से ही प्रोग्रेम किया गाया था .यह संपर्क में आने वाले अन्य सिस्टम्स को भी इन्फेक्ट कर सकता है .मसलन कोक्लीयर इम्प्लान्ट्स से लेकर पेसमेकर्स तक को यह संक्रमित कर सकता है .ये तमाम प्रत्यारोप साइबर एतेक कि गिरफ्त में आजायेंगें .गस्सों द्वाराकाम में लिया गया

कंप्यूटर आई डी चिप्स का ही सुधरारूप है ,जो एनिमल्स को खोजने के काम में लिया जाता रहा है .गस्सों के लिए इसे सिक्योरिटीज डोर्स खोलने ,उनके मोबाइल को तलाश कर अनलोक करने के लिए प्रोग्रेम किया गया है .यह एक हाई -एंड रेडियो -फ्रीक्युवेंसी आइदेंतिफिकेसन चिप है .इसी अति -परिष्कृत टेक्नोलोजी का स्तेमाल शॉप -सीक्योरीतीज़ टेग्स और पेट्स कीशिनाख्त के लिए किया जाता रहा है .चावल के एक दाने के आकार की यह डिवाइस गस्सों को एक ओर यूनिवर्सिटी बिल्डिंग में प्रवेश दिलवा देती है दूसरी ओर उसका मोबाइल ढूंढ लाती है ।

बेशक इम्प्लान्तिद टेक्नोलोजी इन दिनों अमरीका में चलन मेंb आचुकी है लेकिन इस के अपने खतरे हैं .लाभ भी हैं .मेडिकल एलर्ट ब्रेस्लैस मरीज़ की मेडिकल हिस्ट्री तो बतला सकता है लेकिन इसे कोई ओं लाइन हैक भी कर सकता है ।

इनकी निगरानी रखना भी एक दोधारी तलवार पर चलने के समान है .आपको कोई निगरानी करता नुक्सान भी पहुंचा सकता है .चिकित्सा के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी इसका चलन बढेगा .हो सकता यह प्रोद्योगिकी आपका आई क्यों,आपकी याददाश्त में भी एक दिन इजाफा करवाए .इंतज़ार कीजिये ।

सन्दर्भ -सामिग्री :-मेंन ए 'केरीयर 'फॉर कंप्यूटर वायरस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २७ ,२०१० )

डायना-सौर कोल्ड ब्लड -ईड थे या फिर वार्म ब्लड-इड ?

इसी पहेली को सुलझाने के लिए काल शेष हो गए डायना -सौर जैसे भीमकाय प्राणियों के ताप्मापन के लिए साइंस दानों ने एक ऐसा थर्मा -मीटर तैयार किया है जो इनकी अस्थियों (बोन्स )मुक्तावली (टीथ),इनके द्वारा जने-गए अण्डों के खोल (एग शेल )में मौजूद दो बहुत ही विरल आइसो -टोप्सकार्बन -१३ और ओक्सिजन १८ का सांद्रण (कन्सेंत्रेसन )मापेगा ।
हम जानते हैं वार्म ब्लड -इड एनिमल्स जैसे मनुष्य अपने शरीर के ताप -वि -नियमन के लिए दिमाग के हाई -पो -थैलेमस से सन्देश ग्रहण कर गर्मी लगने पर पसीना तथा सर्दी लगने पर कम्प पैदा करने की क्षमता से लैस है .पसीने के उड़ने से शरीर का ताप गिर जाता है कम्प लगने पर कुछ बढ़ जाता है .शूकर और भैंस जैसे जीवों के पास यह क्षमता नहीं है .यह कोल्ड ब्लड -इड एनिमल्स हैं .डायना -सोर्स की शिनाख्त यह थर्मा -मीटर करेगा .

पगडंडी की धूल में छिपा है 'फ्रेंडली बेक्टीरिया .'

खेत खलियानों की ओर निकलने से सिर्फ आँखों को ही सुकून नहीं मिलता दिमाग को भी सुख की अनुभूति होती है .दरअसल पग डंडी की धूल में एक बेक्टीरिया 'माइकोबेक्तीरियम वक्के 'का डेरा है .धूल में उड़कर यही जीवाणु पहले हमारे फेफड़ों और फिर दिमाग में जगह बनाता है .फलस्वरूप दिमाग एक न्यूरो -ट्रांस -मीटर (एक जैव -रसायन )'सिरोतोनिंन 'बनाने लगत है .यह बायो केमिकल दिमाग को शार्प यानी तेजतर्रार बनाता है .सोचने समझने की ताकत को बढाता है .इसलिए चंद लम्हे काम से बाहर निकालिए -गाँव की ख़ाक छानिये .यही उस ताज़ा तरीन शोध का सन्देश है जिसे सेज कालिज़िज़ के रिसर्चरों ने आगे बढाया है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-स्ट्रोल इन कंट्री -साइड शार्पिन्स दी माइंड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया मे २६ ,२०१० ).

बुधवार, 26 मई 2010

जी पी एस से एक कदम आगे .

मुसीबत में फसे आदमी को ढूंढ निकालने के लिए 'नासा 'ने एक नया सिस्टम लांच किया है .इसे उपग्रहों द्वारा डिस्ट्रेस में फसें आदमी की शिनाख्त का एक नायाब तोहफा कहा जा सकता है .इसे 'डिस्ट्रेस एलार्तिंग सेटेलाईट सिस्टम (डी ए एस एस )कहा जा रहा है -यानी डास(आप चाहें तो आदमी का सेवक ,या फिर दास भी कह सकतें हैं ।).
यह उस इमरजेंसी 'बीकन "प्रकाश संकेत की शिनाख्त कर लेगा जिससे तमाम हवाई जहाज़ ,आधुनिक नौकाएं ,हाई -कर्स आदि लैस रहतें हैं .इसे नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाईट सेंटर ,ग्रीनबेल्ट ने डिजाइन किया है .वर्तमान में 'सर्च और रेस्क्यू सेटेलाईट 'को लापता नौकाओं और हाई -कर्स की खोज में एक घंटा लग जाता है ।
दास टेक्नालोजी उपग्रह सहायता आधारित अंतर -रास्ट्रीय 'सर्च एंड रेस्क्यू प्रणाली है ।
इसके संचालन के लिए २४ नए यु एस एयर फ़ोर्स ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम सेटेलाईट काम में लेने होंगें .यही इस हार्ड वेयर को अन्तरिक्ष में ले जायेंगें .वर्तमान में ऐसे कुल जमा नौ उपग्रह ही सक्रीय हैं .२०१७ तक यह पूरी प्रणाली चाक चौबंद हो जायेगी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-नासाज़ न्यू सिस्टम तू एड क्वीकर सर्च एंड रेस्क्यू (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २६ ,२०१० )

बेक्टीरिया के गिर्द बनता है बरसाती बादल .

ओस या फिर स्नो बरसाती बादल आदि को बनाने में ,नाभिकों के रूप में धूळ ,सूट (धुयें में उठते कार्बन के जले अध् जले कणों की मौजूदगी ज़रूरी रहती है .इन्हीं कणों के गिर्द बनता देखा गया है-रैन क्लाउड . .अब साइंसदानों को पता चला है ,नाभिक का काम बरसाती बादल के लिएएक जीवाणु समूह भी कर रहा है .यह जीवाणु है -स्यूडो -मोनस स्य्रिन्गाए ।
मोंटाना स्टेट यूनिवर्सिटी के परिसर में घुमते हुए वनस्पति रोग विज्ञानी दविड़ संड्स कहतें हैं -तमाम हिम आच्छादित परबत -मालाओं में इसी स्यूडो मोनस का डेरा है .यह बेक्टीरिया समूह कृषि फसलों को अपना कुदरती आवास बनाए रहा है .अब पता चला है 'यह मौसम -पारिस्थितिकी (वेदर -इको सिस्टम )का भी एक ज़रूरी घटक रहा है .वर्षा के चक्रं में भी इस जीवाणु समुदाय की हिस्सेदारी है ।
बेशक हवा में पसरे धूल कण,धुयें में ऊपर उठते सूट कण इतर जड न्युक्लीयाई प्रेसिपितेसन में एहम भूमिकानिभाते रहें हैं .इन्हीं के गिर्द क्न्देंसेसन (संघनन )से बरसाती बादल बनतें हैं.स्नो - फ्लेक्स (बर्फ के फाये ,स्नो क्लेद फ्लेट आइस वाटर )बनते हैं ।
साइंसदानों को स्युदोमोनस समूह के बेक्टीरिया की व्यापक उपस्थिति जंगली एवं डोमेस्टिक प्लांट्स की पत्तियोंके अलावा वृक्षों और कई तरह की ग्रासिज़ (घास )में भी मोंटाना ,मोरक्को ,फ्रांस युकोन यहाँ तक की अन्टार्कटिका के नीचे दबी बर्फ में मिली है ।
बरसाती बादलों ,इर्रिगेसन दिचिज़ में इस जीवाणु की मौजूदगी व्यापक स्तर पर दर्ज़ हुई है ।
कई हिमाच्छादित हिम चोटियों का अध्धययन करने पर इनमे से ७० फीसद में स्नो -क्रिस्टल्स की जांच करने पर पता चला है ,यह क्रिस्टल स्युदोमोनस के गिर्द ही पनपें हैं .न्युक्लीयाई का काम करता रहा है यह जीवाणु वर्ग .इनमे से कुछ बेक्टीरिया फ्रीजिंग को हवा देतें हैं .ऐसा पादपों पर हल्ला बोलने की एक रन नीति के तहत हो रहा है .यह जीवाणु एक ऐसा प्रोटीन तैयार करतें हैं जिसकी मौजूदगी में फ्रीजिंग सामान्य से उच्चतर तापमान पर होती है .ऐसे पैदा हुआ वाटर आइस पादप को नुकसानी पहुंचाता है .फलस्वरूप पादप में मौजूद पुष्टिकर तत्व यह बेक्टीरिया हजम कर जाता है ।
ऐसा प्रतीत होता है यह बेक्टीरिया एक ऐसे सिस्टम का हिस्सा हैं जिसका अभी विधिवत अध्धयन होना शेष है .पादपों को संकर्मित कर जीवाणु अपनी वंश वृद्धि कर एयरो -सोल्स के रूप में आकाश में खो जातें हैं .यहीं पर वह बादलों के सीड्स (न्युक्लीयाई )बन जातें हैं .आइस क्रिस्टल्स को हवा देतें हैं .इन्हीं क्रिस्टल्स का पिघलना बरसात है.रैन इज फालिंग क्लाउड .जब बादल का भार ऊपर की और लगने वाली उछाल से ज्यादा हो जाता है .वह मुक्त रूप से गुरुत्व की वजह से गिरने लगता है .अलबत्ता यह बरसात अपेक्षाकृत ज्यादा तापमान पर होती है .,धूल और मिनरल पार्तिकिल्स के गिर्द बन्ने वाले आइस क्रिस्टल केपिघलाव के बरक्स ।
ज़ाहिर है यदि इस रिसर्च में जान है तब ओवर ग्रेज़िंग (चरागाहों का सफाया ),लोगिंग (लकड़ी का व्यापार )सूखे कीवजह बन सकतें हैं .क्योंकि वनस्पति के सफाए का मतलब होगा जीवाणु को उसके घर से कुदरती आवास से बेदखल करना आदीवासी भाइयों की तरह ।
दूसरी और यह बेक्टीरिया कुछ पादपों पर ज्यादा डेरा डालता है उनकी फार्मिंग को बढ़ावा देकर बरसात का आवाहन किया जा सकता है ,क्वांटम ऑफ़ रैन को बढाया जा सकता है ।
अध्धययन ज़ारी है .माहिर क्लाउड वाटर साम्पिल्स की जांच मौजूद और संभव माइक्रोब्स के डी एन ए विश्लेसन के लिए व्यापक स्तर पर कर रहें हैं ।
बेक्टीरिया की अब तक १२६ स्त्रैंस के डी एन ए की सिक्युवेंसिंग कर चुके हैं .,साइंसदान .एक डाटा बेस तैयार किया जा रहा है .ताकि बेक्टीरिया की भौगोलिक जड़ों की पड़ताल की जा सके ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'रैन क्लाउड इज मोस्टली मेड ऑफ़ बेक्टीरिया '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २६ ,२०१० )

मंगलवार, 25 मई 2010

सात एटमी ट्रांज़िस्टर यानी लघुतर इलेक्त्रोनी स्विच .

नेनो -टेक्नोलोजी का एक औरकरिश्मा :दुनिया का अब तक का सबसे आकार में छोटा ट्रांज़िस्टर .ऑस्ट्रेलियाई साइंसदानों ने दुनिया का अब तक का सबसे छोटा 'इलेक्त्रोनी -स्विच तैयार करलेने का दावा पेश किया है .इसका आकार मात्र सात एटमी है .ज़ाहिर है अब माइक्रो -चिप्पडोंका आकार और सिकुड़ जाएगा .कम्प्यूटिंग स्पीड रफ़्तार पकड़ेगी ।
सात एटमी उल्लेखित ट्रांज़िस्टर का माप 'फॉर बिलियंथ ऑफ़ ए मीटर है .यानी एक मीटर के एक अरब टुकड़ों में से सिर्फ चार टुकड़ों के बराबर है .इसे एकल सिलिकोन क्रिस्टल में जड़ागया है .आप कह सकतें हैं यह बहुचर्चित 'क्वांटम कंप्यूटर की दिशा में आगे की ओर रखा गया एक एहम कदम है .उम्मीद है गण-नाओं की रफ्तार अब दसियों लाख गुना बढ़ जायेगी ।
मौसम की भविष्य वाणी औरकोड ब्रेकिंग ,फिनान्शिअल त्रान्ज़ेक्सन के लिए इसके बड़े निहितार्थ हैं ।
नंबरों का खेला है सब ।
इस रफ़्तार की तुलना ज़रा प्राचीन 'क्लासिकल कंप्यूटर से कीजिये आज इससे गणनाकरने में उतना ही वक्त लग जाएगा जितनी की इस गोचर और ज्ञात सृष्टि की उम्र है ।
इस करामाती लघुत्तर कंप्यूटर का निर्माण 'सेंटर फॉर क्वांटम कंप्यूटर टेक्नोलोजी ,न्यू -साउथ वेल्स और विस्कोंसिन यूनिवर्सिटी ,माडिसन ने मिलकर किया है ।
इसके लिए एक विशेष सूक्ष्म -दर्शी का स्तेमाल एताम्स के मेनिप्युलेसन के लिया किया गया है .एटमी स्तर पर ही तो खेल खेलती है नेनो -टेक्नोलोजी .ज़रा सा संरचना में बदलाव और करिश्मा सामने ।
ज़ाहिर है इस अभिनव टेक्नीक से माइक्रो -चिप्स के आकार में अभूतपूर्व घटाव लाया जा सकेगा .वर्तमान में इन चिप्पडों में अरबों ट्रांज़िस्टर समायोजित करने पडतें हैं ।
जिस अनुपात में आकार घटेगा उससे कहीं तेज़ी से बढ़ेगी संसाधन चाल ,प्रो -सेसिंग स्पीड ।
ऑस्ट्रेलिया का पहला कम्प्यूटर १९४९ में कमीशन हुआ था .पूरा एक कमरा घेर लेता था यह कंप्यूटर .इसके अलग अलग पूर्जे आप अपने हाथ में थाम सकते थे ।
आज कंप्यूटर आपके हाथों में समा जाका सकता है .इसके घटक (कम्पोनेंट्स )हमारे बाल से भीहज़ार गुना महीन हो सकतें हैं ।
पहली मर्तबा चंद एटमों के जमा जोड़ से घडा गया है दुनिया का लघुत्तम ट्रांज़िस्टर .बेशक इसके व्यावसायिक स्तेमाल में अभी थोड़ा वक्त लगेगा (लगभग पांच साल )।
अल्ट्रा -फास्ट क्वांटम कंप्यूटर पर काम ज़ारी है .इसका आकार वर्तमान 'सिलिकोन चिप 'के बराबर होगा .मूर का नियम कसौटी पर है .'मूर्स ला प्रिदिक्ट्स देत दी अमाउंट ऑफ़ मेमोरी देत केंन फिट ओंन ए गिविंन एरिया ऑफ़ सिलिकोन ,फॉर ए फिक्स्ड कास्ट डबल्स एवरी १२-१८ मंथ्स .दी लिमिट ऑफ़ दिस प्रिदिक्सन इज बींग तेस्तिदएज कम्पोनेंट्स गेट एवर स्मालर एंड देयर कम्प्युतेस्नल प्रोपर्टीज़ बिकम लेस रिलायेबिल ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-सेविन एटम ट्रांज़िस्टर स्पेल्स क्वांटम लीप फॉर कम्प्यूटिंग (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २५ ,२०१० )

सुपर डिस्क का मतलब 'सुपर डाटा फोर्मेट '-जानिये .

जापानी साइंस दानों ने एक ऐसे पदार्थ का पता लगाया है जिसके स्तेमाल से सस्ते में ही एक ऐसी सुपर डिस्क तैयार की जासकेगी जिसकी डाटा संचय क्षमता वर्तमान डीवीडी से हज़ारों गुना ज्यादा होगी ।

यह एक ऐसा धातु है जो प्रकाश से आलोकित होने पर मेटल स्टेट से सेमी कंडक्टर स्टेट में चला आता है .प्रकाश का स्रोत हाथा लेने पर दोबारा मेटल स्टेट में लौट आता है .प्रकाश पड़ने पर इस मेटल का रंग श्याम से ब्राउन हो जाता .इसकी कंडक्ट -तिविती इस दरमियान एक दम से बढ़ जाती है .यूं मेटल और सेमी कंडक्टर दोनों ही विद्युत् -चालक है .इलेक्त्रिसिती कंडक्टy करतें हैं ।

यह पदार्थ 'टिटेनियम -ओक्ससाइड'का अभिनव -क्रिस्टलीय रूप है .सामन्यरूम टेम्प्रेचर पर यह प्रकाश डालने पर एक स्विच की तरह काम करने लगता है .ओंन -ऑफ़ होने के साथ साथ मेटल -सेमिकंदाक्टर स्टेट्स के बीच झूलने लगता है .डाटा स्टोरेज की रीढ़ इसका यही गुण बनता है ।

यही पदार्थ अगली पीढ़ी के ओप्टिकल स्टोरेज डिवाइस की नींव रखेगा .गिरगिट की तरह इसका रंग बदलना बड़े काम की चीज़ है .'ओह्कोशी 'के शब्दों में -ए मेटीरियल देत चेंज़िज़ कलर विद लाईट केन बी यूस्ड इन स्टोरेज डिवाइसिस एज कलर्स रिफ्लेक्ट लाईट डिफरेंटली तू कन्टेन डिफरेंट इन्फार्मेशन ॥

इसके नेनो -पार्तिकिल्स तैयार कर लिए गए हैं इनका आकार ५-२० नेनो -मीटर्स मात्र है ।

इन्हीं कणों की बदौलत अभिनव सुपर डिस्क "ब्लू रे डिस्क 'से हज़ार गुना ज्यादा सूचना संचय कर सकेगी .अलबत्ता इसी के अनुरूप 'डाटा -रा -इटिंग आर रीडिंग एक्युप्मेंट अभी तैयार करने हैं .

स्तन पान एक फायदे अनेक -जानिये .

स्तन पान को अमृत पान "संजीवनी -सार 'यूं ही नहीं कहा गया है .विज्ञानियों ने पता लगाया है ,स्तन पान जीवन इकाइयों के काम करने के तरीके (फंक्सन )में सुधार लाता है .यही सुधार नौनिहालों को अनेक रोगों से बचाए रखता है ।
इलिनाय यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पता लगाया है ,शिशु का पहला -पहला आहार (फस्ट फीड )उनके 'जीन एक्स्प्रेसन "को प्रभावित करता है .जीन एक्स्प्रेसन आप उस प्रक्रिया को कह समझ सकतें हैंजिसके तहत निहित अनुदेशों के अनुरूप 'फंक्शनल जीन प्रोडक्ट यानी जीवन के लिए ज़रूरी प्रोटीनों का निर्माण होता है '.इन जीवन इकाइयों की अभिव्यक्ति का अर्थ है इनका सक्रीय हो जाना ।
साइंस दान जानते हैं 'ब्रेस्ट मिल्क 'प्रति रक्षा तंत्र के विभिन्न घटकों की हिफाज़त करता है .रोग रोधी तंत्र की सलामती का अर्थ है रोगों से बचाव रोगों के खतरे का वजन कम होजाना ।
अब पता चाल है 'ब्रेस्ट -मिल्क 'अंतड़ियों के विकास 'का भी विनियमन करता है .यह कमसे कम १४६ जीवन इकाइयों पर अच्छा असर डालता है .यह असर 'किसी भी फार्मूला फीड 'में कहाँ ?
जीन -संवृद्धि,जीन -इन्हान्स्मेंट ,जीन एन्रिच्मेंट का अर्थ है ,क्विक डिवलपमेंट ऑफ़ इन्तेस्ताइन एंड इम्म्युं सिस्टम ।
सन्दर्भ- सामिग्री :-मदर्स मिल्क बेनिफिट्स किड्स जींस ,बूस्ट्स इम्म्युनिती (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २५ ,२०१० )

क्या है 'डिजिटल जीनोम '?

यहाँ पर 'डिजिटल 'शब्द कंप्यूटर -शब्दावली से तथा 'जीनोम 'आनुवंशिक विज्ञान(जेनेटिक्स ) से लिया गया है ।
जीनोम आप किसी भी कोशिका के दिमाग को कह सकते हैं .इसमें माँ -बाप से विरासत में मिले सभी 'गुण धर्म(क्रोमोज़ोम्स )',जीवन इकाइयों के तमाम क्रम (जीन सिक्युएंसी-इंग )मौजूद रहतें हैं .कोशिका या किसी भी ओर्गेनिज्म का संचालन इसी जीनोम से होता है ।
इलेक्त्रोनी विधि से सूचना संचय संग्रहरण की वह प्रणाली जिसमे हर सूचना 'शून्य 'और 'एक "का समायोजन है डिजिटल का शाब्दिक अर्थ है ।
डाटा ओर्गेनाइज़ेसन को 'डाटा फोर्मेट 'कहा जाता है .आज दिक्कत यह है ,स्टोरेज दिवाईसिसपलक झपकते ही चलन से बाहर हो रहीं हैं .इन्हें आइन्दा आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसे संजोये रखा जाए यह एक एहम सवाल है .इसी का हल है 'डिजिटल जीनोम '.डिजिटल स्ट्रोंग बॉक्स तू प्रिवेंट डाटा लोस '
यह एक अति महत्व कांक्षी प्राजेक्ट है जिसमे यूरोप के सोलह पुस्तकालय ,अभिलेखागार (आर्काइव्ज़ )एवं शोध संस्थान भागेदारी निभा रहें हैं ।
स्विटज़र -लैंड के आल्प्स परबत (चारागाह )के एक अति गुप्त स्थान पर एक ऐसा बंकर तैयार किया गया है जो एटमी हमला आराम सेझेल सकता है .इसी बंकर में एक छोटा सा बक्सा रखा गया है इसमें वह चाबी है जो किसी भी 'सूचना -पिटारे 'डिजिटल फोर्मेट 'को खोल सकती है ।
आप जानते हैं 'कटिंग एज टेक्नोलोजी "वर्तमान किसी भी डाटा फोर्मेट को सात सालों में ही ओब्सोलीत (चलन से बाहर )कर देती है .आगे यह रफ़्तार और भी बढ़नी है .ऐसे में कीमती डिजिटल डाटा लोस को बचाए रखना ना मुमकिन हो रहा है .अकेले यूरोपीय यूनियन को सालाना तीन अरब यूरो की नुकसानी इसी वजह से उठाते रहने की मजबूरी बनी रही है ।वर्तमान सी- दीज़ और डी वी -दीज़ की उम्र सेल्फ लाइफ बा मुस्किल २० बरस है .
आशंका है कहीं प्राचीन मिश्र की अलेग्ज़ेन्द्रिया लाइब्रेरी ,नालंदा और तक्ष शिला की प्राचीनतम शिक्षा पीठ की तरह गत शती का सारा विज्ञान साहित्य ,धर्म और दर्शन ,तमाम भौतिक विज्ञानों की जानकारी इस डाटा लोस के चलते स्मृति शेष ना हो जाए ।
डिजिटल जीनोम डाटा संरक्षण की दिशा में रखा गया एक एहम कदम है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-स्पीक ,मेमोरी डिजिटल स्ट्रोंग बॉक्स तू प्रिवेंट डाटा लोस (सेकिंड एडिटोरिअल ,टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,माय २४ ,२०१० )

सोमवार, 24 मई 2010

कृत्रिम कोशिकाएं कितनी कृत्रिम ?

कितनी कृत्रिम हैं 'वेंटर की कृत्रिम कोशिकाएं '?बेशक क्रैग वेंटर संस्थान की टीम ने एक जीवाणु 'माइको -प्लाज्मा -माई -कोइड्स 'का दिमाग (जीनोम )जिसमे तमाम डी एन ए का सीक्युएंस मौजूद रहता है .,लेब में ही तैयार किया है .इसे एक अपने से अलग किस्म के जीवाणु में डाल भी दिया है ,लेकिन उस जीवाणु का जीनोम अलग कर दिया था .भले ही इस अलग किस्म के जीवाणु ने ना सिर्फ काम करना शुरू कर दिया है .माइको -प्लाज्मा -माई -कोइड्स 'का जीनोम भी इसकी संततियों में पनपने लगा है .लेकिन जिस जीवाणु की कोशिका का शेल यानी खोल लिया गया ,क्या वह खोल मात्र है .क्या वास्तव में कहा जा सकता है विंटर ने एक कृत्रिम कोशिका बना डाली है ?

या फिर यह मात्र 'री -प्रोग्रेमिंग 'है ?पूरी कोशिका कहाँ गढ़ी है लेब में .भाई साहिब कोशिका का कृत्रिम खोल (रसोई घर) भी तो बनाओ .सिर्फ मसाला बदल देने से क्या होगा रसोई का ?बेशक अब वह जीनोम प्राप्त करता जीवाणु लेब में तैयार जीनोम से ही संचालित हो रहा है ।

किसी कोशा को लेब निर्मित तब ही कहा जा सकता है जब उसका हर घटक पूरा ढांचा लेब निर्मित हो .थियेरी में यह भले ही संभव हो उपलब्ध टेक्नालोजी से परे है .सिर्फ जीनोम बदलने से कुछ नहीं होता ।

सन्दर्भ सामिग्री :-डिडवेंटर क्रियेट लाइफ ?नोट रियेली ,से एक्सपर्ट्स (दीज़ सेल्स आर नोट सिंथेटिक )-दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे२४ ,२०१० )

थोड़ी धूप भी खाइए ज़नाब .

धूप से बच निकलना भले ही सन बर्न (स्किन बर्न )इतर चरम रोगों से बचाए रहे कई और सेहत से जुडी परेशानियों का सबब बन सकता है ।
ब्रितानी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक ताज़ा शोध का यही लब्बोलुआब है .'सन स्क्रीन से त्वचा को ढके रहना ,'विटामिन -डी 'की कमीबेशी की ओरलेजा सकता है .भाई थोड़ा बहुत तो धूप सेंकना भी ज़रूरी है .धूपकी मौजूदगी में ही चमड़ी के नीचे 'विटामिन -डी 'बनेगा .धूप में आना पूरी तरह मुल्तवी रखना 'विटामिन -डी 'की कमी के अलावा डिप्रेसन (अवसाद )की वजह भी बन सकता है .रिकेट्स ओर ऑस्टियो -पोरोसिस की भी .मोटापे की ज़द में भी ला सकता है .सन स्क्रीन से पूरी तरह छिटकना भी नहीं है .मोद्रेसन इज दी की .स्माल दोज़िज़ ऑफ़ अन -प्रो -तेक्तिद सन एक्स्स्पोज़र आर वाइटल ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-स्टे -इंग अवे फ्र्रोम सन काज़िज़ डिप्रेसन :स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,में2४ ,२०१० )

सौर केन्द्रीय प्रणाली के जनकको सम्मान .

गेलिलियो के गुरु खगोलविज्ञानी निकोलस कोपरनिकस को आखिर कार पोलैंड के बिशप चर्च ने मरणोप -रान्त उनकी कद काठी केअनुरूप पद प्रतिष्ठा प्रदान की ।
१६ वीं शती के इस तारा -विज्ञानी ने 'भू -केन्द्रीय प्रणाली यानी जिओ -सेंट्रिक सिस्टम 'को धकिया कर "हीलियो -सेंट्रिक सिस्टम 'यानी सौर केन्द्रित प्रणाली के बारे में गेलिल्यो को बतलाया था .बेशक चर्च को यह सब धर्म विरुद्ध लगा था .अफलातून (दार्शनिक प्लेटो )का घोर अपमान लगा था .इसी बिना पर गेलिलियो को जेल में ठूंस दिया गया था .हीलियो -सेंट्रिक प्रणाली की हिमायत करने पर गेलिलियो की आँखें फोड़ दी गईं थीं ।
ठीक ५०० साल केबाद उसी बिशप चर्च ने कोपरनिकस(१४७३ -१५४३ ) को उसी प्रधान गिरजा-घर के प्रांगन में एक बार फिर दफनाया है जहां वे कभी चर्च के एक विशेष अधिकारी (केनन )के बतौर कामकरते थे .उनके कब्र पर सौर -केन्द्रित प्रणाली का एक मोडिल भी उकेरा गया है ।
इतना ही नहीं कोपरनिकस के जीव अवशेषों को पवित्र जलसे संसिक्त कर पूरे सम्मान के साथ (आनर गार्ड के साथ )शीर्ष धर्मा धिकारियों ने एक बार फिर सुपुर्दे ख़ाक किया है .हमारे शत -शत प्रणाम इस खगोल शास्त्री को .जिसके शिष्य ने चर्च को ल- ल- कारा था .सच को तरजीह दी थी मरते दम तक यही बुदबुदाया था 'सच वही है जो मैं कहता हूँ 'पृथ्वी ही घूमती है सूरज के गिर्द ,वह सृष्ठी का केंद्र नहीं है .'

क्या है ब्लेक्बोक्स (फ्लाईट रिकोर्दर )?

फ्लाईट रिकोर्दर एकऐसाइलेक्ट्रोनिक उपकरण है जिसे वायुयान में फिट किया जाता और जो एयरक्राफ्ट की पूरी परफोर्मेंस कोदर्ज़ करता चलता है .विमान के दुर्घटना ग्रस्त हो जाने पर हादसे की तह तक जाने में यही मददगार रहता है .उड़ान का पूरा ब्योरा दर्ज़ होता रहता है इसमें ।
इस पर एक नारंगी रंग (ओरेंज कलर )का तापरोधी पैंट किया जाता है ,ताकि स्वेत प्रकाश पड़ने पर यह रोशन हो जाए और आसानी से दिखलाई भी दे जाए .।
वास्तव में विमान में एक नहीं दो -दो ब्लेक्स बॉक्स होतें हैं . .सुरक्षा के मद्दे नजर इन्हें टिटेनियम के बक्से में सील किया जाता है .टिटेनियम एक उच्च गलनांक वाला धातु है .२०१२ फारेन्हाईट तापमान यह ३० मिनिट तक झेल लेता है .फायर रेज़िस्तेंत होने के साथ साथ यह अच्छा खासा वाटर प्रेशर भी सहन कर लेता है ।
प्रत्येक बक्से में एक साउन्डिंग डिवाइस भी फिट रहती है .इसे पिंजर कहा जाता है .यह ३७.५ किलोहर्ट्ज़ पर संकेत प्रकाश छोड़ता है .इस प्रकार यह अपने होने की खबर देता है .इसकी इम्पेक्ट टोलरेंस क्षमता ३४००जी /६.५ एम् एस है .१जी का थड विमान के भार के बराबर होता है .१.६५ थड का इम्पेक्ट भारत के मानकों के हिसाब से सोफ्ट लेंडिंग के तहत आता है .यह एक सोफ्ट लाउड साउंड होती है विमान के लेण्ड करने पर ।
दोनोबक्सों में से एक को 'फ्लाईट डाटा रिकोर्दर' कहा जाता है .इसमें टाइम ,एल्तित्युद एयर स्पीड पिच आदि का ब्योरा दर्ज़ रहता है .मोटे तौर पर विमान मौसम खराब होने पर पिच करता है .यात्रियों से तब सीट बेल्ट कसने को कहा जाता है .तोय्लेट्स यूज़ ना करने को भी कहा जाता है ।
दूसरेबक्से को 'कोक्पित वोईस रिकोर्दर' कहा जाता है .यह अपेक्षाकृत छोटा होता है .इसमें कोक्पित में होने वाली तमाम बातचीत दर्ज़ रहती है .हादसे के क्षण तक की तमाम आवाजें भी रिकोर्ड होतीं हैं .इसे इम्पेक्ट से बचाए रखने के लिए विमान की टेल सेक्सन में समायोजित किया जाता है ।
अन्दर वाटर लोकेटर बीकन की प्रकाश संकेत आवृत्ति ३७.५ किलोहर्ट्स तथा बेटरी लाइफ ६ वर्ष होती है .

रविवार, 23 मई 2010

जानिये -एपाजी और पेरिजी क्या है ?

हम जानतें हैं पृथ्वी अपनी कक्षा में सूरज के गिर्द एक अंडाकार पथ पर घूमती रहती है .कभी सूरज के एक फोकस से दूर तो कभी पास .यही हाल चाँद का है जो हमारी पृथ्वी के गिर्द परिभ्रमण करता कभी अधिकतम दूरी पृथ्वी के केंद्र से बना लेता है तो कभी न्यूनतम (कमसे कम ).दूरतम स्थिति को अपोजी और निकट -तम को पेरिजी कह दिया जाता है .हमारे परस्पर सम्बन्ध भी इन दो स्थितयों के बीच झूलते रहतें हैं ता उम्र .अलबता अपोजी का एक अर्थ 'अपेक्स' भी है यानी उच्चतर- बिन्दु यानी शीर्ष ।
पृथ्वी की कक्षा में घूमते मानव -निर्मित उपग्रह भी दूर पास का यह खेल खेलते रहतें हैं .धूमकेतु भी ऐसा ही करतें हैं पितामह सूरज के सापेक्ष .लघु गृह भी अपने मात्रि-पिंड (मदर स्टार )के सापेक्ष ऐसा ही करतें हैं .गुरुत्व की अद्र्शय डोर इस खेल का सूत्र धार है .

क्रत्रिम कोशिका के माने ?

जब से क्रैग वेंटर की टीम ने कृत्रिम डी एन ए ,कृत्रिम क्रोमोज़ोम्स ,कृत्रिम बेक्तीरियम -सेल चंद रसायनों और कंप्यूटर प्रोग्रेम की मदद से लेब में गढ़ीहै ,साइंस -दानों में एक हंगामा बरपा है .इसके अवांछित परिणाम बढा चढ़ा कर प्रस्तुत किय्रे गए हैं .जबकि प्रकृति नटी के रहस्य जानने बूझने की दिशा में एक छोटा सा ही डग भरा गया है .प्रकृति के विपरीत कुछ हो ही नहीं सकता ।प्रकृति खुद अपनी हिफाज़त करती है .
कथा है ,विश्वामित्र ने "प्रति -सृष्टि "रचने की बात कही भर थी .चारों तरफ कोहराम मच गया .ईश्वरीय काम में दखल कहा गया .,इसे ।
कुछ ऐसा ही मंज़र आज है .जबकि क्रत्रिम जीवाणु कोशा से आगे निकल साइंस दान एक ऐसा जीवाणु तैयार कर सकतें हैं,जो 'जलवायु परिवर्तन 'को एक स्तर पर लगाम लगा सकता है .विश्व्यापी तापन को कम कर सकता है ,पर्यावरण से ग्रीन हाउस गैसों को बे दखल कर सकता है .जैव -ईंधन तैयार कर जीव-अवशेषी ईंधनों के विकल्प प्रस्तुत कर सकता है ।
क्रैग वेंटर इन्स्तित्युत की रिसर्च अभी शैशवा -स्था में ही है ।
हमारा दिमाग हमेशा उलटा पुल्टा ही क्यों सोचता है .दिमाग की निगेतिविती ही वायरस है .यह कंप्यूटर वायरस से ज्यादा विध्वश कारी है .इस नकारात्मक सोच पर लगाम लगे तो विकास का रथ आगे बढे ।
आप जानतें हैं इस खर -दिमाग का १० फीसद हिस्सा ही अभी तक बूझा -समझा गया है ,अगम -अगोचर बनी ९९ फीसद सृष्टि की तरह .डार्क मैटर ,डार्क एनर्जी आज भी कौतुक पैदा करतें हैं .तमाम सवाल अन -उत्तरित हैं और हम अपनी नाक से आगे नहीं देख पा रहें हैं .नेता वोट वायरस की भेंट एकपूरे मुल्क कोही चढ़ा रहें हैं।
जड़ और चेतन में बस गुणात्मक फर्क ही है .वगरना जो जड़ में है वही चेतन में भी है .मनीषी होता है साइंसदानों का मन .ऋषि -मन है यह जो सैदेव आगे ही आगेका देखता बूझता है ।
नारियल की हजामत बना दीजिये बाल साफ़ कर दीजिये फिर देखिये 'दो आँखें एक सिर 'यहाँ भी है .कहाँ से आया ?

त्वचा को झुर्री -रहित चमकदार बनाये रखने के लिए 'चोकलेट्स '

कोकोआ बीन्स से 'फ्लेवानाल 'को संजोकर परि -रक्षित रखने की स्विटज़र -लैंड के साइंस दानों ने एक ऐसी तरकीब ईजाद कर ली है ,इसके चलते एक ऐसी चोकलेट बार तैयार कर ली गई है ,जो त्वचा को चमक दार ,हाई -ड्रेतिद,झुर्री रहित और बुढापे को धकियाये रखने में मदद गार की एहम भूमिका निभा सकती है ।
शर्त बस यह है इस जादुई चोकलेट बार का २० ग्रेम टुकडा रोज़ खाया जाए .चोकलेट निगम 'बर्री काल्लेबौत 'के अनुसार इसमें मौजूद 'एंटी -ओक्सी -देंट्स 'तथा फ्लेवानाल्स त्वचा की लोच (इलास्टिसिटी )और जलिकरण (हाई -ड्रेसन)बनाए रखेंगे .जवान बनी रहेगी चमड़ी ।
जहां 'डार्क चोकलेट 'हाई -पर टेंसन 'को कमतर करने स्ट्रोक्स (सेरिब्रो -वैस्क्युलर एक्सिदेंट्स )को टाले रखने में मददगार बतलाई गई है ,वहीँ बर्री काल्लेबौत के अनुसार बुढापे को लगाम लगाने उनकी यह चोकलेट कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ओं डॉक्टर्स ऑर्डर्स २० ग्रेम ऑफ़ चोकलेट टू स्टॉप दी क्लोक (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे२१ ,२०१० )

वियाग्रा के चलते होगा श्रवण ह्रास .

एक ताज़ा अध्धययन से पता चला है ,जो लोग 'इम्पोटेंस ड्रग 'वियाग्रा सिआलिस 'का सेवन दीर्घावधि लिगोथ्थान (इरेक्सन )को बनाए रखने के लिए करतें हैं ,उनके सुनने की ताकत कम हो जाने का ख़तरा दो गुना हो जाता है ,बनिस्पत उनकेजो 'इरेक्टाइल -डिस-फंक्सन 'के लिए 'फोस्फो -डाई-स्तीरेज़ टाइप-५ इन्हिबिटर्स 'या फिर वियाग्रा ,लेवित्रा आदि का स्तेमाल नहीं करते ।
अलाबामा विश्व -विद्यालय में एपी -देमियोलोजी प्रभाग में बतौर प्रोफ़ेसर कार्य -रत गेराल्ड म्च्ग्विन कहतें हैं 'हीयरिंग लोस 'सम्बंधित सरकारी चेतावनी प्रमाणिक है .इसका संज्ञान लिया जाना चाहिए ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-वियाग्रा ट्रिगर्स लॉन्ग टर्म हीयरिंग लोस :स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे२० ,२०१० )

यलो -रिवोल्युसन क्या है ?

तिलहन (तेल देने वाले बीज )की उन्नत किस्म के चलन में आने के बाद भारत में आइल -सीडज़प्रो-दकसन १९८७ -८८ के १२.६ मीट्रिक -टन से बढ़कर १९९६ -९७ तक दोगुना (२४.४ मीट्रिक टन )हो गया .इसका श्रेय एक ओर उन्नत किस्म के आइल सीड्स के विकास ओर चलन को जाता है ,तो दूसरी ओर टेक्नोलोजी मिसन के तहत अपनाई गई संपूरक प्रोद्योगिकी को भी जाता है .,इसने यलो -रिवोल्युसन की नींव रख दी ।
अलबता १९८६ की फिलिपीन्स क्रान्ति (पीपल्स -पावर -रिवोल्युसन )के दौरान प्रदर्सन कारियों ने पीले फीते बांधकर शान्ति पूर्ण तरीके से अपना आन्दोलन चलाया .निनोय एक्वीनो ने राष्ट्र -पति फर्नान्डो -मार्कस के शासन की चूल हिलादी .इसे भी "यलो -रिबन 'पहनकर प्रदर्सन की वजह से "यलो -रिवोल्युसन 'कहा गया .

जैव -संचय क्या है ?

किसी भी जीव- निकाय (जैविक प्रणाली ,बायलोजिकल -ओर्गेनिज्म )में किसी हानिकारक पदार्थ यथा रेडियो -सक्रीय पदार्थ ,हेवी -मेटल (पारा आदि )या फिर ओर्गेनो-क्लोरीन का कालानुक्रम में ज़माहो जाना जैव संचय कहा जाता है ।
शर्त यह है ,वह जैविक निकाय हमारी खाद्य -श्रृंखला (फ़ूड चेन )की एक कड़ी के रूप में मौजूद रहे .एक मिसाल पर गौर करतें हैं ,मान लीजिये एक बड़ी मछली कई छोटी मछलियों को अपना ग्रास रोज़ -बा -रोज़ बनाए रहती है ,कुछ ही बरसों में उसके शरीर में वह यौगिक घर बनालेंगें जो छोटी मछलियों में अल्पांश में ही मौजूद थे ।
डी डी टी एक ऐसा ही पेस्टीसा -इड है .इसके विषाक्त प्रभाव छोटी मछली में भले ही उजागर नहीं होते ,बड़ी में खतरनाक तरीके से ज़ाहिर होतें हैं ।
दुरभाग्य यह है ,ऐसे पदार्थ जैव निम्नीकृत होकर पुनर्चक्रण में शरीक नहीं हो पाते .हमारे पारिस्तिथि -पर्यावरण तंत्र में यूं ही बने रहतें हैं .हमारी हवा -पानी -मिटटी को गंधाते रहतें हैं .कालान्तर में हम भी इनका ग्रास बन जातें हैं .यह खाद्य -श्रृंखला में पैठ जातें हैं .यही है 'जैव -संचय 'या बायो -मेग्निफिकेशन ,बायो -एक्युमलेसन .

शुक्रवार, 21 मई 2010

बहरेपन की ओर ले जा सकती है 'व्याग्रा '

जो लोग नियमित लिंगोथ्थान के लिए ,दीर्घावधि मिलन मनाते रहने के लिए ,मैथुन रत बने रहने के लिए यौन -उत्तेजना बढाने वाली दवा 'व्याग्रा का सेवन करतें हैं उनके लिए दीर्घावधि -बहरेपन (लॉन्ग टर्म हीअरिंग लोस )के खतरे का वजन बढ़ सकता है ।
रिसर्चरों ने पता लगाया है जो लोग लिंगोथ्थान (इरेक्टाइल डिसफंक्शन )से निजात पाने के लिए बराबर 'फोस्फो -डाई-स्टीरेज़'टाइप-५ इन्हीबिटर्स जैसी दवाओं का सेवन कर रहें है उनके लिए श्रवण -ह्रास (हीयरिंग लोस )के खतरे का वजन दोगुना बढ़ जाता है ,बनिस्पत उनके जो व्याग्रा -फियाग्रा से दूर ही रहतें हैं ।
अलाबामा विश्व -विद्यालय में एपिदेमियोलोजी विभाग के प्रोफ़ेसर गेराल्ड कहतें हैं ,सरकार को इस चेतावनी का संज्ञान लेकर कुछ करना चाहिए .खुद भी प्रामाणित करना चाहिए ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-वियाग्रा ट्रिगर्स लॉन्ग -टर्म हीयरिंग -लोस :स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे२० ,२०१० )

निर्जलीकरण से दिमाग भी होता है असरग्रस्त .

ग्रे मेटरमें सिक्डावलाता है शरीर से अतिरिक्त पसीना बहना .ग्रे -मैटर के कोंत्रेक्त होने पर दिमाग भी ठीक से सोच समझ नहीं पाताहै .एक अभिनव रिसर्च का यही लब्बोलुआब है जिसमे किशोर -किशोरियों को डेढ़ घंटा साइकिल चलाने को कहा गया .कुछ को बिन -लाइनर ,कुछ को हुडिद,कुछ को ट्रेक शूटपहनाये .अन्यों को टीजऔर हाफ पेंट्स .पता चला जिनके शारीर से इस दरमियान दो पोंड पसीना बह गया उनका दिमाग सिकुड़ गया .यह कोंत्रेक्षण उतना ही था जितना एल्ज़ाइमर्स के मरीज़ में ढाई महीने में देखने को मिलता है .या फिर १४ माह बुढ़ानेसे ताल्लुक रखने वाली विअर और टीअरमें होता है .गनीमत यही है एक दो ग्लास शीतल जल लेने पर दिमाग सामान्यस्थिति में लौट आता है ।ग्रे -मैटर पर पड़ने वाला अतिरिक्त दवाब समाप्त हो जाता है .
रहीम दास ने ऐसे ही नहीं कहा था -'रहिमन पानी राखिये ,बिन पानी सब सून ,पानी गए ना ऊबरे ,मोती मानुष ,चून'तो ज़नाब जल ही जीवन है । जीवन में पानी राखिये आँख का भी .बेनूर बदमजा है ज़िन्दगी है ,बे -आब ज़िन्दगी .

पुरुष बांझपन से छुटकारा दिलवाएगी 'सूँघनी'

डेलीमेल.को. यु के .में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक़ साइंसदान एक दवा 'अपो -मोर्फीन 'की आजमाइशेंऐसे मर्दों पर कर रहें हैं जो फिलवक्त 'इरेक्टाइल डिसफंक्शन '(लिंगोथ्थान कमी )का शिकार हैं ॥

समझा जाता है यह दवा दिमाग के केमिकल रिसेप्टर्स (रासायनिक अभिग्राहियों )को उत्तेजन प्रदान करती है .फलस्वरूप व्यक्ति में यौन -इच्छा पैदा होने लगती है जो लिंगोथ्थान करवाती है .यह दवा मूलतया 'पर्किन्संज़ दीजीज़ के मरीजों के लिए रही है .नतीजों का इंतज़ार है .सकारात्मक होने पर 'चूर्ण के रूप 'में एक सूँघनीके बतौर इसे काम में लिया जा सकेगा .बस दस मिनिट बाद यह इन्हेलर असर दिखलाने लगेगा ।

सन्दर्भ -सामिग्री :-इन्हेलर तू क्युओर इम्पोतेंसी इन टेन मिनिट्स :दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया (मे२० ,२०१०)

गुरुवार, 20 मई 2010

एक और सेक्युलर पुत्र 'अग.उरैया'

इधर सेक्युलर पुत्रों की ज़मात में एक और नाम जुड़ गया है 'अग उरैया '.आपका एक आलेख टाइम्स ऑफ़ इंडिया के १८ मई अंक में छापा है .शीर्षक है 'इन्दुत्व ऑप्शन '-इफ दी 'एच 'इज द्रोप्डहिंदुत्व इक्युँल्स सेक्युलरिज्म ।
चलिए इसी तर्क को आगे बढ़ातेंहैं ।
इन सज्जन का असली नाम है 'जग सुरैया 'नाम के पहले और दूसरे हिस्से से 'जे 'और एस हठादेनेपर इनका नाम हो जाएगा 'अग अरैया'.
सेक्युलरिज्म में से 'एस 'हठाने पर हो जाएगा 'एक्युँलिज्म '.बेहतर रहेगा .भारत में सारा फसाद सारा वितंडा इसी एक लफ्ज़ को लेकर है .आज हालत यह है 'कहीं से किसी मकान की एक ईंट दरक जाए ,उसमे से चार 'सेक्युलर पुत्र 'निकल आयेंगें .बी .जे .पी को छोड़कर यहाँ हर कोई सेक्युलर है ।
एक और शब्द गढा गया है-सर्व धर्म समभाव .भारतीय संस्कृति को सर्व -समावेशी ,सर्व ग्राही गंगा -जमुनी कहा गया है .हिंदूइज्म को एक वेगवती धारा लेकिन हिन्दुत्व को इक अवरोध की तरह परोस रहें हैं श्रीमान अरैया .आप हिन्दुस्तान में से एच हटा कर उसे 'इंदुस्तान 'और हिदुतव में से एच हटा कर उसे इन्दुत्व कह समझ रहें हैं .कहतें हैं सारे झगडे की वजह यह एच ही है ।
लगता है ज़नाब को इंदिराजी की याद आ गई इसीलियें indutv 'अलाप रहें हैं ।
हमारा मानना है यह शब्दों की बाजीगरी है .ज़नाब 'सेक्युलर लाल 'निष्कर्ष पहले निकाल रहें हैं तर्क बाद में जुटा रहें हैं .इक बार कहा गया था 'इंडिया इज इंदिरा ,इंदिरा इज इंडिया 'कोई बरुआ साहब थे .अरे साहब यहाँ 'कुछ 'था .ऐसा कुछ था यह जो ना कभी छीजा है ना छीज़ेगा वही है हिन्दुस्तान ,हिंदुत्व ...आप इक संज्ञा से ही खिलवाड़ करने लगे.yoon hi nahin kahaa thaa allaamaa ikbaal ne -kuchh baat hai ke hasti mitti nahin hamaari ,barson rahaan hai dushman daure jahaan hamaaraa .


शुक्रवार, 14 मई 2010

डी एन ए बदलाव ला सकता है खौफनाक मंजर (हादसा )

मिशिगन विश्व -विद्यालय के एक साइंसदान के मुताबिक़ जीवन में खौफनाक हादसा हमारे' डी -ओक्सी-राइबो -न्यूक्लिक एसिड 'हमारी खानदानी- दायमें भी बदलाव पैदा करसकता है .आप विश्व -विद्यालय के मालिक्युलर -एपी- डेमीयोलोजी(आणविक -जानपदिक रोग -विज्ञान )'विभाग से संबद्ध हैं ।
एक जानलेवा कार हादसा एक 'एब्युसिव सम्बन्ध 'क्रूर -रिश्ता 'शोषण कारी दमनकारी सम्बन्ध भुक्त -भोगी के डी. एन .ए. में फेरबदल करसकता है .
उक्त निष्कर्ष 'पोस्ट ट्रौमेतिक दिसोर्दर्ससे ग्रस्त 'मिशिगन -वासियों का अध्धययन विश्लेसन करने के बाद निकाला गया है .हादसा हमारे मस्तिष्क जैव -रसायन शास्त्र (ब्रेन केमिस्ट्री )को असर ग्रस्त बनाता है .नान -पोस्ट ट्रौमेतिक डिस -ऑर्डर्स एडल्ट्स से विकार ग्रस्त लोगों की तुलना करने पर यही नतीज़ा निकला है .
विकार ग्रस्त लोगों के डी .एन .ए .सीक्युवेंस पर 'केमिकल-त्रेसर्स 'दिखलाई दियें हैं .ए ट्रेसर इज ए प्रोब .रसायन का यह अल्पांश बहुत कुछ कह देता है .यह डी .एन .ए .क्रम हमारे डी .एन .ए से सम्बंधित था .एक ख़ास दिमागी रसायन का स्तर विकार ग्रस्त लोगों में जुदा रहा है ।सब कुछ किया धरा हादसे का रहा है .
सन्दर्भ सामिग्री :-एक्सपोज़र तू ट्रौमेतिक (एक्सपीरिएंस) इवेंट केन चेंज यूओर डी एन ए (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१३ ,२०१० )

माँ की वाणी में कडल-हारमोन ?

अमरीका के 'विस्कोंसिन -मेडिसन ,विश्व -विद्यालय 'के साइंसदानों ने माँ की वाणी को किशोर होते बालक बालिकाओं के तनाव -हारी ,स्ट्रेस -बस्टर, के रूप में पाया है .माँ की वाणी सामाजिक सरोकारों सोशल इंटरेक्शन का एक न्यूरो -इंडो क्रा-इन आधार ही नहीं रचती उसका (हमारे -स्रावी तंत्र )का विनियमन भी करती है ।
वैसे भी आप जानतें हैं ,ज़िन्दगी शब्दों से ही चलती है .किसी ने कहा -फलां की डेथ हो गई और इसके साथ ही हमारा सारा मानस ही बदल जाता है .जीवन की लय टूटने लगती है यदि शरीर छोड़ने वाला हमारा प्रिय -जन रहा है .बेशक खबर झूंठी ही क्यों ना हो ।
लेकिन माँ की आवाज़ संकट ग्रस्त ,तनाव के तनोबे से घिरे बालकों को ना सिर्फ आश्वस्त करती है ,सारा तनाव भी हर लेती है ।
अपने प्रयोगों में साइंसदानों ने किशोरावस्था की देहलीज़ पर पाँव रखते बालकों को चुना .इन्हें अजनबियों के सामने 'डेमो' (प्रेजेंटेशन )देने के लिए कहा गया ।
कुल ६१ बालक -बालिकाओं को तीन समूहों में रखा गया .पहले समूह का डेमो के ठीक बाद माँ से संवाद (रू -बा -रू )करवाया गया ,दूसरे को सिर्फ माँ की आश्वस्त कारी वाणी सुनवाई गई और तीसरे को इस सुख से वंचित रखा गया .इस दरमियान बराबर स्ट्रेस हारमोनों का मानी -तरण (मोनिटरिंग )किया गया ।
पहले समूह में' कडल- हारमोन 'लाड चाव दुलार के लिए जिम्मेवार हारमोन 'ऑक्सीटोसिन 'का स्तर यकसां पाया गया .तीसरा वर्ग इस प्रसादन (रिलेक्शेसन )से वंचित रहा .पता चला अच्छी सेहत के लिए फेमिली -एंड फ्रेंड्स का हर कदम पर साथ-समर्थन एक विधाई भूमिका निभाता है ।
वाणी दूर से भी ,दूरभाष से भी असर करती है ,और अगर यह वाणी 'माँ 'की हो तो कहने ही क्या ।
वोकेलाइज़ेशन प्लेज एन इम्पोर्टेंट रोल इन न्यूरो -इंडो क्रा -इन रेग्युलेसन ऑफ़ सोसल बोन्डिंग .परस्पर जुड़ाव और तनाव हीनता का रसायन बुनता है संवाद ।इसीलिए माँ को ईश्वर का दर्जा दिया गया है .
सन्दर्भ -सामिग्री :-फॉर स्ट्रेस्ड किड्स ,मोम्स वोईस एक्ट्स लाइक ए हग (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१३ ,२०१० )

अल्ट्रा -सोनो -ग्रेफ़ी भी बन सकती है गर्भ निरोधी बाशर्ते

वैसेक्तोमी (पुरुषों के लिए प्रयुक्त नस बंदी ) की तरह क्या अल्ट्रा -सोनो -ग्रेफ़ी एक अस्थाई लेकिन उलटा जाने वाला (उत्क्रमनीय रिवार्सिबिल ) गर्भ निरोधी साधन बन सकती है जिसे बस एक बार 'एक ब्लास्ट ऑफ़ अल्ट्रा साउंड 'के बतौर अन्डकोशों (टेस्तीज़ )पर डाला जाए और ६ माह तक पुरुष बधिया(अस्थाई रूप से बाँझ ,इन्फर्ताइल हो जाए )।
अलबत्ता अल्ट्रा साउंड का असर वक्त के साथ समाप्त भी हो जाता है और पुरुष फिर से गर्भाधान कर सकता है ।साउथ केरोलिना यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों का ऐसा मान -ना समझना है ,अल्ट्रा साउंड ब्लास्ट अन्डकोशों परसिर्फ एक बार डालने पर ६ माह तक स्पर्म उत्पादन निलंबित हो जाता है ।
विज्ञानी अब अपने इस विशवास को आजमाइशों की आंच से गुज़ार रहें हैं .इसे एक गैर -हारमोन सम्बन्धी गर्भ निरोधी उपाय माना जाएगा ,बाशर्ते नतीजे आशा के अनुरूप रहें ।
इन आजमाइशों के लिए 'बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउन्देशन' ने एक लाख डॉलर की अनुदान राशी मुहैया करवाई है .
पहले चरण में टेस्तीज़ स्पर्म बनाना मुल्तवी करदेतीं हैं .धीरे धीरे स्पर्म भण्डार चुक जातें हैं .बस मर्द इसी के साथ अस्थाई तौर पर इन्फर्ताइल हो जाता है .इसके कोई अवांछित प्रभाव नहीं हैं .अल्ट्रा साउंड निष्प्रभावी होने पर पुरुष अंड- कोष फिर से पहले की ही तरह स्पर-मेटा -ज़ोयाँ तैयार करने लगते हैं ।
बरसों से 'मेल- पिल' की तलाश रही है लेकिन रिसर्चर्स का रवैया ल्युक -वार्म रहा है .नतीज़ा वही ढ़ाक के तीन पांत ।
औरत को इस मामले में मर्द पर भरोसा भी नहीं है .उसे(मर्द )को अपने मज़े से मतलब रहता है ।
आरंभिक शोध उम्मीद बंधातीं है .नतीजे उत्साह वर्धक भी रह सकतें हैं लेकिन दीर्घावधि प्रभाव अल्ट्रा साउंड के अभी अनुमेय ही हैं ।
बेशक अल्ट्रा साउंड गर्भ निरोधी उपाय के बतौर १९७० आदि के दशक से ही चर्चित रहा है .लेकिन इसे कोई ख़ास वैज्ञानिक तवज्जो नहीं मिली ।
अलबत्ता स्वानों (डॉग्स)पर यह तकनीक असरकारी सिद्ध हुई है .इटली के साइंस दान इस बात की पुष्टि करतें हैं .फिल वक्त इस दिशा में काम ज़ारी है .नतीजे भविष्य के गर्भ में हैं .उम्मीद पे दुनिया कायम है ।
सन्दर्भ -सामिग्री : -अल्ट्रा साउंड वेव्स एज कोंत्रासेप्तिव ?ए ब्लास्ट्स तू दा टेस्तीज़ एवरी सिक्स मंथ्स केन प्रोव्हाइड ए टेम्पोरेरी एंड रिवार्सिबिल फॉर्म ऑफ़ बर्थ कंट्रोल (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१३ ,२०१० )

गुरुवार, 13 मई 2010

यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित एक अध्धय्यन के मुताबिक़ जो लोग काम के बाद तीन -चार घंटारोजाना ओवर -टाइमभी करतें हैं उनके लिए काम के लिएसिर्फ मुक़र्रर घंटों तक काम करने वालों के बरक्स बेड हार्ट प्रोब्लम्स के खतरे का वजन ६० फीसद बढ़ जाता है ।
यह निष्कर्ष एक दीर्घावधि रिसर्च प्रोजेक्ट जिसमे ३९ -६१ साला ब्रितानी नौकरशाहों को शामिल किया गया था के संपन्न होने पर निकाला गया है .प्रोजेक्ट के १९९० आदि के दशक के शुरू होने के आरम्भ में इन सबका दिलभला चंगा , स्वस्थ था .११ साला मोनिटरिंग (मोनितरण के बाद )पता चला ,इनमे से ३६९ स्वयं सेवी या तो परिह्र्दयधमनी - रोग का ग्रास बनने के बाद चल बसे या फिर नॉन -फेटल हार्ट अटेक,या एंजाइना का शिकार बने ।
एंजाइना इज ए पार्शिअल ब्लाकेद इन दी सप्लाई ऑफ़ ब्लड तू दा हार्ट ,विद रेडियेटिंग पैन एमानेतिंग फ्रॉम दी स्टर्नम (चेस्ट बोन लोकेशन )।
रिस्क फेक्टर (खतरे के वजन )का आकलन करते वक्त तमाम अन्य वजहों यथा धूम्रपान ,हाइपर -कोलेस्त्रेलेमिया ,ओवर वेट आदि को भी मद्दे नजर रखा गया .साफ़ पता चला जो नौकरशाह काम के नियत घंटों से तीन या और भी ज्यादा घंटा रोजाना ओवर टाइम भुगताते थे उनके लिए दिल की बीमारियों का ख़तरा ६० गुना बढ़ गया था ।
इनमे से ज्यादा तर अपेक्षाकृत युवा थे .औरतों से मर्दों की संख्या भी इस वर्ग में ज्यादा थी .इनका कामकाजी ग्रेड (अक्युपेश्नल ग्रेड) भी ज्यादा था ।
लेकिन इसका कारण कोम्प्लेक्स है वर्क प्लेस पर आपके सम्बन्ध कैसे हैं इसका अपना असर रहता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ओवर टाइम अप्स हारती अटेक रिस्क बाई ६० %.(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे १३ ,२०१० )

बुधवार, 12 मई 2010

टूटी हुई हड्डी (अस्थि -भंग )को अब इंजेक्सन से जोड़ा जा सकेगा

साइंसदानों ने चूहों में अस्थि -भंग की दुरुस्ती के लिए पहली मर्तबा सुइंयों (इन्जेक्संस )को आजमाया है .यदि यही तरकीब हम मनुष्यों पर भी कामयाबी पूर्वक आजमाई जा सकी तबप्रभावित अंग पर प्लास्टर(कास्ट चढाने ) की लम्बी और उबाऊ प्रक्रिया से बचा जा सकेगा .प्लास्टर चढ़े रहने के अपने पार्श्व -प्रभाव हैं .निष्क्रिय बना रहता है असरग्रस्त अंग एक लम्बी अवधी तक ।
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी ,केलिफोर्निया के साइंस -दानों ने अपने एक प्रयोग में चूहों की पिंडली (शिन बोन )में पहले तो कई नन्ने -नन्ने सुराख किये ,इसके बाद एक ख़ास प्रोटीन (डब्लू -एन- टी )की सुइयां लगा दीं ।
पता चला 'स्टेम सेल्स 'कलम कोशिकाएं पहले से ज्यादा रफ्तार से विभाजित हो अपनी कुनबा -परस्ती (वंश -वृद्धि )करने लगीं हैं .
यह वृद्धि उन माइस के बरक्स तीन गुना ज्यादा थी जिन्हें इस प्रोटीन की जगह प्लेसिबो (छद्म इंजेक्सन )लगाया गया ।
यह तरीका नवीन स्टेम कोशिकाओं को इंजेक्ट करने से भी ज्यादा कारगर पाया गया .जो बेलगाम हो अनियंत्रित तरीके से विभाजित होती चली जातीं हैं ।
हम मनुष्यों में अस्थि -भंग की दुरुस्ती में यह 'डब्लू एन टी प्रोटीन एक लोक लुभावन (लुभाऊ )इलाज़ माना जा सकता है ।
इस प्रोटीन में गडबडी होने का सम्बन्ध 'ह्यूमेन बोन दिस -ओर्दार्स 'से जोड़ा जाता रहा है ।
सन्दर्भ- सामिग्री :-ए जेब तू मेंड ब्रोकिं बोन्स(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ११ ,२०१० )

पृथ्वी पर बने रहना मुमकिन नहीं रहेगा आगामी तीनसौ सालों में .

पृथ्वी पर जीवन है तो इसीलिए, यहाँ जीवन के अनुकूल तापमान, गुरुत्व आदि रहें हैं .नवीनतर रिसर्च के अनुसार यह स्थिति सैदेव ही नहीं रहने वाली है .क्लाइमेट चेंज आगामी तीन सौसालों में ही स्थिति को जीवन के प्रतिकूल बना सकती है .तापमानों में १२ सेल्सिअस तक की वृद्धि हो सकती है ।
औट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स विश्व -विद्यालय तथा अमरीका की पुरडुए(परड्यू )यूनिवर्सिटी के साइंसदानों ने अपने अध्ध्यनों से पता लगाया है बढ़ते हुए तापमान कई जगहों पर जीवन के बने रहने कायम रहने को दुस्कर बना देंगें ।
एक 'पेपर 'में साइंसदानों ने बतलाया है शुरुआत कुछ जगहों पर विश्व -तापमानों ,ग्लोबल वार्मिंग से पैदा गर्मी मेंऔसतन ७ सेल्सिअस की बढ़ोतरी से होगी ।
तापमानों के ११ -१२ सेल्सिअस बढ़ जाने पर ऐसे इलाके हर तरफ होंगें .आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा इसकी चपेट में आयेगा ।
बेशक बकौल रिसर्चर स्टेवें शेरवूड ऐसायानी तापमानों में ७ सेल्सिअस की वृद्धि इस शती में भले ही ना हो ,लेकिन वर्तमान दर पर जिस तरह जीवाश्म ईंधनों का सफाया हो रहा है उसके ज़ारी रहते ईस्वी सन २३०० तक इससे से भारी समस्या पेश आ सकती है ।
दीर्घावधि में ऐसा होने के आसार फिफ्टी फिफ्टी हैं ,बराबर हैं ।
यह निष्कर्ष दीर्घावधि तक फैले जलवायु परिवर्तनों का परीक्षण करने के बाद निकाले गएँ हैं .अब तक किसी और अध्धयन में ऐसे परीक्षण नहीं किये गए थे .
पहली मर्तबा हीट- स्ट्रेस का जायजा लिया गया है .इसके लिए बढ़ते तापमानों औरबढ़ी हुई आद्रता दोनों को आकलन में शामिल किया गया है ।
अब तक जलवायु परिवर्तन में एक दूर दृष्टि का अभाव रहा है .ग्रीन हाउस गैसोंसे पैदा गर्मी का दीर्घावधि अन्वेषण नहीं किया गया है ।
नवीन रिसर्च दूर तक जाती है .सुदूर अनागत तक विस्तृत है ।
बेशक आगामी दो दशकों में हम इस गर्मी को रोकने में कुछ ना कर पायें लेकिन दीर्घावधि परिवर्तनों को मुल्तवी रखने के लिए हम आज भी बहुत कुछ कर सकतें हैं ।
सन २१०० सौ में भी जलवायु परिवर्तन पर लगाम नहीं लगेगी ।
२३०० में स्थिति बेकाबू हो जायेगी .हकीकत यही है आज की ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-इन ३०० हंड्रेड ईयर्स ,अर्थ विल बी टू हाट फॉर ह्युमेंस
पीपल वोंट बी एबिल टु विद्स्तेंद दी राइजिंग तेम्परेचर्स त्रिगर्ड बाई वार्मिंग (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१२ ,२०१० )

गुरुत्व सम्बन्धी आइन्ताइन के सापेक्षवाद की पुष्टि की ओर

आइन्स्टाइन के सापेक्षवाद के दो हिस्से हैं -एक विशेष सापेक्षवाद ओर दूसरा गुरुत्व सम्बन्धी सापेक्षवाद यानी जनरल थियेरी ऑफ़ रिलेटिविटी ।
बाद के सिद्धांत की अनेक अवधारणाओं ओर प्रागुक्तियों (प्रिदिक्संस )की पुष्टि हो चुकी है .लेकिन गुरुत्वीय तरंगों का अस्तित्व अभी अबूझ ही बना हुआ है किसी की पकड़ में नहीं आसकीं है यह तरंगें ।
अब अमरीकी अन्तरिक्ष संस्था 'नासा 'ओर यूरोपीय स्पेस एजेंसी संयुक्त रूप से ऐसे तीन अन्तरिक्ष यान सन- सिंक्रोनस ओर्बित में स्थापित करने जा रही हैं जो सूरज की परिक्रमा करते हुए एक ख़ास फोर्मेसन बनाए रहेंगें .इनमे गोल्ड -प्लेटिनम क्यूब्स तैरतीं रहेंगी .परस्पर यह ५०,०००,०० किलोमीटर दूरी बनाए रहेंगें .एक दूसरे की अन्तरिक्ष में अवस्थिति का जायजा लेने के लिए यह लेज़र बीम का स्तेमाल करंगें ।
इस आकलन में '४० मिलियंथ ऑफ़ ए मिलियंथ ऑफ़ ए मीटर की परिशुद्धता रहेगी .यानी एक मीटर के दस लाखवें के दस लाखवें के चालीसवें भाग तक की परिशुद्धता तक आकाश काल में इन की परस्पर अवस्थिति का रिकार्ड रखा जा सकेगा ।
यक़ीनन इतनी परिशुद्धता होने पर गोल्ड -प्लेटिनम क्यूब्स के बीच की परस्पर दूरी में पैदा अल्पांश में आये बदलाव को भी जाना जा सकेगा .इस बदलाव की वजह आइन्स्टाइन द्वारा प्रस्तावित गुरुत्वीय तरंगें बनेंगी ।
गुरुत्वीय तरंगें क्या हैं ?
जब ब्लेक होल्स जैसे भीमकाय पिंड अन्तरिक्ष में परस्पर टकरातें हैं तब अन्तरिक्ष काल में छोटी छोटी उर्मियाँ (रिपिल्स इन स्पेस एंड टाइम ) स्रोत से निकल कर आगे ओर सिर्फ आगे की ओर (बाहर की ओर )प्रकाश के वेग से बढ़तीं हैं ।यही कमज़ोर उर्मियाँ 'ग्रेविटेशनल वेव्स 'कहलातीं हैं .
गुरुत्वीय तरंगों के एक माहिर प्रोफ़ेसर जिम हौघ (ग्लासगो विश्व -विद्यालय से सम्बद्ध )कहतें हैं -आइन्स्टाइन के गुरुत्व सम्बन्धी सापेक्षवाद की आखिरी कड़ी के रूप में अभी गुरुत्वीय तरंगों की पुष्टि होनी बाकी है .उन्हीं के शब्दों में -'दे आर प्रोदयुस्द वेन मेसिव ओब्जेक्ट्स लाइक 'ब्लेक होल्स 'ऑर कोलेप्स्द स्टार्स एक्सलारेट इन स्पेस ,पर्हेप्स बिकॉज़ दे बींग पुल्ड टुवर्ड्स एनादर ओब्जेक्त विद ग्रेटर ग्रेविटेशनल पुल लाइक ए मेसिव ब्लेक होल .
यानी जब अन्तरिक्ष के अनंत विस्तार में ब्लेक होल जैसे भारी भरकम पिंड या फिर अपनी जीवन लीला भुगता कर खुद प़र ही ढेर होतेसितारे (कोलेप्स्द स्टार्स )अन्तरिक्ष में त्वरित होतें हैं (तेजी से जब इनके वेग में प्रति सेकिंड लगातार वृद्धि दर्ज होती है ) तब गुरुत्वीय तरंगें पैदा होतीं हैं .यह त्वरण आपसे आप नहीं हो रहा है संभवतय कोई एक और भारी भरकम ब्लेक- होल इन्हें (उक्त ब्लेक होल्स या कोलेप्स्द स्टार्स )को अपने अति विशाल गुरुत्व की डोर से अपनी ओर खींच रहा होता है ।
बेहद कमज़ोर होने की वजह से गुरुत्वीय तरंगें आदिनांक किसी उपकरण की पकड़ में नहीं आ सकीं हैं .संदर्भित अन्तरिक्ष यानों से बहुत उम्मीन्दें हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-स्पेस क्राफ्ट तू टेस्ट आइन्स्ताइन्स रिलेटिविटी थियेरी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे११ ,२०१० )

माँ से ही अक्सर क्यों ज्यादा होता है शिशुओं का लगाव ?

आचार्य रजनीश कहतें हैं गर्भस्थ नौ माह तक गर्भ नाल द्वारा माँ के ही शरीर से जुडा रहता है .एक ट्विन -बायलोजिकल सिस्टम बन जाता है ,माँ और अजन्मेगर्भस्थ शिशु का .जुड़ाव की यही वजह बनता है ।
साइंसदान इसका कारण 'कडल- हारमोन 'को बतलातें हैं जो दुग्ध पान कराने वाली माँ के शरीर में बहुतायत में पाया जाता है .लाड दुलार चाव पुचकार औरआलिंगन की वजह यही हारमोन बनता है ।
मौंट सिनई मेडिकल सेंटर ,न्युयोर्क के साइंसदान इस बेहद के लगाव की वजह एक औरहारमोन 'ऑक्सीटोसिन 'को बतलातें हैं जिसका औरत के शरीर में और भी ज्यादा उत्पादन होता है ।
ऑक्सीटोसिन ना सिर्फ प्रसव पूर्व लेबर में मदद- गार है ,दुग्ध ग्रंथियों को भी उत्तेजन प्रदान कर एड लगाता है ।
जो महिलायें माँ बनने को उत्सुकहैं और जिन्हें यह गौरव हाल फिलाल ही मिला है उनके लिए एहम रोल है 'ऑक्सीटोसिन 'का .चाइल्ड -मदर बोन्डिंग का सूत्रधार है 'ऑक्सीटोसिन '।
सन्दर्भ -सामिग्री :-वाई किड्स बोंड मोर विद मोम्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,में ११ ,२०१० )

खून में घुली चर्बी कम करतें हैं खुराख में शामिल नट्स

एक नवीन अध्धययन से विदित हुआ है ,जिन लोगों की खुराक में प्रतिदिनऔसतन ६७ ग्रेम नट्स (अखरोट ,बादाम ,कठोर छिलके वाले कैसे भी मेवे ,ड्राई -फ्रूट्सकाष्ठ-फल ,माजू- फल आदि कुछ भी )शामिल रहतें हैं ,उनके रक्त में मौजूद कुल सीरम कोलेस्ट्रोल (टोटल कोलेस्ट्रोल कंसेन्ट्रेशन )५.१ फीसद ,हृदय के लिए बारहा खराब बतलाया गया 'लो डेंसिटी लिपो-प्रोटीन्स कोलेस्ट्रोल '७.४ फीसद घट जाता है उन लोगों की तुलना में जिनकी खुराक में ये हार्ड -शेल- नट्स शामिल नहीं रहतें हैं (कंट्रोल ग्रुप )।
अलावा इसके जिनके रक्त में 'ट्राई -ग्लीसरैड्स'का स्तर उच्चतर बना रहता है ,नट्स खाने पर इनके रक्त में भी 'ब्लड लिपिड लेविल्स '१०.२ फीसद कम दर्ज हुए ।
सात अलग अलग देशों में संपन्न किये गए २५ ट्रायल्स का विश्लेसन करने के बाद उक्त निष्कर्ष निकाले गए हैं .ट्रायल्स में १९ -८६ साला ५८३ महिला -पुरुष शरीक थे .इनकी तुलना नॉन नट ईटर्स (कंट्रोल ग्रुप )से बराबर की गई ।
इनमे से कोई भी प्रति -भागी (सब्जेक्ट या कंट्रोल )खून से चर्बी कम करने वाली दवाओं (स्तेतिन्स आदि )का सेवन नहीं कर रहा था ।
अमरीकन मेडिकल अशोसियेसन आर्काइव्स ऑफ़ इन्टरनल मेडिसन में प्रकशित इस अध्धययन में यह भी बतलाया गया है ,आप कौन सा नत ले रहें हैं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,फायदा यकसां नसीब होता है ।
लोमा लिंडा यूनिवर्सिटी केलिफोर्निया के रिसर्चर्स जों. सबते के नेत्रित्व में इस अध्धयन में शामिल रहें हैं ।
अलबत्ता किसको नट्स का कितना लाभ मिलता है ,यह इस बात पर ज़रूर निर्भर करता है ,आपका वजन और बेसलाइन लो डेंसिटी लिपोप्रोतिंस -कोलेस्ट्रोल का स्तरअध्धय्यन के आरम्भ मे कितना रहा है ।
आरभिक एल डी एल -सी जिनका ज्यादा रहा है ,उन्हें उतना ही ज्यादा लाभ हासिल हुआ .जिनका 'बी एम् आई 'यानी बॉडी मॉस इंडेक्स (किलोग्रेम /मीटर स्क्वायर )'शुरू में कम था उन्हें भी अपेक्षाकृत ज्यादा फायदा पहुंचा ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-गोइंग नट्स इन यूओर डाइट केन रिड्यूस ब्लड कोलेस्ट्रोल (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१२ ,२०१० )।
विशेष कथन :-भाई साहिब खुराकी केलोरीज़ का अपना हिसाब किताब होता है .केलिफोर्निया हब है नट्स का खासकर बादाम का .समझदार को इशारा ही काफी होता है .कुछ भी नया करने से पहले यदि आप कार्डियो -वैस्क्युलर डिसीज़ (कोरोनरी आर्टरी डिजीज आदि )से ग्रस्त हैं तो अपने कार्डियोलोजिस्ट और दाइतिशियन से ज़रूर परामर्श कर लें ।
वीरेन्द्र शर्मा उर्फ़ वीरुभाई .

मंगलवार, 11 मई 2010

स्मार्ट्स फोन के नौनिहालों पर असर

'स्मार्ट फोन्स एक्स्पोज़िंग किड्स तू स्युसाइड 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मई ११ अंक में प्रकाशित यह खबर हम आप तक पहुंचाने के लिए व्यग्र है क्योंकि यह हमारे नौनिहालों से ताल्लुक रखती है ।
सोचा जा सकता है यदि आई -फोन से डाउन लोड की गई सामिग्री उनका अपरिपक्व अवस्था में परिचय अतिशय यौन हिंसा ,सेक्स्युअल -वायोलेंस से करवाए ,आत्मह्त्या से कराये,तब इनके दिलो-दिमाग पर जीवन और जगत की कैसी छाप पड़ेगी ।
इस सबके लिए कुसूरवार उन पेरेंट्स को ही ठहराया जाएगा जिन्होनें उनके हाथ में' स्मार्ट्स -फोन 'थमा दियें हैं ।
ऐसा ही एक स्मार्ट फोन है' एपिल्स -आईफोन '.इसकी मदद से ये नौनिहाल पलक झपकते ही ऐसे 'तथाकथित गेम्स 'डाउन लोड कर सकतें हैं जिनमे साफ़ साफ़ हिंसात्मक और दो टूक यौन प्रदर्शन है ।
गमेंट क्लासिफिकेशन से बच निकले हैं ये कथित स्मार्ट फोन्स (कमसे कम बच्चों के सन्दर्भ में तो यही कहा जाएगा ।).अलबत्ता एडल्ट्स तक इनकी पहुँच है .(हमारे यहाँ तो वैसे भी कोई सिस्टम ही नहीं है ,ना उसका अनुसरण करने वाले. १८ साल से कम उम्र के बच्चे कुछ भी खरीद खा सकते हैं ,पी सकतें हैं ,कफ सीरप से कोकेन तक )
इसका सीधा -साधा एक और अर्थ भी निकलता है ये फोन्स इन बालगोपालों के माँ -बाप ने इनके नन्ने हाथों में थमा दिए हैं ।
एक बात और बच्चों के हाथ में यह मेटीरियलना 'वीडियोगेम्स कंसोल्स 'थमा सकतें हैं ,ना मॉस कम्युनिकेशन का कोई और ज़रिया (मेग्जींस ,मूवीज ,इलेक्ट्रोनिक मिडीया आदि )।
एपिल्स 'एप स्टोर 'भण्डार है ऐसी सामिग्री का .डाउन लोड करने के लिए नौनिहालों को चाहिए बस एक क्रेडिट कार्ड और एक मिनिट का वक्फा ।
बस 'आई ट्यून्स एकाउंट 'तैयार .फिर खुला खेल फरुख्खा- बादी.

दर्द को भांप करबेहतर दर्द -नाशी की तलाश की दिशा मे एक कदम

जब आप को सुईं लगाईं जाती है तब अक्सर चेहरे के हाव भाव बदल जातें हैं .कुछ के चेहरे पीड़ा की साफ़ झलक देने लगतें हैं ,तो कुछ एंठ जातें हैं ,विरूपित हो जातें हैं .ऐसा सिर्फ हमारे साथ ही नहीं 'बायो-मेडिकल रिसर्च 'की नींव बने लेबोरेट्री एनिमल्स के साथ भी होता है ।
सद्य -प्रकाशित एक रपट के मुताबिक़ साइंसदानों ने 'एक स्लाइडिंग स्केल ऑफ़ पैन 'तैयार कर लिया है .जो चेहरे की भाव भंगिमाओं ,चेहरे पर साफ़ झलकती पीड़ा पर आधारित रहेगा ।
तथाकथित 'माउस ग्रिमेस स्केल 'प्राणी मात्र के लिए ज्यादा असरकारी दर्द -हारी तैयार करने में एक एहम भूमिका निभाएगा .इससे ना सिर्फ हमें, लेबोरेट्री- एनिमल्स को भी राहत मिलेगी ।
अब तक यही समझा जाता था ,सुइंयाँ (इंजेक्शन )दी जाने पर सिर्फ हमारी मुख -मुद्राएँ बदलतीं हैं ,अब पता चला है दर्द पैदा करने वाली सुइंयाँ लगाने पर चूहों की भी भंगिमाएं बदलतीं हैं ।दर्द की खबर देता है उनका मासूम चेहरा .
साइंसदानों ने बेहद दर्द पैदा करने वाला एक इंजेक्शन लगाकर माइस(चूहों )की मुखाकृति में आये बदलाव दर्ज कियें हैं .पता चला है ,दर्द का एहसास गहराने पर ,गहराते जाने पर आँखें भिंच जाती हैं ,छोटी दिखने लगतीं हैं ,नाक के ब्रिज में उभार साफ़ दिखलाई देने लगता है .गाल फूल जातें हैं .मुख- मुच्छ बंच(गुच्छ ) बनाने लगता है .कान आगे पीछे होने लगते हैं ।
'जाके पैर ना फटी बिवाई ,वह क्या जाने पीर पराई .'अब जाकर साइंसदानों को एहसास हुआ है ,लेबोरेट्री एनिमल्स की पीड़ा और बदलती भाव मुद्राओं का .और इसी की मदद से बेहतर दर्द -नाशी (एनाल्जेसिक्स )बनाने की दिशा में एक कदम आगे बढा दिया गया है ।
अब ऐसे ही दर्द नाशी देकर मानव की सेवा में निशिदिन रत इन जीवों को भी दर्द के एहसास से थोड़ा मुक्त करवाया जा सकेगा ।
लेबोरेट्री परीक्षणों के दौरान भयंकर पीड़ा से गुजरतें हैं यह निर्वाक (मूक )जीव।
पशु - ओं की देखभाल और रोग प्रबंधन में भी मदद मिलेगी ,'स्लाइडिंग स्केल ऑफ़ पैन से .
आखिर दर्द के प्रति पशु जगत में भी उतनी संवेदना है ,दर्द का खुलासा (रेस्पोंस )है .चेहरे का विरूपण है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ए 'ग्रिमेस स्केल 'तू हेल्प फाइंड बेटर पैन्किलर्स(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१० ,२०१० )

सोमवार, 10 मई 2010

आखिर हम मृत्य (मनुष्य ,मृत्युलोक के प्राणी )क्यों है ?,

आखिर हम मरण -शील क्यों हैं ?क्यों होती है पहले एजिंग और फिर मृत्यु ?क्या हम यूं ही 'मोर्टल 'ही बने रहेंगें ?
संभवतय 'ब्रुक ग्रीनबर्ग 'से कुछ अता पता मिले .आखिर क्यों बुढातेंहैं हम लोग ।
साइंसदानों के लिए कल तक यह सत्रह साला तोड्लर एक अजूबा एक मेडिकल -ओदिती थी जिसकी उम्र और कदकाठी में कोई सामंजस्य नहीं है .इसका वजन मात्र ७ किलोग्रेम -वेट और हाईट ढाई फीट (३० इंच )मात्र है ।
अगले बरस यह कार चलाने लायक हो जायेगी .मतदान में भी शिरकत कर सकेगी ।
इसकी बढवार(ग्रोथ )के थम जाने की वजह क्या दोषपूर्ण जींस (जीवन खंड )हैं ?
इसके 'डी .एन .ए .अध्धययन से ऐसे ही संकेत मिल रहें हैं .इस तथ्य की पुष्टि हो जाने पर साइंसदान ना सिर्फ बुढ़ाने की प्रकिर्या ,बुढापे के रोगों पर भी थोड़ी और समझ विकसित कर सकेंगे ।
इलाज़ भी हाथ लग सकता है फिल- वक्त लाइलाज बने बुढापे के रोगों का .साउथ फ्लोरिडा विश्व -विद्यालय में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्य -रत रिचर्ड वालकर कहतें हैं इसकी स्तन्तिद ग्रोथ की वजह कुछ जीवन इकाइयों (जींस )में होने वाले म्यूटेशन (उत्परिवर्तन )हो सकतें हैं .बहर -सूरत इसका जीन -क्रम(जीन सिक्वेंसिंग )की जा रही है .ज्यादा रौशनी इन सवालों पर यह काम संपन्न हो जाने पर ही पड़ सकती है .
उन्हीं के शब्दों में "शी अपीयर्स तू बी फ्रोज़ीं इन टाइम "।
काश हम इसके जीनोम -सीक्क्युवेंस की तुलना इन्हीं जींस की सामन्य कोपी से कर पाते .,जो म्युतेत कर गएँ हैं .तभी यह भेद खुलेगा ,आखिर ये जीवन खंड करते क्या क्या हैं ।
बाहर से देखने पर यही लगता है 'शी हेज़ बीन ए तोड्लर फॉर सेविन्तीन ईयर्स .परिवार के लोग इसकी नेपि चेंज करते रहें हैं .शिशु की तरह इसे दुलारते रहें हैं .लोरी दे कर सुलाते रहें हैं ।
यूं गिगलिंग (गुलगुली करने पर ,गुदगुदाने पर )ब्रुक ग्रीन बर्ग थोड़ा मुस्कुराती भी है ,घुटनों चलती है लेकिन आदिनांक इसे बोलना नहीं आता .दूध के दांत नहीं गिरे हैं अब तक ब्रुक के ।
लेकिन ब्रुक आधुनिक प्राण लेवा रोगों से दो चार होती रही है .स्ट्रोक्स ,शीज़र्स ,अल्सर्स ,ब्रीडिंग- दिफिकल्तीज़ का सामना करना पड़ा है ब्रुक को .ऐसा प्रतीत होता है यह बाल -सदृशय किशोरी बिना ग्रोथ के (शारीरिक वृद्धि )के बुढा रही है .शरीर शिशुवत उम्र किशोरी की ।
वाकर के मुताबिक़ ब्रुक के कुछ अंग बुढाए ज़रूर हैं लेकिन बुढ़ाने की दर इन अंगों की यकसां नहीं रही है .रिसर्च इसी ओर इशारा कर रही है .वाकर कहतें हैं -हमारी अवधारणा है ,परिकल्पना है ,ब्रुक' जीन' या कुछ' जींस- समूह' की नुकसानी उठाती रही है .डेमेज हुएं हैं कुछ जीवन खंड या फिर जीवन इकाइयां ब्रुक की ।
उन्हीं के शब्दों में -' इफ वी केन यूज़ हर डी .एन .ए .तू फाइंड देट म्युटेंट जीन देन वी केन टेस्ट इट इन लेब एनिमल्स तू सी इफ वी केन स्विच इट ऑफ़ एंड स्लो डाउन एजिंग प्रोसिस एत विल .इट कुड गिव अस एन अपोर्च्युनिती तू आंसर दी क्वेश्चन ऑफ़ वाई वी आर मोर्टल '।
सन्दर्भ -सामिग्री :-गर्ल फ्रोज़िन इन टाइम मे होल्ड 'की' तू एजिंग .फाल्टी जीन कुड एक्सप्लेन वाई दी टीन स्टील हेज़ बॉडी एंड बिहेवियर ऑफ़ ए वन ईयर ओल्ड :साइंटिस्ट (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे १० ,२०१० )

'ब्रेन -ट्यूमर 'के इलाज़ में भी कारगर सिद्ध हो सकती है 'वियाग्रा '

'इरेक्टाइल डिसफंक्शन /लिंगोथ्थान अभाव 'के लिए स्वीकृत दवा 'वियाग्रा 'अब कैंसर की एक असरदार दवा 'हरसेप्तीन'ब्रेन ट्यूमर तक पहुंचाकर इलाज़ के लिए आजमाई जायेगी .आप जानते हैं 'कैंसर 'की मेटास्टेसिस हो जाती है .एक जगह से शरीर में यह दूसरी जगह चला आता है .एक स्तन तराशी के बाद दूसरे को भी असरग्रस्त बना सकता है .फेफड़े (लंग्स )और स्तन कैंसर (ब्रेस्ट कैंसर )मेतास्तेसाइज़्द होकर दिमाग को भी कैंसर ग्रस्त बना सकता है .दिमाग में एक ख़ास किस्म का ट्यूमर हो जाता है .वियाग्रा बेशक 'एंटी -कैंसर 'दवाओं की डिलीवरी में विधायक भूमिका निभा सकती है .लेकिन कुदरत का नायाब तोहफा (हमारे रोग प्रति -रोधी तंत्र को कुदरत से मिला इनाम )'ब्लड ब्रेन बेरियर 'अभी भी एक बाधा है .कैंसर रोधी दवाओं को इसी नाके -बंदी के पार पहुंचना होगा .व्याग्रा से उम्मीदें तो हैं ,लेकिन अभी बहुत किया जाना बाकी है .
सन्दर्भ सामिग्री :-वियाग्रा केंन हेल्प ट्रीट ब्रेन त्युमर्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१० ,२०१० )

yaaddaasht me bhi izaafaa karti hai निकोटिन ?

'निकोटिन इन्क्रीज़िज़ मेमोरी फंक्शन '-एक रिपोर्ट ,दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१० ,२०१० .
ऐसा पहले ही से माना जाता है ,निकोटिन हमारी ठीक से सोच पाने की क्षमता बढ़ाती है .हमारी किसी भी आज़माइश या परीक्षण मे वृद्धि करती है ।
अब कुछ साइंस दानों की माने तो 'निकोटिन 'हमारे मेमोरी फंक्शन को भी बढा देती है .सीधे सीधे कहें तो हमारी याददाश्त को भी बढा देती है ।
नेशनल इन्स्तित्युत ऑफ़ ड्रग एब्यूज ,यु .एस के स्टीफेंन हेइश्मन और साथियोंने निकोटिन पर अब तक उपलब्ध साहित्य का अनुशीलन करने पर एक दिलचस्प निष्कर्ष निकाला है ,निकोटिन ना सिर्फ हमारे द्वारा किसी चीज़ पर ध्यान देने (अटेंशन )मे वृद्धि करती है ,याददाश्त भी बढ़ाती है .
विशेष कथन :कृपया गौर करें ,हमारा मकसद सदैव ही समाज उपयोगी सूचनाएं ,विज्ञान -शोध सम्बन्धी रिपोर्ट सामने लाना रहा है .पता नहीं क्यों हमें इस रपट मे से 'गाइदिद-रिसर्च 'की बू आती है .होसकता है 'निकोटिन -हाइप हो यह रिपोर्ट .निकोटिन सेवन की हम (प्रस्तोता )भारी कीमत चुका है .स्मोकिंग स्टेंस ,दन्तावली -मुक्तावली का पीला पड़ना ,ओपन हार्ट सर्जरी ,और सबसे ज्यादा .सौन्दर्य -बोध (एस्थेटिक सेन्स )का ह्रास .औरों के फेफड़ों का अपने शौक के लिए हम सेवन करते रहे और अपने आप को बहुत प्रगति शील बुद्धि शाली मानते समझते रहे .बहर - सूरत हम इस रपट के नतीजों से सहमत नहीं है .
आप जानते हैं पश्चिममे लोग 'स्मोकिंग 'से छिटक रहें हैं .टाबेको-लाबी ,तम्बाखू निगम तीसरी गरीब दुनिया पर नजरें टिकाये है .भाई बचके ज़रा .

सोफ्ट ड्रिंक्स का चस्का 'पैन्किरियेतिक कैंसर 'को मस्का .

आजकल हर तरफ पैकेज का ज़माना है ,मेक्दोनाल्ड्स हो या कोई और फ़ूड कोर्ट 'सोफ्ट ड्रिंक्स 'जग भरकर हाज़िर कर दीजातीं हैं .'विज्ञापन कहता है 'ठंडा माने कोको कोला 'जी करता है प्यास लगे '.विज्ञापनों का मायावी संसार जो करादे सो कम ।
आइये विज्ञान के झरोखे से देखे 'सोफ्ट ड्रिंक्स 'के सबक ,सौगातें ।
'सोफ्ट ड्रिंक्स डबल पेन्किर्येतिक कैंसर रिस्क 'हम नहीं कहते एक साइंस रिपोर्ट कह रही है (देखें ,दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१० ,२०१० )।
साइंसदानों ने इस रपट मे बतलाया है ,चीनी से लदी- फदी कार्बोनेतिद सोफ्ट ड्रिंक्स का एक सीमा से आगे सेवन 'अग्नाशय कैंसर 'के खतरे के वजन को दोगुना कर देता है ।
जोर्ज टाउन विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने ६०,००० औरत -मर्दों पर एक १४ साल तक फैले अध्धययन से निष्कर्ष निकाला है ,जो स्त्री -पुरुष सप्ताह मे दो सोफ्ट ड्रिंक्स से ज्यादा गले के नीचे उतार लेतें हैं ,उनमे अग्नाशय कैंसर का ख़तरा बढ़कर दोगुना हो जाता है .

रविवार, 9 मई 2010

विस्मय बोधक शब्द -समुदाय "अत -ता -बोय" 'किसे कहेंगें ?

शब्द -व्युत्पत्ति क्या है 'अत्ताबोय 'की ?
यह एक बदला हुआ रूप है क्या लडका है ?लडका हो तो ऐसा हो का .अंग्रेजी में कहेंगें 'देट इज दा बॉय '
जब कोई बेहद बढ़िया काम करता है ,शब्द- उदगार के रूप में उसे 'अत्ताबोय' कह दिया जाता है .यह उसके काम की सीधे सीधे तारीफ़ है ,प्रशंसा है ।
भारत की वन दे टीम में फिलवक्त कई अत्ताबोय हैं ,अत्तबोइज़ हैं ।
समर्थन है .प्रोत्साहन है उसके लिए वैयक्तिक ।
संज्ञा है अत-ता -बॉय :इस शब्द- समुदाय,फ्रेज़ , का पहले पहल चलन सेना (प्रति -रक्षा सेवा )में देखने को मिला .यह एक तरह की सिफारिश थी जो बढ़िया काम के लिए सैन्य-अधिकारी की पर्सनल फ़ाइल में'अत्ताबोय ' के रूप में दर्ज़ की जाती थी .इस बिना पर भविष्य में उसे तरक्की ,वेतन -वृद्धि आदि मिलती थी ,पारितोषिक अच्छे काम को तस्दीक करने के रूप में इनाम था 'अत्ताबोय '.
अंग्रेजी में इस फ्रेज़ का स्तेमाल देखिये .बेस- बाल के खेल में टॉम. रोबिनसन अच्छा खेल दिखाने वाले खिलाड़ी को 'अताबोय' कहता था ।
'नाइस बंट ,अत्ताबोय '
वी बेटर टेक लोट्स ऑफ़ अत्ता- बोयिज़ ऑन दिस टीम टुनाईट.
एक और बानगी देखिये :'जोंस वाज़ नॉट एच. आर्स चोइस फॉर दी न्यू डिपार्टमेंट- मेनेजर ,बट दी 'अत्ताबोयिज़ 'ही गोटफ्रॉम दी कस्टमर फॉर देत लास्ट प्रोजेक्ट कन्विन्स्द दी ,वी. पी, तू लीन ऑन दी पर्सनल वीनीज़ ऑन हिज़ बिहाफ '
यहाँ पर शब्द समुदाय 'अत्ताबोयिज़ 'का स्तेमाल एप्लोज़ (तारीफ़ )के रूप में किया गया है .

आज है महिला आज़ादी की प्रतीक 'पिल 'की स्वर्ण -जयन्ती

आज 'पिल ','आई पिल 'और कंडोम को आड़े वक्त में काम आने वाली गर्भ -निरोधी चीज़ के रूप में समाज में एक ख़ास मुकाम हासिल है .औरत की यौन आज़ादी और एच -आइवी -एड्स से बचाव के रूप में कंडोम अपनी अलग जगह बना चुका है .आज स्पर्मी -साइड युक्त यानी स्पर्म या शुक्राणु नाशी कंडोम भी उपलब्ध हैं .महिलाओं के लिए अलग से कंडोम हैं लेकिन अब से पचास -साथ साल पहले यह आलम ना था ।
स्त्री -हारमोन का पता चलने पर पिल की संभावनाओं के द्वार आप से आप खुलते चले गए ।
इन्हीं हारमोनों की मदद से गर्भाधान(इन वाइवो फ़र्तिलाइज़ेसन ) को मुल्तवी रखने की पहली आज़माइश जर्मनी में की गई ।
१९२२ :लुडविग हबेर्लान्द्तने अंडा -शय से ओवम के क्षरण (रिलीज़ ऑफ़ फिमेल -एग फ्रॉम दी ओवरी )को रोकने की आज़माइश खरगोशों (रेबिट्स )पर संपन्न कीं।
१९५५ :एक अमरीकी डॉ ग्रेगोरी पिंचुस ने'पिल ' तैयार की ।
१९५६ :पश्चिमी जर्मनी के बाजारों में 'पिल 'उतारी गई ।
१९५७ :अमरीका में 'पिल 'का स्तेमाल हारमोन सम्बन्धी गडबडी दुरुस्त करने के लिए आरम्भ हुआ ।
१९६० :मे९ ,१९६० को अमरीकी खाद्य और दवा संस्था "ऍफ़ डी ए '"ने पहली गर्भ निरोधी टिकिया को खुले बाज़ार मे बिकने की मंज़ूरी दी .लेकिन यह वैधानिक रूप से सिर्फ और सिर्फ शादी शुदा औरतों को ही बेची जाती थी .आज की तरह आम फ़हम नहीं थी इसकी बिक्री ।
१९७२ :पिल सब को उपलब्ध थी .बिक्री पर से लगाम हठाली गई ।
केज्युअल सेक्स सम्बन्ध चलन मे आये .अब औरत को अपनी फर्टिलिटी का विनियमन करने का अधिकार मिल गया था .अपनी सेक्स्युअलिती को भी .'यह शरीर मेरा है ,मैं जैसे चाहूँ इसका स्तेमाल करू ।'कहने वाली औरत पैदा हो चुकी थी .
१९८० :१९८० का दसक एच आई वी -एड्स के नाम रहा .अब बचावी चिकित्सा के रूप मे कंडोम की सरकारी जय बोली जाने लगी .जय -हो कंडोम देवता .कंडोम एक फायदे अनेक .ज़रुरत का साथी ,भरोसे मंद साथी 'कंडोम 'सदैव 'साथ रखिये ।
रहिमन कंडोम राखिये बिन कंडोम सब धूम ।धूम्र पढिये धूम को .धूम्र यानी धुंआ .
अब तक आलमी स्तर पर २० करोड़ से भी ज्यादा महिलायें ,आज भी 'पिल 'को भरोसे का साथी मानतीं हैं ।
सिर्फ गर्भ निरोधी उपाय आजमा कर ५ करोड़ अनचाहे गर्भों (अन वान्तिद प्रेग्नेंसीज़ )को टाला जा सकता है .'लडका है या लडकी' का सवाल ही नहीं .अल्ट्रा साउंड की ऐसी की तैसी .बेड़ा गर्क कर दिया इसने तीसरी दुनिया का ।औरत- मर्द अनुपात बिगाड़ दिया .
अब एक लाख पचास हजार महिलाओं को प्रसूति के दौरान होने वाली मौतों से बचाया जा सकता है ।
६,४०,००० नौनिहालों (नवजातों )को मरने से बचाया जा सकता है ।
बीसवीं शती का बेहतरीन तोहफा रही आई है 'गर्भ निरोधी टिकिया '
अब माला नहीं 'माला डी 'का जाप हो रहा है .

'पेशेंट जीरो ' किसे कहा जाता है ?

किसी रोग का पहला पहला शिकार बना व्यक्ति जो रोग के किसी भी स्तर पर फैलने (एन्देमिक ,एपिदेमिक ,पेंदेमिक )की इत्तला देता है उसके स्रोत (उदगम)की और इशारा करता है 'शून्य मरीज़ /पेशेंट जीरो 'कहलाता है ।
उत्तरी अमरीका में पहली मर्तबा इस 'शब्द समुदाय 'फ्रेज़ का स्तेमाल डॉ .विलियम दारो ने किया था .यह भी बतलाया था किस प्रकार यह पेशेंट जीरो अनेक व्यक्तियों के यौन संपर्क में आया . लोगों को एड्स विषाणु 'एच आई वी 'से संक्रमित करता रहा ,एच आई वी पाजिटिव बनाता रहा .यह भी बतलाया था कैसे यह रोग देश देशांतर में सरहदों के पार प्रसार पाता रहा है ।
मशहूर पत्रकार 'रंडी शिल्ट्स 'ने पेशेंट जीरो के बारे में अपनी कलम चलाई थी ।
दारो ने यह भी खबर दी सारी दुनिया को बतलाया इस 'जीरो पेशेंट 'का नाम था 'गेतन दुगास '.पेशे से यह एक फ्लाईट अटेंडेंट था ।
यह किसी के भी साथमौक़ा मिलने पर हमबिस्तर हो जाता था ,प्रोमिस्कुअस था .ज़ाहिर है इसके अनेक यौन सम्बन्ध ,यौन संगी -साथी थे .अब तक अनेक रोगों के "पेशेंट जीरो "का रेखांकन किया जा चुका है .विकीपीडिया में उनके नाम दर्ज हैं .
सन्दर्भ -सामिग्री :-विकिपीडिया .

क्या है 'सुपर -गेलेक्सी '?

निहारिका या गेलेक्सी सितारों के एक हुजूम को कहा जाता है .हमारी अपनी "मिल्की -वे गेलेक्सी 'या दूध गंगा में तकरीबन २०० अरब सितारे गुरुत्व की डोर से बंधें हैं ।गुरुत्व की अदृस्य डोर पूरी कयानात(सृष्टि )को नचा रही है ,कठपुतली की मानिंद .
निहारिकाओं के उद्भव और विकाश की एक ही कड़ी रही है ।
निहारिकाओं के एक झुण्ड को जिसमे कमसे कम दस या और भी ज्यादा निहारिकायें मौजूद रहतीं हैं .,'लोकल ग्रुप 'कहा जाता है ।
इससे भी बड़े निहारिका समूह को 'सुपर गेलेक्सी 'या सुपर क्लस्टर कहा जाता है .इसमें ५० -१००० तक नीहारिकाएं मौजूद हो सकतीं है .
हमारी "मिल्की वे गेलेक्सी "भी एक सुपर गेलेक्सी 'विर्गो सुपर क्लस्टर 'में शामिल एक नीहारिका मात्र है ।
एक बात आपको और बतला दें .हमारी सृष्टि में विराम की स्थिति में एक कण भी नहीं है ।
हमारी पृथ्वी सूर्य की ,खुद सूरज हमारी "मिल्की वे गेलेक्सी "के केंद्र की ,एक गेलेक्सी अपने से बड़े समूहके केंद्र की ,और एक समूह दूसरे क्लस्टरके केंद्र की परिक्रमा कर रहा है .सारी सृष्टि परस्पर अपने ही अंगों से दूर छिटक रही है .ब्रह्माण्ड में एक अपूर्व भागम भाग ,बेतरह हलचल मची हुई है .सृष्टि का विस्तार हो रहा है .विस्तार में ही सार है .जड़ता मृत्यु है .

क्या हैं जोवियन प्लेनेट्स ?

जोव लेटिन भाषा का मूल शब्द है जिसका एक अर्थ होता है (ओल्ड लेटिन जोविस )जूपिटर यानी बृहस्पति .'बाई जोव का एक अर्थ होता है -किसी चीज़ पर बल देना ,अचरज (विस्मय ,आश्चर्य व्यक्त करना ) .बाई जोव ,यु आर राईट ।
जोव से बना 'जोवियन '।
जोवियन प्लेनेट्स ?
प्राइमरी प्लेनेट्स या मेजर प्लेनेट्स में जूपिटर (बृहस्पति ),युरेनस (ग्रीस पुरानों के मुताबिक़ पृथ्वी का पुत्र और शनि का पिता कहा गया है युरेनस या अरुण को.),शेतर्न(शनि ,जिसे अब प्लेनेतोइड या लघुग्रह माना जाता है ,ऐसे सभी गृह जो चंद्रमा से छोटें हैं अब प्लेनेतोइड्स कहे जातें हैं )और नेपच्यून (वरुण ,जल का देवता ,रोमन गोड ऑफ़ दा,'सी' समझा गया है ।),को शामिल किया गया है .इन चारों में से किसी को भी 'जोवियन प्लेनेट 'कह दिया जाता है .
बृहस्पति से पहले आने वाले ग्रहों को माइनर या सेकेंडरी प्लेनेट्स कहा जाता है ।
इन्हें ही गैस - जाइंट्स (महा- काय गैसीय ग्रह) भी कह दिया जाता है .इनके बेहिसाब उपग्रह यानी चंद्रमा हैं ,हमारी पृथ्वी का तो एक ही चाँद है .अलावा इसके गैसीय छल्ले (रिंग्स )भी हैं .सूरज के नौ बेटे (अकबर के दरबार के नवरत्नों से )और सौ से भी ज्यादा चाँद (उपग्रह) हैं.बेटे .
इनकी "कोर" (आंतरप्रदेश )डेंस है .बाहर गैसों का घेरा है .गैसों में हाइड्रोजन और हीलियम मौजूद है .इनका नर्तन सूरज के गिर्द लट्टू सा घूमना द्रुत गामी है ,तेज़ है .

शनिवार, 8 मई 2010

छात्रों के लिए "टाकिंग पिलो 'यानी तकिया मॉस- साहिब

दादी नानियाँ सोते समय हमारे नौनिहालों को किस्से कहानियां सुनातीं थीं .जागने पर उनका कुछ ना कुछ अंश तो याद रह ही जाता था ।
अब यही काम 'तकिया -मास्टर -जी 'करेंगें .इस तकिये के फाइबर्स में एक इन -बिल्ट स्पीकर समायोजित किया गया है .इसका सम्बन्ध किसी भी 'एम् पी थ्री प्लेयर 'या फिर सी डी -प्लेयर से भी जोड़ा जा सकता है .परीक्षा के दिनों में जब आप गहरी नींद ले रहे होंगें यह आपको दिन में आपके द्वारा याद किया गया पाठ सुनाएगा .क्लास रूम में आज पढ़े सबक को दोहराएगा ।यानी नींद के दौरान भी आप कुछ तो सीख ही रहे होंगें .
'साउंड एस्लीप 'नाम दिया गया है इस टाकिंग पिलो को जिसकी वर्तमान में कीमत है २० पोंड .
एक अमरीकी अध्धय्यन इसके डिजाइन में प्रयुक्त टेक्नोलोजी के समर्थन में कहता है .'रिविज़न रिमाइन्दर्स रिस्सीव्द ड्यूरिंग स्लीप केन बी ऋ -काल्ड ।यानी नींद के दौरान आपके लिए दोहराया गयाआपको सुनाया गया पाठ कुछ ना कुछ अंशों मे ,कमोबेश याद ही रहता है .
सन्दर्भ सामिग्री :-नाव ए टाकिंग पिलो फॉर स्त्युदेंट्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ८ ,२०१० )